आरो¶य की कंजी - WELCOME TO MAHATMA ... · लनक ल ड लन च...

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आरोय की क जी धीजी गधीजी अनुवदिक सुशील नयर पहली आवृि, 1948 मुक और कशक : जते ठकोरभई िेसई, नवजीवन मुणलय, अहमिबि- 380 014

Transcript of आरो¶य की कंजी - WELCOME TO MAHATMA ... · लनक ल ड लन च...

आरोगय की क जी

ग धीजी

ग ाधीजी

अनव दिक सशील नययर

पहली आवतति, 1948

मदरक और परक शक :

ततजतनददर ठ कोरभ ई िस ई,

नवजीवन मदरण लय, अहमि ब ि-380 014

आरोगय की क जी

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परकाशक का निवदि

ग धीजी जब 1942-’44 क बीच आग ख महल, पन म नजरबनद थ, तब उनहोन य परकरण ललख थ । जस

लक मल प सतककी हसतलललखत परलत बतल ती ह, उनहोन 28-8-’42 को य परकरण ललखन श र लकय और

18-12-’42 को इनह पर लकय थ । उनकी दलिम इस लिषयक इतन महतति थ लक ि हमश इनह परसम दनस

लहचलकच त रह । ि धीरज रखकर इन परकरणोको ब र-ब र तब तक दोहर त रह, जब तक इस लिषय पर परकट

लकय गय अपन लिच रोस उनह पर सनतोष न हो गय । अगर उनक हमश बढनि ल अन भि इन परकरणोम

कोई स ध र करनकी परण दत , तो िरग करनक उनक इर द थ । मल प सतक ग जर तीम ललखी गई थी,

लजसक लहनदी और अगरजी अन ि द ग धीजीन अपनी रहन म ईम डॉ. स शील नययरस कर य थ । घट -

बढ कर अलतम रप दनकी दलिस ग धीजीन इन दोन अन िदोको दख भी ललय थ ।

इसललए प ठक यह म न सकत ह लक तनद रसतीक महततिपणण लिषय पर ग धीजी अपन दशि लसयोस और

द लनय स जो क छ कहन च हत थ, उसक अन ि द ख द उनहोन ही लकय ह । ईशवरकी और उसक पर लणयोकी

सि ग धीजीक जीिनक पलितर लमशन थ और तनद रसतीक परनकाक अययययन उनकी दलिम उसी सि क एक

अग थ ।

अहमद ब द, 24-7-’48

आरोगय की क जी

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परसताविा

‘आरोगयक लिषयम स म नय जञ न’ शीषणकस ‘इलडडयन ओपीलनयन’ क प ठकोक ललए मन क छ परक रण 1906

क आसप स दलिण अलिक म ललख थ । ब दम ि प सतकक रपम परकट हए । लहनद सत नम यह प सतक

म लककलस ही कही लमल सकती थी । जब म लहनद सत न ि पस आय उस िकत इस प सतककी बहत म ाग हई ।

यह ा तक लक सि मी अखड ननदजीन उसकी नई आिलि लनक लनकी इज जत म ागी और दसर लोगोन भी उस

छपि य । इस प सतकक अन ि द लहनद सत नीकी अनक भ ष ओ म हआ और अगरजी अन ि द भी परकट हआ

। यह अन ि द पलिमम पहाच और उसक अन ि द य रोपकी भ ष ओ म हआ । पररण म यह आय लक पलिमम

य पिणम मरी और और कोई प सतक इतनी लोकलपरय नही हई, लजतनी लक यह प सतक हई । उसक क रण म

आज तक समझ नही सक । मन तो य परकरण सहज ही ललख ड ल थ । मरी लनग हम उनकी कोई ख स कदर

नही थी । इतन अन म न म जरर करत ह ा लक मन मन षयक आरोगयको क छ नय ही सिरपम दख ह और

इसललए उसकी रि क स धन भी स म नय बदयो और डॉकटरोकी अपि क छ अलग ढगस बत य ह । उस

प सतककी लोकलपरयत यह क रण हो सकत ह ।

मर यह अन म न ठीक हो य नही, मगर उस प सतककी नई आिलि लनक लनकी म ाग बहतस लमतरन की ह ।

मल प सतकम मन लजन लिच रोको रख ह उनम कोई पररितणन हआ ह य नही, यह ज ननकी उसत कत बहतस

लमतरोन बत ई ह । आज तक इस इचछ की पलतण करनक म झ कभी वकत ही नही लमल । परनत आज ऐस अिसर

आ गय ह । उसक फ यद उठ कर म यह प सतक नय लसरस ललख रह ह ा । मल प सतक तो मर प स नही ह ।

इतन िषोक अन भिक असर मर लिच रो पर पड लबन नही रह सकत । मगर लजनहोन मल प सतक पढी होगी,

ि दखग लक मर आजक और 1906 क लिच रोम कोई मौललक पररितणन नही हआ ह ।

इस प सतकको नय न म लदय ह । ‘आरोगय क जी’ । म यह उममीद लदल सकत ह ा लक इस प सतकको

लिच रपिणक पढनि लो और इसम लदय हए लनयमो पर अमल करनि लोको आरोगयकी क जी लमल ज यगी

और उनह डॉकटरो पर अमल करनि लोको आरोगयकी क जी लमल ज यगी और उनह डॉकटरो और िदयोक

दरव ज नही खटखट न पडग ।

मो. क. ग धी

आग ख महल,

यरिड , 27-8-’42

आरोगय की क जी

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पहला भाग

1. शरीर

(28-8’42)

शरीरक पररचयस पहल आरोगय लकस कहत ह, यह समझ लन ठीक होग । आरोगयक म नी ह तनद रसत शरीर

। लजसक शरीर वय लध-रलहत ह, लजसक शरीर स म नय क म कर सकत ह, अथ णत जो मन षय बगर थक नक

रोज दस-ब रह मील चल सकत ह, जो बगर थक नक स म नय महनत-मजदरी कर सकत ह, स म नय ख र क

पच सकत ह, लजसकी इलनिय और मन सिसथ ह, ऐस मन षयक शरीर तनद रसत कह ज सकत ह । इसम

पहलि नो य अलतशय दौडन-कदनि लोक सम िश नही ह । ऐस अस ध रण बलि ल वयलकतक शरीर रोगी

हो सकत ह । ऐस शरीरक लिक स एक गी कह ज यग ।

इस आरोगयकी स धन लजस शरीरको करनी ह, उस शरीरक क छ पररचय आिकयक ह ।

पर चीन क लम कसी त लीम दी ज ती होगी, यह तो लिध त ही ज न य शोध करनि ल लोग क छ ज नत

होग। आध लनक त लीमक थड -बहत पररचय हम सबको ह ही । इस त लीमक हम र लदन-परलतलदनक जीिनक

स थ कोई समबनध नही होत । शरीरस हम सद ही क म पडत ह, मगर लिर भी आध लनक त लीमस हम

शरीरक जञ न नही-स होत ह । अपन ग ि और खतोक ब रम भी हम र जञ नक यही ह ल ह । अपन ग ि और

खतोक ब रम तो हम क छ भी नही ज नत, मगर भगोल और खगोलको तोतकी तरह रट लत ह । यह ा कहनक

अथण यह नही ह लक भगोल और खगोलक कोई उपयोग नही ह, मगर हरएक चीज अपन सथ न पर ही अचछी

लगती ह । शरीरक, घरक, ग िक, ग िक च रो ओरक परदशक, ग िक खतोम पद होनि ली िनसपलतयोक

और ग िक इलतह सक जञ नक पहल सथ न होन च लहय । इस जञ नक प य पर खड दसर जञ न जीिनम

उपयोगी हो सकत ह ।

शरीर पचभतक प तल ह । इसीस कलिन ग य ह :

पिन, प नी, पथिी, परक श और आक श,

पचभतक खलस बन जगतक प श ।

(29-8-’42)

आरोगय की क जी

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2. हवा

(31-8-’42)

हि शरीरक ललए सबस जररी च ज ह । इसीललए ईशवरन हि को सिणवय पी बन य ह और िह हम लबन लकसी

परयतनक लमल ज ती ह ।

हि को हम न कक दव र ििडोम भरत ह । ििड धौकनीक क म करत ह । ि हि को अनदर खीचत ह । और

ब हर लनक लत ह । ब हरकी हि म पर णि य होती ह । िह न लमल तो मन षय लजनद नही रह सकत । जो हि

ििडोस ब हर आती ह, िह जहरीली होती ह । अगर यह जहरीली हि त रनत इधर-उधर न िल ज य, तो हम

मर ज य । इसललए घर ऐस होन च लहय, लजसम हि अचछी तरह आ-ज सक और सयण-परक शक आनक

र सत भी हो ।

हि क क म रकतकी श लययद करन ह । मगर हम ििडोम हि भरन और उस ब हर लनक लन ठीक तरहस

नही आत । इसललए हम र रकतकी श लययद भी परी तरह नही हो प ती । कई लोग म हस शव स लत ह । यह ब री

आदत ह । न कम क दरतन एक तरहकी छलनी रखी ह, लजसस हि छनकर भीतर ज ती ह, और स थ ही गरम

होकर ििडोम पहाचती ह । म हस शव स लनस हि न तो स ि होती ह और न गरम ही हो प ती ह ।

इसललए हर एक मन षयको च लहय लक िह पर ण य म सीख ल । यह लिय लजतनी आस न ह, उतनी ही

आिकयक भी ह । पर ण य म कई तरहक होत ह । उन सबम उतरनकी यह आिकयकत नही ह । म यह नही

कहन च हत लक उनक कोई उपयोग नही ह । मगर लजस मन षयक जीिन लनयम-बययद ह, उसकी सब लिय य

सहज रपस होती ह । इसस जो ल भ होत ह, िह अनक परलिय ओ क करनस भी नही होत ।

चलत, लिरत और सोत वकत अगर लोग अपन म ह बनद रख, तो न क अपन क म अपन-आप करगी ही ।

स बह उठकरी जस हम म ह स ि करत ह, िस ही हम न क भी स ि करनी च लहय । न कम मल हो तो उस

लनक ल ड लन च लहय । उसक ललए उिमस उिम िसत स ि प नी ह । जो ठड प नी सहज न कर सक, िह

क नक न प नी उसतम ल कर । ह थम य एक कटोरम प नी लकर उस न कम चढ न च लहय । न कक एक

छदस चढ कर दसरस हम लनक ल सकत ह और न कक दव र प नी पी भी सकत ह ।

ििडोम श ययद हि ही भरनी च लहय । इसललए र तको आक शक नीच य बर मद म सोनकी आदत ड लन

अचछ ह । हि स सरदी लग ज यगी, यह डर नही रखन च लहय । ठड लग तो जय द कपड हम ओढ सकत

ह । ओढनक कपड गल स ऊपर नही ज न च लहय । अगर लसर ठडको बरद सत न कर सक तो उस पर एक

रम ल ब ध लन च लहय। मतलब यह लक न क को, जो लक हि लनक दव र ह, कभी ढकन नही च लहय ।

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सोत समय लदनक कपड उत र दन च लहय । र तको कम कपड पहनन च लहय और ि ढील होन च लहय ।

शरीरको चददरस ढक तो रखन ही ह, इसललए िह लजतन ख ल रह उतन ही अचछ ह । लदनम भी कपड लजतन

ढील पहन ज य उतन ही अचछ ह ।

हम र आसप स की हि हमश श ययद ही होती ह, ऐस नही होत । और न सब जगहकी हि एकसी ही होती

ह । परदशक स थ हि भी बदलती ह । परदशक च न ि हम र ह थम नही होत । मगर घरक च न ि थोड -बहत

हम र ह थम जरर रहत ह; और रहन भी च लहय । स म नय लनयम यह हो सकत ह लक घर ऐसी जगह ढढ

ज य, जह बहत भीड न हो, आसप स गदगी न हो और हि और परक श ठीक-ठीक लमल सक ।

आरोगय की क जी

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3. पािी

(1-9-’42)

शरीरको लजनद रखनक ललए हि क ब द दसर सथ न प नीक ह । हि क लबन मन षय थोड िण तक लजनद

रह सकत ह और प नीक लबन थोड लदन तक । प नी इतन आिकयक ह, इसललए ईशवरन हम खब प नी लदय

ह । लबन प नीकी मरभलमम मन षय बस ही नही सकत । सह र क रलगसत न जस परदशोम बसती लदख ई ही नही

पडती ।

तनद रसत रहनक ललए हरएक मन षयको चौबीस घटम प च पौड प नी य परि ही िवयकी आिकयकत ह ।

पीनक प नी हमश सिचछ होन च लहय । बहत जगह प नी सिचछ नही होत । क एक प नी पीनम हमश

खतर रहत ह । उथल (कम गहर ) क ए और ब िडीक प नी पीनक ल यक नही होत । द ःखकी ब त यह ह

लक हम दखकर य चखकर हमश यह नही कह सकत लक कोई प नी पीन ल यक ह य नही । दखनम और

चखनम जो प नी अचछ लगत ह, िह दर असल जहरील हो सकत ह । इसललए अनज न घर य अनज न

क एक प नी न पीनकी परथ क प लन करन अचछ ह । बग लम त ल ब होत ह । उनक प नी अकसर पीनक

ल यक नही होत । बडी नलदयोक प नी भी पीनक ल यक नही होत , ख स करक जह नदी बसतीक प सस

ग जरती ह और जह उसम सटीमर और न ि आय -ज य करती ह । ऐस होत हए भी यह सचची ब त ह लक

करोडो मन षय इसी परक रक प नी पीकर ग ज र करत ह । मगर यह अन करण करन जसी चीज हरलगज नही ह

। क दरतन मन षयको जीिन-शलकत क िी परम णम न दी होती, तो मन षय-ज लत अपनी भलो और अपन

अलतरकक क रण कबकी लोप हो गयी होती । हम यह प नीक आरोगयक स थ कय समबनध ह, इसक लिच र

कर रह ह । जह प नीकी श ययदत क लिषयम शक हो, िह ा प नीको उब ल कर पीन च लहय । इसक अथण यह

