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    ेमचंद

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  • 2

    कथा- म

    मैकू : 2 समर-या ा : 7 शां त : 20 बैक का दवाला : 36

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    मैकू

    का दर और मैक ताड़ीखाने के सामने पहचेू ू ँ ;तो वहॉ कॉ ेस के वालं टयर झंडा लए खड़ े नजर आये। दरवाजे के इधर-उधर हजार दशक खड़ ेथे। शाम का व त था। इस व त गल म पय कड़ के सवा और कोई न आता था। भले आदमी इधर से नकलते झझकते। पय कड़ क छोट -छोट टो लयॉ आती-जाती रहती थीं। दो-चार वे याऍ ंदकान के सामने खड़ी ूनजर आती थीं। आज यह भीड़-भाड़ देख कर मैक ने कहाू —बड़ी भीड़ है बे, कोई दो-तीन सौ आदमी ह गे। का दर ने म करा कर कहाु —भीड़ देख कर डर गये या? यह सब हर ुहो जायगँे, एक भी न टकेगा। यह लोग तमाशा देखने आये ह, ला ठयॉ खाने नह ं आये ह। मैक ने संदेह के वर म कहाू —प लस के सपाह भी बैठे ह। ठ केदार ुने तो कहा थ, प लस न बोलेगी।ु का दर—हॉ बे , प लस न बोलेगीु , तेर नानी य मर जा रह है । प लस वहॉ बोलती हैु , जहॉ चार पैसे मलते है या जहॉ कोई औरत का मामला होता है। ऐसी बेफजल बात म प लस नह ं पड़ती। प लस तो और ू ु ुशह दे रह है। ठ केदार से साल म सैकड़ पये मलते ह। प लस इस व त ुउसक मदद न करेगी तो कब करेगी? मैकू—चलो, आज दस हमारे भी सीधे हए। म त म पयगे वह अलगु ु , मगर हम सनते हु , कॉ ेसवाल म बड़े-बड़ ेमालदार लोग शर क है। वह कह ं हम लोग से कसर नकाल तो बरा होगा।ु का दर—अबे, कोई कसर-वसर नह ं नकालेगा, तेर जान य नकल रह है? कॉ ेसवाले कसी पर हाथ नह ं उठाते, चाहे कोई उ ह मार ह डाले। नह ं तो उस दन जलस म दसु ू -बारह चौक दार क मजाल थी क दस हजार आद मय को पीट कर रख देते। चार तो वह ठंड ेहो गये थे, मगर एक ने हाथ नह ं उठाया। इनके जो महा मा ह, वह बड़ े भार फक र है ! उनका ह म है क चपके से मार खा लोु ु , लड़ाई मत करो।

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    य बात करते-करते दोन ताड़ीखाने के वार पर पहच गये। एक ुँवयंसेवक हाथ जोड़कर सामने आ गया और बोला –भाई साहब, आपके

    मजहब म ताड़ी हराम है। मैक ने बात का जवाब चॉटे से दया । ऐसा तमाचाू मारा क वयंसेवक क ऑखं म खन आ गया। ऐसा मालम होता थाू ू , गरा चाहता

    है। दसरे वयंसेवक ने दौड़कर उसे सभाला। पॉच उँग लयो का र तमय ू ँत ब ब झलक रहा था।

    मगर वालं टयर तमाचा खा कर भी अपने थान पर खड़ा रहा। मैक ूने कहा—अब हटता है क और लेगा? वयंसेवक ने न ता से कहा—अगर आपक यह इ छा है, तो सर सामने कये हए ह। िजतना चा हएु ू ँ , मार ल िजए। मगर अंदर न जाइए। यह कहता हआ वह मैक के सामने बैठ गया ।ु ू मैक ने वयंसेवक के चेहरे पर नगाह डाल । उसक पॉच उँग लय के ूनशान झलक रहे थे। मैक ने इसके पहलेू अपनी लाठ से टटे हए कतने ह ू ुसर देखे थे, पर आज क -सी लानी उसे कभी न हई थी। वह पाँच ुउँग लय के नशान कसी पंचशल क भॉ त उसके दय म चभ रहे थे।ू ु का दर चौक दार के पास खड़ा सगरेट पीने लगा। वह ं खड़-ेखड़े बोला—अब, खड़ा या देखता है, लगा कसके एक हाथ। मैक ने वयंसेवक से कहाू —तम उठ जाओु , मझ ेअ दर जाने दो।ु ‘आप मेर छाती पर पॉव रख कर चले जा सकते ह।’ ‘म कहता हूँ, उठ जाओ, मै अ दर ताड़ी न पीउँगा , एक दसरा ह ूकाम है।’ उसने यह बात कछ इस ढ़ता से कह क वयंसेवक उठकर रा ते से ुहट गया। मैक ने म करा कर उसक ओर ताका । वयंसेवक ने फर हाथ ू ुजोड़कर कहा—अपना वादा भल न जाना। ू एक चौक दार बोला—लात के आगे भत भागता हैू , एक ह तमाचे म ठ क हो गया ! का दर ने कहा—यह तमाचा ब चा को ज म-भर याद रहेगा। मैक के ूतमाचे सह लेना मामल काम नह ं है।ू चौक दार—आज ऐसा ठ को इन सब को क फर इधर आने को नाम न ल ।

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    का दर—खदा ने चाहाु , तो फर इधर आयगे भी नह ं। मगर ह सब बड़े ह मती। जान को हथेल पर लए फरते ह। 2 मैक भीतर पहचाू ु ँ , तो ठ केदार ने वागत कया –आओ मैक मयॉ ू ! एक ह तमाचा लगा कर यो रह गये? एक तमाचे का भला इन पर या असर होगा? बड़ ेलतखोर ह सब। कतना ह पीटो, असर ह नह ं होता। बस आज सब के हाथ-पॉव तोड़ दो; फर इधर न आय । मैकू—तो या और न आयग? ठ केदार— फर आते सब क नानी मरेगी। मैकू—और जो कह ं इन तमाशा देखनेवाल ने मेरे ऊपर डंड े चलाये तो! ठ केदार—तो प लस उनको मार भगायेगी। एक झड़प म मैदान साफ ुहो जाएगा। लो, जब तक एकाध बोतल पी लो। म तो आज म त क पला ुरहा ह।ू ँ मैकू— या इन ाहक को भी म त ु ? ठ केदार – या करता , कोई आता ह न था। सना क म त मलेगी ु ुतो सब धस पड़ेँ । मैकू—म तो आज न पीऊँगा। ठ केदार— य ? त हारे लए तो आज ताजी ताड़ी मगवायी है। ु ँ मैकू—य ह , आज पीने क इ छा नह ं है। लाओ, कोई लकड़ी नकालो, हाथ से मारते नह ं बनता । ठ केदार ने लपक कर एक मोटा स टा मैक के हाथ म दे दयाू , और डंडबेाजी का तमाशा देखने के लए वार पर खड़ा हो गया । मैक ने एक ण डंड ेको तौलाू , तब उछलकर ठ केदार को ऐसा डंडा रसीद कया क वह ं दोहरा होकर वार म गर पड़ा। इसके बाद मैक ने ूपय कड़ क ओर ख कया और लगा डंड क वषा करने। न आगे देखता था, न पीछे, बस डंड ेचलाये जाता था। ताड़ीबाज के नश े हरन हए । घबड़ाु -घबड़ा कर भागने लगे, पर कवाड़ के बीच म ठ केदार क देह बधंी पड़ी थी। उधर से फर भीतर क ओर लपके। मैक ने फर डंड से आवाहन कया । आ खर सब ठ केदार क ूदेह को रौद-रौद कर भागे। कसी का हाथ टटाू , कसी का सर फटाू , कसी

