Class –IX HINDI APRIL to AUGUST -MONTH SYLLABUS...

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APRIL to Chapters:- Ch-1-Dhool Ch-2-Dukh ka adhikaar Ch-4-Tum kb jaoge Aatithi Ch-9-Raidaas Ch-10-Rahiim Ch-3-Everest –Meri shikhar yatraa Ch-1-Sanchayaan-1-Gillu Ch-12-Ek phool ki chah Ch-2- Sanchayaan-2-Smriti *-Vyaakaran and Compositions Class –IX HINDI APRIL to AUGUST -MONTH SYLLABUS 2020 Meri shikhar yatraa Vyaakaran and Compositions MONTH

Transcript of Class –IX HINDI APRIL to AUGUST -MONTH SYLLABUS...

  • APRIL to

    Chapters:- Ch-1-Dhool Ch-2-Dukh ka adhikaar Ch-4-Tum kb jaoge Aatithi Ch-9-Raidaas Ch-10-Rahiim Ch-3-Everest –Meri shikhar yatraa Ch-1-Sanchayaan-1-Gillu Ch-12-Ek phool ki chah Ch-2- Sanchayaan-2-Smriti

    *-Vyaakaran and Compositions

    Class –IX

    HINDI

    APRIL to AUGUST -MONTH

    SYLLABUS

    2020

    Meri shikhar yatraa

    Vyaakaran and Compositions

    MONTH

  • ग�य-भाग

    पाठ -1

    (धूल)

    *-पाठ ‘धलू’ के लेखक �ी राम�वलास शमा� है|

    *-लेखक का प�रचय:-आचाय� रामचं� श�ुल के बाद डॉ॰ राम�वलास शमा� ह� एक ऐसे

    आलोचक के �प म� �था�पत होत ेह�, जो भाषा, सा�ह�य और समाज को एक साथ

    रखकर म�ूयाकंन करते ह�।उनक�आलोचना ���या म� केवल सा�ह�य ह� नह� ंहोता, बि�क

    वे समाज, अथ�, राजनी�त, इ�तहास को एक साथ लकेर सा�ह�य का म�ूयाकंन करते ह�।

    पाठ का सार:-

    *-�मटट� और धलू का अथ�:-��तुत पाठ म� �मटट� के गुण� को ��तुत �कया गया है| अखाड़ा �मी को

    अखाड़ ेक� �मटट� देवताओ पैर चड़नेवाल� प�व� �मटट� �तीत होती है|

    धलू का भौ�तक,रासाय�नक त�व के साथ साथ सां�कृ�तक �वरासत का �ी�तक भी है| यह धलू साधारण

    धलू नह�ं है|

    इसक� �मटट� म� हमार� स�यता पनपी है| यह भारत क� सबसे �ाचीन स�यता है| यह �मटट� ह� इसक�

    पहचान करती है

  • प�ृवी का मह�वपूण त�व है �मटट�| �मटट� क� आभा धलू से है| �मटट� के रंग �प क� पहचान धलू से

    है|

    पूर� �कृ�त व ्�ि�ट का ज�म धलू और �मटट� से हुआ है|

    �मटट� म� य�द गुण न हो तो �या �कसान इसे अपनी माँ मानता ,इससे �दनरात खेती कर सबका भरण

    पोषण कटा?

    एक सै�नक इस �मटट� का �तलक लगा कर अपनी जान इस �मटट� के �लय नयोछावर करता?

    एक पहलवान �या अखाड़ ेक� �मटट� को अपनी माँ का आंचल समझ कर �मटट� को अपने शार�र पर

    लपेट कर द�ुमन को धलू चटाता?

    धलू और �मटट� म� �ह� स�ब�ध है जो देह और �ाण म� होता है| जो श�द और रस म� होता है|

    *-धलू और गोध�ुल :-

    *-धलू एक अ�हड ब�च ेक� तरह हर जगह ओ�ती रहती है|

    *-�गधलू� वः ओ�ती हई धलू है जो गाय के खरु से ओ�ती है| जब शाम को गाँव के पशु चार के गाँव

    को लौटते है, तब धलू उनके पैरो से उडती हुई दरू से नजर आती है| यह धलू गाँव क� स�प�नता का

    ��तक है|

    *-लेखक ने दसूरा प� यह रखा है �क जब यह� धलू �कसी के माथे पर लगती है तो मन म� देश भि�त

    क� भावना जगती है |

    *-यह� धलू और �मटट� से ��धा, �ेम, आदर और �नेह का भाव जब चरम पर पहँुचती है तब हम

    आदरपूव�क अपन� के बडो के और गु�जन� के चरण छु कर आशीवा�द लेते है

    *-यह� धलू जब इ�सी मासूम ब�च ेके मुखड़ ेपर लगती है,तब उसका मुख का सौदय� और भी �नखर

    जाता है

    *-उसे �कसी नकल� साज स�जा के साधन� क� ज�रत नह� होती |

    *-लेखक इस बात से दखुी है �क आज क� पढ़� �लखी स�यता एक सखु से व�ंचत रह गी है| आज क� सभी जनता

    धूल व ्�मटट� क� उप�ेा करत ेहै| आज के आध�ुनक लोग इस �मटट� धूल को �दषुण मानत ेहै|

    *-आज के ब�चे धूल ,�मटट� जैसी इस �कृ�तक चीज से अपने को दरू रखत ेहै|

    *-लेखक कहत ेहै �क जो बचपन �मटट� म� नह� �बता वः बचपन ह� �या,यह दभुा��य है|

    *-हम चमकत ेह�रे क� खर�दार� खूब उची क�मत से करने क� इ�छा रखत ेहै,पर�त ु हम सब भलू जात ेहै

    �कचमकता हुआ ह�रा �मटट� म� दबे कोयल� से ह� बनता है ,इ�स �मटट� को हम हाथ तक लगाना पसदं नह�ं

    करत ेहै| य�द सभी ऐसा सोचने लग जाए तो �या होता जब �कसान खेतो म�. न जाता ,कहां से हम सब का

    पेट भरता सभी लोगो का भरण-पोषण कैसे होता| य�द कु�हार भी �मटट� को हाथ न लगाता तो स�ुदर कला��त

    ,�श�पकार�,�मटट� के सुदंर बत�न हमे देखने को नह� �मलत े| �या हमार� स�यता पहचान पा सकती थी|

    Þ-�न�न�ल�खत ��न� के उ�र एक-दो पंि�तय� म� द�िजए –

    1. ह�रे के �ेमी उसे �कस �प म� पसंद करते ह�?

    उ�र:- ह�रे के �ेमी उसे साफ़ सुथरा खरादा हुआ, आँख� म� चकाच�ध पैदा करता हुआ पसंद करते ह�।

    2. लेखक ने संसार म� �कस �कार के सुख को दलु�भ माना है?

  • उ�र:- लेखक ने संसार म� अखाड़ ेक� �म�ट� म� लेटन,े मलने के सुख को दलु�भ माना है। यह �म�ट� तेल

    और म�ठे से �सझाई जाती है और प�व� होती है। इसे देवता के �सर पर भी चढ़ाया जाता है। ऐसी इस

    अखाड़ ेक� �म�ट� को अपनी देह पर लगाना संसार के सबसे दलु�भ सुख के समान है।

    3. �म�ट� क� आभा �या है? उसक� पहचान �कससे होती है?

    उ�र:- �म�ट� क� आभा का नाम ‘धलू’ है, उसक� पहचान धलू से ह� होती है।

    4. धलू के �बना �कसी �शशु क� क�पना �य� नह�ं क� जा सकती?

    उ�र:- धलू का जीवन म� बहुत मह�व है। माँ और मातभृू�म �वग� से भी बढ़कर ह�। �वशषेकर �शशु के

    �लए। माँ क� गोद से उतरकर ब�चा मातभृू�म पर कदम रखता है। घुटन� के बल चलना सीखता तब

    मातभृू�म क� गोद म� धलू से सनकर �नखर उड़ता है। यह धलू जब �शशु के मुख पर पड़ती है तो उसक�

    शोभा और भी बढ़ जाती है। धलू म� �लपटे रहने पर ह� �शशु क� संुदरता बढ़ती है। तभी वे धलू भरे ह�रे

    कहलाते ह�। धलू के �बना �शशु क� क�पना ह� नह�ं क� जा सकती। धलू उनका स�दय� �साधन है।

    5. हमार� स�यता धलू से �य� बचना चाहती है?

