vsu2avsu2a - Vasudha, Editor/Publisher: Dr. Sneh …EDITOR-PUBLISHER : Dr. Sneh Thakore – Awarded...

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EDITOR EDITOR EDITOR EDITOR - - - - PUBLISHER PUBLISHER PUBLISHER PUBLISHER : : : : Dr. Sneh Thakore Dr. Sneh Thakore Dr. Sneh Thakore Dr. Sneh Thakore Awarded By The President Of India Awarded By The President Of India Awarded By The President Of India Awarded By The President Of India Limka Book Record Holder Limka Book Record Holder Limka Book Record Holder Limka Book Record Holder VASUDHA VASUDHA VASUDHA VASUDHA A CANADIAN PUBLICATI A CANADIAN PUBLICATI A CANADIAN PUBLICATI A CANADIAN PUBLICATI ON ON ON ON Year 14, Issue 55 Year 14, Issue 55 Year 14, Issue 55 Year 14, Issue 55 July July July July-Sept., 2017 Sept., 2017 Sept., 2017 Sept., 2017 kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka kEneDa se p/kaixt saihiTyk pi5ka vsu2a vsu2a vsu2a vsu2a s.padn v p/kaxn s.padn v p/kaxn s.padn v p/kaxn s.padn v p/kaxn MkW- Sneh #akur Sneh #akur Sneh #akur Sneh #akur wart ke ra*3 wart ke ra*3 wart ke ra*3 wart ke ra*3^ ^ ^ ^ pit μara purS¡t pit μara purS¡t pit μara purS¡t pit μara purS¡t ilMka buk irka ilMka buk irka ilMka buk irka ilMka buk irka$ $ $ $ DR ho DR ho DR ho DR hoLDr LDr LDr LDr v8R ÉÌ - A.k ÍÍ, jula{-istMbr ÊÈÉÏ

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  • मैं और त ूदो तो नहीं

    पद्मश्री डॉ. श्याम सिंह शशश

    मेरे दशे

    तेरा चप्पा-चप्पा मेरा शरीर ह ै

    तेरा जल मेरा मन ह ै

    तेरी वायु मेरी आत्मा ह ै

    इन िंबिंे शमलकर ही

    तू बनता ह ैमेरे दशे

    मैं और तू दो तो नहीं ह।ै

    शरीर आत्मा मन

    एक ही प्राणी के

    स्थूल या िंूक्ष्म अंग ह ै

    मैं इन्हें बँटने नहीं दूगँा

    मैं इन्हें लुटने नहीं दूगँा

    मैं इन्हें शमटने नहीं दूगँा।

  • 14, 55 2017 1

    डॉ. (पोस्ट-डॉक्टरल फ़ेलोशिप अवाडी)

    भारत के राष्ट्रपशत द्वारा राष्ट्रपशत भवन में "शिन्दी सेवी सम्मान" से सम्माशनत

    संपादकीय २

    सरस्वती वंदना डॉ. अ. कीर्तिवर्िन ४

    लाल ककला स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक डॉ. सत्यभूषण वन्दोपाध्याय ५

    ग़ज़ल डॉ. दीपंकर गुप्त ७

    आशिरी भूल कंचन पाठक ८

    आज र्ूप आई ि ै राजेश्वरी जोिी १४

    शवश्वव्यापी भारतीय संस्कृशत रघूत्तम िुक्ल १६

    आनंद िो गया कशव आनन्द १८

    सांध्य गीत डॉ. सत्येन्र श्रीवास्तव १९

    आप स्वाशभमानी िैं या अशभमानी

    अपने आप को परशिये सुिील कुमार िमाि २०

    बाररि शतलक िमाि २२

    मुसीबतों के पिाड़ और एक अदद अशभनेता डॉ. िरीि नवल २४

    एक शवलक्षण अनुभूशत डॉ. दीशप्त गुप्ता २८

    पतंग मदन लाल गुप्ता ३०

    कटी पतंग मनोिर कुमार झा ३३

    िादसा डॉ. िरीि कुमार ३४

    उर्ेड़-बुन िकंुतला बिादरु ३७

    क्यों तू द:ुि से वृथा डरे! मिाकशव गुलाब िंडलेवाल ३९

    भाषा का मित्व आचायि बलवन्त ४०

    रशममद्वार िोलें डॉ. सुमेर ससिं 'िैलेि' ४४

    मैं और तू दो तो निीं पद्मश्री डॉ. मयाम ससंि िशि १अ

    डॉ. स्निे ठाकुर का रचना ससंार ४४ अ

    16 Revlis Crescent, Toronto, Ontario M1V-1E9, Canada. TEL. 416-291-9534 Annual subscription..........$25.00, . .

    By Mail, Canada & USA.........$35.00, Other Countries........$40.00

    Website: http://www.Vasudha1.webs.com

    e-mail: [email protected]

  • 14, 55 2017 2

    यि मेरा सौभाग्य ि ै कक मुझे अपनी शप्रय, आदरणीय अम्मााँ की अध्याशत्मक जीवनी "नाकंडा

    अम्मााँ" शलिने का सुअवसर शमला शजससे न केवल उनके भक्त वरन् अन्य लोग भी लाभाशन्वत हुए और

    िनुमान जी की कृपा व अम्मााँ के आिीवािद से "नाकंडा अम्मााँ" का शद्वतीय संस्करण भी प्रकाशित िो

    गया.

    "अंतरािष्ट्रीय सियोग पररषद ्भारत" ने २०-२२ अपै्रल को "इशन्दरा गााँर्ी राष्ट्रीय कला कें र" के

    संयुक्त तत्वार्ान एवं "भारतीय सांस्कृशतक सम्बंर् पररषद"् के सियोग से "अनुबंशर्त श्रम की व्यवस्था

    के उन्मूलन का िताब्दी वषि" आयोशजत कर एक भव्य समारोि का आयोजन ककया शजसमें शवशभन्न दिेों

    के गणमान्य अशतशथयों के साथ कैनेडा से मुझे आमंशत्रत ककया. आभार एवं र्न्यवाद. आयोजन अपन े

    लक्ष्य में सफल रिा. शवशभन्न शवभूशतयों की शवचार-शृ्राँिलाओं के आदान-प्रदान ने सभागार को

    अनुप्राशणत कर एक पल के शलए भी शनष्प्प्रभ न िोन े कदया. इस आयोजन से जुड़ ेसभी व्यशक्त इसकी

    सफलता ितेु प्रिंसा के पात्र िैं. उनकी कमिठता ने िी इस आयोजन को सफलता के अंशतम सोपान पर

    चढ़ा इसमें चार चााँद जड़ इस ेशवभूशषत ककया.

    यि मेरे शलए िषि का शवषय ि ै कक शवश्व में फैले तीन करोड़ भारतवंिी रोमाओं के एकमात्र

    वचुिअल इंस्टीट्यूट, इंटरनेिनल रोमा कल्चरल यूशनवर्सिटी से जिााँ रोमानी स्टडीज़ में मुझे सवि-प्रथम

    मानद डॉक्टरेट स ेसम्माशनत िोने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था, विीं अब शवश्वशवद्यालय अध्यक्ष-मण्डल के

    चेयरमैन पद्मभूषण तथा ज्ञानपीठ पुरस्कार से अलंकृत, ससं्कृत साशित्य के शवश्वशवख्यात शवद्वान प्रो. डॉ.

