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दद ददददददद ददददददद दददद ददद दददद दद ? दददद दद ददददददद ! - दददद ददद दददद ददद दद ददददद ददददद दद दददददद ददददद , दददददद , दददद ददद दददद दद दद ददददद दददद दद ददद ददद दददद ददद दददद ददददद दद दददद दद ददद ददद दददद ददददद दददद - दद , ददददद , ददद दददद दददद - दददद ददद दद दददद दददद दद दददददद दद दद ददददद दद ददद ददददद ददददददद ददददद ददद दददददददद दद ददद दददद ददद ददद दद दद ददद ददद दद दददद दद दददद दद ददददद दद ददद ददददद ददद द दददद दद ददद ददद ददददद ददददद दद ददददद ददददद दद दददददददद दद दददद ददद ददद दददद दददददद ददद दद ददददद द - दददद दददद दददद दददददद , दददद दददद दददद ददद - दददददददद दददद ददद दददददददद ददददद , दद दददद दददद दददददददद दद ददद दद दददद ददद ददद - दद दद , ददददददद , ददद - ददद ददद ददददद दददद दददददद दद दददद दद दद ददद दद

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Page 1: hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · Web viewइ दर क बह क अन म न सत य क न कट पह च । घटन प ड त द वधर क ज

दो आसथाए अमतलाल नागर

अरी कहा हो इदर की बहरिरया - कहत हए आगन पार कर पडित दवधर की घरवाली सकर अधर टट हए जीन की ओर बढी

इदर की बह ऊपर कमर म बठी बच च का झबला सी रही थी मशीन रोककर बोली - आओ बआजी म यहा ह - कहत हए वह उठकर कमर क दरवाज तक आई

घटन पर हाथ टककर सीढ़िढया चढत हए पडिताइन इस कदर हाफ रही थी डिक डिक ऊपर आत ही जीन क बाहर की दीवाल स पीठ टककर बठ गई

इदर की बह आग बढकर पल ल को दोनो हाथो की चटडिकयो स पकड सात बार अपनी फडिफया सास क परो पडी

- ठी सीरी बढ सहागन दधन नहाओ पतन फलो - आशीवाद दती हई पडिताइन रकी दम लकर अपन आशीवाद को नया बल दत हए कहा-हम तो बहरिरया रात-ढ़िदन यही मनाए ह पहलौठी का होता तो आज ढ़िदन ब याव की डिफकर पडती (दबी आह) राम कर मारक की आबल लक आव जल दी स राम कर सातो सख भोगो बटा

इदर की बह का मख-मल करणा और शरदधा स भर उठा पलक नीची हो गई फडिफया सास की बाह पकडकर उठात हए कहा - कमर म चलो बआजी

- चलो रानी तडिनक सताय लिलया तो सास म सास आई अब हमस चढा उतरा नाही जाए ह बटा क या कर

बआजी उठकर बहरिरया क साथ अदर आई मशीन पर नन हा-सा झबला दखकर बआजी न अपनी भतीज-बह को खडिफया पलिलस की दषटिM स दखा डिफर पछा - ई झबला

दधवाली क बच च क लिलए सी रही ह चार डिबढ़िटयो क बाद अब क लडका हआ ह उस बडा शभ सम ह डिबचारी क लिलए

- बडी दया-ममता ह बह तमर मन म ठाकरजी महाराज तमरी सारी मनोकामना परी कर तम ह औ इदर को दख क ऐसा लिचत त परसन न होय ह ऐसा कलजा जड ह बटा डिक जग जग जिजयौ एक हमर भोला-तरभअन की बहए हगी (आह डिफर डिवचारमग नता) हह जसा मानख वसी जोए बह बानी तो कच चा कच चा बत हाम हगी पराए घर की बढ़िटयो को क या दोख द

- कोई नई बात हई बआजी

- अर जिजस घर क सिसस कार ही बदल जाए उस घर म डिनत त नई बात होवगी हम तो कहम ह रानी डिक हमर पाप उद भए ह

कहकर बआजी की आख डिफर शन य म सध गई इदर की बह को नई बात का सतर नही षटिमल पा रहा था इसलिलए उसक मन म उथल-पथल मच रही थी कछ नई बात जरर हई ह वो भी कहत थ डिक फफाजी कछ उखड-स खोए हए-स ह

- बड दवर की कडितया क या डिफर चौक म इदर की बह का अनमान सत य क डिनकट पहचा घटना पडित दवधर क ज यष ठ ॉक टर भोलाशकर भटट दवारा पाली गई असला स काटल क श वान की बटी जलिलयट क कारण ही घटी इस बार तो उसन गजब ही ढा ढ़िदया पडितजी की बडिगया म परखो का बनवाया हआ एक गप त साधना-गह भी ह घर की चहारदीवारी क अदर ही यह बडिगया भी ह उसम एक ओर ऊच चबतर पर एक छोटा-सा मढ़िदर बना ह मढ़िदर म एक सन यासी का पराना कलमी लिचतर चदन की नककाशीदार जजर चौकी पर रखा ह उस छोट स मढ़िदर म उकड बठकर ही परवश डिकया जा सकता ह मढ़िदर क अदर जाकर दाडिहन हाथ की ओर एक बड आलनमा दवार स अपन सार शरीर को लिसकोडकर ही कोई मनष य साधना गह म परवश कर सकता ह इस गह म सगमरमर की बनी सरस वती दवी की अनपम मरतित परडितषटि^त ह जिजस पर सदा तल स भिभगोया रशमी वस तर पडा रहता ह कवल शरीमख क ही दशन होत ह मरतित क सम मख अख दीप जलता ह यह साधना-गह एक मनष य क पालथी मारकर बठन लायक चौडा तथा मरतित को साष टाग परणाम करन लायक लबा ह पडित दवधरजी क डिपतामह क डिपता को सन यासी न यह मरतित और महा सरस वती का बीज मतर ढ़िदया था सनत ह उन होन सन यासी की कपा स यही बठकर वाग दवी को लिसदध डिकया और लोक म बडा यश और धन कमाया था पडितजी क डिपतामह और डिपता भी बड नामी-डिगरामी हए रजवाडो म पजत थ पडित दवधरजी को यदयडिप परखो का लिसदध डिकया हआ बीजमतर नही षटिमला डिफर भी उन होन अपन यजमानो स यथष ट पजा और दभिaणा पराप त की बीज मतर इसलिलए न पा सक डिक वह उत तराषटिधकार क डिनयम स डिपता क अतकाल म उनक बड भाई धरणीधरजी को ही पराप त हआ था और व भरी जवानी म ही हदय-गडित रक जान स स वग लिसधार गए थ डिफर भी पडित दवधरजी न आजीवन बडी डिनष ठा क साथ जगदबा की सवा की ह

ए क ढ़िदन डिनत य-डिनयमानसार गगा स लौटकर सबर पडितजी न जब साधना-गह म परवश डिकया तो उस भोला की कडितया क सौरी-घर क रप म पाया पडितजी की करोधागनिeन परच रप स भडक उठी लडक-लडको की बहए एकमत होकर पडित दवधर स जबानी मोचा लन लग पडित दवधरजी न उस ढ़िदन स घर म परवश और अन न-जल गरहण न करन की परडितजञा ल रखी ह व साधना-गह क पास कएवाल दालान म पड रहत ह आज चार ढ़िदन स उन होन कछ नही खाया कही और बाजार म तो व खान-पीन स रह शायद इदर क घर भोजन करत हो यही पछन क लिलए इदर की बआ इस समय यहा आई थी परत उनकी भतीज-बह न जब उनक यहा भोजन न करन की बात बताई तो सनकर बआजी कछ दर क लिलए पत थर हो गई पडित की अडसठ वष की आय डिनत य सबर तीन बज उठ दो मील पदल चलकर गगाजी जाना आना अपना सारा कायकरम डिनभाना दोपहर क बारह-एक बज तक बरहम-यजञ भागवत पाठ सरस वती कवच का जप आढ़िद यथावत चल रहा ह और उनक मह म अन न का एक दाना भी नही पहचा यह डिवचार बआजी को जड बना रहा था

- य तो सब बात मझ इत ती बखत तमस मालम पड रही ह बआजी फफाजी न तो मरी जान म कभी कछ भी नही कहा कहत तो मर सामन जिजकर आए डिबना न रहता

- अर तर फफाजी रिरसी-मनी हग बटा बस इन ह करोध न होता तो इनक ऐसा महात मा नही था डिपरथी प क या कर अपना जो धरम था डिनभा ढ़िदया जसा समय हो वसा नम साधना चाडिहए पट क अश स भला कोई कस जीत सक ह

- फफाजी आगनिखर डिकतन ढ़िदन डिबना खाए चल सक ग बढाप का शरीर ह

- बोई तो म भी कह ह बटा मगर इनकी जिजद क अगाडी मरी कहा चल पाव ह बहोत होव ह तो कोन म बठक रोल ह

- कहत-कहत बआजी का गला भर आया बोली - इनक सामन सबको रखक चली जाऊ तो मरी गत सधार जाए जान क या-क या दखना बदा ह लिललार म - बआजी टट गई फट-फटकर रोन लगी

- तम डिफकर न करो बआजी इतन ढ़िदनो तक तो मालम नही था पर आज स फफाजी क खान-पीन का सब इतजाम हो जाएगा

ॉक टर इदरवत शमा क यडिनवरसिसटी स लौट कर आन पर चाय पीत समय उनकी पत नी न सारा हाल कह सनाया इदरदतत सन न रह गए परयसी क समान मनोहर लगनवाली चाय क हठ को पहचानत थ फफाजी डिबना डिकसी स कछ कह-सन इसी परकार अनशन कर पराण त याग कर सकत ह फफाजी डिबना डिकसी स कछ कह-सन इसी परकार अनशन पराण त याग कर सकत ह इस इदरदतत अच छी तरह जानत थ उनक अतर का कष ट चहर पर तडपन लगा पडित की व यथा को गौर स दखकर पत नी न कहा - तम आज उन ह खान क लिलए रोक ही लना म बडी शदधताई स बनाऊगी

- परश न यह ह व मानग भी उनका तो चदर टर सरज टरवाला डिहसाब ह

- तम कहना तो सही

- कहगा तो सही पर म जानता ह लडिकन इस तरह व चलग डिकतन ढ़िदन भोला को ऐसा हठ न चाडिहए

- भोला क या कर कडितया क पीछ-पीछ घमत डिफर शौक ह अपना और क या फफाजी को भी इतना डिवरोध न चाडिहए

- फफाजी का न याय हम नही कर सकत

- अभी मान लो तम हार साथ ही ऐसी गजरती

- म डिनभा लता

- कहना आसान ह करना बडा मशकिnकल ह फफाजी तो चाहत ह सबक सब परान जमान क बन रह चोटी जनऊ छतछात लिसनमा न जाओ और घघट काढो भला य कोई भी मानगा

- मर खयाल म फफाजी इस पर कछ

- भल न कह अच छा तो नही लगता

- ठीक ह तमह भी मरी बहत-सी बात अच छी नही लगती

- कौन-सी बात

- म लिशकायत नही करता उदाहरण द रहा ह ठीक-ठीक एक मत क कोई दो आदमी नही होत होत भी ह तो बहत कम पर इसस क या लोगो म डिनभाव नही होता भोला और उसकी दखदखी डितरभवन म घम आ गया मा-बाप को ऐस दखत ह जस उनस पदा ही नही हए फफाजी हठी और रढ़िढपथी ह सही पर एकदम अवजञा क योग य नही य लोग उन ह लिचढान क लिलए घर म प याज लहसन अा मछली सब कछ खात ह फफाजी न अपना चौकाघर ही तो अलग डिकया डिकसी स कछ कहा-सना तो नही

स वभाव स शात और बोलन म षटिमतव ययी इदरदत त इस समय आवश म आ गए थ फफाजी क परडित उसका सदा स आदरभाव था लोक उनका आदर करता ह इधर महीनो स इदरदतत क आगरह पर पडित दवधरजी परडितढ़िदन शाम क समय दो-ढाई घट उनक घर डिबतात ह कभी भागवत कभी रामायण कभी कोई पौराभिणक उपाख यान चल पडता ह पडितजी अपनी तरह स कहत ह इदरदतत उनक दवारा पराचीन समाज क करम-डिवकास क लिचतर दखता उनस अपन लिलए नया रस पाता कभी-कभी बातो क रस म आकर अपन राजा-ताल लकदार यजमानो क मजदार सस मरण सनात हकभी उनक बचपन और जवानी की स मडितयो तक स टकराती हई परानी सामाजिजक तस वीर इन महल लो

की परानी झाडिकया सामन आ जाती ह फफाजी क अनभवो स अपन लिलए जञान-सतर बटोरत हए उनक डिनकट सपक म आकर इदरदतत को आदर क अलावा उनस परम भी हो गया ह

इदरदतत की पत नी क मन म आदर भाव तो ह पर जब स व बराबर आकर बठन लग ह तब स उस एक दबी ठी लिशकायत भी ह पडित क साथ घडी दो घडी बठकर बात करन करम या चौसर खलन या अपन पतक घर क सबध म जो अब नए लिसर स बन रहा ह सलाह-सत करन का समय उस नही षटिमल पाता अपनी छोटी दवरानी डितरभवन की बह स बडा स बडा नह-हत होन क कारण उसकी बातो म डिवश वास रखकर वह फफाजी क परानपन स डिकसी हद तक डिफरट भी ह इसलिलए जब इदरदतत न यह कहा डिक घर म मास-मछली क परयोग क बाद फफाजी न अपना चौका अलग कर लिलया मगर कछ बोल नही तो उनकी पत नी स रहा नही गया कहन लगी - तो उन लोगो स - अर पोत-पोडितयो तक स तो बोलत नही डिफर लिशकायत डिकसस करग

- फफाजी को पहचानन म बस यही तम लोग गलती करत हो उनका परम परायः गगा ह मन अनभव स इस बात को समझा ह बद रहन पर भी जिझरजिझर दरवाजो स जिजस तरह ल क तीर आत ह सयमी इदरदतत क अतर म उदवग इसी तरह परकट हो रहा था

पत नी न पडित क रख पर रख डिकया तरत शात और मद स वर म कहा - म फफाजी को पहचानती ह उनक ऐस डिवदवान की कदर उस घर म नही उनका परम तम जसो स हो सकता ह तम सिचता न करो बरत आज परा हो जाएगा

- मान जाएग पत नी क चहर तक उठी इदरदतत की आखो म शका थी उनका स वर करण था

- परम नम बडा ह - पडित क aोभ और सिचता को चतराई क साथ पत नी न मीठ आश वासन स हर लिलया परत वह उन ह डिफर चाय-नाश ता न करा सकी

ॉक टर इदरदतत शमा डिफर घर म बठ न सक आज उनका धय डिग गया था फफाजी लगभग छ साढ बज आत ह इदरदतत का मन कह रहा था डिक व आज भी आएग पर शका भी थी ममडिकन ह अषटिधक कमजोर हो गए हो न आए इदरदतत न स वय जाकर उन ह बला ल आना ही उलिचत समझा हालाडिक उन ह यह मालम ह डिक इस समय फफाजी स नान-सध या आढ़िद म व यस त रहत ह प दवधर जी का घर अषटिधक दर न था ॉक टर इदरदतत सदर दरवाज स घर म परवश करन क बजाय एक गली और पार कर बडिगया क दवार पर आए फफाजी गगा लहरी का पाठ कर रह थ फलो की सगषटिध-सा उनका मधर स वर बडिगया की चहारदीवारी क बाहर महक रहा था

अडिप पराज य राज य तणषटिमप परिरत यज य सहसा डिवलोल दवानीर तव जनडिन तीर भिशरत वताम सध धातः स वादीथः सलिललभिभदाय तपतिsत डिपबतामज नानामानदः परिरहसडित डिनवाण पदवीम

इदरदतत दरवाज पर खड-खड सनत रह आखो म आस आ गए फफाजी का स वर उनक कानो म मानो अडितम बार की परसादी क रप म पड रहा था कछ ढ़िदनो बाद कछ ही ढ़िदनो बाद यह स वर डिफर सनन को न षटिमलगा डिकतनी तन मयता ह आवाज म डिकतनी जान ह कौन कहगा डिक पडित दवधर का मन aब ध ह उन होन चार ढ़िदनो स खाना भी नही खाया ह ऐस व यलिt को ऐस डिपता को भोला-डितरभवन कष ट दत ह इदरदतत इस समय अतयत भावक हो उठ थ उन होन फफाजी की तन मयता भग न करन का डिनश चय डिकया गगा लहरी पाठ कर रह ह इसलिलए नहाकर उठ ह या नहान जा रह ह इसक बाद सध या कर फफाजी स भट हो जाएगी उनक कायकरम म डिवघ न न ालकर इतना समय बआ क पास बठ लगा यह सोचकर व डिफर पीछ की गली की और मड

- अम मा

- हा बडी अपन कमर म दरवाज क पास घटनो पर ठोढी ढ़िटकाए दोनो हाथ बाध गहर सोच म बठी थी जठ बट की बह का स वर सनकर तडपड ताजा हो गई हा इतनी दर क खोएपन न उसक दीन स वर म बडी करणा भर दी थी

बडी बह क चहर की ठसक को उनकी कमर क चारो और फली हई चबv सोह रही थी आवाज भी उसी तरह षटिमजाज क काट पर सधी हई थी व बोली - उन होन पछवाया ह डिक दादा आखिxखर चाहत क या ह

- वो तो कछ भी नही चाह ह बह

- तो य अनशन डिफर डिकस बात का हो रहा ह

पडित दवधर की सहधरमिमणी न स वर को और सयत कर उततर ढ़िदया - उनका सभाव तो तम जानो ही हो बहरिरया

य तो कोई जवाब नही हआ अम मा जान दग ऐसा हठ भी भला डिकस काम का बड डिवदवान ह भक त ह दडिनया भर को पन न और परोपकार लिसखात ह कतत म क या उसी भगवान की दी हई जान नही ह

बडी बह तज पडती गई सास चपचाप सनती रही

- य तो मा-बाप का धरम नाही हआ य दश मनी हई और क या घर म सब स बोलना-चालना तो बद कर ही रखा था

- बोलना चालना तो उनका सदा का ऐसा ही ह बटा तम लोग भी इतन बरसो स दखो हो भोला-डितरभअन तो सदा स जान ह

- इदर भाई साहब क यहा तो घल-घल क बात करत ह

- इदर पढा-लिलखा ह न वसी ही बातो म इनका मन लग हा इसम

- हा-हा हम तो सब गवार ह भरष ट ह हम पाडिपयो की तो छाया दखन स भी उनका धम नष ट होता ह

- बह बटा गस सा होन स कोई फायदा नही हम लोग तो सिचता म खड भए हग रानी तम सबको रखक उनक सामन चली जाऊ डिवश वनाथ बाबा स उठत-बठत आचल पसार क बरदान माग ह बटा अब मर कलज म दम नही रहा क या कर बआजी रो पडी

इदरदतत जरा दर स दालान म ढ़िठठक खड थ बआ हो रोत दख उनकी भावकता थम न सकी पकारा बआ

बआजी एक aण क लिलए ढ़िठठकी चट स आस पोछ आवाज सम हालकर षटिमठास क साथ बोली - आओ भया

भोला की बह न लिसर का पल ला जरा सम हाल लिलया और शराफती मस कान क साथ अपन जठ को हाथ जोड

इदरदतत न कमर म आकर बआजी क पर छए और पास की बठन लग बआजी हडबडाकर बोली - अर चारपाई पर बठो

- नही म सख स बठा ह आप क पास

- तो ठहरो म चटाई

बआजी उठी इदरदतत न उनका हाथ पकडकर बठा लिलया और डिफर भोला की बह को दखकर बोला - कसी हो सशीला मनोरमा कसी ह

- सब ठीक ह

- बच च

- अच छ ह भाभीजी और आप तो कभी झाकत ही नही इतन पास रहत ह और डिफर भी

- म सबकी राजी-खशी बराबर पछ लता ह रहा आना-जाना सो

- आपको तो खर टाइम नही षटिमला लडिकन भाभीजी भी नही आती बाल नही बच च नही कोई काम

- घर म मदद लगी ह ऐस म घर छोड क कस आई डिबचारी - बआजी न अपनी बह की बात काटी

- बह आख चढाकर याद आन का भाव जनात हए बोली - हा ठीक ह कौन-सा डिहस सा बनवा रह ह भाई साहब

- परा घर नए लिसर स बन रहा हगा ऐसा बढ़िढया डिक महल ल म ऐसा घर नही ह डिकसी का - सास न बह क वभव को लखि|त करन की दबी तडप क साथ कहा बआजी यो कहना नही चाहती थी पर जी की चोट अनायास फट पडी बडी बह न आख चमका अपनी दहरी ठोडी को गदन स लिचपकाकर अपन ऊपर पडनवाल परभाव को जतलाया और पछा - पर रहत तो शायद

- पीछवाल डिहस स म रहत ह

- इसी डिहस स म जीजी का मरा और भया का जनम भया एक भाई और भया था सब यही भए हमार बाप ताऊ दादा और जान कौन-कौन का जनम

- वो डिहस सा घर भर म सबस जयादा खराब ह कस रहत ह

- जहा परखो का जनम हआ वह जगह स वग स भी बढकर ह परख पथ वी क दवता ह बडी बह न आग कछ न कहा लिसर का पल ला डिफर सम हालन लगी

- आज तो बहत ढ़िदनो म आए भया म भी इतनी बार गई बह स तो भट हो जाव ह

बआ-भतीज को बात करत छोडकर बडी बह चली गई उसक जान क बाद दो aण मौन रहा उसक बाद दोनो ही परायः साथ-साथ बोलन को उदयत हए इदरदत त को कछ कहत दखकर बआजी चप हो गई

- सना फफाजी न

- उनकी सिचता न करो बटा वो डिकसी क मान ह

- पर इस तरह डिकतन ढ़िदन चलगा

- चलगा जिजतन ढ़िदन चलना होगा बआजी का स वर आसओ म बन-उतरान लगा - जो मर भाग म लिलखा होगा - आग कछ न कह सकी आस पोछन लगी

- सच-सच बताना बआजी तमन भी कछ खाया

- खाती ह रोज ही खाती ह - पल ल स आख ढक हए बोली इदरदत त को लगा डिक व झठ बोल रही ह

- तम इसी वt मर घर चलो बआजी फफा भी वस तो आएग ही पर आज म उन ह लकर ही जाऊगा नही तो आज स मरा भी अनशन आरभ होगा

- करो जो जिजसकी समझ म आए मरा डिकसी पर जोर नही बस नही - आखो म डिफर बाढ आ गई पल ला आखो पर ही रहा

- नही बआजी या तो आज स फफा का वरत टटगा

- कडिहए भाई साहब - कहत हए भोला न परवश डिकया मा को रोत दख उसक मन म कसाव आया मा न अपन दख का नाम-डिनशान षटिमटा दन का असफल परयत न डिकया परत उनक चहर पर पडी हई आतरिरक पीडा की छाया और आसओ स ताजा नहाई हई आख उनक पतर स लिछपी न रह सकी भोला की मख-मदरा कठोर हो गई मा की ओर स मह फरकर चारपाई पर अपना भारी भरकम शरीर परडितषटि^त करत हए उन होन अपन ममर भाई स पछा - घर बन गया आपका

- तयारी पर ही ह बरसात स पहल ही कपलीट हो जाएगा

- सना ह नकशा बहत अच छा बनवाया ह आपन इदरदत त न कोई उत तर न ढ़िदया

- म भी एक कोठी बनवान का इरादा कर रहा ह इस घर म अब गजर नही होती

इदरदत त खामोश रह भोला भी पल भर चप रह डिफर बोल - दादा का नया तमाशा दखा आपन आज कल तो व आपक यहा ही उठत बठत ह हम लोगो की खब-खब लिशकायत करत होग

तमको मझस जयादा जानना चाडिहए पर-निनदा और लिशकायत करन की आदत फफा जी म कभी नही रही - इदरदतत का स वर सयत रहन पर भी निकलिचत उततजिजत था

- न सही म आपस पछता ह इनसाफ कीजिजए आप यह कौन सा जञान ह डिक एक जीवन स इतनी नफरत की जाए और और खास अपन लडको और बहओ स पोत पोडितयो स नफरत की जाए यह डिकस शास तर म लिलखा ह जनाब बोलिलए - भोला की उततजना ऐस खली जस मोरी स ाट हटात ही हौदी का पानी गलत बहता ह

इदरदतत न शात दढ स वर म बात का उततर ढ़िदया - तम बात को गलत रग द रह हो भोला इस परकार यह डिवकट कहना चाडिहए की घरल समस याए कभी हल नही हो सकती

- म गलत रग क या द रहा ह जनाब सच कहता ह और इनसाफ की बात कहता ह ताली हमशा दोनो हाथो स बजा करती ह

- लडिकन तम एक ही हाथ स ताली बजा रह हो यानी धरती पर हाथ पीट-पीट कर

- क या म समझा नही

- तम अपन आप ही स लड रह हो और अपन को ही चोट पहचा रह हो भोला फफाजी क सब डिवचारो स सहमत होना जररी नही ह म भी उनक बहत स डिवचारो को जरा भी नही मान पाता डिफर भी व आदर क पातर ह

व हमारी डिपछली पीढी ह जिजनकी परडितडिकरयाओ पर डिकरयाशील होकर हमारा डिवकास हो रहा ह उनकी खाषटिमया तो तम खब दख लत हो दखनी भी चाडिहए मगर यह ध यान रह डिक खडिबयो की ओर स आख मदना हमार-तम हार लिलए सारी नई पी ढी क लिलए कवल हाडिनपरद ह और कछ नही

भोला न अपनी जब स सोन का लिसगरट कस डिनकाला और चहर पर आडी-डितरछी रखाए ालकर कहन लगा - म समझता था भाई साहब डिक आपन डिहस टरी-उस टरी पढकर बडी समझ पाई होगी - इतना कहकर भोला क चहर पर सतोष और गव का भाव आ गया परोफसर इदरदतत क पढ-लिलखपन को दो कौडी का साडिबत कर भोला सातव आसमान की बजv पर चढ गया - ढकोसला म ढकलनवाली ऐसी डिपछली पीढ़िढयो स हमारा दश और खासतौर स हमारी निहद ससाइटी बहत सफर कर चकी जनाब अब चालीस बरस पहल का जमाना भी नही रहा जो डिपताडिह दवा डिपताडिह धमा रटा-रटाकर य लोग अपनी धास गाठ ल म कहता ह आप परान ह बड डिनष ठावान हहोग अपनी डिनष ठा-डिवष ठा को अपन पास रगनिखए नया जमाना आप लोगो की तानाशाही को बरदाश त नही करगा

तम अगर डिकसी की तानाशाही को बरदाश त नही करोग तो तमहारी तानाशाही

- म क या करता ह जनाब

- तम अपन झठ सधारो का बोझ हर एक पर लादन क लिलए उतावल कयो रहत हो

- तम फफाजी को लिचढात हो भोला म आज साफ-साफ ही कहगा तम और डितरभवन दोनो - इदरदतत न सध स वर म कहा

- म यह सब बवकफी की सी बात सनन का आदी नही ह भाई साहब जनाब हमको गोश त अच छा लगता ह और हम खात ह और जरर खाएग दख आप हमारा क या कर लत ह

- म आपका कछ भी नही कर लगा भोलाशकरजी आप शौक स खाइए मर खयाल म फफाजी न भी इसका कोई डिवरोध नही डिकया वह नही खात उनक सस कार ऐस नही ह तो तम यह क यो चाहत हो डिक वह तम हारी बात मत मानन लग रहा यह डिक उन होन अपना चौका अलग कर लिलया या वह तम लोगो क कारण aब ध ह यह बात तानाशाही नही कही जा सकती उन ह बरा लगता ह बस

- म पछता ह क यो बरा लगता ह मरी भी बड-बड परोफसर और नामी आलिलम-फाजिजलो स ढ़िदन-रात की सोहबत ह आपक वद क जमान क बराहमण और मडिन तो गऊ तक को खा जात थ

भोला न गदन झटकाई उनक चहर का मास थल उठा उनकी लिसगरट जल गई इदरदतत बोल - ठीक ह व खात थ राम-कष ण अजन इदर बगरह भी खात थ पीत भी थ मगर यह कहन स तम उस सस कार को धो तो नही सकत जो समय क अनसार परिरवरतितत हआ और वष णव धम क साथ करीब-करीब राष टरव यापी भी हो गया

- हा तो डिफर दसरा सस कार भी राष टरव यापी हो रहा ह

- हो रहा ह ठीक ह

- तो डिफर दादा हमारा डिवरोध क यो करत ह

- भोला हम फफाजी का न याय नही कर सकत इसलिलए नही डिक हम अयोग य ह वरन इसलिलए डिक हमार न याय क अनसार चलन क लिलए उनक पास अब ढ़िदन नही रह आदत बदलन क लिलए आखिxखरी वt म अब उत साह भी नही रहता

- म पछता ह क यो नही रहता

- यह सरासर जयादती ह तम हारी वह बीता यग ह उस पर हमारा वश नही हमारा वश कवल वतमान और भडिवष य पर ही हो सकता ह डिवगत यग की मान यताओ को उस यग क लिलए हम जस का तसा ही स वीकार करना होगा पहल बात सन लो डिफर कछ कहना हा तो म कह रहा था डिक हम अपन परखो की खडिबया दखनी चाडिहए ताडिक हम उन ह लकर आग बढ सक उनकी खाषटिमयो को या सीमाओ को समझना चाडिहए जिजनस डिक हम आग बढकर अपनी नई सीमा स थाडिपत कर सक उनक ऊपर अपनी सधारवादी मनोवभितत को लादना घोर तानाशाही नही ह

- और वो जो करत ह वह तानाशाही नही ह

- अगर तानाशाही ह तो तम उसका जरर डिवरोध करो मगर नफरत स नही व तम हार अतयत डिनकट क सबधी ह तम हार डिपता ह इतनी शरदधा तम ह करनी होगी उन ह इतनी सहानभडित तम ह दनी ही होगी

इदरदत त बहत शात भाव स पालथी मारकर बठ हए बात कर रह थ

भोला क चहर पर कभी लिचढ और कभी लापरवाही-भरी अकड क साथ लिसगरट का धआ लहराता था इदरदत त की बात सनकर तमककर बोला - अ-अ-आप चाहत ह डिक हम गोश त खाना छोड द

- दोस त अच छा होता डिक तम अगर यह मास-मछली वगरह क अपन शौक कम स कम उनक और बआजी क जीवन-काल म घर स बाहर ही पर करत यह चोरी क लिलए नही उनक लिलहाज क लिलए करत तो परिरवार म और भी शोभा बढती खर झगडा इस बात पर तो ह नही झगडा तो तम हारी

- जलिलयट की वजह स ह वह उनक कमर म जाती ह या अभी हाल ही म उसन सरस वतीजी क मढ़िदर म बच च पदा डिकए तो तो आप एक बजबान जानवर स भी बदला लग जनाब यह आपकी इनसाडिनयत ह

- म कहता ह तमन उसको पाला ही क यो कम स कम मा-बाप का जरा-सा मान तो रखा होता

- इमस मान रखन की क या बात ह भाई साहब - भोला उठकर छोटी-सी जगह म तजी स अकडत हए टहलन लग चारपाई स कमर क एक कोन तक जाकर लौटत हए रककर कहा - हमारा शौक ह हमन डिकया और कोई बरा शौक तो ह नही साहब औरो क फादर-मदस होत ह तो लडको क शौक पर खश होत ह और एक हमारी डिकस मत ह डिक

- तम लिसफ अपनी ही खशी को दखत हो भोला तमन यह नही दखा डिक फफाजी डिकतन धय और सयम स तम लोगो की इन हरकतो को सहन करत ह

- खाक धल ह सयम ह हजारो तो गालिलया द ाली हम लोगो को

- और बदल म तमन उनक ऊपर कडितया छोड दी

- ऐसी ही बहत शदधता का घम ह तो अपनी तरफ दीवार उठवा ल हम जो हमार जी म आएगा करग और अब तो बढ-चढकर करग

- यह तो लडाई की बात हई समझौता नही हआ

- जी हा हम तो खलआम कहत ह डिक हमारा और दादा का समझौता नही हो सकता इस मामल म मरी और डितरभवन की राय एक ह मगर व हमार परोगरलिसव खयालात को नही दख सकत तो उनक लिलए हमार घर म कोई जगह नही ह

- भोला - बडी दर स गदन झकाए खामोश बठी हई मा न कापत स वर म और भीख का सा हाथ बढात हए कहा - बटा उनक आग ऐसी बात भल स भी न कह दना तम हार परो

- कहगा और हजार बार कहगा अब तो हमारी उनकी ठन गई वो हमार लडको-बच चो का पहनना-ओढना नही दख सकत हसता-खलना नही बदाश त कर सकत हम लोगो को बदाश त नही कर सकत तो म भी उनक धम को ठोकर मारता ह उनक ठाकर पोथी पराण सब मर जत की नोक पर ह

मा की आखो स बद टपक पडी उन होन अपना लिसर झका लिलया भोला की यह बदतमीजी इदरदतत को बरी तरह तडपा रही थी स वर ठा रखन का परयत न करत सनक भरी हसी हसत हए बोल - अगर तम हारी यही सब बात नए और परोगरलिसव डिवचारो का परडितडिनषटिधत व वाकई करती हो इसी स मनष य सलिशभिaत और फशनडिबल माना जाता हो म कहगा डिक भोला तम और तम हारी ही तरह का सारा-नया जमाना जगली ह बशकिक उनस भी गया-गजरा ह तम हारा नया जमाना न नया ह न पराना सभ यता सामतो पसवालो क खोलन जोम स बढकर कछ भी नही ह तम हार डिवचार इनसानो क नही हवानो क ह

इदरदतत स वाभाडिवक रप स उलिचत हो उठ

- खर आपको अपनी इनसाडिनयत मबारक रह हम डिहपोकरट लोगो को खब जानत ह और उन ह दर ही स नमस कार करत ह भोलाशकर तमककर खड हए तजी स बाहर चल दवारज पर पहचरकर मा स कहा - तम दादा को समझा दना अम मा म अनशन की ध मडिकयो स जरा भी नही रगा जान ही तो दग तो मर न मगर म उनको यहा नही मरन दगा जाए गगा डिकनार मर यहा उनक लिलए अब जगह नही ह

- पर यह घर अकला तम लोगो का ही नही ह

- खर यह तो हम कोट म दख लग अगर जररत पडी तो लडिकन मरा अब उनस कोई वास ता नही रहा

भोलाशकर चल गए बआजी चपचाप लिसर झकाए टप-टप आस बहाती रही इदरदतत उततजिजत मदरा म बठ थ जिजनक पास डिकसी वस त डिवशष का अभाव रहा हो उसक पास वह वस त थोडी-सी ही हो जाए तो बहत मालम पडती ह इदरदतत क लिलए इतना करोध और उततजना इसी तरह अषटिधक परतीत हो रही थी पल भर चप रहकर आवश म आ बआजी क हाथ पर हाथ रखत हए कहा - तम और फफाजी मर घर चलकर रहो बआ वह भी तो तम हारा ही घर ह

- तम अपन फफाजी स भोला की बातो का जिजकर न करना बटा

- नही

- तम अपन फफाजी का डिकसी तरह स यह बरत तडवा दो बटा तम ह बडा पन न होगा तम ह मरी आत मा उठत-बठत असीसगी मरा भया

- म इसी इराद स आया ह तम भी चलो बआ तम हारा चहरा कह रहा ह डिक तम भी

- अर मरी सिचता कया ह

- हा तम हारी सिचता नही सिचता तो तम ह और फफाजी को करनी ह मरी ओर स

- तम दोनो क भोजन कर लन तक म भी अपन परण स अटल रहगा

बआजी एक aण सिचता म पड गई डिफर मीठी वाणी म समझाकर कहा - दखो भया इदर मर लिलए जस भोला-डितरभवन वस तम जसा य घर वसा वो आज तम अपन फफाजी को डिकसी तरह जिजमा लो उनक बरत टटत की खबर सनत ही तम हारी कसम म आप ही ठाकरजी का भोग पा लगी लडिकन इसी घर म डिकसी क जी को कलस हो बटा ऐसी बात नही करनी चाडिहए क या कह तर फफाजी का करोध मरी कछ चलन नही दव ह अपन जी को कलस दव ह सो दव ह बाकी बच चो क जी को जो कलस लग ह उसक लिलए तो कहा ही क या जाए कलजग कलजग की तर स चलगा भया

इदरदतत कछ दर तक बआ क मन की घटन का खलना दखत रह

पडित दवधरजी भटट न डिनत य-डिनयम क अनसार झटपट समय अपन भतीज क आगन म परवश कर आवाज लगाई-इदरदतत

- आइए फफाजी

सकर टट सीलन-भरी लखौटी-ईटो पर खडाऊ की खट-खट चढती गई इदरदतत कटहर क पास खड थ जीन क दरवाज स बाहर आत हए पडित दवधर उन ह ढ़िदखलाई ढ़िदए उनक भस म लग कपास और दह पर पड ज लिशव छाप क दपटट म उनकी दह स एक आभा-सी फटती हई उन ह महसस हो रही थी फफाजी क आत ही घर बदल गया उन ह दखकर हर रोज ही महसस होता ह पर आज की बात तो न यारी ही थी

फफाजी क चार ढ़िदनो का वरत आज उनक व यलिtत व को इदरदतत की दषटिM म और भी अषटिधक तजोमय बना रहा था फफाजी को लकर आज उनका मन अतयत भावक हो रहा था पीडा पा रहा था इदरदतत न अनभव डिकया डिक फफाजी क चहर पर डिकसी परकार की उततजना नही भख की थकान नही चहरा सखा कछ उतरा हआ अवश य था परत मख की चष टा नही डिबगडी थी पडित दवधर की यह बात इदरदतत को बहत छ रही थी

पडित जी आकर चौकी पर बठ गए इदरदतत उनक सामन मढ पर बठ घर बनन क कारण उनका बठका उजड गया था अभ यागत क आन पर इदरदतत सकोच क साथ इसी टट कमर म उसका स वागत करत फफाजी स तो खर सकोच नही पख का रख उन होन उनकी ओर कर ढ़िदया और डिफर बठ गए कछ दर तक दोनो ओर स खामोशी रही डिफर फफाजी न बात उठाई - तम अभी घर गए थ सना

- जी हा

- तम हारी बआ मझस कह रही थी मन यह भी सना ह डिक तम मर कारण डिकसी परकार का बाल हठ करन की धमकी भी द आए हो

पडित दवधर न अपना दपटटा उतार कर कसv पर रख ढ़िदया पालथी मारकर व सीध तन हए बठ थ उनका परायः पीला पडा हआ गोरा बदन उनक बठन क सधाय क कारण ही शकिरिरचअल जच रहा था अन यथा उनका यह पीलापन उनकी रोगी अवस था का भी परिरचय द रहा था

इदरदत त न सध-सधकर कहना शर डिकया - मरा हठ स वततर नही बडो क हठ म योगदान ह

- इन बातो स कछ लाभ नही इदर मरी गडित क लिलए मर अपन डिनयम ह

- और मर अपन डिनयम भी तो हो सकत ह

- तम ह स वाधीनता ह

- तब मन भी यढ़िद अनशन का फसला डिकया ह तो गलत नही ह

- तम अपन परडित मर स नह पर बोझ लाद रह हो म आत मशजिदध क लिलए वरत कर रहा ह परखो क साधना-गह की जो यह दगडित हई ह यह मर ही डिकसी पाप क कारण अपन अतःकरण की गगा स मझ सरस वती का मढ़िदर धोना ही पडगा तम अपना आगरह लौटा लो बटा

एक षटिमनट क लिलए कमर म डिफर सन नाटा छा गया कवल पख की गज ही उस खामोशी म लहर उठा रही थी

इदरदत त न शात स वर म कहा - एक बात पछ मढ़िदर म कत त क परवश स यढ़िद भगवती अपडिवतर हो जाती ह तो डिफर घट-घट व यापी ईश वर की भावना डिबलकल झठी ह एक ईश वर पडिवतर और दसरा अपडिवतर क यो माना जाए

पडित दवधर चप बठ रह डिफर गभीर होकर कहा - निहद धम बडा गढ ह तम इस झगड म न पडो

- म इस झगड म न पडगा फफाजी पर एक बात सोचता ह भगवान राम अगर परम क वश म होकर शबरी क जठ बर खा सकत थ निहद लोग यढ़िद इस आख यान म डिवश वास रखत ह तो डिफर छत-अछत का कोई परश न ही नही रह जाता यषटिधषटि^र न अपन साथ-साथ चलनवाल कत त क डिबना स वग म जान तक स इनकार कर ढ़िदया था यह सब कहाडिनया क या निहद-धम की मडिहमा बखाननवाली नही ह क या यह महत भाव नही ह डिफर इनक डिवपरीत छआछत क भय स छईमई होनवाल गढ धम की मडिहमा को आप क यो मानत ह इन रढ़िढयो स बधकर मनष य क या अपन को छोटा नही कर लता