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    क कमर टट । ऐसी भगदड़ मची क एक मनट के ू अ दर ताड़ीखाने म एक च ड़ये का पत भी न रह गया।ू एकाएक मटक के टटने क आवाज आयी। वयंसेवक ने भीतर झाँक ूकर देखा, तो मैक मटक को व वंस करने म जटा हआ था। बोलाू ु ु —भाई साहब, अजी भाई साहब, यह आप गजब कर रहे ह। इससे तो कह ं अ छा क आपने हमारे ह ऊपर अपना ग सा उतारा होता। ु मक ने दोू -तीन हाथ चलाकर बाक बची हई बोतल और मटक का ुसफाया कर दया और तब चलते-चलते ठ केदार को एक लात जमा कर बाहर नकल आया। का दर ने उसको रोक कर पछा ू –त पागल तो नह ं हो गयाू है बे? या करने आया था, और या कर रहा है।

    मैक ने लालू -लाल ऑखं से उसक ओर देख कर कह—हॉ अ लाह का श है क म जो करने आया थाु , वह न करके कछ और ह कर बैठा। ुतमम कवत होु ू , तो वालंटर को मारो, मझम कवत नह ं है। मने तो जो एक ु ूथ पड़ लगाया। उसका रंज अभी तक है और हमेशा रहेगा ! तमाचे के नशान मेरे कलेजे पर बन गये ह। जो लोग दसर को गनाह से बचाने के ू ुलए अपनी जान देने को खड़ ेह, उन पर वह हाथ उठायेगा, जो पाजी है, कमीना है, नामद है। मैक फसाद हैू , लठैत ,गंडा हैु , पर कमीना और नामद नह ं ह। कह दो प लसवाल से ु , चाह तो मझ े गर तार कर ल।ु कई ताड़ीबाज खड़े सर सहलाते हएु , उसक ओर सहमी हई ऑखंो से ुताक रहै थे। कछ बोलने क ह मत न पड़ती थी। मैक ने उनक ओर देख ु ूकर कहा –म कल फर आऊँगा। अगर तमम से कसी को यहॉ देखा तो खन ु ूह पी जाऊँगा ! जेल और फॉसी से नह ं डरता। त हार भलमनसी इसी म है ुक अब भल कर भी इधर न आना । यह कॉ ेसवाले त हारे द मन नह ं है। ू ु ुत हारे और त हारे बालु ु -ब च क भलाई के लए ह त ह पीने से रोकते ह। ुइन पैस से अपने बाल-ब चो क परव रश करो, घी-दध खाओ। घू र म तो फाके हो रहै ह, घरवाल त हारे नाम को रो रह हैु , और तम यहॉ बैठे पी ुरहै हो? लानत है इस नशबेाजी पर । मैक ने वह ं डंडा फक दया और कदम बढ़ाता हआ घर चला। इस ू ुव त तक हजार आद मय का हजम हो गया था। सभी ाु ू , ेम और गव क ऑखंो से मैकू को देख रहे थे।

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    समर या ा आज सबेरे ह से गॉव म हलचल मची हई थी। क ची झोप ड़यॉ ुहसती हई जान पड़ती थी। आज स या हय का ज था गॉव म आयेगा। ँ ुकोदई चौधर के वार पर चदोवा तना हआ है। आटाँ ु , घी, तरकार , दध ुऔर दह जमा कया जा रहा है। सबके चेहर पर उमंग है, हौसला है, आन द है। वह बदंा अह र, जो दौरे के हा कमो के पड़ाव पर पाव-पाव भर दध के लए मह छपाता फरता थाू ुँ , आज दध और दह के दो मटके ूअ हराने से बटोर कर रख गया है। क हारु , जो घर छोड़ कर भाग जाया करता था , म ी के बतन का अटम लगा गया है। गॉव के नाई-कहार सब आप ह आप दौड़ ेचले आ रहे ह। अगर कोई ाणी दखी हैु , तो वह नोहर ब ढ़या है। वह अपनी झोपड़ी के वार पर बैठ हई अपनी पचह तर साल क ु ुबढ़ सकड़ी हई ऑखं से यह समारोह देख रह है और पछता रह है। उसके ू ु ुपास या है,िजसे ले कर कोदई के , वार पर जाय और कहे—म यह लायी ह। वह तो दान को महताज है। ू ँ ु मगर नोहर ने अ छे दन भी देखे ह। एक दन उसके पास धन, जन सब कछ था। गॉव पर उसी का रा य था। कोदई को उसने हमेशा नीचे ुदबाये रखा। वह ी होकर भी प ष थी। उसका प त घर म सोता थाु , वह खेत मे सोने जाती थी। मामले –मकदम क पैरवी खद ह करती थी। लेनाु ु -देना सब उसी के हाथ म था ले कन वह सब कछ वधाता ने हर लयाु ; न धन रहा, न जन रहे—अब उनके नाम को रोने के लए वह बाक थी। ऑखं से सझता न थाू , कान से सनायी न देता थाु , जगह से हलना मि कल थाु । कसी तरह िजंदगी के दन परे कर रह थी और उधर कोदई ूके भाग उदय हो गये थे। अब चार ओर से कोदई क पछ थीू —पहच थी। ूँआज जलसा भी कोदई के वार पर हो रहा ह। नोहर को अब कौन पछेगा ू। यह सोचकर उसका मन वी दय मानो कसी प थर से कचल उठा। हाय ु ! मगर भगवान उसे इतना अपंग न कर दया होता, तो आज झोपड़ े को ल पती, वार पर बाजे बजवाती; कढ़ाव चढ़ा देती, प ड़यॉ बनवायी और जब ुवह लोग खा चकतेु ; तो अँजल भर पये उनको भट कर देती।ु उसे वह दन याद आया जब वह बढ़े प त को लेकर यहॉ से बीस ूकोस महा मा जी के दशन करने गयी थी। वह उ साह , वह साि वक ेम,

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    वह ा, आज उसके दय म आकाश के म टयाले मघ क भॉ त उमड़ने लगी। कोदई ने आ कर पोपले मह से कहाुँ —भाभी , आज महा मा जी का ज था आ रहा है। त ह भी कछ देना है। ु ु नोहर ने चौधर का कटार भर हई ऑखं से देखा । ु नदयी मझे ुजलाने आया है। नीचा दखाना चाहता है। जैसे आकाश पर चढ़ कर बोल –मझ ेजो कछ देना हैु ु , वह उ ह ं ल गो को दगी । त ह य दखाऊँ ू ुँ ! कोदई ने म करा कर कहाु —हम कसी से कहेग नह ं, सच कहते ह भाभी, नकालो वह परानी हॉड़ी ु ! अब कस दन के लए रखे हए हो। कसी ुने कछ नह ं दया। गॉव क लाज कैसे रहैगी ु ं ? नोहर ने कठोर द नता के भाव से कहा—जले पर नमक न छड़को, देवर जी! भगवान ने दया होता,तो त ह कहना न पड़ता । इसी वार पर ुएक दन साधु-संत, जोगी-जती,हा कम-सबा सभी आते थेू ; मगर सब दन बराबर नह ं जाते ! कोदई लि जत हो गया। उसके मख क झ रयॉ मान रगने लगीं। ु ुबोला –तम तो हसीु ँ -हसी म बगड़ जाती हो भाभी ँ ! मने तो इस लए कहा था क पीछे से तम यह न कहने लगोु —मझसे तो कसी ने कछ कहा ह ु ुनह ं । यह कहता हआ वह चला गया। नोहर वह ं बैठ उसक ओर ताु कती रह । उसका वह यं य सप क भॉ त उसके सामने बैठा हआ मालम होता ु ूथा।

