reVIew oF lIteratUreoldrol.lbp.world/UploadArticle/409.pdfसम ज क क hय ण और वक...

5
ISSN: 2347-2723 Impact Factor : 3.3754(UIF) VolUme - 5 | ISSUe - 2 | September - 2017 reVIew oF lIteratUre ________________________________________________________________________________________ ________________________________________________________________________________________ Available online at www.lbp.world 1 ‘महासमर’ उप᭠यास कᳱ पृभूिम मᱶ मानवीय मू᭨य मंजू अरोरा अनुसंिध᭜सु- कला एवं भाषा िवभाग,लवली ᮧोफेशनल यूिनवᳶसटी , फगवाड़ा, पंजाब. सारांश: णी जगत मᱶ ᳡ास लेता मनुय अपने िववेक से और मानवीयता के गुण-बोध से अ᭠यᲂ जीवᲂ से पृथक सᱫा रखता है | सािह᭜य जगत के मूधᭅ᭠य सािह᭜यकार एवं मुयत: डॉ. नरᱶ कोहली अपने महा-उप᭠यास ‘महासमर’ के घटना ᮓमᲂ, पᳯरिथितयᲂ एवं चᳯरᲂ से मानवीय मू᭨यᲂ कᳱ अपᳯरहायᭅता को जागृत और पुनजाᭅगृत करने का ᮧयास सा करते हᱹ | मू᭨य जीवन को गित देते हᱹ, और स᭠मागᭅ पर चलने कᳱ ᮧेरणा देते हᱹ | ऋवैᳰदक काल से यह िवषय िचरंतन है | समसामियक स᭠दभᲄ मᱶ ᭃᳯरत होते समाज के पᳯरदृयᲂ मᱶ, मानवीय मू᭨य और उनका महᱬव और भी बढ़ जाता है | बीजश᭣द: ᮰ेता, मानवीयता, उᲬ-संवेदनाएं , बौिक शिᲦयां, पौरािणक, साि᭜वक गुण , मानवीय दृिकोण | भूिमका: भारतीय सािह᭜य मᱶ महान रचनाकारᲂ ने मानवीय मू᭨यᲂ पर अपने अमू᭨य िवचारᲂ से मानव समाज को ᳰदशा िनदᱷश ᳰदए हᱹ | डॉ.नरᱶ कोहली ᳇ारा रिचत ‘महासमर’ भी एक ऐसा महा उप᭠यास है, जो जीवन कᳱ ᮰ेता को कहता है , जीवन कᳱ सतत साधना , उसका ᮧकाश ,मानव को देव᭜व कᳱ आभा से भर कर उसे मानवीयता के गुणᲂ और मू᭨यᲂ से न केवल पᳯरिचत कराता है , वरन उसे कायᭅ ᱨप मᱶ पᳯरिणत करने कᳱ ओर अᮕसर भी करता है | मनुय इस सृि का सवᭅ᮰े ᮧाणी है | ᮧभु ने उसे िवचारने , समझने और िनणᭅय कᳱ योयता दी है , जो उसे अ᭠य ᮧािणयᲂ से पृथक करती है | कहते हᱹ – ‘पयतीित पशु:’ अथाᭅत के वल देखने वाला पशु है , िजसमᱶ अनुभूित कᳱ योयता नही है | लेᳰकन िजसमᱶ उᲬ सवᱶदनाएं हᱹ , बौिक शिᲦयां हᱹ , वह मनुय है | मनुय मᱶ लिलत कलाᲐ का समावेश है | ᳰकसी भी समाज कᳱ आधारिशला उसके मानवीय मू᭨य होते हᱹ | सामािजक होने के कारण मनुय को सेवा, शांित, परमाथᭅ, ᮧेम, मधुरता, दृढ़ता, एकता, वतंता, स᭜य, िनभᭅयता, समता, सहयोग, िवबंधु᭜व आᳰद मानवीय मू᭨यᲂ का िवकास अपने अंदर करना ही पड़ेगा | मानवीय मू᭨यᲂ से संप िᲦ ही सुदृढ़ रा और सशᲦ समाज कᳱ रचना कर सकता है | िवेषण: हमारी पौरािणक एवं वैᳰदक संकृित आᳰद काल से मानवतावादी दृिकोण देती आई है | हमारे जीवन मू᭨यᲂ को िनदᱷिशत करते म᭠ हमᱶ इस ᳰदशा कᳱ ओर ही ᮧेᳯरत करते हᱹ | उदहारण हेतु ᮧतुत है गायी म᭠:- “ॐ भूभᭅव: व: ति᭜वतुवᭅयᱷिनयम भगᲃ देवय धी मिह धीयो यो न: चोदयात |” अथाᭅत : ‘ᮧभु ᮧाण सा ॐ धरो अंतर मᱶ दुःख को हरे जो ᮰े मंगल मᱶ वयम तेज़ जो पाप नाशी परा᭜मा करे बुि स᭠मागᭅ गामी सुखा᭜मा |’