पडितजी शाडितपवक सनत रह इदरदत त को भय हआ डिक बरा न मान गए हो तरत बोल - म डिकसी हद तक उत तजिजत जरर ह लडिकन जो कछ पछ रहा ह जिजजञास क रप म ही

- ठीक ह - पडितजी बोल - हमार यहा आचार की बडी मडिहमा ह मनस मडित म आया ह डिक आचारः परथमो धमः जसा आचार होगा वस ही डिवचार भी होग तम शदधाचरण को बरा मानत हो

- जी नही

- तब मरा आचार क यो भरष ट करा रह हो

- ऐसा धष टता करन का डिवचार स वप न म भी मर मन म नही आ सकता हा आपस aमा मागत हए यह जरर कहगा डिक आपक आचार नए यग को डिवचार शलिt नही द पा रह ह इसलिलए उनका मल य मर लिलए कछ नही क बराबर ह म दरतिवनीत नही ह फफाजी परत सच-सच यह अनभव करता ह डिक दडिनया आग बढ रही ह और आपका दषटिMकोण व यथ क रोड की तरह उसकी गडित को अटकाता ह पर इस समय जान दीजिजए म तो यही डिनवदन करन घर गया था और यही मरा आगरह ह डिक आप भोजन कर ल

पडितजी मस कराए इदरदत त क मन म आशा जागी पडितजी बोल - करगा एक शत पर

- आजञा कीजिजए

- जो मर अथात परानी परिरपाटी क यम डिनयम सयम आढ़िद ह व आज स तम ह भी डिनभान पडग जिजनका मल य तम हारी दषटिM म कछ नही ह व आचार-डिवचार मर लिलए पराणो स भी अषटिधक मल यवान ह

इदरदत त सतभिभत रह गए व कभी सोच भी नही सकत थ डिक फफाजी सहसा अनहोनी शत स उन ह बाधन का परयत न करग पछा - कब तक डिनभाना पडगा

- आजीवन

इदरदत त निककतव यडिवमढ हो गए जिजन डिनयमो म उनकी आस था नही जो चीज उनक डिवचारो क अनसार मनष य को अधडिवश वासो स जकड दती ह और जो भारतीय सस कडित का कलक ह उनस उनका परबदध मन भला क यो कर बध सकता ह हा कह तो कस कह उन होन इस वरत डिनयम बलिलदान चमत कार और षटिमथ या डिवश वासो स भर निहद धम को समाज पर घोर अत याचार करत दखा ह अपन-आपको तरह-तरह स परपीडिडत कर धारमिमक कहलानवाला व यलिt इस दश को रसातल म ल गया इस कठोर जीवन को साधनवाल शदधाचरणी बराहमण धम न इस दश की सतरिसतरयो और हीन कहलानवाली जाडितयो को सढ़िदयो तक दासता की चक की म बरी तरह पीसा ह और अब भी बहत काफी हद तक पीस रहा ह हो सकता डिक मनष य की चतना क उगत यग म इस शदध कहलानवाल आचार न अधकार म उन नत डिवचारो की ज योडित जगाई हो पर अब तो सढ़िदयो स इसी झठ धम न औसत भारतवासी को दास अधडिवश वासी और असीम रप स अत याचारो को सहन करनवाला झठी दवीशलिtयो पर यानी अपनी ही धोखा दनवाली लभावनी असभव कल पनाओ पर डिवश वास करनवाला झठा भाग यवादी बनाकर दश की कमर तोड रखी ह इसन औसत भारतवासी स आत मडिवश वास छीन लिलया ह इस जडता क खिxखलाफ उपडिनषद जाग मानवधम जागा योग का जञान जागा बौदध भागवतधम जागा मध यकाल का सत आदोलन उठा और आज क वजञाडिनक यग न तो इस एकदम डिनस सार लिसदध कर सदा क लिलए इसकी कबर ही खोद दी ह यह जड धम कभी भारत को महान नही बना सका होगा भारत की महानता उसक कमयोग म ह उसक व यापक मानवीय दषटिMकोण म ह व यास-वाल मीडिक आढ़िद क परम उदार भावो म ह पराचीन भारत क दशन न याय वशडिषक साडिहत य लिशल प सगीत आढ़िद इस जड धम की उपज हरडिगज नही हो सकत डिफर भी यह जडता भारत पर अस स भत की तरह छाई हई ह इसी स घणा करन क कारण आज का नया भारतीय डिबना जाच-पडताल डिकए अपनी सारी परपराओ स घणा करत हए लिसदधातहीन आस थाहीन और डिनसतरिकरय हो गया ह नही व फफाजी का धम हरडिगज न डिनभा सक ग हरडिगज नही हरडिगज नही पर व भोजन कस करग बआजी कस और कब तक भोजन करगी कसी डिवबना ह दो मनष यो की मौत की नडितक जिजम मदारी उनक ऊपर आएगी

पडित दवधर न उन ह मौन दखकर पछा-कहो भोजन कराओग मझ

- जीम धम-सकट म पड गया ह

- स पष ट कहो मरा धम गरहण करोग

फफाजी आप बहत माग रह ह मरा डिवश वास माग रह ह म आपक धम को यग का धम नही मानता अपना नही मानता

म तम हारी स पष टवाढ़िदता स परसन न ह तम धारमिमक हो इसी तरह अपन स मझको पहचानो म भी अपना धम नही छोड सकता यदयडिप तम हार सत सग स मन इतन ढ़िदनो म यह समझ लिलया ह डिक मरा यग मरा धम अब सदा क लिलए लोप हो रहा ह डिफर भी अडितम सास तक तो हरडिगज नही मरी आस था तपःपत ह तम हारा कल याण हो सखी हो बटा अच छा तो अब चल -

परत मरा अनशन का डिनश चय अडिग ह फफाजी म आपक चरण छकर कह रहा ह

पर छोड दो बट इन परो स पहल ही जडता समा चकी ह और अब तो जीव क साथ ही षटिमटगी अन यथा नही खर कल डिवचार करना अपन अनशन पर

अडितम वाक य पडितजी न इस तरह कहा डिक इदरदतत को करारा झटका लगा पर व मौन रहन पर डिववश थ पडित दवधर चलन लग इदरदतत क मन म भयकर तफान उठ रहा था व हार गए बआजी को क या उततर दग इस अगडित का अत कया होगा क या व फफाजी की बात मान ल कस मान ल यह ठीक ह डिक फफाजी अपन धम पर डिकस परकार एकडिनष ठ ह यह ए कडिनष ठता उन ह बहद परभाडिवत करती ह डिफर भी उनक धम को वह क यो कर स वीकार कर

पडित दवधरजी जीन पर पहचकर रक इदरदतत उनक पीछ-पीछ चल रह थ पडितजी घमकर बोल - तम हारी मान यताओ म मरी आस था नही ह इदर डिफर भी म उसक वास तडिवक पa को कछ-कछ दख अवश य पा रहा ह एक बात और स पष ट करना चाहता ह तम भोला डितरभवन क धम को आज का या डिकसी भी यग का वास तडिवक धम मानत हो

- जी नही उनका कोई धम ही नही ह

- तम हारा कल याण हो बट धन मद स जन म इस खोखल धम स सदा लडना जस म लडा तम अपन मत क अनसार लडो पर लडो अवश य यह आस थाहीन दभ भरा अदाशडिनक अधारमिमक जीवन लोक क लिलए अकल याणकारी ह बोलो वचन दत हो

म आपको अपना डिवश वास दता ह - कहकर इदरजीत न फफाजी क चरण छ लिलए खडाऊ की खट-खट जीन स उतर गई आगन पार डिकया दर चली इदरदतत आकर कट पड स अपन पलग पर डिगर गए

नया यग परान यग स स वच छा स डिवदा हो रहा था पर डिवदा होत समय डिकतना परबल मोह था और डिकतना डिनमम व यवहार भी

धम सकट अमतलाल नागर

शाम का समय था हम लोग परदश दश और डिवश व की राजनीडित पर लबी चचा करन क बाद उस डिवषय स ऊब चक थ चाय बड मौक स आई लडिकन उस ताजगी का सख हम ठीक तरह स उठा भी न पाए थ डिक नौकर न आकर एक सादा बद लिलफाफा मर हाथ म रख ढ़िदया मन खोलकर दखा सामनवाल पडोसी रायबहादर डिगराजडिकशन (डिगरिरराज कष ण) का पतर था कापत हाथो अनषटिमल अaरो और टढी पलिtयो म लिलखा था

माई डियर परताप

मन फल ली को आदश द रक खा ह डिक मरी मत य क बाद यह पतर तम ह फौरन पहचाया जाए तम मर अभिभन न षटिमतर क पतर हो रमश स अषटिधक सदा आजञाकारी रह हो मरी डिनम नलिलगनिखत तीन अडितम इच छाओ को परा करना -

1 रमश को तरत सचना दना मरी आत मा को तभी शाडित षटिमलगी जब उसक हाथो मर अडितम सस कार होग मन उसक साथ अनयाय डिकया ह

2 फल ली को मन पाच हजार रपय ढ़िदए ह और पाच-पाच सौ रपय बाकी चारो नौकरो को नोट मर तडिकए म रई की परत क अदर ह उसी म वसीयत और डितजोरी की चाभी भी ह घर म डिकसी को यह रहस य नही मालम तडिकया अब फौरन अपन कबज म कर लना घर क भार-घर और सदको की चाभिभया डितजोरी म ह रमश क आन पर पाच पचो क सामन उस सौप दना

3 मन अपनी वसीयत म यह शत रक खी ह डिक मरी पत नी अगर मझ माफ कर द और गलत ही सही मगर जो पडितवरत उस पर आन पडा ह उस साधकर रमश को छोडकर बाइज जत यहा रह तो यह मकान और दस हजार रपया उस ढ़िदया जाए लडिकन यह काम उसी हालत म होना चाडिहए जबडिक हम और तम हार दवारा डिनयक त महल ल क चार भल आदमी मरी पत नी की सच चरिरतरता क सबध म आवश स त हो जाए

पतर पर छह रोज पहल की तारीख पडी थी मझ यह समझन म दर न लगी डिक रायबहादर साहब गत हो चक ह पतर मन बड बाब क सामन मज पर रखा ढ़िदया इजीडिनयर साहब और परोफसर साहब भी झककर पढन लग

चाय बमजा हो गई हम सभी उठकर रायबहादर साहब क यहा गए उनका रोबीला चहरा रोग और मानलिसक सिचताओ स जजर होकर मत य क बाद भी उनक अडितम ढ़िदनो क असीम कष टो का परिरचय द रहा था मत रायबहादर क चहर को दखत हए उनक साथ बीत इतन वष की स मडितया मर मन म जाग उठी

रायबहादर बाब डिगराजडिकशन बीए उन निहदस ताडिनयो म स थ जिजन ह तकदीर की चक क कारण इeल म जनम नही षटिमल पाया था उनका रग भी गोरा न था बशकिक गहए स काल की ओर ही अषटिधक झकता हआ था डिफर भरसक उन होन अपन-आपको अगरजनमा ही बनाए रक खा गरीब निहदसताडिनयो पर अकड ढ़िदखान म व सदा अगरजो स चार जत आग रह कई निहदीवाढ़िदयो न उनस शदध नाम डिगरिरराजकष ण रखन को कहा मगर व उन ह मख बतलाकर डिगराज ही बन रह रायबहादर डिगराजडिकशन क नाम क साथ बीए जोडना भी डिनतात आवश यक था सन 23 म रायबहादर डिगराज अपनी डिबरादरी क रायसाहब दीनानाथ की बदौलत इलाहाबाद म छोट लाट क दफतर म भरती हए थ अपनी अगरजपरस ती और हाईक लास खशामद क दम पर रामबहादर ऊची करसिसयो पर चढ बठ स वराज य होन पर आतरिरक कष ट भोगन क बावजद तीन वष तक स वराजी अफसरो नताओ और मडितरयो की भी बाअदब खशामद की डिगराज बाब इन लोगो क सामन जिजस परकार खद दम डिहलात उसी परकार अपन सामन अपन मातहतो की भी डिहलवात थ आजादी क बाद भी दफतर म अपना भला चाहनवाला कोई बाब उनक आग निहदी का एक शब द नही बोल सकता था और घर क लिलए भी यही मशहर था डिक रायबहादर की भस तक अगरजी म ही कारती अगर कोई कसर थी तो सही डिक ली डिगराज क वास त अगरजी का करिरया अaर भी भस बराबर ही था

रायबहादर डिगराज पहली लडाई क जमान क मॉन आदमी थ सबह आख खलत ही घटी बजात सफद कोट पतलन और साफ स लस फल ली आया का लडका घसीट छोटी हाजिजरी लकर हाजिजर होता ठीक आठ बज बडी हाजिजरी पर बठत बटी-बटा साथ होत पर ल ी डिगराज अा-डिबस कट-समाज म कभी न बठी परम कटटर छत-पाकवाली न होत हए भी मास-मछली स उन ह परहज था बशीरत चपरासी क बाप मन न बावचv को हफत म दो ढ़िदन डयटी दनी पडती थी घर क डिनचल डिहस स म डिवलायती रसोई थी एक तरह स कहना चाडिहए डिक नीच का परा घर ही डिवलायती था वहा ल ी डिगराज क बजाय फल ली आया का सामराज य था फल ली पहल अगरजी कोढ़िठयो म काम करती थी अगरजी ढग स निहदस थानी बोलती ह अगरजी घर क कायद जानती ह छोटी-बडी हाजिजरी लच डिनर चाय सबका समय साधती थी इसलिलए डिगराज बाब क बाब डिनयम स दो पग खान स पहल चसडिकयो म मयादा करत थ फली उसका इतजाम भी बखबी कर दती थी इसलिलए आमतौर पर मजाक-मजाक म ही मशहर हो गया था डिक रायबहादर साहब स कोई काम करवान क वास त बजाय ली डिगराज क ल ी फल ली की लिसफारिरश जयादह परअसर होती ह

वस राजबहादर डिगराज म डिकसी न भी कोई ऐब की बात नही दखी-सनी थी अगर ऐब था तो यही डिक व मॉन थ चरट मह म लगाए बगर व बात नही कर पात थ अगर कोई निहदी सभा का चदा मागन आए तो उसस अकडकर कहत डिक मॉन जमान म गवार भाषाओ का उदधार करना डिहमाकत की बात ह धम क सबध म पहल तो व यह कहा करत थ डिक यह ढोग और पागलपन की वस त ह मगर बाद म उस इडियन कल चर का एक सनातन रप मानकर सहन कर जात थ डिगराज साहब थोडा-बहत लन-दन का काम करत थ और उसकी बदौलत उन होन हलिसयत भी बनाई अच छा मॉन ढग का मकान बनवाया उसका नाम ढ़िद नाइटिटगल रकखा मोटर खरीदी सदा दो-चार नौकर पाल घर स लकर दफतर तक घडी साधकर सबस डयटी करवाई पत नी को भी षटिमलन क वास त फल ली क दवारा उनस अप वाइटमट लना पडता था ली इसस जल-फक गई डिक म फल ली स भी गई-बीती हो गई

ली डिगराज न अपन फहडपन म उनक ऊपर एक बहत बडा लाछन लगा ढ़िदया रायबहादर साहब लिसदधाततः और स वभावतः अवध रिरश तो स नफरत करत थ इसलिलए अपनी पत नी क दवारा झठा लाछन लगाए जान क बाद डिफर उन होन कभी उनका मह न दखा बडी लडकी क डिववाह क अवसर पर उन होन कन यादान इसलिलए स वय न डिकया डिक उन ह पजा क पटर पर अपनी पत नी क साथ बठना पडता

इसक बाद दो वष म ली डिगराज घल-घलकर मर गई मगर मरी भी तो डिनयडित क साथ षडयतर करक ठीक इनक रिरटायर होन क ढ़िदन रायबहादर डिगराज को बहत लिशकायत हई अपन बट-बटी स कहा तम हारी मममी को कभी टाइम का सस नही रहा अगर मरना ही था तो कल सबह मरती परसो सबह मर सकती थी आज शाम को दफतर म मरी फयरवल पाट हो जान क बाद कभी मर सकती थी जिजदगी म एडरस पान का यह पहला मौका आया था सो इस तरह तबाहोबबाद कर ढ़िदया ईडियट कही की

इसक बाद मरनवाली तो खर मर ही चकी थी मगर जो भी मातम-परसी क लिलए मह डिबसरत हए आए उन ह भी रायबहादर साहब की ाट खानी पडी जो कहता डिक साहब सनकर बडा दख हआ उसस ही कहत आपको दख करन की जररत क या ह मझ कोई दख नही हआ जो आदमी पदा होता ह उन सबको एक साथ फौरन मर जाना चाडिहए जाइए मर यहा मातम-परसी क लिलए आन की जररत नही

छोटी लडकी की शादी उन होन पत नी की मत य क तीन महीन बाद पव डिनश चय क अनसार ही की स वय ब याहनवाली लडकी और उनक पतर को इसम आपभितत थी मगर उन होन डिकसी की एक न सनी कहा आई हव नो रिरगा फॉर योर मम मी शी वाज एक परफक ट फल लडकी की शादी बडी धमधाम स की एक आईसीएस क बट को अपना दामाद बनाया और बहत कछ दान-दहज दकर रिरटायर होन क बाद भी रोब जतलाया

लडका रमश तब एमए फाइनल म पढ रहा था नामी तज था सदा फस ट क लास रका रहा एमए क बाद आईएएस म बठनवाला था लडकीवाल अनक व यलिt रमश की माग करन क लिलए रायबहादर की सवा म आन लग रायबहादर डिगराज को अब मातहत क लक पर न सही तो ब टीवालो पर ही चरट का रोब झाडकर भरपर सतोष षटिमल जाता था दहज क मामल म व पक क मॉन थ यानी पच चीस हजार मागत थ एकाध डिपछल जानकार न दहाई दी डिक आप तो दहज क डिवरदध थ उसको परानी परथा बतलात थ तो बोल साहब जब मझ स बड अफसर आईसीएस आदमी यानी मर समधी साहब दहज लन को मॉन परथा मानत ह तो मन भी अपन डिवचार बदल ढ़िदए ह डिनहायत साइढ़िटडिफक बात ह डिक आपको दामाद चाडिहए और मझ 25 हजार रपया मरा रमश आईएएस पास करगा आप अपनी लडकी का फयचर दखकर अगर इतनी रक कम दना स वीकार करत ह तो बढ़िठए वरना मरी करसी की गददी मली मत डिकजिजए

व ऐसी लडकी चाहत थ जो सदर हो बीए हो गाती नाचती हो सीना-डिपरोना-बनना जानती हो अगरजी म फटाफट बात कर अफसर डिकसम क मॉन महमानो की खाडितर करन म तमीजदार हो और ऊपर स उसका बाप नगद पच चीस हजार रपय भी द जाए डिबरादरी क कई अच छी हलिसयतवाल बढ़िटयो क बापो क चहर रायबहादर डिगराज क चरट की अकड स धआ-छआ हो गए

एक ढ़िदन इनक दवारा नौकर रखाए गए परान मातहत एक सजातीय बाब दवीशकर पधार डिगराज की मडिहमाओ का बखान करत हए उन होन कहा सर म आपकी च वायस को जानता ह और एक लडकी मरी नजर म ह

इन बाब क साथ उन होन रीता को दखन का अवसर पाया रीता रायसाहब चमनलाल की इकलौती बटी थी रायसाहब चमनलाल न अपन जमान म बड ऐश बड नाम डिकए व शहर की तवायफो क सरताज थ रस क घोडो क सरपस त थ और बड ही औला-पौला आदमी थ अपन जीवन-काल म लाखो कमाए और लाखो फक एक लडकी हई उस बड लाड स पाला-पोसा पढाया हाई स कल तक रीता न परीaाओ तथा वाद-डिववाद और नत य-परडितयोडिगताओ म अनक परस कार पराप त कर अपन डिपता को सतष ट डिकया था रायसाहब डिवधर थ रीता की एक डिवधवा मौसी उनकी लडकी की दखभाल करन क लिलए उनक यहा रहती थी सो तब तरह स उनकी ही हो गई थी रायसाहब न आख मदकर अपना घर अपनी रभिaता साली को सौप रक खा था

बाद म रायसाहब चमनलाल की जन मकली क गरह-नaतर पहट बडा घाटा आया ढ़िदवालिलए होन की नौबत आ गई अपनी लडकी क वास त कछ रकम बचान की नीयत स उन होन एक बगला अपनी साली क नाम स खरीदा और लगभग एक लाख रपया नगद और जवरो क रप म बचाकर उसी क नाम स जमा करवा ढ़िदया डिफर रायसाहब ढ़िदवालिलए हो गए और जिजस ढ़िदन उन ह अपनी महलनमा कोठी सदा क लिलए छोडनी थी उस ढ़िदन उन होन गहर नश म अपनी कनपटी पर रिरवाल वर रखकर अपनी इहलीला समाप त कर दी रायसाहब की मत य क बाद मौसी सयानी हो गई और रीता अनाथ

लडकी दखन गए तो उसकी दो चोढ़िटयो म डित तलिलयो जस रिरबन दखकर रायबहादर साहब क पशन पराप त जीवन म नई रस की गलाबी आई अनक वष का सोया हआ मॉन पत नी का अभाव जाग उठा लडकी रीता बातचीत म तज आख नचान म बाकमल और हसन म डिबजली थी दखकर लौट तो रास त म दवीशकर स बोल लडकी तो अच छी ह और दहज का भी मझ कोई खास नही क योडिक तम तो जानत ही हो डिक म इन सब मामलो म बडा मॉन ह खाली एक परयोजन ह क - अ - क या नाम क आई मीन तम हारा क या खयाल ह दवीशकर अभी तो म भी शादी कर सकता ह

दवीशकर रायबहादर को घरत लग मह पर खशामद स हा क बजाय ना भला क यो कर कहत मौसी क लिलए इसस बढकर काई शभ सवाद न हो सकता था अठारह वष की आय की रीता छsपन वषvय रायबहादर डिगराजडिकशन की पत नी बनी

और इसक बाद की तमाम बात अपन करम म बढ गई रीता न परथम ढ़िदन स ही अपन पडित स कोई सबध न रकखा हठपवक अपन कमर क अदर बद रही रायबहादर रपय-पस गहनो और खशामदो की बडी-बडी नमायश लगाकर हार गए डिफर एक ढ़िदन फल ली न बतलाया डिक रमश और रीता रायबहादर दवारा स थाडिपत सबध को भलकर परस पर नया सबध स थाडिपत कर रह ह रायबहादर आग हो गए रमश तब एमए क अडितम वष म पढ रहा था डिपता न करोध म अध होकर उस पर परहार डिकया और घर स डिनकाल ढ़िदया रीता तब भी उनकी न हई

रमश को दो महीन बाद ही ढ़िदल ली म कोई नौकरी षटिमल गई और उसक महीन-भर बाद ही रीता रायबहादर क घर स गायब होकर ढ़िदल ली पहच गई जान स पव वह एक अलबला काम कर गई थी महल ल क पच चास घरो म हर पत पर उनका लिलखा पोस टका उसक गायब होन क दसर ही ढ़िदन पहली ाक स पहचा उसम मातर इतना ही लिलखा था बाब डिगरिरराजकष ण न मझ जबरदस ती अपनी पत नी बनाया था मगर मन उन ह कभी अपना पडित न माना और न अपना धम ही ढ़िदया डिववाह स पहल मझ बतलाया गया डिक म उनक पतर को ब याही जाऊगी तब स मन उनक पतर को ही अपना पडित माना इस घर म आकर भी उन ह ही भगवान की साaी म अपन को सौपा और अब म अपन पडित क पास ही जा रही ह

रीता क भागन स रायबहादर बाब डिगराजडिकशन को इतना कष ट नही पहचा था जिजतना डिक उसक दवारा भज गए इस सावजडिनक पतर स व दखी हए इसक बाद रायबहादर का जीवन बदल गया उनम पजा-पाठ और आशकिसतकता की भावना जागी साथ ही अकलापन भी हठ पकड गया डिपछल आठ वष म व एक ढ़िदन भी अपन घर स बाहर डिनकलकर कही न गए लन-दन का काम करत थ वह भी धीर-धीर समाप त कर ढ़िदया महल ल म डिकसी स भी सपक न रक खा डिपछल कछ ढ़िदनो स बीमार थ मगर महल लवाल उनकी हालत दखन-पछन भी न गए जात तो षटिमलत भी नही और अचानक मर पास अब यह पतर आया

हम सभी महल लवाल एकाएक यह डिनणय न कर पाए डिक इस खिसथडित म क या करना चाडिहए वदयजी और बड बाब इस पa म थ डिक पलिलस को सचना द दी जाए और इस पतर को लिलखी हई बातो का अमल भी कानन क हाथो ही हो परत म तो मत व यलिt की अडितम इच छा परी करन क पa म था रायबहादर कस भी रह हो इसी महल ल क थ कइयो को उन होन कभी नौकरिरया भी ढ़िदलाई थी उपकार डिकया था इजीडिनयर साहब भी मर ही मत क थ बाद म सभी राजी हो गए महल ल क एक षटिमतर क पास रमश क पतर आया करत थ उसी स पता लकर तार भजा गया जिजसम यह स पष ट लिलख ढ़िदया था डिक यढ़िद कल परातःकाल तक तम स वय अथवा तम हारा पतर उततर न आएगा तो रायबहादर की अत योषटिM डिकरया महल लवालो दवारा ही पचनाम स सपन न कर दी जाएगी

सबह चार बज तार का जवाब आया डिक रमश टक सी दवारा ढ़िदल ली स चल रहा ह और सबह तक पहच जाएगा परातःकाल करीब-करीब सभी महल लवाल रायबहादर क घर पर उ पखिसथत थ तभी टक सी दरवाज पर रकी रमश रीता और तीन बच च उतर रमश क मह पर तो सामाजिजक लज जा और सकोच की मलिलन छाया थी परत रीता का चहरा सतज और डिनरतिवकार था

रीता क आन का सवाद पाकर अनक सतरिसतरया कौतहलवश आ गई रीता न रायबहादर की लाश क पास अपनी चडिडया तोडी और माग का सिसदर पोछा रमश न डिपता का अडितम सस कार डिकया सतरिसतरया रीता स तरह-तरह क परश न करती थी परत वह कोई उततर न दती थी डिकरयाकम इत याढ़िद म रायबहादर क सजा तीय नात-रिरश तदार आढ़िद बहत कम आए बरहमभोज म गरीबी स एकदम टट हए बराहमण ही आए डिकसी परकार डिकरयाकम समाप त हआ रमश क वहा स चलन का समय आया

मन रायबहादर क अडितम पतर क अनसार सभरात महल लवालो क साथ रीता-रमश को बलाकर सबक सामन उनका वह अडितम पतर पढा और वह तडिकया जो महरबद पटी म मन रखवा ढ़िदया था खलवाया फल ली और नौकरो को रायबहादर की इच छानसार रपय द ढ़िदए गए रायबहादर की अडितम माग पर रीता का डिनणय सनन क लिलए हम सभी उत सक बठ थ रीता बोली म धम और ईश वर क सम मख सचचरिरतर ह मन अपन तन-मन स उन ह सदा ससर ही माना धारमिमक कानन की जिजस मजबरी स उन होन मझ अपनी पत नी बनाया था उस मन डिवषटिधवत उनकी लाश को सौप भी ढ़िदया उनकी चडिडया उनका सिसदर उन ह सौपा लडिकन मरी चडिडया मरा सिसदर अaय ह कहकर उसन दर स अपन हाथ क नीच दबी हई रमाल की पोटली को उठाया उसम हरी चडिडया थी और एक चादी की डिडिबया थी चडिडया पहनी और डिबीया खोलकर रमश की और रखत हए बोली जिजन होन मरी गोद भरी ह उन होन मरी माग भी भरी ह - लीजिजए मरी माग भर दीजिजए

रमश न रीता की माग म सिसदर की रखा खीच दी डिफर रीता बोली घर क सबध म मझ कवल यही कहना ह डिक अगर आप पाच पच मझ दश चरिरतर मानत हो तो उस धमशाला बना दीजिजए

हमम स कोई खम ठोककर एकाएक यह नही कह पाया डिक रीता दश चरिरतर ह मन अनभव डिकया डिक सभी क मनो को इस परश न स धक का लगा था अपन परपरागत धारमिमक सामाजिजक सस कारो क कारण हम रीता को सचरिरतरा मानन स भी मन ही मन डिहचकत थ पर यो क या कह

रीता हमारी डिहचक पर एक बार कहकर उठ गई उसन कहा मझ रायबहादर साहब का घर और दस हजार रपय पान की इच छा नही मर पडित न मझ सहाग की छाव द रक खी ह लडिकन म आपक सामन कसौटी रखती ह - बोलिलए घर डिकसका ह

घर को छोडकर बाकी सब सामान क साथ रमश रीता और उनक बच च ढ़िदल ली चल गए हम अभी तक कोई डिनणय नही कर पाए घर की चाभी मर पास ह वह तोल ढ का लोह का टकडा इस समय मर मन-पराणो का बोझ बना हआ ह

(1961 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

परायभित अमतलाल नागर

जीवन वाढ़िटका का वसत डिवचारो का अधड भलो का पवत और ठोकरो का समह ह यौवन इसी अवसथा म मनय तयागी सदाचारी दश-भt एव समाज-भt भी बनत ह तथा अपन खन क जोश म वह काम कर ढ़िदखात ह जिजसस डिक उनका नाम ससार क इडितहास म सवणाaरो म लिलख ढ़िदया जाता ह तथा इसी आय म मनय डिवलासी

लोलपी और वयभिभचारी भी बन जाता ह और इस परकार अपन जीवन को दो कौडी का बनाकर पतन क खडड म डिगर जाता ह अत म पछताता ह परायभित करता ह परत परतयचा स डिनकाला हआ बाण डिफर वापस नही लौटता खोई हई सचची शाडित डिफर कही नही षटिमलती

मभिणधर सदर यवक था उसक पस (जब) म पसा था और पास म था नवीन उमगो स परिरत हदय वह भोला-भाला सशील यवक था बचारा सीध माग पर जा रहा था यारो न भटका ढ़िदया - दीन को पथ-हीन कर ढ़िदया उस डिनतय-परडित कोठो की सर कराई नई-नई परिरयो की बाकी झाकी ढ़िदखाई उसक उचचडिवचारो का उसकी महतवकाaाओ का अतयत डिनदयता क साथ गला घोट ाला गया बनावटी रप क बाजार न बचार मभिणधर को भरमा ढ़िदया डिपता स पसा मागता था वह अनाथालयो म चदा दन क बहान और उस आख बद कर बहाता था गदी नालिलयो म पाप की सरिरता म घभिणत वnयालयो म

ऐसी डिनराली थी उसकी लीला पडित जी वदध थ अनक कनयाओ क लिशaक थ वातसय परम क अवतार थ डिकसी भी बालिलका क घर खाली हाथ न जात थ षटिमठाई फल डिकताब नोटबक आढ़िद कछ न कछ ल कर ही जात थ तथा डिनतयपरडित पाठ सनकर परतयक को पारिरतोडिषक परदान करत थ बालिलकाए भी उनस अतयत डिहल-षटिमल गई थी उनक सरaकगण भी पडित जी की वातसयता दख गदगद हो जात थ घरवालो क बाद पडित जी ही अपनी छातराओ क डिनरीaक थ सरaक थ बालिलकाए इनक घर जाती हारमोडिनयम बजाती गाती हसती खलती कदती थी पडितजी इसस गदगद हो जात थ तथा बाहरवालो स परमाशर ढरकात हआ कहा करत इनही लडडिकयो क कारण मरा बढापा कटता चला जा रहा ह अनयथा अकल तो इस ससार म मरा एक ढ़िदवस भी काटना भारी पड जाता समसत ससार पडितजी की एक मह स परशसा करता था

बाहरवालो को इस परकार ठाट ढ़िदखाकर पडितजी दसर ही परकार का खल खला करत थ वह अपनी नवयौवना सदर छातराओ को अनय डिवषयो क साथ-साथ परम का पाठ भी पढाया करत थ परत वह परम डिवशदध परम नही वरन परम की आड म भोगलिलsसा की लिशaा थी सतीतव डिवकरय का पाठ था काम-वासना का पाठ पढाकर भोली-भाली बालिलकाओ का जीवन नM कराकर दलाली खान की चाल थी टटटी की आड म लिशकार खला जाता था पडितजी क आस-पास यडिनवरसिसटी तथा कालज क छातर इस परकार भिभनभिभनाया करत थ जिजस परकार डिक गड क आस पास मखिकखया डिवलिचतर थ पडितजी और अदभत थी उनकी माया

रायबहादर ॉ शकरलाल अगनिeनहोतरी का सथान समाज म बहत ऊचा था सभा-सोसाइटी क हाडिकम-हककाम म आदर की दषटिM स दख जात थ वह उनक थी एक कनया - मtा वह हजारो म एक थी - सदरता और सशीलता दोनो म दभाeयवश वदध पडितजी उस पढान क लिलए डिनयt डिकए गए भोली-भाली बालिलका अपन आदश को भलन लगी पडित जी न उसक डिनमल हदय म अपन कखितसत महामतर का बीजारोपण कर ढ़िदया था अनय यवती छातराओ की भाडित मtा भी पडित जी क यहा हारमोडिनयम सीखन जान लगी

पडितजी मtा क रप लावणय को डिकराए पर उठान क लिलए कोई मनचला पस वाला ढढन लग अत म मभिणधर को आपन अपना पातर चन लिलया नई-नई कलिलयो की खोज म भटकन वाला षटिमसिलद इस अपव कली का मदपान करन क लिलए आकलिलत हो उठा इस अवसर पर पडितजी की मटठी गम हो गई दसर ही ढ़िदवस मभिणधर को पडित जी क यहा जाना था वह सधया अतयत ही रमणीक थी मभिण न उस बडी परतीaा करन क पात पाया था आज वह अतयत परसनन था आज उस पडितजी क यहा जाना था वह लब-लब पग रखता हआ चला जा रहा था पडितजी क पापालय की ओर आज उस रपयो की वदी पर वासना-दवी को परसनन करन क लिलए बलिल चढानी थी

मtा पडितजी क यहा बठी हारमोडिनयम पर उगलिलया नचा रही थी और पडितजी उस पलडिकत नतरो स डिनहार रह थ वह बाजा बजान म वयसत थी साहसा मभिणधर क आ जान स हारमोडिनयम बद हो गया लजीली मtा कसv छोडकर एक ओर खडी हो गई पडितजी न डिकतना ही समझाया बटी इनस ल|ा न कर यह तो अपन ही ह जा बजा बाजा बजा अभयागत स|न क सवागत म एक गीत गा परत मtा को अभी ल|ा न न छोडा था वह अपन सथान पर अडिवचल खडी थी उसक सकोमल मनोहारी गाल ल|ावश अगरी की भाडित लाल हो रह थ

अलक आ-आकर उसका एक मधर चबन लन की चMा कर रही थी मभिणधर उस पर मर षटिमटा था वह उस समय बाहय ससार म नही रह गया था यह सब दख पडितजी गनिखसक गए अब उस परको^ म कवल दो ही थ

मभिणधर न मtा का हाथ पकडकर कहा आइए खडी कयो ह मर समीप बठ जाइए मभिणधर धM होता चला जा रहा था मtा जिझझक रही थी परत डिफर भी मौन थी मभिणधर न कहा - कया पडितजी न इस परकार आडितथय सतकार करना लिसखलाया ह डिक घर पर कोई पाहन आव और घरवाला चपचाप खडा रह शभ मर समीप बठ जाइए परम की डिवदयत कला दोनो क शरीर म परवश कर चकी थी मtा इस बार कछ न बोली वह मतर-मeध-सी मभिण क पीछ-पीछ चली आई तथा उसस कछ हटकर पलग पर बठ गई आपका शभ नाम मभिण न जरा मtा क डिनकट आत हए कहा मtा लजीली मtा न धीम सवर म कहा

बातो का परवाह बढा धीर-धीर समसत डिहचक जाती रही और और थोडी दर क पात मtा नीरस हो गई उसकी आब उतर गई थी

डिहजाब नौ उरमा रहबर शौहर नबी मानद अगर मानद शब-मानद शब दीगर नबी मानद

डिहचक खल गई थी मभिण और मtा का परम करमशः बढन लगा था मभिण षटिमसिलद था पप पर उसका परम तभी ही ठहर सकता ह जब तक उसम मद ह परत मtा का परम डिनमल और डिनकलक था वह पाप की सरिरता को पडिवतर परम की गगा समझकर बरोक-टोक बहती ही चली जा रही थी अचानक ठोकर लगी उसक नतर खल गए एक ढ़िदन उसन तथा समसत ससार न दखा डिक वह गभ स थी

समाज म हलचल मच गई शकरलाल जी की नाक तो कट ही गई वह डिकसी को मह ढ़िदखान क योeय न रह गए थ - ऐसा ही लोगो का डिवचार था असत जाडित-डिबरादरी जटी पच-सरपच आए पचायत का काय आरभ हआ मtा क बयान लिलए गए उसन आसओ क बीच लिससडिकयो क साथ-साथ समाज क सामन सपण घटना आदयोपात सना ाली - पडितजी का उसक भोल-भाल सवचछ हदय म काम-वासना का बीजारोपण करना ततपात उसका मभिणधर स परिरचय कराना आढ़िद समसत घटना उसन सना ाली पडितजी न डिगडडिगडात अपनी सफाई पश की तथा मtा स अपनी वदधावसथा पर तरस खान की पराथना की परत मभिणधर शात भाव स बठा रहा

पचो न सलाह दी बढो न हा म हा षटिमला ढ़िदया सरपच महोदय न अपना डिनणय सना ाला सारा दोष मtा क माथ मढा गया वह जाडितचयत कर दी गई रायबहादर क डिपता की भी वही राय थी जो पचो की थी मभिणधर और पडितजी को सचचरिरतरता का सरटिटडिफकट द डिनदyenषी करार द ढ़िदया गया कवल अबला मtा ही दख की धधकती हई अगनिeन म झलसन क लिलए छोड दी गई अत म अतयत कातर भाव स डिनससहाय मtा न सरपच की दोहाई दी - उसक चरणो म डिगर पडी सरपच घबराए हाय भरMा न उनह श कर लिलया था करोषटिधत हो उनहोन उस गरभिभणी डिनससहाय आशरय-हीना यवती को धकक मार कर डिनकाल दन की अनमडित द दी उनकी आजञा का पालन करन क लिलए निहद समाज को वासतव म पतन क खडड म डिगरान वाल नरराaस खशामदी टटट पीर बवचv भिभसती खर की कहावत को चरिरताथ करन वाल इस कलक क सचच अपराधी पडितजी ततaण उठ उस धकका मारकर डिनकालन ही वाल थ - अचानक आवाज आई - ठहरो अनयाय की सीमा भी परिरषटिमत होती ह तम लोगो न उसका भी उलघन कर ाला ह लोगो न नतर घमाकर दखा तो मभिणधर उततजिजत हो डिनल भाव स खडा कह रहा था निहद समाज अधा ह अतयाचारी ह एव उसक सवसवा अथात हमार माननीय पचगण अनपढ ह गवार ह और मख ह जिजनह खर एव खोट सतय और असतय की परख नही वह कया तो नयाय कर सकत ह और कया जाडित-उपकार इसका वासतडिवक अपराधी तो म ह इसका द तो मझ भोगना चाडिहए इस सशील बाला का सतीतव तो मन नM डिकया ह और मझस भी अषटिधक नीच ह यह बगला भगत बना हआ नीच पडित इस दराचारी न अपन सवाथ क लिलए न मालम डिकतनी बालाओ का जीवन नM कराया ह - उनह पथभरM कर ढ़िदया ह जिजस आदरणीय दषटिM स इस नीच को समाज म दखा जाता ह वासतव म यह नीच उसक योeय नही वरन यह नर पश ह लोलपी ह लपट ह सिसह की खाल ओढ हए तचछ गीदड ह - रगा लिसयार ह

सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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- बड दवर की कडितया क या डिफर चौक म इदर की बह का अनमान सत य क डिनकट पहचा घटना पडित दवधर क ज यष ठ ॉक टर भोलाशकर भटट दवारा पाली गई असला स काटल क श वान की बटी जलिलयट क कारण ही घटी इस बार तो उसन गजब ही ढा ढ़िदया पडितजी की बडिगया म परखो का बनवाया हआ एक गप त साधना-गह भी ह घर की चहारदीवारी क अदर ही यह बडिगया भी ह उसम एक ओर ऊच चबतर पर एक छोटा-सा मढ़िदर बना ह मढ़िदर म एक सन यासी का पराना कलमी लिचतर चदन की नककाशीदार जजर चौकी पर रखा ह उस छोट स मढ़िदर म उकड बठकर ही परवश डिकया जा सकता ह मढ़िदर क अदर जाकर दाडिहन हाथ की ओर एक बड आलनमा दवार स अपन सार शरीर को लिसकोडकर ही कोई मनष य साधना गह म परवश कर सकता ह इस गह म सगमरमर की बनी सरस वती दवी की अनपम मरतित परडितषटि^त ह जिजस पर सदा तल स भिभगोया रशमी वस तर पडा रहता ह कवल शरीमख क ही दशन होत ह मरतित क सम मख अख दीप जलता ह यह साधना-गह एक मनष य क पालथी मारकर बठन लायक चौडा तथा मरतित को साष टाग परणाम करन लायक लबा ह पडित दवधरजी क डिपतामह क डिपता को सन यासी न यह मरतित और महा सरस वती का बीज मतर ढ़िदया था सनत ह उन होन सन यासी की कपा स यही बठकर वाग दवी को लिसदध डिकया और लोक म बडा यश और धन कमाया था पडितजी क डिपतामह और डिपता भी बड नामी-डिगरामी हए रजवाडो म पजत थ पडित दवधरजी को यदयडिप परखो का लिसदध डिकया हआ बीजमतर नही षटिमला डिफर भी उन होन अपन यजमानो स यथष ट पजा और दभिaणा पराप त की बीज मतर इसलिलए न पा सक डिक वह उत तराषटिधकार क डिनयम स डिपता क अतकाल म उनक बड भाई धरणीधरजी को ही पराप त हआ था और व भरी जवानी म ही हदय-गडित रक जान स स वग लिसधार गए थ डिफर भी पडित दवधरजी न आजीवन बडी डिनष ठा क साथ जगदबा की सवा की ह

ए क ढ़िदन डिनत य-डिनयमानसार गगा स लौटकर सबर पडितजी न जब साधना-गह म परवश डिकया तो उस भोला की कडितया क सौरी-घर क रप म पाया पडितजी की करोधागनिeन परच रप स भडक उठी लडक-लडको की बहए एकमत होकर पडित दवधर स जबानी मोचा लन लग पडित दवधरजी न उस ढ़िदन स घर म परवश और अन न-जल गरहण न करन की परडितजञा ल रखी ह व साधना-गह क पास कएवाल दालान म पड रहत ह आज चार ढ़िदन स उन होन कछ नही खाया कही और बाजार म तो व खान-पीन स रह शायद इदर क घर भोजन करत हो यही पछन क लिलए इदर की बआ इस समय यहा आई थी परत उनकी भतीज-बह न जब उनक यहा भोजन न करन की बात बताई तो सनकर बआजी कछ दर क लिलए पत थर हो गई पडित की अडसठ वष की आय डिनत य सबर तीन बज उठ दो मील पदल चलकर गगाजी जाना आना अपना सारा कायकरम डिनभाना दोपहर क बारह-एक बज तक बरहम-यजञ भागवत पाठ सरस वती कवच का जप आढ़िद यथावत चल रहा ह और उनक मह म अन न का एक दाना भी नही पहचा यह डिवचार बआजी को जड बना रहा था

- य तो सब बात मझ इत ती बखत तमस मालम पड रही ह बआजी फफाजी न तो मरी जान म कभी कछ भी नही कहा कहत तो मर सामन जिजकर आए डिबना न रहता

- अर तर फफाजी रिरसी-मनी हग बटा बस इन ह करोध न होता तो इनक ऐसा महात मा नही था डिपरथी प क या कर अपना जो धरम था डिनभा ढ़िदया जसा समय हो वसा नम साधना चाडिहए पट क अश स भला कोई कस जीत सक ह

- फफाजी आगनिखर डिकतन ढ़िदन डिबना खाए चल सक ग बढाप का शरीर ह

- बोई तो म भी कह ह बटा मगर इनकी जिजद क अगाडी मरी कहा चल पाव ह बहोत होव ह तो कोन म बठक रोल ह

- कहत-कहत बआजी का गला भर आया बोली - इनक सामन सबको रखक चली जाऊ तो मरी गत सधार जाए जान क या-क या दखना बदा ह लिललार म - बआजी टट गई फट-फटकर रोन लगी

- तम डिफकर न करो बआजी इतन ढ़िदनो तक तो मालम नही था पर आज स फफाजी क खान-पीन का सब इतजाम हो जाएगा

ॉक टर इदरवत शमा क यडिनवरसिसटी स लौट कर आन पर चाय पीत समय उनकी पत नी न सारा हाल कह सनाया इदरदतत सन न रह गए परयसी क समान मनोहर लगनवाली चाय क हठ को पहचानत थ फफाजी डिबना डिकसी स कछ कह-सन इसी परकार अनशन कर पराण त याग कर सकत ह फफाजी डिबना डिकसी स कछ कह-सन इसी परकार अनशन पराण त याग कर सकत ह इस इदरदतत अच छी तरह जानत थ उनक अतर का कष ट चहर पर तडपन लगा पडित की व यथा को गौर स दखकर पत नी न कहा - तम आज उन ह खान क लिलए रोक ही लना म बडी शदधताई स बनाऊगी

- परश न यह ह व मानग भी उनका तो चदर टर सरज टरवाला डिहसाब ह

- तम कहना तो सही

- कहगा तो सही पर म जानता ह लडिकन इस तरह व चलग डिकतन ढ़िदन भोला को ऐसा हठ न चाडिहए

- भोला क या कर कडितया क पीछ-पीछ घमत डिफर शौक ह अपना और क या फफाजी को भी इतना डिवरोध न चाडिहए

- फफाजी का न याय हम नही कर सकत

- अभी मान लो तम हार साथ ही ऐसी गजरती

- म डिनभा लता

- कहना आसान ह करना बडा मशकिnकल ह फफाजी तो चाहत ह सबक सब परान जमान क बन रह चोटी जनऊ छतछात लिसनमा न जाओ और घघट काढो भला य कोई भी मानगा

- मर खयाल म फफाजी इस पर कछ

- भल न कह अच छा तो नही लगता

- ठीक ह तमह भी मरी बहत-सी बात अच छी नही लगती

- कौन-सी बात

- म लिशकायत नही करता उदाहरण द रहा ह ठीक-ठीक एक मत क कोई दो आदमी नही होत होत भी ह तो बहत कम पर इसस क या लोगो म डिनभाव नही होता भोला और उसकी दखदखी डितरभवन म घम आ गया मा-बाप को ऐस दखत ह जस उनस पदा ही नही हए फफाजी हठी और रढ़िढपथी ह सही पर एकदम अवजञा क योग य नही य लोग उन ह लिचढान क लिलए घर म प याज लहसन अा मछली सब कछ खात ह फफाजी न अपना चौकाघर ही तो अलग डिकया डिकसी स कछ कहा-सना तो नही

स वभाव स शात और बोलन म षटिमतव ययी इदरदत त इस समय आवश म आ गए थ फफाजी क परडित उसका सदा स आदरभाव था लोक उनका आदर करता ह इधर महीनो स इदरदतत क आगरह पर पडित दवधरजी परडितढ़िदन शाम क समय दो-ढाई घट उनक घर डिबतात ह कभी भागवत कभी रामायण कभी कोई पौराभिणक उपाख यान चल पडता ह पडितजी अपनी तरह स कहत ह इदरदतत उनक दवारा पराचीन समाज क करम-डिवकास क लिचतर दखता उनस अपन लिलए नया रस पाता कभी-कभी बातो क रस म आकर अपन राजा-ताल लकदार यजमानो क मजदार सस मरण सनात हकभी उनक बचपन और जवानी की स मडितयो तक स टकराती हई परानी सामाजिजक तस वीर इन महल लो

की परानी झाडिकया सामन आ जाती ह फफाजी क अनभवो स अपन लिलए जञान-सतर बटोरत हए उनक डिनकट सपक म आकर इदरदतत को आदर क अलावा उनस परम भी हो गया ह

इदरदतत की पत नी क मन म आदर भाव तो ह पर जब स व बराबर आकर बठन लग ह तब स उस एक दबी ठी लिशकायत भी ह पडित क साथ घडी दो घडी बठकर बात करन करम या चौसर खलन या अपन पतक घर क सबध म जो अब नए लिसर स बन रहा ह सलाह-सत करन का समय उस नही षटिमल पाता अपनी छोटी दवरानी डितरभवन की बह स बडा स बडा नह-हत होन क कारण उसकी बातो म डिवश वास रखकर वह फफाजी क परानपन स डिकसी हद तक डिफरट भी ह इसलिलए जब इदरदतत न यह कहा डिक घर म मास-मछली क परयोग क बाद फफाजी न अपना चौका अलग कर लिलया मगर कछ बोल नही तो उनकी पत नी स रहा नही गया कहन लगी - तो उन लोगो स - अर पोत-पोडितयो तक स तो बोलत नही डिफर लिशकायत डिकसस करग

- फफाजी को पहचानन म बस यही तम लोग गलती करत हो उनका परम परायः गगा ह मन अनभव स इस बात को समझा ह बद रहन पर भी जिझरजिझर दरवाजो स जिजस तरह ल क तीर आत ह सयमी इदरदतत क अतर म उदवग इसी तरह परकट हो रहा था

पत नी न पडित क रख पर रख डिकया तरत शात और मद स वर म कहा - म फफाजी को पहचानती ह उनक ऐस डिवदवान की कदर उस घर म नही उनका परम तम जसो स हो सकता ह तम सिचता न करो बरत आज परा हो जाएगा

- मान जाएग पत नी क चहर तक उठी इदरदतत की आखो म शका थी उनका स वर करण था

- परम नम बडा ह - पडित क aोभ और सिचता को चतराई क साथ पत नी न मीठ आश वासन स हर लिलया परत वह उन ह डिफर चाय-नाश ता न करा सकी

ॉक टर इदरदतत शमा डिफर घर म बठ न सक आज उनका धय डिग गया था फफाजी लगभग छ साढ बज आत ह इदरदतत का मन कह रहा था डिक व आज भी आएग पर शका भी थी ममडिकन ह अषटिधक कमजोर हो गए हो न आए इदरदतत न स वय जाकर उन ह बला ल आना ही उलिचत समझा हालाडिक उन ह यह मालम ह डिक इस समय फफाजी स नान-सध या आढ़िद म व यस त रहत ह प दवधर जी का घर अषटिधक दर न था ॉक टर इदरदतत सदर दरवाज स घर म परवश करन क बजाय एक गली और पार कर बडिगया क दवार पर आए फफाजी गगा लहरी का पाठ कर रह थ फलो की सगषटिध-सा उनका मधर स वर बडिगया की चहारदीवारी क बाहर महक रहा था

अडिप पराज य राज य तणषटिमप परिरत यज य सहसा डिवलोल दवानीर तव जनडिन तीर भिशरत वताम सध धातः स वादीथः सलिललभिभदाय तपतिsत डिपबतामज नानामानदः परिरहसडित डिनवाण पदवीम

इदरदतत दरवाज पर खड-खड सनत रह आखो म आस आ गए फफाजी का स वर उनक कानो म मानो अडितम बार की परसादी क रप म पड रहा था कछ ढ़िदनो बाद कछ ही ढ़िदनो बाद यह स वर डिफर सनन को न षटिमलगा डिकतनी तन मयता ह आवाज म डिकतनी जान ह कौन कहगा डिक पडित दवधर का मन aब ध ह उन होन चार ढ़िदनो स खाना भी नही खाया ह ऐस व यलिt को ऐस डिपता को भोला-डितरभवन कष ट दत ह इदरदतत इस समय अतयत भावक हो उठ थ उन होन फफाजी की तन मयता भग न करन का डिनश चय डिकया गगा लहरी पाठ कर रह ह इसलिलए नहाकर उठ ह या नहान जा रह ह इसक बाद सध या कर फफाजी स भट हो जाएगी उनक कायकरम म डिवघ न न ालकर इतना समय बआ क पास बठ लगा यह सोचकर व डिफर पीछ की गली की और मड

- अम मा

- हा बडी अपन कमर म दरवाज क पास घटनो पर ठोढी ढ़िटकाए दोनो हाथ बाध गहर सोच म बठी थी जठ बट की बह का स वर सनकर तडपड ताजा हो गई हा इतनी दर क खोएपन न उसक दीन स वर म बडी करणा भर दी थी

बडी बह क चहर की ठसक को उनकी कमर क चारो और फली हई चबv सोह रही थी आवाज भी उसी तरह षटिमजाज क काट पर सधी हई थी व बोली - उन होन पछवाया ह डिक दादा आखिxखर चाहत क या ह

- वो तो कछ भी नही चाह ह बह

- तो य अनशन डिफर डिकस बात का हो रहा ह

पडित दवधर की सहधरमिमणी न स वर को और सयत कर उततर ढ़िदया - उनका सभाव तो तम जानो ही हो बहरिरया

य तो कोई जवाब नही हआ अम मा जान दग ऐसा हठ भी भला डिकस काम का बड डिवदवान ह भक त ह दडिनया भर को पन न और परोपकार लिसखात ह कतत म क या उसी भगवान की दी हई जान नही ह

बडी बह तज पडती गई सास चपचाप सनती रही

- य तो मा-बाप का धरम नाही हआ य दश मनी हई और क या घर म सब स बोलना-चालना तो बद कर ही रखा था

- बोलना चालना तो उनका सदा का ऐसा ही ह बटा तम लोग भी इतन बरसो स दखो हो भोला-डितरभअन तो सदा स जान ह

- इदर भाई साहब क यहा तो घल-घल क बात करत ह

- इदर पढा-लिलखा ह न वसी ही बातो म इनका मन लग हा इसम

- हा-हा हम तो सब गवार ह भरष ट ह हम पाडिपयो की तो छाया दखन स भी उनका धम नष ट होता ह

- बह बटा गस सा होन स कोई फायदा नही हम लोग तो सिचता म खड भए हग रानी तम सबको रखक उनक सामन चली जाऊ डिवश वनाथ बाबा स उठत-बठत आचल पसार क बरदान माग ह बटा अब मर कलज म दम नही रहा क या कर बआजी रो पडी

इदरदतत जरा दर स दालान म ढ़िठठक खड थ बआ हो रोत दख उनकी भावकता थम न सकी पकारा बआ

बआजी एक aण क लिलए ढ़िठठकी चट स आस पोछ आवाज सम हालकर षटिमठास क साथ बोली - आओ भया

भोला की बह न लिसर का पल ला जरा सम हाल लिलया और शराफती मस कान क साथ अपन जठ को हाथ जोड

इदरदतत न कमर म आकर बआजी क पर छए और पास की बठन लग बआजी हडबडाकर बोली - अर चारपाई पर बठो

- नही म सख स बठा ह आप क पास

- तो ठहरो म चटाई

बआजी उठी इदरदतत न उनका हाथ पकडकर बठा लिलया और डिफर भोला की बह को दखकर बोला - कसी हो सशीला मनोरमा कसी ह

- सब ठीक ह

- बच च

- अच छ ह भाभीजी और आप तो कभी झाकत ही नही इतन पास रहत ह और डिफर भी

- म सबकी राजी-खशी बराबर पछ लता ह रहा आना-जाना सो

- आपको तो खर टाइम नही षटिमला लडिकन भाभीजी भी नही आती बाल नही बच च नही कोई काम

- घर म मदद लगी ह ऐस म घर छोड क कस आई डिबचारी - बआजी न अपनी बह की बात काटी

- बह आख चढाकर याद आन का भाव जनात हए बोली - हा ठीक ह कौन-सा डिहस सा बनवा रह ह भाई साहब

- परा घर नए लिसर स बन रहा हगा ऐसा बढ़िढया डिक महल ल म ऐसा घर नही ह डिकसी का - सास न बह क वभव को लखि|त करन की दबी तडप क साथ कहा बआजी यो कहना नही चाहती थी पर जी की चोट अनायास फट पडी बडी बह न आख चमका अपनी दहरी ठोडी को गदन स लिचपकाकर अपन ऊपर पडनवाल परभाव को जतलाया और पछा - पर रहत तो शायद

- पीछवाल डिहस स म रहत ह

- इसी डिहस स म जीजी का मरा और भया का जनम भया एक भाई और भया था सब यही भए हमार बाप ताऊ दादा और जान कौन-कौन का जनम

- वो डिहस सा घर भर म सबस जयादा खराब ह कस रहत ह

- जहा परखो का जनम हआ वह जगह स वग स भी बढकर ह परख पथ वी क दवता ह बडी बह न आग कछ न कहा लिसर का पल ला डिफर सम हालन लगी

- आज तो बहत ढ़िदनो म आए भया म भी इतनी बार गई बह स तो भट हो जाव ह

बआ-भतीज को बात करत छोडकर बडी बह चली गई उसक जान क बाद दो aण मौन रहा उसक बाद दोनो ही परायः साथ-साथ बोलन को उदयत हए इदरदत त को कछ कहत दखकर बआजी चप हो गई

- सना फफाजी न

- उनकी सिचता न करो बटा वो डिकसी क मान ह

- पर इस तरह डिकतन ढ़िदन चलगा

- चलगा जिजतन ढ़िदन चलना होगा बआजी का स वर आसओ म बन-उतरान लगा - जो मर भाग म लिलखा होगा - आग कछ न कह सकी आस पोछन लगी

- सच-सच बताना बआजी तमन भी कछ खाया

- खाती ह रोज ही खाती ह - पल ल स आख ढक हए बोली इदरदत त को लगा डिक व झठ बोल रही ह

- तम इसी वt मर घर चलो बआजी फफा भी वस तो आएग ही पर आज म उन ह लकर ही जाऊगा नही तो आज स मरा भी अनशन आरभ होगा

- करो जो जिजसकी समझ म आए मरा डिकसी पर जोर नही बस नही - आखो म डिफर बाढ आ गई पल ला आखो पर ही रहा

- नही बआजी या तो आज स फफा का वरत टटगा

- कडिहए भाई साहब - कहत हए भोला न परवश डिकया मा को रोत दख उसक मन म कसाव आया मा न अपन दख का नाम-डिनशान षटिमटा दन का असफल परयत न डिकया परत उनक चहर पर पडी हई आतरिरक पीडा की छाया और आसओ स ताजा नहाई हई आख उनक पतर स लिछपी न रह सकी भोला की मख-मदरा कठोर हो गई मा की ओर स मह फरकर चारपाई पर अपना भारी भरकम शरीर परडितषटि^त करत हए उन होन अपन ममर भाई स पछा - घर बन गया आपका

- तयारी पर ही ह बरसात स पहल ही कपलीट हो जाएगा

- सना ह नकशा बहत अच छा बनवाया ह आपन इदरदत त न कोई उत तर न ढ़िदया

- म भी एक कोठी बनवान का इरादा कर रहा ह इस घर म अब गजर नही होती

इदरदत त खामोश रह भोला भी पल भर चप रह डिफर बोल - दादा का नया तमाशा दखा आपन आज कल तो व आपक यहा ही उठत बठत ह हम लोगो की खब-खब लिशकायत करत होग

तमको मझस जयादा जानना चाडिहए पर-निनदा और लिशकायत करन की आदत फफा जी म कभी नही रही - इदरदतत का स वर सयत रहन पर भी निकलिचत उततजिजत था

- न सही म आपस पछता ह इनसाफ कीजिजए आप यह कौन सा जञान ह डिक एक जीवन स इतनी नफरत की जाए और और खास अपन लडको और बहओ स पोत पोडितयो स नफरत की जाए यह डिकस शास तर म लिलखा ह जनाब बोलिलए - भोला की उततजना ऐस खली जस मोरी स ाट हटात ही हौदी का पानी गलत बहता ह

इदरदतत न शात दढ स वर म बात का उततर ढ़िदया - तम बात को गलत रग द रह हो भोला इस परकार यह डिवकट कहना चाडिहए की घरल समस याए कभी हल नही हो सकती

- म गलत रग क या द रहा ह जनाब सच कहता ह और इनसाफ की बात कहता ह ताली हमशा दोनो हाथो स बजा करती ह

- लडिकन तम एक ही हाथ स ताली बजा रह हो यानी धरती पर हाथ पीट-पीट कर

- क या म समझा नही

- तम अपन आप ही स लड रह हो और अपन को ही चोट पहचा रह हो भोला फफाजी क सब डिवचारो स सहमत होना जररी नही ह म भी उनक बहत स डिवचारो को जरा भी नही मान पाता डिफर भी व आदर क पातर ह

व हमारी डिपछली पीढी ह जिजनकी परडितडिकरयाओ पर डिकरयाशील होकर हमारा डिवकास हो रहा ह उनकी खाषटिमया तो तम खब दख लत हो दखनी भी चाडिहए मगर यह ध यान रह डिक खडिबयो की ओर स आख मदना हमार-तम हार लिलए सारी नई पी ढी क लिलए कवल हाडिनपरद ह और कछ नही

भोला न अपनी जब स सोन का लिसगरट कस डिनकाला और चहर पर आडी-डितरछी रखाए ालकर कहन लगा - म समझता था भाई साहब डिक आपन डिहस टरी-उस टरी पढकर बडी समझ पाई होगी - इतना कहकर भोला क चहर पर सतोष और गव का भाव आ गया परोफसर इदरदतत क पढ-लिलखपन को दो कौडी का साडिबत कर भोला सातव आसमान की बजv पर चढ गया - ढकोसला म ढकलनवाली ऐसी डिपछली पीढ़िढयो स हमारा दश और खासतौर स हमारी निहद ससाइटी बहत सफर कर चकी जनाब अब चालीस बरस पहल का जमाना भी नही रहा जो डिपताडिह दवा डिपताडिह धमा रटा-रटाकर य लोग अपनी धास गाठ ल म कहता ह आप परान ह बड डिनष ठावान हहोग अपनी डिनष ठा-डिवष ठा को अपन पास रगनिखए नया जमाना आप लोगो की तानाशाही को बरदाश त नही करगा

तम अगर डिकसी की तानाशाही को बरदाश त नही करोग तो तमहारी तानाशाही

- म क या करता ह जनाब

- तम अपन झठ सधारो का बोझ हर एक पर लादन क लिलए उतावल कयो रहत हो

- तम फफाजी को लिचढात हो भोला म आज साफ-साफ ही कहगा तम और डितरभवन दोनो - इदरदतत न सध स वर म कहा

- म यह सब बवकफी की सी बात सनन का आदी नही ह भाई साहब जनाब हमको गोश त अच छा लगता ह और हम खात ह और जरर खाएग दख आप हमारा क या कर लत ह

- म आपका कछ भी नही कर लगा भोलाशकरजी आप शौक स खाइए मर खयाल म फफाजी न भी इसका कोई डिवरोध नही डिकया वह नही खात उनक सस कार ऐस नही ह तो तम यह क यो चाहत हो डिक वह तम हारी बात मत मानन लग रहा यह डिक उन होन अपना चौका अलग कर लिलया या वह तम लोगो क कारण aब ध ह यह बात तानाशाही नही कही जा सकती उन ह बरा लगता ह बस

- म पछता ह क यो बरा लगता ह मरी भी बड-बड परोफसर और नामी आलिलम-फाजिजलो स ढ़िदन-रात की सोहबत ह आपक वद क जमान क बराहमण और मडिन तो गऊ तक को खा जात थ

भोला न गदन झटकाई उनक चहर का मास थल उठा उनकी लिसगरट जल गई इदरदतत बोल - ठीक ह व खात थ राम-कष ण अजन इदर बगरह भी खात थ पीत भी थ मगर यह कहन स तम उस सस कार को धो तो नही सकत जो समय क अनसार परिरवरतितत हआ और वष णव धम क साथ करीब-करीब राष टरव यापी भी हो गया

- हा तो डिफर दसरा सस कार भी राष टरव यापी हो रहा ह

- हो रहा ह ठीक ह

- तो डिफर दादा हमारा डिवरोध क यो करत ह

- भोला हम फफाजी का न याय नही कर सकत इसलिलए नही डिक हम अयोग य ह वरन इसलिलए डिक हमार न याय क अनसार चलन क लिलए उनक पास अब ढ़िदन नही रह आदत बदलन क लिलए आखिxखरी वt म अब उत साह भी नही रहता

- म पछता ह क यो नही रहता

- यह सरासर जयादती ह तम हारी वह बीता यग ह उस पर हमारा वश नही हमारा वश कवल वतमान और भडिवष य पर ही हो सकता ह डिवगत यग की मान यताओ को उस यग क लिलए हम जस का तसा ही स वीकार करना होगा पहल बात सन लो डिफर कछ कहना हा तो म कह रहा था डिक हम अपन परखो की खडिबया दखनी चाडिहए ताडिक हम उन ह लकर आग बढ सक उनकी खाषटिमयो को या सीमाओ को समझना चाडिहए जिजनस डिक हम आग बढकर अपनी नई सीमा स थाडिपत कर सक उनक ऊपर अपनी सधारवादी मनोवभितत को लादना घोर तानाशाही नही ह

- और वो जो करत ह वह तानाशाही नही ह

- अगर तानाशाही ह तो तम उसका जरर डिवरोध करो मगर नफरत स नही व तम हार अतयत डिनकट क सबधी ह तम हार डिपता ह इतनी शरदधा तम ह करनी होगी उन ह इतनी सहानभडित तम ह दनी ही होगी

इदरदत त बहत शात भाव स पालथी मारकर बठ हए बात कर रह थ

भोला क चहर पर कभी लिचढ और कभी लापरवाही-भरी अकड क साथ लिसगरट का धआ लहराता था इदरदत त की बात सनकर तमककर बोला - अ-अ-आप चाहत ह डिक हम गोश त खाना छोड द

- दोस त अच छा होता डिक तम अगर यह मास-मछली वगरह क अपन शौक कम स कम उनक और बआजी क जीवन-काल म घर स बाहर ही पर करत यह चोरी क लिलए नही उनक लिलहाज क लिलए करत तो परिरवार म और भी शोभा बढती खर झगडा इस बात पर तो ह नही झगडा तो तम हारी

- जलिलयट की वजह स ह वह उनक कमर म जाती ह या अभी हाल ही म उसन सरस वतीजी क मढ़िदर म बच च पदा डिकए तो तो आप एक बजबान जानवर स भी बदला लग जनाब यह आपकी इनसाडिनयत ह

- म कहता ह तमन उसको पाला ही क यो कम स कम मा-बाप का जरा-सा मान तो रखा होता

- इमस मान रखन की क या बात ह भाई साहब - भोला उठकर छोटी-सी जगह म तजी स अकडत हए टहलन लग चारपाई स कमर क एक कोन तक जाकर लौटत हए रककर कहा - हमारा शौक ह हमन डिकया और कोई बरा शौक तो ह नही साहब औरो क फादर-मदस होत ह तो लडको क शौक पर खश होत ह और एक हमारी डिकस मत ह डिक

- तम लिसफ अपनी ही खशी को दखत हो भोला तमन यह नही दखा डिक फफाजी डिकतन धय और सयम स तम लोगो की इन हरकतो को सहन करत ह

- खाक धल ह सयम ह हजारो तो गालिलया द ाली हम लोगो को

- और बदल म तमन उनक ऊपर कडितया छोड दी

- ऐसी ही बहत शदधता का घम ह तो अपनी तरफ दीवार उठवा ल हम जो हमार जी म आएगा करग और अब तो बढ-चढकर करग

- यह तो लडाई की बात हई समझौता नही हआ

- जी हा हम तो खलआम कहत ह डिक हमारा और दादा का समझौता नही हो सकता इस मामल म मरी और डितरभवन की राय एक ह मगर व हमार परोगरलिसव खयालात को नही दख सकत तो उनक लिलए हमार घर म कोई जगह नही ह

- भोला - बडी दर स गदन झकाए खामोश बठी हई मा न कापत स वर म और भीख का सा हाथ बढात हए कहा - बटा उनक आग ऐसी बात भल स भी न कह दना तम हार परो

- कहगा और हजार बार कहगा अब तो हमारी उनकी ठन गई वो हमार लडको-बच चो का पहनना-ओढना नही दख सकत हसता-खलना नही बदाश त कर सकत हम लोगो को बदाश त नही कर सकत तो म भी उनक धम को ठोकर मारता ह उनक ठाकर पोथी पराण सब मर जत की नोक पर ह

मा की आखो स बद टपक पडी उन होन अपना लिसर झका लिलया भोला की यह बदतमीजी इदरदतत को बरी तरह तडपा रही थी स वर ठा रखन का परयत न करत सनक भरी हसी हसत हए बोल - अगर तम हारी यही सब बात नए और परोगरलिसव डिवचारो का परडितडिनषटिधत व वाकई करती हो इसी स मनष य सलिशभिaत और फशनडिबल माना जाता हो म कहगा डिक भोला तम और तम हारी ही तरह का सारा-नया जमाना जगली ह बशकिक उनस भी गया-गजरा ह तम हारा नया जमाना न नया ह न पराना सभ यता सामतो पसवालो क खोलन जोम स बढकर कछ भी नही ह तम हार डिवचार इनसानो क नही हवानो क ह

इदरदतत स वाभाडिवक रप स उलिचत हो उठ

- खर आपको अपनी इनसाडिनयत मबारक रह हम डिहपोकरट लोगो को खब जानत ह और उन ह दर ही स नमस कार करत ह भोलाशकर तमककर खड हए तजी स बाहर चल दवारज पर पहचरकर मा स कहा - तम दादा को समझा दना अम मा म अनशन की ध मडिकयो स जरा भी नही रगा जान ही तो दग तो मर न मगर म उनको यहा नही मरन दगा जाए गगा डिकनार मर यहा उनक लिलए अब जगह नही ह

- पर यह घर अकला तम लोगो का ही नही ह

- खर यह तो हम कोट म दख लग अगर जररत पडी तो लडिकन मरा अब उनस कोई वास ता नही रहा

भोलाशकर चल गए बआजी चपचाप लिसर झकाए टप-टप आस बहाती रही इदरदतत उततजिजत मदरा म बठ थ जिजनक पास डिकसी वस त डिवशष का अभाव रहा हो उसक पास वह वस त थोडी-सी ही हो जाए तो बहत मालम पडती ह इदरदतत क लिलए इतना करोध और उततजना इसी तरह अषटिधक परतीत हो रही थी पल भर चप रहकर आवश म आ बआजी क हाथ पर हाथ रखत हए कहा - तम और फफाजी मर घर चलकर रहो बआ वह भी तो तम हारा ही घर ह

- तम अपन फफाजी स भोला की बातो का जिजकर न करना बटा

- नही

- तम अपन फफाजी का डिकसी तरह स यह बरत तडवा दो बटा तम ह बडा पन न होगा तम ह मरी आत मा उठत-बठत असीसगी मरा भया

- म इसी इराद स आया ह तम भी चलो बआ तम हारा चहरा कह रहा ह डिक तम भी

- अर मरी सिचता कया ह

- हा तम हारी सिचता नही सिचता तो तम ह और फफाजी को करनी ह मरी ओर स

- तम दोनो क भोजन कर लन तक म भी अपन परण स अटल रहगा

बआजी एक aण सिचता म पड गई डिफर मीठी वाणी म समझाकर कहा - दखो भया इदर मर लिलए जस भोला-डितरभवन वस तम जसा य घर वसा वो आज तम अपन फफाजी को डिकसी तरह जिजमा लो उनक बरत टटत की खबर सनत ही तम हारी कसम म आप ही ठाकरजी का भोग पा लगी लडिकन इसी घर म डिकसी क जी को कलस हो बटा ऐसी बात नही करनी चाडिहए क या कह तर फफाजी का करोध मरी कछ चलन नही दव ह अपन जी को कलस दव ह सो दव ह बाकी बच चो क जी को जो कलस लग ह उसक लिलए तो कहा ही क या जाए कलजग कलजग की तर स चलगा भया

इदरदतत कछ दर तक बआ क मन की घटन का खलना दखत रह

पडित दवधरजी भटट न डिनत य-डिनयम क अनसार झटपट समय अपन भतीज क आगन म परवश कर आवाज लगाई-इदरदतत

- आइए फफाजी

सकर टट सीलन-भरी लखौटी-ईटो पर खडाऊ की खट-खट चढती गई इदरदतत कटहर क पास खड थ जीन क दरवाज स बाहर आत हए पडित दवधर उन ह ढ़िदखलाई ढ़िदए उनक भस म लग कपास और दह पर पड ज लिशव छाप क दपटट म उनकी दह स एक आभा-सी फटती हई उन ह महसस हो रही थी फफाजी क आत ही घर बदल गया उन ह दखकर हर रोज ही महसस होता ह पर आज की बात तो न यारी ही थी

फफाजी क चार ढ़िदनो का वरत आज उनक व यलिtत व को इदरदतत की दषटिM म और भी अषटिधक तजोमय बना रहा था फफाजी को लकर आज उनका मन अतयत भावक हो रहा था पीडा पा रहा था इदरदतत न अनभव डिकया डिक फफाजी क चहर पर डिकसी परकार की उततजना नही भख की थकान नही चहरा सखा कछ उतरा हआ अवश य था परत मख की चष टा नही डिबगडी थी पडित दवधर की यह बात इदरदतत को बहत छ रही थी

पडित जी आकर चौकी पर बठ गए इदरदतत उनक सामन मढ पर बठ घर बनन क कारण उनका बठका उजड गया था अभ यागत क आन पर इदरदतत सकोच क साथ इसी टट कमर म उसका स वागत करत फफाजी स तो खर सकोच नही पख का रख उन होन उनकी ओर कर ढ़िदया और डिफर बठ गए कछ दर तक दोनो ओर स खामोशी रही डिफर फफाजी न बात उठाई - तम अभी घर गए थ सना

- जी हा

- तम हारी बआ मझस कह रही थी मन यह भी सना ह डिक तम मर कारण डिकसी परकार का बाल हठ करन की धमकी भी द आए हो

पडित दवधर न अपना दपटटा उतार कर कसv पर रख ढ़िदया पालथी मारकर व सीध तन हए बठ थ उनका परायः पीला पडा हआ गोरा बदन उनक बठन क सधाय क कारण ही शकिरिरचअल जच रहा था अन यथा उनका यह पीलापन उनकी रोगी अवस था का भी परिरचय द रहा था

इदरदत त न सध-सधकर कहना शर डिकया - मरा हठ स वततर नही बडो क हठ म योगदान ह

- इन बातो स कछ लाभ नही इदर मरी गडित क लिलए मर अपन डिनयम ह

- और मर अपन डिनयम भी तो हो सकत ह

- तम ह स वाधीनता ह

- तब मन भी यढ़िद अनशन का फसला डिकया ह तो गलत नही ह

- तम अपन परडित मर स नह पर बोझ लाद रह हो म आत मशजिदध क लिलए वरत कर रहा ह परखो क साधना-गह की जो यह दगडित हई ह यह मर ही डिकसी पाप क कारण अपन अतःकरण की गगा स मझ सरस वती का मढ़िदर धोना ही पडगा तम अपना आगरह लौटा लो बटा

एक षटिमनट क लिलए कमर म डिफर सन नाटा छा गया कवल पख की गज ही उस खामोशी म लहर उठा रही थी

इदरदत त न शात स वर म कहा - एक बात पछ मढ़िदर म कत त क परवश स यढ़िद भगवती अपडिवतर हो जाती ह तो डिफर घट-घट व यापी ईश वर की भावना डिबलकल झठी ह एक ईश वर पडिवतर और दसरा अपडिवतर क यो माना जाए

पडित दवधर चप बठ रह डिफर गभीर होकर कहा - निहद धम बडा गढ ह तम इस झगड म न पडो

- म इस झगड म न पडगा फफाजी पर एक बात सोचता ह भगवान राम अगर परम क वश म होकर शबरी क जठ बर खा सकत थ निहद लोग यढ़िद इस आख यान म डिवश वास रखत ह तो डिफर छत-अछत का कोई परश न ही नही रह जाता यषटिधषटि^र न अपन साथ-साथ चलनवाल कत त क डिबना स वग म जान तक स इनकार कर ढ़िदया था यह सब कहाडिनया क या निहद-धम की मडिहमा बखाननवाली नही ह क या यह महत भाव नही ह डिफर इनक डिवपरीत छआछत क भय स छईमई होनवाल गढ धम की मडिहमा को आप क यो मानत ह इन रढ़िढयो स बधकर मनष य क या अपन को छोटा नही कर लता

पडितजी शाडितपवक सनत रह इदरदत त को भय हआ डिक बरा न मान गए हो तरत बोल - म डिकसी हद तक उत तजिजत जरर ह लडिकन जो कछ पछ रहा ह जिजजञास क रप म ही

- ठीक ह - पडितजी बोल - हमार यहा आचार की बडी मडिहमा ह मनस मडित म आया ह डिक आचारः परथमो धमः जसा आचार होगा वस ही डिवचार भी होग तम शदधाचरण को बरा मानत हो

- जी नही

- तब मरा आचार क यो भरष ट करा रह हो

- ऐसा धष टता करन का डिवचार स वप न म भी मर मन म नही आ सकता हा आपस aमा मागत हए यह जरर कहगा डिक आपक आचार नए यग को डिवचार शलिt नही द पा रह ह इसलिलए उनका मल य मर लिलए कछ नही क बराबर ह म दरतिवनीत नही ह फफाजी परत सच-सच यह अनभव करता ह डिक दडिनया आग बढ रही ह और आपका दषटिMकोण व यथ क रोड की तरह उसकी गडित को अटकाता ह पर इस समय जान दीजिजए म तो यही डिनवदन करन घर गया था और यही मरा आगरह ह डिक आप भोजन कर ल

पडितजी मस कराए इदरदत त क मन म आशा जागी पडितजी बोल - करगा एक शत पर

- आजञा कीजिजए

- जो मर अथात परानी परिरपाटी क यम डिनयम सयम आढ़िद ह व आज स तम ह भी डिनभान पडग जिजनका मल य तम हारी दषटिM म कछ नही ह व आचार-डिवचार मर लिलए पराणो स भी अषटिधक मल यवान ह

इदरदत त सतभिभत रह गए व कभी सोच भी नही सकत थ डिक फफाजी सहसा अनहोनी शत स उन ह बाधन का परयत न करग पछा - कब तक डिनभाना पडगा

- आजीवन

इदरदत त निककतव यडिवमढ हो गए जिजन डिनयमो म उनकी आस था नही जो चीज उनक डिवचारो क अनसार मनष य को अधडिवश वासो स जकड दती ह और जो भारतीय सस कडित का कलक ह उनस उनका परबदध मन भला क यो कर बध सकता ह हा कह तो कस कह उन होन इस वरत डिनयम बलिलदान चमत कार और षटिमथ या डिवश वासो स भर निहद धम को समाज पर घोर अत याचार करत दखा ह अपन-आपको तरह-तरह स परपीडिडत कर धारमिमक कहलानवाला व यलिt इस दश को रसातल म ल गया इस कठोर जीवन को साधनवाल शदधाचरणी बराहमण धम न इस दश की सतरिसतरयो और हीन कहलानवाली जाडितयो को सढ़िदयो तक दासता की चक की म बरी तरह पीसा ह और अब भी बहत काफी हद तक पीस रहा ह हो सकता डिक मनष य की चतना क उगत यग म इस शदध कहलानवाल आचार न अधकार म उन नत डिवचारो की ज योडित जगाई हो पर अब तो सढ़िदयो स इसी झठ धम न औसत भारतवासी को दास अधडिवश वासी और असीम रप स अत याचारो को सहन करनवाला झठी दवीशलिtयो पर यानी अपनी ही धोखा दनवाली लभावनी असभव कल पनाओ पर डिवश वास करनवाला झठा भाग यवादी बनाकर दश की कमर तोड रखी ह इसन औसत भारतवासी स आत मडिवश वास छीन लिलया ह इस जडता क खिxखलाफ उपडिनषद जाग मानवधम जागा योग का जञान जागा बौदध भागवतधम जागा मध यकाल का सत आदोलन उठा और आज क वजञाडिनक यग न तो इस एकदम डिनस सार लिसदध कर सदा क लिलए इसकी कबर ही खोद दी ह यह जड धम कभी भारत को महान नही बना सका होगा भारत की महानता उसक कमयोग म ह उसक व यापक मानवीय दषटिMकोण म ह व यास-वाल मीडिक आढ़िद क परम उदार भावो म ह पराचीन भारत क दशन न याय वशडिषक साडिहत य लिशल प सगीत आढ़िद इस जड धम की उपज हरडिगज नही हो सकत डिफर भी यह जडता भारत पर अस स भत की तरह छाई हई ह इसी स घणा करन क कारण आज का नया भारतीय डिबना जाच-पडताल डिकए अपनी सारी परपराओ स घणा करत हए लिसदधातहीन आस थाहीन और डिनसतरिकरय हो गया ह नही व फफाजी का धम हरडिगज न डिनभा सक ग हरडिगज नही हरडिगज नही पर व भोजन कस करग बआजी कस और कब तक भोजन करगी कसी डिवबना ह दो मनष यो की मौत की नडितक जिजम मदारी उनक ऊपर आएगी

पडित दवधर न उन ह मौन दखकर पछा-कहो भोजन कराओग मझ

- जीम धम-सकट म पड गया ह

- स पष ट कहो मरा धम गरहण करोग

फफाजी आप बहत माग रह ह मरा डिवश वास माग रह ह म आपक धम को यग का धम नही मानता अपना नही मानता

