Vasudha, Editor/Publisher: Dr. Sneh ThakoreVasudha, Editor/Publisher: Dr. Sneh Thakore

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EDITOR-PUBLISHER : Dr. Sneh Thakore Awarded By The President Of India Limka Book Record Holder VASUDHA A CANADIAN PUBLICATION Year 17, Issue 65 Jan.-March, 2020 $ . ^ $

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    Year 17, Issue 65

    Jan.-March, 2020

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  • विश्वासों की कााँिर

    पद्मश्री डॉ. श्याम ससिंह शवश

    चााँद नहीं आयेगा शायद

    चलो रात का घ ाँघट खोलें.

    नया अर्थ वमले फिर स्िप्न को

    बदलें ऐसी परम्पराएाँ;

    मन के उदासीन आाँगन में

    साहस की हों रोज़ सभाएाँ.

    सन्नाटा एकाकी लगता

    चलो सिंग उसके हम हो लें.

    अाँवियारे को सहज फदखा दें

    हम अपनी आाँखों का दपथण;

    कााँटों को बस अभी वसखा दें

    कुटटल अहम् का मिुर विसजथन.

    ददथ आज पाहुन बन आया

    चलो, पास बैठें , हम बोलें.

    अपने कन्िों पर हम िर लें

    िज़नी विश्वासों की कााँिर;

    हम विपदा के सिंग घ म लें

    हाँसते-हाँसते सातों भााँिर.

    जीिन को आसान बनाएाँ

    कुिं ठाओं के िोड़ ििोले.

  • 17, 65 2020 1

    डॉ. (पोस्ट-डॉक्टरल फ़ेलोशिप अवाडी)

    (भारत के राष्ट्रपशत द्वारा राष्ट्रपशत भवन में "शिन्दी सेवी सम्मान" से सम्माशनत)

    स्वाधीनता स्वामी शववेकानन्द ४

    धरती ख़ामोि थी संजय श्रीवास्तव ६

    समकालीन जीवन और मिात्मा गााँधी प्रो. शगरीश्वर शमश्र ७

    एक और सच िैल अग्रवाल ९

    िा! ये क्या हुआ अरुण शतवारी १५

    प्राचीन भारत में राष्ट्रवाद डॉ. रवीि कुमार १८

    असमान बनने की स्वतंत्रता ओिो २५

    औरत भावना सक्सनैा २६

    िाशन्त और प्रकाि की तलाि डॉ. अशनल शवद्यालंकार २९

    ओम टॉपरॉय नम: ददलीप कुमार ससंि ३३

    शिन्दी को अब राष्ट्रभाषा िोना िी ि ै प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी ३६

    िब्दों की सत्ता अनमोल राजेि बादल ४३

    शवश्वासों की कााँवर पद्मश्री डॉ. श्याम ससंि िशि १अ

    डॉ. स्नेि ठाकुर का रचना संसार ४४अ

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  • 17, 65 2020 2

    भारत के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्र मोदी जी ने अपने वक्तव्य में किा था – “िम देिवाशसयों के

    पास नए भारत के शलए जनादेि लेने के शलए गए थे. आज िम देख रि ेिैं दक देि के कोटट-कोटट नागटरकों न े

    इस फ़कीर की झोली भर दी. अगर कोई शवजय हुआ ि ैतो शिन्दसु्तान शवजयी हुआ ि.ै अगर कोई शवजयी हुआ ि ै

    तो लोकतंत्र शवजयी हुआ ि,ै जनता-जनाददन शवजयी हुई ि.ै”

    २०१९ शिन्दी ददवस पर भारत के केन्रीय गृिमंत्री माननीय श्री अशमत िाि बोले दक पूरे देि के शलए

    एक भाषा िोनी चाशिए. देि को एक जुट करने का काम अगर कोई भाषा कर सकती ि ैतो वि शिन्दी ि.ै उनके

    िब्दों में – “भारत शवशभन्न भाषाओाँ का देि ि ैऔर िर भाषा का अपना मित्त्व ि ैपरन्तु पूरे देि की एक भाषा

    िोना अत्यंत आवश्यक ि ैजो शवश्व में भारत की पिचान बने. आज देि को एकता की डोर में बााँधने का काम

    अगर कोई एक भाषा कर सकती ि ैतो वो सवादशधक बोली जान ेवाली शिन्दी भाषा िी ि.ै आज शिन्दी ददवस के

    अवसर पर मैं देि के सभी नागटरकों से अपील करता हाँ दक िम अपनी-अपनी मातृभाषा के प्रयोग को बढ़ाएाँ

    और साथ में शिन्दी भाषा का भी प्रयोग कर देि की एक भाषा के पूज्य बापू और लौि पुरुष सरदार पटेल के

    स्वप्न को साकार करन ेमें योगदान दें.”

    इसी शिन्दी ददवस के अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेंर मोदी जी ने भी इसकी अिशमयत देि को बताई.

    उन्िोंने ट्वीट में शलखा, “शिन्दी ददवस पर आप सभी को बहुत-बहुत बधाई. भाषा की सरलता, सिजता और

    िालीनता अशभव्यशक्त को साथदकता प्रदान करती ि.ै शिन्दी ने इन पिलुओं को खूबसूरती से समाशित दकया ि.ै”

    शिन्दी के प्रशत ये उद्गार शिन्दी के उज्ज्वल भशवष्य के प्रशत आश्वस्त करते िैं. भाषा तो बिता नीर िै,

    उसकी शनरंतरता बनाये रखने के शलए उससे जुड़ाव अत्यतं आवश्यक ि.ै पानी में ठिराव सड़ांध उत्पन्न करता ि.ै

    अत: दकसी भी प्रकार का अवरोध समाप्त कर, उस ेसम्पन्नता प्रदान कर, भाषा के प्रवाि को सतत ् शनरंतरता

    प्रदान करना एक िुभ संकेत ि.ै

    साशित्यकार एवं प्रकािक श्री उमेि मेिता के सौजन्य से भारतीय राष्ट्रीय सिकारी संघ ने शिन्दी

    कायदिाला का सफलतम आयोजन दकया शजसमें मुझे मुख्य अशतशथ का सौभाग्य प्रदान दकया गया. कायदिाला न े

    बहुत िी प्रभाशवत दकया. माननीय श्री उमेि मेिता, भा.रा.सि.संघ के अध्यक्ष राज्य सभा सांसद डॉ. चंरपाल

    ससंि यादव, मुख्य कायदकारी श्री एन.सत्यनारायण, श्रीमती मोशनका खन्ना, श्री लक्ष्मा रेड्डी, डॉ. वी.के. दबूे, डॉ.

    के.एन. शसन्िा, समस्त प्रशतभागी एवं इस आयोजन से सम्बंशधत अन्य सभी को मेरा साधुवाद, नमन तथा आभार.

    शिन्दी सेंटर व मौडशलन्गुआ के संयोजक श्री रशव कुमार न ेस्पैशनि दतूावास के प्रोग्राम में अनुवादकों की

    भूशमका पर एक अत्यंत प्रभाविाली कायदिाला का आयोजन दकया. अनेकों सामशयक दषृ्टान्तों के साथ ददए गए

    उनके इस मित्वपूणद शिक्षाप्रद वक्तव्य का ताशलयों की गूाँज स ेसमापन हुआ. शिन्दी सेंटर की सरंशक्षका रूप में

    उपशस्थत िो गर्वदत िोने का एिसास बड़ा सुखद था. यिीं पर स्पैशनि कल्चर सेंटर के शनदेिक डॉ. ओस्कार

    पुजैल जी जो संस्कृत और शिन्दी के शवख्यात शवद्वान् िैं, से भी शमलने का िुभ अवसर प्राप्त हुआ और सोने पे

    सुिागा यिीं पर मुख्य अशतशथ टोराण्टो के पूवद कोंसुलाध्यक्ष जो आजकल आई.सी.सी.आर. में शनदेिक पदासीन

    िैं, शजन्िोंने स्नेि को सदा िी स्नेि-ससंशचत दकया ि,ै से भी एक अंतराल के बाद पुन: शमलन का सौभाग्य प्राप्त

    हुआ. सम्पूणद प्रकरण ितेु रशव कुमार जी का धन्यवाद एवं आभार.