Transcript of reVIew oF lIteratUreoldrol.lbp.world/UploadArticle/409.pdfसम ज क क hय ण और वक...

  • ISSN: 2347-2723 Impact Factor : 3.3754(UIF) VolUme - 5 | ISSUe - 2 | September - 2017

    reVIew oF lIteratUre

    ________________________________________________________________________________________

    ________________________________________________________________________________________ Available online at www.lbp.world

    1

    ‘महासमर’ उप यास क पृ भूिम म मानवीय मू य मंजू अरोरा अनुसंिध स-ु कला एवं भाषा िवभाग,लवली ोफेशनल यूिनव सटी , फगवाड़ा, पंजाब.

    सारांश: ाणी जगत म ास लेता मनु य अपने िववेक से और मानवीयता के गुण-बोध से अ य जीव से पृथक स ा रखता है | सािह य जगत के मूध य सािह यकार एवं मु यत: डॉ. नर कोहली अपने महा-उप यास ‘महासमर’ के घटना म , प रि थितय एवं च र से मानवीय मू य क अप रहायता को जागृत और पुनजागृत करने का यास सा करते ह | मू य जीवन को गित देते ह, और स माग पर चलने क ेरणा देते ह | ऋ वै दक काल से यह िवषय िचरंतन है | समसामियक स दभ म रत होते समाज के प रदृ य म, मानवीय मू य और उनका मह व और भी बढ़ जाता है | बीजश द: े ता, मानवीयता, उ -संवेदनाएं , बौि क शि यां, पौरािणक, साि वक गुण , मानवीय दृि कोण | भूिमका: भारतीय सािह य म महान रचनाकार ने मानवीय मू य पर अपने अमू य िवचार से मानव समाज को दशा िनदश दए ह | डॉ.नर कोहली ारा रिचत ‘महासमर’ भी एक ऐसा महा उप यास है, जो जीवन क े ता को कहता है , जीवन क सतत साधना , उसका काश ,मानव को देव व क आभा से भर कर उसे मानवीयता के गुण और मू य से न केवल प रिचत कराता है , वरन उसे काय

    प म प रिणत करने क ओर अ सर भी करता है | मनु य इस सृि का सव े ाणी है | भु ने उसे िवचारने , समझने और िनणय क यो यता दी है , जो उसे अ य ािणय से पृथक करती है | कहते ह – ‘प यतीित पशु:’ अथात केवल देखने वाला पशु है , िजसम अनुभूित क यो यता नही है | ले कन िजसम उ सवदनाएं ह , बौि क शि यां ह , वह मनु य है | मनु य म लिलत कला का समावेश है | कसी भी समाज क आधारिशला उसके मानवीय मू य होते ह | सामािजक होने के कारण मनु य को सेवा, शांित, परमाथ, ेम, मधुरता, दृढ़ता, एकता, वतं ता, स य, िनभयता, समता, सहयोग, िव बंधु व आ द मानवीय मू य का िवकास अपने अंदर करना ही पड़ेगा | मानवीय मू य से संप ि ही सुदृढ़ रा और सश समाज क रचना कर सकता है | िव ेषण: हमारी पौरािणक एवं वै दक सं कृित आ द काल से मानवतावादी दृि कोण देती आई है | हमारे जीवन मू य को िनदिशत करते म हम इस दशा क ओर ही े रत करते ह | उदहारण हेतु तुत है गाय ी म :- “ॐ भूभव: व: ति वतुवयिनयम भग देव य धी मिह धीयो यो न: चोदयात |” अथात : ‘ भु ाण सा ॐ धरो अंतर म दुःख को हरे जो े मंगल म वयम तेज़ जो पाप नाशी परा मा करे बुि स माग गामी सुखा मा |’