म तम हारी स पष टवाढ़िदता स परसन न ह तम धारमिमक हो इसी तरह अपन स मझको पहचानो म भी अपना धम नही छोड सकता यदयडिप तम हार सत सग स मन इतन ढ़िदनो म यह समझ लिलया ह डिक मरा यग मरा धम अब सदा क लिलए लोप हो रहा ह डिफर भी अडितम सास तक तो हरडिगज नही मरी आस था तपःपत ह तम हारा कल याण हो सखी हो बटा अच छा तो अब चल -

परत मरा अनशन का डिनश चय अडिग ह फफाजी म आपक चरण छकर कह रहा ह

पर छोड दो बट इन परो स पहल ही जडता समा चकी ह और अब तो जीव क साथ ही षटिमटगी अन यथा नही खर कल डिवचार करना अपन अनशन पर

अडितम वाक य पडितजी न इस तरह कहा डिक इदरदतत को करारा झटका लगा पर व मौन रहन पर डिववश थ पडित दवधर चलन लग इदरदतत क मन म भयकर तफान उठ रहा था व हार गए बआजी को क या उततर दग इस अगडित का अत कया होगा क या व फफाजी की बात मान ल कस मान ल यह ठीक ह डिक फफाजी अपन धम पर डिकस परकार एकडिनष ठ ह यह ए कडिनष ठता उन ह बहद परभाडिवत करती ह डिफर भी उनक धम को वह क यो कर स वीकार कर

पडित दवधरजी जीन पर पहचकर रक इदरदतत उनक पीछ-पीछ चल रह थ पडितजी घमकर बोल - तम हारी मान यताओ म मरी आस था नही ह इदर डिफर भी म उसक वास तडिवक पa को कछ-कछ दख अवश य पा रहा ह एक बात और स पष ट करना चाहता ह तम भोला डितरभवन क धम को आज का या डिकसी भी यग का वास तडिवक धम मानत हो

- जी नही उनका कोई धम ही नही ह

- तम हारा कल याण हो बट धन मद स जन म इस खोखल धम स सदा लडना जस म लडा तम अपन मत क अनसार लडो पर लडो अवश य यह आस थाहीन दभ भरा अदाशडिनक अधारमिमक जीवन लोक क लिलए अकल याणकारी ह बोलो वचन दत हो

म आपको अपना डिवश वास दता ह - कहकर इदरजीत न फफाजी क चरण छ लिलए खडाऊ की खट-खट जीन स उतर गई आगन पार डिकया दर चली इदरदतत आकर कट पड स अपन पलग पर डिगर गए

नया यग परान यग स स वच छा स डिवदा हो रहा था पर डिवदा होत समय डिकतना परबल मोह था और डिकतना डिनमम व यवहार भी

धम सकट अमतलाल नागर

शाम का समय था हम लोग परदश दश और डिवश व की राजनीडित पर लबी चचा करन क बाद उस डिवषय स ऊब चक थ चाय बड मौक स आई लडिकन उस ताजगी का सख हम ठीक तरह स उठा भी न पाए थ डिक नौकर न आकर एक सादा बद लिलफाफा मर हाथ म रख ढ़िदया मन खोलकर दखा सामनवाल पडोसी रायबहादर डिगराजडिकशन (डिगरिरराज कष ण) का पतर था कापत हाथो अनषटिमल अaरो और टढी पलिtयो म लिलखा था

माई डियर परताप

मन फल ली को आदश द रक खा ह डिक मरी मत य क बाद यह पतर तम ह फौरन पहचाया जाए तम मर अभिभन न षटिमतर क पतर हो रमश स अषटिधक सदा आजञाकारी रह हो मरी डिनम नलिलगनिखत तीन अडितम इच छाओ को परा करना -

1 रमश को तरत सचना दना मरी आत मा को तभी शाडित षटिमलगी जब उसक हाथो मर अडितम सस कार होग मन उसक साथ अनयाय डिकया ह

2 फल ली को मन पाच हजार रपय ढ़िदए ह और पाच-पाच सौ रपय बाकी चारो नौकरो को नोट मर तडिकए म रई की परत क अदर ह उसी म वसीयत और डितजोरी की चाभी भी ह घर म डिकसी को यह रहस य नही मालम तडिकया अब फौरन अपन कबज म कर लना घर क भार-घर और सदको की चाभिभया डितजोरी म ह रमश क आन पर पाच पचो क सामन उस सौप दना

3 मन अपनी वसीयत म यह शत रक खी ह डिक मरी पत नी अगर मझ माफ कर द और गलत ही सही मगर जो पडितवरत उस पर आन पडा ह उस साधकर रमश को छोडकर बाइज जत यहा रह तो यह मकान और दस हजार रपया उस ढ़िदया जाए लडिकन यह काम उसी हालत म होना चाडिहए जबडिक हम और तम हार दवारा डिनयक त महल ल क चार भल आदमी मरी पत नी की सच चरिरतरता क सबध म आवश स त हो जाए

पतर पर छह रोज पहल की तारीख पडी थी मझ यह समझन म दर न लगी डिक रायबहादर साहब गत हो चक ह पतर मन बड बाब क सामन मज पर रखा ढ़िदया इजीडिनयर साहब और परोफसर साहब भी झककर पढन लग

चाय बमजा हो गई हम सभी उठकर रायबहादर साहब क यहा गए उनका रोबीला चहरा रोग और मानलिसक सिचताओ स जजर होकर मत य क बाद भी उनक अडितम ढ़िदनो क असीम कष टो का परिरचय द रहा था मत रायबहादर क चहर को दखत हए उनक साथ बीत इतन वष की स मडितया मर मन म जाग उठी

रायबहादर बाब डिगराजडिकशन बीए उन निहदस ताडिनयो म स थ जिजन ह तकदीर की चक क कारण इeल म जनम नही षटिमल पाया था उनका रग भी गोरा न था बशकिक गहए स काल की ओर ही अषटिधक झकता हआ था डिफर भरसक उन होन अपन-आपको अगरजनमा ही बनाए रक खा गरीब निहदसताडिनयो पर अकड ढ़िदखान म व सदा अगरजो स चार जत आग रह कई निहदीवाढ़िदयो न उनस शदध नाम डिगरिरराजकष ण रखन को कहा मगर व उन ह मख बतलाकर डिगराज ही बन रह रायबहादर डिगराजडिकशन क नाम क साथ बीए जोडना भी डिनतात आवश यक था सन 23 म रायबहादर डिगराज अपनी डिबरादरी क रायसाहब दीनानाथ की बदौलत इलाहाबाद म छोट लाट क दफतर म भरती हए थ अपनी अगरजपरस ती और हाईक लास खशामद क दम पर रामबहादर ऊची करसिसयो पर चढ बठ स वराज य होन पर आतरिरक कष ट भोगन क बावजद तीन वष तक स वराजी अफसरो नताओ और मडितरयो की भी बाअदब खशामद की डिगराज बाब इन लोगो क सामन जिजस परकार खद दम डिहलात उसी परकार अपन सामन अपन मातहतो की भी डिहलवात थ आजादी क बाद भी दफतर म अपना भला चाहनवाला कोई बाब उनक आग निहदी का एक शब द नही बोल सकता था और घर क लिलए भी यही मशहर था डिक रायबहादर की भस तक अगरजी म ही कारती अगर कोई कसर थी तो सही डिक ली डिगराज क वास त अगरजी का करिरया अaर भी भस बराबर ही था

रायबहादर डिगराज पहली लडाई क जमान क मॉन आदमी थ सबह आख खलत ही घटी बजात सफद कोट पतलन और साफ स लस फल ली आया का लडका घसीट छोटी हाजिजरी लकर हाजिजर होता ठीक आठ बज बडी हाजिजरी पर बठत बटी-बटा साथ होत पर ल ी डिगराज अा-डिबस कट-समाज म कभी न बठी परम कटटर छत-पाकवाली न होत हए भी मास-मछली स उन ह परहज था बशीरत चपरासी क बाप मन न बावचv को हफत म दो ढ़िदन डयटी दनी पडती थी घर क डिनचल डिहस स म डिवलायती रसोई थी एक तरह स कहना चाडिहए डिक नीच का परा घर ही डिवलायती था वहा ल ी डिगराज क बजाय फल ली आया का सामराज य था फल ली पहल अगरजी कोढ़िठयो म काम करती थी अगरजी ढग स निहदस थानी बोलती ह अगरजी घर क कायद जानती ह छोटी-बडी हाजिजरी लच डिनर चाय सबका समय साधती थी इसलिलए डिगराज बाब क बाब डिनयम स दो पग खान स पहल चसडिकयो म मयादा करत थ फली उसका इतजाम भी बखबी कर दती थी इसलिलए आमतौर पर मजाक-मजाक म ही मशहर हो गया था डिक रायबहादर साहब स कोई काम करवान क वास त बजाय ली डिगराज क ल ी फल ली की लिसफारिरश जयादह परअसर होती ह

वस राजबहादर डिगराज म डिकसी न भी कोई ऐब की बात नही दखी-सनी थी अगर ऐब था तो यही डिक व मॉन थ चरट मह म लगाए बगर व बात नही कर पात थ अगर कोई निहदी सभा का चदा मागन आए तो उसस अकडकर कहत डिक मॉन जमान म गवार भाषाओ का उदधार करना डिहमाकत की बात ह धम क सबध म पहल तो व यह कहा करत थ डिक यह ढोग और पागलपन की वस त ह मगर बाद म उस इडियन कल चर का एक सनातन रप मानकर सहन कर जात थ डिगराज साहब थोडा-बहत लन-दन का काम करत थ और उसकी बदौलत उन होन हलिसयत भी बनाई अच छा मॉन ढग का मकान बनवाया उसका नाम ढ़िद नाइटिटगल रकखा मोटर खरीदी सदा दो-चार नौकर पाल घर स लकर दफतर तक घडी साधकर सबस डयटी करवाई पत नी को भी षटिमलन क वास त फल ली क दवारा उनस अप वाइटमट लना पडता था ली इसस जल-फक गई डिक म फल ली स भी गई-बीती हो गई

ली डिगराज न अपन फहडपन म उनक ऊपर एक बहत बडा लाछन लगा ढ़िदया रायबहादर साहब लिसदधाततः और स वभावतः अवध रिरश तो स नफरत करत थ इसलिलए अपनी पत नी क दवारा झठा लाछन लगाए जान क बाद डिफर उन होन कभी उनका मह न दखा बडी लडकी क डिववाह क अवसर पर उन होन कन यादान इसलिलए स वय न डिकया डिक उन ह पजा क पटर पर अपनी पत नी क साथ बठना पडता

इसक बाद दो वष म ली डिगराज घल-घलकर मर गई मगर मरी भी तो डिनयडित क साथ षडयतर करक ठीक इनक रिरटायर होन क ढ़िदन रायबहादर डिगराज को बहत लिशकायत हई अपन बट-बटी स कहा तम हारी मममी को कभी टाइम का सस नही रहा अगर मरना ही था तो कल सबह मरती परसो सबह मर सकती थी आज शाम को दफतर म मरी फयरवल पाट हो जान क बाद कभी मर सकती थी जिजदगी म एडरस पान का यह पहला मौका आया था सो इस तरह तबाहोबबाद कर ढ़िदया ईडियट कही की

इसक बाद मरनवाली तो खर मर ही चकी थी मगर जो भी मातम-परसी क लिलए मह डिबसरत हए आए उन ह भी रायबहादर साहब की ाट खानी पडी जो कहता डिक साहब सनकर बडा दख हआ उसस ही कहत आपको दख करन की जररत क या ह मझ कोई दख नही हआ जो आदमी पदा होता ह उन सबको एक साथ फौरन मर जाना चाडिहए जाइए मर यहा मातम-परसी क लिलए आन की जररत नही

छोटी लडकी की शादी उन होन पत नी की मत य क तीन महीन बाद पव डिनश चय क अनसार ही की स वय ब याहनवाली लडकी और उनक पतर को इसम आपभितत थी मगर उन होन डिकसी की एक न सनी कहा आई हव नो रिरगा फॉर योर मम मी शी वाज एक परफक ट फल लडकी की शादी बडी धमधाम स की एक आईसीएस क बट को अपना दामाद बनाया और बहत कछ दान-दहज दकर रिरटायर होन क बाद भी रोब जतलाया

लडका रमश तब एमए फाइनल म पढ रहा था नामी तज था सदा फस ट क लास रका रहा एमए क बाद आईएएस म बठनवाला था लडकीवाल अनक व यलिt रमश की माग करन क लिलए रायबहादर की सवा म आन लग रायबहादर डिगराज को अब मातहत क लक पर न सही तो ब टीवालो पर ही चरट का रोब झाडकर भरपर सतोष षटिमल जाता था दहज क मामल म व पक क मॉन थ यानी पच चीस हजार मागत थ एकाध डिपछल जानकार न दहाई दी डिक आप तो दहज क डिवरदध थ उसको परानी परथा बतलात थ तो बोल साहब जब मझ स बड अफसर आईसीएस आदमी यानी मर समधी साहब दहज लन को मॉन परथा मानत ह तो मन भी अपन डिवचार बदल ढ़िदए ह डिनहायत साइढ़िटडिफक बात ह डिक आपको दामाद चाडिहए और मझ 25 हजार रपया मरा रमश आईएएस पास करगा आप अपनी लडकी का फयचर दखकर अगर इतनी रक कम दना स वीकार करत ह तो बढ़िठए वरना मरी करसी की गददी मली मत डिकजिजए

व ऐसी लडकी चाहत थ जो सदर हो बीए हो गाती नाचती हो सीना-डिपरोना-बनना जानती हो अगरजी म फटाफट बात कर अफसर डिकसम क मॉन महमानो की खाडितर करन म तमीजदार हो और ऊपर स उसका बाप नगद पच चीस हजार रपय भी द जाए डिबरादरी क कई अच छी हलिसयतवाल बढ़िटयो क बापो क चहर रायबहादर डिगराज क चरट की अकड स धआ-छआ हो गए

एक ढ़िदन इनक दवारा नौकर रखाए गए परान मातहत एक सजातीय बाब दवीशकर पधार डिगराज की मडिहमाओ का बखान करत हए उन होन कहा सर म आपकी च वायस को जानता ह और एक लडकी मरी नजर म ह

इन बाब क साथ उन होन रीता को दखन का अवसर पाया रीता रायसाहब चमनलाल की इकलौती बटी थी रायसाहब चमनलाल न अपन जमान म बड ऐश बड नाम डिकए व शहर की तवायफो क सरताज थ रस क घोडो क सरपस त थ और बड ही औला-पौला आदमी थ अपन जीवन-काल म लाखो कमाए और लाखो फक एक लडकी हई उस बड लाड स पाला-पोसा पढाया हाई स कल तक रीता न परीaाओ तथा वाद-डिववाद और नत य-परडितयोडिगताओ म अनक परस कार पराप त कर अपन डिपता को सतष ट डिकया था रायसाहब डिवधर थ रीता की एक डिवधवा मौसी उनकी लडकी की दखभाल करन क लिलए उनक यहा रहती थी सो तब तरह स उनकी ही हो गई थी रायसाहब न आख मदकर अपना घर अपनी रभिaता साली को सौप रक खा था

बाद म रायसाहब चमनलाल की जन मकली क गरह-नaतर पहट बडा घाटा आया ढ़िदवालिलए होन की नौबत आ गई अपनी लडकी क वास त कछ रकम बचान की नीयत स उन होन एक बगला अपनी साली क नाम स खरीदा और लगभग एक लाख रपया नगद और जवरो क रप म बचाकर उसी क नाम स जमा करवा ढ़िदया डिफर रायसाहब ढ़िदवालिलए हो गए और जिजस ढ़िदन उन ह अपनी महलनमा कोठी सदा क लिलए छोडनी थी उस ढ़िदन उन होन गहर नश म अपनी कनपटी पर रिरवाल वर रखकर अपनी इहलीला समाप त कर दी रायसाहब की मत य क बाद मौसी सयानी हो गई और रीता अनाथ

लडकी दखन गए तो उसकी दो चोढ़िटयो म डित तलिलयो जस रिरबन दखकर रायबहादर साहब क पशन पराप त जीवन म नई रस की गलाबी आई अनक वष का सोया हआ मॉन पत नी का अभाव जाग उठा लडकी रीता बातचीत म तज आख नचान म बाकमल और हसन म डिबजली थी दखकर लौट तो रास त म दवीशकर स बोल लडकी तो अच छी ह और दहज का भी मझ कोई खास नही क योडिक तम तो जानत ही हो डिक म इन सब मामलो म बडा मॉन ह खाली एक परयोजन ह क - अ - क या नाम क आई मीन तम हारा क या खयाल ह दवीशकर अभी तो म भी शादी कर सकता ह

दवीशकर रायबहादर को घरत लग मह पर खशामद स हा क बजाय ना भला क यो कर कहत मौसी क लिलए इसस बढकर काई शभ सवाद न हो सकता था अठारह वष की आय की रीता छsपन वषvय रायबहादर डिगराजडिकशन की पत नी बनी

और इसक बाद की तमाम बात अपन करम म बढ गई रीता न परथम ढ़िदन स ही अपन पडित स कोई सबध न रकखा हठपवक अपन कमर क अदर बद रही रायबहादर रपय-पस गहनो और खशामदो की बडी-बडी नमायश लगाकर हार गए डिफर एक ढ़िदन फल ली न बतलाया डिक रमश और रीता रायबहादर दवारा स थाडिपत सबध को भलकर परस पर नया सबध स थाडिपत कर रह ह रायबहादर आग हो गए रमश तब एमए क अडितम वष म पढ रहा था डिपता न करोध म अध होकर उस पर परहार डिकया और घर स डिनकाल ढ़िदया रीता तब भी उनकी न हई

रमश को दो महीन बाद ही ढ़िदल ली म कोई नौकरी षटिमल गई और उसक महीन-भर बाद ही रीता रायबहादर क घर स गायब होकर ढ़िदल ली पहच गई जान स पव वह एक अलबला काम कर गई थी महल ल क पच चास घरो म हर पत पर उनका लिलखा पोस टका उसक गायब होन क दसर ही ढ़िदन पहली ाक स पहचा उसम मातर इतना ही लिलखा था बाब डिगरिरराजकष ण न मझ जबरदस ती अपनी पत नी बनाया था मगर मन उन ह कभी अपना पडित न माना और न अपना धम ही ढ़िदया डिववाह स पहल मझ बतलाया गया डिक म उनक पतर को ब याही जाऊगी तब स मन उनक पतर को ही अपना पडित माना इस घर म आकर भी उन ह ही भगवान की साaी म अपन को सौपा और अब म अपन पडित क पास ही जा रही ह

रीता क भागन स रायबहादर बाब डिगराजडिकशन को इतना कष ट नही पहचा था जिजतना डिक उसक दवारा भज गए इस सावजडिनक पतर स व दखी हए इसक बाद रायबहादर का जीवन बदल गया उनम पजा-पाठ और आशकिसतकता की भावना जागी साथ ही अकलापन भी हठ पकड गया डिपछल आठ वष म व एक ढ़िदन भी अपन घर स बाहर डिनकलकर कही न गए लन-दन का काम करत थ वह भी धीर-धीर समाप त कर ढ़िदया महल ल म डिकसी स भी सपक न रक खा डिपछल कछ ढ़िदनो स बीमार थ मगर महल लवाल उनकी हालत दखन-पछन भी न गए जात तो षटिमलत भी नही और अचानक मर पास अब यह पतर आया

हम सभी महल लवाल एकाएक यह डिनणय न कर पाए डिक इस खिसथडित म क या करना चाडिहए वदयजी और बड बाब इस पa म थ डिक पलिलस को सचना द दी जाए और इस पतर को लिलखी हई बातो का अमल भी कानन क हाथो ही हो परत म तो मत व यलिt की अडितम इच छा परी करन क पa म था रायबहादर कस भी रह हो इसी महल ल क थ कइयो को उन होन कभी नौकरिरया भी ढ़िदलाई थी उपकार डिकया था इजीडिनयर साहब भी मर ही मत क थ बाद म सभी राजी हो गए महल ल क एक षटिमतर क पास रमश क पतर आया करत थ उसी स पता लकर तार भजा गया जिजसम यह स पष ट लिलख ढ़िदया था डिक यढ़िद कल परातःकाल तक तम स वय अथवा तम हारा पतर उततर न आएगा तो रायबहादर की अत योषटिM डिकरया महल लवालो दवारा ही पचनाम स सपन न कर दी जाएगी

सबह चार बज तार का जवाब आया डिक रमश टक सी दवारा ढ़िदल ली स चल रहा ह और सबह तक पहच जाएगा परातःकाल करीब-करीब सभी महल लवाल रायबहादर क घर पर उ पखिसथत थ तभी टक सी दरवाज पर रकी रमश रीता और तीन बच च उतर रमश क मह पर तो सामाजिजक लज जा और सकोच की मलिलन छाया थी परत रीता का चहरा सतज और डिनरतिवकार था

रीता क आन का सवाद पाकर अनक सतरिसतरया कौतहलवश आ गई रीता न रायबहादर की लाश क पास अपनी चडिडया तोडी और माग का सिसदर पोछा रमश न डिपता का अडितम सस कार डिकया सतरिसतरया रीता स तरह-तरह क परश न करती थी परत वह कोई उततर न दती थी डिकरयाकम इत याढ़िद म रायबहादर क सजा तीय नात-रिरश तदार आढ़िद बहत कम आए बरहमभोज म गरीबी स एकदम टट हए बराहमण ही आए डिकसी परकार डिकरयाकम समाप त हआ रमश क वहा स चलन का समय आया

मन रायबहादर क अडितम पतर क अनसार सभरात महल लवालो क साथ रीता-रमश को बलाकर सबक सामन उनका वह अडितम पतर पढा और वह तडिकया जो महरबद पटी म मन रखवा ढ़िदया था खलवाया फल ली और नौकरो को रायबहादर की इच छानसार रपय द ढ़िदए गए रायबहादर की अडितम माग पर रीता का डिनणय सनन क लिलए हम सभी उत सक बठ थ रीता बोली म धम और ईश वर क सम मख सचचरिरतर ह मन अपन तन-मन स उन ह सदा ससर ही माना धारमिमक कानन की जिजस मजबरी स उन होन मझ अपनी पत नी बनाया था उस मन डिवषटिधवत उनकी लाश को सौप भी ढ़िदया उनकी चडिडया उनका सिसदर उन ह सौपा लडिकन मरी चडिडया मरा सिसदर अaय ह कहकर उसन दर स अपन हाथ क नीच दबी हई रमाल की पोटली को उठाया उसम हरी चडिडया थी और एक चादी की डिडिबया थी चडिडया पहनी और डिबीया खोलकर रमश की और रखत हए बोली जिजन होन मरी गोद भरी ह उन होन मरी माग भी भरी ह - लीजिजए मरी माग भर दीजिजए

रमश न रीता की माग म सिसदर की रखा खीच दी डिफर रीता बोली घर क सबध म मझ कवल यही कहना ह डिक अगर आप पाच पच मझ दश चरिरतर मानत हो तो उस धमशाला बना दीजिजए

हमम स कोई खम ठोककर एकाएक यह नही कह पाया डिक रीता दश चरिरतर ह मन अनभव डिकया डिक सभी क मनो को इस परश न स धक का लगा था अपन परपरागत धारमिमक सामाजिजक सस कारो क कारण हम रीता को सचरिरतरा मानन स भी मन ही मन डिहचकत थ पर यो क या कह

रीता हमारी डिहचक पर एक बार कहकर उठ गई उसन कहा मझ रायबहादर साहब का घर और दस हजार रपय पान की इच छा नही मर पडित न मझ सहाग की छाव द रक खी ह लडिकन म आपक सामन कसौटी रखती ह - बोलिलए घर डिकसका ह

घर को छोडकर बाकी सब सामान क साथ रमश रीता और उनक बच च ढ़िदल ली चल गए हम अभी तक कोई डिनणय नही कर पाए घर की चाभी मर पास ह वह तोल ढ का लोह का टकडा इस समय मर मन-पराणो का बोझ बना हआ ह

(1961 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

परायभित अमतलाल नागर

जीवन वाढ़िटका का वसत डिवचारो का अधड भलो का पवत और ठोकरो का समह ह यौवन इसी अवसथा म मनय तयागी सदाचारी दश-भt एव समाज-भt भी बनत ह तथा अपन खन क जोश म वह काम कर ढ़िदखात ह जिजसस डिक उनका नाम ससार क इडितहास म सवणाaरो म लिलख ढ़िदया जाता ह तथा इसी आय म मनय डिवलासी

लोलपी और वयभिभचारी भी बन जाता ह और इस परकार अपन जीवन को दो कौडी का बनाकर पतन क खडड म डिगर जाता ह अत म पछताता ह परायभित करता ह परत परतयचा स डिनकाला हआ बाण डिफर वापस नही लौटता खोई हई सचची शाडित डिफर कही नही षटिमलती

मभिणधर सदर यवक था उसक पस (जब) म पसा था और पास म था नवीन उमगो स परिरत हदय वह भोला-भाला सशील यवक था बचारा सीध माग पर जा रहा था यारो न भटका ढ़िदया - दीन को पथ-हीन कर ढ़िदया उस डिनतय-परडित कोठो की सर कराई नई-नई परिरयो की बाकी झाकी ढ़िदखाई उसक उचचडिवचारो का उसकी महतवकाaाओ का अतयत डिनदयता क साथ गला घोट ाला गया बनावटी रप क बाजार न बचार मभिणधर को भरमा ढ़िदया डिपता स पसा मागता था वह अनाथालयो म चदा दन क बहान और उस आख बद कर बहाता था गदी नालिलयो म पाप की सरिरता म घभिणत वnयालयो म

ऐसी डिनराली थी उसकी लीला पडित जी वदध थ अनक कनयाओ क लिशaक थ वातसय परम क अवतार थ डिकसी भी बालिलका क घर खाली हाथ न जात थ षटिमठाई फल डिकताब नोटबक आढ़िद कछ न कछ ल कर ही जात थ तथा डिनतयपरडित पाठ सनकर परतयक को पारिरतोडिषक परदान करत थ बालिलकाए भी उनस अतयत डिहल-षटिमल गई थी उनक सरaकगण भी पडित जी की वातसयता दख गदगद हो जात थ घरवालो क बाद पडित जी ही अपनी छातराओ क डिनरीaक थ सरaक थ बालिलकाए इनक घर जाती हारमोडिनयम बजाती गाती हसती खलती कदती थी पडितजी इसस गदगद हो जात थ तथा बाहरवालो स परमाशर ढरकात हआ कहा करत इनही लडडिकयो क कारण मरा बढापा कटता चला जा रहा ह अनयथा अकल तो इस ससार म मरा एक ढ़िदवस भी काटना भारी पड जाता समसत ससार पडितजी की एक मह स परशसा करता था

बाहरवालो को इस परकार ठाट ढ़िदखाकर पडितजी दसर ही परकार का खल खला करत थ वह अपनी नवयौवना सदर छातराओ को अनय डिवषयो क साथ-साथ परम का पाठ भी पढाया करत थ परत वह परम डिवशदध परम नही वरन परम की आड म भोगलिलsसा की लिशaा थी सतीतव डिवकरय का पाठ था काम-वासना का पाठ पढाकर भोली-भाली बालिलकाओ का जीवन नM कराकर दलाली खान की चाल थी टटटी की आड म लिशकार खला जाता था पडितजी क आस-पास यडिनवरसिसटी तथा कालज क छातर इस परकार भिभनभिभनाया करत थ जिजस परकार डिक गड क आस पास मखिकखया डिवलिचतर थ पडितजी और अदभत थी उनकी माया

रायबहादर ॉ शकरलाल अगनिeनहोतरी का सथान समाज म बहत ऊचा था सभा-सोसाइटी क हाडिकम-हककाम म आदर की दषटिM स दख जात थ वह उनक थी एक कनया - मtा वह हजारो म एक थी - सदरता और सशीलता दोनो म दभाeयवश वदध पडितजी उस पढान क लिलए डिनयt डिकए गए भोली-भाली बालिलका अपन आदश को भलन लगी पडित जी न उसक डिनमल हदय म अपन कखितसत महामतर का बीजारोपण कर ढ़िदया था अनय यवती छातराओ की भाडित मtा भी पडित जी क यहा हारमोडिनयम सीखन जान लगी

पडितजी मtा क रप लावणय को डिकराए पर उठान क लिलए कोई मनचला पस वाला ढढन लग अत म मभिणधर को आपन अपना पातर चन लिलया नई-नई कलिलयो की खोज म भटकन वाला षटिमसिलद इस अपव कली का मदपान करन क लिलए आकलिलत हो उठा इस अवसर पर पडितजी की मटठी गम हो गई दसर ही ढ़िदवस मभिणधर को पडित जी क यहा जाना था वह सधया अतयत ही रमणीक थी मभिण न उस बडी परतीaा करन क पात पाया था आज वह अतयत परसनन था आज उस पडितजी क यहा जाना था वह लब-लब पग रखता हआ चला जा रहा था पडितजी क पापालय की ओर आज उस रपयो की वदी पर वासना-दवी को परसनन करन क लिलए बलिल चढानी थी

मtा पडितजी क यहा बठी हारमोडिनयम पर उगलिलया नचा रही थी और पडितजी उस पलडिकत नतरो स डिनहार रह थ वह बाजा बजान म वयसत थी साहसा मभिणधर क आ जान स हारमोडिनयम बद हो गया लजीली मtा कसv छोडकर एक ओर खडी हो गई पडितजी न डिकतना ही समझाया बटी इनस ल|ा न कर यह तो अपन ही ह जा बजा बाजा बजा अभयागत स|न क सवागत म एक गीत गा परत मtा को अभी ल|ा न न छोडा था वह अपन सथान पर अडिवचल खडी थी उसक सकोमल मनोहारी गाल ल|ावश अगरी की भाडित लाल हो रह थ

अलक आ-आकर उसका एक मधर चबन लन की चMा कर रही थी मभिणधर उस पर मर षटिमटा था वह उस समय बाहय ससार म नही रह गया था यह सब दख पडितजी गनिखसक गए अब उस परको^ म कवल दो ही थ

मभिणधर न मtा का हाथ पकडकर कहा आइए खडी कयो ह मर समीप बठ जाइए मभिणधर धM होता चला जा रहा था मtा जिझझक रही थी परत डिफर भी मौन थी मभिणधर न कहा - कया पडितजी न इस परकार आडितथय सतकार करना लिसखलाया ह डिक घर पर कोई पाहन आव और घरवाला चपचाप खडा रह शभ मर समीप बठ जाइए परम की डिवदयत कला दोनो क शरीर म परवश कर चकी थी मtा इस बार कछ न बोली वह मतर-मeध-सी मभिण क पीछ-पीछ चली आई तथा उसस कछ हटकर पलग पर बठ गई आपका शभ नाम मभिण न जरा मtा क डिनकट आत हए कहा मtा लजीली मtा न धीम सवर म कहा

बातो का परवाह बढा धीर-धीर समसत डिहचक जाती रही और और थोडी दर क पात मtा नीरस हो गई उसकी आब उतर गई थी

डिहजाब नौ उरमा रहबर शौहर नबी मानद अगर मानद शब-मानद शब दीगर नबी मानद

डिहचक खल गई थी मभिण और मtा का परम करमशः बढन लगा था मभिण षटिमसिलद था पप पर उसका परम तभी ही ठहर सकता ह जब तक उसम मद ह परत मtा का परम डिनमल और डिनकलक था वह पाप की सरिरता को पडिवतर परम की गगा समझकर बरोक-टोक बहती ही चली जा रही थी अचानक ठोकर लगी उसक नतर खल गए एक ढ़िदन उसन तथा समसत ससार न दखा डिक वह गभ स थी

समाज म हलचल मच गई शकरलाल जी की नाक तो कट ही गई वह डिकसी को मह ढ़िदखान क योeय न रह गए थ - ऐसा ही लोगो का डिवचार था असत जाडित-डिबरादरी जटी पच-सरपच आए पचायत का काय आरभ हआ मtा क बयान लिलए गए उसन आसओ क बीच लिससडिकयो क साथ-साथ समाज क सामन सपण घटना आदयोपात सना ाली - पडितजी का उसक भोल-भाल सवचछ हदय म काम-वासना का बीजारोपण करना ततपात उसका मभिणधर स परिरचय कराना आढ़िद समसत घटना उसन सना ाली पडितजी न डिगडडिगडात अपनी सफाई पश की तथा मtा स अपनी वदधावसथा पर तरस खान की पराथना की परत मभिणधर शात भाव स बठा रहा

पचो न सलाह दी बढो न हा म हा षटिमला ढ़िदया सरपच महोदय न अपना डिनणय सना ाला सारा दोष मtा क माथ मढा गया वह जाडितचयत कर दी गई रायबहादर क डिपता की भी वही राय थी जो पचो की थी मभिणधर और पडितजी को सचचरिरतरता का सरटिटडिफकट द डिनदyenषी करार द ढ़िदया गया कवल अबला मtा ही दख की धधकती हई अगनिeन म झलसन क लिलए छोड दी गई अत म अतयत कातर भाव स डिनससहाय मtा न सरपच की दोहाई दी - उसक चरणो म डिगर पडी सरपच घबराए हाय भरMा न उनह श कर लिलया था करोषटिधत हो उनहोन उस गरभिभणी डिनससहाय आशरय-हीना यवती को धकक मार कर डिनकाल दन की अनमडित द दी उनकी आजञा का पालन करन क लिलए निहद समाज को वासतव म पतन क खडड म डिगरान वाल नरराaस खशामदी टटट पीर बवचv भिभसती खर की कहावत को चरिरताथ करन वाल इस कलक क सचच अपराधी पडितजी ततaण उठ उस धकका मारकर डिनकालन ही वाल थ - अचानक आवाज आई - ठहरो अनयाय की सीमा भी परिरषटिमत होती ह तम लोगो न उसका भी उलघन कर ाला ह लोगो न नतर घमाकर दखा तो मभिणधर उततजिजत हो डिनल भाव स खडा कह रहा था निहद समाज अधा ह अतयाचारी ह एव उसक सवसवा अथात हमार माननीय पचगण अनपढ ह गवार ह और मख ह जिजनह खर एव खोट सतय और असतय की परख नही वह कया तो नयाय कर सकत ह और कया जाडित-उपकार इसका वासतडिवक अपराधी तो म ह इसका द तो मझ भोगना चाडिहए इस सशील बाला का सतीतव तो मन नM डिकया ह और मझस भी अषटिधक नीच ह यह बगला भगत बना हआ नीच पडित इस दराचारी न अपन सवाथ क लिलए न मालम डिकतनी बालाओ का जीवन नM कराया ह - उनह पथभरM कर ढ़िदया ह जिजस आदरणीय दषटिM स इस नीच को समाज म दखा जाता ह वासतव म यह नीच उसक योeय नही वरन यह नर पश ह लोलपी ह लपट ह सिसह की खाल ओढ हए तचछ गीदड ह - रगा लिसयार ह

सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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ॉक टर इदरवत शमा क यडिनवरसिसटी स लौट कर आन पर चाय पीत समय उनकी पत नी न सारा हाल कह सनाया इदरदतत सन न रह गए परयसी क समान मनोहर लगनवाली चाय क हठ को पहचानत थ फफाजी डिबना डिकसी स कछ कह-सन इसी परकार अनशन कर पराण त याग कर सकत ह फफाजी डिबना डिकसी स कछ कह-सन इसी परकार अनशन पराण त याग कर सकत ह इस इदरदतत अच छी तरह जानत थ उनक अतर का कष ट चहर पर तडपन लगा पडित की व यथा को गौर स दखकर पत नी न कहा - तम आज उन ह खान क लिलए रोक ही लना म बडी शदधताई स बनाऊगी

- परश न यह ह व मानग भी उनका तो चदर टर सरज टरवाला डिहसाब ह

- तम कहना तो सही

- कहगा तो सही पर म जानता ह लडिकन इस तरह व चलग डिकतन ढ़िदन भोला को ऐसा हठ न चाडिहए

- भोला क या कर कडितया क पीछ-पीछ घमत डिफर शौक ह अपना और क या फफाजी को भी इतना डिवरोध न चाडिहए

- फफाजी का न याय हम नही कर सकत

- अभी मान लो तम हार साथ ही ऐसी गजरती

- म डिनभा लता

- कहना आसान ह करना बडा मशकिnकल ह फफाजी तो चाहत ह सबक सब परान जमान क बन रह चोटी जनऊ छतछात लिसनमा न जाओ और घघट काढो भला य कोई भी मानगा

- मर खयाल म फफाजी इस पर कछ

- भल न कह अच छा तो नही लगता

- ठीक ह तमह भी मरी बहत-सी बात अच छी नही लगती

- कौन-सी बात

- म लिशकायत नही करता उदाहरण द रहा ह ठीक-ठीक एक मत क कोई दो आदमी नही होत होत भी ह तो बहत कम पर इसस क या लोगो म डिनभाव नही होता भोला और उसकी दखदखी डितरभवन म घम आ गया मा-बाप को ऐस दखत ह जस उनस पदा ही नही हए फफाजी हठी और रढ़िढपथी ह सही पर एकदम अवजञा क योग य नही य लोग उन ह लिचढान क लिलए घर म प याज लहसन अा मछली सब कछ खात ह फफाजी न अपना चौकाघर ही तो अलग डिकया डिकसी स कछ कहा-सना तो नही

स वभाव स शात और बोलन म षटिमतव ययी इदरदत त इस समय आवश म आ गए थ फफाजी क परडित उसका सदा स आदरभाव था लोक उनका आदर करता ह इधर महीनो स इदरदतत क आगरह पर पडित दवधरजी परडितढ़िदन शाम क समय दो-ढाई घट उनक घर डिबतात ह कभी भागवत कभी रामायण कभी कोई पौराभिणक उपाख यान चल पडता ह पडितजी अपनी तरह स कहत ह इदरदतत उनक दवारा पराचीन समाज क करम-डिवकास क लिचतर दखता उनस अपन लिलए नया रस पाता कभी-कभी बातो क रस म आकर अपन राजा-ताल लकदार यजमानो क मजदार सस मरण सनात हकभी उनक बचपन और जवानी की स मडितयो तक स टकराती हई परानी सामाजिजक तस वीर इन महल लो

की परानी झाडिकया सामन आ जाती ह फफाजी क अनभवो स अपन लिलए जञान-सतर बटोरत हए उनक डिनकट सपक म आकर इदरदतत को आदर क अलावा उनस परम भी हो गया ह

इदरदतत की पत नी क मन म आदर भाव तो ह पर जब स व बराबर आकर बठन लग ह तब स उस एक दबी ठी लिशकायत भी ह पडित क साथ घडी दो घडी बठकर बात करन करम या चौसर खलन या अपन पतक घर क सबध म जो अब नए लिसर स बन रहा ह सलाह-सत करन का समय उस नही षटिमल पाता अपनी छोटी दवरानी डितरभवन की बह स बडा स बडा नह-हत होन क कारण उसकी बातो म डिवश वास रखकर वह फफाजी क परानपन स डिकसी हद तक डिफरट भी ह इसलिलए जब इदरदतत न यह कहा डिक घर म मास-मछली क परयोग क बाद फफाजी न अपना चौका अलग कर लिलया मगर कछ बोल नही तो उनकी पत नी स रहा नही गया कहन लगी - तो उन लोगो स - अर पोत-पोडितयो तक स तो बोलत नही डिफर लिशकायत डिकसस करग

- फफाजी को पहचानन म बस यही तम लोग गलती करत हो उनका परम परायः गगा ह मन अनभव स इस बात को समझा ह बद रहन पर भी जिझरजिझर दरवाजो स जिजस तरह ल क तीर आत ह सयमी इदरदतत क अतर म उदवग इसी तरह परकट हो रहा था

पत नी न पडित क रख पर रख डिकया तरत शात और मद स वर म कहा - म फफाजी को पहचानती ह उनक ऐस डिवदवान की कदर उस घर म नही उनका परम तम जसो स हो सकता ह तम सिचता न करो बरत आज परा हो जाएगा

- मान जाएग पत नी क चहर तक उठी इदरदतत की आखो म शका थी उनका स वर करण था

- परम नम बडा ह - पडित क aोभ और सिचता को चतराई क साथ पत नी न मीठ आश वासन स हर लिलया परत वह उन ह डिफर चाय-नाश ता न करा सकी

ॉक टर इदरदतत शमा डिफर घर म बठ न सक आज उनका धय डिग गया था फफाजी लगभग छ साढ बज आत ह इदरदतत का मन कह रहा था डिक व आज भी आएग पर शका भी थी ममडिकन ह अषटिधक कमजोर हो गए हो न आए इदरदतत न स वय जाकर उन ह बला ल आना ही उलिचत समझा हालाडिक उन ह यह मालम ह डिक इस समय फफाजी स नान-सध या आढ़िद म व यस त रहत ह प दवधर जी का घर अषटिधक दर न था ॉक टर इदरदतत सदर दरवाज स घर म परवश करन क बजाय एक गली और पार कर बडिगया क दवार पर आए फफाजी गगा लहरी का पाठ कर रह थ फलो की सगषटिध-सा उनका मधर स वर बडिगया की चहारदीवारी क बाहर महक रहा था