    उ�र:- हमार� स�यता धलू से बचना चाहती है �य��क वह आसमान को छूने क� इ�छा रखती है। धलू के

    ��त उनम� ह�न भावना है। धलू को संुदरता के �लए खतरा माना गया है। इस धलू से बचने के �लए

    ऊँच-ेऊँच ेआसमान म� घर बनाना चाहते ह� िजससे धलू से उनके ब�च ेबच�। वे बनावट-�ृगंार को मह�व

    देते ह�। वे क�पना म� �वचरते रहना चाहते ह�, वा�त�वकता से दरू रहते ह�।

    6. लेखक ‘बालकृ�ण’ के मुँह पर छाई गोध�ूल को �े�ठ �य� मानता है?

    उ�र:- लेखक ‘बालकृ�ण’ के मुँह पर लगी धलू को �े�ठ इस�लए मानता है �य��क इससे उनका स�दय�

    और भी �नखर आता है। यह �शशु क� सहज पा�थ�वता को �नखारती है। यह धलू उनके स�दय� को और

    भी बढ़ा देती है। बनावट� �साधन भी वह संुदरता नह�ं दे पाते।

    7. लेखक ने धलू और �म�ट� म� �या अतंर बताया है?

    उ�र:- लेखक धलू और �म�ट� का अतंर शर�र और आ�मा के समान मानता है। दोन� एक दसूरे के पूरक

    ह�। दोन� म� देह और �ाण, चाँद और चाँदनी के समान का अतंर है। �म�ट� क� आभा धलू है तो �म�ट�

    क� पहचान भी धलू है। �म�ट� म� जब चमक उ�प�न होती है तो वह धलू का प�व� �प ले लेती है।

    8. �ामीण प�रवेश म� �कृ�त धलू के कौन-कौन से सुंदर �च� ��तुत करती है?

    उ�र:- �ामीण प�रवेश म� �कृ�त धलू के संुदर �च� ��तुत �कए है –

    • अमराइय� के पीछे �छपे सूय� क� �करण� धलू पर पड़ती है तब ऐसा �तीत होता है मानो आकाश पर

    सोने क� परत छा गई हो।

    • सांयकाल गोध�ूल के उड़ने क� संुदरता का �च� �ामीण प�रवेश म� ��तुत करती है जो �क शहर� के

    �ह�से नह�ं पड़ती।

    • �शशु के मुख पर धलू फूल क� पंख�ुड़य� के समान सुंदर लगती है। उसक� संुदरता को �नखारती है।

    • पशुओं के खरु� से उड़ती धलू तथा गा�ड़य� के �नकलने से उड़ती धलू �ई के बादल� के समान लगती है।

    • अखाड़ ेम� �सझाई हुई धलू का अपना �भाव है।

    9. ‘ह�रा वह� घन चोट न टूटे’ – का संदभ� पाठ के आधार पर �प�ट क�िजए।

    उ�र:- “ह�रा वह� घन चोट न टूटे”- का अथ� है असल� ह�रा वह� है जो हथौड़ ेक� चोट से भी न टूटे और

    अटूट होने का �माण दे। ह�रा हथौड़ ेक� चोट से भी नह�ं टूटता पर�तु काँच एक ह� चोट म� टूट जाता है।

  • ह�रे और काँच क� चमक म� भी अतंर है। पर��ण से यह बात �स�ध हो जाती है। इसी तरह �ामीण

    लोग ह�रे के समान होते ह�- मजबूत सु�ढ़। अथा�त देश पर मर �मटने वाले ह�रे अपनी अमरता का �माण

    देते ह�। वह क�ठनाइय� स ेकभी नह�ं घबराते।

    10. धलू, ध�ूल, धलू�, ध�ूर और गोध�ूल क� �यंजनाओं को �प�ट क�िजए।

    उ�र:- धलू, ध�ूल, धलू�, ध�ूर और गोध�ूल का रंग एक ह� है चाहे �प अलग है। धलू यथाथ�वाद� ग�य है तो

    ध�ूल उसक� क�वता। धलू� छायावाद� दश�न है और ध�ूर लोक-सं�कृ�त का नवीन जागरण है। ‘गोध�ूल’

    गाय� एवं �वाल� के पैर� से उड़ने वाल� ध�ूल है। इन सब का रंग एक ह� है परंतु गोध�ूल गाँव के जीवन

    क� अपनी संप�� है।

    11. ‘धलू’ पाठ का मूल भाव �प�ट क�िजए।

    उ�र:- लेखक ने पाठ “धलू” म� धलू का मह�व �प�ट �कया है। लेखक आज क� सं�कृ�त क� आलोचना

    करते हुए कहता है �क शहर� लोग धलू क� मह�ा को नह�ं समझते, उससे बचने क� को�शश करते ह�।

    िजस धलू �म�ट� से हमारा शर�र बना है, हम उसी से दरू रहना चाहते ह�। परंतु आज का नगर�य जीवन

    इससे दरू रहना चाहता है जब�क �ामीण स�यता का वा�त�वक स�दय� ह� “धलू” है।

    �न�न�ल�खत के आशय �प�ट क�िजए –

    1. फूल के ऊपर जो रेणु उसका �ृगंार बनती है, वह� धलू �शशु के मुँह पर उसक� सहज पा�थ�वता को

    �नखार देती है।

    उ�र:- इस कथन का आशय यह है �क फूल के ऊपर अगर थोड़ी सी धलू आ जाती है तो ऐसा लगता है

    मान� फूल क� संुदरता म� और भी �नखार आ गया है। उसी �कार �शशु के मुख पर धलू उसक� संुदरता

    को और भी बढ़ा देती है। ऐसा स�दय� जो कृ��म स�दय� साम�ी को बेकार कर देता है। अत: धलू कोई

    �यथ� क� व�तु नह�ं है।

    2. ‘ध�य-ध�य वे ह� नर मैले जो करत गात क�नया लगाय ध�ूर ऐस ेल�रकान क�’ – लेखक इन पंि�तय�

    �वारा �या कहना चाहता है?

    उ�र:- इस पंि�त का आशय यह है �क वे �यि�त ध�य ह� जो ध�ूर भरे �शशुओं को गोद म� उठाकर गले

    से लगा लेते ह� और उन पर लगी धलू का �पश� करते ह�। ब�च� के साथ उनका शर�र भी धलू से सन

    जाता है। लेखक को ‘मैले’ श�द म� ह�नता का बोध होता है �य��क वह धलू को मैल नह�ं मानते। ‘ऐसे

    ल�रकान’ म� भेदबु�धी नज़र आती है। अत: इन पंि�तय� �वारा लेखक धूल को प�व� और �ाकृ�तक �ृगंार

    का साधन मानते ह�।

    3. �म�ट� और धलू म� अंतर है, ले�कन उतना ह�, िजतना श�द और रस म�, देह और �ाण म�, चाँद और

    चाँदनी म�।

    उ�र:- लेखक �म�ट� और धलू म� अतंर बताता है पर�तु इतना ह� �क वह एक दसूरे के पूरक ह�। �म�ट�

    क� चमक का नाम धलू है। एक के �बना दसूरे क� क�पना नह�ं क� जा सकती। िजस �कार श�द से रस,

    देह से �ाण, चाँद से चाँदनी अलग कर देने पर न�ट हो सकती है,उसी �कार �म�ट� के धलू से अलग हो

    जाने पर वह न�ट हो जाएगी।

    4. हमार� देशभि�त धलू को माथ ेसे न लगाए तो कम-से-कम उस पर पैर तो रखे।

  • उ�र:- आज के युग म� देशभि�त क� भावना का �प ह� बदल गया है। लेखक देशभि�त क� बात कहकर