    श्री न्यूटन शमश्रा जी के सौजन्य से “संस्कार भारती” संस्था जो भारतीय सभ्यता, संस्कृशत से जुड़े तथ्यों

    का िोध और संरक्षण कर उसके उन्नयन ितेु संलग्न िै, के मिासशचव माननीय श्री अमीर चंद जी से भेंट-वाताद का

    सुअवसर प्राप्त हुआ. जिााँ अमीर चंद जी के साशित्य, ससं्कृशत ज्ञान स ेप्रभाशवत हुई विीं उनके व्यशक्तत्व की

    सिजता, सौम्यता, सदाियता ने भी अत्यंत प्रभाशवत दकया. प्रासंशगक शवषयों पर शवस्तार से चचाद हुई. उनके

    अमूल्य समय ितेु धन्यवाद एवं आभार.

  • 17, 65 2020 3

    आई.सी.सी.आर. के अध्यक्ष माननीय डॉ. शवनय सिस्त्रबदु्ध ेजी स ेसाशित्य, शिन्दी के शवकास आदद अनके शवषयों पर

    सारगर्भदत चचाद हुई. ऐस ेगम्भीर सचतंन िते ुउन्िोंन ेअपना अमलू्य समय दे मागददिदन दकया, िार्ददक आभार.

    मरेे सभी िभु-सचतंकों के शलए िषद का शवषय ि ैदक साशित्य अकादेमी (राष्ट्रीय साशित्य ससं्थान) रवीन्र भवन,

    नई ददल्ली के पसु्तकालय न ेमरेे दो उपन्यास “लोक-नायक राम” एव ं“दिानन रावण” को स्थान प्रदान दकया ि.ै

    इस समय एक ओर आतकंवाद न ेमानव को त्रस्त दकया िै, दसूरी ओर नारी सामाशजक अशभिाप, बलात्कार,

    घरेल ूसिसंा आदद अन्याय की शस्थशतयों स ेजझू रिी ि.ै ऐसी पटरशस्थशत में िमें शवश्व स्तर पर नारी सिशक्तकरण की शविषे

    आवश्यकता ि ैशजसके शलए डायसपोरा तथा भारतीय मशिलाओं को सगंटठत िोकर सिक्त िोना आवश्यक िै.

    प्रसन्नता का शवषय ि ै दक टरसचद फाउंडेिन इंटरनिेनल द्वारा नारी सिशक्तकरण प्रकल्प का िाल िी में गठन

    दकया गया ि.ै इस शवषय स ेसम्बंशधत सगंोशियााँ, सशेमनार व वकदिॉप आदद दिे-शवदेि में दकए जाएाँग.े

    उक्त गशतशवशधयों के समाचार उपलब्ध साधनों के आधार पर वसधुा त्रमैाशसक में समय-समय पर प्रकाशित दकय ेजाएाँग.े

    यि पशत्रका वशैश्वक साशित्य की एक प्रमखु पशत्रका के रूप में सत्यं, शिव,ं सनु्दरम ्का सन्देि जन-जन तक सम्प्रशेषत करेगी.

    नव वषद सभी प्राशणयों में सद्भाव उत्पन्न कर उनका जीवन मगंलमय बनाए, इसी कामना को मन-प्राण में साँजोए -

    “मन मरेा दीप नवैदे्य का

    आत्मा का घतृ डाला

    शनज-स्निे-शसक्त उर-वर्तदका

    आराध्य के प्रागंण में चला

    जलन ेशविाँसता

    शिप गई ददन की उशजयाली

    सनुिली सााँझ आई

    रजनी ओढ़े आती

    शझलशमल तारों की जाली

    दकतन ेयगुल-चरण स ेशचशननत

    अशलन्द की भशूम

    प्रणत शिरों स ेरंशजत देिरी

    झरे समुन अक्षत प्रशतमा पर

    धपू, अर्घयद, नवैदे्य अपटरशमत

    िखं, घशड़याल, विंी, वीणा स्वर

    ित-ित लय स ेगुशंजत

    समुधरु कंठों का मलेा

    आरती की बलेा

    जब रि जायगेा मदंदर में ईष्ट अकेला

    तम में िोगा अन्तर्िदत यि मलेा

    तब भी किगेी मरेी नीरव दीपशिखा

    अपनी सबकी अर्चदत कथा

    घतृ की अशंतम बूाँद पर

    बझुन ेको जब आय ेआभा

    शमट जाय ेशप्रय में ऐस े

    तप्त रेत में सशलल कण जसै े

    मन मरेा दीप नवैदे्य का

    सस्नेह, स्नेह ठाकुर

  • 17, 65 2020 4

    स्वाधीनता (स्वामी जी की जन्म-शतशथ पर शविेष – संपादक)

    स्वामी शववकेानदं

    स्वाधीनताशजस प्रकार भी िो, िमें संघ को दढ़ृप्रशति और उन्नत बनाना िोगा और इसमें िमें सफलता शमलेगी -

    अवश्य शमलेगी। ‘निीं' किने से निीं बनेगा! और दकसी बात की आवियकता निीं - आवश्यकता ि ैकेवल पे्रम,

    अकपटता और धैयद की। जीवन का अथद ि ैवृशद्ध, अथादत ्शवस्तार, और शवस्तार िी पे्रम ि।ै इसशलए पे्रम िी जीवन

    ि ै- विी जीवन का एकमात्र गशत-शनयामक ि।ै और स्वाथदपरता िी मृत्यु ि।ै इिलोक और परलोक में यिी बात

    सत्य ि।ै यदद कोई कि े दक देि के शवनाि के बाद और कुि निीं रिता, तो भी उसे यि मानना पड़ेगा दक

    स्वाथदपरता िी यथाथद मृत्यु ि।ै

    परोपकार िी जीवन िै, परोपकार न करना िी मृत्यु ि।ै शजतने नर-पिु तुम देखते िो, उनमें नब्ब े

    प्रशतित मृत िैं - पे्रत िैं, क्योंदक शजसमें पे्रम निीं िै, वि मृत निीं तो और क्या िै? य ेयुवकों, सबके शलए तुम्िारे

    हृदय में ददद िो - गरीब, मूखद और पददशलतों के द:ुख को हृदय से अनुभव करो, सम्वदेना से तमु्िारे हृदय की

    दिया रुक जाये, मशस्तष्क चकराने लगे, तुम्िें ऐसा प्रतीत िो दक िम पागल तो निीं िो गये िैं। तब जाकर ईश्र्वर

    के चरणों में अपने हृदय की व्यथा प्रकट करो। तभी उनके पास से िशक्त, सिायता और अदम्य उत्साि आयेगा।

    जब चारों ओर अंधकार-िी-अंधकार ददखता था, तब भी मैं किा किता था - प्रयत्न करते रिो; और आज जब

    थोड़ा-थोड़ा उजाला ददख रिा िै, तब भी मैं किता हाँ दक प्रयत्न करते जाओ। वत्स, डरो मत। ऊपर उस अनन्त

    नक्षत्र-खशचत आकाि की ओर इस तरि भयभीत िो मत ताको, मानो वि तमु्िें कुचल डालेगा।

    धीरज धरो, देखोगे, कुि िी समय बाद वि सब-का-सब तमु्िारे पैरों-तल ेआ जायेगा। धीरज धरो! न

    धन से काम िोता ि,ै न नाम से; न यि काम आता ि,ै न शवद्या। पे्रम िी से सब कुि िोता िै; चटरत्र िी

    कटठनाइयों की संगीन दीवारें तोड़कर अपना रास्ता बना लेता ि।ै

    अभी िमारे सामने यि समस्या ि।ै शबना स्वाधीनता के दकसी प्रकार की उन्नशत सम्भव निीं। िमारे