  • ‘महासमर’ उप यास क पृ भूिम म मानवीय मू य VolUme - 5| ISSUe - 2 | September - 2017

    _____________________________________________________________________

    ________________________________________________________________________________________

    Available online at www.lbp.world

    2

    यह वह म है - िजसे येक भारतीय जानता है | तो या स देश देता है ! यह जीवनदायी म ? मानवता का ही तो ! वा तव म या है भारतीय दशन – ‘ परम स ा को पहचानना व् मानना, वयं के होने का उदे य जानना, और अ याि मक प से अपने िववेक के वैिश को पहचानते ए व एवं िव क याण के हेतु बनकर जीवन जीना | यही सू है मानवीयता का | भूलना नह चािहए , क शा म धम, अथ, काम, मो जीवन के ल य बताये गये ह | अत: जब ल य का अंितम पड़ाव मो ही ह,ै तो भारतीय मानिसकता को मानवीयता का सू समझने म कोई क ठनाई नह ही होती | अत: यह वत: हणीय िवषय है | ान ाणी को मनु य का वा तिवक प दान करता है | ान ही तो उसे मानवता के सोपान का प रचय कराता है | और इसी ान को ारंिभक अव था म ही ा करके ि

    मानवता के थम और उ ात आयाम का पाठ पढता है | महासमर म िपतामह भी म कु राजकुमार क िश ा क व था क जानकारी लेने के िलए आचाय कृपाचाय के पास जात ह और उ ह िश ा का मम कहते ह – “ ि य के िलए श - ान भी आव यक है और श प रचालन का अ यास भी ; क तु उससे भी अिधक आवशयक है ; याय और अ याय का ान , धम और अधम का िनणय | ि य का श केवल अ याय के ितरोध म ही उठना चािहए |

    ि य य द यायालय के िनणय के िबना श -प रचालन का अ य त हो जायेगा , तो वह द यु हो जायेगा|” .वे आगे कहते ह, “म चाहता ँ क चाहे वे यु -िव ा सीख , चाहे डा म भाग ल, चाहे शा ान ा कर , चाहे ित पधा म त रह ; क तु इन सब के मा यम

    से वे पर पर एक-दूसरे के िनकट आय , ेह करना सीख , दूसरे क सुख-सुिवधा के िलए याग और बिलदान करना सीख | उनम वाथ-शु यता तथा सिह णुता का भी िवकास होना चािहय|े अ छे यो ा बनने से पहले वे अ छे मानव बन उ ह अपना र देकर जा का पालन करने वाल,े अपना सुख-भोग याग , िनबल क र ा करने वाले ि य बनाना |१ ..” अत: मानव को मानवीयता का म देने वाली िश ा कतनी अिनवाय है , िजससे वह मू य को हण करता आ अपना और समाज का क याण और िवकास कर सकता है क तु वतमान कतना द पूण ह,ै जो मनु य क मानवता वादी िवचारधारा से उसको दूर करने क अनवरत कोिशश करता सा दीखता है | आज क सबसे बड़ी सम या मू य संकट क ही सम या है | मनु य के जीवन क चताएं , उसक जीवन- चया क िनत नई बाधाएं उसे अपने से इतर देखने का समय ही नही देत | मनु य समाज और प रवार से कटता जा रहा है | उसके अंदर मानवीय सवदना का ास होता जा रहा है | भय , अकेलेपन , और सामािजक िवडंबना ने उसके ऊँचे कद को बौना बना दया है | आज हम अपनी सां कृितक धरोहर से दूर होते जा रहे ह | िजसे हमारे पूवज ने ऋिषय , आचाय और बौि क जन से लेकर