हआ लक मन षयको अपन पीनक प नी स थ लकर घमन च लहय । असखय लोग धमणक न म पर म स लिरीम

प नी नही पीत । अजञ नी लोग जो चीज धमणक न म पर करत ह, आरोगयक लनयमोको ज ननि ल िही चीज

आरोगयक ख लतर कयो न कर? प नीको छ ननक ररि ज त रीि करन ल यक ह । इसस प नीम रह कचर

लनकल ज त ह, ललकन प नीम रह सकषम जनत नही लनकलत । उनक न श करनक ललए प नीको उब लन ही

च लहय । छ ननक कपड हमश स ि होन च लहय। उसम छद न होन च लहय ।

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4. खराक

(2-9-’42)

हि और प नीक लबन आदमी लजनद ही नही रह सकत , यह ब त सच ह । मगर जीिनको लटक नि ली चीज

तो ख र क ही ह, अनन मन षयक पर ण ह । ख र क तीन परक रकी होती ह - म स ह र, श क ह र और लमशर ह र

। असखय लोग लमशर ह री ह । ‘म स’ म मछली और पिी भी आ ज त ह । दधको हम लकसी भी तरह

श क ह रम नही लगन सकत । सच पछ ज य तो िही म सक ही एक रप ह । मगर लौलकक भ ष म िह

म स ह रम नही लगन ज त । जो ग ण म सम ह ि अलधक श दधम भी ह । डॉकटरी भ ष म िह पर लणज ख र क

- एलनमल िड - म न ज त ह । डॉकटरी अड स म नयतः म स ह रम लगन ज त ह । मगर दरअसल ि म स नही

ह । आजकल तो अड ऐस तरीकस पद लकय ज त ह लक म गीको दख लबन भी अड दती ह । इन अडोम चज

कभी बनत ही नही ह । इसललए लजनह दध पीनम कोई सकोच नही, उनह इस परक रक अड ख नम कोई सकोच

नही होन च लहय ।

डॉकटरी मतक झ क ि म खयतः लमशर ह रीकी ओर ह । मगर पलिमम डॉकटरोक एक बड सम द य ऐस ह,

लजसक यह दढ मत ह लक मन षयक शरीरकी रचन को दखत हए िह श क ह री ही लगत ह । उसक द त,

आम शय इतय लद उस श क ह री लसययद करत ह । श क ह रम िलोक सम िश होत ह । िलोम त ज िल

और सख मि अथ णत ब द म, लपसत , अखरोट, लचलगोज इतय लद आ ज त ह।

म श क ह रक पिप ती ह ा । मगर अन भिस म झ यह सिीक र करन पड ह लक दध और दधस बननि ल

पद थण जस मकखन, दही िगर क लबन मन षय-शरीर परी तरह लटक नही सकत । मर लिच रोम यह महततिक

पररितणन हआ ह । मन दध-घीक बगर छह िषण लनक ल ह । उस वकत मरी शलकतम लकसी तरहकी कमी नही

आयी थी । मगर अपनी मखणत क क रण म 1917 म सखत पलचशक लशक र बन । शरीर ह डलपजर हो गय

। मन हठपिणक दि नही ली; और उतन ही हठस दध य छ छ भी लनस इनक र लकय । शरीर लकसी तरह

बनत ही नही थ । मन दध न लनक वरत ललय थ । मगर डॉकटर कहन लग - ‘‘यह वरत तो आपन ग य और

भसक दधको नजरम रखकर ललय थ ।’’ ‘‘बकरीक दध लनम आपको कोई हजण नही होन च लहय’’ - मरी

धमणपतनीन डॉकटरक समथणन लकय और म लपघल । सच कह ज य तो लजसन ग य-भसक दधक तय ग लकय

ह, उस बकरी िगर क दध लनकी छट नही होनी च लहय: कयोलक उस दधम भी पद थण तो िही होत ह । लसिण

म तर क ही िरक होत ह । इसललए मर वरतक किल अिरोक ही प लन हआ ह, उसकी आतम क नही ।

जो भी हो, बकरीक दध त रनत आय और मन िह ललय । लत ही म झम एक नय चतन आय , शरीरम शलकत

आयी और म ख टस उठ । इस अन भि परस और ऐस दसर अनक अन भिो परस म ल च र होकर दधक

आरोगय की क जी

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पिप ती बन ह ा । मगर मर यह दढ मत ह लक असखय िनसपलतयोम कोई न कोई ऐसी जरर होगी, जो दध

और म सकी आिकयकत अचछी तरह परी कर सक और उनक दोषोस म कत हो ।

मरी दलिस दध और म ास लनम दोष तो ह ही । म सक ललए हम पश -पलियोक न श करत ह; और म क दधक

लसि दसर दध पीनक हम अलधक र नही ह । नलतक दोषक लसि किल आरोगयकी दलिस भी इनम दोष ह

। दोनोम उनक म ललकक दोष आ ही ज त ह । प लत पश स म नयतः पर तनद रसत नही होत। मन षयकी तरह

पश ओ म भी अनक रोग होत ह । अनक परीि य करनक ब द भी कई रोग परीिककी नजरस छट ज त ह ।

सब पश ओ की अचछी तरह परीि करि न असभि लगत ह । मर प स एक गोश ल ह । उसक ललए लमतरोकी

मदद आस नीस लमल ज त ह । परनत म लनियपिणक नही कह सकत लक मरी गोश ल म सब पश लनरोगी ही

ह । इसस उलट यह दखनम आय ह लक जो ग य लनरोगी म नी ज ती थी िह अनतम रोगी लसययद हई । इसक

पत चलनस पहल तो उस रोगी ग यक दधक उपयोग होत ही रहत थ ।

सि गर म-आशरम आसप सक लकस नोस भी दध लत ह । उनक पश ओ की परीि कौन करत ह? उनक दध

लनदोष ह य नही, इसकी परीि करन कलठन ह । इसललए दध उब लनस लजतन लनदोष बन सक उसस ही

क म चल न होग । दसरी सब जगह आशरमस तो कम ही पश ओ की परीि हो सकती ह । जो ब त दध

दनि ल पश ओ क ललए ह िह म सक ललए कतल होनि ल पश ओ क ललए तो ह ही । परनत अलधकतर तो

हम र क म भगि न भरोस ही चलत ह । मन षय अपन आरोगयकी बहत लचत नही रखत । उसन अपन ललए

बदयो, डॉकटरो और नीम-हकीमोकी सरिक फौज खडी कर रखी ह, और उसक बल पर िह अपन-आपको

स रलित म नत ह । उस सबस अलधक लचत रहती ह धन और परलतषठ िगर पर पत करनकी । यह लचत दसरी

सब लचत ओ को हजम कर ज ती ह । इसललए जब तक कोई प रम लथणक डॉकटर, िदय य हकीम लगनस पररशरम

करक सपणण ग णोि ली कोई िनसपलत नही ढढ लनक लत , तब तक मन षय द गध ह र य म स ह र करत ही

रहग ।

अब जर य कत ह रक ब रम लिच र कर । मन षय-शरीरको सन य बन नि ल, िवयोकी आिकयकत रहती ह ।

सन य बन नि ल िवय दध, म स, द लो और सख मिोस लमलत ह । दध और म सस लमलनि ल िवय द लो

िगर की अपि अलधक आस नीस पच ज त ह और सि ाशम ि अलधक ल भद यक ह । दध और म सम दध

क दज ण ऊपर ह । डॉकटर लोग कहत ह लक जब म स नही पचत , तब भी दध पच ज त ह । जो लोग म स

नही ख त, उनह तो दधस बहत मदद लमलतह ह । प चनकी दिीस कचच अड सबस अचछ म न ज त ह ।

मगर दध य अड सब कह स प य? सब जगह य लमलत भी नही । दधक ब रम एक बहत जररी ब त यही म

कह द । मकखन लनक ल हआ दध लनकमम नही होत । िह अतयनत कीमती पद थण ह । कभी-कभी तो िह

मकखनि ल दधस भी अलधक उपयोगी होत ह । दधक म खय ग ण सन य बन नि ल पर लणज पद थणकी

आिकयकत परी करन ह । मकखन लनक ल लन पर भी उसक यह ग ण क यम रहत ह । इसक अल ि सबक

आरोगय की क जी

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सब मकखन दधम स लनक ल सक, ऐस यतर तो अभी तक बन ही नही ह; और बननकी सभ िन भी कम ही

ह ।

पणण य अपणण दधक लसि दसर पद थोकी शरीरको आिकयकत रहती ह । दधस दसर दज पर गह , ब जर

ज आर, च िल िगर अन ज रख ज सकत ह । लहनद सत नक अलग अलग पर नतोम अलग अलग लकसमक

अन ज प य ज त ह । कई जगहो पर किल सि दक ख लतर एक ही ग णि ल एकस अलधक अन ज ख य ज त

ह ।

(4-9-’42)

जस लक गह , ब जर और च िल तीनो चीज थडी थडी म तर म एक स थ ख यी ज ती ह । शरीरक पोषणक

ललए इस लमशरणकी आिकयकत नही ह । इसस ख र ककी म तर पर अक श नही रहत और आम शयक क म

अलधक बढ ज त ह । एक समयम एक ही तरहक अन ज ख न ठीक म न ज यग । इन अन जोम स म खयत

सट चण (लनशसत ) लमलत ह । गह न लमल और ब जर , ज आर इतय लद अचछ न लग य अन कल न आय, िह

च िल लन च लहय ।

(6-9-’42)

अन जम तर को अचछी तरह स ि करक ह थ-चककीम पीसकर लबन छ न इसतम ल करन च लहय । अन जकी

भसीम सतति और ि र भी रहत ह । दोनो बड उपयोगी पद थण ह । इसक उपर नत भसीम एक ऐस पद थण होत

ह, जो बगर पच ही लनकल ज त ह और अपन स थ मलकोभी लनकलत ह । च िलक द न न ज क होन क

क रण ईशवरन उसक ऊपर लछलक बन य ह, जो ख नक क मक नही होत । इसललए च िलको कटन पडत

ह । क ट ई उतनी ही करनी च लहय लजसस ऊपरक लछलक लनकल ज ि । मशीनम च िलक लछलकक अल ि

उसकी भसी भी लबलक ल लनक ल ड ली ज ती ह । इसक क रण यह ह लक च िलकी भसीम बहत लमठ स

रहती ह; इसललए अगर भसी रखी ज य तो उसम स सरी य कीड पड ज त ह । गह और च िलकी भसी

लनक ल द, तो तो ब की किल सट चण रह ज त ह; और भसीम अन जक बहत कीमती लहसस चल ज त ह

। गह और च िलकी भसीको अकल पक कर भी ख य ज सकत ह । उसकी रोटी भी बन सकती ह ।

कोकणी च िलोक तो आट पीसकर उसकी रोटी ही गरीब लोग ख त ह । पर च िल पक कर ख नकी अपि

च िलक आटकी रोटी श यद अलधक आस नीस पचती हो और थोडी ख नस पर सनतोष भी द ।

हम लोगोको द ल य श कक स थ रोटी ख नकी आदत ह । इसस रोटी परी तरह चब यी न ही ज ती ।

सट चणि ल पद थोको लतन हम चब य और लजतन ि ल रक स थ लमल उतन ही अचछ ह । यह ल र सट चणक

आरोगय की क जी

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पचनम मदद करती ह । अगर ख र कको लबन जब य हम लनगल ज य, तो उसक पचनम ल रकी मदद नही

लमल सकती । इसललए ख र कको उसी लसथलतम ख न लक लजसस उस चब न पड, अलधक ल भद यक ह ।

सट चण-परध न अन जोक ब द सन य ब धनि ली (परोटीनपरध न) द लो इतय लदको दसर सथ न लदय ज त ह ।

द लक लबन ख र कको सब लोग अपणण म नत ह । म स ह रीको भी द ल तो च लहय ही । लजस आदमीको

महनत-मजदरी करनी पडती ह और लजस परी म तर म लबलक ल दध नही लमलत । उसक ग ज र दलक लबन

न चल यह म समझ सकत ह ा । मगर म झ यह कहनम जर भी सकोच नही होत लक लजनह श रीररक क म कम

करन पडत ह-जस लक कल कण , वय प री, िकील, डॉकटर य लशिक-और लजनह दध परी म तर म लमल ज त

ह, उनह द लकी आिकयकत नही ह । स म नयत द ल भ री ख र क म नी ज ती ह और सट चण-परध न अन जकी

अपि बहत कम म तर म ख यी ज ती ह । द लोम मटर और लोलबय बहत भ री ह । मग और मसर हलक

म न ज त ह ।

तीसर दज ण श कभ जीको और िलोको दन च लहय । श क और िल लहनद सत नम ससत होन च लहय, मगर

ऐस नही ह । ि किल शरलहयोकी ख र क म न ज त ह । ग िोम हरी तरक री भ गयस ही लमलती ह । और बहत

जगह िल भी नही लमलत । इस ख र ककी कमी लहनद सत नक ललए बडी शरमकी ब त ह । दह ती च ह तो

क िी श कभ जी पद कर सकत ह । िलोक पडोक ब रम कलठन ई जरर ह, कयोलक जमीनकी क कत क

क नन सखत और गरीबोको दब नि ल ह । मगर यह तो हम र लिषयस ब हरकी ब त हई ।

त जी श कभ जीम पिोि ली जो भी भ जी लमल िह क िी म तर म हर रोज लनी च लहय । जो श क सट चण-

परध न ह, उनकी लगनती यह ा मन श कभ जीम नही की ह । आल, शकरक द, रत ल और जमीकनद सट चण-

परध न श क ह । उनह अन जकी पदी दनी च लहय । दसर कम सट चणि ल श क क िी म तर म लन च लहय ।