    सत्यव्रत िास्त्री एवं संस्थान के कुलाशर्पशत पद्मश्री नृवैज्ञाशनक, कशव, प्रो. डॉ. मयाम ससंि िशि द्वारा

    "पोस्ट-डॉक्टरल फ़ेलोशिप" प्रदान ककया गया ि.ै जिााँ यू.एन. संबद्ध इस संस्था द्वारा इसकी पिली

    मानद डॉक्टरेट शडग्री से मुझे नवाज़ा गया विीं इसके द्वारा इसकी सवि-प्रथम "पोस्ट-डॉक्टरल

    फ़ेलोशिप" से भी मुझे सम्माशनत ककया गया. इस सम्मान ितेु शवश्वशवद्यालय अध्यक्ष-मण्डल के सभी

    पदाशर्काररयों की आभारी हाँ. इस अवसर पर मेरे पशत श्री सत्य पाल ठाकुर, कदल्ली शवश्वशवद्यालय की

    पूवि प्रो. श्रीमती ऊषा िास्त्री, इंटरनेिनल गुड शवल सोसायटी कदल्ली चैप्टर के अध्यक्ष श्री राम

    मेिरोत्रा, रोमा शवश्वशवद्यालय की वररष्ठ सीनेट सदस्य तथा कदल्ली शवश्वशवद्यालय की पूवि प्रो.

    (इशतिास) डॉ. सुर्ा त्यागी, शनदिेक रोमा शवश्वशवद्यालय (सर्बिया भारत) प्रो. डॉ. ऋचा ससंि, शिक्षा

    भवन की प्रो. डॉ. ममता ससिं, डॉ. सरेुि त्यागी तथा ठाकुर एस.पी. ससंि आकद उपशस्थत थे. सभी का

    र्न्यवाद सशित आभार.

    नागरी शलशप पररषद ्के कमिठ मिामंत्री डॉ. िरर ससंि पाल, अध्यक्ष एवं प्रशसद्ध भाषाशवद ्डॉ.

    परमानंद पांचाल तथा संरक्षक, भारत सरकार के प्रकािन शवभाग के पूवि मिाशनदिेक पद्मश्री

    नृवैज्ञाशनक, कशव, प्रो. डॉ. मयाम ससंि िशि द्वारा अनेकानेक गणमान्य साशित्यकारों, भाषा-पे्रशमयों की

    उपशस्थशत में मुझ,े नागरी शलशप के प्रचार-प्रसार एवं सवंर्िन में सकिय तथा शवशिष्ट योगदान के शलए

    "नागरी सम्मान" स ेसम्माशनत ककया गया. पररषद ्एवं समारोि में उपशस्थत सभी का स्वयं के प्रशत

    ककए गए इस शवश्वास िते ुिार्दिक आभार एवं र्न्यवाद.

    साशित्य अकादमेी, रवीन्र भवन, कदल्ली के संपादक शिन्दी, कुमार अनुपम जी के प्रशत प्रवासी

    मंच के अंतगित रचना-पाठ आमंत्रण ितेु आभारी हाँ. साशित्य अकादमेी के पदाशर्काररयों एवं सभी

    उपशस्थत शिन्दी पे्रशमयों-ममिज्ञों ने साशित्य की अनेक शवर्ाओं से प्रस्तुत की गईं मेरी रचनाओं को

    ध्यानपूविक, पे्रमपूविक सुनकर मेरा उत्सािवर्िन ककया. िम प्रवाशसयों का जब अपने दिे में ऐसी स्नेशिल

    करतल-ध्वशन स ेस्वागत िोता ि ैतो हृदय का आनंकदत िोना, गदगद ्िोना स्वाभाशवक ि.ै ऐसी प्रदत्त

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    आनंदानुभूशत ितेु ककन िब्दों में सभी का िार्दिक आभार प्रगट कराँ , हृदय समझ निीं पा रिा ि ैपर

    मशस्तष्प्क को भी तो स्वयं का र्मि शनबािना ि,ै अत: सभी के सौिारि का िार्दिक र्न्यवाद, आभार.

    भारत की इस यात्रा के दौरान, िर भारत-यात्रा की भााँशत िी इस बार भी श्री उपेन्र नाथ का

    पुत्रवत् िर पररशस्थशत में पूणिकाशलक सियोग प्राप्त हुआ. पुत्रवत् मानती हाँ अत: ईश्वर की इस अनूठी

    अनुकम्पा िते ुठाकुर सािब व मेरी ओर से पुत्र उपेन्र, उनकी सिर्र्मिणी अपनी बह निेा व उनके पुत्र व

    अपने पौत्र अथवि को हृदयािीष मंगलकामना. उपेन्र के सौजन्य से िी शमले सचंतन गेस्ट िाउस के सभी

    पदाशर्काररयों को ठाकुर सािब व मेरी स्नेिािीष शजन्िोंने अशथशतगृि को गृि में पररवर्तित कर कदया.

    मेरे उपन्यास "श्रीरामशप्रया सीता" के प्रकािन और उसके प्रशत सभी शितैशषयों की भाव-भीनी

    िुभकामनाओं ितेु िार्दिक आभार. आप सबकी पे्ररणादायक मंगलकामनाओं को अपनी अमूल्य शनशर्-

    स्वरप आाँचल में सिजे शलया िै. कृतज्ञ हाँ. ईश्वर से प्राथिना ि ैकक यि मेरा नया उपन्यास "श्रीरामशप्रया

    सीता" भी श्रीराम कृपा एवं सभी शितशैषयों की िुभकामनाओं से मेरे पिले के दो उपन्यासों - "कैकेयी

    चेतना-शििा" एवं "लोक-नायक राम" शजनके एक साल में शद्वतीय संस्करण प्रकाशित हुए िैं - की भााँशत

    िी पाठकों का स्निे-भाजन बने.

    अपनी पुस्तकों के प्रकािक, स्टार पशब्लकेिन्स के श्री अशनल वमाि जी की पुस्तकों के प्रकािन

    ितेु तो आभारी हाँ िी पर इससे भी अशर्क ईश्वर के प्रशत कृतज्ञ हाँ कक उसने अशनल जी को एक प्रकािक

    के रप में निीं वरन् एक आत्मीय-जन के रप में िमारे पास भेजा ि.ै वे पाररवाररक रप में िमसे जुड़े

    हुए िैं. इस यात्रा के दौरान भी उन्िोंने र्मि-पुत्र का र्मि शनबािा. ठाकुर सािब व मेरी ओर से

    अनेकानेक िुभािीष.

    डॉ. मुक्ता के शलए आभार ककन िब्दों में व्यक्त कराँ जो अस्वस्थ िोत ेहुए भी शबना इस तथ्य का

    जरा-सा भी संकेत कदए शमलने चली आईं. ऐसे स्नेशिल व्यविार ितेु जिााँ िब्दों का अभाव स्वाभाशवक ि ै

    विीं कृतज्ञता ज्ञाशपत न करना स्वर्मि-च्युत िोना िोगा. मुक्ता जी की कृतज्ञ हाँ, आभारी हाँ. ईश्वर करे

    स्नेि के प्रशत उनका यि स्नेि अक्षुण्ण रिे.

    डॉ. रमेि सक्सेना न केवल िोम्योपैथी के शविेषज्ञ डॉक्टर िैं वरन् साथ िी साथ साशित्यपे्रमी

    साशित्यकार भी िैं, उनके दोनों िी रपों से शमलकर ठाकुर सािब व मैं आनंदानुभशूत में डूबे. िम दोनों

    िी इस नवीन िुभ पररचय के आभारी िैं.

    पररशस्थशतवि इस बार कई स्नेिी जनों स ेशमलना सम्भव न िो सका. ईश्वरेच्छा. ईश्वर करे इस

    अशमलन की क्षशतपूर्ति भशवष्प्य में दगुुन,े चौगुन ेरप में िो. अत: इसे भशवष्प्य की र्रोिर के रप में दिे व

    स्वीकार कर शनरािा की अपेक्षा आिा का आाँचल पकड़ रिी हाँ.