    यह कहना चाहता है �क वीर यो�धा अपनी मातभृू�म के ��त ��धा �कट करते ह�,धलू म�तक पर लगाते

    ह�, �कसान धलू म� ह� सन कर काम करता है, अपनी �म�ट� से �यार, ��धा रखता है। उसी तरह हम� भी

    धलू से बचने क� को�शश नह�ं करनी चा�हए। अगर माथे से नह�ं लगा सकते तो कम से कम पैर� से तो

    उसे �पश� कर�। उसक� वा�त�वकता से प�र�चत हो।

    5. वे उलटकर चोट भी कर�गे और तब काँच और ह�रे का भेद जानना बाक� न रहेगा।

    उ�र:- ह�रा बहुत मजबूत होता है। इस�लए ह�रा �ामीण स�यता का �तीक है। काँच शहर� स�यता का

    �तीक है। ह�रा हथौड़ ेक� चोट से भी नह�ं टूटता पर�तु काँच एक ह� चोट म� टूट जाता है। ह�रे और काँच

    क� चमक म� भी अतंर है। पर��ण से यह बात �स�ध हो जाती है। इसी तरह �ामीण लोग ह�रे के समान

    होते ह� – मजबूत सु�ढ़। समय का हथौड़ा इस स�चाई को सामने लाता है। अथा�त देश पर मर �मटने

    वाले ह�रे अपनी अमरता का �माण देते ह�।

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  • गध-भाग

    पाठ-2

    (दःुख का अ�धकार)

    लेखक का प�रचय:-यशपालजी का ज�म �फरोजपुर छावनी म� १९०३ म�. हुआ था |यशपालजी यह

    मानते है �कसमाज को उ�नत या आ�चा बनाने के �लय एक ह� रा�ता है सामािजक समानता के साथ

    साथ आ�थ�क समानता | ��तुत खानी म� देश म� फैले अधं�व�वास और ऊंच नीच के भेद भाव को

    बताते है| वह कहते है �क दःुख क� अनुभू�त सभी को एह समान होती है | यह खानी ध�न लोगो क�

    अमानवीयता और गर�बो क� दयनीय दशा को उजारार करती है| यह सह� है �क इंसान पैर जब दःुख

    पड़ता है तो वः टूट जाता है| इंसान उस दःुख का मातम मनाना चाहता है| हमारे देश गर�बो को दःुख मनाने या

    जताने का भी अ�धकार नह� है और दःुख मनाने क� फुस�त भी नह� है|

    �न�न�ल�खत ��न� के उ�र एक-दो पंि�तय� म� द�िजए –

    1. �कसी �यि�त क� पोशाक को देखकर हम� �या पता चलता है?

    उ�र:- �कसी �यि�त क� पोशाक को देखकर हम� समाज म� उसका दजा� और अ�धकार का पता चलता है

    तथा उसक� अमीर�-गर�बी �ेणी का पता चलता है।

  • 2. खरबूज़ ेबेचनेवाल� ��ी से कोई खरबूज़ े�य� नह�ं खर�द रहा था?

    उ�र:- उसके बेटे क� म�ृयु के कारण लोग उससे खरबूजे नह�ं खर�द रहे थे।

    3. उस ��ी को देखकर लेखक को कैसा लगा?

    उ�र:- उस ��ी को देखकर लेखक का मन �य�थत हो उठा। उनके मन म� उसके ��त सहानुभ�ूत क�

    भावना उ�प�न हुई थी।

    4. उस ��ी के लड़के क� म�ृयु का कारण �या था?

    उ�र:- उस ��ी का लड़का एक �दन मुँह-अधंेरे खेत म� से बेल� से तरबूजे चनु रहा था क� गील� मेड़ क�

    तरावट म� आराम करते साँप पर उसका पैर पड़ गया और साँप ने उस लड़के को डस �लया। ओझा के

    झाड़-फँूक आ�द का उस पर कोई �भाव न पड़ा और उसक� म�ृयु हो गई।

    5. बु�ढ़या को कोई भी �य� उधार नह�ं देता?

    उ�र:- बु�ढया का बेटा मर गया था इस�लए बु�ढ़या को �दए उधार को लौटने क� कोई संभावना नह�ं थी।

    इस वजह से बु�ढ़या को कोई उधार नह�ं देता था।

    �न�न�ल�खत ��न� के उ�र (25-30 श�द� म�) �ल�खए –

    6. मनु�य के जीवन म� पोशाक का �या मह�व है?

    उ�र:- मनु�य के जीवन म� पोशाक का बहुत मह�व है। पोशाक� ह� �यि�त का समाज म� अ�धकार व दजा�

    �नि�चत करती ह�। पोशाक� �यि�त को ऊँच-नीच क� �ेणी म� बाँट देती है। कई बार अ�छ� पोशाक� �यि�त

    के भा�य के बंद दरवाज़े खोल देती ह�। स�मान �दलाती ह�।

    7. पोशाक हमारे �लए कब बंधन और अड़चन बन जाती है?

    उ�र:- जब हमारे सामने कभी ऐसी प�रि�थ�त आती है �क हम� �कसी दखुी �यि�त के साथ सहानुभू�त

    �कट करनी होती है, पर�त ुउसे छोटा समझकर उससे बात करने म� संकोच करते ह�।उसके साथ

    सहानुभू�त तक �कट नह�ं कर पाते ह�। हमार� पोशाक उसके समीप जाने म� तब बंधन और अड़चन बन

    जाती है।

    8. लेखक उस ��ी के रोने का कारण �य� नह�ं जान पाया?

    उ�र:- वह ��ी घुटन� म� �सर गड़ाए फफक-फफककर रो रह� थी। इसके बेटे क� म�ृयु के कारण लोग

    इससे खरबूजे नह�ं ले रहे थे। उसे बुरा-भला कह रहे थे। उस ��ी को देखकर लेखक का मन �य�थत हो

    उठा। उनके मन म� उसके ��त सहानुभू�त क� भावना उ�प�न हुई थी। परंत ुलेखक उस ��ी के रोने का

    कारण इस�लए नह�ं जान पाया �य��क उसक� पोशाक �कावट बन गई थी।

    9. भगवाना अपने प�रवार का �नवा�ह कैस ेकरता था?

    उ�र:- भगवाना शहर के पास डढ़े बीघा भर ज़मीन म� खरबूज़� को बोकर प�रवार का �नवा�ह करता था।

    खरबूज़� क� ड�लयाँ बाज़ार म� पहँुचाकर लड़का �वयं सौदे के पास बैठ जाता था।

    10. लड़के क� म�ृयु के दसूरे ह� �दन बु�ढ़या खरबूज़ ेबेचन े�य� चल पड़ी?

    उ�र:- बु�ढ़या बेटे क� म�ृयु का शोक तो �कट करना चाहती है परंतु उसके घर क� प�रि�थ�त उसे ऐसा

    करने नह�ं दे रह� थी। इसका सबसे बड़ा कारण है, धन का अभाव। उसके बेटे भगवाना के ब�च ेभूख के

    मारे �बल�बला रहे थे। बहू बीमार थी। य�द उसके पास पैसे होत,े तो वह कभी भी सूतक म� सौदा बेचने

    बाज़ार नह�ं जाती।

  • 11. बु�ढ़या के द:ुख को देखकर लेखक को अपने पड़ोस क� सं�ांत म�हला क� याद �य� आई?