ककडी,लनोकी भ जी, सरसोक स ग, सोएकी भ जी, टम टर इतय लदको पक नकी कोई आिकयकत नही

रहती । उनह स ि करक और अचछी तरह धोकर थोडी म तर म कचच ख न च लहय ।

िलोम मौसमक जो िल लमल सक ि लन च लहय । आमक मौसमम आम, ज म न, इसी तरह अमरद, पपीत ,

सतर , अगर, मीठ नीब (शरबती य सिीट ल इम), मोसमबी िगर िलोक ठीक-ठीक उपयोग करन च लहय

। िल ख नक सबस अचछ िकत स बहक ह । सबर दध और िलक न कत करनस पर सतोष लमल ज त

ह । जो लोग ख न जलदी ख त ह, उनक ललए तो सबर किल िल ही ख न अचछ ह ।

कल अचछ िल ह । मगर उसम सट चण बहत ह । इसललए िह रोटीकी जगह लत ह । कल , दध और भ जी

सपणण ख र क ह ।

मन षयकी ख र कम थोडी-बहत लचकन ई की आिकयकत रहती ह । िह घी और तलस लमल ज ती ह । घी

लमल सक तो तलकी कोई आिकयकत नही रहती । तल पचनम भ री होत ह और श ययद घीक बर बर ग णक री

नही होत । स म नय मन षयक ललए तीन तोल घी क िी समझन च लहय । दधम घी आ ही ज त ह । इसललए

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लजस घी न लमल सक, िह तल ख कर चबीकी म तर परी कर सकत ह । तोलोम लतलक , न ररयलक और

मगिलीक तल अचछ म न ज त ह । तल त ज होन च लहय । इसललए दशी घ नीक तल लमल सक तो

अचछ ह । जो घी और तल आज ब ज रम लमलत ह, िह लगभग लनकमम होत ह । यह द ःखकी और

शरमकी ब त ह । मगर जब तक वय प रम क नन य लोक-ल शिडक दव र ईम नद री द लखल नही होती, तब

तक लोगोको स िध नी रखकर, महनत करक अचछी और श ययद चीज पर पत करनी होगी । अचछी और श ययद

चीजक बदल कसी भी लमल तो उसस कभी सतोष नही म नन च लहय । बन िटी घी य खर ब तल ख नक

बदल घी-तलक बगर ग ज र करनक लनिय जय द पसनद करन योगय ह ।

जस ख र कम लचकन ईकी आिकयकत रहती ह, िस ही ग ड और ख डकी भी । मीठ िलोस क िी लमठ स

लमल ज ती ह, तो भी तीन तोल ग ड य ख ड लनम कोई ह लन नही ह । मीठ िल न लमल तो ग ड और ख ड

लनकी आिकयकत रहती ह । मगर आजकल लमठ ई परजो इतन जोर लदय ज त ह, िह ठीक नही ह ।

शहरोम रहनि ल बहत जय द लमठ ई ख त ह, जस लक खीर, रबडी, शरीखड, पड , बिी, जलबी िगर लमठ ईय

। य सब अन िकयक ह और अलधक म तर म ख नस न कस न ही करती ह । लजस दशम करडो लोगोको पटभर

अनन भी नही लमलत , िह जो लोग पकि न ख त ह, ि चोरीक म ल ख त ह, यह कहनम म झ तलनक भी

अलतशयोलकत नही लगती ।

जो लमठ ईक ब रम कह गय ह, िह घी-तलको भी ल ग होत ह । घी-तलम तली हई चीज ख न लबलक ल

जररी नही ह । परी, लडड िगर बन नम घी खचण करन लिच रीपन ह । लजनह आदत नही होती, ि लोग तो य

चीज ख ही नही सकत । अगरज जब हम र दशम आत ह, तब हम री लमठ इय और धीम पक ई हई चीज ि

ख ही नही सकत । जो ख त ह ि बीम र पडत ह, यह मन कई ब र दख ह । सि द तो लसिण आदतकी ब त ह

। भख ज सि द पद करती ह, िह छपपन भोगोम भी नही लमलत । भख मन षय सखी रोटी भी बहत सि दस

ख यग । लजसक पट भर हआ ह, िह अचछस अचछ म न ज नि ल पकि न भी नही ख सकग ।

अब हम यह लिच र कर लक हम लकतन ख न च लहय और लकतनी ब र ख न च लहय । सब ख र क औषलधक

रपम लनी च लहय, सि दक ख लतर हरलगज नही । सि द म तर रसम होत ह और रस भखम होत ह । पट कय

च हत ह, इसक पत बहत कम लोगो को रहत ह । क रण यह ह लक हम गलत आदत पड गई ह ।

(8-9-’42)

जनमद त म त -लपत कोई तय गी और सयमी नही होत । अनकी आदत थोड-बहत परम णम बचचोम भी

उतरती ह । गभ णध नक ब द म त जो ख ती ह, उसक असर ब लक पर पडत ही ह । लिर ब लय िसथ म

म त बचचको अनक सि द लखल ती ह । जो क छ िह सिय ख ती ह उसम स बचचकोभी लखल ती ह । पररण म

यह होत ह लक बचनपस ही पटको ब री आदत पड ज ती ह । पडी हई आदतोको लमट सकनि ल लिच रशील

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लोग थोड ही होत ह । पडी हई आदतोको लमट सकनि ल लिच रशील लोग थोड ही होत ह । मगर जब

मन षयको यह भ न होत ह लक िह अपन शरीरक सरिक ह और उसन शरीरको सि क ललए अपणण कर लदय

ह । तब शरीरको सिसथ रखनक लनयम ज ननकी उस इचछ होती ह और उन लनय मक प लन करनक िह

मह परय स करत ह ।

(9-9-’42)

1. ग यक दध दो पौड ।

2. अन ज छह औ स अथ णत 15 तोल (च िल, गह ा, ब जर इतय लद लमल कर) ।

3. श कम पि -भ जी तीन औ स और दसर श क प च औ स ।

4. कचच श क एक औ स ।

5. तीन तोल घी य च र तोल मकखन ।

6. ग ड य शककर तीन तोल ।

7. त ज िल, जो लमल सक , रलच और आलथणक शलकत क अन स र ।

हर रोज दो नीब ललय ज य तो अचछ ह । नीबक रस लनक लकर भ जीक स थ य प नीक स थ लनस खट ईक

द तो पर खर ब असर नही पडग ।

य सब वजन कचच अथ णत लबन पक य हए पद थोक ह । नमकक परम ण यह नही लदय गय ह । िह रलचक

अन स र ऊपरस ललय ज सकत ह ।

हम लदनम लकतनी ब र ख न च लहय? भहत लोग तो लदनम किल दो ही ब र ख त ह । स म नयत तीन ब र

खनकी परथ ह- सबर क म पर बठनस पहल, दोपहरको और श म य र लतरको । इसस अलधक ब र ख नकी

आिकयकत नही होती । शहरोम रहनि ल क छ लोग समय-समय पर क द न क छ ख त ही रहत ह । यह आदत

न कस नदह ह । आम शयको भी आलखर आर म च लहय ।

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5. मसाल

ख र कक लििचन करत समय मन मस लोक ब रम क छ नही कह । नमकको हम मस लोक र ज कह सकत

ह, कयोलक नमकक लबन स म नय मन षय क छ ख ही नही सकत । इसललए नमकको ‘सबरस' भी कह गय

ह । शरीरको कई ि रोकी आिकयकत रहती ह । उनम स नमक भी एक ह । य सब ि र ख र कम होत ही ह ।

मगर उस अश सतर rय तरीक स पक नक क रण क छ ि रोकी म तर कम हो ज ती ह, इसललए ि ऊपरस लन

पडत ह । ऐस ही एक अतयनत आिकयक ि र नमक ह । इसललए उस थोड परम णम अलगस ख नको मन

लपछल परक रणम कह ह ।

मगर कई ऐस मस ल, लजनकी शरीरको स म नयत कोई आिकयकत नही होती, किल सि दक ख लतर य

प चन-शलकत बढ नक ख लतर ललय ज त ह,जस लक हरी य सखी ल ल लमचण, क ली लमचण, हलदी, धलनय ,

जीर , र ई, मथी, हीग इतय लद । इनक लिषयम पच स िषणक लनजी अन भिस मरी यह र य बनी ह लक शर रको

परी तरह लनरोग रखनक ललए इनम स एककी भी आिकयकत नही ह । लजसकी प चन-शलकत लबलकल कमजोर

हो गई ह, उस किल औषलधक रपम, अम क समयक ललए, लनलित म तर म मस ल लन पड तो िह भल ल ।

मगर सि दक ख लतर तो ऐसी चीजक आगरहपिणक लनषध ही म नन च लहय । हर परक रक मस ल , यह तक

लक नमक भी, अन ज और श कक सि भ लिक रसक न श करत ह । लजस आदमीकी जीभ लबगड नही गई

ह, उस सि भ लिक रसम जो सि द आत ह, िह मस ल य नमक ड लक ब द नही आत । इसीललए मन

सचन की ह लक नमक लन हो तो ऊपरस ललय ज य । लमचण तो पठ और म हको जल ती ह । लजस लमचण

ख नकी आदत नही होती, िह श रम तो उस ख ही नही सकत । मन दख ह लक लमचण ख नस कई लोगोक

म ह आ ज त ह-उसम थ , अपनी भरजि नीम इसी क रण मतय क लशक र भी बन थ ।

दलिण अिीक क हबशी तो लमचणक छ भी नही सकत । स र कम हलदीक रग ि बरद सत ही नही कर सकत

। अगरज भी हम र मस ल नही ख त लहनद सत नम आनक ब द उनह आदत पड ज य तो ब त अलग ह ।

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6. चाय, काफी और कोको

इन तीनोम स एककी भी शरीरको आिकयकत नही ह । च यक परच र चीनस हआ कह ज त ह । चीनम

उसक ख स उपयोग ह । िह ा प नी अकसर श ययद नही होत । प नीको उब ल कर लपय ज य तो प नीक

लिक र दर लकय ज सकत ह । लकसी चत र चीनीन च य न मकी एक घ स ढढ लनक ली । िह घ स बहत

थोडी म तर म भी उबलत प नीम ड ली ज य, तो प नीक रग स नहर हो ज त ह । अगर इस तरह प नी स नहर

रग पकड ल, तो यह इस ब तकी पककी लनश नी ह लक प नी उबल च क ह । स न ह लक चीनम लोग इसी तरह

प नीकी परीि करत ह और िही प नी पीत ह । च यकी दसरी लिशषत यह ह लक उसम एक तरहकी ख शब

रहती ह । ऊपर ललख तरीकसी बनी हई च यको लनदोष म न सकत ह ऐसी च य बन नक यह तरीक ह ः

एक चममच च य छलनीम ड ली ज य । छलनीको च यक बतणन पर रख ज य छलनी पर घीर-धीर उबल हआ

प नी ड ल ज य । नीच जो प नी आय असक रग स नहर हो, तो समझ ल लक प नी ठीक उबल च क ह ।

झसी च य स म नयत पी ज ती ह, उसक कोई ग ण तो ज ननम नही आय । मगर उसम एक भ री दोष होत ह

। अथ णत उसम टनीन होत ह । टनीनी ऐसी च ज ह, जो चमडको पक नक क मम आती ह । यही क म

टनीनि ली च य आम शय (Stomach) म ज कर करती ह ।

(10-9-’42)

अम शयक भीतर टनीनकी तह चढनस उसकी प चन-शलकत कम होती ह । इसस अपच होत ह । कह ज त ह

लक इगलडडम तो असखय औरत किल कडक च यकी आदतक क रण अनक रोगोकी लशक र बनती ह । लजनह

च यकी आदत ह, उनह समय पर च य न लमल, तो ि वय क ल हो ज त ह । च यक प नी गरम होत ह । उसम

थोडी चीनी और थोड स दध ड ल ज त ह । यह च यक ग ण जरर म न ज सकत ह । मगर दधम प नी

ड लकर उस गरम लकय ज य और उसम चीनी य ग ड ड ल ज य, तो उसस िही क म अचछी तरह लनकलत

ह । उबलत प नीम एक चममच शहद और आध चममच नीबक रस ड ल ज य, तो स नदर पय बन ज त ह ।

जो च यक लिषयम कह गय ह, िह कॉिीको भी थोड-बहत परम णम ल ग होत ह । कॉिीक ब बरम एक

कह ित हः

किक टन ि य हरण, ध त हीन बलिीण;

लोह क प नी कर, दो ग ण अिग ण तीन ।

जो र य मन च य और कॉिीक ब रम दी ह, उस च य, कॉिी और कोकोकी मददकी आिकयकत नही रहती।

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(7-10’42)

अपन लब अन भि पर स म यह कह सकत ह ा लक तनद रसत मन षय को स म नय ख र कस पर सतोष लमल ज त

ह । मन उपय णकत तीनो चीजोको खब सिन लकय ह । जब म य चीज लत थ , तब शरीरम क छ न क छ लबग ड

रह ही करत थ । इन चीजोक तय गस मन क छ भी खोय नही ह, उलट बहत प य ह । जो सि द म ज च य

इतय लदम लमलत थ , उसस क ही अलधक सि द अब म उबली हई स म नय भ लजयोक रसम प त ह ।

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7. मादक पदारथ

लहनद सत नम शर ब, भ ग, ग ज , तमब क और अिीम म दक पद थोम लगन शर बम इस दशम पद होनि ली

त डी और ‘एरक’ आत ह; और परदशस आनि ली शर बोक तो कोई लहस ब ही नही ह । य सिणथ तय जय

ह ।

(8-10-’42)

शर ब शर ब पीकर मन षय अपन होश खो बठत ह और लनकमम बन ज त ह । लजसको शर बकी लत लगी

होती ह, िह ख द बरब द होत ह और अपन पररि रको भी बरब द करत ह । िह सब मय णद य तड दत ह ।