    श्रीमती कृष्प्णा िंडलेवाल पार्थिव रप से िमारे साथ निीं िैं तथाशप उनकी स्नेशिल स्मृशत सदा-

    सविदा िमारे साथ बनी रिगेी. कृष्प्णा जी ने स्निे को इतना स्नेि कदया ि ैकक उनकी िर बात स्मृशतपटल

    पर अंककत िो गई ि.ै मिाकशव शप्रय गुलाब िंडलेवाल जी के कशव हृदय की साम्राज्ञी, उनके जीवन का

    आर्ार-स्तम्भ, उनकी सिचरी का सािचयि उनसे शवलग निीं हुआ ि ैवरन् अब आकाि की ऊाँ चाइयों स े

    उनका मागिदििन कर रिा ि,ै इस अनुभूशत के साथ सांत्वना के िब्दों का आवािन कर रिी हाँ; ठाकुर

    सािब व मेरी सद्भावनाएाँ सदा िी गुलाब जी व उनके पररवार के साथ थीं और सदा रिेंगी.

    इस बार संयोगवि जन्माष्टमी का पावन-पुनीत पवि १५ अगस्त स्वतंत्रता कदवस के कदन आ

    रिा ि.ै भारत में पूशजत, कृष्प्ण की शवश्व-शवख्यात भगवद्गीता भारत के साथ-साथ ब्रह्माण्ड का

    मागिदििन करे इसी आिा को मन-प्राण में साँजोए, भारत मााँ को स्वतंत्र करान ेमें ििीदों की एक-एक

    बूाँद के प्रशत नतमस्तक -

  • 14, 55 2017 4

    सरस्वती वदंना

    डॉ. अ. कीर्तिवर्िन

    वन्द ेिारद े

    मुझे बुशद्ध वर द े

    मृद ुस्वर द े।

    वीणा वाकदनी

    राग द्वषे िर ल े

    मुझे वर द े।

    कराँ याचना

    दया भाव भर द े

    मानवता द े।

    मर्ुमय िो

    पल-पल जीवन

    िाशन्त वर द े।

    जाशत र्मि का

    कोई भेद रि ेना

    भाव भर द े।

    दिे पे्रम िी

    लक्ष्य िो जीवन का

    ऐसा वर द े।

    िसं वाशिनी

    आया िरण तेरी

    पाद रज द े।

    िर पल मैं

    तेरे िी गुण गाऊाँ

    मुझे स्वर द े।

  • 14, 55 2017 5

    लाल ककला स्वततं्रता आदंोलन का प्रतीक

    सलामी लाल किल ेस ेिी क्यों?

    डॉ . सत्यभषूण वन्दोपाध्याय

    १६ अगस्त, १९४७ को पिली बार स्वतंत्र भारत का राष्ट्रध्वज प्रर्ानमंत्री नेिर द्वारा लाल

    ककले के लािौरी गेट की प्राचीर से फिराया गया था। लाल ककला तब स ेिी भारतीय स्वार्ीनता और

    दिे की एकता का प्रतीक बन गया, जिााँ िर वषि १५ अगस्त को लाल ककले की इसी प्राचीर से भारत

    का शतरंगा दिे के प्रर्ानमंत्री द्वारा फिराया जाता ि।ै

    लाल ककले से िी राष्ट्रध्वज क्यों फिराया जाता ि ैऔर प्रर्ानमंत्री नेिर ने सविप्रथम राष्ट्रध्वज

    फिरान े के शलए इसी स्थान को क्यों चुना? लाल ककल ेसे िी दिे की जनता को सबंोशर्त करन ेकी

    परंपरा क्यों िुर हुई तथा प्रर्ानमंत्री लाल ककले के इस प्राचीर से िी सलामी क्यों लतेे िैं? इन सवालों

    के उत्तर के शलए िमें लाल ककले की उस ऐशतिाशसक भूशमका पर दशृष्टपात करना पड़गेा, शजसन े

    भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई कदिा दी।

    सविशवकदत ि ै कक भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में लाल किले की उल्लेिनीय भूशमका रिी ि,ै

    शजसके फलस्वरप लाल ककला भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक बना। १० मई, १८५७ को मेरठ

    में िांशत की िुरुआत हुई और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शसपाशियों ने अाँगे्रज़ी िासन के शिलाफ़

    िुला शवरोि कर कदया। मेरठ से बढ़त ेहुए इन शसपाशियों न े११ मई को कदल्ली में प्रवेि ककया और

    अाँगे्रज़ों के छके्क छुड़ाते हुए उन्िोंने मुगल साम्राज्य के अंशतम बादिाि बिादरु िाि शद्वतीय (१८३७-

    १८५८) को सिदंसु्तान का सम्राट घोशषत ककया।

    इससे अाँगे्रज़ी िासन को बहुत बड़ा र्क्का लगा। उन्िोंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलन े

    में अपनी पूरी िशक्त लगा दी। स्वतंत्रता संग्राम के शसपाशियों की यि शवजय अशर्क कदनों तक स्थायी

    निीं रि पाई और २१ शसतबंर, १८५७ को, यानी लगभग तीन मिीने बाद अाँगे्रजों न ेकदल्ली पर कफर

    अशर्कार कर शलया। इस सघंषि में अनेक शसपाशियों को गोली से उड़ा कदया गया, शजतने शवरोिी थे,

    उन्िें शगरफ़्तार कर शलया गया। जिााँ स ेउन्िें मदद शमलती थी, सबको तिसनिस कर कदया गया। िांशत

    की इस ज्वाला को दबान ेके शलए अाँगे्रज़ हुकूमत ने शनदोष लोगों को भी निीं बख़्िा। िज़ारों स्वतंत्रता

    सेनाशनयों को जेलों में ठूाँस कदया गया, उन्िें काला पानी और दिे शनकाले की सज़ा दी। सैंकड़ों

    िांशतवीरों को फााँसी पर लटका कदया गया।

    बिादरुिाि जफ़र पर मिुदमा

    बाद में अाँगे्रज़ों ने लाल ककले से दशक्षण की ओर लगभग छि मील दरू हुमायूाँ के मकबरे के पास

    बिादरुिाि को भी शगरफ़्तार कर शलया। २२ शसतंबर, १८५७ को बिादरु िाि ज़फ़र के दो पुत्रों को

    भी मकबरे के पास स ेिी शगरफ़्तार कर शलया गया और ककले की तरफ़ लाते हुए लेशटटनेंट िडसन न े

    उन्िें िूनी दरवाज़े के पास गोली से उड़ा कदया।

    बिादरु िाि को शगरफ़्तार करने के बाद उन पर लाल ककले में िी जनवरी, १८५८ में मुकदमा

    चला। यि मुकदमा भी उसी दीवान-ए-िास में चलाया गया, जिााँ कभी मुगल िासनकाल में मुकदमें

    चलते थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इस नायक पर आरोप लगाया गया कक उसने अाँगे्रज़ी हुकूमत को

    उिाड़ फें कने का षडं्यत्र ककया और उस षडं्यत्र की अगुवाई की। बादिाि के शिलाफ़ लगभग ४० कदन

  • 14, 55 2017 6

    मुकदमा चला और आज़ादी के इस प्रथम सेनानायक को आजीवन दिे शनकाल े की सज़ा दी गई।

    बिादरुिाि को रंगून भेज कदया, जिााँ ७ नवंबर, १८६२ को तड़के पााँच बजे के करीब स्वतंत्रता संग्राम

    के इस प्रथम नायक न ेअपनी अंशतम सााँसें लेकर जीवनलीला समाप्त की। इस प्रकार शजस लाल ककले में

    मुगल वैभव काल में मुगल सम्राट िािजिााँ ने बड़ी िान और आनबान से प्रवेि ककया था, उसी में

    लगभग दो साल अंशतम मुगल बादिाि बिादरु िाि पर मुकदमा चला और उस ेदिे शनकाल ेकी सज़ा

    दी गई।

    आज़ाद शिन्द फौज़ के सनेाशनयों पर मिुदमा

    एक अन्य मुकदमा भी अत्यंत मित्त्वपूणि ि ै जो इसी लाल ककले पर लगभग ८७ साल बाद

    चला। सन १९४५ में चले इस मुकदमे का भारतीय स्वततं्रता आंदोलन और लाल ककले स ेसलामी िुर