    2 नोहर अभी बैठ हई थी क शोर मचाू —ज था आ गया। पि चम म गद उड़ती हई नजर आ रह थीु , मान प वी उन या य के वागत म ृअपने राज-र न क वषा कर रह हो। गॉव के सब ी-प ष सब कामु छोड़-छोड़ कर उनका अ भवादन करने चले। एक ण मे तरंगी पताका हवा म फहराती दखायी द , मान वरा य ऊँचे आसन पर बैठा हआ सबको ुआशीवाद दे रहा है।

    ि यां मंगल-गान करने लगीं। जरा देर म या य का दल साफ नजर आने लगा। दो-दो आद मय क कतार थीं। हर एक क देह पर ख र का कता थाु , सर पर गॉधी टोपी , बगल म थैला लटकता हआु , दोन हाथ

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    खाल , मान वरा य का आ लगंन करने को तैयार ह । फर उनका क ठ-वर सनायी देने लगा। उनके मरदाने गल से एक कौमी तराना नकल रहा ु

    था, गम,गहरा, दल म फू त डालनेवाला— एक दन वह था क हम सारे जहॉ म फद थे, एक दन यह है क हम-सा बेहया कोई नह ं। एक दन वह था क अपनी शान पर देते थे जान, एक दन यह है क हम-सा बेहया कोई नह ं। गॉववाल ने कई कदम आगे बढ़कर या य का वागत कया। बेचार

    के सर पर धल जमी हई थीु ु , ओठ सखे हएू ु , चेहरे सवालायेँ ; पर ऑख म जैसे आजाद क यो त चमक रह थी ।

    ि यां गा रह थीं, बालक उछल रहै थे और प ष अपने अँगोछ से ुया य क हवा कर रहे थे। इस समारोह म नोहर क ओर कसी का यान न गया, वह अपनी ल ठया पकड़ ेसब के पीछे सजीव आशीवाद बनी खड़ी थी उसक ऑखं डबडबायी हई थींु , मख से गौरव क ऐसी झलक आ रह थी ुमानो वह कोई रानी है, मानो यह सारा गॉव उसका है, वे सभी यवक उसके ुबालक है। अपने मन म उसने ऐसी शाि त, ऐसे वकास, ऐसे उ थान का अनभव कभी न कया था।ु

    सहसा उसने लाठ फक द और भीड़ को चीरती हई या य के सामने ुआ खड़ी हईु , जैसे लाठ के साथ ह उसने बढ़ापे और दु :ुख के बोझ को फक दया हो ! वह एक पल अनर त ऑखं से आजाद के सै नको क ओर ुताकती रह , मान उनक शि त को अपने अंदर भर रह हो, तब वह नाचने लगी, इस तरह नाचने लगी, जैसे कोई स दर नवयौवना ेम और उ लास ुके मद से व वल होकर नाचे। लोग दो-दो, चार-चार कदम पीछे हट गये, छोटा-सा ऑगंन बन गया और उस ऑगंन म वह ब ढ़या अपना अतीत ुन यृ -कौशल दखाने लगी । इस अलौ कक आन द के रेले म वह अपना सारा द:ुख और संताप भल गयी। ू उसके जीण अंग म जहॉ सदा वाय को ुकोप रहता था, वहॉ न जाने इतनी चपलता , इतनी लचक, इतनी फरती ु

    कहॉ से आ गयी थी ! पहले कछ देर तो लोग मजाक से उसक ओर ताकते ुरहे ; जैसे बालक बंदर का नाच देखते ह, फर अनराग के इस पावन वाह ुने सभी को मतवाला कर दया। उ ह ऐसा जान पड़ा क सार क त एक ृवराट यापक न य क गोद म खेल रह है।ृ

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    कोदई ने कहा—बस करो भाभी, बस करो। नोहर ने थरकते हए कहाु —खड़ े य हो, आओ न जरा देख कैसा ूँ

    नाचते हो! कोदई बोले- अब बढ़ापे म या नाचु ूँ? नोहर ने क कर कहा – या तम आज भीु बढ़े होू ? मेरा बढ़ापा तो ु

    जैसे भाग गया। इन वीर को देखकर भी त हार छाती नह ं फलतीु ू ? हमारा ह द:ुख-दद हरने के लए तो इ ह ने यह परन ठाना है। इ ह ं हाथ से हा कम क बेगार बजायी ह, इ ह कान से उनक गा लयॉ और घड़ कयॉ ुसनी है। अब तो उस जोरु -जुलम का नाश होगा ु –हम और तम या अभी ुबढ़े होने जोग थेु ? हम पेट क आग ने जलाया है। बोलो ईमान से यहॉ इतने आदमी ह, कसी ने इधर छह मह ने से पेट-भर रोट खायी है? घी कसी को सघने को मला है ूँ ! कभी नींद-भर सोये हो ! िजस खेत का लगान तीन पये देते थे, अब उसी के नौ-दस देते हो। या धरती सोना उगलेगी? काम

    करते-करते छाती फट गयी। हमीं ह क इतना सह कर भी जीते ह। दसरा ूहोता, तो या तो मार डालता, या मर जाता ध य है महा मा और उनके चेले क द न का द:ुख समझते ह, उनके उ ार का जतन करते ह। और तो सभी हम पीसकर हमारा र त नकालना जानते ह।

    या य के चेहरे चमक उठे, दय खल उठे। ेम क डबी हई व न ू ुनकल —

    एक दन था क पारस थी यहॉ क सरजमीन, एक दन यह है क य बे-द तोपा कोई नह ं। 3 कोदई के वार पर मशाल जल रह थीं। कई गॉव के आदमी जमा हो ं

    गये थे। या य के भोजन कर लेने के बाद सभा श हई। दल के नायक ने ु ुखड़ ेहोकर कहा—

    भाइयो,आपने आज हम लोग का जो आदर-स कार कया, उससे हम यह आशा हो रह है क हमार बे ड़यॉ ज द ह कट जायगी। मैने परब और ँ ूपि चम के बहत से देश को देखा हैु , और मै तजरबे से कहता ह क आप ूँम जो सरलता, जो ईमानदार , जो म और धमब हैु , वह संसार के और कसी देश म नह ं । म तो यह कहगा क आप मन य नह ंँू ु , देवता ह।

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    आपको भोग- वलास से मतलब नह ं, नशा-पानी से मतलब नह ं, अपना काम करना और अपनी दशा पर संतोष रखना। यह आपका आदश है, ले कन आपका यह देव व, आपका यह सीधापन आपके हक म घातक हो रहा है। बरा न मा नएगाु , आप लोग इस संसार म रहने के यो य नह ं। आपको तो वग म कोई थान पाना चा हए था। खेत का लगान बरसाती नाले क

    तरह बढ़ता जाता है,आप च नह ं करते । अमले और अहलकार आपको ूँनोचते रहते ह, आप जबान नह ं हलाते। इसका यह नतीजा हो रहा है क आपको लोग दोन हाथ लट रहै हेू ; पर आपको खबर नह ं। आपके हाथ से सभी रोजगार छनते जाते ह, आपका सवनाश हो रहा है, पर आप ऑखं खोलकर नह ं देखते। पहले लाख भाई सत कातकरू , कपड़े बनकर गजर ु ुकरत ेथे। अब सब कपड़ा वदेश से आता है। पहले लाख आदमी यह ं नमक बनाते थे। अब नमक बाहर से आता है। यहॉ नमक बनाना जम है। आपके ुदेश म इतना नमक है क सारे संसार का दो सौ साल तक उससे काम चल सकता है।, पर आप सात करोड़ पये सफ नमक के लए देते ह। आपके ऊसर म, झील म नमक भरा पड़ा है, आप उसे छ नह ं सकते। शायद कछ ू ुदन म आपके कओं पर भी महसल लग जाय। या आप अब भी यह ु ूअ याय सहते रहगे?