एक पि ऐस ह जो लनलित (मय णलदत ) म तर म शर ब पीनक समथणन करत ह और कहत ह लक इसस ि यद

होत ह । म झ इस दलीलम कोई स र नही लगत । पर घडीभरक ललए इस दलीलको म न ल, तो भी अनक

ऐस लोगोक ख लतर, जो लक मय णद म रह ही नही सकत, इस चीजक तय ग करन च लहय ।

प रसी भ इयोन त डीक बहत समथणन लकय ह । ि कहत ह लक त डीम म दकत तो ह, मगर त डी एक ख र क

ह और दसरी ख र कको हजम करन म मदद पहाच ती ह । इस दलील पर मन खब लिच र लकय ह और इस

ब रम क िी पढ भी ह । मगर त डी पीनि ल बहतस गरीबोकी मन जो ददणश दखी ह, उस पर स म इस लनणणय

पर पहच ह ा लक त डीको मन षयकी ख र कम सथ न दनकी कोई आिकयकत नही ह ।

त डीम जो ग ण म न गय ह, ि सब हम दसरी ख र कम लमल ज त ह । त डी खजरीक सरस बनती ह । खजरीक

श ययद रसम म दकत लबलक ल नही होती । उस नीर कहत ह । त जी नीर को ऐसीकी ऐसी पीनस कई लोगोको

दसत स ि आत ह । मन ख द नीर पीकर दखी ह । म झ पर उसक ऐस असर नही हआ । परनत िह ख र कक

क म तो अचछी तरहस दती ह । च य इतय लदक बदल मन षय सिर नीर पी ल, तो उस दसर क छ पीन य

ख नकी आिकयकत नही रहनी च लहय । नीर को गननक रसकी तरह पक य ज य, तो उसस बहत अचछ ग ड

तय र होत ह ।

(9-10-’42)

खजरी त डकी एक लकसम ह ।हम र दशम अनक परक रक त ड क दरती तौर पर उगत ह । उन सबम स नीर

लनकल सकती ह । नीर ऐसी चीज ह लजस लनक लनकी जगह पर ही त रनत पीन अचछ ह । नीर म म दकत

जलदी पदइ हो ज ती ह । इसललए जह उसक प रनत प योग न हो सक, िह उसक ग ड बन ललय ज य तो

िह गननक ग डकी जगह ल सकत ह । कई लोग म नत ह लक त ड-ग ड गननक ग डकी अपि अलधक म तर म

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ख य ज सकत ह । गर मोदयोग सघक दव र त ड-ग डक क िी परच र हआ ह । मगर अभी और जय द म तर म

इसक परच र होन च लहय । लजन त डोक रसस त डी बन ई ज ती ह, उनहोस ग ड बन य ज य, तो लहनद सत नम

ग ड और ख डकी कभी तगी पद न हो और गरीबोको ससत द मम अचछ ग ड लमल सक । त ड-ग डकी लमशरी

और गरीबोको ससत द मम अचछ ग ड लमल सक । त ड-ग डकी लमशरी और सककर भी बन ई ज सकती ह ।

मगर ग ड शककर य चीनीस बहत अलधक ग णक री ह । ग डम जो ि र ह ि शककर य चीनीस बहत अलधक

ग णक री ह । ग डम जो ि र ह ि शककर य चीनम नही होत । जस लबन भसीक आट और लबन भसीक

च िल होत ह, िस ही लबन ि रकी शककरको समझन च लहय । अथ णत यह कह ज सकत ह लक ख र क

लजतनी अलधक सि भ लिक लसथलतम ख ई ज य, उतन ही अलधक प षण उसम स हम लमलत ह ।

त डीक िणणन करत हए म झ सिभ ित नीर क उललख करन पड और उसक सबनधम ग डक । मगर शर बक

ब रम म झ अभी और कहन ह । शर बस पद होनि ली ब र ईक लजतन कडि अन भि म झ हआ ह, म नही

ज नत लक उतन स िणजलनक क म करनि ल लकसी और सिकको हआ होग । दलिण अलिक म ‘ल गरलमट’

(अधण-ग ल मी) म क म करनि ल लहनद सत लनयोम बहतस शर ब पीनक आदी होत थ । िह यह क नन थ लक

लहनद सत नी लोग शर ब अपन घर नही ल ज सकत; लजतनी पीन हो, शर बकी द क न पर बठकर पीय । लसतरय

भी शर बकी लशक र बनी होती थी । उनकी जो दश मन दखी ह, िह अतयनत करण जनक थी । जो उस ज नत

ह िह कभी शर ब पीनक समथणन नही करग ।

िह क हबलशयोको स म नयत अपनी मल लसथलतम शर ब पीनकी आदत नही होती । कह ज सकत ह लक

उनक मजदरिगणक तो शर बन न श ही कर लदय ह । कई मजदर अपनी कम ई शर बम सि ह करत लदख ई

दत ह । उनक जीिन लपरथणक बन ज त ह ।

और अगरजोक ? सभय म न ज नि ल अगजोको मन गट रोम पड दख ह । यह अलतशयोलकत नही ह । लड ईक

समय लजन गोरोको टर नसि ल छोडन पड थ , उनम स एकको मन अपन घरम रख थ । िह इनजीलनयर थ ।

लथयोसॉलिसट होत हए भी उस शर बकी लत थी । शर ब न पी हो तब उसक सब लिण अचछ रहत थ ।

ललकन जब िह शर ब पी लत थ , तब लबलक ल दीि न बन ज त थ । उसन शर ब छोडनक बहत परयतन

लकय , मगर जह तक म ज नत ह ा, िह अनत तक इसम सिल न हो सक ।

दलिण अिीक स ि लपस लहनद सत नम आकर भी म झ शर बक द खद अन भि ही हए ह । लकतन ही र ज -

मह र ज शर बकी ब री आदतक क रण बरब द हो गय ह और हो रह ह । जो उनक लिषयम सच ह, िह थोड-

बहत

परम णम अनक धलनक य िकोको भी ल ग होत ह ।

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(10-10-’42)

मजदर-िगणकी लसथलतक अभय स लकय ज य, तो िह भी दय जनक ही ह । ऐस कडि अन भिोक ब द म

शर बक सखत लिरोधी बन ह ा, तो इसम आियणकी कोई ब त नही ह ।

एक ि कयम यलद कह ा तो शर बस मन षय अपन शरीर, मन, और ब लययदको िीण करत ह और पस बरब द

करत ह ।

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8. अफीम

जो टीक शर बखोरीक लिषयम की गई ह, िही अिीम पर भी ल ग होती ह । दोनो वयसनोम भद जरर ह ।

शर बक नश जब तक रहत ह मन षयको िह प गल बन य रखत ह । अिीम मन षयको जड बन दती ह ।

अिीम आलसी हो ज त ह, तनि िश रहत ह और लकसी क मक नही रहत ।

शर बखोरीक ब र पररण म हम रोज अपनी आखोस दख सकत ह । अिीमक ब र असर इस तरह परतयि नही

दीखत । अिीमक जहरील असर परतयि दखन हो तो उडीस और आस मम ज कर हम दख सकत ह ।

बह हज रो लोग इस द वयणसनम ि स हए लदख ई दत ह । जो लोग इस वयसनक लशक र बन हए ह, ि ऐस लगत

ह म नो कबरम पर लटक कर बठ हो ।

मगर अिीमक सबस खर ब असर तो चीनम हआ कह ज त ह । चीलनयोक शरीर लहनद सत लनयोस

जय द मजबत होत ह । परनत जो अिीमक ि दम ि स च क ह, ि म द-स लदख ई दत ह । लजसको अिीमकी

लत लगी होती ह, िह दीन बन ज त ह और अिीम ह लसल करनक ललए कोई भी प प करनको तय र हो

ज त ह ।

चीलनयो और अगजोक बीच एक लड ई हई थी, जो अिीमकी लड ईक न मस इलतह सम परलसययद ह । चीन

लहनद सत नकी अिीम लन नही च हत थ , जब लक अगज जबरदसती चीनक स थ उस अिीमक वय प र

करन च हत थ । इस लड ईम लहनद सत नक भी दोष थ । लहनद सत नम बहतस अिीम ठकद र थ । इसस उनह

अचछी कम ई भी होती थी । लहनद सत नको महसलम चीनस करोडो रपय लमलत थ । यह वय प र परतयि रपम

अनीलतमय थ तो भी चल । अनतम इगलडम भ री आनदोलन हआ हौर अिीमक यह वय प र बनद हआ ।

जो चीज इस तरह परज क न श करनि ली ह, उसक वयसन िणभरक ललए भी सहन करन योगय नही ह ।

इतन कहनक ब द भी यह सिीक र करन च लहय लक िदयक य लचलकतस -श सतरम अिीमक बहत सथ न ह ।

िह ऐसी दि ह लजसक लबन चल ही नही सकत । इसललए अिीमक वयसन मन षय सिचछ स छड द तभी

उसक उययद र हो सकग ।

(11-10-’42)

लचलकतस -श सतरम उसक सथ न भल ही रह । परनत जो चीज हम दि क तौर पर ल सकत ह िह वयसनक तौर

पर थोड ही ल सकत ह? अगर ल तो िह जहरक क म करगी । अिीम तो परतयि जहर ही ह । इसललए

वयसनक रपम िह सिणथ तय जय ह ।

आरोगय की क जी

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9. तमबाक

तमब कन तो गजब ही ढ य ह । इसक पजस कोई भ गयस ही छटत ह । स र जगत एक य दसर रपम

तमब कक सिन करत ह । टॉलसटॉयन इस वयसनोम सबस खर ब वयसन म न ह । िलषक यह िचन ययय न

दन ल यक ह । उनहोन तमब क और शर ब दोनोक क िी अन भि लकय थ और दोनोकी ह लनय ि सिय

ज नत थ । ऐस होत हए भी म झ यह सिीक र करन च लहए लक शर ब और अिीमकी तरह तमब कक

द षपररण म परतयि रपस म सिय बत नही सकत । इतन जरर कह सकत ह ा लक इसक एक भी फ यद म

नही ज नत । जो इसक सिन करत ह उनक लसर इसक खचण भी खब पडत ह । एक अगरज मलजसटरट तमब क

पर हर महीन प ाच पौड अथ णत 75 रपय खचण करत थ । उसक महीनक ितन थ 25 पौड । दसर शबदोम,

अपनी कम ईक प चि ा भ ग अथ णत बीस परलतशत िह ध म ऊड दत थ ।

तमब क पीनि लकी लििक-शलकत इतनी मनद पड ज ती ह लक िह तमब क पीत समय अपन पडोसीक लिच र

नही करत । रलग डीम म स लिरी करनि लको इस चीजक क िी अन भि होत ह । जो तमब क नही पीत, ि

तमब कक ध आ सहन ही नही कर सकत । मगर पीनि ल अकसर इस ब तक लिच र नही करत लक

प सि लको कय लगत होग । इसक उपर नत तमब क पीनि लोको अकसर थकन पडत ह और ि लबन

सकोच क ही भी थक दत ह ।

तमब क पीनि लक म हस एक तरहकी असहय बदब लनकलती ह । सभि ह लक तमब क पीनि लकी सकषम

भ िन य मर ज ती ह । और यह भी सभि ह लक उनह म रनक ललए ही मन षयन तमब क पीन श र लकय हो ।

इसम तो शक ह ही नही लक तमब क पीनस मन षयको एक तरहक नश चढ ज त ह और उस नशम िह अपनी

लचनत ओ और द ःखोको भल ज त ह । टॉलसटॉय अपन एक उपनय सम एक प तरस भयकर क म करि त ह ।

यह क म करनस पहल उस शर ब लपलि त ह । इस प तरको एक भयकर खन करन ह । मगर शर बक नशम

भी उस खन करन म सकोच होत ह । लिच र करत करत िह लसग र जल त ह और ध आ उड त ह । ध को

ऊपर चढत हए िह दखत ह और दखत-दखत बोल उठत ह- ‘‘म कस डरपोक ह ा ! खन करन यलद कतणवय

ह, तो लिर सकोच कयो? चल उठ, और अपन क म कर ।'' इस तरह उसकी धमरिश लिचललत बनी ब लययद

उसस एक लनदोष आदमीक खन करि ती ह । म ज नत ह ा लक इस दलीलक बहत असर नही पड सकत ।

तमब क पीनि ल सबक सब प पी नही होत । यह कह ज सकत ह लक करोडो तमब क पीनि ल लोग

आपन जीिन स म नयत सरलत स वयतीत करत ह । तो भी जो लिच रशील ह उनह उपयाकत दि नत पर मनन

करन च लहए । टॉलसटॉयक कहनक स र यह ह लक तमब कक नशम मन षय छोट-छोट प प लकय लकय करत

ह । उसकी लििकब लययद मनद पड ज ती ह ।

आरोगय की क जी

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लहनद सत नम हम लोग तमब क किल पीत ही नही, सघत भी ह और जरदक रपम ख त भी ह । क छ लोग

म नत ह लक तमब क सघनस ि यद होत ह । िदय और हकीमकी सल हस ि तमब क सघत ह । मर मत यह

ह लक इसकी कोई आिकयकत नही ह । तनद रसत मन षयोको ऐसी चीजोकी आिकयकत होनी ही नही च लहए

। जरद ख नि लोको तो कहन ही कय ? तमब क पीन , सघन और ख न , इन तीनोम तमब क ख न सबस

गनदी चीज ह । इसम जो ग ण म न ज त ह, िह किल भरम ह ।

हम लोगोम एक कह ित परचललत ह लक ख नि ल क कोन , सघनि लक कपड और पीनि लक घर य

तीनो सम न ह । जरद ख नि ल स िध न हो तो थकद न रखत ह, मगर अलधक श लोग अपन घरक कोनोम

और लदि रो पर थकत शरम त नही ह । पीनि ल लोग ध स अपन घर भर दत ह और नसि र सघनि ल अपन

कपड लबग डत ह । कोई-कोई लोग अपन प स रम ल रखत ह, पर िह अपि दरप ह । आरोगयक प ज री दढ