    करन ेमें मित्वपूणि योगदान ि।ै इस मुकदमे में प्रमुि अशभयुक्त थे - आज़ाद सिदं फौज के उच्च अशर्कारी

    कैप्टन िािनवाज़, कैप्टन पी.के.सिगल और लेशटटनेंट जी.एस.किल्लन और उन पर अशभयोग यि

    लगाया गया था कक उन्िोंन ेअाँगे्रज़ी साम्राज्य के शिलाफ़ बग़ावत की थी। जब इन पर मुकदमा चला, तो सारे राष्ट्र न ेएक िोकर अाँगे्रज़ों का शवरोर् ककया। मुकदमे की पैरवी में इन स्वतंत्रता सेनाशनयों की ओर

    से निेर सशित पूरा राष्ट्र एक िो गया। पररणाम यि हुआ कक अाँगे्रज़ों के शिलाफ़ सारी जनता आंदोलन

    के शलए िड़ी िो गई। शलिाज़ा दिे की जनता के इस दबाव के आगे अाँगे्रज़ी िासन को झुकना पड़ा और

    जनमत के ज़बदिस्त दबाव को दिेते हुए गोरी सरकार न ेइस स्वतंत्रता सेनाशनयों को मुक्त कर कदया।

    इस मुकदमे में इन स्वतंत्रता सेनाशनयों की ररिाई के बाद दिेभर में शवजयोत्सवसा मािौल बन गया

    और लाल ककला स्वतंत्रता सनेाशनयों तथा दिे की जनता के बीच स्वार्ीनता का पररचायक बन गया।

    इसी मुकदमे ने अाँगे्रज़ी िासन की जड़ें शिला दीं और अंततः उसके दो वषि बाद शब्ररटि सरकार को

    भारत को स्वतंत्र करने का शनणिय करना पड़ा।

    नेिर जी के बाद शनरंतर सभी प्रर्ानमंत्री लाल ककले की प्राचीर से १५ अगस्त की सुबि राष्ट्र

    ध्वज फिरात ेिैं और भारत की जनता को स्मृशत कदलाते िैं कक कोई भी राष्ट्र बशलदान और कुरबाशनयों

    के शबना स्वतंत्र निीं िो सकता। भारत की आज़ादी का इशतिास िांशत और सद्भावना का निीं रिा।

    लगातार रक्त िांशतयों और यातनाओं के बल पर िी सत्ता शमल सकी ि।ै असिसंा िमारा नारा भले रिा

    िो, यि पूरा दिे मिान सिसंा की शवभीशषका से गुज़रा ि,ै इस तथ्य को अनदिेा निीं ककया जा सकता।

  • 14, 55 2017 7

    ग़ज़ल

    डॉ. दीपकंर गपु्त

    अपने वतन पे लोग जो कुबािन िो गये।

    जग में सदा अमर विी इंसान िो गये।।

    उन सबने दवेताओं का िी पा शलया ि ैस्थान,

    जो दसूरों के वास्ते बशलदान िो गये।

    सींचा शजन्िोंने िून से अपने ये गुलशसतााँ,

    आज़ादी-ए-वतन की वो पिचान िो गये।

    िाँस-िाँसके, चूम-चूमके फााँसी पे जो चढ़,े

    वो आज अपने शिन्द की इक िान िो गये।

    'दीपंकर' िमको िेद ि ैइस बात का बहुत,

    अब लोग उन ििीदों से अनजान िो गये।।

  • 14, 55 2017 8

    आशिरी भूल

    कंचन पाठक

    लाि कोशििों के बाद भी मार्वी स्वयं को संयत निीं कर पा रिी थी, मन की उशद्वग्नता चरम

    पर थी l जाते हुए जेठ की प्रचण्ड तपन लहुलुिान मन की पीड़ा से एकाकार िोकर जसैे आज जीते जी

    उसे जला दनेा चािते थ े l िाम के सात बजने वाल ेथ ेपर बािर कदिाओं में िलकी उजास अब तक

    कायम थी, यि उजास जैस ेमार्वी की आाँिों में, बदन में िोलों की तरि चुभने लगीl वि छुप जाना

    चािती थी, अाँर्ेरे में किीं गुम िो जाना चािती थी, घर पररवार समाज सबकी नज़रों से दरू, यिााँ तक

    कक अपने आप से भी दरू ... ओझल िो जाना चािती थी l

    दोनों बच्चे पढ़ रि ेथे, सास-ससुर ड्राइंग रम में टीवी दिे रि ेथे, वि ककचने में िाना बना रिी

    थी पर िाथों के कम्पन स ेआज सारे काम िी गलत हुए जा रि ेथे l मााँ का चिेरा और बातें ज़ेिन से िट

    िीं निीं रिी थी....शवचारों के कममकि और रसोईघर के र्ुएाँ में उसका दम घुटने लगा....पसीने में

    तरबतर हुई वि िााँफती हुई ककचन से शनकलकर आाँगन में आ गयी l ग्रीष्प्म का ताप पूरे आाँगन में पसरा

    हुआ था....कुछ दरे आाँगन में ठिरकर जीने की ओर बढ़ी और कााँपते पैरों को बमुशमकल सीकढ़यों पर

    ज़माते हुए वि ऊपर छत पर आ गई l उत्तर की आकाि से सुरमई बादलों का झुंड घनीभूत िोते हुए

    आगे बढ़ रिा था, मतवाले सााँवले बादलों की यि सघनता कभी उसे सम्मोशित कर शलया करती थी पर

    आज इन्िोंने मन की बेचैनी और बढ़ा दी। मार्वी रेसलंग से सटकर िड़ी िो गई....शनगािें अपने आप

    िरे रंग के दोमंशज़ले मकान की ओर मुड़ गईं। कलात्मक िंग से बनी बाल्कनी में गिराते र्ुाँर्लके के बीच

    भी नमि-सी परछाईं को अपनी तरफ ताकत ेहुए उसन ेमिसूस ककया....मार्वी न ेआाँिें फेर लीं l अाँर्ेरा

    र्ीरे-र्ीरे अपना साम्राज्य बढ़ाने लगा था. उसका िुद का जीवन भी तो एक गिरात ेअाँर्ेरे का अकथ

    दःुस्वप्न िी बन कर रि गया था। दीघि शनःश्वास के संग अतीत की स्मृशतयों में मार्वी भटकने लगी l

    शपता का प्रभाविाली चेिरा, िान्त शस्नग्र् आाँिों स ेबेटी के शलए शनरन्तर झरता स्निे, मााँ की लाड-भरी

    बोली, भाईयों संग नोंक झोंक....सब चलशचत्र की भााँशत शवचारों में जीवन्त िो उठेl दो भाईयों की

    इकलौती बिन पूरे कदन घर में शचशड़या की तरि चिचिाती रिती l शपता के प्राण बसते थे बेटी

    में....बचा िुचा स्नेि िी दोनों भाईयों को शमल पाता था l दोनों भाई जिााँ गेहुएाँ रंग और सामान्य िक्ल

    सूरत के थे विीं मार्वी के ऊपर शवर्ाता ने जैसे दोनों िाथों से िुलकर सौन्दयि का पाररतोशषक लुटाया

    था....स्वच्छ र्ुले स्वणिचम्पा-सा गौर वणि, तीिे नयन नक्ि और सबसे गज़ब शतलस्मी बादामी आाँिें

    जो िर ककसी की शनगािों को बााँर् लेती थीं। अनुपम सौन्दयििाशलनी, नटिट शबरटया की एक-एक

    चपलता पर शपता सौ-सौ लाड़ जताते। जब बेटी को स्कूल भेजने की बात आई तो शपता ने ििर के

    माँिगे कॉन्वेंटो के फीस पता करने िुर ककए। काफी दौड़ र्ूप के बाद आशिरकार ििर के एक ढ़ेरों

    चोंचले वाले माँिगे कॉन्वेंट में मार्वी को दाशिल कराया गया जबकक दोनों भाई सामान्य स्कूलों में