    एक आवाज आयी—हम कस लायक ह? नायक—यह तो आपका म ह। आप ह क गदन पर इतना बड़ा

    रा य थमा हआ है। आप ह इन बड़ी ु –बड़ी फौज , इन बड़े-बड़ ेअफसर के मा लक है; मगर फर भी आप भख मरते हू , अ याय सहते ह। इस लए क आपको अपनी शि त का ान नह ं। यह समझ ल िजए क संसार म जो आदमी अपनी र ा नह ं कर सकता, वह सदैव वाथ और अ यायी आद मय का शकार बना रहेगा ! आज संसार का सबसे बड़ा आदमी अपने ाण क बाजी खेल रहा है। हजार जवान अपनी जान हथेल पर लये

    आपके द:ुख का अंत करने के लए तैयार ह। जो लोग आपको असहाय समझकर दोन हाथ से आपको लट रहे हू , वह कब चाहगे क उनका शकार उनके मह से छन जाय। वे आपके इन सपा हुँ य के साथ िजतनी सि तयॉ कर सकते ह, कर रहै ह ; मगर हम लोग सब कछ सहनेु को तैयार ह। अब सो चए क आप हमार कछ मदद करगेु ? मरद क तरह नकल कर अपने को अ याय से बचायगे या कायर क तरह बैठे हए तकद र को कोसते ु

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  • 12

    रहगे? ऐसा अवसर फर शायद कभी न आय। अगर इस व त चकेू , तो फर हमेशा हाथ मलते र हएगा। हम याय और स य के लए लड़ रहे ह; इस लए याय और स य ह के ह थयार से हम लड़ना है। हम ऐसे वीर क ज रत है, जो हंसा और ोध को दल से नकाल डाल और ई वर पर अटल व वास रख कर धम के लए सब कछ झेलु सके ! बो लए आप या मदद कर सकते ह? कोई आगे नह ं बढ़ता। स नाटा छाया रहता है। 4 एकाएक शोर मचा—प लस ु ! प लस आ गयी ु !! प लस का दारोगा कांसटे बल के एक दल के साथ आ कर सामने ुखड़ा हो गया। लोग ने सहमी हई ऑखं और धड़कते हऐ दल से उनक ु ुओर देखा और छपने के लए बल खोजने लगे। दारोगाजी ने ह म दयाु —मार कर भगा दो इन बदमाश को ? कांसटेबल ने अपने डंडे सभालेँ ; मगर इसके पहले क वे कसी पर हाथ चलाय, सभी लोग हर हो गये ु ! कोई इधर से भागा, कोई उधर से। भगदड़ मच गयी। दस मनट म वहाँ गॉव का एक आदमी भी न रहा। हॉ, नायक अपने थान पर अब भी खड़ा था और ज था उसके पीछे बैठा हआ ुथा; केवल कोदई चौधर नायक के समीप बैठे हए थर ऑखं से भ म क ु ूओर ताक रहे थे। दारोगा ने कोदई क ओर कठोर ऑखं से देखकर कहा— य रे कोदइया, तने इन बदमाश को य ठहराया यहॉू ? कोदई ने लाल-लाल ऑखं से दारोगा क ओर देखा और जहर क तरह ग से को पी गये। आज अगर उनके सर गह थी का बखेड़ा न होताु ृ , लेना-देना न होता तो वह भी इसका महतोड़ जवाब देते। िजस गह थी पर ुँ ृउ ह ने अपने जीवन के पचास साल होम कर दये थे; वह इस समय एक वषैले सप क भॉ त उनक आ मा म लपट हई थी।ु कोदई ने अभी कोई जवाब न दया था क नोहर पीछे से आकर बोल — या लाल पगड़ी बॉधकर त हार जीभ ऐंठ गयी हैु ? कोदई या त हारे गलाम ह क कोदइयाु ु -कोदइया कर रहै हो? हमारा ह पैसा खाते हो और हमीं को ऑखं दखाते हो? त हु लाज नह ं आती ?

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  • 13

    नोहर इस व त दोपहर क धप क तरह कॉप रह थी। दारोगा एक ुण के लए स नाटे म आ गया। फर कछ सोचकर औरत के मह लगना ँु ु

    अपनी शान के खलाफ समझकर कोदई से बोला—यह कौन शैतान का खाला है, कोदई ! खदा का खौफ न होता तो इसक जबान ताल से खींच ु ूलेता।

    ब ढ़या लाठ टेककर दारोगा क ओर घमती हई बोलु ू ु — य खदा क ुदहाई देकर खदा को बदनाम करते हो। त हारे खदा तो त हारे अफसर हु ु ु ु ु , िजनक तम ज तयॉ चाटते हो। त ह तो चा हए था क डब मरते च ल भर ु ू ु ू ूपानी म ! जानते हो, यह लोग जो यहॉ आये ह, कौन ह? यह वह लोग है, जो हम गर ब के लए अपनी जान तक होमने को तैयार ह। तम उ ह ुबदमाश कहते हो ! तम जो घस के पये खाते होु ू , जआ खेलाते होु , चो रयॉ करवाते हो, डाके डलवाते हो; भले आद मय को फसा कर म यॉ गरम करते ँ ुहो और अपने देवताओं क ज तय पर नाक रगड़ू ते हो, तम इ ह बदमाश ुकहते हो !

    नोहर क ती ण बात सनकर बहतु ु -से लोग जो इधर-उधर दबक गये थे, फर जमा हो गये। दारोगा ने देखा, भीड़ बढ़ती जाती है, तो अपना हंटर लेकर उन पर पल पड़।े लोग फर ततर- बतर हो गये। एक हंटर नोहर पर भी पड़ा उसे ऐसा मालम हआ क ू ु कोई चनगार सार पीठ पर दौड़ गयी। उसक ऑखं तले अँधेरा छा गया, पर अपनी बची हई शि त को एक ुकरके ऊँचे वर से बोल —लड़को य भागते हो? या नेवता खाने आये थे। या कोई नाच-तमाशा हो रहा था? त हारे इसी लड़ीपन ने इन सब को शरे ुबना रखा है। कब तक यह मार-धाड़, गाल -ग ता सहते रहोगे।ु

    एक सपाह ने ब ढ़या क गरदन पकड़कर जोर से ध का दया।ब ढ़या ु ुदो-तीन कदम पर औधंे मह गरा चाहती थी क कोदई ने लपककर उसे ुँसभाल लया और बोलाँ — या एक द खया पर ग सा दखाते हो यारोु ु ? या गलामी ने त ह नामद भी बना दया हैु ु ? औरत पर , बढ़ परू , नह थ पर, वार करते हो,वह मरद का काम नह ं है।

    नोहर ने जमीन पर पड़-ेपड़ ेकहा—मद होते तो गलाम ह य होते ु ! भगवान ! आदमी इतना नदयी भी हो सकता है? भला अँगरेज इस तरह बेदरद करे तो एक बात है। उसका राज है। तम तो उसके चाकर होु , त ह ु

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  • 14

    राज तो न मलेगा, मगर रॉड मॉड म ह खश ु ! इ ह कोई तलब देता जाय, दसर क गरदन भी काटने म इ ह संकोच नह ं ू !