लनिय करक सब वयसनोकी ग ल मीस छट ज यग । बहतोको इनमस एक य दो य तीनो वयसनोकी ग ल मीस

छट ज यग । बहतोको इनमस एक य दो य तीनो वयसन लग होत ह । इसललए उनह इसस घण नही होती ।

मगर श नत लचिस लिच र लकय ज य, तो तमब क ि कनकी लिय म य लगभग स र लदन जरद य प नक बीड

िगर स ग ल भर रखनम य नसि रकी लडलबय खोलकर सघत रहनम कोई शोभ नही ह । य तीनो वयसन गद

ह ।

आरोगय की क जी

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10. बरहमचयथ

बरहमचयणक मल अथण ह बरहमकी पर लपतक ललए चय ण । सयमक लबन बरहम लमल ही नही सकत । सयमम सिोपरर

सथ न इलनियलनगरहक ह । बरहमचयणक स म नय अथण सतरी-सगक तय ग और िीयण-सगरहकी स धन समझ ज त

ह । सब इलनियोक सयम करनि लक ललए िीयण-सगरह सहज और सि भ लिक लिय हो ज ती ह । सि भ लिक

रीलतस लकय हआ िीयण-सगरह ही इलचछत िल दत ह । ऐस बरहमच री िोध लदस म कत होत ह । स म नयत जो

लोग बरहमच री कह ज त ह, ि िोधी और अहक री दखनम आत ह, म नो उनहोन िोध और अलभम न करनक

ठक ही ल ललय हो ।

यह भी दखनम आत ह लक जो बरहमचयण-प लनक स म नय लनय मोकी अिगणन करक िीयण-सगरह करनकी

आश रखत ह, उनह लनर श होन पडत ह; और क छ तो दीि न-जस बन ज त ह । दसर लनसतज दखनम आत

ह । ि िीयण-सगरह नही कर सकत और किल सतरी-सग न करनम सिल हो ज न पर आपन आपको कत थण

समझत ह । सतरी-सग न करनस ही कोई बरहमच री नही बन ज त । जब तक सतरी-सगम रस रहत ह; तब तक

बरहमचयणकी पर लपत नही कही ज सकती । जो सतरी य प रष इस रसको जल सकत ह, उसीक ब रम कह ज

सकत ह लक उसन अपनी जननलनिय पर लिजय पर पत कर ली ह । उसकी िीयणरि इस बरहमचयणक ि णीम,

लिच रम और आच रम एक अनोख परभ ि दखनम आत ह ।

ऐस बरहमचयण लसतरयोक स थ पलितर सबनध रखन स य उनक आिकयक सपशणस भग नही होग । ऐस बरहमच रीक

ललए सतरी और प रषक भद लमट-स ज त ह । इस ि कय क कोई अनथण न कर । इसक उपयोग सिचछ च र

क पोषण करनक ललए कभी नही होन च लहय । लजसकी लिषय सलकत जलकर ख क हो गई ह, उसक मनम

सतरी-प रषक भदलमट ज त ह, लमट ज न च लहय । उसकी सौदयणकी कलपन भी दसर ही रप ल लती ह । िह

ब हरक आक रको दखत ही नही । लजसक आच र स नदर ह, िही सतरी य प रष स नदर ह । इसललए स नदर सतरी

को दखकर िह लिहबल नही बन ज यग । उसकी जननलनिय भी दसर रप ल लगी, अथ णत िह सद क ललए

लिक र-रलहत बन ज यगी । ऐस प रष िीयणहीन होकर नप सक नही बनग , मगर उसक िीयणक पररितणन होनक

क रण िह नप सक नही बनग , मगर उसक िीयणक पररितणन होनक क रण िह नप सक-स लगग । स न ह लक

नप सकक रस जलत नही । म झ पतर ललखनि लोम स कईन इस ब तकी स िी दी ह लक ि च हत तो ह लक

उनकी जननलनिय ज गरत हो, मगर िह होती नही । लिर भी िीयण-सखलन हो ज त ह । उनम लिषय-रस तो रहत

ही ह । इसललए ि अनदर जल करत ह । ऐस प रष-रस तो रहत ही ह । इसललए ि अनदर ही अनदर जल करत

ह । ऐस प रष िीणिीयण होकर नप सक हो गय ह, य नप सक होनकी तय री कर रह ह । यह दयनीय लसथलत

ह । परनत जो रस म तरक भसम हो ज नस ऊययिररत हो गय ह, उसक ‘नप सकति' लबलक ल अलग ही लकसमक

होत ह । िह सबक ललए इि ह । ऐस बरहमचयण-प लन क वरत 1906 म ललय थ , अथ णत मर इस लदश म

आरोगय की क जी

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छिीस िषणक परयतन ह । परनत म बरहमचयणकी अपनी वय खय को पणणतय पहच नही सक ह ा । तो भी मरी दलिस

इस लदश म मरी अचछी परगलत ह ई ह और ईशवरकी कप होगी तो पणण सिलत भी श यद यह दह छटनस पहल

लमल ज य । अपन परयतनम म कभी ढील नही पड । म इतन ज नत ह ा लक बरहमचयणकी आिकयकत क ब रम

मर लिच र जय द दढ बन ह । मर क छ परयोग सम जक स मन रखनकी लसथलतको पर पत नही हए ह । म झ सनतोष

हो इस हद तक अगर ि सिल हो ज यग, तो म उनह सम जक स मन रखनकी आश रखत ह ा; कयोलक म

म नत ह ा उनकी सिलत स पणण बरहमचयण श यद अपि कत सरल बन ज यग ।

इस परकरणम लजस बरहमयचण पर म जोर दन च हत ह ा, िह िीयण-रिण तक ही सीलमत ह । पणण बरहमचयणक

अमोघ ल भ उसस नही लमलग , तो भी उसकी कीमत क छ कम नही ह ।

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उसक लबन , पणण बरहमचयण असभि ह । और उसक लबन , पणण आरोगयकी रि भी अशकय-सी समझन च लहय

। लजस िीयणम दसर मन षयको पद करनकी शलकत ह, उस िीयणक वयथण सखलन होन दन मह न अजञ नकी

लनश नी ह । िीयणक उपयोग भोगक ललए नही, परनत किल परजोतपलिक ललए ह, यह हम परी तरह समझ ल

तो लिषय सलकत क ललए जीिनम कोई सथ न ही न रह ज यग । सतरी-प रष-सगक ख लतर नर-न री दोनो लजस

तरह आज अपन सतय न श करत ह, िह बद हो ज यग , लिि हक अथण ही बदल ज यग और उसक जो

सिरप आज दखनम आत ह, उसकी तरि हम र मनम लजरसक र पद होग । लिि ह सतरी-प रषक बीच ह लदणक

और आलतमक ऐकयकी लनश नी होन च लहय । लिि लहत सतरी-प रष यलद परजोतपलिक श भ हत क लबन कभी

लिषय-भोगक लिच र तक न कर तो ि पणण बरहमच री म न ज नक ल यक ह । ऐस भोग दोनोकी इचछ होन

पर ही हो सकत ह । िह आिशम आकर नही होग , क म लगनकी पलपतक ललए तो कभी नही । मगर उस कतणवय

म नकर लकय ज य, तो उसक ब द लिर भोगकी इचछ भी पद नही होनी च लहय । मरी इस ब तको कोई

ह सय सपद न समझ । प ठकोको य द रखन च लहय लक छिीस िषणक अन भिक ब द म यह सब ललख रह ह ा

। म ज नत ह लक जो क छ म ललख रह ह ा, िह स म नय अन भिस उलट ह । जयो-जयो हम स म नय अन भिस

आग बढत ह, तयो-तयो हम री परगलत होती ह । अनक अचछी-बरी शोध स म नय अन भिक लिरययद ज कर ही

हो सकी ह । चकमकस लदय सल ई और लदय सल ईस लबजलीकी शोध इसी एक चीजकी आभ री ह । जो

ब त भौलतक िसत पर ल ग होती ह, िही आययय लतमक पर भी ल ग होती ह । पिणक लम लिि ह-जसी कोई

िसत थी ही नही । सतरी-प रषक भोग और पश ओ क भोगम कोई िरक न थ । सयम-जसी कोई िसत थी ही नही

। कई स हसी लोगोन स म नय अन भिस ब हर ज कर सयम-धमणकी शोध की । सयम-धमण कह तक ज सकत

ह; इसक परयोग करनक हम सबक अलधक र ह । और ऐस करन हम र कतणवय भी ह । इसललए मर कहन

यह ह लक मन षयक कतणवय सतरी-प रष सगको मरी स झ ई हई उचच कि तक पहाच नक ह । यह हसीम उड

आरोगय की क जी

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दन जसी ब त नही ह । इसक स थ ही मरी यह भी सचन ह लक यलद मन षय-जीिन जस गढ ज न च लहय िस

गढ य य तो िीयण-सगरह सि भ लिक िसत हो ज नी च लहय ।

लनतय उतपनन होनि ल अपन िीयणक हम अपनी म नलसक, श रीररक और आययय लतमक शलकतको बढ नम

उपयोग करन च लहय । जो ऐस करन सीख लत ह, िह परम णम बहत कम ख र कस अपन शरीर बन सकग

। अलप ह री होत हए भी िह श रीररक शरमम लकसीस कम नही रहग । म नलसक शरमम उस कमस कम थक न

लगगी । ब ढ पक स म नय लचहन ऐस बरहमच रीम दखनको नही लमलग । जस पक हआ पि य िल ििकी

टहनी परस सहज ही लगर पडत ह, िस ही समय आन पर मन षयक शरीर स री शलकतय रखत हए भी लगर

ज यग । ऐस मन षयक शरीर समय बीतन पर दखन म भल िीण लग, मगर उसकी ब लययदक तो िय होनक

बदल लनतय लिक स ही होन च लहय । य लचहन लजसम दखनम नही आत, उसक बरहमचयणम उतनी कमी समझनी

च लहय । उसन िीयण-सगरहकी कल हसतगत नही ही ह । यह सब सच हो- और मर द ि ह लक सच ह- तो

आरोगयकी सचची क जी िीयण- सगरहम ह ।

िीयण-सगरहक जो थोड-बहत लनयम म ज नत ह ा, उनह यह दत ह ा;

(12-12-’42)

1. लिक रम तरकी जड लिच रम ह । इसललए लिच रो पर हम क ब प न च लहय । इसक उप य यह ह लक मनको

कभी ख ली रहन ही न लदय ज य; उस अचछ और उपयोगी लिच रोस पणण रख ज य । अथ णत हम लजस क मम

लग हो उसकी लचनत न करक यह लिच र कर लक कस उसम लनप णत प यी ज सकती ह, और उस पर अमल

कर । लिच र और उसक अमल लिक रोको र कग । परनत हर समय क म नही होत । मन षय थकत ह, उसक

शरीर आर म च हत ह । र तम जब नीद नही आती तब लिक रोक हमल हो सकत ह । ऐस परसगोक ललए

सिोपरर स धन जप ह । भगि नक लजस रपम अन भि लकय हो, य अन भि करनकी ध रण रखी हो, उस

रपको हदयम रखकर उस न मक जप लकय ज य । जप चल रह हो तब दसर कोई लिच र मनम नही होन

च लहय । यह एक आदशण लसथलत ह । िह तक हम न पहाच सक और अनक लिच र लबन ब ल य चढ ई लकय

कर, तो उनस ह रन नही च लहय, परनत शरययद पिणक जप जपत रह न च लहय; ऐस करग तो जरर हम लिजय

लमलगी ।

2. लिच रोकी तरह ि णी और ि चन भी लिक रोको श नत करनि ल होन च लहय । लजसको बीभतस लिच र

नही आत, उसक म हस बीभतस िचन लनकल ही नही सकत । लिषयोक पोषण करनि ल क िी स लहतय पड

हआ ह । उसकी तरि मनको कभी ज न नही दन च लहय । सदगरथ य पन क मस समबनध रखनि ल गथ पढन

च लहय और उनक मनन करन च लहय । गलणत लदक यह बड सथ न ह । यह तो सपि ह लक जो मन षय

लिक रोक सिन नही करन च हत , िह लिक रोक पोषण करनि ल धधक तय ग करग ।

आरोगय की क जी

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3. जस मनको क मम लग य रखनकी आिकयकत ह, िस ही शरीरको भी क मम लग य रखन जररी ह ।

यह तक लक र त पडन तक मन षयको इस कदम मीठी थक न चढ ज य लक लबसत र पर पडत ही िह त रनत

लनि िश हो ज य । ऐस सतरी-प रषोकी नीद श नत और लन:सिपन होती ह । लजतन समय ख लम महनत करनको

लमल, उतन ही अचछ ह । लजनह ऐसी महनत करनको न लमल, उनह अचक रपस कसरत करनी च लहय ।

उिमस उिम कसरत ह ख ली हि म तजीस घमन । घमत समय म ह बनद होन च लहय और न कस ही शव स

लन च लहय । चलत, बठन य चलन आलसयकी लनश नी ह । आलसयम तर लिक रक पोषक होत ह ।

आसन भी इसम उपयोगी लसययद होत ह । लजसक ह थ, पर, आख, क न, न क, जीभ इतय लद इलनिय अपन

योगय क यण योगय रीलतस करती ह, उसकी जननलनिय कभी उपिि करती ही नही । म आश रखत ह ा लक मर

इस अन भि-ि कयको सब कोई म नग ।

4. जस आह र िस ही आक र । जो मन षय अतय ह री ह, जो मन षय आह रम कोई लििक य मय णद ही नही

रखत , िह अपन लिक रोक ग ल म ह । जो सि दको नही जीत सकत , िह कभी भी लजतलनिय नही हो सकत

। इसललए मन षयको य कत ह री और अलप ह री बनन च लहय । शरीर आह रक ललए नह । आह र शरीरक

ललए ह । शरीर आपन-आपको पहच ननक ललए हम लमल ह । अपन-आपको पहच नन अथ णत ईशवरको

पहच नन । इस पहच नको लजसन अपन परम लिषय बन य ह, िह लिक रिश नही होग ।

5. परतयक सतरी को म त , बहन य प तरीकी तरह दखन च लहय । कोई प रष अपनी म , बहन य प तरीको कभी