    तैयार कया था और िव को ान का काश दया था| आज जीवन के नैितक, अ याि मक, धा मक, सां कृितक आ द मू य जो उसे सुसं कृत करते ह और उसके आचरण को मया दत करते ह , वे िश ा के ार से िमलते नह वरन सवथा उपेि त हो रहे ह | हम भूलना नह चािहए क हमारे वेद और उपिनषद हम मानवीयता क ही िश ा देते ह | वै दक वा य म ‘स य िशवम् सु दरम’ के अनुसार आदश मानवीय मू य क थापना के प म िव के ित क याण क भावना ही ऋिषय का मु य योजन है | िजसमे िव के क याण का भाव मु य है – “सव भव तु सुिखन: सव स तु िनरामया:

    सव भ ािण प य तु माँ कि द् दुःख भा भावेत ||”.......अथात मानव मू य क पराका ा यजुवद के तुत म म देखने को िमलती है जहाँ वै दक ऋिष सभी मनु य एवं ािणय के ित अपनी स ावना करता है | यही नह तेज़ और बल क कामना (तेजो..सी तेजोमय धेिह.... बल मिस बलं मयी धेिह)| बुि को स माग क और े रत करने क ाथना (िधयो यो न: चोदयात–) |२

    एतेव यह त य जािहर है क हमारे आ द थ मू य-परक नीित एवं आचरण के स े िनदशक ह | उदाहरण व प ‘भतह र का नीितशतक पूण प से मानव मू य से प रपूण थ है | नीितकथा , पंचतं तथा िहतोपदेश आ द म भी पश-ुपि य क मनोरंजक कथा के मा यम से मानव मू य का सरस तथा सरल शैली म वणन कया गया ह ै|

    ी म ागवत गीता के १६व अ याय म भी िनभयता , अ तकरण क शुि , ान और योग क थित , इि य दमन , य , वा याय , तप , सरलता , अ हसा , स य, अ ोध , शांित, अपैशुन, दयाभाव, लोभ रिहत, कोमलता, ल ा , अचंचलता, तेज़, मा , धैय,

    पिव ता, ोह न करना, अिभमान रिहत, आ द दैवी साि वक गुण क चचा म मानव मू य का सार िनिहत है |’३ मानवीय मू य के अनुसार जीवन जीने का अथ यह नह है क कोई मनु य कमजोर अथवा िनबल है वरन द ता तो तब है जब

    बलवान और यो य होने पर भी मा और धैय आ द मानवीय गुण का आचरण कया जाए | महासमर म एक थान पर पांडव के मानवीयता स ब धी गुण को कहते ए कृ ण के श द ह, ‘पांडव , उदाहरण है - े

    मानव का ,उनक मानवीयता का , जो िवकट िवरोधी प रि थितय म भी अपनी शि का लाभ न उठाते ए मानवीय गुण के अनु प आचरण कर सकते ह | .. माण यह है क समथ होते ए भी भीम ने अपनी ह या का य करने वाले दुय धन का वध नह कया |..... युवराज बन जाने पर भी युिधि र ने धृतरा , दुय धन और उसके सािथय को अपद थ कर उनक ह या करना तो दूर , उ ह तिनक-सी

    ित प ँचाने का भी कोई य नह कया | ुपद को परािजत कर भी पांडव ने उनका रा य छीनने अथवा उनसे कसी कार का लाभ उठाने क चे ा नह क | वारणावत जाने के संकट को जानते ए भी अपने िप क आ ा का उ लंघन नह कया | काि पलय और हि तनापुर म अवसर िमलने पर भी वारणावत कांड का ितशोध लेने का य नह कया | कु -रा य के बंटवारे के नाम पर खांडव थ पाकर भी न िवरोध कया, न लोभ दखाया | ौपदी जैसी ी पाकर भी अजुन का धम िव काम नह जागा | राजा और भाई के मा