    उ�र:- लेखक के पड़ोस म� एक सं�ांत म�हला रहती थी। उसके पु� क� भी म�ृयु हो गई थी और बु�ढ़या

    के पु� क� भी म�ृयु हो गई थी पर�तु दोन� के शोक मनाने का ढंग अलग-अलग था। धन के अभाव म�

    बेटे क� म�ृयु के अगले �दन ह� व�ृधा को बाज़ार म� खरबूज़े बेचने आना पड़ता है। वह घर बैठ कर रो

    नह�ं सकती थी। मान� उसे इस दखु को मनाने का अ�धकार ह� न था। आस-पास के लोग उसक� मजबूर�

    को अनदेखा करते हुए, उस व�ृधा को बहुत भला-बुरा बोलते ह�। जब�क सं�ांत म�हला को असी�मत समय

    था। अढ़ाई मास से पलंग पर थी, डॉ�टर �सरहाने बैठा रहता था। लेखक दोन� क� तुलना करना चाहता था

    इस�लए उसे सं�ांत म�हला क� याद आई।

    12. बाज़ार के लोग खरबूज़ ेबेचनेवाल� ��ी के बारे म� �या-�या कह रहे थ?े अपने श�द� म� �ल�खए।

    उ�र:- धन के अभाव म� बेटे क� म�ृयु के अगले �दन ह� व�ृधा को बाज़ार म� खरबूज़े बेचने आना पड़ता

    है। बाज़ार के लोग उसक� मजबूर� को अनदेखा करते हुए, उस व�ृधा को बहुत भला-बुरा बोलते ह�। कोई

    घणृा से थकूकर बेहया कह रहा था, कोई उसक� नीयत को दोष दे रहा था, कोई रोट� के टुकड़ ेपर जान

    देने वाल� कहता, कोई कहता इसके �लए �र�त� का कोई मतलब नह�ं है, परचनू वाला कहता, यह धम�

    ईमान �बगाड़कर अधंेर मचा रह� है, इसका खरबूज़े बेचना सामािजक अपराध है। इन �दन� कोई भी उसका

    सामान छूना नह�ं चाहता था।

    13. पास-पड़ोस क� दकुान� से पूछने पर लेखक को �या पता चला?

    उ�र:- पास-पड़ोस क� दकुान� म� पूछने पर लेखक को पता चला क�। उसका २३ साल का जवान लड़का

    था। घर म� उसक� बहू और पोता-पोती ह�। लड़का शहर के पास डढ़े बीघा भर जमीन म� क�छयार� करके

    �नवा�ह करता था। खरबूज� क� ड�लया बाज़ार म� पहँुचाकर कभी लड़का �वयं सौदे के पास बैठ जाता, कभी

    माँ बैठ जाती। परस� मुँह-अधंेरे खेत म� से बेल� से तरबूजे चनु रहा था �क गील� मेड़ क� तरावट म�

    आराम करते साँप पर उसका पैर पड़ गया और साँप ने उस लड़के को डस �लया। ओझा के झाड़-फँूक

    आ�द का उस पर कोई �भाव न पड़ा और उसक� म�ृयु हो गई।

    �न�न�ल�खत के आशय �प�ट क�िजए –

    14. जैस ेवायु क� लहर� कट� हुई पतंग को सहसा भू�म पर नह�ं �गर जान ेदेती ंउसी तरह खास

    प�रि�थ�तय� म� हमार� पोशाक हम� झुक सकने से रोके रहती है।

    उ�र:- ��तुत कहानी समाज म� फैले अधं�व�वास� और अमीर-गर�बी के भेदभाव को उजागर करती है। यह

    कहानी अमीर� के अमानवीय �यवहार और गर�ब� क� �ववशता को दशा�ती है। मनु�य� क� पोशाक� उ�ह�

    �व�भ�न �े�णय� म� बाँट देती ह�। �ाय: पोशाक ह� समाज म� मनु�य का अ�धकार और उसका दज़ा�

    �नि�चत करती है। वह हमारे �लए अनेक बंद दरवाज़े खोल देती है, परंतु कभी ऐसी भी प�रि�थ�त आ

    जाती है �क हम ज़रा नीच ेझुककर समाज क� �नचल� �े�णय� क� अनुभू�त को समझना चाहते ह�। उस

    समय यह पोशाक ह� बंधन और अड़चन बन जाती है। जैसे वायु क� लहर� कट� हुई पतंग को सहसा भू�म

    पर नह�ं �गर जाने देती,ं उसी तरह खास पा�रि�थ�तय� म� हमार� पोशाक हम� झुक सकने से रोके रहती है।

    15. इनके �लए बेटा-बेट�, खसम-लुगाई, धम�-ईमान सब रोट� का टुकड़ा है।

    उ�र:- समाज म� रहते हुए ��येक �यि�त को �नयम�, कानून� व परंपराओं का पालन करना पड़ता है।

    दै�नक आव�यकताओं से अ�धक मह�व जीवन मू�य� को �दया जाता है।यह वा�य गर�ब� पर एक बड़ा

  • �यं�य है। गर�ब� को अपनी भूख के �लए पैसा कमाने रोज़ ह� जाना पड़ता है चाहे घर म� म�ृयु ह� �य�

    न हो गई हो। पर�तु कहने वाले उनसे सहानुभू�त न रखकर यह कहते ह� �क रोट� ह� इनका ईमान है,

    �र�ते-नाते इनके �लए कुछ भी नह�ं है।

    16. शोक करने, गम मनाने के �लए भी सहू�लयत चा�हए और… द:ुखी होने का भी एक अ�धकार होता है।

    उ�र:- यह �यं�य अमीर� पर है �य��क समाज म� अमीर लोग� के पास दखु मनाने का समय और सु�वधा

    दोन� होती ह�। इसके �लए वह द:ुख मनाने का �दखावा भी कर पाता है और उसे अपना अ�धकार समझता

    है। शोक करने, गम मनाने के �लए सहू�लयत चा�हए। दःुख म� मातम सभी मनाना चाहते ह� चाहे वह

    अमीर हो या गर�ब। परंत ुगर�ब �ववश होता है। वह रोज़ी रोट� कमाने क� उलझन म� ह� लगा रहता है।

    उसके पास द:ुख मनाने का न तो समय होता है और न ह� सु�वधा होती है। इस �कार गर�ब� को रोट�

    क� �चतंा उसे द:ुख मनाने के अ�धकार से भी वं�चत कर देती है।

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    प�य-भाग

    पाठ-9

    (अब कैसे छूटेराम नाम)

    *-संत रैदास का प�रचय:-

    - रैदास नाम से �व�यात संत र�वदास का ज�म सन ्1388 (इनका ज�म कुछ �व�वान 1398 म� हुआ भी

    बताते ह�) को बनारस म� एक चम�कार के घर हुआ था| रैदास कबीर के समकाल�न ह�। रैदास क� �या�त से

    �भा�वत होकर �सकंदर लोद� ने इ�ह� �द�ल� आने का �नमं�ण भेजा था।

    Þ-wava4R:

    1 अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।

    �भु जी, तुम चदंन हम पानी, जाक� अगँ-अगँ बास समानी।

    �भु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे �चतवत चदं चकोरा।

    �भु जी, तुम द�पक हम बाती, जाक� जो�त बरै �दन राती।

    �भु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोन�ह ं�मलत सुहागा।

    �भु जी, तुम �वामी हम दासा, ऐसी भि�त करै रैदासा॥

    इस पद म� क�व ने उस अव�था का वण�न �कया है जब भ�त पर भि�त का रंग पूर� तरह से चढ़ जाता

    है। एक बार जब भगवान क� भि�त का रंग भ�त पर चढ़ जाता है तो वह �फर कभी नह�ं छूटता। क�व

    का कहना है �क य�द भगवान चदंन ह� तो भ�त पानी है। जैसे चदंन क� सुगंध पानी के बँूद-बूँद म� समा

    जाती है वैसे ह� �भु क� भि�त भ�त के अगं-अगं म� समा जाती है। य�द भगवान बादल ह� तो भ�त

    �कसी मोर के समान है जो बादल को देखते ह� नाचने लगता है। य�द भगवान चाँद ह� तो भ�त उस

    चकोर प�ी क� तरह है जो अपलक चाँद को �नहारता रहता है। य�द भगवान द�पक ह� तो भ�त उसक�

    बाती क� तरह है जो �दन रात रोशनी देती रहती है। य�द भगवान मोती ह� तो भ�त धागे के समान है

  • िजसम� मो�तयाँ �परोई जाती ह�। उसका असर ऐसा होता है जैसे सोने म� सुहागा डाला गया हो अथा�त