लिक री दलिस नही दखग । सतरी परतयक प रषकी अपन लपत , भ ई य प तरकी तरह दख ।

इन प च लनयमोम सब लनयमोक सम िश हो ज त ह । अपन दसर लखोम मन इसस अलधक लनयम लदय ह ।

मगर उन सबक सम िश इन प चम हो ज त ह । इन लनय मोक प लन करनि लक ललए मह न लिक रको

जीतन बहत सरल हो ज न च लहए । लजस बरहमचयण-वरतक प लनकी लगन लगी ह, िह ऐस म नकर लक यह

तो असभि ब त ह य यह म नकर लक इसक प लन करोडोम कोई लबरल ही कर सकत ह, अपन परयतन नही

छोडग । जो रस बरहमचयणक प लनम ह, िह दसरी लकसी चीजम नही ह । और जो मन षय लिक रक ग ल म ह,

उसक शरीर सिणथ लनरोग नही रह सकत ।

कलतरम उप य: अब कलतरम उप योक लिषयम क छ कह दा । लिषय-भोग करत हए भी कलतरम उप योक दव र

परजोतपलि रोकनकी परथ प र नी ह । मगर पिणक लम िह ग पत रपम चलती थी । आध लनक सभयत क इस

जम नम उस ऊ च सथ न लमल ह और कलतरम अप योकी रचन भी वयिलसथत तरीकस की गयी ह इस परथ को

परम थणक ज म पहन य गय ह । इन उप योक लहम यती कहत ह लक भोगचछ तो सि भ लिक िसत ह,

श यद उस ईशवरक िरद न भी कह ज सकत ह । उस लनक ल ि कन अशकय ह । उस पर सयमक अक श

रखन कलठन ह । और अगर सयम लसि दसर कोई उप य न ढढ ज य, तो असखय लसतरयोकललए परजोतपलि

आरोगय की क जी

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बोझरप हो ज यगी; और भोगस उतपनन होनि ली परज इतनी बढ ज यगी लक मन षय-ज लतक ललए परी ख र क

ही नही लमल सकगी ।

इन दो आपलियोको रोकनक ललए कलतरम उप योकी योजन करन मन षयक धमण हो ज त ह । लकनत म झ पर

इस दलीलक असर नही हआ ह, कयोलक इन उप योक दव र मन षय अनक दसरी म सीबत मोल ल लत ह ।

मगर सबस बड न कस न तो यह ह लक कलतरम उप योक परच रस सयम-धमणक लोप हो ज नक भय पद होग

। इस रतनको बचकर च ह जस त तक ललक ल भ लमल, तो भी यह सौद करन योगय नही ह । मगर यह म

दलीलम नही उतरन च हत । लजजञ स को मरी सल ह ह लक िह ‘अनीलतकी र ह पर'* न मक मरी प सतक पढ

और उसक मनन कर । ब दम जस उसक हदय और ब लययद कह िस कर । लजनह यह प सतक पढनकी इचछ

य अिक श न हो, ि भलकर भी कलतरम उपयोक नजलदक न िटक । ि लिषय-भोगक तय ग करनक भगीरथ

परयतन कर और लनदोष आननदक अनक ितरोम स थोड पसनद कर ल । ऐसी परिलिय ढढ ल लजनस सचच

दपती-पम श ययद म गण पर लग ज य दोनोकी उननलत हो और लिषय-ि सन क सिनक अिक श ही न लमल ।

दपती ययद तय गक थोड अभय स करनक ब द इस तय गक भीतर जो रस भर पड ह, िह उनह लिषय-भोगकी

ओर ज न ही नही दग । कलठन ई आतम-िचन स पद होती ह । इसम तय गक आरमभ लिच र-श लययदस नही

होत , किल ब हयच रको रोकनक लनषिल परयतनस होत ह । लिच रकी दढत क स थ आच रक सयम श र

हो, तो सिलत लमल लबन रह ही नही सकती । सतरी-प रषकी जोडी लिषय-सिनक ललए हरलगज नही बनी ह ।

*ससता साहितय मडल, नई हिलली स परकाहित । इसका मल गजराती ससकरण ‘नीहत हिनािन माग' निजीिन

टरसटन परकाहित हकया ि

आरोगय की क जी

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दसरा भाग

1. पथवी अराथत नमटटी

य परकरण ललखनक मर हत यह बत न ह लक नसलगणक उपच रोक जीिनम कय महतति ह और मन उनक

उपयोग लकस तरहस लकय ह । इस लिषय पर क छ तो लपछल परकरणोम कह ज च क ह ।

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यह ि ब त म झ क छ लिसत रस कहनी ह । लजन तततिोस यह मन षयरपी प तल बन ह, ि ही नसलगणक

उपच रोक, स धन ह । पथिी(लमटटी), प नी आक श (अिक श), तज(सयण) और ि य स यह शरीर बन ह । इन

स धनोक उपयोग यह िमस बत नकी मन कोलशश की ह ।

सन 1901 तक म झ कोई भी वय लध होती थी, तो म डॉकटरोक प स भ गत तो नही ज त थ , मगर उनकी

दि क थोड उपयोग कर लत थ । एक-दो चीज तो म झ सिगीय डॉकटर पर णजीिन महत न बत ई थी । म

एक छोटस असपत लम क म करत थ । क छ अन भि म झ िह स लमल और क छ पढनस । म झ ख स तकलीि

कलबजयतकी रहती थी । उसक ललए समयसमय पर म ि ट सॉलट लत थ । उसस क छ आर म तो लमलत थ ,

मगर कमजोरी म लम होती थी, लसरम ददण होन लगत थ और दसर भी छोट-मोट उपिि होत रहत थ । इसललए

डॉकटर पर णजीिन महत की बत ई हई दि लोह (ड यल इजड आयरन) और नकसिोलमक म लन लग । दि

पर मर लिशव स बहत कम थ । इसललए ल च र हो ज न पर ही म दि लत थ । इसस म झ सतोष नही होत

थ ।

इस असम ख र कक मर परयोग तो चल ही रह थ । नसलगणक उपच रोम म झ क िी लिशव स थ । मगर इस ब रम

म झ लकसीकी मदद नही थी । इधर-उधरस जो क छ मन पढ ललय थ ,उसक आध र पर म खयत: भोजनम

िरबदल करक म क म चल लत थ । खब घम लत थ , इसललए ख ट पर कभी पडन नही पड । इस तरहस

मरी ढीली-ढ ली ग डी चल करती थी । ऐस समय स सटकी ‘ल रटनण ट नचर' न मकी प सतक भ ई पोल कन

म झ पढनको दी । ि ख द उसक उपच रोको क मम नही लत थ । ख र क ज सटन जो बत ई थी, िही क छ हद

तक ि लत थ । ललकन ि मरी आदतोको ज नत थ, इसललए उनहोन िह प सतक म झ दी । उसम ख स जोर लमटटी

पर लदय गय ह । म झ लग लक उसक उपयोग कर लन च लहय । ज सटन कलबजयतम लमटटीको ठड प नीम

भीगोकर बगर कपडक पड पर रखनकी सचन की ह । मगर मन तो एक ब रीक कपडम प ललटसकी तरह

लमटटीको लपट कर स री र त अपन पड पर रख । सबर उठ तो दसतको ह जम म लम हई । प ख न ज त ही

बध हआ सनतोषक री दसत हआ । यह कह ज सकत ह लक उस लदनस लकर आज तक ि ट सॉलटको मन

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श यद ही कभी छ आ होग । आिकयक म लम होन पर कभी अरडीक तल छोट पौन चममच सबर जरर ल

लत ह ा । लमटटीकी यह पटटी तीन इाच चौडी, छह इच लमबी और ब जरकी रोटीस दग नी मोटी य यह कहो लक

आध इच मोटी होती ह । ज सटक द ि ह लक लजस जहरील स पन क ट हो उस गढ खदकर उसम लमटटीस

ढककर स ल दनस जहर उतर ज त ह । यह द ि सचच स लबत हो य न हो, परत मन सिय लमटटीक ज परयोग

लकय ह, उनह यह कह द । मर अन भि ह लक लसरम ददण होत हो, तो लमटटीकी पटटी लसर पर रखनस बहत फ यद

होत ह । यह परयोग मन सकडो पर लकय ह । म ज नत ह लक लसर-ददणक अनक क रण हो सकत ह, परनत

स म नयत: यह कह ज सकत ह लक लकसी भी क रणस लसरम ददण कयो न हो, लमटटीकी पटटी लसर पर रखनस

त तक ललक ल भ तो होत ही ह । स म नय िोड-ि नसीको भी लमटटी लमट ती ह । मन तो बहत हए िोड परभी

लमटटी रखी ह । ऐस िोड पर लमटटी रखनस पहल म स ि कपडको परमगनटको ग ल बी प नीम लभगोत ह ा,

िोडको उसस स ि करत ह ा और लिर उस पर लमटटीकी प ललटस रखत ह ा । इसस अलधक श िोड लमट ही

ज त ह । लजन पर मन यह परयोग लकय ह, उनम स एक भी कस लनषिल रह हो ऐस म झ य द नही आत । बरण

िगर क डक पर लमटटी त रनत ि यद करती ह । लबचछ क उपिि आय लदनकी ब त हो गयी ह । लबचछक लजतन

इल जोक पत लग ह, ि सब इल ज सि गर मम आजम कर दख गय ह । मगर उनम स लकसीको भी अचक

नही कह ज सकत । लमटटी उनम लकसीस कम स लबत नही हई ।

सखत ब ख रम लमटटीक उपयोग पड पर रखनक ललए और लसरम ददण हो,तो लसर पर रखनक ललए मन लकय ह

। म यह तो नही कह सकत लक इसस हमश ब ख र उतर ही ह, मगर रोगीको इसस श लत जरर लमली ह ।

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ट इि इडम मन लमटटीक खब परयोग लकय ह । यह ब ख र तो अपनी म ददत लकर ही ज त थ , मगर लमटटीस

रोगीको हमश श लत लमलती थी । सब रोगी ख द लमटटी म गत थ । सि गर म आशरमम ट इि ईड क दसक कस

हो च क ह । पर उनम स एक भी कस नही लबगड । सि गर मम अब ट ईि इडस लोग डरत नही ह । म कह

सकत ह ा लक एक भी कसम मन दि क उपयोग नही लकय । लमटटीक लसि दसर नसलगणक उपच रोको उपयोग

मन जरर लकय ह, मगर उनकी चच ण उनक सथ न पर कर ग ।

लमटटीक उपयोग सि गर मम एनटीपलोलजलसटनकी जगह पर छटस हआ ह । उसम थोड सरसोक तल और

नमक लमल य ज त ह । इस लमटटीको अचछी तरह गरम करन पडत ह । इसस िह लबलक ल लनदोष बन ज ती

ह ।

लमटटी कसी होनी च लहय, यह कहन अभी ब की ह । मर पहल पररचय तो अचछी ल ल लमटटीस हआ थ ।

प न लमल न पर उसम स स गध लनकलती ह । ऐसी लमटटी आस नीस नही लमलती । बमबई जस शहरम तो लकसी

भी तरहकी लमटटी प न मर ललए कलठन हो गय थ । लमटटी न मो बहत चीकनी होनी च लहय और न लबलक ल

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रतीली । ख दि ली तो हरलगज न होनी च लहय । िह रशमकी तरह म ल यम होनी च लहय और उसम क करी

लबलक ल न होनी च लहय । इस ललए उस ब रीक छलनीस छ न लन अचछ ह । लबलक ल स ि न लग तो उस

सक लन च लहय । लमटटी लबलक ल सखी होनी च लहय । गीली हो तो उस धपम य अगीठी पर सख लन

च लहय । स ि भ ग पर इसतम ल की हई लमटटी सख कर ब र-ब र इसतम ल की ज सकती ह । इस तरह

इसतम ल करनस लमटटीक कोई ग ण कम होत हो ऐस म नही ज नत । मन इस तरह लमटटीक कोई ग ण कम

होत हो ऐस म नही ज नत । मन इस तरह लमटटीक इसतम ल लकय ह और मर अन भिम यह नही आय लक

उसक कोई ग ण कम हआ ह । लमटटीक उपयोग करनि लोस मन स न ह लक जम न क लकन र जो पीली लमटटी

लमलती ह िह बहत ग णक री होती ह ।

लमटटी ख न : कय नन ललख ह लक स ि ब रीक सम िी रती दसत ल नक ललए उपयोगम ली ज ती ह । लमटटी लकस

तरह क म करती ह, इसक ब रम उनहोन बत य ह लक लमटटी पचती नही, उस कचर (refuse) तरह पटस ब हर

लनकलन ही होत ह । और अपन स थ िह मलको भी ब हर लनकलती ह । ललकन इसक मन तो कभी अन भि

नही लकय ह । इसललए जो लोग यह परयोग करन च ह, ि सोच-समझ कर ही कर । एक-दो ब र आजम कर

दखनम कोई न कस न होनकी सभ िन नही ह ।

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2. पािी

प नीक उपच र एक परलसययद और प र नी चीज ह । उसक ब रम अनक प सतक ललखी गयी ह । कय नन प नीक

उिम उपयोग ढढ लनक ल ह । कय नकी प सतक लहनद सत नम बहत परलसययद हई ह और उसक तज णम भी हम री