    पूवदजों ने धमद-शचन्ता के क्षेत्र में स्वाधीनता दी थी और उसी के फलस्वरूप िमारा यि अपूवद धमद खड़ा ि।ै पर

    उन्िोंने समाज के पैर बड़ी-बड़ी जंजीरों से जकड़ ददये, शजसके पटरणामस्वरूप िमारा समाज, दो िब्दों में,

    भयंकर और पैिाशचक िो गया ि।ै पाश्चात्य देिों में समाज को सदैव स्वाधीनता शमलती रिी, उनके समाज को

    देखो और दफर दसूरी ओर उनका धमद कैसा ि,ै वि भी देखो।

    उन्नशत की पिली ितद िै - स्वाधीनता। मनुष्य को शजस प्रकार शवचार और वाणी में स्वाधीनता शमलनी

    चाशिए, वैसे िी उसे खान-पान, रिन-सिन, शववाि आदद िर एक बात में स्वाधीनता शमलनी चाशिए - जब तक

    दक उसके द्वारा दसूरों को कोई िाशन निीं पहुाँचती।

    िम मूखों की तरि भौशतक सभ्यता की शनन्दा दकया करते िैं। और क्यों न करें, अंगूर खटे्ट जो िैं! भारत

    की आध्याशत्मक सभ्यता की शे्रिता को स्वीकार करने पर भी यि मानना िी पड़ेगा दक सारे भारतवषद में एक

    लाख से अशधक यथाथद धार्मदक नर-नारी निीं िैं। अब प्रश्न यि ि ैदक क्या इन मुट्ठीभर लोगों की धार्मदक उन्नशत

    के शलये भारत के तीस करोड़ अशधवाशसयों को बबदरों का सा जीवन व्यतीत करना और भूखों मरना िोगा? क्यों

    एक भी आदमी भूखों मरे? भारत को उठाना िोगा, गरीबों को दो रोटी देनी िोगी, शिक्षा का शवस्तार करना

    िोगा और पुरोशिती की बुराइयों को ऐसा धक्का देना िोगा दक वे चक्कर खाती हुई एकदम अतलाशन्तक मिासागर

    में जा शगरें! ब्राह्मण िो या संन्यासी - दकसी की बुराई को क्षमा न शमलनी चाशिए। ऐसा करना िोगा, शजसस े

  • 17, 65 2020 5

    पुरोशिती की बुराइयों और सामाशजक अत्याचारों का किीं नाम-शनिान तक न रि,े सबके शलए अन्न अशधक

    सुलभ िो जाये और सबको अशधकाशधक सुशवधा शमलती रि।े

    स्वाधीनता पाने का अशधकार उसे निीं, जो स्वयं औरों को स्वाधीनता देने को तैयार न िो। मान लो,

    अाँग्रेजों ने सब अशधकार तुम्िारे िाथों में सौंप ददये। तो िोगा क्या? तब तो तुम प्रजा को दबाओगे और उन्िें कुि

    भी अशधकार न दोगे। गुलाम तो िशक्त चािता ि ैदसूरों को गुलाम बनाने के शलए।

    इसीशलए अब केवल अपने धमद पर जोर देकर तथा समाज को स्वतंत्रता देकर इस कायद को धीरे-धीरे

    शसद्ध करना ि।ै पुराने धमद से पुरोशिती िल को उखाड़ फें को, और इससे तुम्िें संसार में सवोत्तम धमद प्राप्त िो

    जायेगा। समझ गये न मेरी बात? भारतीय धमद के आधार पर क्या तुम यूरोप जसैा समाज बना सकत ेिो? मुझ े

    शवश्वास ि ैदक यि सम्भव ि,ै और िोना भी चाशिए।

    उत्साि से हृदय भर लो और सब जगि फैल जाओ। काम करो, काम करो। नतेृत्व करत ेसमय सबके दास

    िो जाओ, शन:स्वाथद िोओ और कभी एक शमत्र को, पीठ पीिे दसूरे शमत्र की शनन्दा करते मत सनुो। सब संगठनों

    का सत्यानाि इसी से िोता ि।ै अनन्त धैयद रखो, तभी सफलता तुम्िारे िाथ आयेगी। काम करो; काम करो;

    दसूरों के शित के शलये काम करना िी जीवन का लक्षण ि।ै

    िममें दकसी प्रकार की कपटता, कोई दरंुगी चाल, कोई दषु्टता न रि।े मैं सदैव प्रभु पर शनभदर रिा हाँ -

    सत्य पर शनभदर रिा हाँ, जो ददन के प्रकाि की भााँशत उज्ज्वल ि।ै मरते समय मेरी शववेक-बुशद्ध पर यि धब्बा न

    रि ेदक मैंने नाम या यि पाने के शलये, यिााँ तक दक परोपकार करने के शलए दरंुगी चालों से काम शलया था।

    दरुाचार की गन्ध या बदनीयती का नाम तक न रिने पाये।

    दकसी प्रकार का टालमटोल या शिपे तौर बदमािी या गपु्त िठता िम में न रिे - पदे की आड़ में कुि न

    दकया जाये। गुरु का शविेष कृपापात्र िोने का कोई भी दावा न करे। यिााँ तक दक िममें कोई गुरु भी न रि।े मेरे

    सािसी बच्चो, आगे बढ़ो - चाि ेधन आये या न आये; आदमी शमलें या न शमलें; क्या तुम्िारे पास पे्रम िै? क्या

    तुम्िें ईश्र्वर पर भरोसा ि?ै बस, आगे बढ़ो, तुम्िें कोई न रोक सकेगा।

    सतकद रिो! जो कुि असत्य ि,ै उसे पास तक न फटकन ेदो। सत्य पर डटे रिो, बस तभी िम सफल िोंगे।

    इसमें चाि ेथोड़ा अशधक समय लगे, पर तो भी शनस्सन्देि िम अपने इस कायद में सफल िोंगे – अवश्य िोंगे। इस

    तरि काम करते जाओ मानो मैं कभी था िी निीं। इस तरि काम करो मानो तुमसे से िर एक के ऊपर सारा

    काम शनभदर ि।ै भशवष्य की पचास सददयााँ तुम्िारी ओर ताक रिी िैं - भारत का भशवष्य तुम पर शनभदर ि!ै काम

    करत ेजाओ। भारत में लोग अशधक-स-ेअशधक मेरी प्रिंसा भर कर सकते िैं - पर व ेदकसी काम के शलय ेएक पैसा

    भी न देंगे। और दें भी तो किााँ से? वे स्वयं शभखारी िैं न? दफर गत दो िजार या उससे भी अशधक वषों स ेव े

    परोपकार करन ेकी बुशद्ध िी खो बैठे िैं। ‘देि', ‘जनसाधारण' इत्यादद के भाव व ेअभी-अभी सीख रि ेिैं। इसशलए

    मुझे उनकी कोई शिकायत निीं करनी ि।ै

  • 17, 65 2020 6

    धरती खामोि थी

    सजंय श्रीवास्तव

    धरती खामोि थी,

    जब तुम पेड़ काट रि ेथ े

    वो तब भी खामोि थी

    जब तुम उसे चीरकर

    पानी शनकाल रि ेथे,

    वो अब भी खामोि ि ै

    तुम्ि ेशवलाप करत ेदेखकर

    शचल्लाओ गला फाड़कर

    देखो जरा आाँखे शनकालकर

    दकस तरि उवदर धरती

    को बंजर तुमने बनाया

    आज उसने एक कतरा

    के शलए तुमको तरसाया

    ि ेस्वाथी !

    अब तो साँभल जाओ

    अपने कृत्य को न दोिराओ

    वरना इसस ेभी भयंकर

    दास्तान िोगा !

    धरती का रुप

    िायद रेशगस्तान िोगा !