    उसक� संुदरता और भी �नखर जाती है।

    ऐसी लाल तुझ �बनु कउनु करै।

    2- ऐसी लाल तुझ �बनु कउनु करै।

    गर�ब �नवाजु गुसईआ मरेा माथ ैछ� ुधरै।।

    जाक� छो�त जगत कउ लागै ता पर तुह�ं ढ़रै।

    नीचहु ऊच करै मेरा गो�बदं ुकाहू ते न डरै॥

    नामदेव कबी� �तलोचनु सधना सैनु तरै।

    क�ह र�वदासु सुनहु रे संतहु ह�रजीउ ते सभै सरै॥

    इस पद म� क�व भगवान क� म�हमा का बखान कर रहे ह�। भगवान गर�ब� का उ�धार करने वाले ह�

    उनके माथे पर छ� शोभा दे रहा है। भगवान म� इतनी शि�त है �क वे कुछ भी कर सकते ह� और उनके

    �बना कुछ भी संभव नह�ं है। भगवान के छूने से अछूत मनु�य का भी क�याण हो जाता है। भगवान

    अपने �ताप से �कसी नीच को भी ऊँचा बना सकते ह�। िजस भगवान ने नामदेव, कबीर, ��लोचन, सधना

    और सैनु जैसे संत� का उ�धार �कया था वह� बाक� लोग� का भी उ�धार कर�गे।

    *-��न-उ�र:-

    1: पहले पद म� भगवान और भ�त क� िजन-िजन चीज� से तुलना क� गई है, उनका उ�लेख क�िजए।

    उ�र: बादल-मोर, चाँद-चकोर, मोती-धागा, द�पक-बाती और सोना-सुहागा

    2: पहले पद क� ��येक पंि�त के अतं म� तुकांत श�द� के �योग से नाद-स�दय� आ गया है, जैस:े पानी,

    समानी, आ�द। इस पद म� अ�य तुकांत श�द छाँटकर �ल�खए।

    उ�र: मोरा-चकोरा, बाती-राती, धागा-सुहागा, दासा-रैदासा

    3: पहले पद म� कुछ श�द अथ� क� �ि�ट से पर�पर संब�ध ह�। ऐसे श�द� को छाँटकर �ल�खए: उदाहरण:

    द�पक – बाती

    उ�र: चदंन-पानी, घन-बनमोरा, चदं-चकोरा, सोन�ह-सुहागा

    4: दसूरे पद म� क�व ने ‘गर�ब �नवाजु’ �कसे कहा है? �प�ट क�िजए।

    उ�र: दसूरे पद म� भगवान को ‘गर�ब �नवाजु’ कहा गया है �य��क भगवान गर�ब� का उ�धार करते ह�।

    5: दसूरे पद क� ‘जाक� छोती जगत कउ लागै ता पर तुह�ं ढ़रै” इस पंि�त का आशय �प�ट क�िजए।

    उ�र: िजसक� छूत पूर� द�ुनया को लगती है उसपर भगवान ह� ��वत हो जाते ह�। अछूत से अभी भी

    बहुत से लोग बच कर चलते ह� और अपना धम� ��ट हो जाने से डरते ह�। अछूत क� ि�थ�त समाज म�

    दयनीय है। ऐसे लोग� का उ�धार भगवान ह� करते ह�।

    6: रैदास ने अपने �वामी को �कन �कन नाम� से पुकारा है?

    उ�र: गुसईआ (गोसाई), गर�ब �नवाजु (गर�ब� का उ�धार करने वाले)

    7: �न�न�ल�खत श�द� के �च�लत �प �ल�खए: मोरा, चदं, बाती, जो�त, बरै, राती, छ�,ु छो�त, तुह�,ं गुसईआ।

    उ�र: मोर, चाँद, ब�ी, �यो�त, जलना, रात, छाता, छूने, तु�ह�,ं गोसाई|

  • 8:क�व के रोम रोम म� �भु क� भि�त क� संुगंध �कस �कार समाई हुई है?

    उ-िजस �कार पानी के कण कण म� च�दन क� सुगंध समाई रहती है,उसी �कार क�व के रोम रोम म�

    �भु क� भि�त समाई है|

    9:क�व ई�वर के बीच कैसे स�ब�ध �था�पत करना चाहते है?

    उ:क�व अपने और ई�वर के बीच अन�य स�ब�ध �था�पत करना चाहते है|

    10:रैदास के लाल,अथा�त �भु क� �वशषेता �ल�खए|

    उ:रैदास ने लाल,अथा�त �भु क� �वशषेताओ का बखान करते हुए कहा है �क मेरे लाल द�नदयाल,गर�ब

    �नवाजू और समदश� है|

    11:रैदास ने ई�वर को गर�ब �नवाजू �य� कहा है?

    उ:रैदास ने ई�वर ओ गर�ब �नवाजू कहा है �यो�क वहद�ुखय� पर कृपा करके उनके द:ुख दरू करते है|

    12:�भु ने �कन-�कन लोग� का उ�धार �कया है?

    उ:�भु ने नामदेव,कबीर, ��लोचन ,साधना और सैनु जैसे कई भ�त� का उ�धार �कया है|

    *-नीच े�लखी पंि�तय� का भाव �प�ट क�िजए:

    1: जाक� अगँ-अगँ बास समानी।

    उ�र: भगवान उस चदंन के समान ह� िजसक� सुगंध अगं-अगं म� समा जाए।

    2: जैसे �चतवन चदं चकोरा।

    उ�र: जैसे चकोर हमेशा चांद को देखता रहता है वैसे ह� म� भी तु�ह� देखते रहना चाहता हँू।

    3: जाक� जो�त बरै �दन राती।

    उ�र: भगवान य�द एक द�पक ह� तो भ�त उस बाती क� तरह है जो �काश देने के �लए �दन रात जलती

    रहती है।

    4: ऐसी लाल तुझ �बनु कउनु करै।

    उ�र: भगवान इतने महान ह� �क वह कुछ भी कर सकते ह�। भगवान के �बना कोई भी �यि�त कुछ भी

    नह�ं कर सकता।

    5: नीचहु ऊच करै मेरा गो�बदं ुकाहू ते न डरै।

    उ�र: भगवान य�द चाह� तो �नचल� जा�त म� ज�म लेने वाले �यि�त को भी ऊँची �ेणी दे सकते ह�।

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  • प�य-भाग

    पाठ-10

    (रह�म के दोहे रह�म)

    *-रह�म का प�रचय :-

    अ�दलु रह�म ख़ानख़ाना का ज�म 17 �दस�बर, 1556 ई. (माघ, कृ�ण प�, गु�वार) को स�ाट अकबर

    के ��स�ध अ�भभावक बैरम ख़ाँ के यहाँ लाहौर म� हुआ था. ... बाबर क� सेना म� भत� होकर रह�म के �पता

    बैरम ख़ाँ ने अपनी �वामी-भि�त और वीरता का प�रचय �दया और बाबर क� म�ृयु के बाद हुमायूँ के

    �व�वासपा� बन गए| ज�म से एक मुसलमान होते हुए भी �हदं ूजीवन के अंतम�न म� बैठकर रह�म जी ने

    िजस मा�यम से अ�ंकत �कये थे, उनक� �वशाल �दयता का प�रचय देती ह�। �हदं ूदेवी-देवताओ,ं पव�,

    धा�म�क मा�यताओं और परंपराओं का जहाँ भी आपके �वारा उ�लेख �कया गया है, पूर� जानकार� एवं

    ईमानदार� के साथ �कया गया है। आप जीवन भर �हदं ूजीवन को भारतीय जीवन का यथाथ� मानते रहे।

    रह�म ने का�य म� रामायण, महाभारत, पुराण तथा गीता जैसे �ंथ� के कथानक� को उदाहरण के �लए चनुा है

    और लौ�कक जीवन �यवहार प� को उसके �वारा समझाने का �य�न �कया है, जो भारतीय सां�कृ�त क�

    वर झलक को पेश करता है।उनके का�य म� शृंगार, शांत तथा हा�य रस �मलते

    ह�। दोहा, सोरठा, बरवै, क�व� और सवैया उनके ��य छंद ह�। रह�म दास जी क� भाषा अ�यंत सरल है, आपके