    अब दारोगा ने नायक को डॉटना श कयाु —तम कसके ह म से इस ु ुगॉव म आये? नायक ने शांत भाव से कहा—खदा के ह म से । ु ु दारोगा—तुम रआया के अमन म खलल डालते हो? नायक—अगर त ह उनक हालत बताना उनके अमन म खलल ुडालना है ता बेशक हम उसके अमन म खलल डाल रहे है। भागनेवाल के कदम एक बार फर क गये। कोदई ने उनक ओर नराश ऑखं से देख कर कॉपते हए वर म कहाु —भाइयो इस बखत कई गॉव के आदमी यहॉ जमा ह? दारोगा ने हमार जैसी बेआब ई क है, या उसे सह कर तम आराम क नींद सो सकते होु ? इसक फ रयाद कौन सनेगाु ? हा कम लोग या हमार फ रयाद सनगे। कभी नह ं। आज अगर ुहम लोग मार डाले जायँ, तो भी कछ न होगा। यह है हमार इ जत और ुआब ? थड़ी ु है इस िजंदगी पर! समह ि थर भाव से खड़ा हो गयाू , जैसे बहता हआ पानी मड़ से क ुजाय। भय का धआं जो लोग के दय पर छा गया थाु , एकाएक हट गया। उनके चेहरे कठोर हो गये। दारोगा ने उनके तीवर देखे, तो तर त घोड़ ेपर ुसवार हो गया और कोदई को गर तार करने का ह मु दया। दो सपा हय ने बढ़ कर कोदई क बॉह पकड़ ल । कोदई ने कहा—घबड़ाते य हो, म कह ं भागगा नह ं। चलोूँ , कहॉ चलने हो? य ह कोदई दोन सपा हय के साथ चला, उसके दोन जवान बेटे कई आद मय के साथ सपा हय क ओर लपके क कोदई को उनके हाथ से छ न ल। सभी आदमी वकट आवेश म आकर प लसवाल के चार ओर ुजमा हो गये। दारोगा ने कहा—तम लोग हट जाओ वरना म फायर कर दगा। समह ु ू ूँने इस धमक का जवाब ‘भारत माता क जाय !’ से दया और एका-एक दो-दो कदम और आगे खसक आये। दारोगा ने देखा, अब जान बचती नह ं नजर आती है। न ता से बोला—नायक साहब, यह लोग फसाद पर अमादा ह। इसका नतीजा अ छा न होगा !

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  • 15

    नायक ने कहा—नह ं, जब तक हमम एक आदमी भी यहॉ रहेगा, आपके ऊपर कोई हाथ न उठा सकेगा। आपसे हमार कोई द मनी नह ं है। ुहम और आप दोन एक ह पैर के तले दबे हए ह। यह हमार बदु -नसीबी है क हम आप दो वरोधी दल म खड़ ेह।

    यह कहते हए नायक ने गॉववाल को समझायाु —भाइयो, म आपसे कह चका ह यह याय और धम क लड़ाई है और हम याय और धम के ु ू ँह थयार से ह लड़ना है। हम अपने भाइय से नह ं लड़ना है। हम तो कसी से भी लड़ना नह ं है। दारोगा क जगह कोई अंगरेज होता, तो भी हम उसक इतनी ह र ा करते। दारोगा ने कोदई चौधर को गर तार कया है। म इसे चौधर का सौभा य समझता ह। ध य ह वे लोग जो आजाद क लड़ाई म ूँसजा पाय। यह बगड़ने या घबड़ाने क बात नह ं है। आप लोग हट जाय ँऔर प लसु को जाने द। दारोगा और सपाह कोदई को लेकर चले। लोग ने जय व न क —‘भारतमाता क जय।’ कोदई ने जवाब दया—राम-राम भाइयो, राम-राम। डटे रहना मैदान म। घबड़ाने क कोई बात नह ं है। भगवान सबका मा लक है। दोन लड़के ऑखं म ऑसं भरे आये और कातू र वर म बोले—हम या कहे जाते हो दादा !

    कोदई ने उ ह बढ़ावा देते हए कहाु —भगवान का भरोसा मत छोड़ना ्और वह करना जो मरद को करना चा हए। भय सार बराइय क जड़ है। ुइसे मन से नकाल डालो, फर त हारा कोई कछ नह ं कर सकता। स य क ु ुकभी हार नह ं होती। आज प लस सपा हय के बीच म कोदई को नभयता का जैसा ुअनभव हो रहा थाु , वैसा पहले कभी न हआ था। जेल और फॉसी उसके लए ुआज भय क व त नह ंु , गौरव क व त हो गयी थीु ! स य का य प आज उसने पहल बार देखा मान वह कवच क भॉ त उसक र ा कर रहा हो।

    5 गॉववाल के लए कोदई का पकड़ लया जाना ल जाजनक मालम हो ूरहा था। उनको ऑखं के सामने उनके चौधर इस तरह पकड़ लये गये और

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  • 16

    वे कछ न कर सके। अब वे मह कैसे दखायु ुँ ! हर एक मख पर गहर वेदना ुझलक रह थी जैसे गॉव लट गयाु ! सहसा नोहर ने च ला कर कहा—अब सब जने खड़ े या पछता रहै हो? देख ल अपनी ददशाु , या अभी कछ बाक है ु ! आज तमने देख लया ुन क हमारे ऊपर कानन से नह ं लाठ से राज हो रहा है ू ! आज हम इतने बेशरम ह क इतनी ददशा होने पर भी कछ नह ं बोलते ु ु ! हम इतने वाथ , इतने कायर न होते, तो उनक मजाल थी क हम कोड़ से पीटते। जब तक तम गलाम बने रहोगेु ु , उनक सेवा-टहल करते रहोगे, त ह भसाु ू -कर मलता रहेगा, ले कन िजस दन तमने कंधा टेढ़ा कयाु , उसी दन मार पड़ने लगेगी। कब तक इस तरह मार खाते रहोगे? कब तक मद क तरह पड़ े ग से ुअपने आपको नोचवाते रहोग? अब दखा दो क तम भी जीतेु -जागते हो और त ह भी अपनी इ जतु -आब का कछ खयाल है। जब इ जत ह न रह तो ुया करोगे खेती-बार करके, धम कमा कर? जी कर ह या करोगे? या

    इसी लए जी रहे हो क त हारे बालु -ब चे इसी तरह लात खाते जायँ, इसी तरह कचले जायु ँ? छोड़ो यह कायरता ! आ खर एक दन खाट पर पड़-ेपड़ ेमर जाओगे। य नह ं इस धरम क लड़ाई म आकर वीर क तरह मरते। म तो बढ़ औरत हँू ू , ले कन और कछ न कर सकगीु ूँ , तो जहॉ यह लोग सोयगे वहॉ झाड तो लगा दगीँू ू , इ ह पंखा तो झलगी। ँ ू

    कोदई का बड़ा लड़का मैक बोलाू —हमारे जीते-जी तम जाओगी काकु , हमारे जीवन को ध कार है ! अभी तो हम त हारे बालक जीते ह ह। म ुचलता ह उधर ूँ ! खेती-बार गंगा देखेगा।

    गंगा उसका छोटा भाई था। बोला—भैया तम यह अ याय करते हो। ुमेरे रहते तम नह ं जा सकते। तम रहोगेु ु , तो गर ती सभालोगे। मझसे तो ँ ुकछ न होगा। मझ ेजाने दो। ु ु

    मैकू—इसे काक पर छोड़ दो। इस तरह हमार -त हार लड़ाई होगी। ुिजसे काक का ह म हो वह जाय। ु नोहर ने गव से म करा कर कहाु —जो मझ े घस देगाु ू , उसी को िजताऊँगी। मैकू— या त हार कचहु र म भी वह घस चलेगा काकू ? हमने तो समझा था, यहॉ ईमान का फैसला होगा !

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  • 17

    नोहर —चलो रहने दो। मरती दाई राज मला है तो कछ तो कमा ल। ु ूँ गंगा हसता हआ बोलाँ ु —म त ह घस दगा काक । अबक बाजार ँु ूजाऊँगा,तो त हारे लए पव तमाख का प ता लाऊँगा। ु ू ू नोहर —तो बस तेर ह जीत है, त ह जाना। ू मैकू—काक , तम याय नह ं कर रह हो। ु नोहर —अदालत का फैसला कभी दोन फर क ने पस द कया है क त ह ं करोगेु ?