    पिाई के शलए भेजे गए l बिे हुए िचि को पूरा करने के शलए मार्वी के शपता को अब कदन-रात मेिनत

    करनी पड़ती थी l िेती के काम के अलावा अब वि ठेकेदारी के काम भी दिेने लगे थे l काम की

    व्यस्तता के बीच भी सुबि ४.३० पर बेटी को स्कूल की बस तक छोड़न ेके बाद दोपिर को बाईक स े

    लेने आते। घर से स्कूल की बस तक पहुाँचने में आर्ा घन्टा लग जाता था l ९वीं कक्षा तक आत-ेआत े

    मार्वी िुद भी कभी-कभी घर आ जाती l

  • 14, 55 2017 9

    वायु में एक अमंगल-सी सनसनािट थी उस कदन जब ऐसे िी अकेली मार्वी अपनी र्ुन में

    स्कूल से घर की ओर जा रिी थी, एकाएक एक बाईक सरािटे से उसकी बगल से गुज़री। बाईक इतन े

    करीब से गुज़री थी कक मार्वी शगरते-शगरते बची। सिमकर वि सड़क के ककनारे से िोकर जल्दी-जल्दी

    चलने लगी, तभी पीछे से कुछ आवाजें आने पर उसने मुड़कर दिेा - बाईक नीचे शगरी हुई थी और उस

    अभर बाईक सवार को कॉलर स ेपकड़ कर कोई र्ककया रिा था. यि नीलेि था जो पिले मार्वी के

    स्कूल में िी पढ़ता था पर शपता की अकस्मात् अस्वस्थता के कारण उसे अपने स्कूल की पिाई बीच में

    िी छोड़कर शपता के कारोबार का काम साँभालना पड़ा था l इस घटना के बाद से मार्वी ने गौर ककया

    कक अब वि जब भी अकेली घर जा रिी िोती तो नीलेि बाईक से चक्कर लगाते हुए उसके पीछे-पीछे

    आता और जब वि घर पहुाँच जाती तो वापस लौट जाता l दो-एक मिीने बाद मार्वी ने मिसूस ककया

    कक सामन ेवाले घर की शिड़ककयों स ेदो आाँिें शनरन्तर उसे िी दिेती रिती िैं. पता निीं कब और क्यों

    नीलेि न ेसामन ेवाले घर में एक कमरा ल ेशलया था l मार्वी के मन में एक अज़ीब असुशवर्ा की सी

    शस्थशत उत्पन्न हुई l नीलेि अच्छी कद काठी का एक आकषिक युवक था, शगटार बजाने के अलावा वि

    िब्दों की बाज़ीगरी में भी माशिर था l कदलकि िब्दों को पुजों पर शलिकर मौका दिेकर वे मार्वी

    को समर्पित ककए जाते। र्ीरे-र्ीरे मार्वी को भी यि सब अच्छा लगने लगा l मार्वी का ध्यान अब

    पिने शलिने में कम लगता, शनगािें नीलेि को िी िूाँिती। इर्र चार-पााँच कदनों से नीलिे का किीं अता-

    पता निीं था, मार्वी को शचन्ता हुई। छठे कदन नीलेि कदिा उसका चेिरा उतरा हुआ था, उसने जो

    कुछ बताया उसे सुनकर मार्वी परेिान िो उठी l मार्वी के दोनों भाईयों ने अपने कुछ दोस्तों के साथ

    शमलकर िॉकी शस्टक से नीलेि की शपटाई की थी, साथ िी उसे उस कमरे से भी शनकलवा कदया था

    शजसे ककतने जुगाड़ लगाकर छः मिीने के एडवांस पैसे जमा कराने के बाद वि िाशसल कर पाया था l

    घर में माता-शपता नीलेि की िालत दिे कर बहुत परेिान िैं, यि सब किते हुए नीलेि की आाँिों में

    आाँसू आ गए l उसने मार्वी को अपनी चोटों के शनिान कदिाए और किा कक उन्िोंन ेमुझे र्मकी दी ि ै

    कक अगर मैं आईन्दा तुम्िारे आस-पास भी फटका तो वे मुझे जान से मार देंगे l मार्वी भाइयों की

    करततू सुनकर लशित िो गयी. नीलेि क्षणभर के शलए चुप रिा कफर सर झुका कर बोला - तमु्िें दिेन े

    के बाद से मैंने कदन-रात बस एक िी सपना दिेा था कक तुमसे ब्याि करके तमु्िें जीवन के सारे सुि दूाँगा

    पर मैं यि भूल गया था कक किााँ तुम ब्राह्मणों की बेटी और मैं छोटी जाशत का लड़का. आि ! मेरी जाशत

    मेरे पे्रम के शलए बेड़ी बन गई पर अगर मैं दशलत का लड़का हाँ तो इसमें मेरा क्या कुसरू ि ै

    मर्.ु...लाचार आाँिों से मार्वी की तरफ ताक कर वि बोला - अब िायद जीवन में कभी मुलािात न

    िो और लाँगड़ाते हुए मुड़कर जाने लगा. मार्वी तड़प उठी...नीलेि वापस मुड़ा, तमु्िारे बगैर जीने स े

    तो मौत बेितर ि,ै पर मैं जीना भी चािता हाँ....अगर तमु चािो तो इस मृतप्राय इंसान को जीवनदान

    द ेसकती िो....क्या तुम मेरे साथ चलोगी मर्ु ? मैं वादा करता हाँ उस घर में तुम्िें कभी कोई तकलीफ

    निीं िोगी....अपनी जान से भी ज्यादा शिफाज़त से तमु्िें रिूाँगा l आाँिों में भृत्य की सी याचना शलए

    वि मार्वी की ओर दिेने लगा....िम आज िी िादी कर लेंगे. पता निीं क्या हुआ मार्वी एक पल में

    शपता का प्यार मााँ की ममता और भाईयों का दलुार भूल गई. जन्म के सारे िी बन्र्नों को तोड़ कर वि

    उसी क्षण नीलेि के साथ चल पड़ी l मार्वी के इस कृत्य से घर पर जो कोिराम मचा वि शववरण स े

    परे ि ैl मैया सर पकड़कर बठै गईं, दोनों भाईयों ने किा - िम अभी जाकर उस दजुिन लड़के के िाथ-पैर

    तोड़कर और मार्वी को िींचकर लेकर आते िैं पर आघात से पीले पड़ ेशपता ने िाथ ऊपर कर लड़कों

    को जाने से रोक कदया, किा - इस घर का कोई भी सदस्य कभी भी उस लड़की से शमलने निीं जाएगा l

    उस लड़की ने मेरे भरोसे को छला ि ैआज से वि िमारे शलए मर गई। मैंने उसका श्राद्ध कर कदया

    किकर आित ब्राह्मण शपता ने अपना जनेऊ तोड़कर फेंक कदया l घर की पे्रम-सींची दीवारें थराि कर

  • 14, 55 2017 10

    कराि उठी, मााँ के गले में एक शससकी टूट कर रि गई। उस कदन के बाद स ेदबुारा ककसी ने उस घर में

    मार्वी का नाम निीं शलया l

    समय साल दर साल गुज़रता चला गया, मार्वी एक बेटी और एक बेटे की मााँ बन गई l

    पररवार बढ़ा तो आमदनी बढ़ाने के शलए नीलेि ने कारोबार बढ़ाना िुर ककया। शबजनेस बढ़ने के बाद

    अब उसे काम के शसलशसल ेमें दसूरे ििरों में भी जाना पड़ता और कभीकभार दो-चार कदन उर्र िीं

    रुकना भी पड़ता था l दसूरी तरफ बेटे के जन्म के बाद से मार्वी का स्वास्थ्य िराब चल रिा था और

    उसे नीलेि की बहुत ज़ररत मिसूस िोती थी l उसने ककतनी बार लगभग शगड़शगड़ाते हुए नीलेि स े

    किा कक, कुछ कदन की छुट्टी कर लो, दो-चार कदन साथ में रिो, ककसी अच्छे डॉक्टर को कदिवा दो l