    का�य म� भि�त, नी�त, �ेम और �ृगंार का सु�दर समावेश �मलता है। आपने सोरठा एवं छंद� का �योग

    करते हुए अपनी का�य रचनाओं को �कया है| आपने �जभाषा म� अपनी का�य रचनाएं क� है| आपके �ज

    का �प अ�यंत �यवहा�रक, �प�ट एवं सरल है| आपने तदभव श�द� का अ�धक �योग �कया है। �ज भाषा

    के अ�त�र�त आपने कई अ�य भाषाओं का �योग अपनी का�य रचनाओं म� �कया है| अवधी के �ामीण

    श�द� का �योग भी रह�म जी ने अपनी रचनाओं म� �कया है, आपक� अ�धकतर का�य रचनाएं मु�तक

    शैल� म� क� गई ह� जो�क अ�यंत ह� सरल एवं बोधग�य

    रह�म के दोहे-

    र�हमन धागा �ेम का, मत तोड़ो चटकाय।

    टूटे से �फर ना �मले, �मले गाँठ प�र जाय॥

    रह�म के दोहे भावाथ� : रह�म के इन दोह� म� रह�म जी ने हम� �ेम क� नाजुकता के बारे म� बताया है।

    उनके अनुसार �ेम का बंधन �कसी नाज़ुक धागे क� तरह होता है और इस ेबहुत संभाल कर रखना

    चा�हए। हम बलपूव�क �कसी को �ेम के बंधन म� नह�ं बाँध सकते। �यादा �खचंाव आने पर �ेम �पी

    धागा चटक कर टूट सकता है। �ेम �पी धागे या�न टूटे �र�ते को �फर स ेजोड़ना बेहद मुि�कल होता है।

    अगर हम को�शश� करके �ेम के �र�ते को �फर से जोड़ ल�, तब भी लोग� के मन म� कोई कसक तो बनी

    ह� रह जाती है। दसूरे श�द� म�, अगर एक बार �कसी के मन म� आपके ��त �यार क� भावना मर गई, तो

    वह आपको दोबारा पहले जैसा �यार नह�ं कर सकता। कुछ न कुछ कमी तो रह ह� जाती है।

    2-र�हमन �नज मन क� �बथा ,मन ह�रा खो गोय।

    सु�न अ�ठलैह� लोग सब, बाँ�ट न लैहै कोय॥

    रह�म के दोहे भावाथ� : रह�म के इन दोह� म� हम� रह�म जी ने बहुत ह� काम क� सीख द� है। िजसके बारे

    म� हम सब जानते ह�। रह�म जी इन पंि�तय� म� कहत ेह� �क अपन ेमन का दःुख हम� �वयं तक ह�

    https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B8%E0%A4%B2%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AD%E0%A4%97%E0%A4%B5%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BEhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B6%E0%A5%83%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%B0_%E0%A4%B0%E0%A4%B8https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%B8_(%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF_%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0)https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AF_%E0%A4%B0%E0%A4%B8_%E0%A4%A4%E0%A4%A5%E0%A4%BE_%E0%A4%89%E0%A4%B8%E0%A4%95%E0%A4%BE_%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AFhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%BEhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A4%A0%E0%A4%BEhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A5%88https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B8%E0%A4%B5%E0%A5%88%E0%A4%AF%E0%A4%BEhttps://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%9B%E0%A4%82%E0%A4%A6

  • रखना चा�हए। लोग ख़शुी तो बाँट लेत ेह�। पर�तु जब बात दःुख क� आती है, तो वे आपका दःुख सुन तो

    अव�य लेत ेह�, ले�कन उस ेबाँटते नह�ं है। ना ह� उस ेकम करने का �यास करते ह�। बि�क आपक� पीठ

    पीछे वे आपके दःुख का मज़ाक बनाकर हंसी उड़ाते ह�। इसी�लए हम� अपना दःुख कभी �कसी को नह�ं

    बताना चा�हए।

    3-एकै साध ेसब सध,ै सब साध ेसब जाय।

    र�हमन मूल�ह ंसीं�चबो, फूलै फल ैअघाय॥

    रह�म के दोहे भावाथ� : ��तुत पंि�तय� म� क�व हम� यह �श�ा देत ेह� �क एक बार म� एक ह� काम करने

    चा�हए। हम� एक साथ कई सारे काम नह�ं करने चा�हए। ऐस ेम� हमारे सारे काम अधरेू रह जाते ह� और

    कोई काम पूरा नह�ं होता। एक काम के पूरा होने से कई सारे काम खदु ह� पूरे हो जाते ह�। िजस तरह,

    �कसी पौध ेको फल-फूल देने लायक बनाने हेत,ु हम� उसक� जड़ म� पानी डालना पड़ता है। हम उसके तने

    या प�� पर पानी डालकर फल �ा�त नह�ं कर सकते। ठ�क इसी �कार, हम� एक ह� �भु क� ��ृधापूव�क

    आराधना करनी चा�हए। अगर हम अपनी आ�था-�पी जल को अलग-अलग जगह �यथ� बहाएंगे, तो हम�

    कभी भी मो� �ा�त नह�ं हो सकता।

    4-�च�कूट म� र�मरहे,र�हमन अवध- नरेस।

    जा पर �बपदा पड़तहै,सो आवत यह देस

    रह�म के दोहे भावाथ� : इन पंि�तय� म� रह�म जी ने राम के वनवास के बारे म� बताया है। जब उ�ह� 14

    वष� का वनवास �मला था, तो वे �च�कूट जैस ेघने जंगल म� रहन ेके �लए बा�य हुए थे। रह�म जी के

    अनुसार, इतने घने जंगल म� वह� रह सकता है, जो �कसी �वपदा म� हो। नह� ंतो, ऐसी प�रि�थ�त म� कोई

    भी अपने मज़� से रहन ेनह�ं आएगा।

    5-द�रघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आ�ह|ं

    �य� रह�म नट कंुडल�, �स�म�ट कू�द च�ढ़ जा�ह ं ||

    रह�म के दोहे भावाथ� : ��तुत पंि�तय� म� क�व ने हम� एक दोहे क� मह�ा के बारे म� बताया है। दोहे के

    चदं श�द� म� ह� ढेर सारा �ान भरा होता है, जो हम� जीवन क� बहुत सार� मह�वपूण� सीख दे जाते ह�।

    िजस तरह, कोई नट कंुडल� मारकर खदु को छोटा कर लेता है और उसके बाद ऊंचाई तक छलांग लगा

    लेता है। उसी तरह, एक दोहा भी कुछ ह� श�द� म� हम� ढेर सारा �ान दे जाता है।

    6-ध�न रह�म जल पंक को लघु िजय �पयत अघाय |

    उद�ध बड़ाई कौन है, जगत �पआसो जाय||

    रह�म के दोहे भावाथ� : ��तुत पंि�तय� म� कबीर दास जी कहत ेह� �क वह क�चड़ का थोड़ा-सा पानी भी

    ध�य है, जो क�चड़ म� होने के बावजूद भी ना जाने �कतने क�ड़-ेमकौड़� क� �यास बुझा देता है। वह�� दसूर�

    ओर, सागर का अपार जल जो �कसी क� भी �यास नह�ं बुझा सकता, क�व को �कसी काम का नह�ं लगता।

    यहाँ क�व ने एक ऐसे गर�ब के बारे म� कहा है, िजसके पास धन नह�ं होने के बावजूद भी वह दसूर� क�

    मदद करता है। साथ ह� एक ऐसे अमीर के बारे म� बताया है, िजसके पास ढेर सारा धन होने पर भी वह

    दसूर� क� मदद नह�ं करता।

  • 7-नाद र��झ तन देत मगृ, नर धन देत समेत |

    त ेरह�म पशु से अ�धक, र�झहुे कछू न देत ||

    रह�म के दोहे भावाथ� : यहाँ पर क�व ने �वाथ� मनु�य के बारे म� बताया है और उस ेपश ुसे भी बदतर