    गंगा ने नोहर के चरण दएु, फर भाई से गले मला और बोला—कल दादा को कहला भेजना क मै जाता ह।ू ँ एक आदमी ने कहा—मेरा भी नाम लख लो भाई—सेवाराम।

    सबने जय-घोष कया। सेवाराम आकर नायक के पास खड़ा हो गया। दसर आवाज आयीू —मेरा नाम लख लो—भजन सहं। सबने जय-घोष कया। भजन सहं जाकर नायक के पास खड़ा हो गया।

    भजन सहं दस-पांच गॉवो मे पहलवानी के लए मशहर था। यु ह अपनी चौड़ी छाती ताने, सर उठाये नायक के पास खड़ा हो हआु , तो जैसे मंडप के नीचे एक नये जीवन का उदय हो गया। तरंत ह तीसर आवाज आयीु —मेरा नाम लखो-घरे। ू यह गॉव का चौक दार थ। लोग ने सर उठा-उठा कर उसे देख। सहसा कसी को व वास न आता था क घरे अपना नाम ू लखायेगा। भजन सहं ने हसते हए पंछाँ ु ू —त ह या हआ है घरेु ू ? घरे ने कहाू —मझ े वह हआ हैु ु , जो त ह हआ है। बीस साल तक ु ुगलामी करतेु -करते थक गया। फर आवाज आयी—मेरा नाम लखो—काले खॉ। वह जमींदार का सहना था, बड़ा ह जा बर और दबंग। फर ल गो आ चय हआ।ु मैक बोलाू —मालम होता हैू , हमको लटू -लटकर घर भर लया हैू , य । काले खॉ ग भीर वर म बोला— या जो आदमी भटकता रहै, उसे कभी सीधे रा ते पर न आने दोगे भाई। अब तक िजसका नमक खाता था, उसका ह म बजाता था। तमको लटु ु ू -लट कर उसका घर भरता था। अब ूमालम हआ क मू ु बड़ ेभार मगालते म पड़ा हआ था। तम सब भाइय को ु ुुमैने बहत सताया है। अब मझ ेमाफ दो।ु ु

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  • 18

    पॉचो रग ट एक दसरे से लपटते थेँ ू , उछलते थे, चीखते थे, मानो उ ह ने सचमच वरा य पा लया होु , और वा तव म उ हे वरा य मल गया था। वरा य च त क वि तमाृ है। य ह पराधीनता का आतंक दल से नकल गया, आपको वरा य मल गया। भय ह पराधीनता है नभयता ह वरा य है। यव था और संगठन तो गौण है। नायक ने उन सेवक को स बो धत करके कहा-- म आप आज आजाद के सपा हय म आ मले, इस पर मै आपको बधाई देता हं। आपको ूमालम हैू , हम कस तरह लड़ाई करने जा रहे है? आपके ऊपर तरह-तरह क सि तयाँ क जायगी, मगर याद र खए, िजस तरह आज आपने मोह और लोभ का याग कर दया है, उसी तरह हसंा और ोध का भी याग कर द िजए। हम धम सं ाम म जा रहे ह। हम धम के रा ते पर जमा रहना होगा। आप इसके लए तैयार है

    पॉच ने एक वर म कहा—तैयार है! नायक ने आशीवाद दया—ई वर आपक मदद करे।

    ६ उस सहावनेु -सनहले भात म जैसे उमंग घल हई थी। समीर के ु ु ुहलके-हलके झोक म कश क ह क -ह क करण म उमंग सनी हई थी। ुलोग जैसे द वाने हो गये थ। मानो आजाद क देवी उ हे अपनी ओर बला ुरह हो। वह खेत-ख लहान, बाग-बगीचे ह, वह ी-प ष ह पर आज के ुभात म जो आशीवाद है, जो वरदान है, जो वभ त हैू , वह और कभी न

    थी। वह खेत-ख लहान, बाग-बगीचे, ी-प ष आज एक नयी वभ त मु ू रंग गये ह। सय नकलने के पहले ह कई हजार आद मय का जमाव हो गय था। ूजब स या हय का दल नकला तो लोग क म तानी आवाज से आकाश गज उठा। नये सै नक क वदाईूँ , उनक रम णय का कातर धैय, माता-पता का आ गव, सै नको के प र याग का य ल ग को म त कये देता था। सहसा नोहर लाठ टेकती हई आ कर खड़ी हो गयी।ु मैक ने कहाू —काक , हम आ शवाद दो। नोहर —मै त हारे साथ चलती ह बेटाु ू ँ कतना आ शवाद लोगे?

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  • 19

    कई आद मय ने एक वर से कहा—काक , तम चल जाओगीु , तो यहॉ कौन रहेगा? नोहर ने शभु -कामना से भरे हए वर म कहाु —भैया, जाने के तो अब दन ह है, आज न जाऊँगी, दो-चार मह ने बाद जाऊँगी। अभी आऊँगी, तो जीवन सफल हो जायेगा। दो-चार मह ने म खाट पर पड़-ेपड़ ेजाऊँगी, तो मन क आस मन म ह रह जायेगी। इतने बलक ह, इनक सेवा से मेर मकत ु ुबन जायगी। भगवान करे, तम लोग के स दन आय और मै अपनी िजंदगी ु ुम त हारा सख देख ल।ँु ु ू

    यह कहते हए नोहर ने सबको आशीवाद दया और नायक के पास ुजाकर खड़ी हो गयी।

    लोग खड़ ेदेख रहे थे और ज था गाता हआ जाता था।ु एक दन यह है क हम-सा बेहया कोई नह ं। नोहर के पाँव जमीन पर न पड़ते थे; मान वमान पर बैठ हई वगु

    जा रह हो।

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  • 20

    शाि त

    जब मै ससराल आयीु , तो बलकल फहड थी। न पहननेु ू -ओढ़ने को सल का , न बातचीत करने का ढंग। सर उठाकर कसी से बात चत न कर सकती थीं। ऑखं अपने आप झपक जाती थीं। कसी के सामने जाते शम आती, ि य तक के सामने बना घघट के झझक होती थी। म कछ ह द ूँ ुपढ़ हई थीु पर उप यास, नाटक आ द के पढ़ने म आ नद न आता था। फसत मलने पर रामायण पढ़ती। उसम मेरा मन बहत लगता था। मै उसे ु ुमन यु -कत नह ं समझती थी। मझे पराृ ु ू -परा व वास था क उसे कसी ूदेवता ने वयं रचा होगा। मै मन य को इतना ब मान और स दय नह ं ु ुसमझती थी। मै दन भर घर का कोई न कोई काम करती रहती। और कोई काम न रहता तो चख पर सत कातती। अपनी बढ़ सास से थरू ू -थर कॉपती थी। एक दन दाल म नमक अ धक हो गया। ससर जी ने भोजन के समय ुसफ इतना ह कहा—‘नमक जरा अंदाज से डाला करो।’ इतना सनते ह ुदय कॉपने लगा। मानो मझे इससे अ धक कोई वेदना नह ं पहचाई जा ु ु

    सकती थी। ले कन मेरा यह फहड़पन मेरे बाबजी ू ू (प तदेव) को पस द न आता था। वह वक ल थे। उ ह ने श ा क ऊँची से ऊँची डग रयॉ पायी थीं। वह मझ पर ेु म अव य करते थे पर उस ेम म दया क मा ा अ धक होती थी। ि य के रहन-सहन और श ा के स ब ध म उनके वचार बहत ह ुउदार थे वह मझ ेउन वचार से बहत नीचे देखकर कदा चत मन ह मन ु ु ्ख न होते थे पर त उसम मेरा कोई अपराध न देखकर हमारे र मु - रवाज पर झझलाते थे। उ ह मेरे साथ बैठकर बातचीत करने म जरा आन द न ुआता। सोने आते, तो कोई न कोई अँ ेजी प तक साथ लातेु , और नींद न आने तक पढ़ा करते। जो कभी मै पछ बैठती क या पढ़ते होू , तो मेर ओर क ण ि ट से देखकर उ तर देते—त ह याु बतलाऊँ यह आसकर वाइ ड क सव े ठ रचना है। मै अपनी अयो यता पर बहत लि जत थी। ुअपने को ध कारती, मै ऐसे व वान प ष के यो य नह ं ह। मझे कसी ु ुू ँउज ड के घर पड़ना था। बाबजी मझ े नरादर क ि ट से नह ं देखते थेू ु , यह मेरे लए सौभ य क बात थी।