भ ष ओ म हआ ह । उसक सबस अलधक अन य यी आनर दशम लमलत ह । कय नन ख र कक ब रम भी क िी

ललख ह । मगर यह तो मर लिच र किल प नीक उपच रोक ब रम ही ललखनक ह ।

कय नन उपच रोम मयययलबनद कलट-सथ न और घषणण-सन न ह उनक ललए उसन ख स बरतनकी भी योजन की

ह । मगर उसकी ख स आिकयकत नही ह । मन षयक कदक अन स र तीसस छिीस इच गह र टब ठीक क म

दत ह । अन भिस जय द बड टबकी आिकयकत म लम हो, तो जय द बड ल सकत ह । उसम ठड प नी

भरन च लहय । गमीकी ित म प नीको ठड रखनकी ख स आिकयकत ह । प नीको त रनत ठड करनक ललए

य द लमल सक तो थोडी बरि ड ल सकत ह । समय हो तो लमटटीक घडम ठड लकय हआ प नी अचछी तरह

क म द सकत ह । टबम प नीक ऊपर एक कपड ढककर जलदी-जलदी पख करनस भी प नीको त रनत ठड

लकय ज सकत ह ।

टबको दीि रक स थ लग कर रखन च लहय और उसम पीठको सह र दनक ललए एक लमब लकडीक तखत

रखन च लहय, त लक उसक सह र लकर रोगी आर मस बठ सक । रोगीको अपन पर प नीस ब हर रखकर

टबम बठन च लहय । रोगीको आर मस टबम बठ कर पड पर नरम तौललयस धीर-धीर घषणण करन च लहय ।

प च लमनटस लकर तीस लमनट तक टबम बठ सकत ह । सन नक ब द गील लहससको सख कर रोगीको लबसतरम

स ल दन च लहय । यह सन न बहत सकषत ब ख रको भी उत र दत ह । इस तरह सन न लनम न कस न तो ह ही

नही, जब लक ल भ परतयि दख ज सकत ह । सन न भख पट ही लन च लहय । इसस कलबजयतको भी ि यद

होत ह । और अजीणण भी लमटत ह । सन न लनि लक शरीरम उसस सिलतण आती ह । कलबजयति लोको

सन नक ब द आध घट टहलनकी सल ह कय नन दी ह । इस सन नक मन बहत उपयोग लकय ह । म यह नही

कह सकत लक िह हमश ही सिल हआ ह, मगर इतन कह सकत ह ा लक सौम पच हिर ब र िह सिल

हआ ह । खब ब ख र च हआ हो, तब यलद रोगीकी लसथलत ऐसी हो लक उस टबम बठ य ज सक, तो उसस

दो-तीन लडगरी तक ब ख र अिकय उतर ज यग और सलननप तक भय लमट ज यग ।

इस सन नक ब रम कय नकी दलील यह ह : ब ख रक ब हरी लचहन भल क छ भी हो, मगर उसक आनतररक

क रण तो एक ही होत ह । आतोम इकटठ हए मलक जहरस य अनय क रणोस ब ख र उतपनन होत ह ।

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यह आतोक ब ख र – उनदरकी गमी – अनक रप लकरब हर परकट होत ह । यह आतररक ब ख र कलट-

सन नस अिकय लतरत ह और उसस ब हरक अनक उपिि श नत होत ह । म नही ज नत लक इस दलीलम

लकतन तथय ह । यह तो अन भिी डॉकटर ही बत सकत ह । डॉकटरोन यदयलप नसलगणक उपच रोम स कई एकको

अपन ललय ह, तो भी यह कह ज सकत ह लक ि इन पउच रोक लिषयम उद सीन रह ह । इसम म दोनो

पिोक दोष प त ह ा । डॉकटरोन डॉकटरीक लशिण - कनि Wम सीखी हई ब तो पर ही ययय न दनकी आदत

ड ल ली ह, इसललए ब हरकी चीजोक परलत ि लोग लतरसक र नही तो उद सीनत अिकय बत त ह । नसलगणक

उपच र करनि ल लोग डॉकटरोक परलत लतरसक र भ ि रखत ह । उनक प स श सतर rय जञ न बहत कम होत ह,

तो भी ि द ि बहत बड-बड करत ह । सघशलकतक उन उपच रकोम अभ ि रहत ह, कयोलक सब अपनअपन

जञ नकी पजीस ही सतोष म नत ह । इसललए कोई दो उपच रक स थ लमलकर क म नही कर सकत । लकसीक

परयोग गहर नही उतरत । बहतोम नमरत क भी अभ ि होत ह । (कय नमरत सीखी भी ज सकती ह?) यह सब

कहकर म नसलगणक उपच रकोको कोसन नही च हत , परनत िसत लसथलत बत रह ह ा । जब तक उन लोगोम

कोई अतयत तजसिी मन षय पद नही होत , तब तक यह लसथलत बदलनकी कम समभ िन ह । इस लसथलतको

बदलनकी लजममद री नसलगणक उपच रको पर ह । डॉकटरोक प स उनक अपन श सतर ह, अपनी परलतषठ ह,

अपन सघ ह और अपन लिदय लय भी ह । अम क हद तक उनह अपन क मम सिलत भी लमलती ह । उनस

यह आश नही रखनी च लहय लक एक अपररलचत चीजको, जो डॉकटरीकी म िण त नही आई ह, ि एक एक

गरहण कर लग ।

अब म घषणण-सन न पर आत ह ा । जननलनिय बहत न ज क इलनिय ह । उसकी ऊपरकी मचडीक लसरम क छ

अदभ त चीज ह । उसक िणणन करन म झ नही आत ह । इस जञ नक ल भ लकर कय नन कह ह लक इस

इलनियक लसर पर (प रष हो तो स प री पर चमडी चढ कर) नरम रम लको प नीम लभगोकर लघसत ज न च लहय

और प नी ड लत ज न च लहय । उपच रकी पययदलत यह बत ई गई ह : प नीक टबम एक सटल रख ज य ।

सटलकी बठक प नीकी सतहस थोडी ऊ ची होनी च लहय । इस सटल पर प ि टबस ब हर रखकर बठ ज न

च लहय और इलनियक लसर पर घषणण करन च लहय । उस तलनक भी तकलीि नही पहचनी च लहय । यह लिय

बीम र को अचछी लगनी च लहए । यह सन न लनि लको इस घषणणस बहत श लनत लमलती ह । उसक रोग भल

क छ भी हो, उस समय तो िह श नत हो ही ज त ह । कय नन इस सन नको कलट-सन नस भी ऊ च सथ न लदय

ह । म झ लजतन अन भि कलटसन नक ह, उतन घषणण सन नक नही ह । इसम म खय दोष तो म अपन ही म नत

ह ा । मन घषणण-सन नक परयोग करनम धीरजस इसक परयोग नही लकय । इसललए इस सन नक पररण मक ब रम

म लनजी अन भिस क छ नही ललख सकत । सबको इस सिय आजम कर दख लन च लहय । टब िगर न

लमल सक, तो लोटम प नी भरकर भी घषणण-सन न लकय ज सकत ह । उसस श लत तो अिकय ही लमलगी ।

लोग इस इलनियकी सि ई पर बहत कम ययय न दत ह । घषणण-सन नस िह आस नीस स ि हो ज ती ह । अगर

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ययय न न रख ज य, तो स प रीको ढकनि ली चमडीम मल भर ज त ह इस मलको स ि करनकी परी

आिकयकत ह । जननलनियक उपयोग घषणण-सन नक ललए करन और उस स िस थर रखनस बरहमचयण-प लनम

मदद लमलत ह । इसस आसप सक तनत मजबत और श नत बनत ह और इस इलनियक दव र वयथण िीयण-सखलन

न होन दनकी स िध नी बढती ह, कयोलक इस तरह सतर ि होन दनम जो गदगी रहती ह, उसक ललए हम र मनम

निरत पद होती ह, और होनी भी च लहय ।

इन दोनो ख स सन नोको हम कय न-सन न कह सकत ह । तीसर ऐस ही असर पद करनि ल चददर-सन न ह ।

लजस ब ख र आत हो य लकसी तरह भी नीद न आती हो, उसक ललए यह सन न उपयोगी ह ।

ख ट पर दो-तीन गरम कमबल लबछ न च लहय । य क िी चौड होन च लहय । इनक ऊपर एक मोटी सती चददर

– मोटी ख दीक खस – लबछ न च लहय । इस चददरको ठड प नीम लभगोकर और खब लनचोडकर कमबलो पर

लबछ न च लहय । इसक ऊपर रोगीको कपड उत रकर लचि स ल दन च लहय । उसक लसर कमबलोक ब हर

तलकय पर रखन च लहय और लसर पर गील लनचोड हआ तौललय रखन च लहय । रोगीको स ल कर त रनत

कमबलक लकन र और चददर च रो तरिस शरीर पर लपट दन च लहय । ह थ कमबलोक अनदर होन च लहय और

पर भी अचछी तरह चददर और कमबलोस ढक रहन च लहय, त लक ब हरक पिन भीतर न ज सक । इस लसथलतम

रोगीको एक-दो लमनटम ही गरमी लगनी च लहय । सदीक िलणक आभ सम तर स ल त समय होग , ब दम तो

रोगीको अचछ ही लगन च लहय । ब ख रन अगर घर न कर ललय हो, तो प चक लमनटम गमी लगकर पसीन

छटन लगग । परनत सखत बीम रीम मन आध घट तक रोगीको इस तरह गीली चददरम रख ह और अनतम उस

पसीन आय ह । कभी-कभी पसीन नही छटत , मगर रोगी सो ज त ह । सो ज य तो रोगीको जग न नही

च लहय । नीदक आन इस ब तक सचक ह लक उस चददर-सन नस आर म लमल ह । चददरम रखनक ब द

रोगीको ब ख र एक-दो लडगरी तो नीच उतरत ही ह । मर (दसर) लडकको डबल लनमोलनय हो गय थ और

सलननप त भी । ऐसी ह लतम मन उस चददर-सन न कर य । िह पसीनस तरबतर हो गय और तीन-च र लदन

इस तरह करनक ब द उसक ब ख र उतर गय । उसक ब ख र आलखर ट ईि इड लसययद हआ और 42 लदनक

ब द ही परी तरह उतर । चददर-सन न जब तक ब ख र 160 तक ज त थ तभी तक लदय गय । स त लदनक

ब द इतन सखत ब ख र आन बनद हो गय , लनमोलनय लमट गय और ट इि इडक रपम उस 103 तक ब ख र

रहन लग । हो सकत ह लक ब ख रक अश (लडगरी) क ब रम मरी समरण-शलकत म झ धोख दती हो । यह उपच र

मन डॉकटर लमतरोक लिरोध करक लकय थ । दि तो लबलक ल नही दी । आज मर च रो लडकोम िह लडक

सबस अलधक सिसथ ह और सबस अलधक शरम करनकी शलकत रखत ह ।

शरीरम घमोरी लनकली हई हो, लपिी (prickly heat) लनकली हई हो, आमि त (urticaria) लनकल हो,

बहत ख जली आती हो, खसर य चचक लनकली हो, तो भी यह चददर-सन न क म दत ह ।

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(16-12-’42)

मन इन सब रोगोम चददर-सन नक उपयोग छटस लकय ह । चचक य खसरम म प नीम ग ल बी रग आ ज य

इतन परमगनट ड लत थ । चददरक उपयोग हो ज न पर उस उबलत प नीम ड ल दन च लहय और जब प नी

क नक न हो ज य, तब उस अचछी तरह धोकर स ख लन च लहय ।

रकतकी गलत मनद पड गयी हो, य प ि टटत हो, तब बरि लघसनस बहत ि यद होत मन दख ह । बरिक

उपच रक असर गमीकी ित म अलधक अचछ होत ह । सदीकी ित म कमजोर मन षय पर बरिक उपच र

करनम खतर ह ।

अब गरम प नीक उपच रोक ब रम लिच र कर । गरम प नीक समझपिणक उपयोग करनस अनक रोग श नत

हो ज त ह । जो क म परलसययद दि आयोडीन करती ह, िही क म क िी हद तक गरम प नी कर दत ह ।

सजनि ल भ ग पर हम आयोडीन लग त ह । उस पर गरम प नीकी पटटी रखनस आर म होन सभि ह । क नक

ददणम हम आयोलडनकी ब द ड लत ह; उर म भी गरम प नीकी लपचक री लग नस ददण श त होनकी सभ िन ह

। आयोडीनक उपयोगम क छ खतर रहत ह, जब लक गरम प नी क उपच रम क छ भी नही । लजस तरह

आयोडीन जत न शक (disinfectant) ह, उसी तरह उबलत गरम प नी भी जनत न शक ह । इसक यह अथण

नही ह लक आयोडीन उपयोगी िसत नही ह । उसकी उपयोलगत क ब रम मर मनम तलनक भी शक नही ह ।

मगर गरीबक घरम आयोडीन नही होत । िह महगी चीज ह । िह हरएक आदमीक ह थम नही रख ज सकत

। मगर प नी तो हर जगह होत ह । इसललए हम दि क तौर पर उसक उपयोगकी अिगणन करत ह । ऐसी

अिगणन स हम बचन च लहय । ऐस घरल उपच रोको सीखकर और उनह अपन कर हम अनक भयोस बच

ज त ह ।

लबचछ क क टको जब दसरी लकसी लचजस फ यद नही होत , तब डकि ल भ गको गरम प नीम रखनस क छ

आर म तो लमलत ही ह ।

एक एक सदी लग, क पक पी चढन लग, तब रोगीको भ प दनस, य उस अचछी तरह कमबल ओढ कर उसक

च रो ओर गरम प नीकी बोतल रखनस उसकी क पक पी लमट यी ज सकती ह । सबक प स रबडकी गरम

प नीकी थली नही होती । क चकी मजबत बोतलम मजबत कॉकण लग कर उस गरम प नीकी थलीक तौर पर

इसतम ल लकय ज सकत ह । ध त की य दसरी बोतल बहत गरम हो, तो उस कपडम लपटकर इसतम ल

करन च लहय ।

भ पक रपम प नी बहत क म दत ह । पसीन न आत हो तो भ पक दव र ल य ज सकत ह । गलठय स

लजसक शरीर लनकमम बन गय हो, य लजनक वजन बहत बढ गय हो, उनक ललए भ प बहत उपयोगी िसत

ह ।

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भ प लनक प र न और आस नस आस न तरीक यह ह : सनकी य स तलीकी ख ट इसतम ल करन जय द