    कहा है। �हरण एक पशु होने पर भी मधरु �व�न स ेमु�ध होकर �शकार� पर अपना सब कुछ �योछावर

    कर देता है। जैस ेकोई मनु�य कला से �स�न हो जाए, तो �फर वह धन के बारे म� नह�ं सोचता, अ�पतु

    वह अपना सारा धन कला पर �योछावर कर देता है। पर�तु कुछ मनु�य पश ुसे भी बदतर होत ेह�, वे

    कला का लु�फ़ तो उठा लेत ेह�, पर�तु बदले म� कुछ नह�ं देते।

    8-�बगर� बात बनै नह�,ं लाख करौ �कन कोय |

    र�हमन फाटे दधू को, मथ ेन माखन होय ||

    रह�म के दोहे भावाथ� : रह�म जी ने हम� जीवन स ेसंबं�धत कई �श�ाए ँद� ह� और उ�ह� म� से एक �श�ा

    यह है �क हम� हमेशा को�शश करनी चा�हए �क कोई बात �बगड़ ेनह�ं। िजस �कार, अगर एक बार दधू

    फट जाए, तो �फर लाख को�शश� के बावजूद भी हम उस ेमथ कर माखन नह�ं बना सकते। ठ�क उसी

    �कार, अगर एक बार कोई बात �बगड़ जाए, तो हम उस ेपहले जैसी ठ�क कभी नह�ं कर सकते ह�।

    इस�लए बात �बगड़ने से पहले ह� हम� उस ेसंभाल लेना चा�हए।

    9-र�हमन दे�ख बड़ने को, लघु न द�िजये डा�र|

    जहा ँकाम आवे सुई, कहा करे तरवा�र|

    रह�म के दोहे भावाथ� : रह�म जी ने हम� इस दोहे म� जो �ान �दया है, उस ेहम� हमेशा याद रखना चा�हए।

    ये पूर� िजंदगी हमारे काम आएगा। रह�म जी के अनुसार, हर व�तु या �यि�त का अपना मह�व होता है,

    �फर चाहे वह छोटा हो या बड़ा। हम� कभी भी �कसी बड़ े�यि�त या व�तु के �लए छोट� व�तु या �यि�त

    क� उपे�ा नह�ं करनी चा�हए। क�व कहत ेह� �क जहाँ सुई का काम होता है, वहां पर तलवार कोई काम

    नह�ं कर पाती, अथा�त तलवार के आकार म� बड़ ेहोने पर भी वह काम क� सा�बत नह�ं होती, जब�क सुई

    आकार म� अपे�ाकृत बहुत छोट� होकर भी कारगर सा�बत होती है। इसी�लए हम� कभी धन-संप��, ऊँच-

    नीच व आकार के आधार पर �कसी चीज़ क� उपे�ा नह�ं करनी चा�हए।

    10-र�हमन �नज संप�त �बना, कौ न �बप�त सहाय|

    �बनु पानी �य� जलज को, न�ह ंर�व सके बचाय||

    रह�म के दोहे भावाथ� : ��तुत पंि�तय� म� क�व हमसे कह रहे ह� �क जब मुि�कल समय आता है, तो

    हमार� खदु क� स�प�� ह� हमार� सहायता करती है। अथा�त हम� खदु क� सहायता खदु ह� करनी होती है,

    दसूरा कोई हम� उस �वप�� से नह�ं �नकाल सकता। िजस �कार पानी के �बना कमल के फूल को सूय� के

    जैसा तजे�वी भी नह�ं बचा पाता और वह मुरझा जाता है। उसी �कार �बना संप�� के मनु�य का जीवन-

    �नवा�ह हो पाना असंभव है।

    11-र�हमन पानी रा�खए, �बनु पानी सब सून| ।

    पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चनू|| ॥

    रह�म के दोहे भावाथ� : रह�म जी ने अपने दोह� म� जीवन के �लए जल के मह�व का वण�न �कया है।

    उनके अनुसार हमेशा पानी को हमेशा बचाकर रखना चा�हए। यह बहुमू�य होता है। इसके �बना कुछ भी

    संभव नह�ं है। �बना पानी के हम� न मोती म� चमक �मलेगी और न हम जी�वत रह पाएंगे। यहाँ पर

    मनु�य के संदभ� म� क�व ने मान-मया�दा को पानी क� तरह बताया है। िजस तरह पानी के �बना मोती क�

  • चमक चल� जाती है, ठ�क उसी तरह, एक मनु�य क� मान-मया�दा ��ट हो जान ेपर उसक� ��त�ठा �पी

    चमक ख�म हो जाती है।

    *-�न�न पंि�तय� का आशय �प�ट क�रये -

    अ-�मलै गाँठ पार� जाय- का आशय �प�ट क�रये |

    �मलै गाँठ प�र जाए का अथ� है �क एक बार य�द स�ब�ध �बगर जाए तो �फर कभी भी पहले जैसे मधरु

    नह�ं बन पाते |

    ब-दःुख बाँटने का �या अथ� है?

    -दःुख बांटने का अथ� है �क अपना दःुख एक दसुरे को बताना ,िजससे दःुख कम हो सके,

    सहानुभू�त �य�त करना |

    क-एकै साधे सब सधै- से क�व ने �या �ेरणा द� है?

    -एकै साध ै,सब सध ै–दोहे म� क�व ने मह�वपूण� ल�य को �ा�त करने क� �ेरणा द� |

    ख-सब सध ैसब जाये –का �या आशय है?

    सब साधे सब जाय का आशय है �क हमे मूल ल�य को �यान म� रख केर कम करना चा�हय|

  • हर का के पीछे एक साथ भागने से हमारा कोइ भी कम पूरा नह� होगा| हमारे सरे कम �बगर

    जायगे|

    ग-�कस तरह के लोग �च�कूट आते है?

    जो लोग बहुत दखुी होते है ,�ह� लोग �च�कूट आते है| क�व ने �प�ट �कया है �कअवध के रजा

    राम वनवास के समय �च�कूट आय थ|े

    घ-रह�म के अनुसार �वप�� म� कौन हमारे सहायक होते है?

    -रह�म के अनुसार �वप�� के समय केवल हमार� अपनी धन –स�प�त ह� सहायक होती है|

    च-र�हमन पानी रा�खये –का �या अथ� है?

    -र�हमन पानी रा�खय का अथ� है �क मनु�य को अपना मान स�मान बने रखना चा�हय ,�य��क

    मान स�मान ह� मनु�य के पास सबसे बड़ी स�प�� है|

    छ-�ेम�पी धागे क� �या �वशषेता है?

    �ेम�पी धागे क� �वशेषता है �क यह �ेम का बंधन जब एक बार जुड़ जाता है तो ज�द� नह�

    टूटता ,और य�द एक बार टूट जाय तो �फर लाख को�शश करने पैर भी पहले जैसा नह� बन

    पाता| अथा�त बंधन �वशवास पैर ह� �टका होता है

    ग�य भाग

    पाठ-3

    (एवरे�ट-मेर� �शखर या�ा )

    ले�खका का प�रचय –बछ��� पाल

    आज हम बात कर� गे भारत क� ऐसी म�हला के बारे म� िज�ह�ने पहल� बार द�ुनया के सव��च

    �शखर माउंट एवरे�ट को फतेह कर एक नया इ�तहास रच �दया| यह बात है एक म�हला �वारा

    एवरे�ट �वजय क�, िजसने बुलंद हौसल� और साहस का प�रचय देते हुए सव��थम माउ�ट एवरे�ट

    क� चोट� पर कदम रखे और सम�त भारतवा�सय� का सर गव� से ऊँचा कर �दया| 30 मई सन

    1984 का �दन संपूण� भारत एवं औरत� के �लए गौरव और स�मान का �दन था जब बछ� �� पाल ने

    एवरे�ट पर �फर से �तरंगा लहराया। च�लये दो�त� जानते ह�।

    बछ� �� पाल के जीवन के बारे म� – ज�म – 24 मई 1954 (आयु 63) नकुर� उ�रकाशी ,उ�राखंड

    �यवसाय – इ�पात कंपनी ‘टाटा �ट�ल’ म� काय�रत, जहाँ चुने हुए लोगो को रोमांचक अ�भयान� का