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  • 21

    एक दन सं या समय म रामायण पढ़ रह थी। भरत जी रामचं जी क खोज म नकाले थे। उनका क ण वलाप पढ़कर मेरा दय गदग हो रहा था। ने से अ धारा बह रह थी। दय उमड़ आता था। सहसा बाब ु ूजी कमरे म आय। मैने प तक तरंत ब द कर द ं। उनके सामने मै अपने ु ुफहड़पन कोू भरसक कट न होने देती थी। ले कन उ ह ने प तक देख लु और पछाू —रामायण है न? मैने अपरा धय क भां त सर झका कर कहाु —हॉ, जरा देख रह थी। बाब जीू —इसम शक नह ं क प तक बहत ह अ छु ु , भाव से भर हई हैु ले कन जैसा अं ेज या ांसीसी लेखक लखत ह। त हार समझ म ुतो न आवेगा, ले कन कहने म या हरज है, योरोप म अजकल ‘ वाभा वकता’ ( Realism) का जमाना है। वे लोग मनोभाव के उ थान और पतन का ऐसा वा त वक वणन करते है क पढ़कर आ चय होता है। हमारे यहॉ क वयो को पग-पग पर धम तथा नी त का यान रखना पड़ता है, इस लए कभी-कभी उनके भाव म अ वभा वकता आ जाती है, और यह ट ुतलसीदास म भी है।ु मेर समझ म उस समय कछ भी न आया। बोल ु –मेरे लए तो यह बहत हैु , अँ ेजी प तक कैसे समझ। ु ूँ बाब जीू —कोई क ठन बात नह ं। एक घंटे भी रोज पढ़ो, तो थोड़ ेह समय म काफ यो यता त कर सकती हो पर तमने तो मानो मेर बात ुन मानने क सौगंध ह खा ल है। कतना समझाया क मझसे शम करने ुक आव यकता नह ं, पर त हारे ऊपर असर न पड़ा। कतना कहता हं क ु ूजरा सफाई से रहा करो, परमा मा स दरता देता है तो चाहता है कु उसका ंगार भी होता रहेृ ले कन जान पड़ता है, त हार ि ट म उसका कछ भी ु ु

    म य नह ं ू या शायद तम समझती हो क मेरे जैसे क प मन य के लए ु ुुतम चाहे जैसा भी रहोु , आव यकता से अ धक अ छ हो। यह अ याचार मेरे ऊपर है। तम मझ ेठ कु ु -पीट कर वैरा य सखाना चाहती हो। जब म दन-रात मेहनत करके कमाता ह तो वूँ -भावत:- मेर यह इ छा होती है क उस

    य का सबसे उ तम यय हो। पर त त हारा फहड़पन और पराने वचार ु ु ू ुमेरे सारे प र म पर पानी फेर देते है। ि याँ केवल भोजन बनाने, ब चे पालने, प त सेवा करने और एकादशी त रखने के लए नह ं है, उनके जीवन का ल य इससे बहत ऊँचा है। वे मन य के सम त सामािजक और ु ु

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  • 22

    मान सक वषय म समान प से भाग लेने क अ धका रणी ह। उ हे भी मन य क भां त वतं रहने का अ धकार ा त है। मझ े त हार यह ु ु ुबंद -दशा देखकर बड़ा क ट होता है। ी परष क अ ा गनी मानी गई हैु ले कन तम मेर मान सक और सामािजकु , कसी आव यकता को परा नह ं ूकर सकतीं। मेरा और त हारा धम अलगु , आचार- वचार अलग, आमोद-मोद के वषय अलग। जीवन के कसी काय म मझ ेतमसे कसी कार क ु ु

    सहायता नह ं मल सकती। तम वयं वचार सकती हो क ऐसी दशा म ुमेर िजंदगी कैसी बर तरह कट रह है।ु बाब जी का कहना बलकल यथाथ था। म उनके गले म एक जंजीर ू ुक भां त पड़ी हई थी। उस दन से मैने उ ह ं के कह अनसार चलने क ढ ु ु ृत ा करल , अपने देवता को कस भॉ त अ स न करती?

    यह तो कैसे कह क मझ ेपहननेूँ ु -ओढ़ने से ेम न था, और उतना ह था, िजतना दसर ि य को होता है। जब बालक और व तक ंगार पसंद ू ृ ृकरते है, त म यवती ठहर । मन भीतर ह भीतर मचल कर रह जाता था। ुमेरे मायके म मोटा खाने और मोटा पहनने क चाल थी। मेर मॉ और दाद हाथ से सत कातती थींू और जलाहे से उसी सत के कपड़े बनवा लए जाते ु ू ुथे। बाहर से बहत कम कपड़ ेआते थे। म जरा मह न कपड़ा पहनना चाहतीं ुया गार क ची दखाती तो अ मॉ फौरन टोकतीं और समझाती क बहत ृ ुबनाव-सवॉर भले घर क लड़ कय को शोभा नह ं देता। ऐसी आदत अ छ नह ं। य द कभी वह मझ ेदपण के सामने देख लेतीु , तो झड़कने लगती पर त अब बाबजी क िजद से मेर यह झझक जाती रह । सास और ननद ु ूमेरे बनाव- ंगार पर नाकृ -भ सकोड़ती पर मझ ेअब उनक परवाह न थी। ुबाबजी क ेमू -प रपण ि ट के लए मै झड़ कयां भी सह सकती थी। अब ूउनके और मेरे वचार म समानता आती जाती थी। वह अ धक स न च त जान पड़ते थे। वह मेरे लए फैसनेबल सा ड़यॉु , संदर जाकटु , चमकते हए ुजते औरू कामदार ल पर लाया करते पर म इन व तओं को धारण कर ुकसी के सामने न नकलती, ये व केवल बाब जी के ह सामने पहनने ूके लए रखे थे। मझ ेइस कार बनीु -ठनी देख कर उ हे बड़ी स नता होती थी। ी अपने प त क स नता के लए या नह ं कर सकती। अब घर के

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    काम-काज से मेरा अ धक समय बनाव- ंगार तथा प तकावलोकन मृ ु ह बीतने लगा। प तक से मझ े ेम हाने लगा था।ु ु य य प अभी तक मै अपने सास-ससर का लहाज करती थीु , उनके सामने बट और गाउन पहन कर नकलने का मझ ेसाहस न होता थाू ु , पर मझ ेउनक श ाु -पण बाते न भां त थी। म सोचतीू , जब मेरा प त सैकड़ पये मह ने कमाता है तो घर म चेर बनकर य रहूँ? य अपनी इ छा से