    पानी का मोल

    तू समझ तो जायेगा,

    शबडम्बना ये ि ै

    दकसी कीमत पर भी

    पानी निी पायेगा ।

    https://www.facebook.com/bandole123/photos/a.608769469455054/912124045786260/?type=3&eid=ARDXr-OaBtDj941iXGpPFsajEYJdg4l7pR71ukWMu8D6KUN4_U5wom3CSKJVZe9JIobVUKW57Ck_iE6L&__xts__%5B0%5D=68.ARAQHynbtJOFN2jV5qNBM-9xQZdM6PfAyi5zAqtvja7gt77LqtQfYi1w6IlfHJmkPXJZsIfdVDQDL66mACmmSqlCYzSATIReHDTEp3d5qjB0QxDQqWdjjfVsXg78cSU6O5HlfWFY_MIUAgALjGPhiNcxhJR-EWfJkqzd4ozPd2D2QzIx8SW8gAhhMEEzTWPNaVVwfyBkkQ21bQ7l23Shk4Tcd25L4hzaCskzjYd_eAiywm3w-feqVNSUMuglaBKW_Jt-9xrpbwrm9UtayZ6PKrFEjgbOiFM-Bdqp15XPTi5nh9LMuRVvnIPTSOZXJQOX2sAFG-mrxuDzzvXwPc0ot0k&__tn__=EHH-R

  • 17, 65 2020 7

    समकालीन जीवन और मिात्मा गााँधी

    प्रो. शगरीश्वर शमश्र

    (पूवद कुलपशत मिात्मा गााँधी अंतरादष्ट्रीय शिन्दी शवश्वशवद्यालय)

    राष्ट्रशपता मिात्मा गााँधी का जीवन मिाकाव्य के एक ऐसे नायक का चटरत-सा ि ैजो समग्र भारतीय

    जीवन के शलए एक दशृष्ट उपलब्ध कराता ि ैपरंत ुशजसके सोच-शवचार की पृिभूशम में सारी मनुष्य जाशत और

    मानवता की सचतंा व्याप्त ि ै। उन्िोंने परदेसी राजा और िोषण करने वाली औपशनवेशिक अथदव्यवस्था के बीच

    गरीब और टूटे-शबखरे भारत के समाज के कड़वे सच की नब्ज पकड़ी । अपने अध्ययन और उसस ेभी ज्यादा

    भारत और शवदेि के शनजी अनुभवों स ेगुजरत ेहुए उन्िोंने व्यापक धरातल पर तत्कालीन सामाशजक-राजनैशतक

    पटरशस्थशतयों पर गिन शवचार के साथ-साथ उससे जुड़ने तथा बदलने की कायद-योजना बनाई और उस पर

    अमल दकया । उन्िोंने समस्त मानवता और मानव जीवन के मद्दे नजर एक वैशश्वक अध्यात्म की समझ शवकशसत

    की । उनके समर्पदत सामाशजक जीवन की घटनाएाँ देखने पर यिी लगता ि ैदक उनके सोच-शवचार और कमद ऐस े

    िी अध्यात्म-भाव से अनुप्राशणत िैं । ‘सत्य िी ईश्वर ि’ै यि खोज और उसे स्वीकार कर उसकी राि पर चलना

    अदम्य सािस का पटरचायक ि।ै वे किते िैं दक ‘यि सत्य रूप परमेश्वर मेरे शलए रत्न सचंतामशण शसद्ध हुआ ि ै।’

    इसकी पूर्तद में िी वे अनावश्यक ददखावा और आडम्बर त्याग कर वे िरीर, मन और आत्मा तीनों के शलए जरूरी

    खुराक जुटाते रि।े अस्तेय, असिसंा और अपटरग्रि के ब्रत गााँधी जी के दैशनक जीवन के स्वाभाशवक अंग बन गए

    थे। इन सबका आधार सत्य िी ि।ै

    सवोदय, स्वराज, असिसंा, ग्रामोदय, सत्याग्रि और िटरजन जैसे कमदशनि शवचारों को ले कर गााँधी जी न े

    समाज के शलए व्याविाटरक स्तर पर जो ताना-बाना बुना वि शनशश्चत रूप स ेएक सवद-समावेिी दशृष्ट पर टटका

    था। यद्यशप वे सामाशजक, आर्थदक और राजनैशतक मोचों पर दकस्म-दकस्म के काम कर रि े थे ‘सवोदय’ का

    शवचार और नैशतक–आध्याशत्मक आधार िी उनकी कसौटी बना रिा। सवोदय सच्चा लोकतन्त्र ि ै जो शविुद्ध

    नैशतक िशक्त पर आधृत जनता का प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्य । इन्िीं को लेकर वे अपनी नीशतयों की उपयुक्तता को

    जााँचते-परखते थे। सबका भला और भलाई के शलए त्याग के शलए तैयार रिना उनके स्वभाव का अशभन्न अंग िो

    गया था। गााँधी जी के सचंतन-फ़लक पर एक समतामूलक समाज और सबकी मूलभूत जरूरतों की पूर्तद की सचतंा

    िमेिा िाई रिती थी। ‘स्वदेिी’ का स्वागत भी उन्िोंने इसी दशृष्ट से दकया। वे चाित ेथे दक अपनी आवश्यकता

    की वस्तुओं का उत्पादन अपने देि में िी िो और उन्िीं का शवतरण और उपभोग िोना चाशिए। उनके रचनात्मक

    कायों में कुटीर उद्योग और िस्तकला पर अत्यशधक ज़ोर भी िायद इसीशलए था दक अशधकांि जनों को रोजगार

    शमल सके, उनकी आय बढ़े और उनमें स्वावलम्बन आ सके । समाज के दीन-िीन अंशतम जन के जीवन स्तर में

    सुधार के शलए वे समर्पदत रि।े

    गााँधी जी ने अपने आरशम्भक शवचारों को दशक्षण अफ्रीका में प्रवास के दौरान अपनी सामाशजक

    प्रयोगिाला में परखा, आजमाया था और भारत में तो उनका पूरा जीवन िी स्वराज पाने के शलए सामाशजक

    पटरशस्थशतयों के बीच चल रि ेतरि-तरि के प्रयोगों स ेभरा पड़ा था। उनका पूरा जीवन उभरते सामाशजक

    यथाथद को पकड़ने, उसमें िाशमल िोन ेऔर उसे रचन ेकी जद्दोजिद स ेभरा पड़ा था। दशक्षण अफ्रीका में पचीस

    साल के युवा गााँधी ने प्रवासी भारतीयों के शितों की रक्षा तथा रंग-भेद की नीशत के शवरुद्ध कायद करने के शलए

    एक संगठन की स्थापना की और उसी के साथ जो सामाशजक जीवन की यात्रा िुरू हुई वि अंशतम क्षण तक

    जीवनपयंत अशवराम चलती रिी। इसमें ‘शनजी’ और ‘सावदजशनक’ के बीच का भेद खोता चला गया। उतार-

    चढ़ाव भरी इस अनथक यात्रा में क्या कुि निीं था। जेल जाने से लेकर सत्याग्रि, उपवास, आंदोलन, माचद

  • 17, 65 2020 8

    शनकालना, संस्थाओं का शनमादण, पत्रकाटरता, नेतृत्व, शिक्षा का प्रयोग, आश्रमों का शनमादण, अध्ययन, लेखन और

    पत्राचार करते हुए गााँधी जी ने एक कमदठ साधक का जीवन शजया। यि असाधारण कतृदत्व सिज न था। इसके

    शलए बड़े कड़े आत्मानुिासन से उन्िोंने अपने को साधा था।

    अपने इस कायद में लक्ष्यों स ेज्यादा साधन की िुशचता उनके शलए बड़े मित्व की थी और शनरंतर इसका

    आग्रि करते रि।े उन्िोंने िर तरि की सिसंा का शवरोध दकया। उनके मन में व्यशक्त-स्वातंत्र्य के शलए भरपूर

    आदर था परंतु पूरे समाज के कल्याण की आकांक्षा िी सवोपटर थी। सभी समुदायों को साथ लेकर चलना,