    ��श�ण देती ह�।

    पाठ का सार:- उ�राखंड के नकुर� गांव म� ज�मी बछ� �� पाल ने �ढ़ �न�चय का प�रचय देते हुए

    एवरे�ट �शखर तक पहंुचने म� सफलता �ा�त क�। उ�ह� बचपन से ह� पव�त बहुत आक�ष�त करते थे

    जब वह पढ़ाई कर रह� थी तब उनके मन म� पव�त राज �हमालय क� सबसे ऊंची ट� एवरे�ट पर

    �वजय �ा�त करने क� इ�छा जागतृ हुई। अपने इस सपने को पूरा करने के उ�दे�य से उ�ह�ने

  • नेह� पव�तारोहण सं�थान से ��श�ण लेना शु� कर �दया। उ�ह�ने बड़ी मेहनत और लगन से

    पव�तारोहण के �लस और माइनस पॉइंट सीख�। एवरे�ट या�ा से पूव� उ�ह�ने पव�तारोहण सं�थान

    �वारा आयोिजत �ी एवरे�ट �े�नगं क� प ए�सपी�डशन म� भी भाग �लया।

    सफलता क� ओर कदम :-

    30 मई सन 1984 को ऐ�तहा�सक �दन िजसका सपना बछ� �� पाल ने बचपन से देखा था। अपने

    ल�य को पाने के �लए क�ठन प�र�म से ��श�ण �ा�त �कया था। उ�ह�ने पव�त �वजय करके यह

    �स�ध कर �दया �क म�हला �कसी �े� म� पु�ष� से पीछे नह�ं है। उनम� साहस और धैय� क� कमी

    नह�ं है य�द म�हला ठान ले तो क�ठन से क�ठन ल�य भी �ा�त कर सकती है।

    एवरे�ट �वजय अ�भयान म� बछ� �� पाल को अनेक क�ठनाइय� का सामना करना पड़ा। यह साह�सक

    अ�भयान बहुत जो�खम भरा था इसम� �कतना जो�खम था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा

    सकता है �क अं�तम चढ़ाई के दौरान उ�ह� 6:30 घंटे तक लगातार चढ़ाई करनी पड़ी। इनक�

    क�ठनाई तब और बढ़ गई जब इनक� एक साथी के पांव म� चोट लग गई। उन क� ग�त धीमी हो

    गई थी तब वह पूर� तेजी से आगे नह�ं बढ़ सकती थी। �फर भी हर क�ठनाई का साहस और धैय�

    से मुकाबला करते हुए आगे बढ़ती रह� अंत म� 30 मई सन 1984 को दोपहर 1 बजकर 07 �मनट

    पर वह एवरे�ट �शखर पर थी। इ�ह�ने �व�व के सव��म �शखर को जीतने वाल� सव� �थम

    पव�तारोह� भारतीय म�हला बनने का अभूतपूव� गौरव �ा�त कर �लया था।

    एवरे�ट फतेह करने वाल� पहल� म�हला बछ� �� पाल जी एक �व�व�व�यालय म� �श��का थी। ले�कन

    एवरे�ट क� सफलता के बाद भारत क� एक आयरन एंड �ट�ल कंपनी ने उ�ह� खेल सहायक क�

    नौकर� के �लए ऑफर �दया उ�ह�ने यह ऑफर यह सोचकर �वीकार कर �लया �क यह कंपनी इ�ह�

    और अ�धक पव�त �शखर� पर �वजय पाने के �यास म� सहायता, सु�वधा तथा मो�टवेशन �दान

    करती रहेगी। इस समय बछ� �� पाल जी टाटा �ट�ल एडव�चर फाउंडेशन नामक सं�था म� नई पीढ़� के

    पव�तारो�हय� को ��श�ण देने का काय� कर रह� ह�।

    श�दाथ� :-

    -अ�भयान-चढ़ाई -दगु�म-क�ठन रा�ता

    �हमपात-बफ� बार� -अवसाद-उदासी

    �ले�शयर-बफ� क� नद� -अ�नय�मत-�नयम के �बना

    आशाजनक-आशावान -भौच�का-हैरान

    -�वास-या�ा -�हम.�वरद-दरारे,खाई

    -आरोह�-ऊपर चढाई -अ�भयां��क�-तक�नक�

    -नौ�स�खया-नया सीखनेवाला -�वशालकाय पंुज-बड़ा बफ� का ढेर

    -पव�तारोह�-पहाड़ पर चढने वाले -कम�ठता-काम के �लय �न�ठा

    -उप�कर-आरोह� का सामान -शंकु-नोक

  • *-��न उ�र:-

    1-�शखर पर चढ़ने वाल� को �कन-�कन क�ठनाइय� का सामना करना पड़ता है? एवरे�ट- मेर� �शखर या�ा

    पाठ के आधार पर बताइए।

    1-जो पव�तारोह� �हमालय पव�त के �शखर पर चढ़ते ह�, उ�ह� खराब मौसम और बफ� के तूफ़ान का

    मुकाबला करना ह� पड़ता है।

    2-अगंदोरजी के पाँव ठंड े�य� पड़ जाते थ?े एवरे�ट-मेर� �शखर या�ा पाठ के आधार पर बताइए।

    2-अगंदोरजी कुशल पव�तारोह� था। वह �बना ऑ�सीजन के बफ़� पर चलने का अ�य�त था। इस�लए वह

    या�ा म� ऑ�सीजन नह�ं लगाता था। पंरतु �बना ऑ�सीजन के उसके पैर ठंड ेपड़ जाते थे।

    3-एवरे�ट-मेर� �शखर या�ा पाठ के स�दभ� म� बताइए एवरे�ट अ�भयान दल कब रवाना हुआ?

    3-एवरे�ट अ�भयान दल �द�ल� से काठमांडू के �लए 7 माच� को हवाई जहाज से रवाना हुआ।

    4 एवरे�ट-मेर� �शखर या�ा पाठ के आधार पर बताइए बछे��� पाल ने एवरे�ट क� तरफ �या देखा?\

    4-बछ��� पाल ने एवरे�ट क� तरफ एक भार� बफ� का का बड़ा फूल (�लूम) देखा।

    5-एवरे�ट-मेर� �शखर या�ा’ पाठ के आधार पर बताइए जय ले�खका को देखकर ह�का-ब�का �य� रह

    गया?

    5-जय बछे��� पाल का पव�तारोह� साथी था। उसे भी बछे��� के साथ पव�त-�शखर पर जाना था। �शखर

    कै�प पर पहँुचने म� उसे देर हो गई थी। वह सामान ढोने के कारण पीछे रह गया था। अतः बछे���

    उसके �लए चाय-जूस आ�द लेकर उसे लेने के �लए पहँुची। जय ने यह क�पना नह�ं क� थी �क बछे���

    उसक� �च�ता करेगी। इस�लए जब उसने बछे��� पाल को उसके �लए चाय-जूस के साथ देखा तो वह

    ह�का-ब�का रह गया।

    6-एवरे�ट �शखर पर पहँुचकर बछे��� पाल ने �वयं को �कस �कार सुर��त �प से ि�थर �कया?

    6-एवरे�ट �शखर सँकरा व नुक�ला था। अतः वहाँ पहँुचकर �वयं को सुर��त �प से ि�थर करने के �लए

    बछे��� पाल ने बफ� के फावड़ ेसे खदुाई क� और उसके उपरा�त घुटन� के बल बैठकर ‘सागरमाथ’े के

    �शखर का चुबंन �कया।

    7-एवरे�ट : मेर� �शखर या�ा पाठ के आधार पर बताइए मई क� रात को क� प तीन म� �या घटना घट�

    और एक अ�य साथी ने ले�खका क� जान कैसे बचाई?

    7-15-16 मई, 1984 को बु�ध पू�ण�मा के �दन जब ले