    चाहे िजतना काम क ँ , पर वे लोग मझे आ ा देने वाले कौन होते हु ? मझम आ म भमान क मा ा बढ़ने लगी। य द अ मॉ मझ ेकोई काम करने ु ुको कहतीं, तो त अदबदा कर टाल जाती। एक दन उ होन कहा—सबेरे के जलपान के लए कछ दालमोट बना लो। म बात अनसनी कर गयी। अ मॉ ु ुने कछ देर तक मेर राह देखीु पर जब मै अपने कमरे से न नकल त उ हे ग सा हो आया। वह बड़ी ह चड़ चड़ी क त क थी। त नकु ृ -सी बात पर तनक जाती थीं। उ हे अपनी त ठा का इतना अ भमान था क मझे ु ुबलकल ल डी समझती थीं। हॉु , अपनी प य से सदैव न ता से पेश आतींु बि क म तो यह कहगी क उ ह सर चढ़ा रखा था। वह ोध म भर हई ँू ुमेरे कमरे के वार पर आकर बोल ं—तमसे मने दालु —मोट बनाने को कहा था, बनाया? मै कछ ट होकर बोलु —अभी फसत नह ंु मल । अ मॉ—तो त हार जान म दनु -भर पड़ ेरहना ह बड़ा काम है! यह आजकल त ह हो या गया हैु ? कस घमंड म हो? या यह सोचती हो क मेरा प त कमाता है, तो मै काम य क ँ ? इस घमंड म न भलनाू ! त हारा ुप त लाख कमाये ले कन घर म राज मेरा ह रहेगा। आज वह चार पैसे कमाने लगा है, तो त ह माल कन बनने क हवस हो रह हैु ले कन उसे पालने-पोसने तम नह ं आयी थीु , मने ह उसे पढ़ा- लखा कर इस यो य बनाया है। वाह कल को छोकर और अभी से यह गमान।ु म रोने लगी। मह से एक बात न नकल । बाब जी उस समय ऊपर ँु ूकमरे म बैठे कछ पढ़ रहे थे। ये बात उ ह ने सनीं। उ ह क ट हआ। रात ु ु ुको जब वह घर आये तो बोले—देखा तमने आज अ मॉ का ोधु ? यह अ याचार है, िजससे ि य को अपनी िजंदगी पहाड़ मालम होते लगतू है। इन बात से दय म कतनी वेदना होती है, इसका जानना अस भव है। जीवन भार हो जाता है, दय जजर हो जाता है और मन य क आ मो न त ु

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    उसी कार क जाती है जैसे जल, काश और वाय के बना पौधे सख जाते ु ूहै। हमारे घर म यह बड़ा अंधेर है। अब म उनका प ह ठहरा। उनके ुसामने मह नह ं खोल सकगा। मेरे ऊपर उनका बहुँ ँू ुत बड़ा अ धकार है। अतएव उनके व एक श द भी कहना मेरे लये ल जा क बात होगी, और यह बंधन त हारे लए भी है। य द तमने उनक बात चपचाप न सन ु ु ु ुल होतीं, तो मझ ेबहत ह दु ुु :ख होता। कदा चत म वष खा लेता। ऐसी दशा ्म दो ह बात स भव है, या तो सदैव उनक घड़ कयु - झड़ कय को सहे जाओ, या अपने लए कोई दसरा रा ता ढढ़ो। अब इस बात क आशा करना ू ूक अ मॉ के सवभाव म कोई प रवतन होगा, बलकल म है। बोलोु , त ह ुया वीकार है।

    मने डरते डरते कहा—आपक जो आ ा हो, वह कर। अब कभी न पढँू- लखगीूँ , और जो कछ वह कहगी वह क गी। य द वह इसी म स न ु ँह तो यह सह । मझ ेपढ़ु - लख कर या करना है? बाबजी ू –पर यह म नह ं चाहती। अ मॉ ने आज आर भ कया है। अब रोज बढ़ती ह जायगी। म त ह िजतनी ह स य तथा वचारँ ु -शील बनाने क चे टा क गाँ , उतना ह उ ह बरा लगेगाु , और उनका ग सा त ह ं ु ुपर उतरेगा। उ ह पता नह ं िजस अबहवा म उ ह ने अपनी िजनदगी बतायी है, वह अब नह ं रह । वचार- वातं य और समयानकलता उनक ि ट म ु ूअधम से कम नह ं। मने यह उपाय सोचा है क कसी दसरे शहर म चल ूकर अपना अ डा जमाऊँ। मेर वकालत भी यहॉ नह ं चलती इस लए कसी बहाने क भी आव यकता न पड़ेगी। म इस तजबीज के व कछ न बोल । य य प मझ ेअकेले रहने से ु ुभय लगता था, तथा प वहॉ वत रहने क आशा ने मन को फि लत ुकर दया।

    3 उसी दन से अ मॉ ने मझसे बोलनाु छोड़ दया। मह रय , पड़ो सन और ननद के आगे मेरा प रहास कया करतीं। यह मझ ेबहत बरा मालम ु ु ुुहोता था। इसके पहले य द वह कछ भलु -बर बात कह लेतींु , तो मझे ुवीकार था। मेरे दय से उनक मान-मयादा घटने लगी। कसी मन य पर ु

    इस कार कटा करना उसके दय से अपने आदर को मटने के समान है। मेरे ऊपर सबसे ग तर दोषारोपण यह था क मने बाब जी पर कोई मोहन ु ू

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    मं फक दया हैु , वह मेरे इशार पर चलते है; पर याथाथ म बात उ ट ह थी।

    भा मास था। ज म टामी का यौहार आया था। घर म सब लोग ने त रखा। मने भी सदैव क भां त त रखा। ठाकर जी का ज म रात को ु

    बारह बजे होने वाला था , हम सब बैठ गांती बजाती थी। बाब जी इन ूअस य यवहार के बलकल व थे। वह होल के दन रंग भी खेलतेु , गाने बजाने क तो बात ह अलग । रात को एक बजे जब म उनके कमरे म गयी, तो मुझे समझाने लगे- इस कार शर र को क ट देने से या लाभ? क ण महाप ष अव य थेृ ु , और उनक पजा करना हमारा कत य हैू : पर इस गाने-बजाने से या फायदा? इस ढ ग का नाम धम नह ं है। धम का स ब ध सचाई ओर ईमान से है, दखावे से नह ं । बाब जी वयंू इसी माग का अनकरण करते थे। वह भगवदगीता क ुअ यंत शंसा करते पर उसका पाठ कभी न करते थे। उप नषद क शंसा म उनके मख से मान प पु ु - बि ट होने लगती थी; पर मने उ ह कभी कोई उप नष पढ़ते नह ं देखा। वह हंद धम के गढ़ त व ान पर ल थेु ू ू , पर उसे समयानकल नह ं समझते थे। वशषेकर वेदांत को तो भारत क अबन त ु ूका मल कारण समझाते थे। वह कहा करते क इसी वेदांत ने हमको चोपट ूकर दया; हम द नया के पदाथ को त छ समझने लगेु ु , िजसका फल अब तक भगत रहे ह। अब उ न त का समय है। चपचाप बैठे रहने से नवाु ु ह नह ं। संतोष ने ह भारत को गारत कर दया । उस समय उनको उ तर देने क शि त देने क शि त मझम कहॉ थी ु? हॉ, अब जान पड़ता है यह योरो पयन स यता के च कर म पड़ ेहए थे। ुअब वह वयं ऐसी बाते नह ं करते, वह जोश अब टंडा हो चला है।

    4 इसके कछ दन बाु द हम इलाहाबाद चेले आये। बाब जी ने पहले ह ू

    एक दो- मंिजला मकान ले रखा था –सब तरह से सजा-सजाया। हमो यहाँ पॉच नौकर थे— दो ि याँ, दो प ष और एक महाराज। अब म घर के कल ु ुकाम-काज से छट पा गयी । कभी जी घबराता को कोई उप यास लेकर ुपढ़ने लगती ।

    यहॉ फल और ं ू पीतल के बतन बहत कम थे। चीनी क रका बयॉ और ु ंयाले आलमा रय म सजे रखे थे । भोजन मेज पर आता था। बाब जी ू बड़ े

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    चाब से भोजन करते। मझ ेपहले कछ शरम आती थीु ु ; ले कन धीरे-धीरे म भी मेज ह पर भोजन करने लगी। हमारे पास एक स दर टमटम भी थी