  • ‘महासमर’ उप यास क पृ भूिम म मानवीय मू य VolUme - 5| ISSUe - 2 | September - 2017

    _____________________________________________________________________

    ________________________________________________________________________________________

    Available online at www.lbp.world

    3

    करने पर भी वह ित ा के अनुसार बारह वष के िलए इं थ छोड़ आया | ........ इतनी िवकट प र थितय म , ाण का भय रहने पर भी ,िज ह ने अपना धम नह छोड़ा , वे कायर नह हो सकते |”४

    ि अिधकांशत: पद , ित ा , धन , समृि के पीछे अपने मानवीय मू य क बिल चढ़ा देता है | आ य है ! सुख सुिवधाएँ कतनी मह वपूण हो जाती ह जीवन के िलए क ितभा और यो यता का मू य नग य हो जाता है |

    युिधि र के राजसूय य ् के समय ी कृ ण को मह ष वेद ास और युिधि र, तं वामी बनाना चाहते थे पर तु कृ ण कहते ह , “यह स मान आप कुलवृ िपतामह भी म को तथा आचाय ोण को द |....और जहाँ तक मेरा स ब ध है , मेरी इ छा है क आप मुझे िव ान् ा ण और िव के चरण पखारने का काय द |” युिधि र अवाक ह ..... ‘िव के चरण धोना चाहते ह !....अहंकार का ऐसा िवगलन | िवनय क ऐसी चरमाव था | कृ ण मनु य नही ह .... मानवीय सीमा और दुबलता पर ऐसी िवजय कोई मनु य पा सकता है या ?....’ ई र अपने साकार प से मानव को मानवता का कौन सा पाठ पढ़ाना चाहते ह , समझना कह असंभव है या ? और संभव भी है या? कसे कहते ह मानवीय मू य?

    कृ ण अपने जीवन से मानवता का उ तम उदाहरण देते ह- ि कैसे िजए ? उसके आदश कैसे ह ? मा और पुर कार कसे और कैसे िमले ! यह सब उदाहरण उनके एक-एक काय म प रलि त होता है | महान थ गीता जीवन का दशन है, िजसे मानव य द समझ ले तो मू य को समझने और आचरण म उतारने क कोई चे ा करने क आव यकता ही न रहेगी |

    डॉ.नरे कोहली ने ीकृ ण के जीवन पर एक उप यास रचा ह,ै‘अिभ ान’,िजसम मानवता क उ ातता का एक उ रण ह,ै कृ ण कहते ह,“बड़ा आदमी वह होता है जो अपनी पशु-वृितय को याग सके और अपनी साधना, याग तथा तप या से मानव-जाित के क याण के िलए कोई माग िनकल सके|”५

    मानव और मानव क मानवीयता सदैव ही मनु य को देव व क ऊँचाइय पर ले जाती है | डॉ. कोहली के ही एक ओर उप यास ‘तोड़ो करा तोड़ो’ म जो उ ह ने वामी िववेकानंद जी के जीवन पर रचा है , उसम वह कहते ह क , “मानवीय मता क कोई सीमा नही |”६

    लेखक डेिवड.जे.पॉल अपना एक अनुभव बताते ह , ‘एक बार म और मेरी प ी अपनी बे टय के ए रला और इलायना को लेकर िततिलय के सं ाहलय प ंचे | जब हम यूिजयम प ंचे तो हम वहां हजार िततिलय से िघरे ए थे | सभी अपने ब रंगी पंख को फडफडा रह थ | मेरी बे टयां रोमांिचत थ | मने युिजयम गाईड से पूछा , िततिलयाँ कतने व त तक िज दा रहती ह | उसने जवाब दया, दस दन तक | मने तुरंत कहा, िततिलयां दस दन म या कर सकती ह | मेरी छोटी बेटी क गयी , चुपचाप कुछ पल के बाद उसने कहा , वे