    लेककन नीलेि यि सब सुनकर शचढ़ जाता l नीलेि के बदलते व्यविार स ेमार्वी क्षुब्र् थी l मार्वी न े

    गौर ककया कक वि बदल गया िै। पैसे कमाकर ला दनेे भर को िी अपने कतिव्य की इशतश्री समझने लगा

    ि ैl उसका शचढ़ा हुआ रुि और रिा व्यविार दिेकर मार्वी अपना-सा मुाँि लेकर रि जाती l इर्र स े

    मार्वी का मन बहुत घबड़ाने लगा था पर किती ककससे! मााँ बाप ने पिले िी सारे सम्बन्र् तोड़ शलए

    थे, सास-ससुर को केवल उस से काम भर का मतलब था, अड़ोस-पड़ोस में ककसी स ेभी सुि-दःुि साझा

    करन ेका ररमता निीं बन सका था l अड़ोस-पड़ोस के पुरुष उसकी ओर अथिपूणि दबी मुस्कान से दिेते

    तो शस्त्रयााँ उसके रप स ेईष्प्या करतीं और चररत्र पर संदिे l छोटे ििर के सारे मोिल्ले वाले उसके घर

    से भाग कर शवजातीय लड़के के साथ िादी करन ेकी बात जानते थे और मार्वी के चाल-चलन को

    अच्छा निीं समझते थे l िुरुआत में तो सास ने बेटे की िुिी के शलए कुछ कदन बह से लाड़ जताया था

    पर बाद में बीमार और अपाशिज ससरु की सेवा-टिल समेत गृिस्थी के सारे िी कामकाज मार्वी के

    कमजोर कन्र्ों पर डालकर वि भी हुक्म चलान ेऔर टीवी दिेने तक िी अपना कतिव्य समझने लगी

    थीl सभी अपनी-अपनी दशुनया में मग्न थे। अब तो नीलिे पूरे मिीन ेघर निीं आता l उस ेमार्वी की

    िारीररक, मानशसक या भावनात्मक ज़ररतों की जसैे कोई परवाि िी निीं थी l काम के अत्यशर्क

    बोझ, बीमारी और शनरन्तर चलत ेअन्तद्वदं की वजि स ेमार्वी का पररयों-सा रप कुम्भलाकर िल

    गया था तो उर्र नीलेि जो कक दिेन ेमें िुर से िी अच्छा था अब बढ़ती कमाई स ेउसके चेिरे पर

    लाशलमा भी बढ़ने लगी थी l घर पर मार्वी के िाथों का बना िाकािारी िाना अब एक कदन के शलए

    भी उसके गले के नीचे निीं उतरता था l पिल ेपीने का केवल िौक था पर अब आदत िो गई थी। यिााँ

    तक भी गनीमत थी पर इस दसूरे ििर में नीलेि जब काम पर शनकलता उसी वक़्त पड़ोस की लड़की

    भी ऑकफस के शलए शनकलती थी, र्ीरे-र्ीरे औपचाररक दआु-सलाम के बाद एक कदन नीलेि न ेउस े

    अपनी कार में ऑकफस तक छोड़ने का प्रस्ताव रिा शजसे थोड़ ेना-नुकुर के बाद लड़की ने स्वीकार कर

    शलया l लड़की का नाम सुषमा था और उसके पररवार में मााँ के अशतररक्त कोई निीं था l सुषमा की

    कमाई और मााँ के ररटायमेंट के पैसों से िी घर चलता था l पता निीं कब पढ़ी-शलिी आत्मशनभिर सुषमा

    को ऑकफस ल ेजाना और कफर ऑकफस स ेघर लाना नीलिे की पिली प्राथशमकता बन गई l उसन ेएक

    बार कफर से विी दााँव िेला और अपने लटफाजीभरे िब्दों के अभेद्य वाण चलाकर सषुमा का हृदय भी

    कब्ज़े में कर शलया l एक कदन मााँ और एक अन्य पररजन की उपशस्थशत में सुषमा और नीलेि ने मंकदर में

    शववाि कर शलया l

    घर के कामों में कोल्ह के बलै-सी शपसती मार्वी को इन सब बातों की भनक तक न पड़ी पर

    मार्वी की मााँ तक किीं स ेउड़ते-उड़ते इस बात की िबर जा पहुाँची l बेटी के कृत्य ने मााँ के हृदय को

    गिरी पीड़ा ज़रर पहुाँचाई थी पर इस िबर को जानकार मंजू का मन व्याकुल िो उठा l मार्वी के

    शपता और भाई उसका नाम तक सनुना निीं चािते थे सो मााँ ने चुपचाप अकेले िी बटेी से शमलने का

    फैसला ककया l ककसी तरि नीलेि के घर का पता करके वि बेटी से शमलने पहुाँची l दरवाज़ा मार्वी न े

  • 14, 55 2017 11

    िी िोला, इतने बरसों में जीवन के इतने उतार-चढ़ाव शगनने के बाद अब वि वो मार्वी निीं रि गयी

    थी l मुरझाया मशलन-सा रप और डाकि सकिल स ेशघरी बुझी हुई बादामी आाँिें तन-मन की अतृप्त व्यथा

    कथा को अपनी मूक भाषा में बयान कर रि ेथ ेl मााँ का कलेज़ा तड़प उठा, बेटी का िाथ पकड़कर बगल

    के मंकदर पर ल े गई। शनरन्तर बित े आाँसुओं की र्ाराओं के बीच बातचीत िोती रिी, सबकुछ कि

    सुनकर मंजू के िोंठ घृणा और शवतृष्प्णा स ेउस दरुाचारी को श्राप दनेे के शलए िुल ेपर कुछ अस्फुट सा

    मुाँि में िी घुटकर रि गया l आि ! उसकी पुत्री ने कच्ची उम्र की भावनाओं में बिकर स्वयं िी अपने शलए

    कुपात्र का चयन करके अपना और अपने शनदोष बच्चों का जीवन भी बरबाद कर शलया था l मंज ूको

    याद आया पिले जब नन्िीं-सी मार्वी को लेकर मायके जाती तो साथ की सिशेलयााँ किती, आिा !

    ककतनी सुन्दर ि ैरी मंजू तमु्िारी शबरटया इसे मैं अभी िी अपने शबटवा के शलए छेक ले रिी हाँ, बाद में

    मुकर मत जाना और मंजू गवि से बेटी की ओर दिेकर िाँस दतेी....इसका ब्याि ऐसे थोड़ ेन करेंगे, इसका

    बाबा इसे पढ़ा-शलिा कर डॉक्टर बनाना चािता िै। एक गिरी शनःश्वास गले स ेशनकली।

    मााँ के जान े के बाद मंकदर से लौटकर घर आई तो पैर सौ-सौ मन के िो रि ेथे, ककसी तरि

    आर्ा-अर्ूरा िाना बनाकर रि कदया और छत पर चली आई। आाँिों के आाँसुओं के सगं बादल भी बूाँद-

    बूाँद बरसने लगे थे l अभी सास िाना मााँगेगी, दरेी के शलए ताने मारेंगी। मार्वी नीच ेआ गई िमेिा की

    तरि सास-ससरु और बच्चों के शलए िाना शनकाला और अपने शलए प्लेट निीं लगाई न जाने कब स े

    उसने रात में िाना िीं छोड़ कदया था l जूठे बतिन एक तरफ रिते हुए मााँ का चिेरा याद आया वि बात

    याद आई - ये क्या िाल कर शलया ि ैतनूे अपना? अपनी गलशतयों की सजा इन बच्चों को दोगी ? जीवन

    में जो कुछ घट जाता ि ैउस ेपलटा निीं जा सकता बेटी पर उन गलशतयों से आगे के जीवन के शलए

    सीि ज़रर ली जा सकती ि ै l िमें ठोकरों से टूटना निीं चाशिए बस उनका सबक बनाकर पिाड़ ेकी