अडिप पराज य राज य तणषटिमप परिरत यज य सहसा डिवलोल दवानीर तव जनडिन तीर भिशरत वताम सध धातः स वादीथः सलिललभिभदाय तपतिsत डिपबतामज नानामानदः परिरहसडित डिनवाण पदवीम

इदरदतत दरवाज पर खड-खड सनत रह आखो म आस आ गए फफाजी का स वर उनक कानो म मानो अडितम बार की परसादी क रप म पड रहा था कछ ढ़िदनो बाद कछ ही ढ़िदनो बाद यह स वर डिफर सनन को न षटिमलगा डिकतनी तन मयता ह आवाज म डिकतनी जान ह कौन कहगा डिक पडित दवधर का मन aब ध ह उन होन चार ढ़िदनो स खाना भी नही खाया ह ऐस व यलिt को ऐस डिपता को भोला-डितरभवन कष ट दत ह इदरदतत इस समय अतयत भावक हो उठ थ उन होन फफाजी की तन मयता भग न करन का डिनश चय डिकया गगा लहरी पाठ कर रह ह इसलिलए नहाकर उठ ह या नहान जा रह ह इसक बाद सध या कर फफाजी स भट हो जाएगी उनक कायकरम म डिवघ न न ालकर इतना समय बआ क पास बठ लगा यह सोचकर व डिफर पीछ की गली की और मड

- अम मा

- हा बडी अपन कमर म दरवाज क पास घटनो पर ठोढी ढ़िटकाए दोनो हाथ बाध गहर सोच म बठी थी जठ बट की बह का स वर सनकर तडपड ताजा हो गई हा इतनी दर क खोएपन न उसक दीन स वर म बडी करणा भर दी थी

बडी बह क चहर की ठसक को उनकी कमर क चारो और फली हई चबv सोह रही थी आवाज भी उसी तरह षटिमजाज क काट पर सधी हई थी व बोली - उन होन पछवाया ह डिक दादा आखिxखर चाहत क या ह

- वो तो कछ भी नही चाह ह बह

- तो य अनशन डिफर डिकस बात का हो रहा ह

पडित दवधर की सहधरमिमणी न स वर को और सयत कर उततर ढ़िदया - उनका सभाव तो तम जानो ही हो बहरिरया

य तो कोई जवाब नही हआ अम मा जान दग ऐसा हठ भी भला डिकस काम का बड डिवदवान ह भक त ह दडिनया भर को पन न और परोपकार लिसखात ह कतत म क या उसी भगवान की दी हई जान नही ह

बडी बह तज पडती गई सास चपचाप सनती रही

- य तो मा-बाप का धरम नाही हआ य दश मनी हई और क या घर म सब स बोलना-चालना तो बद कर ही रखा था

- बोलना चालना तो उनका सदा का ऐसा ही ह बटा तम लोग भी इतन बरसो स दखो हो भोला-डितरभअन तो सदा स जान ह

- इदर भाई साहब क यहा तो घल-घल क बात करत ह

- इदर पढा-लिलखा ह न वसी ही बातो म इनका मन लग हा इसम

- हा-हा हम तो सब गवार ह भरष ट ह हम पाडिपयो की तो छाया दखन स भी उनका धम नष ट होता ह

- बह बटा गस सा होन स कोई फायदा नही हम लोग तो सिचता म खड भए हग रानी तम सबको रखक उनक सामन चली जाऊ डिवश वनाथ बाबा स उठत-बठत आचल पसार क बरदान माग ह बटा अब मर कलज म दम नही रहा क या कर बआजी रो पडी

इदरदतत जरा दर स दालान म ढ़िठठक खड थ बआ हो रोत दख उनकी भावकता थम न सकी पकारा बआ

बआजी एक aण क लिलए ढ़िठठकी चट स आस पोछ आवाज सम हालकर षटिमठास क साथ बोली - आओ भया

भोला की बह न लिसर का पल ला जरा सम हाल लिलया और शराफती मस कान क साथ अपन जठ को हाथ जोड

इदरदतत न कमर म आकर बआजी क पर छए और पास की बठन लग बआजी हडबडाकर बोली - अर चारपाई पर बठो

- नही म सख स बठा ह आप क पास

- तो ठहरो म चटाई

बआजी उठी इदरदतत न उनका हाथ पकडकर बठा लिलया और डिफर भोला की बह को दखकर बोला - कसी हो सशीला मनोरमा कसी ह

- सब ठीक ह

- बच च

- अच छ ह भाभीजी और आप तो कभी झाकत ही नही इतन पास रहत ह और डिफर भी

- म सबकी राजी-खशी बराबर पछ लता ह रहा आना-जाना सो

- आपको तो खर टाइम नही षटिमला लडिकन भाभीजी भी नही आती बाल नही बच च नही कोई काम

- घर म मदद लगी ह ऐस म घर छोड क कस आई डिबचारी - बआजी न अपनी बह की बात काटी

- बह आख चढाकर याद आन का भाव जनात हए बोली - हा ठीक ह कौन-सा डिहस सा बनवा रह ह भाई साहब

- परा घर नए लिसर स बन रहा हगा ऐसा बढ़िढया डिक महल ल म ऐसा घर नही ह डिकसी का - सास न बह क वभव को लखि|त करन की दबी तडप क साथ कहा बआजी यो कहना नही चाहती थी पर जी की चोट अनायास फट पडी बडी बह न आख चमका अपनी दहरी ठोडी को गदन स लिचपकाकर अपन ऊपर पडनवाल परभाव को जतलाया और पछा - पर रहत तो शायद

- पीछवाल डिहस स म रहत ह

- इसी डिहस स म जीजी का मरा और भया का जनम भया एक भाई और भया था सब यही भए हमार बाप ताऊ दादा और जान कौन-कौन का जनम

- वो डिहस सा घर भर म सबस जयादा खराब ह कस रहत ह

- जहा परखो का जनम हआ वह जगह स वग स भी बढकर ह परख पथ वी क दवता ह बडी बह न आग कछ न कहा लिसर का पल ला डिफर सम हालन लगी

- आज तो बहत ढ़िदनो म आए भया म भी इतनी बार गई बह स तो भट हो जाव ह

बआ-भतीज को बात करत छोडकर बडी बह चली गई उसक जान क बाद दो aण मौन रहा उसक बाद दोनो ही परायः साथ-साथ बोलन को उदयत हए इदरदत त को कछ कहत दखकर बआजी चप हो गई

- सना फफाजी न

- उनकी सिचता न करो बटा वो डिकसी क मान ह

- पर इस तरह डिकतन ढ़िदन चलगा

- चलगा जिजतन ढ़िदन चलना होगा बआजी का स वर आसओ म बन-उतरान लगा - जो मर भाग म लिलखा होगा - आग कछ न कह सकी आस पोछन लगी

- सच-सच बताना बआजी तमन भी कछ खाया

- खाती ह रोज ही खाती ह - पल ल स आख ढक हए बोली इदरदत त को लगा डिक व झठ बोल रही ह

- तम इसी वt मर घर चलो बआजी फफा भी वस तो आएग ही पर आज म उन ह लकर ही जाऊगा नही तो आज स मरा भी अनशन आरभ होगा

- करो जो जिजसकी समझ म आए मरा डिकसी पर जोर नही बस नही - आखो म डिफर बाढ आ गई पल ला आखो पर ही रहा

- नही बआजी या तो आज स फफा का वरत टटगा

- कडिहए भाई साहब - कहत हए भोला न परवश डिकया मा को रोत दख उसक मन म कसाव आया मा न अपन दख का नाम-डिनशान षटिमटा दन का असफल परयत न डिकया परत उनक चहर पर पडी हई आतरिरक पीडा की छाया और आसओ स ताजा नहाई हई आख उनक पतर स लिछपी न रह सकी भोला की मख-मदरा कठोर हो गई मा की ओर स मह फरकर चारपाई पर अपना भारी भरकम शरीर परडितषटि^त करत हए उन होन अपन ममर भाई स पछा - घर बन गया आपका

- तयारी पर ही ह बरसात स पहल ही कपलीट हो जाएगा

- सना ह नकशा बहत अच छा बनवाया ह आपन इदरदत त न कोई उत तर न ढ़िदया

- म भी एक कोठी बनवान का इरादा कर रहा ह इस घर म अब गजर नही होती

इदरदत त खामोश रह भोला भी पल भर चप रह डिफर बोल - दादा का नया तमाशा दखा आपन आज कल तो व आपक यहा ही उठत बठत ह हम लोगो की खब-खब लिशकायत करत होग

तमको मझस जयादा जानना चाडिहए पर-निनदा और लिशकायत करन की आदत फफा जी म कभी नही रही - इदरदतत का स वर सयत रहन पर भी निकलिचत उततजिजत था

- न सही म आपस पछता ह इनसाफ कीजिजए आप यह कौन सा जञान ह डिक एक जीवन स इतनी नफरत की जाए और और खास अपन लडको और बहओ स पोत पोडितयो स नफरत की जाए यह डिकस शास तर म लिलखा ह जनाब बोलिलए - भोला की उततजना ऐस खली जस मोरी स ाट हटात ही हौदी का पानी गलत बहता ह

इदरदतत न शात दढ स वर म बात का उततर ढ़िदया - तम बात को गलत रग द रह हो भोला इस परकार यह डिवकट कहना चाडिहए की घरल समस याए कभी हल नही हो सकती

- म गलत रग क या द रहा ह जनाब सच कहता ह और इनसाफ की बात कहता ह ताली हमशा दोनो हाथो स बजा करती ह

- लडिकन तम एक ही हाथ स ताली बजा रह हो यानी धरती पर हाथ पीट-पीट कर

- क या म समझा नही

- तम अपन आप ही स लड रह हो और अपन को ही चोट पहचा रह हो भोला फफाजी क सब डिवचारो स सहमत होना जररी नही ह म भी उनक बहत स डिवचारो को जरा भी नही मान पाता डिफर भी व आदर क पातर ह

व हमारी डिपछली पीढी ह जिजनकी परडितडिकरयाओ पर डिकरयाशील होकर हमारा डिवकास हो रहा ह उनकी खाषटिमया तो तम खब दख लत हो दखनी भी चाडिहए मगर यह ध यान रह डिक खडिबयो की ओर स आख मदना हमार-तम हार लिलए सारी नई पी ढी क लिलए कवल हाडिनपरद ह और कछ नही

भोला न अपनी जब स सोन का लिसगरट कस डिनकाला और चहर पर आडी-डितरछी रखाए ालकर कहन लगा - म समझता था भाई साहब डिक आपन डिहस टरी-उस टरी पढकर बडी समझ पाई होगी - इतना कहकर भोला क चहर पर सतोष और गव का भाव आ गया परोफसर इदरदतत क पढ-लिलखपन को दो कौडी का साडिबत कर भोला सातव आसमान की बजv पर चढ गया - ढकोसला म ढकलनवाली ऐसी डिपछली पीढ़िढयो स हमारा दश और खासतौर स हमारी निहद ससाइटी बहत सफर कर चकी जनाब अब चालीस बरस पहल का जमाना भी नही रहा जो डिपताडिह दवा डिपताडिह धमा रटा-रटाकर य लोग अपनी धास गाठ ल म कहता ह आप परान ह बड डिनष ठावान हहोग अपनी डिनष ठा-डिवष ठा को अपन पास रगनिखए नया जमाना आप लोगो की तानाशाही को बरदाश त नही करगा

तम अगर डिकसी की तानाशाही को बरदाश त नही करोग तो तमहारी तानाशाही

- म क या करता ह जनाब

- तम अपन झठ सधारो का बोझ हर एक पर लादन क लिलए उतावल कयो रहत हो

- तम फफाजी को लिचढात हो भोला म आज साफ-साफ ही कहगा तम और डितरभवन दोनो - इदरदतत न सध स वर म कहा

- म यह सब बवकफी की सी बात सनन का आदी नही ह भाई साहब जनाब हमको गोश त अच छा लगता ह और हम खात ह और जरर खाएग दख आप हमारा क या कर लत ह

- म आपका कछ भी नही कर लगा भोलाशकरजी आप शौक स खाइए मर खयाल म फफाजी न भी इसका कोई डिवरोध नही डिकया वह नही खात उनक सस कार ऐस नही ह तो तम यह क यो चाहत हो डिक वह तम हारी बात मत मानन लग रहा यह डिक उन होन अपना चौका अलग कर लिलया या वह तम लोगो क कारण aब ध ह यह बात तानाशाही नही कही जा सकती उन ह बरा लगता ह बस

- म पछता ह क यो बरा लगता ह मरी भी बड-बड परोफसर और नामी आलिलम-फाजिजलो स ढ़िदन-रात की सोहबत ह आपक वद क जमान क बराहमण और मडिन तो गऊ तक को खा जात थ

भोला न गदन झटकाई उनक चहर का मास थल उठा उनकी लिसगरट जल गई इदरदतत बोल - ठीक ह व खात थ राम-कष ण अजन इदर बगरह भी खात थ पीत भी थ मगर यह कहन स तम उस सस कार को धो तो नही सकत जो समय क अनसार परिरवरतितत हआ और वष णव धम क साथ करीब-करीब राष टरव यापी भी हो गया

- हा तो डिफर दसरा सस कार भी राष टरव यापी हो रहा ह

- हो रहा ह ठीक ह

- तो डिफर दादा हमारा डिवरोध क यो करत ह

- भोला हम फफाजी का न याय नही कर सकत इसलिलए नही डिक हम अयोग य ह वरन इसलिलए डिक हमार न याय क अनसार चलन क लिलए उनक पास अब ढ़िदन नही रह आदत बदलन क लिलए आखिxखरी वt म अब उत साह भी नही रहता

- म पछता ह क यो नही रहता

- यह सरासर जयादती ह तम हारी वह बीता यग ह उस पर हमारा वश नही हमारा वश कवल वतमान और भडिवष य पर ही हो सकता ह डिवगत यग की मान यताओ को उस यग क लिलए हम जस का तसा ही स वीकार करना होगा पहल बात सन लो डिफर कछ कहना हा तो म कह रहा था डिक हम अपन परखो की खडिबया दखनी चाडिहए ताडिक हम उन ह लकर आग बढ सक उनकी खाषटिमयो को या सीमाओ को समझना चाडिहए जिजनस डिक हम आग बढकर अपनी नई सीमा स थाडिपत कर सक उनक ऊपर अपनी सधारवादी मनोवभितत को लादना घोर तानाशाही नही ह

- और वो जो करत ह वह तानाशाही नही ह

- अगर तानाशाही ह तो तम उसका जरर डिवरोध करो मगर नफरत स नही व तम हार अतयत डिनकट क सबधी ह तम हार डिपता ह इतनी शरदधा तम ह करनी होगी उन ह इतनी सहानभडित तम ह दनी ही होगी

इदरदत त बहत शात भाव स पालथी मारकर बठ हए बात कर रह थ

भोला क चहर पर कभी लिचढ और कभी लापरवाही-भरी अकड क साथ लिसगरट का धआ लहराता था इदरदत त की बात सनकर तमककर बोला - अ-अ-आप चाहत ह डिक हम गोश त खाना छोड द

- दोस त अच छा होता डिक तम अगर यह मास-मछली वगरह क अपन शौक कम स कम उनक और बआजी क जीवन-काल म घर स बाहर ही पर करत यह चोरी क लिलए नही उनक लिलहाज क लिलए करत तो परिरवार म और भी शोभा बढती खर झगडा इस बात पर तो ह नही झगडा तो तम हारी

- जलिलयट की वजह स ह वह उनक कमर म जाती ह या अभी हाल ही म उसन सरस वतीजी क मढ़िदर म बच च पदा डिकए तो तो आप एक बजबान जानवर स भी बदला लग जनाब यह आपकी इनसाडिनयत ह

- म कहता ह तमन उसको पाला ही क यो कम स कम मा-बाप का जरा-सा मान तो रखा होता

- इमस मान रखन की क या बात ह भाई साहब - भोला उठकर छोटी-सी जगह म तजी स अकडत हए टहलन लग चारपाई स कमर क एक कोन तक जाकर लौटत हए रककर कहा - हमारा शौक ह हमन डिकया और कोई बरा शौक तो ह नही साहब औरो क फादर-मदस होत ह तो लडको क शौक पर खश होत ह और एक हमारी डिकस मत ह डिक

- तम लिसफ अपनी ही खशी को दखत हो भोला तमन यह नही दखा डिक फफाजी डिकतन धय और सयम स तम लोगो की इन हरकतो को सहन करत ह

- खाक धल ह सयम ह हजारो तो गालिलया द ाली हम लोगो को

- और बदल म तमन उनक ऊपर कडितया छोड दी

- ऐसी ही बहत शदधता का घम ह तो अपनी तरफ दीवार उठवा ल हम जो हमार जी म आएगा करग और अब तो बढ-चढकर करग

- यह तो लडाई की बात हई समझौता नही हआ

- जी हा हम तो खलआम कहत ह डिक हमारा और दादा का समझौता नही हो सकता इस मामल म मरी और डितरभवन की राय एक ह मगर व हमार परोगरलिसव खयालात को नही दख सकत तो उनक लिलए हमार घर म कोई जगह नही ह

- भोला - बडी दर स गदन झकाए खामोश बठी हई मा न कापत स वर म और भीख का सा हाथ बढात हए कहा - बटा उनक आग ऐसी बात भल स भी न कह दना तम हार परो

- कहगा और हजार बार कहगा अब तो हमारी उनकी ठन गई वो हमार लडको-बच चो का पहनना-ओढना नही दख सकत हसता-खलना नही बदाश त कर सकत हम लोगो को बदाश त नही कर सकत तो म भी उनक धम को ठोकर मारता ह उनक ठाकर पोथी पराण सब मर जत की नोक पर ह

मा की आखो स बद टपक पडी उन होन अपना लिसर झका लिलया भोला की यह बदतमीजी इदरदतत को बरी तरह तडपा रही थी स वर ठा रखन का परयत न करत सनक भरी हसी हसत हए बोल - अगर तम हारी यही सब बात नए और परोगरलिसव डिवचारो का परडितडिनषटिधत व वाकई करती हो इसी स मनष य सलिशभिaत और फशनडिबल माना जाता हो म कहगा डिक भोला तम और तम हारी ही तरह का सारा-नया जमाना जगली ह बशकिक उनस भी गया-गजरा ह तम हारा नया जमाना न नया ह न पराना सभ यता सामतो पसवालो क खोलन जोम स बढकर कछ भी नही ह तम हार डिवचार इनसानो क नही हवानो क ह

इदरदतत स वाभाडिवक रप स उलिचत हो उठ

- खर आपको अपनी इनसाडिनयत मबारक रह हम डिहपोकरट लोगो को खब जानत ह और उन ह दर ही स नमस कार करत ह भोलाशकर तमककर खड हए तजी स बाहर चल दवारज पर पहचरकर मा स कहा - तम दादा को समझा दना अम मा म अनशन की ध मडिकयो स जरा भी नही रगा जान ही तो दग तो मर न मगर म उनको यहा नही मरन दगा जाए गगा डिकनार मर यहा उनक लिलए अब जगह नही ह

- पर यह घर अकला तम लोगो का ही नही ह

- खर यह तो हम कोट म दख लग अगर जररत पडी तो लडिकन मरा अब उनस कोई वास ता नही रहा

भोलाशकर चल गए बआजी चपचाप लिसर झकाए टप-टप आस बहाती रही इदरदतत उततजिजत मदरा म बठ थ जिजनक पास डिकसी वस त डिवशष का अभाव रहा हो उसक पास वह वस त थोडी-सी ही हो जाए तो बहत मालम पडती ह इदरदतत क लिलए इतना करोध और उततजना इसी तरह अषटिधक परतीत हो रही थी पल भर चप रहकर आवश म आ बआजी क हाथ पर हाथ रखत हए कहा - तम और फफाजी मर घर चलकर रहो बआ वह भी तो तम हारा ही घर ह

- तम अपन फफाजी स भोला की बातो का जिजकर न करना बटा

- नही

- तम अपन फफाजी का डिकसी तरह स यह बरत तडवा दो बटा तम ह बडा पन न होगा तम ह मरी आत मा उठत-बठत असीसगी मरा भया

- म इसी इराद स आया ह तम भी चलो बआ तम हारा चहरा कह रहा ह डिक तम भी

- अर मरी सिचता कया ह

- हा तम हारी सिचता नही सिचता तो तम ह और फफाजी को करनी ह मरी ओर स

- तम दोनो क भोजन कर लन तक म भी अपन परण स अटल रहगा

बआजी एक aण सिचता म पड गई डिफर मीठी वाणी म समझाकर कहा - दखो भया इदर मर लिलए जस भोला-डितरभवन वस तम जसा य घर वसा वो आज तम अपन फफाजी को डिकसी तरह जिजमा लो उनक बरत टटत की खबर सनत ही तम हारी कसम म आप ही ठाकरजी का भोग पा लगी लडिकन इसी घर म डिकसी क जी को कलस हो बटा ऐसी बात नही करनी चाडिहए क या कह तर फफाजी का करोध मरी कछ चलन नही दव ह अपन जी को कलस दव ह सो दव ह बाकी बच चो क जी को जो कलस लग ह उसक लिलए तो कहा ही क या जाए कलजग कलजग की तर स चलगा भया

इदरदतत कछ दर तक बआ क मन की घटन का खलना दखत रह

पडित दवधरजी भटट न डिनत य-डिनयम क अनसार झटपट समय अपन भतीज क आगन म परवश कर आवाज लगाई-इदरदतत

- आइए फफाजी

सकर टट सीलन-भरी लखौटी-ईटो पर खडाऊ की खट-खट चढती गई इदरदतत कटहर क पास खड थ जीन क दरवाज स बाहर आत हए पडित दवधर उन ह ढ़िदखलाई ढ़िदए उनक भस म लग कपास और दह पर पड ज लिशव छाप क दपटट म उनकी दह स एक आभा-सी फटती हई उन ह महसस हो रही थी फफाजी क आत ही घर बदल गया उन ह दखकर हर रोज ही महसस होता ह पर आज की बात तो न यारी ही थी

फफाजी क चार ढ़िदनो का वरत आज उनक व यलिtत व को इदरदतत की दषटिM म और भी अषटिधक तजोमय बना रहा था फफाजी को लकर आज उनका मन अतयत भावक हो रहा था पीडा पा रहा था इदरदतत न अनभव डिकया डिक फफाजी क चहर पर डिकसी परकार की उततजना नही भख की थकान नही चहरा सखा कछ उतरा हआ अवश य था परत मख की चष टा नही डिबगडी थी पडित दवधर की यह बात इदरदतत को बहत छ रही थी

पडित जी आकर चौकी पर बठ गए इदरदतत उनक सामन मढ पर बठ घर बनन क कारण उनका बठका उजड गया था अभ यागत क आन पर इदरदतत सकोच क साथ इसी टट कमर म उसका स वागत करत फफाजी स तो खर सकोच नही पख का रख उन होन उनकी ओर कर ढ़िदया और डिफर बठ गए कछ दर तक दोनो ओर स खामोशी रही डिफर फफाजी न बात उठाई - तम अभी घर गए थ सना

- जी हा

- तम हारी बआ मझस कह रही थी मन यह भी सना ह डिक तम मर कारण डिकसी परकार का बाल हठ करन की धमकी भी द आए हो

पडित दवधर न अपना दपटटा उतार कर कसv पर रख ढ़िदया पालथी मारकर व सीध तन हए बठ थ उनका परायः पीला पडा हआ गोरा बदन उनक बठन क सधाय क कारण ही शकिरिरचअल जच रहा था अन यथा उनका यह पीलापन उनकी रोगी अवस था का भी परिरचय द रहा था

इदरदत त न सध-सधकर कहना शर डिकया - मरा हठ स वततर नही बडो क हठ म योगदान ह

- इन बातो स कछ लाभ नही इदर मरी गडित क लिलए मर अपन डिनयम ह

- और मर अपन डिनयम भी तो हो सकत ह

- तम ह स वाधीनता ह

- तब मन भी यढ़िद अनशन का फसला डिकया ह तो गलत नही ह

- तम अपन परडित मर स नह पर बोझ लाद रह हो म आत मशजिदध क लिलए वरत कर रहा ह परखो क साधना-गह की जो यह दगडित हई ह यह मर ही डिकसी पाप क कारण अपन अतःकरण की गगा स मझ सरस वती का मढ़िदर धोना ही पडगा तम अपना आगरह लौटा लो बटा

एक षटिमनट क लिलए कमर म डिफर सन नाटा छा गया कवल पख की गज ही उस खामोशी म लहर उठा रही थी

इदरदत त न शात स वर म कहा - एक बात पछ मढ़िदर म कत त क परवश स यढ़िद भगवती अपडिवतर हो जाती ह तो डिफर घट-घट व यापी ईश वर की भावना डिबलकल झठी ह एक ईश वर पडिवतर और दसरा अपडिवतर क यो माना जाए

पडित दवधर चप बठ रह डिफर गभीर होकर कहा - निहद धम बडा गढ ह तम इस झगड म न पडो

- म इस झगड म न पडगा फफाजी पर एक बात सोचता ह भगवान राम अगर परम क वश म होकर शबरी क जठ बर खा सकत थ निहद लोग यढ़िद इस आख यान म डिवश वास रखत ह तो डिफर छत-अछत का कोई परश न ही नही रह जाता यषटिधषटि^र न अपन साथ-साथ चलनवाल कत त क डिबना स वग म जान तक स इनकार कर ढ़िदया था यह सब कहाडिनया क या निहद-धम की मडिहमा बखाननवाली नही ह क या यह महत भाव नही ह डिफर इनक डिवपरीत छआछत क भय स छईमई होनवाल गढ धम की मडिहमा को आप क यो मानत ह इन रढ़िढयो स बधकर मनष य क या अपन को छोटा नही कर लता

पडितजी शाडितपवक सनत रह इदरदत त को भय हआ डिक बरा न मान गए हो तरत बोल - म डिकसी हद तक उत तजिजत जरर ह लडिकन जो कछ पछ रहा ह जिजजञास क रप म ही

- ठीक ह - पडितजी बोल - हमार यहा आचार की बडी मडिहमा ह मनस मडित म आया ह डिक आचारः परथमो धमः जसा आचार होगा वस ही डिवचार भी होग तम शदधाचरण को बरा मानत हो

- जी नही

- तब मरा आचार क यो भरष ट करा रह हो

- ऐसा धष टता करन का डिवचार स वप न म भी मर मन म नही आ सकता हा आपस aमा मागत हए यह जरर कहगा डिक आपक आचार नए यग को डिवचार शलिt नही द पा रह ह इसलिलए उनका मल य मर लिलए कछ नही क बराबर ह म दरतिवनीत नही ह फफाजी परत सच-सच यह अनभव करता ह डिक दडिनया आग बढ रही ह और आपका दषटिMकोण व यथ क रोड की तरह उसकी गडित को अटकाता ह पर इस समय जान दीजिजए म तो यही डिनवदन करन घर गया था और यही मरा आगरह ह डिक आप भोजन कर ल

पडितजी मस कराए इदरदत त क मन म आशा जागी पडितजी बोल - करगा एक शत पर

- आजञा कीजिजए

- जो मर अथात परानी परिरपाटी क यम डिनयम सयम आढ़िद ह व आज स तम ह भी डिनभान पडग जिजनका मल य तम हारी दषटिM म कछ नही ह व आचार-डिवचार मर लिलए पराणो स भी अषटिधक मल यवान ह

इदरदत त सतभिभत रह गए व कभी सोच भी नही सकत थ डिक फफाजी सहसा अनहोनी शत स उन ह बाधन का परयत न करग पछा - कब तक डिनभाना पडगा

- आजीवन

इदरदत त निककतव यडिवमढ हो गए जिजन डिनयमो म उनकी आस था नही जो चीज उनक डिवचारो क अनसार मनष य को अधडिवश वासो स जकड दती ह और जो भारतीय सस कडित का कलक ह उनस उनका परबदध मन भला क यो कर बध सकता ह हा कह तो कस कह उन होन इस वरत डिनयम बलिलदान चमत कार और षटिमथ या डिवश वासो स भर निहद धम को समाज पर घोर अत याचार करत दखा ह अपन-आपको तरह-तरह स परपीडिडत कर धारमिमक कहलानवाला व यलिt इस दश को रसातल म ल गया इस कठोर जीवन को साधनवाल शदधाचरणी बराहमण धम न इस दश की सतरिसतरयो और हीन कहलानवाली जाडितयो को सढ़िदयो तक दासता की चक की म बरी तरह पीसा ह और अब भी बहत काफी हद तक पीस रहा ह हो सकता डिक मनष य की चतना क उगत यग म इस शदध कहलानवाल आचार न अधकार म उन नत डिवचारो की ज योडित जगाई हो पर अब तो सढ़िदयो स इसी झठ धम न औसत भारतवासी को दास अधडिवश वासी और असीम रप स अत याचारो को सहन करनवाला झठी दवीशलिtयो पर यानी अपनी ही धोखा दनवाली लभावनी असभव कल पनाओ पर डिवश वास करनवाला झठा भाग यवादी बनाकर दश की कमर तोड रखी ह इसन औसत भारतवासी स आत मडिवश वास छीन लिलया ह इस जडता क खिxखलाफ उपडिनषद जाग मानवधम जागा योग का जञान जागा बौदध भागवतधम जागा मध यकाल का सत आदोलन उठा और आज क वजञाडिनक यग न तो इस एकदम डिनस सार लिसदध कर सदा क लिलए इसकी कबर ही खोद दी ह यह जड धम कभी भारत को महान नही बना सका होगा भारत की महानता उसक कमयोग म ह उसक व यापक मानवीय दषटिMकोण म ह व यास-वाल मीडिक आढ़िद क परम उदार भावो म ह पराचीन भारत क दशन न याय वशडिषक साडिहत य लिशल प सगीत आढ़िद इस जड धम की उपज हरडिगज नही हो सकत डिफर भी यह जडता भारत पर अस स भत की तरह छाई हई ह इसी स घणा करन क कारण आज का नया भारतीय डिबना जाच-पडताल डिकए अपनी सारी परपराओ स घणा करत हए लिसदधातहीन आस थाहीन और डिनसतरिकरय हो गया ह नही व फफाजी का धम हरडिगज न डिनभा सक ग हरडिगज नही हरडिगज नही पर व भोजन कस करग बआजी कस और कब तक भोजन करगी कसी डिवबना ह दो मनष यो की मौत की नडितक जिजम मदारी उनक ऊपर आएगी

पडित दवधर न उन ह मौन दखकर पछा-कहो भोजन कराओग मझ

- जीम धम-सकट म पड गया ह

- स पष ट कहो मरा धम गरहण करोग

फफाजी आप बहत माग रह ह मरा डिवश वास माग रह ह म आपक धम को यग का धम नही मानता अपना नही मानता

म तम हारी स पष टवाढ़िदता स परसन न ह तम धारमिमक हो इसी तरह अपन स मझको पहचानो म भी अपना धम नही छोड सकता यदयडिप तम हार सत सग स मन इतन ढ़िदनो म यह समझ लिलया ह डिक मरा यग मरा धम अब सदा क लिलए लोप हो रहा ह डिफर भी अडितम सास तक तो हरडिगज नही मरी आस था तपःपत ह तम हारा कल याण हो सखी हो बटा अच छा तो अब चल -

परत मरा अनशन का डिनश चय अडिग ह फफाजी म आपक चरण छकर कह रहा ह

पर छोड दो बट इन परो स पहल ही जडता समा चकी ह और अब तो जीव क साथ ही षटिमटगी अन यथा नही खर कल डिवचार करना अपन अनशन पर

अडितम वाक य पडितजी न इस तरह कहा डिक इदरदतत को करारा झटका लगा पर व मौन रहन पर डिववश थ पडित दवधर चलन लग इदरदतत क मन म भयकर तफान उठ रहा था व हार गए बआजी को क या उततर दग इस अगडित का अत कया होगा क या व फफाजी की बात मान ल कस मान ल यह ठीक ह डिक फफाजी अपन धम पर डिकस परकार एकडिनष ठ ह यह ए कडिनष ठता उन ह बहद परभाडिवत करती ह डिफर भी उनक धम को वह क यो कर स वीकार कर

पडित दवधरजी जीन पर पहचकर रक इदरदतत उनक पीछ-पीछ चल रह थ पडितजी घमकर बोल - तम हारी मान यताओ म मरी आस था नही ह इदर डिफर भी म उसक वास तडिवक पa को कछ-कछ दख अवश य पा रहा ह एक बात और स पष ट करना चाहता ह तम भोला डितरभवन क धम को आज का या डिकसी भी यग का वास तडिवक धम मानत हो

- जी नही उनका कोई धम ही नही ह

- तम हारा कल याण हो बट धन मद स जन म इस खोखल धम स सदा लडना जस म लडा तम अपन मत क अनसार लडो पर लडो अवश य यह आस थाहीन दभ भरा अदाशडिनक अधारमिमक जीवन लोक क लिलए अकल याणकारी ह बोलो वचन दत हो

म आपको अपना डिवश वास दता ह - कहकर इदरजीत न फफाजी क चरण छ लिलए खडाऊ की खट-खट जीन स उतर गई आगन पार डिकया दर चली इदरदतत आकर कट पड स अपन पलग पर डिगर गए

नया यग परान यग स स वच छा स डिवदा हो रहा था पर डिवदा होत समय डिकतना परबल मोह था और डिकतना डिनमम व यवहार भी

धम सकट अमतलाल नागर

शाम का समय था हम लोग परदश दश और डिवश व की राजनीडित पर लबी चचा करन क बाद उस डिवषय स ऊब चक थ चाय बड मौक स आई लडिकन उस ताजगी का सख हम ठीक तरह स उठा भी न पाए थ डिक नौकर न आकर एक सादा बद लिलफाफा मर हाथ म रख ढ़िदया मन खोलकर दखा सामनवाल पडोसी रायबहादर डिगराजडिकशन (डिगरिरराज कष ण) का पतर था कापत हाथो अनषटिमल अaरो और टढी पलिtयो म लिलखा था

माई डियर परताप

मन फल ली को आदश द रक खा ह डिक मरी मत य क बाद यह पतर तम ह फौरन पहचाया जाए तम मर अभिभन न षटिमतर क पतर हो रमश स अषटिधक सदा आजञाकारी रह हो मरी डिनम नलिलगनिखत तीन अडितम इच छाओ को परा करना -

1 रमश को तरत सचना दना मरी आत मा को तभी शाडित षटिमलगी जब उसक हाथो मर अडितम सस कार होग मन उसक साथ अनयाय डिकया ह

2 फल ली को मन पाच हजार रपय ढ़िदए ह और पाच-पाच सौ रपय बाकी चारो नौकरो को नोट मर तडिकए म रई की परत क अदर ह उसी म वसीयत और डितजोरी की चाभी भी ह घर म डिकसी को यह रहस य नही मालम तडिकया अब फौरन अपन कबज म कर लना घर क भार-घर और सदको की चाभिभया डितजोरी म ह रमश क आन पर पाच पचो क सामन उस सौप दना

3 मन अपनी वसीयत म यह शत रक खी ह डिक मरी पत नी अगर मझ माफ कर द और गलत ही सही मगर जो पडितवरत उस पर आन पडा ह उस साधकर रमश को छोडकर बाइज जत यहा रह तो यह मकान और दस हजार रपया उस ढ़िदया जाए लडिकन यह काम उसी हालत म होना चाडिहए जबडिक हम और तम हार दवारा डिनयक त महल ल क चार भल आदमी मरी पत नी की सच चरिरतरता क सबध म आवश स त हो जाए

पतर पर छह रोज पहल की तारीख पडी थी मझ यह समझन म दर न लगी डिक रायबहादर साहब गत हो चक ह पतर मन बड बाब क सामन मज पर रखा ढ़िदया इजीडिनयर साहब और परोफसर साहब भी झककर पढन लग

चाय बमजा हो गई हम सभी उठकर रायबहादर साहब क यहा गए उनका रोबीला चहरा रोग और मानलिसक सिचताओ स जजर होकर मत य क बाद भी उनक अडितम ढ़िदनो क असीम कष टो का परिरचय द रहा था मत रायबहादर क चहर को दखत हए उनक साथ बीत इतन वष की स मडितया मर मन म जाग उठी

रायबहादर बाब डिगराजडिकशन बीए उन निहदस ताडिनयो म स थ जिजन ह तकदीर की चक क कारण इeल म जनम नही षटिमल पाया था उनका रग भी गोरा न था बशकिक गहए स काल की ओर ही अषटिधक झकता हआ था डिफर भरसक उन होन अपन-आपको अगरजनमा ही बनाए रक खा गरीब निहदसताडिनयो पर अकड ढ़िदखान म व सदा अगरजो स चार जत आग रह कई निहदीवाढ़िदयो न उनस शदध नाम डिगरिरराजकष ण रखन को कहा मगर व उन ह मख बतलाकर डिगराज ही बन रह रायबहादर डिगराजडिकशन क नाम क साथ बीए जोडना भी डिनतात आवश यक था सन 23 म रायबहादर डिगराज अपनी डिबरादरी क रायसाहब दीनानाथ की बदौलत इलाहाबाद म छोट लाट क दफतर म भरती हए थ अपनी अगरजपरस ती और हाईक लास खशामद क दम पर रामबहादर ऊची करसिसयो पर चढ बठ स वराज य होन पर आतरिरक कष ट भोगन क बावजद तीन वष तक स वराजी अफसरो नताओ और मडितरयो की भी बाअदब खशामद की डिगराज बाब इन लोगो क सामन जिजस परकार खद दम डिहलात उसी परकार अपन सामन अपन मातहतो की भी डिहलवात थ आजादी क बाद भी दफतर म अपना भला चाहनवाला कोई बाब उनक आग निहदी का एक शब द नही बोल सकता था और घर क लिलए भी यही मशहर था डिक रायबहादर की भस तक अगरजी म ही कारती अगर कोई कसर थी तो सही डिक ली डिगराज क वास त अगरजी का करिरया अaर भी भस बराबर ही था

रायबहादर डिगराज पहली लडाई क जमान क मॉन आदमी थ सबह आख खलत ही घटी बजात सफद कोट पतलन और साफ स लस फल ली आया का लडका घसीट छोटी हाजिजरी लकर हाजिजर होता ठीक आठ बज बडी हाजिजरी पर बठत बटी-बटा साथ होत पर ल ी डिगराज अा-डिबस कट-समाज म कभी न बठी परम कटटर छत-पाकवाली न होत हए भी मास-मछली स उन ह परहज था बशीरत चपरासी क बाप मन न बावचv को हफत म दो ढ़िदन डयटी दनी पडती थी घर क डिनचल डिहस स म डिवलायती रसोई थी एक तरह स कहना चाडिहए डिक नीच का परा घर ही डिवलायती था वहा ल ी डिगराज क बजाय फल ली आया का सामराज य था फल ली पहल अगरजी कोढ़िठयो म काम करती थी अगरजी ढग स निहदस थानी बोलती ह अगरजी घर क कायद जानती ह छोटी-बडी हाजिजरी लच डिनर चाय सबका समय साधती थी इसलिलए डिगराज बाब क बाब डिनयम स दो पग खान स पहल चसडिकयो म मयादा करत थ फली उसका इतजाम भी बखबी कर दती थी इसलिलए आमतौर पर मजाक-मजाक म ही मशहर हो गया था डिक रायबहादर साहब स कोई काम करवान क वास त बजाय ली डिगराज क ल ी फल ली की लिसफारिरश जयादह परअसर होती ह

वस राजबहादर डिगराज म डिकसी न भी कोई ऐब की बात नही दखी-सनी थी अगर ऐब था तो यही डिक व मॉन थ चरट मह म लगाए बगर व बात नही कर पात थ अगर कोई निहदी सभा का चदा मागन आए तो उसस अकडकर कहत डिक मॉन जमान म गवार भाषाओ का उदधार करना डिहमाकत की बात ह धम क सबध म पहल तो व यह कहा करत थ डिक यह ढोग और पागलपन की वस त ह मगर बाद म उस इडियन कल चर का एक सनातन रप मानकर सहन कर जात थ डिगराज साहब थोडा-बहत लन-दन का काम करत थ और उसकी बदौलत उन होन हलिसयत भी बनाई अच छा मॉन ढग का मकान बनवाया उसका नाम ढ़िद नाइटिटगल रकखा मोटर खरीदी सदा दो-चार नौकर पाल घर स लकर दफतर तक घडी साधकर सबस डयटी करवाई पत नी को भी षटिमलन क वास त फल ली क दवारा उनस अप वाइटमट लना पडता था ली इसस जल-फक गई डिक म फल ली स भी गई-बीती हो गई

ली डिगराज न अपन फहडपन म उनक ऊपर एक बहत बडा लाछन लगा ढ़िदया रायबहादर साहब लिसदधाततः और स वभावतः अवध रिरश तो स नफरत करत थ इसलिलए अपनी पत नी क दवारा झठा लाछन लगाए जान क बाद डिफर उन होन कभी उनका मह न दखा बडी लडकी क डिववाह क अवसर पर उन होन कन यादान इसलिलए स वय न डिकया डिक उन ह पजा क पटर पर अपनी पत नी क साथ बठना पडता