अचछ ह, मगर लनि रकी ख ट भी चल सकती ह । ख ट पर एक खस य कमबल लबछ कर रोगीको उस पर

स ल दन च लहय । उबलत प नीक दो पतील य हड ख टक नीच रखकर रोगीको इस तरह ढक दन च लहय ।

लक कमबल ख ट परस लटक कर च रो तरि जमीनको छ ल, त लक ख टक नीच ब हरकी हि ज ही न सक

। इस तरहस लपटनक ब द प नीक पतीलो य हडो परस ढकन उत र दन च लहय । इसस रोगीको भ प लमलन

लगगी । अचछी तरह भ प न लमल, तो प नीको बदलन होग । दसर हडम प नी उबलत हो, तो उस ख टक

नीच रख दन च लहय ।

(17-12-’42)

स ध रणतय हम लोगोम यह ररि ज ह लक हम ख टक नीच अग र रखत ह और उसक ऊपर उबलत हए

प नीक बरतन । हस तरह प नीक गमी क छ जय द तो लमल सकती ह, मगर इसम द घणटन क डर रहत ह ।

एक लचनग री भी उड और कमबल य लकसी दसरी चीजको अगर ल ग लग ज य, तो रोगीकी ज न खतरम पड

सकती ह । इसललए त रनत ही गमी प नक लोभ छोडकर जो तर क मन बत य ह उसीक उपयोग करन जय द

अचछ ह ।

क छ लोग भ पक प नीम िनसपलतय ड लत ह, जस लक नीमक पि । म झ सिय इसकी उपयोलगत क अन भि

नही ह, मगर भ पक उपयोग लो परतयि ही ह । यह हआ पसीन ल नक तरीक ।

प ि ठड हो गय हो य टटत हो, तो एक गहर बरतनम, लजसम लक घ टन तक प ि पहच सक , सहन होन ल यक

गरम प नी भरन च लहय और उसम र ईकी भ ककी ड लकर क छ लमनट तक प ि रखन च लहय । इसस ठड प ि

गरम हो ज त ह, बचनी और प िोक टटन बनद हो ज त ह, खन नीच उतरन लगत ह और रोगीको आर म

म लम होत ह । बलगम हो य गल द खत हो, तो कटलीको एक सिततर नली लग कर उसक दव र आर मस

भ प ली ज सकती ह । यह नली लकडीकी होनी च लहय । इस नली पर रबडकी नही लग लनस क म और

भी आस न हो ज त ह ।

आरोगय की क जी

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3. आकाश

आक शक जञ नपिणक उपयोग हम कमस कम करत ह । उसक जञ न भी हम कमस कम होत ह । आक शको

अिक श क ह ज सकत ह । लदनम अगर ब दल न हो, तो ऊपरकी ओर दखन पर एक अतयनत सिचछ, स दर,

आसम नी रगक श लमय न नजर आत ह । उस श लमय नको हम आक श कहत ह । इसक दसर न म

आसम न ह न? इस श लमय नक कोई ओर-छोर दखनम नही आत । िह लजतन हमस दर ह, उतन ही हम र

नजदीक भी ह । हम र च रो ओर आक श न हो, तो हम र ख तम ही हो ज य । जह क छ भी नही ह िह

आक श ह । इसललए यह नही समझन च हय लक दरदर जो आसम नी रग दखनम आत ह, लसिण िही आक श

ह । आक श तोहम र प सस ही श र हो ज त ह । इतन ही नही, िह हम र भीतर भी ह । ख लीपन अथि

शनय (vacuum)को हम आक श कह सकत ह । मगर सच ह लक हम हि को दख नही सकत । मगर हि क

रहनक लठक न कह ह? हि आक शम ही लिह र करती ह न? इसललए आक शस हम अलग हो ही नही

सकत । हि को तो बहत हद तक पमप दव र खीच भी ज सकत ह, मगर आक शको कौन खीच सकत ह?

यह सही ह लक हम आक शको भर दत ह । मगर कयोलक आक श अननत ह, इसललए लकतन भी शरीर कयो न

हो, सब उसम सम ज त ह ।

इस आक शकी मदद हम आरोगयकी रि क ललए और उस खो च क हो तो लिरस पर पत करनक ललए लनी

हखख जीिनक ललए हि की सबस अलधक आिकयकत ह, इसललए िह सिण-वय पक ह । मगर हि दसरी

चीजोक ग क बलम वय पक तो ह, पर अननत नही ह । भौलतकश सतर हम लसख त ह पथिीस अम क मील ऊपर

चल ज य, तो िह हि नही लमलती । ऐस कह ज त ह लक इस पथिीक पर लणयो जस पर णी हि क आिरणस

ब हर रह ही नही सकत । यह ब त सच हो य न हो, हम इतन ही समझन ह लक आक श जस यह ह, िस ही

िह हि क आिरणस ब हर भी ह । इसललए सिण-वय पक तो आक श ही ह, लिर भल िजञ लनक लोग लसययद

लकय कर लक उस आिरणक ऊपर ‘ईशवर'न मक पद थण य क छ और ह । िह पद थण भी लजसक भीतर रहत

ह िह आक श ही ह । दसर शबदोम यह कह ज सकत ह लक अगर हम ईशवरक भद ज न सक ,तो आक शक

भद भी ज न सक ग ।

ऐस मह न तततिक अभय स और उपयोग लजतन हम करग, उतन ही अलधक आरोगयक उपभोग कर सक ग ।

पहल प ठ तो यह ह लक इस स दर और अदर तततिक और हम र बीचम कोई आिरण नही आन दन च लहय ।

अथ णत यलद घरब रक लबन , अथि कपडोक लबन हम इस अननतक स थ समबध जोड सक तो हम र शरीर,

ब लययद और आतम परी तरह आरोगयक अन भि कर सक ग । इस आदशण तक हम भल ही न पहच सक , य

करोडोम एक ही पहच सक, तो भी इस आदशणको ज नन , इस समझन और इसक परलत आदर-भ ि रखन

आिकयक ह । और यलद यह हम र आदशण हो, तो लजस हद तक हम इस पर पत कर सक ग, उसी हद तक हम

आरोगय की क जी

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स ख, श लनत और सनतोषक अन भि कर सक ग । इस आदशणको म आलखरी हद तक पश कर सक , तो म झ

यह कहन पडग लक हम शरीरक अनतर य भी नही च लहय, अथ णत शरीर रह य ज य, इस ब रम हम तटसथ

रहन च लहय । मनको हम इस तरहक लशिण द सक , तो शरीरको लिषय-भोगक स धन तो कभी नही बन यग

। तब अपनी शलकत और अपन जञ नक अन स र हम अपन शरीरक सद पयोग सि क ललए, ईशवरको पहच ननक

ललए, उसक जगतको ज ननक ललए और उसक स थ ऐकय स धनक ललए करग ।

इस लिच रसरणी क अन स र घरब र, िसतरलदक उपयोगम हम क िी अिक श रख सकत ह । कई घरोम इतन

स ज-सम न दखनम आत ह लक मर जस गरीब आदमीक तो उसम दम ही घ टन लगत ह । उन सब चीजोक

जीिनम कय उपयोग ह, िह तो म खो ही ज त ह । यह की क लसणय , मज, अलम ररय और शीश म झ ख नको

दौडत ह । यह क कीमती क लीन किल धल इकटठी करत ह और सकषम जनत ओ क घर बन हए ह । एक ब र

एक क लीनको झ डनक ललए लनक ल गय थ । िह एक आदमीक क म नही थ । छह-स त आदमी उसम

लग । कमस कम दस रतल धल तो उसम स लनकली ही होगी । जब उस ि पस उसकी जगह रख गय , तो

उसक सपशण नय ही म लम हआ । ऐस क लीन रोज थड ही लनक ल ज सकत ह? अगर लनक ल ज य तो

उनकी उमर कम हो ज यगी और महनत बढगी । यह तो म अपन त ज अन भि ललख गय । मगर आक शक

स थ मल स धनक ख लतर मन अपन जीिनम अनक झझट कम कर ड ली ह । घरकी स दगी, िसतरकी स दगी

ओर रहन-सहनकी स दगीको बढ कर,एक शबदम कह ा, और हम र लिषयस समबनध रखनि ली भ ष म कह ा,

तो मन अपन जीिनम उिर िर ख लीपनको बढ कर आक शक स थ सीध समबनध बढ य ह । यह भी कह

ज सकत ह लक जस-जस यह समबनध बढत गय , िस-िस मर आरोगय भी बढत गय , मरी श लनत बढती

गई,सनतोष बढत गय और धनचछ लबलक ल मनद पडती गई । लजसन आक शक स थ समबनध जोड ह,

उसक प स क छ नही ह, और सब-क छ ह । अनतम तो मन षय उतनक ही म ललक ह न, लजतनक िह परलतलदन

उपयोगस िह आग बढत ह । सब कोई ऐस कर तो इस आक श-वय पी जगतम सबक ललए सथ न रह और

लकसीको तगीक अन भि ही न हो ।

इसललए मन षयक सोनक सथ न आक शक नीच होन च लहय । ओस और सदीस बचनक ललए हम क िी

ओढनको रख सकत ह । िष ण ित म एक छ तकी सी छत भल ही रह, मगर ब की हर समय उसकी छत

अगलणत त र गणोस जड हआ आक श ही होग । जब आख ख लगी, िह परलतिण नय -नय द कय दखग ।

इस दकयस िह कभी भी ऊबग नही ।

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(18-12-’42)

इसस उसकी आख चौलधय एगी नही बललक ि शीतलत क अन भि करगी । त र गणोक यह भवय सघ उस

घमत ही लदख ई दग । तो मन षय उनक स थ समपकण स धकर सोयग , उनह अपन हदयक स िी बन यग ,

िह अपलितर लिच रोको कभी अपन हदयम सथ न नही दग और श नत लनि क उपभोग करग ।

परत लजस तरह हम र आसप स आक श ह, उसी तरह हम र भीतर भी िह ह । चमडीक एक-एक लछिम और

दो लछदोक बीचकी जगहम भी आक श ह । इस आक शको - अिक शको - भरनक हम जर भी परयतन न

कर । इसललए आह र लजतन आिकयक हो उतन ही यलद हम ल तो शरीरको अिक श रहग । हम इस ब तक

हमश भ न नही रहत लक हम कब अलधक य अयोगय आह र कर लत ह । इसललए अगर हम हपतम एक लदन

य पखि रम एक लदन य स लिध स उपि स कर, तो शरीरक सनत लन क यम रख सकत ह । जो पर लदनक

उपि स न कर सक , ि एक य एकस अलधक िकत क ख न छोडनस भी ल भ उठ यग ।

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4. तज

जस आक श, हि , प नी आलद तततिोक लबन मन षयक लनि णह नही हो सकत , िस ही तज अथ णत परक शक

लबन भी नही हो सकत । परक श-म तर सयणस लमलत ह । सयण नही हो तो न तो हम गमी लमल सक, न परक श

। इस परक शक हम पर उपयोग नही करत, इसललए पणण आरोगयक भी हम अन भि नही करत । जस हम

प नीक सन न करक स ि होत ह, िस ही सयण-सन न करक भी हम स ि और तनद रसत हो सकत ह । द बणल

मन षय य लजसक खन सख गय हो, िह यलद पर पतक लक सयणकी लकरण नग शरीर पर ल, तो उसक चहरक

िीक पन और द बणलत दर हो ज यगी और प चन-लिय यलद मदहो तो िह ज गरत हो ज यगी । सिर जब धप

जय द न चढी हो, उस िकत यह सन न करन च लहय । लजस नग शरीर लटन य बठनम सदी लग, िह आिकयक

कपड लट य बठ और जस-जस शरीर सहन करत ज य िस-िस कपड हट त ज य । हम नग बदन धपम

टहल भी सकत ह । कोई दख न सक ऐसी जगह ढढकर यह लिय की ज सकती ह । अगर ऐसी सह ललयत

पद करनक ललए दर ज न पड और इतन समय न हो तो ब रीक लगोटीस ग हय भ गोको ढककर सयण-सन न

ललय ज सकत ह ।

इस परक र सयण-सन न लनस बहतस लोगोको ल भ हआ ह । िय रोगम इसक खब उपयोग होत ह । सयण-

सन न अब किल नसलगणक उपच रकोक लिषय नही रह । डॉकटरोकी दखरखक नीच ऐस मक न बन य गय

ह। जह ठडी हि म क चकी ओटन सयण-लकरण सिन लकय ज सकत ह ।

कई ब र िोडक घ ि भरत ही नही ह । पर अस सयण-सन न लदय ज य तो िह भर ज त ह ।

पसीन ल नक ललए मन रोलगयोको गय रह बजकी जलती धपम स ल य ह । इसस रोगी पसीनस तरबतर हो

ज त ह । इतनी तज धपम स ल नक ललए रोगीक लसर पर लमटटीकी पटटी रखनी च लहय । उस पर कलक य दसर

बड पि रखन च लहय, लजसस रोगीक लसर ठड और स रलित रह । लसर पर तज धप कभी नही लनी च लहय ।

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5. वाय – हवा

जस पहल ततति उपयोगी ह िस ही यह प चि ततति भी उतयनत उपयोगी ह । लजन प ाच तततिोक यह मन षय-

शरीर बन ह, उनक लबन मन षय लटक ही नही सकत । इसललए ि य स लकसीको डरन नही च लहय । आम तौर

पर हम जह कही ज त ह, िह घरम ि य और परक शक परिश बनद करक आरोगयको खतरम ड लत ह । सच

तो यह ह लक यलद हम बचपनस ही हि क डर न रखन सीख हो, तो शरीरको हि सहन करनकी आदत हो

ज ती ह और ज क म, बलगम इतय लदस हम बच ज त ह । हि क परकरणम इस ब रम ल ललख च क ह ा । इसललए

ि य क लिषयम यह अलधक कहनकी आिकयकत नही रहती ।