    अस्पृश्यता से लड़ना, भाई-चारा स्थाशपत करन ेके शलए काम करना और सावदभौम जीवन की अवधारणा को

    आगे बढ़ाना गााँधी जी के मानवीय पक्ष को व्यक्त करते िैं जो स्वराज और सवोदय की उनकी यात्रा में पाथेय जैस े

    थे। कृशष को सामुदाशयक सम्पशत्त स्वीकार करते हुए व्यशक्त को ट्रस्टी मान कर सामाशजक-आर्थदक व्यवस्था की

    संकल्पना की थी। राजनैशतक स्वातंत्र्य के साथ रचनात्मक कायद को भी जोड़ा शजसमें शिक्षा एक मित्वपूणद पक्ष था।

    वस्तुतः गााँधी जी ने मानुषी स्वभाव के अपने स्वप्न को साकार करने शलए शिक्षा की एक सवांगपूणद

    संकल्पना प्रस्तुत की थी । वि बुशद्ध के शवकास के शलए आत्मा और िरीर के शवकास को आवश्यक मानते थे।

    इसके शलए वि साक्षरता की जगि िस्तकला के साथ शिक्षारम्भ करने पर बल देते थे। सिकारी दिया-कलाप,

    सामुदाशयक जीवन और वयस्क लोगों की सामाशजक सेवा का अवसर भी ददया जाना चाशिए। सेवा और त्याग में

    िी शिक्षा की चटरताथदता शसद्ध िोती ि।ै चटरत्र को दढ़ृ बनाना भी शिक्षा के आयोजन का मुख्य भाग ि।ै उनके

    अनुसार चाल-चलन या सदाचरण शिक्षा की बुशनयाद ि ै । ‘यदद बुशनयाद पक्की िोगी तो और सब कुि बच्च े

    अवसर पर दसूरों की सिायता स ेया अपने आप सीख लेंगे।’ गााँधी जी पैसा कमान ेकी जगि ‘अच्िा व्यशक्त

    बनाना देि सेवा करना’ मानते थे। िम सच्च ेअथों में मनुष्य बनें यि पिली शिक्षा ि।ै वे पाश्चात्य सभ्यता और

    संस्कृशत के अंधानुकरण के शवरुद्ध थे और मानते थे दक इससे भारत का उत्थान सम्भव निीं ि।ै उन्िोंने शवदेिी

    भाषा अाँग्रेजी माध्यम स े शिक्षा के बौशद्धक और नैशतक आघात को देख कर मातृभाषा के उपयोग का समथदन

    दकया ि।ै उनके द्वारा प्रस्ताशवत नई तालीम स्वावलम्बन पर बल देती ि ै । बुशनयादी शिक्षा को वि अपनी

    सवदशे्रि भेंट मानत ेिैं। वि किते िैं दक ‘शजस दशुनया के शलए मैं िटपटा रिा हाँ वि इसमें से उत्पन्न की जा सकती

    ि।ै यि मेरी आशखरी वसीयत ि।ै’ ‘मनुष्य न तो कोरी बुशद्ध ि,ै न स्थूल िरीर और न केवल हृदय या आत्मा िी ि।ै

    सम्पूणद मनुष्य के शनमादण के शलए तीनों के उशचत और एकरस मेल की आवश्यकता िोती ि ै । विी शिक्षा की

    सच्ची व्यवस्था ि।ै’ आज की शिक्षा नीशत के शलए नई तालीम में बहुत कुि अनुकरणीय ि।ै

    देि को स्वतंत्रता तो शमली, शवदेिी सत्ता से िुटकारा भी शमला परंतु रचनात्मकता पर यथेष्ट ध्यान

    निीं ददया गया। स्वावलम्बन और राष्ट्र शनमादण का काम शपिड़ गया। शनःस्वाथद जन सेवा और चटरत्र दलुदभ

    िोता गया। िमारी राजनैशतक दशृष्ट शवभक्त चतेना वाली और दशुवधाग्रस्त थी। िम मिात्मा गााँधी का समाजवाद

    भी चाित ेरि ेऔर शवदेिी रास्ता भी अपनाते रि े। मिात्मा गााँधी देि-पे्रम और मानव-पे्रम के बीच कोई अंतर

    निीं करत ेथे। व ेकिते थ ेदक ‘मैं भारत का उत्थान इसशलए चािता हाँ दक सारी दशुनया उससे लाभ उठा सके । मैं

    यि निीं चािता दक भारत का उत्थान दसूरे देिों दक नींव पर िो।’ वि स्वराज्य के द्वारा सारे शवश्व की सेवा

    करन े का स्वप्न देखते थे। आज पयादवरण शवनाि, चटरत्र की शगरावट और सिसंा की शवश्वव्यापी चनुौती िमें

    सोचने को बाध्य कर रिी ि ै दक िम िरीर, बुशद्ध और आत्मा के संतुशलत शवकास पर शवचार करें। आज तजे

    रोिनी में चौंशधयाई आखों से जब सब धुाँधला नजर आ रिा ि ैमिात्मा गााँधी का आलोक एक शवकल्प प्रस्तुत

    करता ि ैशजसकी उपेक्षा निीं की जा सकती ।

  • 17, 65 2020 9

    एक और सच

    िलै अग्रवाल

    सामने औंधे मुाँि पड़ी वि औरत बस िशड्डयों का ढााँचा मात्र थी जो जरा भी शिलाने-डुलाने क्या, िूने

    तक से टूट सकती थी। सूखे फूल-सी झर सकती थी। मुझे यि सब तभी समझ लेना चाशिए था जब सुबि-सुबि,

    सात बजे, बारबरा का फोन आया था - "िमारी मदद करो। यिााँ िाइशसस सेंटर में एक शिन्दसु्तानी औरत िै,

    शजसन ेिफ्ते भर से कुि भी निीं खाया-शपया। स्नान तक निीं दकया ि।ै दकसी से बात निीं करती। पास तक निीं

    आने देती। पुशलस जब से िोड़कर गई िै, ऐसे िी चुपचाप, एक िी जगि पर गुमसुम बैठी ि।ै िम सबको बहुत

    दफकर ि ैइसकी। िायद अाँगे्रजी न बोल पाती िो, िायद तुम्िारे आगे िी खुले और तुमसे िी कुि मदद शमल जाए

    इसे? क्या पता तुम िी इसके शलए कुि कर पाओ?"

    देखते िी सब कुि समझ में आ गया। बात बस शिन्दी या अाँग्रेजी बोलने तक निीं थी। शसफद कुि सवाल

    और जबाव की निीं थी। मुरदे में जान फूाँ कने जसैी, कटठन और दलुदभ थी। कमरे की मरघटे वाली उदास गंध दरू

    से िी पिचानी जा सकती थी।

    मैली-कुचैली वि औरत सो रिी थी या जग रिी थी, यि तो निीं जान पाई, पर इतना शनशश्चत था दक

    उसने खुद को काट कर कब का दशुनया स ेअलग कर शलया था। उस बीमार-उदास भभके को झेलती मैं खुद भी

    विीं जमीन पर, उसके पास िी बैठ गई। आकंठ डूबी इस औरत से क्या और कैसे कहाँ, समझ निीं पा रिी थी।

    उसे बचाने आई थी और अब उस कमरे में आकर खुद भी डूबने लगी थी। इतना अाँधेरा दक चेिरा देखना तो दरू

    अपना िाथ तक निीं देख पा रिी थी। बैठे-शबठाए क्या मुसीबत मोल ले ली। खुद को शधक्कारती उठी और कमरे

    के परदे और शखड़की दोनों िी खोल ददए। ताजी िवा की जरूरत िम दोनों को िी थी।

    थोड़ी िी देर में उन अस्त-व्यस्त कपड़ों के ढेर में थोड़ी-सी िलचल हुई और कााँपते पैर शसकुड़कर सीने स े

    सट गए। मैंने शबस्तर का कम्बल उठाकर उसे उढ़ा ददया। वि औरत िायद पूरी तरि से अचेत निीं थी, क्योंदक

    कम्बल िलका-िलका, दबी-घुटी सााँसों और शससदकयों से बीच-बीच में शिल रिा था, गिरी सााँसें ल ेरिा था।

    शिम्मत करके िाथ उस कम्बल पर रख ददया। उसके दखु से बीमार िरीर को आशिस्ता-आशिस्ता सिलाने लगी,

    "इस तरि से मन दखुाने से क्या फायदा? तुम चािो तो िमारी मदद ले सकती िो। अपनी परेिानी दरू कर

    सकती िो।"

    कोई जबाब निीं शमला। शससदकयााँ जरूर तेज िो गईं। िायद सिानुभूशत के कान आदी निीं थे या दफर

    थोड़ा और अपनापन मााँग रि ेथे, बालों में उाँगशलयााँ फेरत ेहुए मैने पूिा, "किााँ से आई िो?"