इसक बाद दो वष म ली डिगराज घल-घलकर मर गई मगर मरी भी तो डिनयडित क साथ षडयतर करक ठीक इनक रिरटायर होन क ढ़िदन रायबहादर डिगराज को बहत लिशकायत हई अपन बट-बटी स कहा तम हारी मममी को कभी टाइम का सस नही रहा अगर मरना ही था तो कल सबह मरती परसो सबह मर सकती थी आज शाम को दफतर म मरी फयरवल पाट हो जान क बाद कभी मर सकती थी जिजदगी म एडरस पान का यह पहला मौका आया था सो इस तरह तबाहोबबाद कर ढ़िदया ईडियट कही की

इसक बाद मरनवाली तो खर मर ही चकी थी मगर जो भी मातम-परसी क लिलए मह डिबसरत हए आए उन ह भी रायबहादर साहब की ाट खानी पडी जो कहता डिक साहब सनकर बडा दख हआ उसस ही कहत आपको दख करन की जररत क या ह मझ कोई दख नही हआ जो आदमी पदा होता ह उन सबको एक साथ फौरन मर जाना चाडिहए जाइए मर यहा मातम-परसी क लिलए आन की जररत नही

छोटी लडकी की शादी उन होन पत नी की मत य क तीन महीन बाद पव डिनश चय क अनसार ही की स वय ब याहनवाली लडकी और उनक पतर को इसम आपभितत थी मगर उन होन डिकसी की एक न सनी कहा आई हव नो रिरगा फॉर योर मम मी शी वाज एक परफक ट फल लडकी की शादी बडी धमधाम स की एक आईसीएस क बट को अपना दामाद बनाया और बहत कछ दान-दहज दकर रिरटायर होन क बाद भी रोब जतलाया

लडका रमश तब एमए फाइनल म पढ रहा था नामी तज था सदा फस ट क लास रका रहा एमए क बाद आईएएस म बठनवाला था लडकीवाल अनक व यलिt रमश की माग करन क लिलए रायबहादर की सवा म आन लग रायबहादर डिगराज को अब मातहत क लक पर न सही तो ब टीवालो पर ही चरट का रोब झाडकर भरपर सतोष षटिमल जाता था दहज क मामल म व पक क मॉन थ यानी पच चीस हजार मागत थ एकाध डिपछल जानकार न दहाई दी डिक आप तो दहज क डिवरदध थ उसको परानी परथा बतलात थ तो बोल साहब जब मझ स बड अफसर आईसीएस आदमी यानी मर समधी साहब दहज लन को मॉन परथा मानत ह तो मन भी अपन डिवचार बदल ढ़िदए ह डिनहायत साइढ़िटडिफक बात ह डिक आपको दामाद चाडिहए और मझ 25 हजार रपया मरा रमश आईएएस पास करगा आप अपनी लडकी का फयचर दखकर अगर इतनी रक कम दना स वीकार करत ह तो बढ़िठए वरना मरी करसी की गददी मली मत डिकजिजए

व ऐसी लडकी चाहत थ जो सदर हो बीए हो गाती नाचती हो सीना-डिपरोना-बनना जानती हो अगरजी म फटाफट बात कर अफसर डिकसम क मॉन महमानो की खाडितर करन म तमीजदार हो और ऊपर स उसका बाप नगद पच चीस हजार रपय भी द जाए डिबरादरी क कई अच छी हलिसयतवाल बढ़िटयो क बापो क चहर रायबहादर डिगराज क चरट की अकड स धआ-छआ हो गए

एक ढ़िदन इनक दवारा नौकर रखाए गए परान मातहत एक सजातीय बाब दवीशकर पधार डिगराज की मडिहमाओ का बखान करत हए उन होन कहा सर म आपकी च वायस को जानता ह और एक लडकी मरी नजर म ह

इन बाब क साथ उन होन रीता को दखन का अवसर पाया रीता रायसाहब चमनलाल की इकलौती बटी थी रायसाहब चमनलाल न अपन जमान म बड ऐश बड नाम डिकए व शहर की तवायफो क सरताज थ रस क घोडो क सरपस त थ और बड ही औला-पौला आदमी थ अपन जीवन-काल म लाखो कमाए और लाखो फक एक लडकी हई उस बड लाड स पाला-पोसा पढाया हाई स कल तक रीता न परीaाओ तथा वाद-डिववाद और नत य-परडितयोडिगताओ म अनक परस कार पराप त कर अपन डिपता को सतष ट डिकया था रायसाहब डिवधर थ रीता की एक डिवधवा मौसी उनकी लडकी की दखभाल करन क लिलए उनक यहा रहती थी सो तब तरह स उनकी ही हो गई थी रायसाहब न आख मदकर अपना घर अपनी रभिaता साली को सौप रक खा था

बाद म रायसाहब चमनलाल की जन मकली क गरह-नaतर पहट बडा घाटा आया ढ़िदवालिलए होन की नौबत आ गई अपनी लडकी क वास त कछ रकम बचान की नीयत स उन होन एक बगला अपनी साली क नाम स खरीदा और लगभग एक लाख रपया नगद और जवरो क रप म बचाकर उसी क नाम स जमा करवा ढ़िदया डिफर रायसाहब ढ़िदवालिलए हो गए और जिजस ढ़िदन उन ह अपनी महलनमा कोठी सदा क लिलए छोडनी थी उस ढ़िदन उन होन गहर नश म अपनी कनपटी पर रिरवाल वर रखकर अपनी इहलीला समाप त कर दी रायसाहब की मत य क बाद मौसी सयानी हो गई और रीता अनाथ

लडकी दखन गए तो उसकी दो चोढ़िटयो म डित तलिलयो जस रिरबन दखकर रायबहादर साहब क पशन पराप त जीवन म नई रस की गलाबी आई अनक वष का सोया हआ मॉन पत नी का अभाव जाग उठा लडकी रीता बातचीत म तज आख नचान म बाकमल और हसन म डिबजली थी दखकर लौट तो रास त म दवीशकर स बोल लडकी तो अच छी ह और दहज का भी मझ कोई खास नही क योडिक तम तो जानत ही हो डिक म इन सब मामलो म बडा मॉन ह खाली एक परयोजन ह क - अ - क या नाम क आई मीन तम हारा क या खयाल ह दवीशकर अभी तो म भी शादी कर सकता ह

दवीशकर रायबहादर को घरत लग मह पर खशामद स हा क बजाय ना भला क यो कर कहत मौसी क लिलए इसस बढकर काई शभ सवाद न हो सकता था अठारह वष की आय की रीता छsपन वषvय रायबहादर डिगराजडिकशन की पत नी बनी

और इसक बाद की तमाम बात अपन करम म बढ गई रीता न परथम ढ़िदन स ही अपन पडित स कोई सबध न रकखा हठपवक अपन कमर क अदर बद रही रायबहादर रपय-पस गहनो और खशामदो की बडी-बडी नमायश लगाकर हार गए डिफर एक ढ़िदन फल ली न बतलाया डिक रमश और रीता रायबहादर दवारा स थाडिपत सबध को भलकर परस पर नया सबध स थाडिपत कर रह ह रायबहादर आग हो गए रमश तब एमए क अडितम वष म पढ रहा था डिपता न करोध म अध होकर उस पर परहार डिकया और घर स डिनकाल ढ़िदया रीता तब भी उनकी न हई

रमश को दो महीन बाद ही ढ़िदल ली म कोई नौकरी षटिमल गई और उसक महीन-भर बाद ही रीता रायबहादर क घर स गायब होकर ढ़िदल ली पहच गई जान स पव वह एक अलबला काम कर गई थी महल ल क पच चास घरो म हर पत पर उनका लिलखा पोस टका उसक गायब होन क दसर ही ढ़िदन पहली ाक स पहचा उसम मातर इतना ही लिलखा था बाब डिगरिरराजकष ण न मझ जबरदस ती अपनी पत नी बनाया था मगर मन उन ह कभी अपना पडित न माना और न अपना धम ही ढ़िदया डिववाह स पहल मझ बतलाया गया डिक म उनक पतर को ब याही जाऊगी तब स मन उनक पतर को ही अपना पडित माना इस घर म आकर भी उन ह ही भगवान की साaी म अपन को सौपा और अब म अपन पडित क पास ही जा रही ह

रीता क भागन स रायबहादर बाब डिगराजडिकशन को इतना कष ट नही पहचा था जिजतना डिक उसक दवारा भज गए इस सावजडिनक पतर स व दखी हए इसक बाद रायबहादर का जीवन बदल गया उनम पजा-पाठ और आशकिसतकता की भावना जागी साथ ही अकलापन भी हठ पकड गया डिपछल आठ वष म व एक ढ़िदन भी अपन घर स बाहर डिनकलकर कही न गए लन-दन का काम करत थ वह भी धीर-धीर समाप त कर ढ़िदया महल ल म डिकसी स भी सपक न रक खा डिपछल कछ ढ़िदनो स बीमार थ मगर महल लवाल उनकी हालत दखन-पछन भी न गए जात तो षटिमलत भी नही और अचानक मर पास अब यह पतर आया

हम सभी महल लवाल एकाएक यह डिनणय न कर पाए डिक इस खिसथडित म क या करना चाडिहए वदयजी और बड बाब इस पa म थ डिक पलिलस को सचना द दी जाए और इस पतर को लिलखी हई बातो का अमल भी कानन क हाथो ही हो परत म तो मत व यलिt की अडितम इच छा परी करन क पa म था रायबहादर कस भी रह हो इसी महल ल क थ कइयो को उन होन कभी नौकरिरया भी ढ़िदलाई थी उपकार डिकया था इजीडिनयर साहब भी मर ही मत क थ बाद म सभी राजी हो गए महल ल क एक षटिमतर क पास रमश क पतर आया करत थ उसी स पता लकर तार भजा गया जिजसम यह स पष ट लिलख ढ़िदया था डिक यढ़िद कल परातःकाल तक तम स वय अथवा तम हारा पतर उततर न आएगा तो रायबहादर की अत योषटिM डिकरया महल लवालो दवारा ही पचनाम स सपन न कर दी जाएगी

सबह चार बज तार का जवाब आया डिक रमश टक सी दवारा ढ़िदल ली स चल रहा ह और सबह तक पहच जाएगा परातःकाल करीब-करीब सभी महल लवाल रायबहादर क घर पर उ पखिसथत थ तभी टक सी दरवाज पर रकी रमश रीता और तीन बच च उतर रमश क मह पर तो सामाजिजक लज जा और सकोच की मलिलन छाया थी परत रीता का चहरा सतज और डिनरतिवकार था

रीता क आन का सवाद पाकर अनक सतरिसतरया कौतहलवश आ गई रीता न रायबहादर की लाश क पास अपनी चडिडया तोडी और माग का सिसदर पोछा रमश न डिपता का अडितम सस कार डिकया सतरिसतरया रीता स तरह-तरह क परश न करती थी परत वह कोई उततर न दती थी डिकरयाकम इत याढ़िद म रायबहादर क सजा तीय नात-रिरश तदार आढ़िद बहत कम आए बरहमभोज म गरीबी स एकदम टट हए बराहमण ही आए डिकसी परकार डिकरयाकम समाप त हआ रमश क वहा स चलन का समय आया

मन रायबहादर क अडितम पतर क अनसार सभरात महल लवालो क साथ रीता-रमश को बलाकर सबक सामन उनका वह अडितम पतर पढा और वह तडिकया जो महरबद पटी म मन रखवा ढ़िदया था खलवाया फल ली और नौकरो को रायबहादर की इच छानसार रपय द ढ़िदए गए रायबहादर की अडितम माग पर रीता का डिनणय सनन क लिलए हम सभी उत सक बठ थ रीता बोली म धम और ईश वर क सम मख सचचरिरतर ह मन अपन तन-मन स उन ह सदा ससर ही माना धारमिमक कानन की जिजस मजबरी स उन होन मझ अपनी पत नी बनाया था उस मन डिवषटिधवत उनकी लाश को सौप भी ढ़िदया उनकी चडिडया उनका सिसदर उन ह सौपा लडिकन मरी चडिडया मरा सिसदर अaय ह कहकर उसन दर स अपन हाथ क नीच दबी हई रमाल की पोटली को उठाया उसम हरी चडिडया थी और एक चादी की डिडिबया थी चडिडया पहनी और डिबीया खोलकर रमश की और रखत हए बोली जिजन होन मरी गोद भरी ह उन होन मरी माग भी भरी ह - लीजिजए मरी माग भर दीजिजए

रमश न रीता की माग म सिसदर की रखा खीच दी डिफर रीता बोली घर क सबध म मझ कवल यही कहना ह डिक अगर आप पाच पच मझ दश चरिरतर मानत हो तो उस धमशाला बना दीजिजए

हमम स कोई खम ठोककर एकाएक यह नही कह पाया डिक रीता दश चरिरतर ह मन अनभव डिकया डिक सभी क मनो को इस परश न स धक का लगा था अपन परपरागत धारमिमक सामाजिजक सस कारो क कारण हम रीता को सचरिरतरा मानन स भी मन ही मन डिहचकत थ पर यो क या कह

रीता हमारी डिहचक पर एक बार कहकर उठ गई उसन कहा मझ रायबहादर साहब का घर और दस हजार रपय पान की इच छा नही मर पडित न मझ सहाग की छाव द रक खी ह लडिकन म आपक सामन कसौटी रखती ह - बोलिलए घर डिकसका ह

घर को छोडकर बाकी सब सामान क साथ रमश रीता और उनक बच च ढ़िदल ली चल गए हम अभी तक कोई डिनणय नही कर पाए घर की चाभी मर पास ह वह तोल ढ का लोह का टकडा इस समय मर मन-पराणो का बोझ बना हआ ह

(1961 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

परायभित अमतलाल नागर

जीवन वाढ़िटका का वसत डिवचारो का अधड भलो का पवत और ठोकरो का समह ह यौवन इसी अवसथा म मनय तयागी सदाचारी दश-भt एव समाज-भt भी बनत ह तथा अपन खन क जोश म वह काम कर ढ़िदखात ह जिजसस डिक उनका नाम ससार क इडितहास म सवणाaरो म लिलख ढ़िदया जाता ह तथा इसी आय म मनय डिवलासी

लोलपी और वयभिभचारी भी बन जाता ह और इस परकार अपन जीवन को दो कौडी का बनाकर पतन क खडड म डिगर जाता ह अत म पछताता ह परायभित करता ह परत परतयचा स डिनकाला हआ बाण डिफर वापस नही लौटता खोई हई सचची शाडित डिफर कही नही षटिमलती

मभिणधर सदर यवक था उसक पस (जब) म पसा था और पास म था नवीन उमगो स परिरत हदय वह भोला-भाला सशील यवक था बचारा सीध माग पर जा रहा था यारो न भटका ढ़िदया - दीन को पथ-हीन कर ढ़िदया उस डिनतय-परडित कोठो की सर कराई नई-नई परिरयो की बाकी झाकी ढ़िदखाई उसक उचचडिवचारो का उसकी महतवकाaाओ का अतयत डिनदयता क साथ गला घोट ाला गया बनावटी रप क बाजार न बचार मभिणधर को भरमा ढ़िदया डिपता स पसा मागता था वह अनाथालयो म चदा दन क बहान और उस आख बद कर बहाता था गदी नालिलयो म पाप की सरिरता म घभिणत वnयालयो म

ऐसी डिनराली थी उसकी लीला पडित जी वदध थ अनक कनयाओ क लिशaक थ वातसय परम क अवतार थ डिकसी भी बालिलका क घर खाली हाथ न जात थ षटिमठाई फल डिकताब नोटबक आढ़िद कछ न कछ ल कर ही जात थ तथा डिनतयपरडित पाठ सनकर परतयक को पारिरतोडिषक परदान करत थ बालिलकाए भी उनस अतयत डिहल-षटिमल गई थी उनक सरaकगण भी पडित जी की वातसयता दख गदगद हो जात थ घरवालो क बाद पडित जी ही अपनी छातराओ क डिनरीaक थ सरaक थ बालिलकाए इनक घर जाती हारमोडिनयम बजाती गाती हसती खलती कदती थी पडितजी इसस गदगद हो जात थ तथा बाहरवालो स परमाशर ढरकात हआ कहा करत इनही लडडिकयो क कारण मरा बढापा कटता चला जा रहा ह अनयथा अकल तो इस ससार म मरा एक ढ़िदवस भी काटना भारी पड जाता समसत ससार पडितजी की एक मह स परशसा करता था

बाहरवालो को इस परकार ठाट ढ़िदखाकर पडितजी दसर ही परकार का खल खला करत थ वह अपनी नवयौवना सदर छातराओ को अनय डिवषयो क साथ-साथ परम का पाठ भी पढाया करत थ परत वह परम डिवशदध परम नही वरन परम की आड म भोगलिलsसा की लिशaा थी सतीतव डिवकरय का पाठ था काम-वासना का पाठ पढाकर भोली-भाली बालिलकाओ का जीवन नM कराकर दलाली खान की चाल थी टटटी की आड म लिशकार खला जाता था पडितजी क आस-पास यडिनवरसिसटी तथा कालज क छातर इस परकार भिभनभिभनाया करत थ जिजस परकार डिक गड क आस पास मखिकखया डिवलिचतर थ पडितजी और अदभत थी उनकी माया

रायबहादर ॉ शकरलाल अगनिeनहोतरी का सथान समाज म बहत ऊचा था सभा-सोसाइटी क हाडिकम-हककाम म आदर की दषटिM स दख जात थ वह उनक थी एक कनया - मtा वह हजारो म एक थी - सदरता और सशीलता दोनो म दभाeयवश वदध पडितजी उस पढान क लिलए डिनयt डिकए गए भोली-भाली बालिलका अपन आदश को भलन लगी पडित जी न उसक डिनमल हदय म अपन कखितसत महामतर का बीजारोपण कर ढ़िदया था अनय यवती छातराओ की भाडित मtा भी पडित जी क यहा हारमोडिनयम सीखन जान लगी

पडितजी मtा क रप लावणय को डिकराए पर उठान क लिलए कोई मनचला पस वाला ढढन लग अत म मभिणधर को आपन अपना पातर चन लिलया नई-नई कलिलयो की खोज म भटकन वाला षटिमसिलद इस अपव कली का मदपान करन क लिलए आकलिलत हो उठा इस अवसर पर पडितजी की मटठी गम हो गई दसर ही ढ़िदवस मभिणधर को पडित जी क यहा जाना था वह सधया अतयत ही रमणीक थी मभिण न उस बडी परतीaा करन क पात पाया था आज वह अतयत परसनन था आज उस पडितजी क यहा जाना था वह लब-लब पग रखता हआ चला जा रहा था पडितजी क पापालय की ओर आज उस रपयो की वदी पर वासना-दवी को परसनन करन क लिलए बलिल चढानी थी

मtा पडितजी क यहा बठी हारमोडिनयम पर उगलिलया नचा रही थी और पडितजी उस पलडिकत नतरो स डिनहार रह थ वह बाजा बजान म वयसत थी साहसा मभिणधर क आ जान स हारमोडिनयम बद हो गया लजीली मtा कसv छोडकर एक ओर खडी हो गई पडितजी न डिकतना ही समझाया बटी इनस ल|ा न कर यह तो अपन ही ह जा बजा बाजा बजा अभयागत स|न क सवागत म एक गीत गा परत मtा को अभी ल|ा न न छोडा था वह अपन सथान पर अडिवचल खडी थी उसक सकोमल मनोहारी गाल ल|ावश अगरी की भाडित लाल हो रह थ

अलक आ-आकर उसका एक मधर चबन लन की चMा कर रही थी मभिणधर उस पर मर षटिमटा था वह उस समय बाहय ससार म नही रह गया था यह सब दख पडितजी गनिखसक गए अब उस परको^ म कवल दो ही थ

मभिणधर न मtा का हाथ पकडकर कहा आइए खडी कयो ह मर समीप बठ जाइए मभिणधर धM होता चला जा रहा था मtा जिझझक रही थी परत डिफर भी मौन थी मभिणधर न कहा - कया पडितजी न इस परकार आडितथय सतकार करना लिसखलाया ह डिक घर पर कोई पाहन आव और घरवाला चपचाप खडा रह शभ मर समीप बठ जाइए परम की डिवदयत कला दोनो क शरीर म परवश कर चकी थी मtा इस बार कछ न बोली वह मतर-मeध-सी मभिण क पीछ-पीछ चली आई तथा उसस कछ हटकर पलग पर बठ गई आपका शभ नाम मभिण न जरा मtा क डिनकट आत हए कहा मtा लजीली मtा न धीम सवर म कहा

बातो का परवाह बढा धीर-धीर समसत डिहचक जाती रही और और थोडी दर क पात मtा नीरस हो गई उसकी आब उतर गई थी

डिहजाब नौ उरमा रहबर शौहर नबी मानद अगर मानद शब-मानद शब दीगर नबी मानद

डिहचक खल गई थी मभिण और मtा का परम करमशः बढन लगा था मभिण षटिमसिलद था पप पर उसका परम तभी ही ठहर सकता ह जब तक उसम मद ह परत मtा का परम डिनमल और डिनकलक था वह पाप की सरिरता को पडिवतर परम की गगा समझकर बरोक-टोक बहती ही चली जा रही थी अचानक ठोकर लगी उसक नतर खल गए एक ढ़िदन उसन तथा समसत ससार न दखा डिक वह गभ स थी

समाज म हलचल मच गई शकरलाल जी की नाक तो कट ही गई वह डिकसी को मह ढ़िदखान क योeय न रह गए थ - ऐसा ही लोगो का डिवचार था असत जाडित-डिबरादरी जटी पच-सरपच आए पचायत का काय आरभ हआ मtा क बयान लिलए गए उसन आसओ क बीच लिससडिकयो क साथ-साथ समाज क सामन सपण घटना आदयोपात सना ाली - पडितजी का उसक भोल-भाल सवचछ हदय म काम-वासना का बीजारोपण करना ततपात उसका मभिणधर स परिरचय कराना आढ़िद समसत घटना उसन सना ाली पडितजी न डिगडडिगडात अपनी सफाई पश की तथा मtा स अपनी वदधावसथा पर तरस खान की पराथना की परत मभिणधर शात भाव स बठा रहा

पचो न सलाह दी बढो न हा म हा षटिमला ढ़िदया सरपच महोदय न अपना डिनणय सना ाला सारा दोष मtा क माथ मढा गया वह जाडितचयत कर दी गई रायबहादर क डिपता की भी वही राय थी जो पचो की थी मभिणधर और पडितजी को सचचरिरतरता का सरटिटडिफकट द डिनदyenषी करार द ढ़िदया गया कवल अबला मtा ही दख की धधकती हई अगनिeन म झलसन क लिलए छोड दी गई अत म अतयत कातर भाव स डिनससहाय मtा न सरपच की दोहाई दी - उसक चरणो म डिगर पडी सरपच घबराए हाय भरMा न उनह श कर लिलया था करोषटिधत हो उनहोन उस गरभिभणी डिनससहाय आशरय-हीना यवती को धकक मार कर डिनकाल दन की अनमडित द दी उनकी आजञा का पालन करन क लिलए निहद समाज को वासतव म पतन क खडड म डिगरान वाल नरराaस खशामदी टटट पीर बवचv भिभसती खर की कहावत को चरिरताथ करन वाल इस कलक क सचच अपराधी पडितजी ततaण उठ उस धकका मारकर डिनकालन ही वाल थ - अचानक आवाज आई - ठहरो अनयाय की सीमा भी परिरषटिमत होती ह तम लोगो न उसका भी उलघन कर ाला ह लोगो न नतर घमाकर दखा तो मभिणधर उततजिजत हो डिनल भाव स खडा कह रहा था निहद समाज अधा ह अतयाचारी ह एव उसक सवसवा अथात हमार माननीय पचगण अनपढ ह गवार ह और मख ह जिजनह खर एव खोट सतय और असतय की परख नही वह कया तो नयाय कर सकत ह और कया जाडित-उपकार इसका वासतडिवक अपराधी तो म ह इसका द तो मझ भोगना चाडिहए इस सशील बाला का सतीतव तो मन नM डिकया ह और मझस भी अषटिधक नीच ह यह बगला भगत बना हआ नीच पडित इस दराचारी न अपन सवाथ क लिलए न मालम डिकतनी बालाओ का जीवन नM कराया ह - उनह पथभरM कर ढ़िदया ह जिजस आदरणीय दषटिM स इस नीच को समाज म दखा जाता ह वासतव म यह नीच उसक योeय नही वरन यह नर पश ह लोलपी ह लपट ह सिसह की खाल ओढ हए तचछ गीदड ह - रगा लिसयार ह

सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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की परानी झाडिकया सामन आ जाती ह फफाजी क अनभवो स अपन लिलए जञान-सतर बटोरत हए उनक डिनकट सपक म आकर इदरदतत को आदर क अलावा उनस परम भी हो गया ह

इदरदतत की पत नी क मन म आदर भाव तो ह पर जब स व बराबर आकर बठन लग ह तब स उस एक दबी ठी लिशकायत भी ह पडित क साथ घडी दो घडी बठकर बात करन करम या चौसर खलन या अपन पतक घर क सबध म जो अब नए लिसर स बन रहा ह सलाह-सत करन का समय उस नही षटिमल पाता अपनी छोटी दवरानी डितरभवन की बह स बडा स बडा नह-हत होन क कारण उसकी बातो म डिवश वास रखकर वह फफाजी क परानपन स डिकसी हद तक डिफरट भी ह इसलिलए जब इदरदतत न यह कहा डिक घर म मास-मछली क परयोग क बाद फफाजी न अपना चौका अलग कर लिलया मगर कछ बोल नही तो उनकी पत नी स रहा नही गया कहन लगी - तो उन लोगो स - अर पोत-पोडितयो तक स तो बोलत नही डिफर लिशकायत डिकसस करग

- फफाजी को पहचानन म बस यही तम लोग गलती करत हो उनका परम परायः गगा ह मन अनभव स इस बात को समझा ह बद रहन पर भी जिझरजिझर दरवाजो स जिजस तरह ल क तीर आत ह सयमी इदरदतत क अतर म उदवग इसी तरह परकट हो रहा था

पत नी न पडित क रख पर रख डिकया तरत शात और मद स वर म कहा - म फफाजी को पहचानती ह उनक ऐस डिवदवान की कदर उस घर म नही उनका परम तम जसो स हो सकता ह तम सिचता न करो बरत आज परा हो जाएगा

- मान जाएग पत नी क चहर तक उठी इदरदतत की आखो म शका थी उनका स वर करण था

- परम नम बडा ह - पडित क aोभ और सिचता को चतराई क साथ पत नी न मीठ आश वासन स हर लिलया परत वह उन ह डिफर चाय-नाश ता न करा सकी

ॉक टर इदरदतत शमा डिफर घर म बठ न सक आज उनका धय डिग गया था फफाजी लगभग छ साढ बज आत ह इदरदतत का मन कह रहा था डिक व आज भी आएग पर शका भी थी ममडिकन ह अषटिधक कमजोर हो गए हो न आए इदरदतत न स वय जाकर उन ह बला ल आना ही उलिचत समझा हालाडिक उन ह यह मालम ह डिक इस समय फफाजी स नान-सध या आढ़िद म व यस त रहत ह प दवधर जी का घर अषटिधक दर न था ॉक टर इदरदतत सदर दरवाज स घर म परवश करन क बजाय एक गली और पार कर बडिगया क दवार पर आए फफाजी गगा लहरी का पाठ कर रह थ फलो की सगषटिध-सा उनका मधर स वर बडिगया की चहारदीवारी क बाहर महक रहा था

अडिप पराज य राज य तणषटिमप परिरत यज य सहसा डिवलोल दवानीर तव जनडिन तीर भिशरत वताम सध धातः स वादीथः सलिललभिभदाय तपतिsत डिपबतामज नानामानदः परिरहसडित डिनवाण पदवीम

इदरदतत दरवाज पर खड-खड सनत रह आखो म आस आ गए फफाजी का स वर उनक कानो म मानो अडितम बार की परसादी क रप म पड रहा था कछ ढ़िदनो बाद कछ ही ढ़िदनो बाद यह स वर डिफर सनन को न षटिमलगा डिकतनी तन मयता ह आवाज म डिकतनी जान ह कौन कहगा डिक पडित दवधर का मन aब ध ह उन होन चार ढ़िदनो स खाना भी नही खाया ह ऐस व यलिt को ऐस डिपता को भोला-डितरभवन कष ट दत ह इदरदतत इस समय अतयत भावक हो उठ थ उन होन फफाजी की तन मयता भग न करन का डिनश चय डिकया गगा लहरी पाठ कर रह ह इसलिलए नहाकर उठ ह या नहान जा रह ह इसक बाद सध या कर फफाजी स भट हो जाएगी उनक कायकरम म डिवघ न न ालकर इतना समय बआ क पास बठ लगा यह सोचकर व डिफर पीछ की गली की और मड

- अम मा

- हा बडी अपन कमर म दरवाज क पास घटनो पर ठोढी ढ़िटकाए दोनो हाथ बाध गहर सोच म बठी थी जठ बट की बह का स वर सनकर तडपड ताजा हो गई हा इतनी दर क खोएपन न उसक दीन स वर म बडी करणा भर दी थी

बडी बह क चहर की ठसक को उनकी कमर क चारो और फली हई चबv सोह रही थी आवाज भी उसी तरह षटिमजाज क काट पर सधी हई थी व बोली - उन होन पछवाया ह डिक दादा आखिxखर चाहत क या ह

- वो तो कछ भी नही चाह ह बह

- तो य अनशन डिफर डिकस बात का हो रहा ह

पडित दवधर की सहधरमिमणी न स वर को और सयत कर उततर ढ़िदया - उनका सभाव तो तम जानो ही हो बहरिरया

य तो कोई जवाब नही हआ अम मा जान दग ऐसा हठ भी भला डिकस काम का बड डिवदवान ह भक त ह दडिनया भर को पन न और परोपकार लिसखात ह कतत म क या उसी भगवान की दी हई जान नही ह

बडी बह तज पडती गई सास चपचाप सनती रही

- य तो मा-बाप का धरम नाही हआ य दश मनी हई और क या घर म सब स बोलना-चालना तो बद कर ही रखा था

- बोलना चालना तो उनका सदा का ऐसा ही ह बटा तम लोग भी इतन बरसो स दखो हो भोला-डितरभअन तो सदा स जान ह

- इदर भाई साहब क यहा तो घल-घल क बात करत ह

- इदर पढा-लिलखा ह न वसी ही बातो म इनका मन लग हा इसम

- हा-हा हम तो सब गवार ह भरष ट ह हम पाडिपयो की तो छाया दखन स भी उनका धम नष ट होता ह

- बह बटा गस सा होन स कोई फायदा नही हम लोग तो सिचता म खड भए हग रानी तम सबको रखक उनक सामन चली जाऊ डिवश वनाथ बाबा स उठत-बठत आचल पसार क बरदान माग ह बटा अब मर कलज म दम नही रहा क या कर बआजी रो पडी

इदरदतत जरा दर स दालान म ढ़िठठक खड थ बआ हो रोत दख उनकी भावकता थम न सकी पकारा बआ

बआजी एक aण क लिलए ढ़िठठकी चट स आस पोछ आवाज सम हालकर षटिमठास क साथ बोली - आओ भया

भोला की बह न लिसर का पल ला जरा सम हाल लिलया और शराफती मस कान क साथ अपन जठ को हाथ जोड

इदरदतत न कमर म आकर बआजी क पर छए और पास की बठन लग बआजी हडबडाकर बोली - अर चारपाई पर बठो

- नही म सख स बठा ह आप क पास

- तो ठहरो म चटाई

बआजी उठी इदरदतत न उनका हाथ पकडकर बठा लिलया और डिफर भोला की बह को दखकर बोला - कसी हो सशीला मनोरमा कसी ह

- सब ठीक ह

- बच च

- अच छ ह भाभीजी और आप तो कभी झाकत ही नही इतन पास रहत ह और डिफर भी

- म सबकी राजी-खशी बराबर पछ लता ह रहा आना-जाना सो

- आपको तो खर टाइम नही षटिमला लडिकन भाभीजी भी नही आती बाल नही बच च नही कोई काम

- घर म मदद लगी ह ऐस म घर छोड क कस आई डिबचारी - बआजी न अपनी बह की बात काटी

- बह आख चढाकर याद आन का भाव जनात हए बोली - हा ठीक ह कौन-सा डिहस सा बनवा रह ह भाई साहब

- परा घर नए लिसर स बन रहा हगा ऐसा बढ़िढया डिक महल ल म ऐसा घर नही ह डिकसी का - सास न बह क वभव को लखि|त करन की दबी तडप क साथ कहा बआजी यो कहना नही चाहती थी पर जी की चोट अनायास फट पडी बडी बह न आख चमका अपनी दहरी ठोडी को गदन स लिचपकाकर अपन ऊपर पडनवाल परभाव को जतलाया और पछा - पर रहत तो शायद

- पीछवाल डिहस स म रहत ह

- इसी डिहस स म जीजी का मरा और भया का जनम भया एक भाई और भया था सब यही भए हमार बाप ताऊ दादा और जान कौन-कौन का जनम

- वो डिहस सा घर भर म सबस जयादा खराब ह कस रहत ह

- जहा परखो का जनम हआ वह जगह स वग स भी बढकर ह परख पथ वी क दवता ह बडी बह न आग कछ न कहा लिसर का पल ला डिफर सम हालन लगी

- आज तो बहत ढ़िदनो म आए भया म भी इतनी बार गई बह स तो भट हो जाव ह

बआ-भतीज को बात करत छोडकर बडी बह चली गई उसक जान क बाद दो aण मौन रहा उसक बाद दोनो ही परायः साथ-साथ बोलन को उदयत हए इदरदत त को कछ कहत दखकर बआजी चप हो गई

- सना फफाजी न

- उनकी सिचता न करो बटा वो डिकसी क मान ह

- पर इस तरह डिकतन ढ़िदन चलगा

- चलगा जिजतन ढ़िदन चलना होगा बआजी का स वर आसओ म बन-उतरान लगा - जो मर भाग म लिलखा होगा - आग कछ न कह सकी आस पोछन लगी

- सच-सच बताना बआजी तमन भी कछ खाया

- खाती ह रोज ही खाती ह - पल ल स आख ढक हए बोली इदरदत त को लगा डिक व झठ बोल रही ह

- तम इसी वt मर घर चलो बआजी फफा भी वस तो आएग ही पर आज म उन ह लकर ही जाऊगा नही तो आज स मरा भी अनशन आरभ होगा

- करो जो जिजसकी समझ म आए मरा डिकसी पर जोर नही बस नही - आखो म डिफर बाढ आ गई पल ला आखो पर ही रहा

- नही बआजी या तो आज स फफा का वरत टटगा

- कडिहए भाई साहब - कहत हए भोला न परवश डिकया मा को रोत दख उसक मन म कसाव आया मा न अपन दख का नाम-डिनशान षटिमटा दन का असफल परयत न डिकया परत उनक चहर पर पडी हई आतरिरक पीडा की छाया और आसओ स ताजा नहाई हई आख उनक पतर स लिछपी न रह सकी भोला की मख-मदरा कठोर हो गई मा की ओर स मह फरकर चारपाई पर अपना भारी भरकम शरीर परडितषटि^त करत हए उन होन अपन ममर भाई स पछा - घर बन गया आपका

- तयारी पर ही ह बरसात स पहल ही कपलीट हो जाएगा

- सना ह नकशा बहत अच छा बनवाया ह आपन इदरदत त न कोई उत तर न ढ़िदया

- म भी एक कोठी बनवान का इरादा कर रहा ह इस घर म अब गजर नही होती

इदरदत त खामोश रह भोला भी पल भर चप रह डिफर बोल - दादा का नया तमाशा दखा आपन आज कल तो व आपक यहा ही उठत बठत ह हम लोगो की खब-खब लिशकायत करत होग

तमको मझस जयादा जानना चाडिहए पर-निनदा और लिशकायत करन की आदत फफा जी म कभी नही रही - इदरदतत का स वर सयत रहन पर भी निकलिचत उततजिजत था

- न सही म आपस पछता ह इनसाफ कीजिजए आप यह कौन सा जञान ह डिक एक जीवन स इतनी नफरत की जाए और और खास अपन लडको और बहओ स पोत पोडितयो स नफरत की जाए यह डिकस शास तर म लिलखा ह जनाब बोलिलए - भोला की उततजना ऐस खली जस मोरी स ाट हटात ही हौदी का पानी गलत बहता ह

इदरदतत न शात दढ स वर म बात का उततर ढ़िदया - तम बात को गलत रग द रह हो भोला इस परकार यह डिवकट कहना चाडिहए की घरल समस याए कभी हल नही हो सकती

- म गलत रग क या द रहा ह जनाब सच कहता ह और इनसाफ की बात कहता ह ताली हमशा दोनो हाथो स बजा करती ह

- लडिकन तम एक ही हाथ स ताली बजा रह हो यानी धरती पर हाथ पीट-पीट कर

- क या म समझा नही

- तम अपन आप ही स लड रह हो और अपन को ही चोट पहचा रह हो भोला फफाजी क सब डिवचारो स सहमत होना जररी नही ह म भी उनक बहत स डिवचारो को जरा भी नही मान पाता डिफर भी व आदर क पातर ह

व हमारी डिपछली पीढी ह जिजनकी परडितडिकरयाओ पर डिकरयाशील होकर हमारा डिवकास हो रहा ह उनकी खाषटिमया तो तम खब दख लत हो दखनी भी चाडिहए मगर यह ध यान रह डिक खडिबयो की ओर स आख मदना हमार-तम हार लिलए सारी नई पी ढी क लिलए कवल हाडिनपरद ह और कछ नही

भोला न अपनी जब स सोन का लिसगरट कस डिनकाला और चहर पर आडी-डितरछी रखाए ालकर कहन लगा - म समझता था भाई साहब डिक आपन डिहस टरी-उस टरी पढकर बडी समझ पाई होगी - इतना कहकर भोला क चहर पर सतोष और गव का भाव आ गया परोफसर इदरदतत क पढ-लिलखपन को दो कौडी का साडिबत कर भोला सातव आसमान की बजv पर चढ गया - ढकोसला म ढकलनवाली ऐसी डिपछली पीढ़िढयो स हमारा दश और खासतौर स हमारी निहद ससाइटी बहत सफर कर चकी जनाब अब चालीस बरस पहल का जमाना भी नही रहा जो डिपताडिह दवा डिपताडिह धमा रटा-रटाकर य लोग अपनी धास गाठ ल म कहता ह आप परान ह बड डिनष ठावान हहोग अपनी डिनष ठा-डिवष ठा को अपन पास रगनिखए नया जमाना आप लोगो की तानाशाही को बरदाश त नही करगा

तम अगर डिकसी की तानाशाही को बरदाश त नही करोग तो तमहारी तानाशाही

- म क या करता ह जनाब

- तम अपन झठ सधारो का बोझ हर एक पर लादन क लिलए उतावल कयो रहत हो

- तम फफाजी को लिचढात हो भोला म आज साफ-साफ ही कहगा तम और डितरभवन दोनो - इदरदतत न सध स वर म कहा

- म यह सब बवकफी की सी बात सनन का आदी नही ह भाई साहब जनाब हमको गोश त अच छा लगता ह और हम खात ह और जरर खाएग दख आप हमारा क या कर लत ह

- म आपका कछ भी नही कर लगा भोलाशकरजी आप शौक स खाइए मर खयाल म फफाजी न भी इसका कोई डिवरोध नही डिकया वह नही खात उनक सस कार ऐस नही ह तो तम यह क यो चाहत हो डिक वह तम हारी बात मत मानन लग रहा यह डिक उन होन अपना चौका अलग कर लिलया या वह तम लोगो क कारण aब ध ह यह बात तानाशाही नही कही जा सकती उन ह बरा लगता ह बस

- म पछता ह क यो बरा लगता ह मरी भी बड-बड परोफसर और नामी आलिलम-फाजिजलो स ढ़िदन-रात की सोहबत ह आपक वद क जमान क बराहमण और मडिन तो गऊ तक को खा जात थ

भोला न गदन झटकाई उनक चहर का मास थल उठा उनकी लिसगरट जल गई इदरदतत बोल - ठीक ह व खात थ राम-कष ण अजन इदर बगरह भी खात थ पीत भी थ मगर यह कहन स तम उस सस कार को धो तो नही सकत जो समय क अनसार परिरवरतितत हआ और वष णव धम क साथ करीब-करीब राष टरव यापी भी हो गया

- हा तो डिफर दसरा सस कार भी राष टरव यापी हो रहा ह

- हो रहा ह ठीक ह

- तो डिफर दादा हमारा डिवरोध क यो करत ह

- भोला हम फफाजी का न याय नही कर सकत इसलिलए नही डिक हम अयोग य ह वरन इसलिलए डिक हमार न याय क अनसार चलन क लिलए उनक पास अब ढ़िदन नही रह आदत बदलन क लिलए आखिxखरी वt म अब उत साह भी नही रहता