    दुिनया को खुबसूरत जगह बना देती ह | अब हर दन म अपने आप से पूछता ँ , म कस तरह दुिनया को खुबसूरत जगह बना रहा ँ ? एक लंबी िज दगी अ छी है , ले कन े िज दगी बेहतर है |’ या खूब ेरक संग है जीवन को उपयोगी-सदो योगी बनाने क दशा देने वाला !रोमन दाशिनक सेनेका ने एक बार कहा था क ‘जीवन एक नाटक क तरह है, िजसक ल बाई नह अिभनय क े ता मह वपूण होती है| ’यूिनव सटी ऑफ़ कैिलफो नया क ोफेसर स जा युबोिमरसक क रसच बताती है क ‘ े िज दगी संभव है और इसका मापन आपके ारा िजये गये साल से नही होता | बि क उन गुण पर िनभर करता है , िजनका इ तेमाल अपने जीवन म कया है |’७

    मानवीयता के उदाहरण य त िबखरे िमल जाते ह , िजससे जीवन क सु दरता बनी रहती है और क याण का माग गितवान रहता है , अव नह होता | जीवन हम कई अवसर देता है और साथ ही देता है काय करने क शि | अब चुनाव वयं करना है क काय सकारा मक है या नकारा मक | वाथमय है या परमाथमय |

    परमाथ मानवीयता का मु य िस ांत है | शा से भी यही ान वािहत हो रहा है क जीवन वाह वसुधैव कुटु बकम क मूल अवधारणा के अनुसार ही बहे तो उ म है |

    “दुलभ नह मनुज के िहत,

    िनज ैि क सुख पाना, क तु, क ठन है को ट-को ट मनुज को सुखी बनाना | एक पंथ है, छोड़ जगत को अपने म रम जाओ, खोजो अपनी मुि और िनज को ही सुखी बनाओ | अपर पंथ ह,ै और को भी िनज िववेक-बल दे कर,

    प ँचो वग-लोक म जग से साथ ब त को ले कर | िजस तप से तुम चाह रह े पाना केवल िनज सुख को , कर सकता है दूर वही तप

  • ‘महासमर’ उप यास क पृ भूिम म मानवीय मू य VolUme - 5| ISSUe - 2 | September - 2017

    _____________________________________________________________________

    ________________________________________________________________________________________

    Available online at www.lbp.world

    4

    अिमत नर के दुःख को |”८

    जीवन का मू य ि से समि क याण है | िजसके िबना जीव क क पना संभव नह | अत: मानवतादश को हम मुख जीवन मू य क सं ा दे सकते ह | मैिथलीशरण गु के महाका साकेत म राम और सीता दोन ही मानवतावादी दृि के ंजक पा ह | राम तो मानव म दैवी स ा क ित ा का आदश लेकर आये ह :

    “भव म नव वैभव ा कराने आया नर को ई रता ा कराने आया | स देश नह म यहाँ वग का लाया, इस भूतल को ही वग बनाने आया ||”९

    वा तव म साकेत एक ऐसा महाका है िजसमे मैिथलीशरण गु जी ने अपनी रचना के ारा जीवन म उ ह त व क मह ा ािपत क है िजनसे मानव का मानव के ित स ाव बना रहे | उनका मत है क मानवता क र ाथ य द जीवन भी आव यक हो तो

    आ त कर देना चािहए | िव िहत तभी संभव हो सकता है जब क :-

    “ मनुजता क र ा के हेतु, िनछावर कर दे अपने ाण | जगायेगा जन जन म भरी , मनुजता को जो मनुज महान िव -र ा िहत उसम शि भरगे िव ंभर भगवान ||”१०

    मानवीयता और कसे कहते ह , न केवल शा , वरन हमारा सािह य , हमारे मूध य रचनाधम अपने श द से िनरंतर यही स देश देते ह |

    अगर चाह तो य -त सव ऐसे ेरक संग जीवन क साथकता को कहते और मािणक करते संग िमल जात ह , केवल िवचार को ही े रत करने क आव यकता है | क तु वतमान समाज िजस तरह नेक और मानवता के संग से आगाह करता है, वैसे ही कई िव ूपता को भी अपने म समेटे है |