    "अबरगवानी से।" आवाज मानो गले से निीं दकसी अंधे कुाँ ए से आ रिी थी। िफ्ते भर मौन रिकर बोला

    जाए, या बस रोते िी रिा जाए। वि भी ग्लाशन और खनू के आाँसू तो िायद ऐसी िी अस्फुट और फुसफुसी-सी

    आवाज़ िी शनकलती ि।ै

    "मैं यिााँ, इस देि की निीं, अपने देि की बात कर रिी हाँ?" एक पतली सी सिायता की डोर मैंने उसकी

    तरफ फेंकने की कोशिि की।

    पता निीं भाषा का अपनापन था या वेिभूषा का, िम दोनों जुड़ रि ेथे। उसन ेन शसफद आाँखें खोल ली

    थीं वरन् आाँसू भरी आाँखों से मेरी तरफ देख भी रिी थी ।

    "क्या नाम ि ैतुम्िारा?"

  • 17, 65 2020 10

    "कनकलता, िम भागलपुर, शबिार से िैं।"

    अब वि मेरी बात न शसफद सुन रिी थी अशपतु थोड़ा-थोड़ा मुझे समझ भी रिी थी। मेरे िोठों पर भी अपनेपन

    की मुस्कान आ गई। माथे पर लगातार चमकती, शगरी शबन्दी का फीका सफेद शनिान और पैरों में पड़े हुए

    शबिुए बता रि े थे दक सफल या असफल जैसी भी िो कनक की िादी िो चुकी थी और पशत शजन्दा था।

    "तुम्िारे पशत का क्या नाम ि?ै"

    "िरैी प्रसाद।"

    "िरैी प्रसाद!" मैंने िब्द िल्के आश्चयद से दिुराए। वसैे तो िटर का िरैी और जयदकिन का जैक्सन बनना

    यिााँ आम बात थी।

    तब पिली बार मुाँि पर नयी-नवेशलयों की लाली और शझझक के साथ उसन े मुझे बताया दक उसके

    सास-ससुस ने वैसे नाम तो िटरप्रसाद िी रखा था पर जबसे यिााँ आया िै, सबको िरैी िी बतलाता ि।ै अब तो

    मरीज भी उस ेडॉ. िरैी िी किकर बुलाते िैं।

    "मरीज..." मेरा आश्चयद और कौतुिल दोनों िी बढ़ते जा रि ेथे, "क्या करत ेिैं तुम्िारे पशत?"

    "जी.पी. िैं यिीं अबरगवानी में।"

    "तुमन ेपिले क्यों निीं बताया दक तुम डॉ. प्रसाद की पत्नी िो?" मैंने आश्चयद के साथ पूिा। "डॉ. प्रसाद

    तो यिााँ के सफल मनोवैज्ञाशनक माने जाते िैं। उनकी पत्नी यिााँ, इस िालत में?"

    "पत्नी निीं, बस ब्यािता िी किो। पत्नी के सारे सुख तो अल्वा ले रिी िै।"

    "यि अल्वा कौन ि?ै" अब मेरा कौतुिल िुपाए निीं िुप रिा था।

    "उसकी दसूरी।"

    "दसूरी क्यों? पत्नी क्यों निीं?" मैंने बातचीत को कुरेदते हुए पूिा।

    "इसशलए, क्योंदक शवशध-शवधान से िादी निीं हुई। बस कागज पर दस्तखत करके घर में आ बैठी। न

    दकसी न ेकन्यादान दकया, न दकसी न ेमंत्र पढे। आगे-पीिे कोई निीं था। इसके िी अस्पताल में नसद थी। विीं सगं

    काम करते-करत ेफााँस शलया िोगा? मेरी मौसी ने तो सगाई के वक्त िी किा था दक ये डॉ. बडे रशसया िोत ेिैं,

    चौबीसों घंटे इनकी नसों से िेड़़-िाड़ और िाँसी मजाक चलती रिती ि।ै पर पापा न ेतुरंत िी बात काटी थी -

    िाँसी-मजाक निीं करें तो चौबीसों घंटे जीवन और मौत से कैसे खेल पाएाँ बेचारे? वे तो इसके गुण गाते-गाते न

    थकते थे। डॉ. लड़का तो ढूाँढे निीं शमलता, जिााँ बैठ जाए रोटी कमा ले, जिााँ खड़ा िो जाए विीं इज्जत पाए।

    मेरी िी दकस्मत खोटी थी जो यि ऐसा शनकला। निीं तो लोगों के तो खोटे शसके्क भी खूब चलते िैं। दफर

    कोई सभी डॉ. खराब िी थोड़े िोते िैं। दशुनया में एक से एक िरीफ डॉ. भी िैं। इस अल्वा की भी थोड़ी बहुत

    गलती तो िोगी िी? देखा िोगा बड़े घर का लड़का िै, बस आ शचपकी। शबना देखे, दक आगे पीिे कौन-कौन िैं,

    दकसका घर तोड़ रिी ि?ै वैसे भी इन िोटी जात वालों में तो यि सब चलता रिता ि।ै िोटी जात की िी ि ै-

    तभी तो आाँखों में िरम का एक भी बाल निीं। एक ददन खु़द िी बता रिी थी दक इसके बाप-दादे बरसों पिले

    सड़क बनाने बंधुआ मजदरूों की तरि अफ्रीका गए थे। िायद यिी था इसमें जो मुझमें निीं और िायद यिी था

    जो इसे पसंद भी आया!"

    उन झुकी हुई आाँखों का आिोि और दखु मेरे मन को िू रिा था, शवचशलत कर रिा था- "तुमन ेकोई भी

    शवरोि निीं दकया। आवाज निीं उठाई दक तमु्िारे रिते यि सब निीं कर सकता वि?"

  • 17, 65 2020 11

    "पर मैं यिााँ िोती, तभी तो आवाज उठाती। मैं तो विााँ मोतीिारी में बैठी अपन ेराकेि को पाल रिी

    थी। जरा सा बेटा समझदार िो जाए तो पशत के पास जाऊाँ , ऐसे रंग-शबरंगे सपन े देख रिी थी।" ब्लाउज के

    अन्दर से, किीं सीने में िुपी, उसने एक सुन्दर और स्वस्थ सात-आठ साल के बच्चे की तस्वीर मेरे आश्चयद से फैल े

    िाथों पर रख दी।

    "जब मेरे भाइयों को पता चला तो विााँ गााँव में तो लठ्ठ चल गए। सनुत ेिैं पााँच मिीने की गाशभन भी

    थी यि तभी िादी के समय। पता निीं प्यार करता था या इसी दबाब में िादी कर ली। बाद में वि बच्चा भी

    खराब िो गया। आज तक वसैी की वैसी िी ि।ै दसूरे का घर फूाँ ककर भला कौन सुखी रि पाया ि?ै बस मेरी

    िाती पर मूाँग दलन ेके शलए, मेरे घर में घुस आई। मेरे िी दधू पीते बेटे से बाप िीन शलया। पर दकसे दोष दूाँ?