- म पछता ह क यो नही रहता

- यह सरासर जयादती ह तम हारी वह बीता यग ह उस पर हमारा वश नही हमारा वश कवल वतमान और भडिवष य पर ही हो सकता ह डिवगत यग की मान यताओ को उस यग क लिलए हम जस का तसा ही स वीकार करना होगा पहल बात सन लो डिफर कछ कहना हा तो म कह रहा था डिक हम अपन परखो की खडिबया दखनी चाडिहए ताडिक हम उन ह लकर आग बढ सक उनकी खाषटिमयो को या सीमाओ को समझना चाडिहए जिजनस डिक हम आग बढकर अपनी नई सीमा स थाडिपत कर सक उनक ऊपर अपनी सधारवादी मनोवभितत को लादना घोर तानाशाही नही ह

- और वो जो करत ह वह तानाशाही नही ह

- अगर तानाशाही ह तो तम उसका जरर डिवरोध करो मगर नफरत स नही व तम हार अतयत डिनकट क सबधी ह तम हार डिपता ह इतनी शरदधा तम ह करनी होगी उन ह इतनी सहानभडित तम ह दनी ही होगी

इदरदत त बहत शात भाव स पालथी मारकर बठ हए बात कर रह थ

भोला क चहर पर कभी लिचढ और कभी लापरवाही-भरी अकड क साथ लिसगरट का धआ लहराता था इदरदत त की बात सनकर तमककर बोला - अ-अ-आप चाहत ह डिक हम गोश त खाना छोड द

- दोस त अच छा होता डिक तम अगर यह मास-मछली वगरह क अपन शौक कम स कम उनक और बआजी क जीवन-काल म घर स बाहर ही पर करत यह चोरी क लिलए नही उनक लिलहाज क लिलए करत तो परिरवार म और भी शोभा बढती खर झगडा इस बात पर तो ह नही झगडा तो तम हारी

- जलिलयट की वजह स ह वह उनक कमर म जाती ह या अभी हाल ही म उसन सरस वतीजी क मढ़िदर म बच च पदा डिकए तो तो आप एक बजबान जानवर स भी बदला लग जनाब यह आपकी इनसाडिनयत ह

- म कहता ह तमन उसको पाला ही क यो कम स कम मा-बाप का जरा-सा मान तो रखा होता

- इमस मान रखन की क या बात ह भाई साहब - भोला उठकर छोटी-सी जगह म तजी स अकडत हए टहलन लग चारपाई स कमर क एक कोन तक जाकर लौटत हए रककर कहा - हमारा शौक ह हमन डिकया और कोई बरा शौक तो ह नही साहब औरो क फादर-मदस होत ह तो लडको क शौक पर खश होत ह और एक हमारी डिकस मत ह डिक

- तम लिसफ अपनी ही खशी को दखत हो भोला तमन यह नही दखा डिक फफाजी डिकतन धय और सयम स तम लोगो की इन हरकतो को सहन करत ह

- खाक धल ह सयम ह हजारो तो गालिलया द ाली हम लोगो को

- और बदल म तमन उनक ऊपर कडितया छोड दी

- ऐसी ही बहत शदधता का घम ह तो अपनी तरफ दीवार उठवा ल हम जो हमार जी म आएगा करग और अब तो बढ-चढकर करग

- यह तो लडाई की बात हई समझौता नही हआ

- जी हा हम तो खलआम कहत ह डिक हमारा और दादा का समझौता नही हो सकता इस मामल म मरी और डितरभवन की राय एक ह मगर व हमार परोगरलिसव खयालात को नही दख सकत तो उनक लिलए हमार घर म कोई जगह नही ह

- भोला - बडी दर स गदन झकाए खामोश बठी हई मा न कापत स वर म और भीख का सा हाथ बढात हए कहा - बटा उनक आग ऐसी बात भल स भी न कह दना तम हार परो

- कहगा और हजार बार कहगा अब तो हमारी उनकी ठन गई वो हमार लडको-बच चो का पहनना-ओढना नही दख सकत हसता-खलना नही बदाश त कर सकत हम लोगो को बदाश त नही कर सकत तो म भी उनक धम को ठोकर मारता ह उनक ठाकर पोथी पराण सब मर जत की नोक पर ह

मा की आखो स बद टपक पडी उन होन अपना लिसर झका लिलया भोला की यह बदतमीजी इदरदतत को बरी तरह तडपा रही थी स वर ठा रखन का परयत न करत सनक भरी हसी हसत हए बोल - अगर तम हारी यही सब बात नए और परोगरलिसव डिवचारो का परडितडिनषटिधत व वाकई करती हो इसी स मनष य सलिशभिaत और फशनडिबल माना जाता हो म कहगा डिक भोला तम और तम हारी ही तरह का सारा-नया जमाना जगली ह बशकिक उनस भी गया-गजरा ह तम हारा नया जमाना न नया ह न पराना सभ यता सामतो पसवालो क खोलन जोम स बढकर कछ भी नही ह तम हार डिवचार इनसानो क नही हवानो क ह

इदरदतत स वाभाडिवक रप स उलिचत हो उठ

- खर आपको अपनी इनसाडिनयत मबारक रह हम डिहपोकरट लोगो को खब जानत ह और उन ह दर ही स नमस कार करत ह भोलाशकर तमककर खड हए तजी स बाहर चल दवारज पर पहचरकर मा स कहा - तम दादा को समझा दना अम मा म अनशन की ध मडिकयो स जरा भी नही रगा जान ही तो दग तो मर न मगर म उनको यहा नही मरन दगा जाए गगा डिकनार मर यहा उनक लिलए अब जगह नही ह

- पर यह घर अकला तम लोगो का ही नही ह

- खर यह तो हम कोट म दख लग अगर जररत पडी तो लडिकन मरा अब उनस कोई वास ता नही रहा

भोलाशकर चल गए बआजी चपचाप लिसर झकाए टप-टप आस बहाती रही इदरदतत उततजिजत मदरा म बठ थ जिजनक पास डिकसी वस त डिवशष का अभाव रहा हो उसक पास वह वस त थोडी-सी ही हो जाए तो बहत मालम पडती ह इदरदतत क लिलए इतना करोध और उततजना इसी तरह अषटिधक परतीत हो रही थी पल भर चप रहकर आवश म आ बआजी क हाथ पर हाथ रखत हए कहा - तम और फफाजी मर घर चलकर रहो बआ वह भी तो तम हारा ही घर ह

- तम अपन फफाजी स भोला की बातो का जिजकर न करना बटा

- नही

- तम अपन फफाजी का डिकसी तरह स यह बरत तडवा दो बटा तम ह बडा पन न होगा तम ह मरी आत मा उठत-बठत असीसगी मरा भया

- म इसी इराद स आया ह तम भी चलो बआ तम हारा चहरा कह रहा ह डिक तम भी

- अर मरी सिचता कया ह

- हा तम हारी सिचता नही सिचता तो तम ह और फफाजी को करनी ह मरी ओर स

- तम दोनो क भोजन कर लन तक म भी अपन परण स अटल रहगा

बआजी एक aण सिचता म पड गई डिफर मीठी वाणी म समझाकर कहा - दखो भया इदर मर लिलए जस भोला-डितरभवन वस तम जसा य घर वसा वो आज तम अपन फफाजी को डिकसी तरह जिजमा लो उनक बरत टटत की खबर सनत ही तम हारी कसम म आप ही ठाकरजी का भोग पा लगी लडिकन इसी घर म डिकसी क जी को कलस हो बटा ऐसी बात नही करनी चाडिहए क या कह तर फफाजी का करोध मरी कछ चलन नही दव ह अपन जी को कलस दव ह सो दव ह बाकी बच चो क जी को जो कलस लग ह उसक लिलए तो कहा ही क या जाए कलजग कलजग की तर स चलगा भया

इदरदतत कछ दर तक बआ क मन की घटन का खलना दखत रह

पडित दवधरजी भटट न डिनत य-डिनयम क अनसार झटपट समय अपन भतीज क आगन म परवश कर आवाज लगाई-इदरदतत

- आइए फफाजी

सकर टट सीलन-भरी लखौटी-ईटो पर खडाऊ की खट-खट चढती गई इदरदतत कटहर क पास खड थ जीन क दरवाज स बाहर आत हए पडित दवधर उन ह ढ़िदखलाई ढ़िदए उनक भस म लग कपास और दह पर पड ज लिशव छाप क दपटट म उनकी दह स एक आभा-सी फटती हई उन ह महसस हो रही थी फफाजी क आत ही घर बदल गया उन ह दखकर हर रोज ही महसस होता ह पर आज की बात तो न यारी ही थी

फफाजी क चार ढ़िदनो का वरत आज उनक व यलिtत व को इदरदतत की दषटिM म और भी अषटिधक तजोमय बना रहा था फफाजी को लकर आज उनका मन अतयत भावक हो रहा था पीडा पा रहा था इदरदतत न अनभव डिकया डिक फफाजी क चहर पर डिकसी परकार की उततजना नही भख की थकान नही चहरा सखा कछ उतरा हआ अवश य था परत मख की चष टा नही डिबगडी थी पडित दवधर की यह बात इदरदतत को बहत छ रही थी

पडित जी आकर चौकी पर बठ गए इदरदतत उनक सामन मढ पर बठ घर बनन क कारण उनका बठका उजड गया था अभ यागत क आन पर इदरदतत सकोच क साथ इसी टट कमर म उसका स वागत करत फफाजी स तो खर सकोच नही पख का रख उन होन उनकी ओर कर ढ़िदया और डिफर बठ गए कछ दर तक दोनो ओर स खामोशी रही डिफर फफाजी न बात उठाई - तम अभी घर गए थ सना

- जी हा

- तम हारी बआ मझस कह रही थी मन यह भी सना ह डिक तम मर कारण डिकसी परकार का बाल हठ करन की धमकी भी द आए हो

पडित दवधर न अपना दपटटा उतार कर कसv पर रख ढ़िदया पालथी मारकर व सीध तन हए बठ थ उनका परायः पीला पडा हआ गोरा बदन उनक बठन क सधाय क कारण ही शकिरिरचअल जच रहा था अन यथा उनका यह पीलापन उनकी रोगी अवस था का भी परिरचय द रहा था

इदरदत त न सध-सधकर कहना शर डिकया - मरा हठ स वततर नही बडो क हठ म योगदान ह

- इन बातो स कछ लाभ नही इदर मरी गडित क लिलए मर अपन डिनयम ह

- और मर अपन डिनयम भी तो हो सकत ह

- तम ह स वाधीनता ह

- तब मन भी यढ़िद अनशन का फसला डिकया ह तो गलत नही ह

- तम अपन परडित मर स नह पर बोझ लाद रह हो म आत मशजिदध क लिलए वरत कर रहा ह परखो क साधना-गह की जो यह दगडित हई ह यह मर ही डिकसी पाप क कारण अपन अतःकरण की गगा स मझ सरस वती का मढ़िदर धोना ही पडगा तम अपना आगरह लौटा लो बटा

एक षटिमनट क लिलए कमर म डिफर सन नाटा छा गया कवल पख की गज ही उस खामोशी म लहर उठा रही थी

इदरदत त न शात स वर म कहा - एक बात पछ मढ़िदर म कत त क परवश स यढ़िद भगवती अपडिवतर हो जाती ह तो डिफर घट-घट व यापी ईश वर की भावना डिबलकल झठी ह एक ईश वर पडिवतर और दसरा अपडिवतर क यो माना जाए

पडित दवधर चप बठ रह डिफर गभीर होकर कहा - निहद धम बडा गढ ह तम इस झगड म न पडो

- म इस झगड म न पडगा फफाजी पर एक बात सोचता ह भगवान राम अगर परम क वश म होकर शबरी क जठ बर खा सकत थ निहद लोग यढ़िद इस आख यान म डिवश वास रखत ह तो डिफर छत-अछत का कोई परश न ही नही रह जाता यषटिधषटि^र न अपन साथ-साथ चलनवाल कत त क डिबना स वग म जान तक स इनकार कर ढ़िदया था यह सब कहाडिनया क या निहद-धम की मडिहमा बखाननवाली नही ह क या यह महत भाव नही ह डिफर इनक डिवपरीत छआछत क भय स छईमई होनवाल गढ धम की मडिहमा को आप क यो मानत ह इन रढ़िढयो स बधकर मनष य क या अपन को छोटा नही कर लता

पडितजी शाडितपवक सनत रह इदरदत त को भय हआ डिक बरा न मान गए हो तरत बोल - म डिकसी हद तक उत तजिजत जरर ह लडिकन जो कछ पछ रहा ह जिजजञास क रप म ही

- ठीक ह - पडितजी बोल - हमार यहा आचार की बडी मडिहमा ह मनस मडित म आया ह डिक आचारः परथमो धमः जसा आचार होगा वस ही डिवचार भी होग तम शदधाचरण को बरा मानत हो

- जी नही

- तब मरा आचार क यो भरष ट करा रह हो

- ऐसा धष टता करन का डिवचार स वप न म भी मर मन म नही आ सकता हा आपस aमा मागत हए यह जरर कहगा डिक आपक आचार नए यग को डिवचार शलिt नही द पा रह ह इसलिलए उनका मल य मर लिलए कछ नही क बराबर ह म दरतिवनीत नही ह फफाजी परत सच-सच यह अनभव करता ह डिक दडिनया आग बढ रही ह और आपका दषटिMकोण व यथ क रोड की तरह उसकी गडित को अटकाता ह पर इस समय जान दीजिजए म तो यही डिनवदन करन घर गया था और यही मरा आगरह ह डिक आप भोजन कर ल

पडितजी मस कराए इदरदत त क मन म आशा जागी पडितजी बोल - करगा एक शत पर

- आजञा कीजिजए

- जो मर अथात परानी परिरपाटी क यम डिनयम सयम आढ़िद ह व आज स तम ह भी डिनभान पडग जिजनका मल य तम हारी दषटिM म कछ नही ह व आचार-डिवचार मर लिलए पराणो स भी अषटिधक मल यवान ह

इदरदत त सतभिभत रह गए व कभी सोच भी नही सकत थ डिक फफाजी सहसा अनहोनी शत स उन ह बाधन का परयत न करग पछा - कब तक डिनभाना पडगा

- आजीवन

इदरदत त निककतव यडिवमढ हो गए जिजन डिनयमो म उनकी आस था नही जो चीज उनक डिवचारो क अनसार मनष य को अधडिवश वासो स जकड दती ह और जो भारतीय सस कडित का कलक ह उनस उनका परबदध मन भला क यो कर बध सकता ह हा कह तो कस कह उन होन इस वरत डिनयम बलिलदान चमत कार और षटिमथ या डिवश वासो स भर निहद धम को समाज पर घोर अत याचार करत दखा ह अपन-आपको तरह-तरह स परपीडिडत कर धारमिमक कहलानवाला व यलिt इस दश को रसातल म ल गया इस कठोर जीवन को साधनवाल शदधाचरणी बराहमण धम न इस दश की सतरिसतरयो और हीन कहलानवाली जाडितयो को सढ़िदयो तक दासता की चक की म बरी तरह पीसा ह और अब भी बहत काफी हद तक पीस रहा ह हो सकता डिक मनष य की चतना क उगत यग म इस शदध कहलानवाल आचार न अधकार म उन नत डिवचारो की ज योडित जगाई हो पर अब तो सढ़िदयो स इसी झठ धम न औसत भारतवासी को दास अधडिवश वासी और असीम रप स अत याचारो को सहन करनवाला झठी दवीशलिtयो पर यानी अपनी ही धोखा दनवाली लभावनी असभव कल पनाओ पर डिवश वास करनवाला झठा भाग यवादी बनाकर दश की कमर तोड रखी ह इसन औसत भारतवासी स आत मडिवश वास छीन लिलया ह इस जडता क खिxखलाफ उपडिनषद जाग मानवधम जागा योग का जञान जागा बौदध भागवतधम जागा मध यकाल का सत आदोलन उठा और आज क वजञाडिनक यग न तो इस एकदम डिनस सार लिसदध कर सदा क लिलए इसकी कबर ही खोद दी ह यह जड धम कभी भारत को महान नही बना सका होगा भारत की महानता उसक कमयोग म ह उसक व यापक मानवीय दषटिMकोण म ह व यास-वाल मीडिक आढ़िद क परम उदार भावो म ह पराचीन भारत क दशन न याय वशडिषक साडिहत य लिशल प सगीत आढ़िद इस जड धम की उपज हरडिगज नही हो सकत डिफर भी यह जडता भारत पर अस स भत की तरह छाई हई ह इसी स घणा करन क कारण आज का नया भारतीय डिबना जाच-पडताल डिकए अपनी सारी परपराओ स घणा करत हए लिसदधातहीन आस थाहीन और डिनसतरिकरय हो गया ह नही व फफाजी का धम हरडिगज न डिनभा सक ग हरडिगज नही हरडिगज नही पर व भोजन कस करग बआजी कस और कब तक भोजन करगी कसी डिवबना ह दो मनष यो की मौत की नडितक जिजम मदारी उनक ऊपर आएगी

पडित दवधर न उन ह मौन दखकर पछा-कहो भोजन कराओग मझ

- जीम धम-सकट म पड गया ह

- स पष ट कहो मरा धम गरहण करोग

फफाजी आप बहत माग रह ह मरा डिवश वास माग रह ह म आपक धम को यग का धम नही मानता अपना नही मानता

म तम हारी स पष टवाढ़िदता स परसन न ह तम धारमिमक हो इसी तरह अपन स मझको पहचानो म भी अपना धम नही छोड सकता यदयडिप तम हार सत सग स मन इतन ढ़िदनो म यह समझ लिलया ह डिक मरा यग मरा धम अब सदा क लिलए लोप हो रहा ह डिफर भी अडितम सास तक तो हरडिगज नही मरी आस था तपःपत ह तम हारा कल याण हो सखी हो बटा अच छा तो अब चल -

परत मरा अनशन का डिनश चय अडिग ह फफाजी म आपक चरण छकर कह रहा ह

पर छोड दो बट इन परो स पहल ही जडता समा चकी ह और अब तो जीव क साथ ही षटिमटगी अन यथा नही खर कल डिवचार करना अपन अनशन पर

अडितम वाक य पडितजी न इस तरह कहा डिक इदरदतत को करारा झटका लगा पर व मौन रहन पर डिववश थ पडित दवधर चलन लग इदरदतत क मन म भयकर तफान उठ रहा था व हार गए बआजी को क या उततर दग इस अगडित का अत कया होगा क या व फफाजी की बात मान ल कस मान ल यह ठीक ह डिक फफाजी अपन धम पर डिकस परकार एकडिनष ठ ह यह ए कडिनष ठता उन ह बहद परभाडिवत करती ह डिफर भी उनक धम को वह क यो कर स वीकार कर

पडित दवधरजी जीन पर पहचकर रक इदरदतत उनक पीछ-पीछ चल रह थ पडितजी घमकर बोल - तम हारी मान यताओ म मरी आस था नही ह इदर डिफर भी म उसक वास तडिवक पa को कछ-कछ दख अवश य पा रहा ह एक बात और स पष ट करना चाहता ह तम भोला डितरभवन क धम को आज का या डिकसी भी यग का वास तडिवक धम मानत हो

- जी नही उनका कोई धम ही नही ह

- तम हारा कल याण हो बट धन मद स जन म इस खोखल धम स सदा लडना जस म लडा तम अपन मत क अनसार लडो पर लडो अवश य यह आस थाहीन दभ भरा अदाशडिनक अधारमिमक जीवन लोक क लिलए अकल याणकारी ह बोलो वचन दत हो

म आपको अपना डिवश वास दता ह - कहकर इदरजीत न फफाजी क चरण छ लिलए खडाऊ की खट-खट जीन स उतर गई आगन पार डिकया दर चली इदरदतत आकर कट पड स अपन पलग पर डिगर गए

नया यग परान यग स स वच छा स डिवदा हो रहा था पर डिवदा होत समय डिकतना परबल मोह था और डिकतना डिनमम व यवहार भी

धम सकट अमतलाल नागर

शाम का समय था हम लोग परदश दश और डिवश व की राजनीडित पर लबी चचा करन क बाद उस डिवषय स ऊब चक थ चाय बड मौक स आई लडिकन उस ताजगी का सख हम ठीक तरह स उठा भी न पाए थ डिक नौकर न आकर एक सादा बद लिलफाफा मर हाथ म रख ढ़िदया मन खोलकर दखा सामनवाल पडोसी रायबहादर डिगराजडिकशन (डिगरिरराज कष ण) का पतर था कापत हाथो अनषटिमल अaरो और टढी पलिtयो म लिलखा था

माई डियर परताप

मन फल ली को आदश द रक खा ह डिक मरी मत य क बाद यह पतर तम ह फौरन पहचाया जाए तम मर अभिभन न षटिमतर क पतर हो रमश स अषटिधक सदा आजञाकारी रह हो मरी डिनम नलिलगनिखत तीन अडितम इच छाओ को परा करना -

1 रमश को तरत सचना दना मरी आत मा को तभी शाडित षटिमलगी जब उसक हाथो मर अडितम सस कार होग मन उसक साथ अनयाय डिकया ह

2 फल ली को मन पाच हजार रपय ढ़िदए ह और पाच-पाच सौ रपय बाकी चारो नौकरो को नोट मर तडिकए म रई की परत क अदर ह उसी म वसीयत और डितजोरी की चाभी भी ह घर म डिकसी को यह रहस य नही मालम तडिकया अब फौरन अपन कबज म कर लना घर क भार-घर और सदको की चाभिभया डितजोरी म ह रमश क आन पर पाच पचो क सामन उस सौप दना

3 मन अपनी वसीयत म यह शत रक खी ह डिक मरी पत नी अगर मझ माफ कर द और गलत ही सही मगर जो पडितवरत उस पर आन पडा ह उस साधकर रमश को छोडकर बाइज जत यहा रह तो यह मकान और दस हजार रपया उस ढ़िदया जाए लडिकन यह काम उसी हालत म होना चाडिहए जबडिक हम और तम हार दवारा डिनयक त महल ल क चार भल आदमी मरी पत नी की सच चरिरतरता क सबध म आवश स त हो जाए

पतर पर छह रोज पहल की तारीख पडी थी मझ यह समझन म दर न लगी डिक रायबहादर साहब गत हो चक ह पतर मन बड बाब क सामन मज पर रखा ढ़िदया इजीडिनयर साहब और परोफसर साहब भी झककर पढन लग

चाय बमजा हो गई हम सभी उठकर रायबहादर साहब क यहा गए उनका रोबीला चहरा रोग और मानलिसक सिचताओ स जजर होकर मत य क बाद भी उनक अडितम ढ़िदनो क असीम कष टो का परिरचय द रहा था मत रायबहादर क चहर को दखत हए उनक साथ बीत इतन वष की स मडितया मर मन म जाग उठी

रायबहादर बाब डिगराजडिकशन बीए उन निहदस ताडिनयो म स थ जिजन ह तकदीर की चक क कारण इeल म जनम नही षटिमल पाया था उनका रग भी गोरा न था बशकिक गहए स काल की ओर ही अषटिधक झकता हआ था डिफर भरसक उन होन अपन-आपको अगरजनमा ही बनाए रक खा गरीब निहदसताडिनयो पर अकड ढ़िदखान म व सदा अगरजो स चार जत आग रह कई निहदीवाढ़िदयो न उनस शदध नाम डिगरिरराजकष ण रखन को कहा मगर व उन ह मख बतलाकर डिगराज ही बन रह रायबहादर डिगराजडिकशन क नाम क साथ बीए जोडना भी डिनतात आवश यक था सन 23 म रायबहादर डिगराज अपनी डिबरादरी क रायसाहब दीनानाथ की बदौलत इलाहाबाद म छोट लाट क दफतर म भरती हए थ अपनी अगरजपरस ती और हाईक लास खशामद क दम पर रामबहादर ऊची करसिसयो पर चढ बठ स वराज य होन पर आतरिरक कष ट भोगन क बावजद तीन वष तक स वराजी अफसरो नताओ और मडितरयो की भी बाअदब खशामद की डिगराज बाब इन लोगो क सामन जिजस परकार खद दम डिहलात उसी परकार अपन सामन अपन मातहतो की भी डिहलवात थ आजादी क बाद भी दफतर म अपना भला चाहनवाला कोई बाब उनक आग निहदी का एक शब द नही बोल सकता था और घर क लिलए भी यही मशहर था डिक रायबहादर की भस तक अगरजी म ही कारती अगर कोई कसर थी तो सही डिक ली डिगराज क वास त अगरजी का करिरया अaर भी भस बराबर ही था

रायबहादर डिगराज पहली लडाई क जमान क मॉन आदमी थ सबह आख खलत ही घटी बजात सफद कोट पतलन और साफ स लस फल ली आया का लडका घसीट छोटी हाजिजरी लकर हाजिजर होता ठीक आठ बज बडी हाजिजरी पर बठत बटी-बटा साथ होत पर ल ी डिगराज अा-डिबस कट-समाज म कभी न बठी परम कटटर छत-पाकवाली न होत हए भी मास-मछली स उन ह परहज था बशीरत चपरासी क बाप मन न बावचv को हफत म दो ढ़िदन डयटी दनी पडती थी घर क डिनचल डिहस स म डिवलायती रसोई थी एक तरह स कहना चाडिहए डिक नीच का परा घर ही डिवलायती था वहा ल ी डिगराज क बजाय फल ली आया का सामराज य था फल ली पहल अगरजी कोढ़िठयो म काम करती थी अगरजी ढग स निहदस थानी बोलती ह अगरजी घर क कायद जानती ह छोटी-बडी हाजिजरी लच डिनर चाय सबका समय साधती थी इसलिलए डिगराज बाब क बाब डिनयम स दो पग खान स पहल चसडिकयो म मयादा करत थ फली उसका इतजाम भी बखबी कर दती थी इसलिलए आमतौर पर मजाक-मजाक म ही मशहर हो गया था डिक रायबहादर साहब स कोई काम करवान क वास त बजाय ली डिगराज क ल ी फल ली की लिसफारिरश जयादह परअसर होती ह

वस राजबहादर डिगराज म डिकसी न भी कोई ऐब की बात नही दखी-सनी थी अगर ऐब था तो यही डिक व मॉन थ चरट मह म लगाए बगर व बात नही कर पात थ अगर कोई निहदी सभा का चदा मागन आए तो उसस अकडकर कहत डिक मॉन जमान म गवार भाषाओ का उदधार करना डिहमाकत की बात ह धम क सबध म पहल तो व यह कहा करत थ डिक यह ढोग और पागलपन की वस त ह मगर बाद म उस इडियन कल चर का एक सनातन रप मानकर सहन कर जात थ डिगराज साहब थोडा-बहत लन-दन का काम करत थ और उसकी बदौलत उन होन हलिसयत भी बनाई अच छा मॉन ढग का मकान बनवाया उसका नाम ढ़िद नाइटिटगल रकखा मोटर खरीदी सदा दो-चार नौकर पाल घर स लकर दफतर तक घडी साधकर सबस डयटी करवाई पत नी को भी षटिमलन क वास त फल ली क दवारा उनस अप वाइटमट लना पडता था ली इसस जल-फक गई डिक म फल ली स भी गई-बीती हो गई

ली डिगराज न अपन फहडपन म उनक ऊपर एक बहत बडा लाछन लगा ढ़िदया रायबहादर साहब लिसदधाततः और स वभावतः अवध रिरश तो स नफरत करत थ इसलिलए अपनी पत नी क दवारा झठा लाछन लगाए जान क बाद डिफर उन होन कभी उनका मह न दखा बडी लडकी क डिववाह क अवसर पर उन होन कन यादान इसलिलए स वय न डिकया डिक उन ह पजा क पटर पर अपनी पत नी क साथ बठना पडता

इसक बाद दो वष म ली डिगराज घल-घलकर मर गई मगर मरी भी तो डिनयडित क साथ षडयतर करक ठीक इनक रिरटायर होन क ढ़िदन रायबहादर डिगराज को बहत लिशकायत हई अपन बट-बटी स कहा तम हारी मममी को कभी टाइम का सस नही रहा अगर मरना ही था तो कल सबह मरती परसो सबह मर सकती थी आज शाम को दफतर म मरी फयरवल पाट हो जान क बाद कभी मर सकती थी जिजदगी म एडरस पान का यह पहला मौका आया था सो इस तरह तबाहोबबाद कर ढ़िदया ईडियट कही की

इसक बाद मरनवाली तो खर मर ही चकी थी मगर जो भी मातम-परसी क लिलए मह डिबसरत हए आए उन ह भी रायबहादर साहब की ाट खानी पडी जो कहता डिक साहब सनकर बडा दख हआ उसस ही कहत आपको दख करन की जररत क या ह मझ कोई दख नही हआ जो आदमी पदा होता ह उन सबको एक साथ फौरन मर जाना चाडिहए जाइए मर यहा मातम-परसी क लिलए आन की जररत नही

छोटी लडकी की शादी उन होन पत नी की मत य क तीन महीन बाद पव डिनश चय क अनसार ही की स वय ब याहनवाली लडकी और उनक पतर को इसम आपभितत थी मगर उन होन डिकसी की एक न सनी कहा आई हव नो रिरगा फॉर योर मम मी शी वाज एक परफक ट फल लडकी की शादी बडी धमधाम स की एक आईसीएस क बट को अपना दामाद बनाया और बहत कछ दान-दहज दकर रिरटायर होन क बाद भी रोब जतलाया

लडका रमश तब एमए फाइनल म पढ रहा था नामी तज था सदा फस ट क लास रका रहा एमए क बाद आईएएस म बठनवाला था लडकीवाल अनक व यलिt रमश की माग करन क लिलए रायबहादर की सवा म आन लग रायबहादर डिगराज को अब मातहत क लक पर न सही तो ब टीवालो पर ही चरट का रोब झाडकर भरपर सतोष षटिमल जाता था दहज क मामल म व पक क मॉन थ यानी पच चीस हजार मागत थ एकाध डिपछल जानकार न दहाई दी डिक आप तो दहज क डिवरदध थ उसको परानी परथा बतलात थ तो बोल साहब जब मझ स बड अफसर आईसीएस आदमी यानी मर समधी साहब दहज लन को मॉन परथा मानत ह तो मन भी अपन डिवचार बदल ढ़िदए ह डिनहायत साइढ़िटडिफक बात ह डिक आपको दामाद चाडिहए और मझ 25 हजार रपया मरा रमश आईएएस पास करगा आप अपनी लडकी का फयचर दखकर अगर इतनी रक कम दना स वीकार करत ह तो बढ़िठए वरना मरी करसी की गददी मली मत डिकजिजए

व ऐसी लडकी चाहत थ जो सदर हो बीए हो गाती नाचती हो सीना-डिपरोना-बनना जानती हो अगरजी म फटाफट बात कर अफसर डिकसम क मॉन महमानो की खाडितर करन म तमीजदार हो और ऊपर स उसका बाप नगद पच चीस हजार रपय भी द जाए डिबरादरी क कई अच छी हलिसयतवाल बढ़िटयो क बापो क चहर रायबहादर डिगराज क चरट की अकड स धआ-छआ हो गए

एक ढ़िदन इनक दवारा नौकर रखाए गए परान मातहत एक सजातीय बाब दवीशकर पधार डिगराज की मडिहमाओ का बखान करत हए उन होन कहा सर म आपकी च वायस को जानता ह और एक लडकी मरी नजर म ह

इन बाब क साथ उन होन रीता को दखन का अवसर पाया रीता रायसाहब चमनलाल की इकलौती बटी थी रायसाहब चमनलाल न अपन जमान म बड ऐश बड नाम डिकए व शहर की तवायफो क सरताज थ रस क घोडो क सरपस त थ और बड ही औला-पौला आदमी थ अपन जीवन-काल म लाखो कमाए और लाखो फक एक लडकी हई उस बड लाड स पाला-पोसा पढाया हाई स कल तक रीता न परीaाओ तथा वाद-डिववाद और नत य-परडितयोडिगताओ म अनक परस कार पराप त कर अपन डिपता को सतष ट डिकया था रायसाहब डिवधर थ रीता की एक डिवधवा मौसी उनकी लडकी की दखभाल करन क लिलए उनक यहा रहती थी सो तब तरह स उनकी ही हो गई थी रायसाहब न आख मदकर अपना घर अपनी रभिaता साली को सौप रक खा था

बाद म रायसाहब चमनलाल की जन मकली क गरह-नaतर पहट बडा घाटा आया ढ़िदवालिलए होन की नौबत आ गई अपनी लडकी क वास त कछ रकम बचान की नीयत स उन होन एक बगला अपनी साली क नाम स खरीदा और लगभग एक लाख रपया नगद और जवरो क रप म बचाकर उसी क नाम स जमा करवा ढ़िदया डिफर रायसाहब ढ़िदवालिलए हो गए और जिजस ढ़िदन उन ह अपनी महलनमा कोठी सदा क लिलए छोडनी थी उस ढ़िदन उन होन गहर नश म अपनी कनपटी पर रिरवाल वर रखकर अपनी इहलीला समाप त कर दी रायसाहब की मत य क बाद मौसी सयानी हो गई और रीता अनाथ

लडकी दखन गए तो उसकी दो चोढ़िटयो म डित तलिलयो जस रिरबन दखकर रायबहादर साहब क पशन पराप त जीवन म नई रस की गलाबी आई अनक वष का सोया हआ मॉन पत नी का अभाव जाग उठा लडकी रीता बातचीत म तज आख नचान म बाकमल और हसन म डिबजली थी दखकर लौट तो रास त म दवीशकर स बोल लडकी तो अच छी ह और दहज का भी मझ कोई खास नही क योडिक तम तो जानत ही हो डिक म इन सब मामलो म बडा मॉन ह खाली एक परयोजन ह क - अ - क या नाम क आई मीन तम हारा क या खयाल ह दवीशकर अभी तो म भी शादी कर सकता ह

दवीशकर रायबहादर को घरत लग मह पर खशामद स हा क बजाय ना भला क यो कर कहत मौसी क लिलए इसस बढकर काई शभ सवाद न हो सकता था अठारह वष की आय की रीता छsपन वषvय रायबहादर डिगराजडिकशन की पत नी बनी

और इसक बाद की तमाम बात अपन करम म बढ गई रीता न परथम ढ़िदन स ही अपन पडित स कोई सबध न रकखा हठपवक अपन कमर क अदर बद रही रायबहादर रपय-पस गहनो और खशामदो की बडी-बडी नमायश लगाकर हार गए डिफर एक ढ़िदन फल ली न बतलाया डिक रमश और रीता रायबहादर दवारा स थाडिपत सबध को भलकर परस पर नया सबध स थाडिपत कर रह ह रायबहादर आग हो गए रमश तब एमए क अडितम वष म पढ रहा था डिपता न करोध म अध होकर उस पर परहार डिकया और घर स डिनकाल ढ़िदया रीता तब भी उनकी न हई

रमश को दो महीन बाद ही ढ़िदल ली म कोई नौकरी षटिमल गई और उसक महीन-भर बाद ही रीता रायबहादर क घर स गायब होकर ढ़िदल ली पहच गई जान स पव वह एक अलबला काम कर गई थी महल ल क पच चास घरो म हर पत पर उनका लिलखा पोस टका उसक गायब होन क दसर ही ढ़िदन पहली ाक स पहचा उसम मातर इतना ही लिलखा था बाब डिगरिरराजकष ण न मझ जबरदस ती अपनी पत नी बनाया था मगर मन उन ह कभी अपना पडित न माना और न अपना धम ही ढ़िदया डिववाह स पहल मझ बतलाया गया डिक म उनक पतर को ब याही जाऊगी तब स मन उनक पतर को ही अपना पडित माना इस घर म आकर भी उन ह ही भगवान की साaी म अपन को सौपा और अब म अपन पडित क पास ही जा रही ह

रीता क भागन स रायबहादर बाब डिगराजडिकशन को इतना कष ट नही पहचा था जिजतना डिक उसक दवारा भज गए इस सावजडिनक पतर स व दखी हए इसक बाद रायबहादर का जीवन बदल गया उनम पजा-पाठ और आशकिसतकता की भावना जागी साथ ही अकलापन भी हठ पकड गया डिपछल आठ वष म व एक ढ़िदन भी अपन घर स बाहर डिनकलकर कही न गए लन-दन का काम करत थ वह भी धीर-धीर समाप त कर ढ़िदया महल ल म डिकसी स भी सपक न रक खा डिपछल कछ ढ़िदनो स बीमार थ मगर महल लवाल उनकी हालत दखन-पछन भी न गए जात तो षटिमलत भी नही और अचानक मर पास अब यह पतर आया

हम सभी महल लवाल एकाएक यह डिनणय न कर पाए डिक इस खिसथडित म क या करना चाडिहए वदयजी और बड बाब इस पa म थ डिक पलिलस को सचना द दी जाए और इस पतर को लिलखी हई बातो का अमल भी कानन क हाथो ही हो परत म तो मत व यलिt की अडितम इच छा परी करन क पa म था रायबहादर कस भी रह हो इसी महल ल क थ कइयो को उन होन कभी नौकरिरया भी ढ़िदलाई थी उपकार डिकया था इजीडिनयर साहब भी मर ही मत क थ बाद म सभी राजी हो गए महल ल क एक षटिमतर क पास रमश क पतर आया करत थ उसी स पता लकर तार भजा गया जिजसम यह स पष ट लिलख ढ़िदया था डिक यढ़िद कल परातःकाल तक तम स वय अथवा तम हारा पतर उततर न आएगा तो रायबहादर की अत योषटिM डिकरया महल लवालो दवारा ही पचनाम स सपन न कर दी जाएगी

सबह चार बज तार का जवाब आया डिक रमश टक सी दवारा ढ़िदल ली स चल रहा ह और सबह तक पहच जाएगा परातःकाल करीब-करीब सभी महल लवाल रायबहादर क घर पर उ पखिसथत थ तभी टक सी दरवाज पर रकी रमश रीता और तीन बच च उतर रमश क मह पर तो सामाजिजक लज जा और सकोच की मलिलन छाया थी परत रीता का चहरा सतज और डिनरतिवकार था

रीता क आन का सवाद पाकर अनक सतरिसतरया कौतहलवश आ गई रीता न रायबहादर की लाश क पास अपनी चडिडया तोडी और माग का सिसदर पोछा रमश न डिपता का अडितम सस कार डिकया सतरिसतरया रीता स तरह-तरह क परश न करती थी परत वह कोई उततर न दती थी डिकरयाकम इत याढ़िद म रायबहादर क सजा तीय नात-रिरश तदार आढ़िद बहत कम आए बरहमभोज म गरीबी स एकदम टट हए बराहमण ही आए डिकसी परकार डिकरयाकम समाप त हआ रमश क वहा स चलन का समय आया

मन रायबहादर क अडितम पतर क अनसार सभरात महल लवालो क साथ रीता-रमश को बलाकर सबक सामन उनका वह अडितम पतर पढा और वह तडिकया जो महरबद पटी म मन रखवा ढ़िदया था खलवाया फल ली और नौकरो को रायबहादर की इच छानसार रपय द ढ़िदए गए रायबहादर की अडितम माग पर रीता का डिनणय सनन क लिलए हम सभी उत सक बठ थ रीता बोली म धम और ईश वर क सम मख सचचरिरतर ह मन अपन तन-मन स उन ह सदा ससर ही माना धारमिमक कानन की जिजस मजबरी स उन होन मझ अपनी पत नी बनाया था उस मन डिवषटिधवत उनकी लाश को सौप भी ढ़िदया उनकी चडिडया उनका सिसदर उन ह सौपा लडिकन मरी चडिडया मरा सिसदर अaय ह कहकर उसन दर स अपन हाथ क नीच दबी हई रमाल की पोटली को उठाया उसम हरी चडिडया थी और एक चादी की डिडिबया थी चडिडया पहनी और डिबीया खोलकर रमश की और रखत हए बोली जिजन होन मरी गोद भरी ह उन होन मरी माग भी भरी ह - लीजिजए मरी माग भर दीजिजए

रमश न रीता की माग म सिसदर की रखा खीच दी डिफर रीता बोली घर क सबध म मझ कवल यही कहना ह डिक अगर आप पाच पच मझ दश चरिरतर मानत हो तो उस धमशाला बना दीजिजए

हमम स कोई खम ठोककर एकाएक यह नही कह पाया डिक रीता दश चरिरतर ह मन अनभव डिकया डिक सभी क मनो को इस परश न स धक का लगा था अपन परपरागत धारमिमक सामाजिजक सस कारो क कारण हम रीता को सचरिरतरा मानन स भी मन ही मन डिहचकत थ पर यो क या कह

रीता हमारी डिहचक पर एक बार कहकर उठ गई उसन कहा मझ रायबहादर साहब का घर और दस हजार रपय पान की इच छा नही मर पडित न मझ सहाग की छाव द रक खी ह लडिकन म आपक सामन कसौटी रखती ह - बोलिलए घर डिकसका ह