    आज या दशा हो गयी है मनु यता क ? कस र ते पर ि भरोसा करेगा ? धन स पदा मानवता क धि याँ उड़ाते से लगते ह | आसुरी वृितयां अपने चरम पर ह | वाथ ने मनु यता के आकाश पर हण क छाया कर दी है | ले कन जीवन क सकारा मकता मनु य को उसक आशा से पृथक नह होने देती | ि कतना भी दुखी हो, मरना नह चाहता |

    मानव मू य कभी समा नह हो सकते , हाँ कह कह इसका िव ूप प दीखता ह,ै पर तु जीवन म देव और दानव दोन का अंश बना रहता ही है | वतमान को कोई कतना भी किलयुग के नाम पर कोस ले पर तु इसी समाज के ही उदाहरण ह जो मानवता क पौध को सूखने नह देते | स य तो यही है – मानव य द स पूण जगत के ित ेम व् सेवा भाव से भर जाये ,क याण के िलए जुट जाये , ि म समि का और समि म ि का िवलय हो जाये , तो और मानवता या है ?

    इसी वष २०१७ अग त माह म मुंबई म तबाही क सीमा तक बा रश ई | कई लोग जहाँ थे वही ँ फंस गये | अपने कायालय से घर के िलए िनकले लोग घर न प ँच कर रा त म ही बंधे रह गये | घर म पानी भर गया | .. ‘शहर क लाइफ लाइन उपनगरीय ेने बंद हो गय | सड़क पर पानी भर गया | अ पताल तक म पानी भर गया और लोग को कमर तक पानी का सामना करना पड़ा |’ कतना भयावह है | यह सोचना ही क कब अपने गंत पर प ंचगे ? और प ंचगे भी या नह ? ऐसी भयानक ाकृितक आपदा के समय ,... ‘लोग ने अपने दल और घर के दरवाजे यहाँ वहां फंसे लोग के िलए खोल दए | अपने टॉयलेट इ तेमाल करने क इजाजत दी और गम चाय लोग को िपलाई | यायलय म कोट म लोग के ठहरने के िलए खोल दए गये | रेलवे टेशन ने अनाज के आिखरी दाने तक लोग को फ़ूड सव कया | यहाँ तक क कोई चाज तक नह िलया | मं दर , गुर ार और मि जद के दरवाजे सभी के आ य के िलए खोल दए गये |’११

    जब िजसे आवशयकता हो उस समय प ंचाई गयी सहायता ही मानवता क ोतक है | मनु य को, अपना म, अपना कम दोन ही िबना वेद बहाए उ चेतना क और नह ले जा सकता | मानव म मानव बनने के गुण उसक िश ा के साथ ही आरंभ हो जाते ह | वयं क और दूसर क र ा , स मान और ित ा का ान महापु ष बनने म सहायक होता ह,ै य द शैशव से ही िश ा के साथ-साथ िमल

    जाये | सृि कृित और पु ष – दो भाग से िमल कर बनी है | पु ष क वृित है वाथ और कृित क वृित है परमाथ | वाथ को गला

    कर परमाथ क राह पर चलना तप है | ऐसा भाव करना क जीवन का येय पर-उपकार ही है , अपने मन क मिलनता से ऊपर उठकर

  • ‘महासमर’ उप यास क पृ भूिम म मानवीय मू य VolUme - 5| ISSUe - 2 | September - 2017

    _____________________________________________________________________

    ________________________________________________________________________________________

    Available online at www.lbp.world

    5

    मा करना और जो क देते ह , उ ह ेह देना और उनका भला करना , अपने आप म एक तप या ही तो है | कृित अपने शांत अि त व से श दहीन होकर यही स देश मनु य को िनरंतरता से देती आ रही है -