    तरि रट लेना चाशिए l मार्वी न ेगिरी सााँस ली और स्वतः संवाद ककया - तुमन ेसिी किा मााँ, मुझस े

    जो गलती िो गयी वि अब वापस सुर्र तो निीं सकती पर उस गलती की आाँच में इन मासूमों का

    जीवन मैं निीं झुलसने दूाँगी l अगर किीं मैं मर गई तो इन बच्चों का क्या िोगा....निीं अपनी रक्त-मिा

    से बने इन अबोर्ों को अनाथ करने का उसे कोई िि निीं....उसके अन्दर की िशक्तनी को जागना िोगा।

    जाग पगली....साँभल। मार्वी ने अपने शलए भी िाने की प्लेट लगाई पर कौर गले से न उतरा ककसी

    तरि पानी के साथ कौर शनगलकर सोने चली गयी l

    अब िर िटत ेमााँ चुपचाप आकर मार्वी से शमल लतेी, कभी-कभी शज़द करके कुछ पैसे भी द े

    जाती l मााँ से दःुि-ददि साझा करके हृदय का बोझ कुछ िल्का िो जाता। ऐस ेिी कदन बीतते रि।े एक

    कदन मंजू बेटी से शमलकर जब घर जाने के शलए उठी तो उन्िें चक्कर-सा आ गया। मार्वी ने लपककर मााँ

    को साँभाला और थोड़ी दरे घर चलकर आराम करन ेको किा पर मंज ून ेटाल कदया - निीं बेटी थोड़ी

    दरे में िाम िो जायेगी। तुम्िारे पापा और भाई घर लौट आएाँगे। मााँ ने लाचार आाँिों से बेटी की तरफ

    दिेा और आगे बढ़ गईं l मार्वी ने अपने भीतर एक गिरी तड़प मिसूस की, केवल एक भूल ने ककतना

    पराया बना कदया था उसे कक अपनी बीमार मााँ को अपने िी घर तक पहुाँचाने निीं जा सकती l मााँ के

    साथ चलते हुए मार्वी ने जसैे िुिामद करते हुए किा - मैं घर के बािर से िी लौट आऊाँ गी। मुझे कोई

    निीं दिे पाएगा। अगर ककसी की नज़र पड़ती भी ि ैतो पिचान न सकेगा मैं अपने इस लांशछत चेिरे

    को पल्लू से िक कर रिूाँगी। मााँ....प्लीज ! मााँ-बेटी की शनगािों की मूक भाषा के संवाद हुए.... जसैे गाय

    अपनी बशछया को दिेती ि.ै...मााँ को सिमशत दनेी पड़ी, मार्वी पल्लू से चेिरा िाँककर ऑटो में मााँ के

    साथ बैठ गई। ऑटो चला, बगैर कोई संवाद के दोनों बैठी रिीं। थोड़ी दरे बाद ऑटो मुड़ा और मार्वी

    जैसे एक युग के बाद अपनी भीगी-भीगी सुकूनदिे जड़ों में लौट आई थी। सड़क के ककनारे

    चारदीवाररयों में िड़ ेआम, लीची और नाररयल के पेड़, चाय वाली छोटी-सी दकुान, जिााँ वि छुटपन

  • 14, 55 2017 12

    में बाबा से चॉकलेट कदलवाने के शजद करती थी, कुछ और आगे बरगद और उससे थोड़ी िी दरूी पर

    िड़ा अश्वस्थ का शविालकाय पेड़ लाल गुलाबी साशड़यों और चटि ओढ़नी में सजी औरतें िाथों में

    प्रसाद और फूलों की डशलया शलए हुए....एक छोटे से झुण्ड में बैठी कुछ औरतें गीत गा रिी िैं.…

    मोर शप्रयतम सिी गईल दरू दसे, जीवन दs गेल साल सनसे

    मास आषाढ़ उनत नव मेघ, शपया शबसलेिे रिओ शनरर्ेघ

    कौन पुरबि कउनोन से दसे, र्ारब तिााँ मएाँ जोशगनी भषे....मोराssss शप्रयतम .....

    घने सायादार वकृ्षों में पशत के से सरुक्षा भाव को तलािकर शस्त्रयााँ कच्चे र्ागे स े सात गााँठें

    लगाकर उसे मन िी मन सात जन्मों के बन्र्न में बााँर् लेती िैं। पुरानी पिचान वाले पेड़-पौर्ों, मकानों

    को पीछे छोड़ते जनम-जनम के पररशचत रास्ते पर आगे बढ़ते हुए अब ऑटो रुक गया था। घर आ गया।

    पापा ने नया गेट लगवा शलया ि ैमार्वी उतरकर िड़ी िो गई। एक अजीब शवह्वल से अिसास के

    साथ। आम का पेड़ ककतना बड़ा िो गया िै, घना भी। मार्वी को पिचान कर जसैे पेड़ के पत्तों ने िाथ

    शिलाए....िवा से फड़फड़ाकर मानो िौले-िौले िाँसकर कुछ कि रिा था पेड़....कुछ सिूे पत्ते उसके पैरों

    के पास शगर पड़.े...मार्वी न ेउन्िें झुक कर उठा शलया और आगे बढ़कर पेड़ के तन ेस ेशलपट गई पलकें

    िुद-ब-िुद मुाँद गईं। िवा में पत्ते एक बार ज़ोर से फड़फड़ाकर िान्त िो गए। मााँ का कलेज़ा फटन ेको

    हुआ....िुद को साँभालकर बोलीं - अब लौट जा बेटी बच्चे घबड़ा रि ेिोंगे। मार्वी ने अपने बचपन के

    आशियाने को एक बार भर आाँि दिेा और वापस ऑटो में बैठ गई l कब की मर चकुी मार्वी के अन्दर

    शजन्दा िोने की लालसा सर उठाने लगी। कदलो कदमाग में प्रश्नावशलयों की झड़ी लग गई। वि जो फ़ित

    एक भूल उसके जीवन का नासूर बन गया, उसके सम्पूणि अशस्तत्व पर भारी पड़ गया, अगर यिी भूल

    मेरे भाईयों स ेिो गई िोती तो क्या तब भी समाज न ेउनका यूाँ िी बशिष्प्कार कर कदया िोता? क्या तब

    भी पापा ने उनसे अपने सारे सम्बन्र् तोड़ शलए िोत?े क्या तब उनकी भी ऐस ेिी कोई िोज़-िबर निीं

    ली जाती कक वे शजन्दा िैं अथवा मर गए? अगर वि एक स्त्री न िोकर पुरुष िोती क्या तब भी उसका

    अपरार् अक्षम्य िी िोता या तब का सामाशजक न्याय-गशणत कुछ और िोता? इस बीच घर में ककतन े

    उत्सव हुए, भाईयों की िाकदयााँ हुईं पर उस ेकभी ककसी समारोि में निीं बुलाया गया। घर, पररजनों

    और समाज के शलए वि मर चुकी थी। िााँ! भूल की सजा दनेी चाशिए थी। दी भी गई पर नादानी में की

    गई भूल के शलए अगर कुछ समय की नाराज़गी के बाद पररजनों ने उसे स्वीकार कर शलया िोता तो

    उस नीच पुरुष की भी आज इतनी शिम्मत न िोती कक वि उसे और उसके बच्चों को यूाँ लावाररस

    छोड़कर िुद मौज़ करता कफरता। नारी को नााँथ कर शनयंत्रण में रिने के शलए कैस-ेकैसे पािण्ड पलत े

    िैं इस शपतृसत्तात्मक सामाशजक शनयमों की आड़ में! मार्वी का दम घुटन ेलगा। आि ! गिरा कुआाँ जिााँ

    से शनकलन ेका कोई मागि निीं। अाँर्ेरा िी अाँर्रेा, चतेना जैस ेडूबने लगी। नारी के गले में परम्परा की

    भारी गठरी जन्म से िी बााँर् दी जाती ि,ै वि उसे िोती चले तो भी मरती ि ैउतार कर फें क द ेतो भी