    कोई सी भी जााँघ उघाडूाँ, नंगी तो बस मैं िी िोती हाँ।”

    अगले िफ्ते िी मेरे ससुरजी मुझे यिााँ इसके पास िोड़ गए थे। इस धमकी के साथ दक देवताओं को

    िाशजर-नाशजर मानकर िाथ पकड़ा िै, मााँग भरी ि।ै अब जीते-जी शनभाना तो पड़ेगा िी। मैं अभाशगन भी इस

    अनकिी ितद पर सब िार बैठी, बेटे की खाशतर इनकी चाकरी में जुट गई, बस रोटी और एक कोठरी की

    तनख्वाि पर। नौकरानी, मेितरानी, सब बन गई। ये भी खुि थे और मैं भी। इनका घर चल रिा था और मैं

    अपनों की आाँख में, पशत के घर में रि रिी थी। क्या किते िैं आपकी अाँग्रेजी में श्रीमती कनकलता प्रसाद से बस

    एक िाउस मेट बनकर। यि बात दसूरी ि ैदक इन लोगों ने मुझे मेट निीं िाउसकीपर या िाउसिले्पर िी किा।

    अाँग्रेजी में किो या शिन्दी में अथद तो निीं बदल जाता। गाली तो गाली िी रिती िै, फाउल माउथ तो साफ निीं

    िो पाता। मैं चुपचुप िर एब्यूज और दवु्यदविार सिती झेलती रिी। भूखी-भूखी शपटती और खटती रिी। खाना

    बनाती, िाड़-ूपोंिा करती, कपडे-शबस्तर सब कुि और िाम िोते िी इसके आने के पिले चुपचाप आाँसू पीकर

    अपने कमरे में बन्द िो जाती।

    यिी मेरा काम था। यिी मेरी डयूटी थी। यिी बताया था मुझे अल्वा और इसने। इसके बदले में यि मेरे

    बेटे को पााँच िजार रुपए िर मिीने भेजता था। दकतने कम पैसों में दोनों शजम्मेदाटरयााँ शनभ जाती थीं। बाप का

    फजद और ब्यािता का कजद। दकतनी आसानी से, दोनों स ेिी शसलट जाता था यि। और िायद इसकी आत्मा भी

    निीं कचोटती थी दक मुझसे मुफ्त में काम करा रिा ि।ै वैसे पता निीं आत्मा थी भी या निीं। पर मैं खुि थी।

    मेरा राकेि माउन्ट-व्यू स्कूल, बंगलौर में पढ़ रिा था और एक ददन जब बड़ा िोकर, खूब बड़ा आदमी बनकर

    आएगा, मेरे सारे िी आाँसू पोंि देगा। अब तो िायद इसके कंध ेतक आता िोगा। क्या पता िल्की-िल्की मूाँिें भी

    आ गई िों। इससे तो बहुत अच्िी कद-काठी का ि ैवि। पता निीं मुझे पिचान भी पाएगा या निीं?" बेटे की

    याद आते िी कनकलता अपने दखु को थोड़ी देर के शलए शबल्कुल भूल गई। उसकी गवीली दीप्त मुस्कान तैरकर

    आाँसुओं के संग पूरे चेिरे पर फैल गई।

    "पर यि सब कैसे हुआ?" उसकी जली पीठ के घाव और टूटी कंध ेकी िड्डी के बारे में चािकर भी, मैं

    खुलकर कुि भी तो निीं पूि पा रिी थी।

    "यि सब तो मेरी नौकरी के साइड पकद िैं।" उसने ददद से तार-तार, रोने से भी बदतर मुस्कुरािट से मुझ े

    बताया - "यि तो रोज की िी बात ि।ै कभी माँिगी िाकरी टूट जान ेसे, तो कभी िारी-बीमारी की बजि से। जब

    भी काम रि जाए तभी। िुरु-िुरु में तो बस डााँट पड़ती थी, दफर मार पड़ने लगी। और दफर जब मेरे दखुत ेतन

    और मन से गलशतयााँ िोती िी गईं, तो बात और भी अशधक िारीटरक दवु्यदविार तक जा पहुाँची। वैस ेजलत े

    गरम शचमटे से तो मैं डॉ. वमाद से शमलने के बाद िी शपटने लगी थी।"

    दो पल रुककर कनकलता न ेअपने उमड़ते दखु को लगाम देनी चािी दफर शबना कुि पूिे, शबना कुि

    सुने िी, बोलती चली गई। मानो मुझसे निीं खुद से बात कर रिी िो, मानो आज एकबार सब कुि दबा-ढाँका

  • 17, 65 2020 12

    याद करके िमेिा के शलए भूलना चािती िो या दफर बरसों का पकता फोड़ा आज िलके स े िू भर जाने स े

    लपलप फूट पड़ा था। और अब इस सारे सडे-ग़ले मवाद और पानी को बिाकर िी रुक पाएगा।

    "डॉ. वमाद िमारे पास के दरभंगा के िी थे। उनकी पत्नी िीला से मैं यूाँ िी बाजार में आते-जाते शमल गई

    थी। बाद में जब उन्िें पता चला था दक वि मेशडकल स्कूल में मेरे बड़े भाई के साथ िी पढ़ी थीं, तो मेरे शलए

    उनके मन में एक िमददी, एक अपनापन-सा िो गया।

    कभी-कभी तो वि खुद िी िाम को मेरे पास आन ेलगीं, मुझे भी बुलान ेलगीं। ऐसी िी एक दीवानी

    िाम को मैं अपने घर और अपने बारे में सबकुि बता बैठी। घर की इज्जत भरे बाजार में उघाड दी। बातों-बातों

    में बात डॉ. वमाद के कानों तक जा पहुाँची। वि खुद मुझस ेपूिने आए दक उन्िोंन ेजो कुि सुना िै, समझा ि,ै क्या

    सच ि?ै मैं अभाशगन जबाब तक न दे पाई, बस फूट-टफूटकर रोती रि गई। कैसे किती दक मेरी मााँग तो शसन्दरू

    से िी भरी गई थी पर मैं कुलशच्िनी िी कुि न साँभाल पाई और न जाने कब अपनी मााँग राख से भर लाई।

    उन्िोंने मुझे िोटी बिन की तरि सान्त्वना दी। समझाया दक सब दफर से ठीक िो जाएगा। वि इस नसद अल्वा

    को शनकालकर िी दम लेंगे। जरूरत पड़ी तो मार-पीट से भी निीं शिचदकचाएाँगे। क्योंदक एक बीबी के रित े

    दसूरी िादी न भारत में की जा सकती ि ैऔर न यिााँ यरूोप में। िमारा बेटा राकेि भी यिााँ आ जाएगा। और

    तब िम खुिी-खुिी एक साधारण पटरवार की तरि साथ-साथ िी रिेंगे।

    और अगर िरैी निीं माना, उनकी बात निीं सुनी, तो वि उसकी अकल टठकान ेलगवा देंगे, जेल तक

    शभजवा सकते िैं। इतनी पहुाँच और पिचान तो उनकी ि ैिी यिााँ पर। ससरुा, साइकैटट्रस्ट बनना चािता िै,

    अपने घर तक को तो साँभाल निी पा रिा, मरीजों की मानशसक बीमारी क्या दरू कर पाएगा? और उसी ददन

    िाम को िी डॉ. वमाद ने मेरे पशत का कॉलर कार स ेशनकलते िी, विीं घर के दरवाजे पर िी पकड़ शलया। खड़े-

    खड़े िी घंटों दोनों में बहुत सारी बातें हुईं। और उस ददन, पिली बार मैं आउट िाउस में निीं, अपने घर के अंदर

    सोई। अगले ददन मैंने भगवान के आगे माथा भी टेका था। िायद अब मेरे ददन दफर जाएाँ? अब ससुराल और

    मायका दोनों िी दफर स ेजो शमल गए थ ेमुझे। पर वि लाँगड़ी खुिी ज्यादा ददन तक न चल सकी। मिीने भर के