    “तरबर तास िबलबीय , बारह मॉस फल त | सीतल छाया गहर फल, पंशी केिल करंत ||”१२ वृ का सेवा काय बारह मॉस अनवरत चलता है | ित एक के िलए छाया , फल, पंिछय के िलए बसेरा िबना कसी भेदभाव के उपल ध होता है | स पूण कृित मानवीयता का स देश ित ण अपने मूक काय से दे रही है | धम ,अथ, काम, मो क चरमाव था वयं को ही तो पाना है , मन को ही तो जीतना है | ी गु थ साहेब म गु नानक देव जी ारा रिचत जपुजी साहेब क २८ पौड़ी म उधृत कया है , ‘मन जीते जग जीत’ |

    ‘मन के इस प के िवषय म भी यजुवद म उ लेख है – “येन कमायपसो मनीिषणी य े रायाि त िवदथेष धीरा: य पूव य मंत: जानां त मे मन: शुव संक पम तु ||”१३

    जीवन के मू य म मानवीयता का थान सव प र है | रा के संत , भ , महान बुि जीवी इसी त य का अनुमोदन करते ह | संत कबीर का तो सम त जीवन ही मानवीयता का दपण है | कबीर दशन पर डॉ.रामजीलाल ‘सहायक’ क पु तक म शुभ कामना देते ए त कालीन (१९६१) मु यमं ी (उ र देश ) ी च भानुगु ने मानवता िवषयक अपने उ ार को इस कार उ ा टत कया , “पूण िव क सभी हलचल का एक व , मानव के पावन और प रशु प का थाप य , समाज के सव कृ क याणमय व प का िनमाण तथा समाज के क याण के िलए िन काम भाव से कम करने का मह व संपादन | या ान , या योग , या भि और या कमयोग, इन सभी साधना-माग का उ े य है-मानव को स ा मानव बनाना , वकत म िन काम भाव से लगे रहना तथा उसे अपने स य व प को पहचानने म समथ बनाना | िन काम भाव से सविहत के काय म लगे रहने से ही मानव को अपने स य , िन य, मु व प के दशन हो सकते ह |”१४

    उपसंहार: सामियक दृि से वतमान के प रदृ य बदल रहे ह | मानव कह बेहद मानवीय होकर संवेदनशील हो गया है और कह वाथ होकर घोर किलयुग का वहन करता है |१५ समय क पुकार है , स य युग िवचार म है , आचार म है , िशवम् म है ,सु दरम म है और यही स य है | कोई भी युग अपने आचरण से आकार लेता है | फर य न मानवीयता को कूट कूट के मनु य म भर कर ऐसे संसार क प रक पना और सरंचना का यास कर | हम तो उदाहरण क भी आवशयकता नह हमारे थ , संत ,पूवज ऐसी िवरासत दे गये ह क केवल पदिच ह पर चलने का काय बाक है | स दभ सूची: नर कोहली, महासमर खंड २ : अिधकार ,पृ ४३ | ऋ वेद -३.६२.१०| डॉ.राजकुमार महाजन,लेख: संकलन:सं कृत सािह य म मानव मू य,पृ १९ | नर कोहली, महासमर खंड ४ : धम , पृ १९८ | नर कोहली, अिभ ान,पृ ९१ | नर कोहली, तोड़ो करा तोड़ो,खंड १, िनमाण,पृ १९१| लेख: े ता के सू : आहा िज दगी पि का: िसत बर २००९ अंक , पृ २१ | रामधारी सह दनकर,कु े ,स म सग ,पृ ८९ | मैिथलीशरण गु ,साकेत: अ म सग ,पृ ३३४,३३५, | मैिथलीशरण गु ,साकेत: ादश सग :पृ २८ | एन.रघुरामन.,‘देने क वृित से अमीर बनता है आपका शहर’,दैिनक भा कर समाचार प ,३१ अग त २०१७ अंक )| कबीर ंथावली , पृ १९६| (यजुवद ३४/२) रामजीलाल सहायक, कबीर दशन,पृ ११ | लेख- एक मु ी चांदनी संजोती आधी दुिनया ,आहा िज दगी पि का, माच २०१२ अंक, पृ २० |

    मंजू अरोरा अनुसंिध स-ु कला एवं भाषा िवभाग,लवली ोफेशनल यूिनव सटी , फगवाड़ा, पंजाब.