    मरती ि ैl

    पर वि शजएगी। उसे जीना िी िोगा। अन्तररक्ष के तारे मुस्कुराकर इिारों में िािस बाँर्ाते रिे।

    रात करवटों में िी गुज़री पर अगली सुबि साफ़ और बहुत िद तक स्पष्ट भी थी l सवरेे का नामता पााँच

    लोगों के शलए बना, दरू् फल और सूिे मेवों के भी उसने पााँच शिस्से लगाये l बच्चों को स्कूल पहुाँचाकर

    सीर्ा डॉक्टर की शक्लशनक पर पहुाँची, पुजे कटवाए, चकेअप्स करवाए l दो कदन में सारे ररपोर्टसि आ

    गए, सब कुछ सामान्य था बस िीमोग्लोशबन लो था। इसी की वजि से सारे कॉम्प्लीकेिन्स, कमजोरी

    और चक्कर आते थे l मेशडकल स्टोर से दवाइयााँ और टॉशनक लेकर घर वापस जाते हुए मार्वी ने ईश्वर

    को र्न्यवाद कदया और िुद से एक वादा ककया - अपने आप को िमेिा स्वस्थ और िुि रिने का l

  • 14, 55 2017 13

    दोपिर में मंकदर पर पहुाँची मााँ अपने साथ एक आदमी को लेकर आई थीं l उसने बताया पिली पत्नी के

    जीशवत रित ेअगर कोई आदमी दसूरा शववाि करता ि ैतो यि गैरकाननूी िै l शिन्द ूलॉ में ऐसे शववाि

    की मान्यता िुद-ब-िुद िून्य िो जाती ि ै l उस घर में मार्वी और उसके बच्चों के सारे अशर्कार

    यथावत रिेंगे काननू इनकी तरफ ि ैl मार्वी ने चैन की सााँस ली। घर आकर सीर्ा सास-ससुर के कमरे

    में जा बैठी और शबना ककसी शिचककचािट के पूरे आत्मशवश्वास से अपनी बात किनी िुर की - मााँ से

    शमलने गयी थी। अपने और अपने बच्चों की जान की शिफाज़त से सम्बशन्र्त पत्र शलिकर मााँ को द ेकदया

    ि,ै वि थाने में जमा करवा देंगी l मैं सब कुछ जान चुकी हाँ, अब मुझे अपने और अपने बच्चों का िक

    चाशिए l आगे क्या करना ि,ै इस बात का फैसला आप लोग और समाज वाले कर लें l बात घर स े

    शनकल कर समाज और थाने तक पहुाँचती दिे बुजुगों के चेिरे फ़क पड़ गए l ससरु न ेगम्भीर आवाज में

    किा - तुम िमारे घर की बह िो और य ेबच्चे इस घर के शचराग, यि थाने वाने का चक्कर छोड़ द ेमर्ु,

    इससे बात बढ़ जायेगी और िो सकता ि ैइन सबसे भड़ककर लड़का कोई और गलत कदम उठा ले।

    बदनामी िोगी सो अलग। िम पर भरोसा रिो बेटी िम कुछ न कुछ करते िैं l रात तक नीलेि भी घर

    आ चुका था। फोन पर उसे सारी इत्तला कर दी गयी थी। वि तमककर मार्वी के कमरे में पहुाँचा पर

    नज़र शमलते िी ठंडा पड़ गया। यि तो विी पुरानी वाली मार्वी थी साक्षात ्चंडी रप में l उन नज़रों

    से नज़र शमलाने की ताब न ला सका l कुछ दरे सोचकर, ज़ेब से नोटों की मोटी गड्डी शनकाली और र्ीरे

    से मेज़ पर रि कदया - घर िचि के पैसे। कफर आवाज में नरमाई घोलकर र्ीमे स्वर में बोला - कुछ और

    पैसे रि लो अपने शलए अलग से कुछ दरू् और सूिे मेवे िरीद लेना, ककतनी कमज़ोर िो गई िो।

    मार्वी का मन घृणा से भर उठा, इर्र कुछेक मिीनों से मााँ से शमलने के बाद से तो उसने रात को भी

    िाना िाना िुर कर कदया था l दवाइयााँ और दरू्-फल लेकर अब तो उसकी सेित पिले स ेकाफी िद

    तक दरुुस्त िो चुकी थी l जब सचमुच उसका स्वास्थ्य बेिद िी बुरे िाल में पहुाँच चुका था, चेिरा

    मृतकों-सा शनजीव िो चुका था तब तो इस स्वाथी आदमी न ेकभी उस ेअलग से पैस ेदकेर अपना ध्यान

    रिने के शलए निीं किा ! आता और मााँ बाप से शमलकर बािर-बािर से िी शनकल जाया करता l

    नीलेि ने गौर से मार्वी के चेिरे पर आते-जाते भावों को दिेा और एक कदम आगे लेकर र्ीरे-से

    अपना िाथ बिाया पर मार्वी ठंिी आाँिों से उसे घरूकर दो कदम पीछे िट गई l नीलेि ने कुछ

    सोचकर सर झुका शलया, पीछे मुड़ा और तेज़-तेज़ िदमों से बािर शनकल गया l मार्वी लड़िड़ा कर

    शबस्तर पर बैठ गई दोनों िाथों से चेिरा िााँककर फफ़क पड़ी पर कफर झटके से उठी बेशसन पर जाकर

    चेिरा र्ोया, ककचन में जाकर अपने शलए कॉफ़ी बनायी और कॉफ़ी पीत-ेपीते एक फैसला ककया l एक

    मिीने पिले जब बच्चों को स्कूल पहुाँचा कर लौट रिी थी तो सामन े ककंिुक शमल गया था। सस्ती

    मानशसकताओं के बीच एक सभ्य और सुलझा व्यशक्तत्व। औपचाररक अशभवादन के बाद उसने किा कक,

    बच्चों के शलए एक छोटा-सा स्कूल िुर करने जा रिा ि,ै मार्वी अगर चाि ेतो विााँ पढ़ाने आ सकती िैl

    किकर वि प्रशतउत्तर की प्रतीक्षा में मार्वी की ओर दिेने लगा। बड़ी-बड़ी शस्नग्र् बुशद्धदीप्त आाँिों में

    सिानुभूशत थी, मार्वी ने चेिरा झुका शलया l शवषाद भरे िोंठो से फुसफुसािट-सी शनकली, घर के

    कामों से फुसित िी निीं शमलती। नमि और गम्भीर आवाज मार्वी के कानों से टकराई ककंिुक न ेइतना

    िी किा - बच्चों में व्यस्त रिोगी तो कदल भी लगा रिेगा और कुछ पैसे भी आ जायेंगे, िैर आप सोच

    समझ कर शनणिय लीशजय ेकोई जल्दी निीं िै l मार्वी ने फैसला कर शलया था, उसने बाल साँवारे, पसि

    उठाया और सास से जाकर किा - आज से मैं एक स्कूल में पढ़ाने जा रिी हाँ l िाना बनाकर रि कदया

    ि,ै आपलोग दोपिर का िाना िुद से शनकालकर िा लीशजयेगा, और उसने एक नवीन संकल्प के साथ

    अपने पााँव घर से बािर की ओर बढ़ा कदए l

  • 14, 55 2017 14

    आज र्पू आई ि ै

    राजशे्वरी जोिी

    बड़ ेकदनों के बाद दिेो,

    आज र्ूप आई ि।ै

    गली-मोिल्ले में कैसी दिेो,

    आज रौनक छाई ि।ै

    अम्मा ने भी छत पर कफर,

    कपड़ो को र्ूप कदिाई ि।ै

    बड़ ेकदनों के बाद कफर,

    शिड़की आाँगन की िुल पाई ि।ै

    बड़ ेकदनों के बाद बुकढ़या,

    र्ूप सेंकने आई ि।ै

    नानी ने भी अपनी िरटया,