    अन्दर िी िम सब केन्ट से उठकर वेल्स के इस िोटे से गााँव में आ गए। उसके बाद तो दकसी भी परदे की जरूरत

    निीं थी। मैं बस मेट लता थी। बािर की दशुनया से मेरे सभी कौनटैक्ट तोड ददए गए थे। राकेि की खबर और

    शचटठ्ठयााँ तक शमलनी बन्द िो गईं।

    मैके, ससुराल दकसी ने भी पलटकर मेरे बारे में निीं पूिा। िायद सबको िी शवश्वास िो गया था दक

    कनकलता नाम की औरत अब शजन्दा िी निीं िो सकती।

    उसके बाद की किानी आपके आगे ि।ै िरैी शजस बदिवासी और नफरत स े मुझे मारता-पीटता था,

    उससे दकसी पत्थर का सीना भी चटक जाता पर मैं तो जाने दकस शमट्टी की बनी हाँ? कुि भी निीं चटका-टूटा।

    एक ददन जब मेरी चोटों से अल्वा डर गई या उसे लगा दक अब मैं दकसी काम की निीं, तो घर से बािर शनकाल

    फें का। और िरैी से िुपकर पुशलस को फोन भी कर ददया। और इस तरि स ेमैं यिााँ, आप लोगों के पास, बोझ

    बनकर रिने आ गई। एक अनबूझ पिलेी-सी, आप सबका कौतुिल बन गई। किते िैं इन जगिों का पता सबको

    निीं शमल पाता, तभी तो वि मुझे ढूाँढ निीं पाया ि ैया िायद उसने इसकी जरूरत िी निीं समझी िोगी।"

    उसकी आाँखों की नकारात्मक खाइयों में लगा वि खुद को कब का डूबो चकुी थी। इतनी घृणा और

    नफ़रत की शजन्दगी एक िी जीवन में जी पाना इतना आसान तो निीं। शजन्दगी दकसी के शलए इतनी कड़वी और

    दगाबाज िो सकती ि ैयि मेरे शलए आज एक नया और शघनौना सच था। जी करा दक उस सामन ेदिुरी बैठी

    कनक को बााँिों में भर लूाँ। बच्चों सा प्यार दूाँ।

  • 17, 65 2020 13

    चौके से गरम-गरम सूप ले आई और अपने िाथों से उसे शपलाने लगी। उसकी आाँखों का िर आाँस ू

    चुपचाप बिकर मेरे मन में उतर रिा था। अब िायद वि बहुत थक गई थी। उसे आराम चाशिए था। निाना-

    धोना तो कल भी िो सकता ि।ै मैंने उसके रूखे और उलझ ेबाल, िलका-सा तेल लगाकर काढ़ ददए। िायद थोड़ा

    चैन शमला िो। साफ-सुथरे, अभी-अभी बदले शबस्तर में उसे शलटाकर मैंन ेपूिा, "कनक अब तमु्िें आराम करना

    चाशिए मैं कल दफर आऊाँ गी। खूब सारी बातें करेंगे और बंगलौर में राकेि से भी तमु्िारी बात करवाएाँगे। तब

    तक तुम अपना ध्यान रखना और आराम से सोना। मैं यि बत्ती बन्द कर देती हाँ, पर यि नाइट-लाइट जली िोड़

    देती हाँ। यि कॉल-बेल भी तुम्िारे शबस्तर के पास िी ि।ै दकसी भी चीज की जरूरत िो तो बुला जरूर लनेा, नसद

    तुरंत िी आ जाएगी। तुम काफी कमजोर और बीमार िो। तुम्िें मदद लेने में शझझकना निीं चाशिए। आदमी िी

    आदमी के काम आता ि।ै तमु ठीक िो जाओ, तो चािो तो, तुम भी कई दीन-दशुखयों की मदद कर सकती िो।

    तुम्िारा काम मैं यिीं पर लगवा दूाँगी। यि पानी का जग और थोडी-सी ददद की गोशलयााँ िोडे़ जा रिी हाँ। ज़रूरत

    समझो तो ले लनेा।"

    उसने बेिद थकी नज़रों से मरेी तरफ देखा और शवदा में िाथ जोड़ ददए।

    सुबि-सुबि दफर से फोन की ककदि घंटी बजी और दफर से नींद पूरी िोने से पिले िी मेरी आाँख खुल

    गई। आज तो सात भी निीं, सुबि के िि िी बजे थे। लाइन पर दफर से बारबरा िी थी। जल्दी से आओ। तमु्िें

    मेरी मदद करनी ि।ै इट इज एन इमरजेंसी। मैं कुि पूिूाँ, कहाँ, इसके पिले िी वि फोन रख चुकी थी।

    आधे घंटे के अंदर िी मैं िाइशसस सेंटर में थी। सब लोग इधर-उधर दौड़-भाग रि ेथे मानो आज इस

    सेंटर में कोई बडी सी िाइशसस टूट पडी थी। टरसैप्िन पर िी ली ने कनक के कमरे की तरफ जाने का सकेंत कर

    ददया। धड़क़ते ददल स ेमैं शलफ्ट का कॉल-बटन दबाकर, बेचैन, सीदढयों पर दौड पड़ी। शलफ्ट का खुला दरवाजा

    कुि देर इंतजार करके, यूाँ िी बन्द िो गया।

    सामने बारबरा दरवाजे पर िी खड़ी शमली, लगता ि ैरात में िी सब खतम िो गया। िमने तो सोचा था

    दक िायद अब खुली ि,ै तो ठीक िी िो जाएगी।

    मेरी नजर चनै से सोई कनकलता पर पड़ी, क्या बात ि?ै क्यों तुम परेिान िो बारबरा, यि तो बस

    सोई हुई ि?ै मैने खुद को तसल्ली देनी चािी।

    "िायद कौरोनर केस िो। इस बृिस्पशतवार को िी दिशमनेिन ि।ै यिीं फॉरेस्ट एकड़ ग्रेवयाडद में। आ

    पाओगी, तो अच्िा िी िोगा। िमें तो तुम्िारे शिन्द ूसंस्कारों के बारे में कुि भी पता निीं। तुम िायद जानती िो

    या दकसी से पूिकर िी आ जाना। बेचारी की आत्मा को िाशन्त शमल जाएगी। वैस ेभी, िमें तो निीं पता दक

    इसका कोई टरश्तेदार ि ैभी, या निीं? तमु्िें दकसी के बारे में, इसने कुि बताया िो तो इन्फॉमद कर देना।

    मेरी ग्लाशनपूणद अपराधी आाँखों न ेशबस्तर के नीच ेलुढ़क़ी खाली दवा की िीिी को देख शलया था। खुद

    को समझा पाना बहुत िी मुशश्कल िो रिा था। कनक सच में िी मुझसे जुड़ गई थी। क्या ज़रूरत थी इसे यि

    गोशलयााँ पकड़ाने की? क्या अपनों से शवश्वासघात की, मुाँि खोलन ेकी यि सजा दी ि ैउसने खुद को? उस ेतो ददद

    सिन ेकी आदत थी? कभी-कभी भला चाित ेहुए भी, िम जाने दकस-दकस अनथद के साधन बन जात ेिैं! िायद मैं

    अपने को कभी माफ न कर पाऊाँ ! घर लौटते िी सबसे पिले राकेि को बंगलौर फोन शमलाया। पता चला दक

    राकेि प्रसाद नाम का तो कोई बच्चा विााँ कभी आया िी निीं। वि भी मोतीिारी स ेतो िरशगज िी कोई भी,

    कभी भी निीं। शपिले बीस साल में तो निीं िी। िााँ, झटरया का एक राकेि अवस्थी जरूर ि।ै यदद मैं चाहाँ, तो

    उसे वे बुला सकते िैं या मैसजे वगैरि दे सकते िैं।

    चुपचाप भारी मन से फोन रख ददया। कनक के राकेि का कोई और पता-टठकाना मेरे पास