घर को छोडकर बाकी सब सामान क साथ रमश रीता और उनक बच च ढ़िदल ली चल गए हम अभी तक कोई डिनणय नही कर पाए घर की चाभी मर पास ह वह तोल ढ का लोह का टकडा इस समय मर मन-पराणो का बोझ बना हआ ह

(1961 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

परायभित अमतलाल नागर

जीवन वाढ़िटका का वसत डिवचारो का अधड भलो का पवत और ठोकरो का समह ह यौवन इसी अवसथा म मनय तयागी सदाचारी दश-भt एव समाज-भt भी बनत ह तथा अपन खन क जोश म वह काम कर ढ़िदखात ह जिजसस डिक उनका नाम ससार क इडितहास म सवणाaरो म लिलख ढ़िदया जाता ह तथा इसी आय म मनय डिवलासी

लोलपी और वयभिभचारी भी बन जाता ह और इस परकार अपन जीवन को दो कौडी का बनाकर पतन क खडड म डिगर जाता ह अत म पछताता ह परायभित करता ह परत परतयचा स डिनकाला हआ बाण डिफर वापस नही लौटता खोई हई सचची शाडित डिफर कही नही षटिमलती

मभिणधर सदर यवक था उसक पस (जब) म पसा था और पास म था नवीन उमगो स परिरत हदय वह भोला-भाला सशील यवक था बचारा सीध माग पर जा रहा था यारो न भटका ढ़िदया - दीन को पथ-हीन कर ढ़िदया उस डिनतय-परडित कोठो की सर कराई नई-नई परिरयो की बाकी झाकी ढ़िदखाई उसक उचचडिवचारो का उसकी महतवकाaाओ का अतयत डिनदयता क साथ गला घोट ाला गया बनावटी रप क बाजार न बचार मभिणधर को भरमा ढ़िदया डिपता स पसा मागता था वह अनाथालयो म चदा दन क बहान और उस आख बद कर बहाता था गदी नालिलयो म पाप की सरिरता म घभिणत वnयालयो म

ऐसी डिनराली थी उसकी लीला पडित जी वदध थ अनक कनयाओ क लिशaक थ वातसय परम क अवतार थ डिकसी भी बालिलका क घर खाली हाथ न जात थ षटिमठाई फल डिकताब नोटबक आढ़िद कछ न कछ ल कर ही जात थ तथा डिनतयपरडित पाठ सनकर परतयक को पारिरतोडिषक परदान करत थ बालिलकाए भी उनस अतयत डिहल-षटिमल गई थी उनक सरaकगण भी पडित जी की वातसयता दख गदगद हो जात थ घरवालो क बाद पडित जी ही अपनी छातराओ क डिनरीaक थ सरaक थ बालिलकाए इनक घर जाती हारमोडिनयम बजाती गाती हसती खलती कदती थी पडितजी इसस गदगद हो जात थ तथा बाहरवालो स परमाशर ढरकात हआ कहा करत इनही लडडिकयो क कारण मरा बढापा कटता चला जा रहा ह अनयथा अकल तो इस ससार म मरा एक ढ़िदवस भी काटना भारी पड जाता समसत ससार पडितजी की एक मह स परशसा करता था

बाहरवालो को इस परकार ठाट ढ़िदखाकर पडितजी दसर ही परकार का खल खला करत थ वह अपनी नवयौवना सदर छातराओ को अनय डिवषयो क साथ-साथ परम का पाठ भी पढाया करत थ परत वह परम डिवशदध परम नही वरन परम की आड म भोगलिलsसा की लिशaा थी सतीतव डिवकरय का पाठ था काम-वासना का पाठ पढाकर भोली-भाली बालिलकाओ का जीवन नM कराकर दलाली खान की चाल थी टटटी की आड म लिशकार खला जाता था पडितजी क आस-पास यडिनवरसिसटी तथा कालज क छातर इस परकार भिभनभिभनाया करत थ जिजस परकार डिक गड क आस पास मखिकखया डिवलिचतर थ पडितजी और अदभत थी उनकी माया

रायबहादर ॉ शकरलाल अगनिeनहोतरी का सथान समाज म बहत ऊचा था सभा-सोसाइटी क हाडिकम-हककाम म आदर की दषटिM स दख जात थ वह उनक थी एक कनया - मtा वह हजारो म एक थी - सदरता और सशीलता दोनो म दभाeयवश वदध पडितजी उस पढान क लिलए डिनयt डिकए गए भोली-भाली बालिलका अपन आदश को भलन लगी पडित जी न उसक डिनमल हदय म अपन कखितसत महामतर का बीजारोपण कर ढ़िदया था अनय यवती छातराओ की भाडित मtा भी पडित जी क यहा हारमोडिनयम सीखन जान लगी

पडितजी मtा क रप लावणय को डिकराए पर उठान क लिलए कोई मनचला पस वाला ढढन लग अत म मभिणधर को आपन अपना पातर चन लिलया नई-नई कलिलयो की खोज म भटकन वाला षटिमसिलद इस अपव कली का मदपान करन क लिलए आकलिलत हो उठा इस अवसर पर पडितजी की मटठी गम हो गई दसर ही ढ़िदवस मभिणधर को पडित जी क यहा जाना था वह सधया अतयत ही रमणीक थी मभिण न उस बडी परतीaा करन क पात पाया था आज वह अतयत परसनन था आज उस पडितजी क यहा जाना था वह लब-लब पग रखता हआ चला जा रहा था पडितजी क पापालय की ओर आज उस रपयो की वदी पर वासना-दवी को परसनन करन क लिलए बलिल चढानी थी

मtा पडितजी क यहा बठी हारमोडिनयम पर उगलिलया नचा रही थी और पडितजी उस पलडिकत नतरो स डिनहार रह थ वह बाजा बजान म वयसत थी साहसा मभिणधर क आ जान स हारमोडिनयम बद हो गया लजीली मtा कसv छोडकर एक ओर खडी हो गई पडितजी न डिकतना ही समझाया बटी इनस ल|ा न कर यह तो अपन ही ह जा बजा बाजा बजा अभयागत स|न क सवागत म एक गीत गा परत मtा को अभी ल|ा न न छोडा था वह अपन सथान पर अडिवचल खडी थी उसक सकोमल मनोहारी गाल ल|ावश अगरी की भाडित लाल हो रह थ

अलक आ-आकर उसका एक मधर चबन लन की चMा कर रही थी मभिणधर उस पर मर षटिमटा था वह उस समय बाहय ससार म नही रह गया था यह सब दख पडितजी गनिखसक गए अब उस परको^ म कवल दो ही थ

मभिणधर न मtा का हाथ पकडकर कहा आइए खडी कयो ह मर समीप बठ जाइए मभिणधर धM होता चला जा रहा था मtा जिझझक रही थी परत डिफर भी मौन थी मभिणधर न कहा - कया पडितजी न इस परकार आडितथय सतकार करना लिसखलाया ह डिक घर पर कोई पाहन आव और घरवाला चपचाप खडा रह शभ मर समीप बठ जाइए परम की डिवदयत कला दोनो क शरीर म परवश कर चकी थी मtा इस बार कछ न बोली वह मतर-मeध-सी मभिण क पीछ-पीछ चली आई तथा उसस कछ हटकर पलग पर बठ गई आपका शभ नाम मभिण न जरा मtा क डिनकट आत हए कहा मtा लजीली मtा न धीम सवर म कहा

बातो का परवाह बढा धीर-धीर समसत डिहचक जाती रही और और थोडी दर क पात मtा नीरस हो गई उसकी आब उतर गई थी

डिहजाब नौ उरमा रहबर शौहर नबी मानद अगर मानद शब-मानद शब दीगर नबी मानद

डिहचक खल गई थी मभिण और मtा का परम करमशः बढन लगा था मभिण षटिमसिलद था पप पर उसका परम तभी ही ठहर सकता ह जब तक उसम मद ह परत मtा का परम डिनमल और डिनकलक था वह पाप की सरिरता को पडिवतर परम की गगा समझकर बरोक-टोक बहती ही चली जा रही थी अचानक ठोकर लगी उसक नतर खल गए एक ढ़िदन उसन तथा समसत ससार न दखा डिक वह गभ स थी

समाज म हलचल मच गई शकरलाल जी की नाक तो कट ही गई वह डिकसी को मह ढ़िदखान क योeय न रह गए थ - ऐसा ही लोगो का डिवचार था असत जाडित-डिबरादरी जटी पच-सरपच आए पचायत का काय आरभ हआ मtा क बयान लिलए गए उसन आसओ क बीच लिससडिकयो क साथ-साथ समाज क सामन सपण घटना आदयोपात सना ाली - पडितजी का उसक भोल-भाल सवचछ हदय म काम-वासना का बीजारोपण करना ततपात उसका मभिणधर स परिरचय कराना आढ़िद समसत घटना उसन सना ाली पडितजी न डिगडडिगडात अपनी सफाई पश की तथा मtा स अपनी वदधावसथा पर तरस खान की पराथना की परत मभिणधर शात भाव स बठा रहा

पचो न सलाह दी बढो न हा म हा षटिमला ढ़िदया सरपच महोदय न अपना डिनणय सना ाला सारा दोष मtा क माथ मढा गया वह जाडितचयत कर दी गई रायबहादर क डिपता की भी वही राय थी जो पचो की थी मभिणधर और पडितजी को सचचरिरतरता का सरटिटडिफकट द डिनदyenषी करार द ढ़िदया गया कवल अबला मtा ही दख की धधकती हई अगनिeन म झलसन क लिलए छोड दी गई अत म अतयत कातर भाव स डिनससहाय मtा न सरपच की दोहाई दी - उसक चरणो म डिगर पडी सरपच घबराए हाय भरMा न उनह श कर लिलया था करोषटिधत हो उनहोन उस गरभिभणी डिनससहाय आशरय-हीना यवती को धकक मार कर डिनकाल दन की अनमडित द दी उनकी आजञा का पालन करन क लिलए निहद समाज को वासतव म पतन क खडड म डिगरान वाल नरराaस खशामदी टटट पीर बवचv भिभसती खर की कहावत को चरिरताथ करन वाल इस कलक क सचच अपराधी पडितजी ततaण उठ उस धकका मारकर डिनकालन ही वाल थ - अचानक आवाज आई - ठहरो अनयाय की सीमा भी परिरषटिमत होती ह तम लोगो न उसका भी उलघन कर ाला ह लोगो न नतर घमाकर दखा तो मभिणधर उततजिजत हो डिनल भाव स खडा कह रहा था निहद समाज अधा ह अतयाचारी ह एव उसक सवसवा अथात हमार माननीय पचगण अनपढ ह गवार ह और मख ह जिजनह खर एव खोट सतय और असतय की परख नही वह कया तो नयाय कर सकत ह और कया जाडित-उपकार इसका वासतडिवक अपराधी तो म ह इसका द तो मझ भोगना चाडिहए इस सशील बाला का सतीतव तो मन नM डिकया ह और मझस भी अषटिधक नीच ह यह बगला भगत बना हआ नीच पडित इस दराचारी न अपन सवाथ क लिलए न मालम डिकतनी बालाओ का जीवन नM कराया ह - उनह पथभरM कर ढ़िदया ह जिजस आदरणीय दषटिM स इस नीच को समाज म दखा जाता ह वासतव म यह नीच उसक योeय नही वरन यह नर पश ह लोलपी ह लपट ह सिसह की खाल ओढ हए तचछ गीदड ह - रगा लिसयार ह

सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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- हा बडी अपन कमर म दरवाज क पास घटनो पर ठोढी ढ़िटकाए दोनो हाथ बाध गहर सोच म बठी थी जठ बट की बह का स वर सनकर तडपड ताजा हो गई हा इतनी दर क खोएपन न उसक दीन स वर म बडी करणा भर दी थी

बडी बह क चहर की ठसक को उनकी कमर क चारो और फली हई चबv सोह रही थी आवाज भी उसी तरह षटिमजाज क काट पर सधी हई थी व बोली - उन होन पछवाया ह डिक दादा आखिxखर चाहत क या ह

- वो तो कछ भी नही चाह ह बह

- तो य अनशन डिफर डिकस बात का हो रहा ह

पडित दवधर की सहधरमिमणी न स वर को और सयत कर उततर ढ़िदया - उनका सभाव तो तम जानो ही हो बहरिरया

य तो कोई जवाब नही हआ अम मा जान दग ऐसा हठ भी भला डिकस काम का बड डिवदवान ह भक त ह दडिनया भर को पन न और परोपकार लिसखात ह कतत म क या उसी भगवान की दी हई जान नही ह

बडी बह तज पडती गई सास चपचाप सनती रही

- य तो मा-बाप का धरम नाही हआ य दश मनी हई और क या घर म सब स बोलना-चालना तो बद कर ही रखा था

- बोलना चालना तो उनका सदा का ऐसा ही ह बटा तम लोग भी इतन बरसो स दखो हो भोला-डितरभअन तो सदा स जान ह

- इदर भाई साहब क यहा तो घल-घल क बात करत ह

- इदर पढा-लिलखा ह न वसी ही बातो म इनका मन लग हा इसम

- हा-हा हम तो सब गवार ह भरष ट ह हम पाडिपयो की तो छाया दखन स भी उनका धम नष ट होता ह

- बह बटा गस सा होन स कोई फायदा नही हम लोग तो सिचता म खड भए हग रानी तम सबको रखक उनक सामन चली जाऊ डिवश वनाथ बाबा स उठत-बठत आचल पसार क बरदान माग ह बटा अब मर कलज म दम नही रहा क या कर बआजी रो पडी

इदरदतत जरा दर स दालान म ढ़िठठक खड थ बआ हो रोत दख उनकी भावकता थम न सकी पकारा बआ

बआजी एक aण क लिलए ढ़िठठकी चट स आस पोछ आवाज सम हालकर षटिमठास क साथ बोली - आओ भया

भोला की बह न लिसर का पल ला जरा सम हाल लिलया और शराफती मस कान क साथ अपन जठ को हाथ जोड

इदरदतत न कमर म आकर बआजी क पर छए और पास की बठन लग बआजी हडबडाकर बोली - अर चारपाई पर बठो

- नही म सख स बठा ह आप क पास

- तो ठहरो म चटाई

बआजी उठी इदरदतत न उनका हाथ पकडकर बठा लिलया और डिफर भोला की बह को दखकर बोला - कसी हो सशीला मनोरमा कसी ह

- सब ठीक ह

- बच च

- अच छ ह भाभीजी और आप तो कभी झाकत ही नही इतन पास रहत ह और डिफर भी

- म सबकी राजी-खशी बराबर पछ लता ह रहा आना-जाना सो

- आपको तो खर टाइम नही षटिमला लडिकन भाभीजी भी नही आती बाल नही बच च नही कोई काम

- घर म मदद लगी ह ऐस म घर छोड क कस आई डिबचारी - बआजी न अपनी बह की बात काटी

- बह आख चढाकर याद आन का भाव जनात हए बोली - हा ठीक ह कौन-सा डिहस सा बनवा रह ह भाई साहब

- परा घर नए लिसर स बन रहा हगा ऐसा बढ़िढया डिक महल ल म ऐसा घर नही ह डिकसी का - सास न बह क वभव को लखि|त करन की दबी तडप क साथ कहा बआजी यो कहना नही चाहती थी पर जी की चोट अनायास फट पडी बडी बह न आख चमका अपनी दहरी ठोडी को गदन स लिचपकाकर अपन ऊपर पडनवाल परभाव को जतलाया और पछा - पर रहत तो शायद

- पीछवाल डिहस स म रहत ह

- इसी डिहस स म जीजी का मरा और भया का जनम भया एक भाई और भया था सब यही भए हमार बाप ताऊ दादा और जान कौन-कौन का जनम

- वो डिहस सा घर भर म सबस जयादा खराब ह कस रहत ह

- जहा परखो का जनम हआ वह जगह स वग स भी बढकर ह परख पथ वी क दवता ह बडी बह न आग कछ न कहा लिसर का पल ला डिफर सम हालन लगी

- आज तो बहत ढ़िदनो म आए भया म भी इतनी बार गई बह स तो भट हो जाव ह

बआ-भतीज को बात करत छोडकर बडी बह चली गई उसक जान क बाद दो aण मौन रहा उसक बाद दोनो ही परायः साथ-साथ बोलन को उदयत हए इदरदत त को कछ कहत दखकर बआजी चप हो गई

- सना फफाजी न

- उनकी सिचता न करो बटा वो डिकसी क मान ह

- पर इस तरह डिकतन ढ़िदन चलगा

- चलगा जिजतन ढ़िदन चलना होगा बआजी का स वर आसओ म बन-उतरान लगा - जो मर भाग म लिलखा होगा - आग कछ न कह सकी आस पोछन लगी

- सच-सच बताना बआजी तमन भी कछ खाया

- खाती ह रोज ही खाती ह - पल ल स आख ढक हए बोली इदरदत त को लगा डिक व झठ बोल रही ह

- तम इसी वt मर घर चलो बआजी फफा भी वस तो आएग ही पर आज म उन ह लकर ही जाऊगा नही तो आज स मरा भी अनशन आरभ होगा

- करो जो जिजसकी समझ म आए मरा डिकसी पर जोर नही बस नही - आखो म डिफर बाढ आ गई पल ला आखो पर ही रहा

- नही बआजी या तो आज स फफा का वरत टटगा

- कडिहए भाई साहब - कहत हए भोला न परवश डिकया मा को रोत दख उसक मन म कसाव आया मा न अपन दख का नाम-डिनशान षटिमटा दन का असफल परयत न डिकया परत उनक चहर पर पडी हई आतरिरक पीडा की छाया और आसओ स ताजा नहाई हई आख उनक पतर स लिछपी न रह सकी भोला की मख-मदरा कठोर हो गई मा की ओर स मह फरकर चारपाई पर अपना भारी भरकम शरीर परडितषटि^त करत हए उन होन अपन ममर भाई स पछा - घर बन गया आपका

- तयारी पर ही ह बरसात स पहल ही कपलीट हो जाएगा

- सना ह नकशा बहत अच छा बनवाया ह आपन इदरदत त न कोई उत तर न ढ़िदया

- म भी एक कोठी बनवान का इरादा कर रहा ह इस घर म अब गजर नही होती

इदरदत त खामोश रह भोला भी पल भर चप रह डिफर बोल - दादा का नया तमाशा दखा आपन आज कल तो व आपक यहा ही उठत बठत ह हम लोगो की खब-खब लिशकायत करत होग

तमको मझस जयादा जानना चाडिहए पर-निनदा और लिशकायत करन की आदत फफा जी म कभी नही रही - इदरदतत का स वर सयत रहन पर भी निकलिचत उततजिजत था

- न सही म आपस पछता ह इनसाफ कीजिजए आप यह कौन सा जञान ह डिक एक जीवन स इतनी नफरत की जाए और और खास अपन लडको और बहओ स पोत पोडितयो स नफरत की जाए यह डिकस शास तर म लिलखा ह जनाब बोलिलए - भोला की उततजना ऐस खली जस मोरी स ाट हटात ही हौदी का पानी गलत बहता ह

इदरदतत न शात दढ स वर म बात का उततर ढ़िदया - तम बात को गलत रग द रह हो भोला इस परकार यह डिवकट कहना चाडिहए की घरल समस याए कभी हल नही हो सकती

- म गलत रग क या द रहा ह जनाब सच कहता ह और इनसाफ की बात कहता ह ताली हमशा दोनो हाथो स बजा करती ह

- लडिकन तम एक ही हाथ स ताली बजा रह हो यानी धरती पर हाथ पीट-पीट कर

- क या म समझा नही

- तम अपन आप ही स लड रह हो और अपन को ही चोट पहचा रह हो भोला फफाजी क सब डिवचारो स सहमत होना जररी नही ह म भी उनक बहत स डिवचारो को जरा भी नही मान पाता डिफर भी व आदर क पातर ह

व हमारी डिपछली पीढी ह जिजनकी परडितडिकरयाओ पर डिकरयाशील होकर हमारा डिवकास हो रहा ह उनकी खाषटिमया तो तम खब दख लत हो दखनी भी चाडिहए मगर यह ध यान रह डिक खडिबयो की ओर स आख मदना हमार-तम हार लिलए सारी नई पी ढी क लिलए कवल हाडिनपरद ह और कछ नही

भोला न अपनी जब स सोन का लिसगरट कस डिनकाला और चहर पर आडी-डितरछी रखाए ालकर कहन लगा - म समझता था भाई साहब डिक आपन डिहस टरी-उस टरी पढकर बडी समझ पाई होगी - इतना कहकर भोला क चहर पर सतोष और गव का भाव आ गया परोफसर इदरदतत क पढ-लिलखपन को दो कौडी का साडिबत कर भोला सातव आसमान की बजv पर चढ गया - ढकोसला म ढकलनवाली ऐसी डिपछली पीढ़िढयो स हमारा दश और खासतौर स हमारी निहद ससाइटी बहत सफर कर चकी जनाब अब चालीस बरस पहल का जमाना भी नही रहा जो डिपताडिह दवा डिपताडिह धमा रटा-रटाकर य लोग अपनी धास गाठ ल म कहता ह आप परान ह बड डिनष ठावान हहोग अपनी डिनष ठा-डिवष ठा को अपन पास रगनिखए नया जमाना आप लोगो की तानाशाही को बरदाश त नही करगा

तम अगर डिकसी की तानाशाही को बरदाश त नही करोग तो तमहारी तानाशाही

- म क या करता ह जनाब

- तम अपन झठ सधारो का बोझ हर एक पर लादन क लिलए उतावल कयो रहत हो

- तम फफाजी को लिचढात हो भोला म आज साफ-साफ ही कहगा तम और डितरभवन दोनो - इदरदतत न सध स वर म कहा

- म यह सब बवकफी की सी बात सनन का आदी नही ह भाई साहब जनाब हमको गोश त अच छा लगता ह और हम खात ह और जरर खाएग दख आप हमारा क या कर लत ह

- म आपका कछ भी नही कर लगा भोलाशकरजी आप शौक स खाइए मर खयाल म फफाजी न भी इसका कोई डिवरोध नही डिकया वह नही खात उनक सस कार ऐस नही ह तो तम यह क यो चाहत हो डिक वह तम हारी बात मत मानन लग रहा यह डिक उन होन अपना चौका अलग कर लिलया या वह तम लोगो क कारण aब ध ह यह बात तानाशाही नही कही जा सकती उन ह बरा लगता ह बस

- म पछता ह क यो बरा लगता ह मरी भी बड-बड परोफसर और नामी आलिलम-फाजिजलो स ढ़िदन-रात की सोहबत ह आपक वद क जमान क बराहमण और मडिन तो गऊ तक को खा जात थ

भोला न गदन झटकाई उनक चहर का मास थल उठा उनकी लिसगरट जल गई इदरदतत बोल - ठीक ह व खात थ राम-कष ण अजन इदर बगरह भी खात थ पीत भी थ मगर यह कहन स तम उस सस कार को धो तो नही सकत जो समय क अनसार परिरवरतितत हआ और वष णव धम क साथ करीब-करीब राष टरव यापी भी हो गया

- हा तो डिफर दसरा सस कार भी राष टरव यापी हो रहा ह

- हो रहा ह ठीक ह

- तो डिफर दादा हमारा डिवरोध क यो करत ह

- भोला हम फफाजी का न याय नही कर सकत इसलिलए नही डिक हम अयोग य ह वरन इसलिलए डिक हमार न याय क अनसार चलन क लिलए उनक पास अब ढ़िदन नही रह आदत बदलन क लिलए आखिxखरी वt म अब उत साह भी नही रहता

- म पछता ह क यो नही रहता

- यह सरासर जयादती ह तम हारी वह बीता यग ह उस पर हमारा वश नही हमारा वश कवल वतमान और भडिवष य पर ही हो सकता ह डिवगत यग की मान यताओ को उस यग क लिलए हम जस का तसा ही स वीकार करना होगा पहल बात सन लो डिफर कछ कहना हा तो म कह रहा था डिक हम अपन परखो की खडिबया दखनी चाडिहए ताडिक हम उन ह लकर आग बढ सक उनकी खाषटिमयो को या सीमाओ को समझना चाडिहए जिजनस डिक हम आग बढकर अपनी नई सीमा स थाडिपत कर सक उनक ऊपर अपनी सधारवादी मनोवभितत को लादना घोर तानाशाही नही ह

- और वो जो करत ह वह तानाशाही नही ह

- अगर तानाशाही ह तो तम उसका जरर डिवरोध करो मगर नफरत स नही व तम हार अतयत डिनकट क सबधी ह तम हार डिपता ह इतनी शरदधा तम ह करनी होगी उन ह इतनी सहानभडित तम ह दनी ही होगी

इदरदत त बहत शात भाव स पालथी मारकर बठ हए बात कर रह थ

भोला क चहर पर कभी लिचढ और कभी लापरवाही-भरी अकड क साथ लिसगरट का धआ लहराता था इदरदत त की बात सनकर तमककर बोला - अ-अ-आप चाहत ह डिक हम गोश त खाना छोड द

- दोस त अच छा होता डिक तम अगर यह मास-मछली वगरह क अपन शौक कम स कम उनक और बआजी क जीवन-काल म घर स बाहर ही पर करत यह चोरी क लिलए नही उनक लिलहाज क लिलए करत तो परिरवार म और भी शोभा बढती खर झगडा इस बात पर तो ह नही झगडा तो तम हारी

- जलिलयट की वजह स ह वह उनक कमर म जाती ह या अभी हाल ही म उसन सरस वतीजी क मढ़िदर म बच च पदा डिकए तो तो आप एक बजबान जानवर स भी बदला लग जनाब यह आपकी इनसाडिनयत ह

- म कहता ह तमन उसको पाला ही क यो कम स कम मा-बाप का जरा-सा मान तो रखा होता

- इमस मान रखन की क या बात ह भाई साहब - भोला उठकर छोटी-सी जगह म तजी स अकडत हए टहलन लग चारपाई स कमर क एक कोन तक जाकर लौटत हए रककर कहा - हमारा शौक ह हमन डिकया और कोई बरा शौक तो ह नही साहब औरो क फादर-मदस होत ह तो लडको क शौक पर खश होत ह और एक हमारी डिकस मत ह डिक

- तम लिसफ अपनी ही खशी को दखत हो भोला तमन यह नही दखा डिक फफाजी डिकतन धय और सयम स तम लोगो की इन हरकतो को सहन करत ह

- खाक धल ह सयम ह हजारो तो गालिलया द ाली हम लोगो को

- और बदल म तमन उनक ऊपर कडितया छोड दी

- ऐसी ही बहत शदधता का घम ह तो अपनी तरफ दीवार उठवा ल हम जो हमार जी म आएगा करग और अब तो बढ-चढकर करग

- यह तो लडाई की बात हई समझौता नही हआ

- जी हा हम तो खलआम कहत ह डिक हमारा और दादा का समझौता नही हो सकता इस मामल म मरी और डितरभवन की राय एक ह मगर व हमार परोगरलिसव खयालात को नही दख सकत तो उनक लिलए हमार घर म कोई जगह नही ह

- भोला - बडी दर स गदन झकाए खामोश बठी हई मा न कापत स वर म और भीख का सा हाथ बढात हए कहा - बटा उनक आग ऐसी बात भल स भी न कह दना तम हार परो

- कहगा और हजार बार कहगा अब तो हमारी उनकी ठन गई वो हमार लडको-बच चो का पहनना-ओढना नही दख सकत हसता-खलना नही बदाश त कर सकत हम लोगो को बदाश त नही कर सकत तो म भी उनक धम को ठोकर मारता ह उनक ठाकर पोथी पराण सब मर जत की नोक पर ह

मा की आखो स बद टपक पडी उन होन अपना लिसर झका लिलया भोला की यह बदतमीजी इदरदतत को बरी तरह तडपा रही थी स वर ठा रखन का परयत न करत सनक भरी हसी हसत हए बोल - अगर तम हारी यही सब बात नए और परोगरलिसव डिवचारो का परडितडिनषटिधत व वाकई करती हो इसी स मनष य सलिशभिaत और फशनडिबल माना जाता हो म कहगा डिक भोला तम और तम हारी ही तरह का सारा-नया जमाना जगली ह बशकिक उनस भी गया-गजरा ह तम हारा नया जमाना न नया ह न पराना सभ यता सामतो पसवालो क खोलन जोम स बढकर कछ भी नही ह तम हार डिवचार इनसानो क नही हवानो क ह

इदरदतत स वाभाडिवक रप स उलिचत हो उठ

- खर आपको अपनी इनसाडिनयत मबारक रह हम डिहपोकरट लोगो को खब जानत ह और उन ह दर ही स नमस कार करत ह भोलाशकर तमककर खड हए तजी स बाहर चल दवारज पर पहचरकर मा स कहा - तम दादा को समझा दना अम मा म अनशन की ध मडिकयो स जरा भी नही रगा जान ही तो दग तो मर न मगर म उनको यहा नही मरन दगा जाए गगा डिकनार मर यहा उनक लिलए अब जगह नही ह

- पर यह घर अकला तम लोगो का ही नही ह

- खर यह तो हम कोट म दख लग अगर जररत पडी तो लडिकन मरा अब उनस कोई वास ता नही रहा

भोलाशकर चल गए बआजी चपचाप लिसर झकाए टप-टप आस बहाती रही इदरदतत उततजिजत मदरा म बठ थ जिजनक पास डिकसी वस त डिवशष का अभाव रहा हो उसक पास वह वस त थोडी-सी ही हो जाए तो बहत मालम पडती ह इदरदतत क लिलए इतना करोध और उततजना इसी तरह अषटिधक परतीत हो रही थी पल भर चप रहकर आवश म आ बआजी क हाथ पर हाथ रखत हए कहा - तम और फफाजी मर घर चलकर रहो बआ वह भी तो तम हारा ही घर ह

- तम अपन फफाजी स भोला की बातो का जिजकर न करना बटा

- नही

- तम अपन फफाजी का डिकसी तरह स यह बरत तडवा दो बटा तम ह बडा पन न होगा तम ह मरी आत मा उठत-बठत असीसगी मरा भया

- म इसी इराद स आया ह तम भी चलो बआ तम हारा चहरा कह रहा ह डिक तम भी

- अर मरी सिचता कया ह

- हा तम हारी सिचता नही सिचता तो तम ह और फफाजी को करनी ह मरी ओर स

- तम दोनो क भोजन कर लन तक म भी अपन परण स अटल रहगा

बआजी एक aण सिचता म पड गई डिफर मीठी वाणी म समझाकर कहा - दखो भया इदर मर लिलए जस भोला-डितरभवन वस तम जसा य घर वसा वो आज तम अपन फफाजी को डिकसी तरह जिजमा लो उनक बरत टटत की खबर सनत ही तम हारी कसम म आप ही ठाकरजी का भोग पा लगी लडिकन इसी घर म डिकसी क जी को कलस हो बटा ऐसी बात नही करनी चाडिहए क या कह तर फफाजी का करोध मरी कछ चलन नही दव ह अपन जी को कलस दव ह सो दव ह बाकी बच चो क जी को जो कलस लग ह उसक लिलए तो कहा ही क या जाए कलजग कलजग की तर स चलगा भया

इदरदतत कछ दर तक बआ क मन की घटन का खलना दखत रह

पडित दवधरजी भटट न डिनत य-डिनयम क अनसार झटपट समय अपन भतीज क आगन म परवश कर आवाज लगाई-इदरदतत

- आइए फफाजी

सकर टट सीलन-भरी लखौटी-ईटो पर खडाऊ की खट-खट चढती गई इदरदतत कटहर क पास खड थ जीन क दरवाज स बाहर आत हए पडित दवधर उन ह ढ़िदखलाई ढ़िदए उनक भस म लग कपास और दह पर पड ज लिशव छाप क दपटट म उनकी दह स एक आभा-सी फटती हई उन ह महसस हो रही थी फफाजी क आत ही घर बदल गया उन ह दखकर हर रोज ही महसस होता ह पर आज की बात तो न यारी ही थी

फफाजी क चार ढ़िदनो का वरत आज उनक व यलिtत व को इदरदतत की दषटिM म और भी अषटिधक तजोमय बना रहा था फफाजी को लकर आज उनका मन अतयत भावक हो रहा था पीडा पा रहा था इदरदतत न अनभव डिकया डिक फफाजी क चहर पर डिकसी परकार की उततजना नही भख की थकान नही चहरा सखा कछ उतरा हआ अवश य था परत मख की चष टा नही डिबगडी थी पडित दवधर की यह बात इदरदतत को बहत छ रही थी

पडित जी आकर चौकी पर बठ गए इदरदतत उनक सामन मढ पर बठ घर बनन क कारण उनका बठका उजड गया था अभ यागत क आन पर इदरदतत सकोच क साथ इसी टट कमर म उसका स वागत करत फफाजी स तो खर सकोच नही पख का रख उन होन उनकी ओर कर ढ़िदया और डिफर बठ गए कछ दर तक दोनो ओर स खामोशी रही डिफर फफाजी न बात उठाई - तम अभी घर गए थ सना

- जी हा

- तम हारी बआ मझस कह रही थी मन यह भी सना ह डिक तम मर कारण डिकसी परकार का बाल हठ करन की धमकी भी द आए हो

पडित दवधर न अपना दपटटा उतार कर कसv पर रख ढ़िदया पालथी मारकर व सीध तन हए बठ थ उनका परायः पीला पडा हआ गोरा बदन उनक बठन क सधाय क कारण ही शकिरिरचअल जच रहा था अन यथा उनका यह पीलापन उनकी रोगी अवस था का भी परिरचय द रहा था

इदरदत त न सध-सधकर कहना शर डिकया - मरा हठ स वततर नही बडो क हठ म योगदान ह

- इन बातो स कछ लाभ नही इदर मरी गडित क लिलए मर अपन डिनयम ह

- और मर अपन डिनयम भी तो हो सकत ह

- तम ह स वाधीनता ह

- तब मन भी यढ़िद अनशन का फसला डिकया ह तो गलत नही ह

- तम अपन परडित मर स नह पर बोझ लाद रह हो म आत मशजिदध क लिलए वरत कर रहा ह परखो क साधना-गह की जो यह दगडित हई ह यह मर ही डिकसी पाप क कारण अपन अतःकरण की गगा स मझ सरस वती का मढ़िदर धोना ही पडगा तम अपना आगरह लौटा लो बटा

एक षटिमनट क लिलए कमर म डिफर सन नाटा छा गया कवल पख की गज ही उस खामोशी म लहर उठा रही थी

इदरदत त न शात स वर म कहा - एक बात पछ मढ़िदर म कत त क परवश स यढ़िद भगवती अपडिवतर हो जाती ह तो डिफर घट-घट व यापी ईश वर की भावना डिबलकल झठी ह एक ईश वर पडिवतर और दसरा अपडिवतर क यो माना जाए

पडित दवधर चप बठ रह डिफर गभीर होकर कहा - निहद धम बडा गढ ह तम इस झगड म न पडो

- म इस झगड म न पडगा फफाजी पर एक बात सोचता ह भगवान राम अगर परम क वश म होकर शबरी क जठ बर खा सकत थ निहद लोग यढ़िद इस आख यान म डिवश वास रखत ह तो डिफर छत-अछत का कोई परश न ही नही रह जाता यषटिधषटि^र न अपन साथ-साथ चलनवाल कत त क डिबना स वग म जान तक स इनकार कर ढ़िदया था यह सब कहाडिनया क या निहद-धम की मडिहमा बखाननवाली नही ह क या यह महत भाव नही ह डिफर इनक डिवपरीत छआछत क भय स छईमई होनवाल गढ धम की मडिहमा को आप क यो मानत ह इन रढ़िढयो स बधकर मनष य क या अपन को छोटा नही कर लता

पडितजी शाडितपवक सनत रह इदरदत त को भय हआ डिक बरा न मान गए हो तरत बोल - म डिकसी हद तक उत तजिजत जरर ह लडिकन जो कछ पछ रहा ह जिजजञास क रप म ही

- ठीक ह - पडितजी बोल - हमार यहा आचार की बडी मडिहमा ह मनस मडित म आया ह डिक आचारः परथमो धमः जसा आचार होगा वस ही डिवचार भी होग तम शदधाचरण को बरा मानत हो

- जी नही

- तब मरा आचार क यो भरष ट करा रह हो

- ऐसा धष टता करन का डिवचार स वप न म भी मर मन म नही आ सकता हा आपस aमा मागत हए यह जरर कहगा डिक आपक आचार नए यग को डिवचार शलिt नही द पा रह ह इसलिलए उनका मल य मर लिलए कछ नही क बराबर ह म दरतिवनीत नही ह फफाजी परत सच-सच यह अनभव करता ह डिक दडिनया आग बढ रही ह और आपका दषटिMकोण व यथ क रोड की तरह उसकी गडित को अटकाता ह पर इस समय जान दीजिजए म तो यही डिनवदन करन घर गया था और यही मरा आगरह ह डिक आप भोजन कर ल

पडितजी मस कराए इदरदत त क मन म आशा जागी पडितजी बोल - करगा एक शत पर

- आजञा कीजिजए

- जो मर अथात परानी परिरपाटी क यम डिनयम सयम आढ़िद ह व आज स तम ह भी डिनभान पडग जिजनका मल य तम हारी दषटिM म कछ नही ह व आचार-डिवचार मर लिलए पराणो स भी अषटिधक मल यवान ह

इदरदत त सतभिभत रह गए व कभी सोच भी नही सकत थ डिक फफाजी सहसा अनहोनी शत स उन ह बाधन का परयत न करग पछा - कब तक डिनभाना पडगा

- आजीवन

इदरदत त निककतव यडिवमढ हो गए जिजन डिनयमो म उनकी आस था नही जो चीज उनक डिवचारो क अनसार मनष य को अधडिवश वासो स जकड दती ह और जो भारतीय सस कडित का कलक ह उनस उनका परबदध मन भला क यो कर बध सकता ह हा कह तो कस कह उन होन इस वरत डिनयम बलिलदान चमत कार और षटिमथ या डिवश वासो स भर निहद धम को समाज पर घोर अत याचार करत दखा ह अपन-आपको तरह-तरह स परपीडिडत कर धारमिमक कहलानवाला व यलिt इस दश को रसातल म ल गया इस कठोर जीवन को साधनवाल शदधाचरणी बराहमण धम न इस दश की सतरिसतरयो और हीन कहलानवाली जाडितयो को सढ़िदयो तक दासता की चक की म बरी तरह पीसा ह और अब भी बहत काफी हद तक पीस रहा ह हो सकता डिक मनष य की चतना क उगत यग म इस शदध कहलानवाल आचार न अधकार म उन नत डिवचारो की ज योडित जगाई हो पर अब तो सढ़िदयो स इसी झठ धम न औसत भारतवासी को दास अधडिवश वासी और असीम रप स अत याचारो को सहन करनवाला झठी दवीशलिtयो पर यानी अपनी ही धोखा दनवाली लभावनी असभव कल पनाओ पर डिवश वास करनवाला झठा भाग यवादी बनाकर दश की कमर तोड रखी ह इसन औसत भारतवासी स आत मडिवश वास छीन लिलया ह इस जडता क खिxखलाफ उपडिनषद जाग मानवधम जागा योग का जञान जागा बौदध भागवतधम जागा मध यकाल का सत आदोलन उठा और आज क वजञाडिनक यग न तो इस एकदम डिनस सार लिसदध कर सदा क लिलए इसकी कबर ही खोद दी ह यह जड धम कभी भारत को महान नही बना सका होगा भारत की महानता उसक कमयोग म ह उसक व यापक मानवीय दषटिMकोण म ह व यास-वाल मीडिक आढ़िद क परम उदार भावो म ह पराचीन भारत क दशन न याय वशडिषक साडिहत य लिशल प सगीत आढ़िद इस जड धम की उपज हरडिगज नही हो सकत डिफर भी यह जडता भारत पर अस स भत की तरह छाई हई ह इसी स घणा करन क कारण आज का नया भारतीय डिबना जाच-पडताल डिकए अपनी सारी परपराओ स घणा करत हए लिसदधातहीन आस थाहीन और डिनसतरिकरय हो गया ह नही व फफाजी का धम हरडिगज न डिनभा सक ग हरडिगज नही हरडिगज नही पर व भोजन कस करग बआजी कस और कब तक भोजन करगी कसी डिवबना ह दो मनष यो की मौत की नडितक जिजम मदारी उनक ऊपर आएगी

पडित दवधर न उन ह मौन दखकर पछा-कहो भोजन कराओग मझ

- जीम धम-सकट म पड गया ह

- स पष ट कहो मरा धम गरहण करोग

फफाजी आप बहत माग रह ह मरा डिवश वास माग रह ह म आपक धम को यग का धम नही मानता अपना नही मानता

म तम हारी स पष टवाढ़िदता स परसन न ह तम धारमिमक हो इसी तरह अपन स मझको पहचानो म भी अपना धम नही छोड सकता यदयडिप तम हार सत सग स मन इतन ढ़िदनो म यह समझ लिलया ह डिक मरा यग मरा धम अब सदा क लिलए लोप हो रहा ह डिफर भी अडितम सास तक तो हरडिगज नही मरी आस था तपःपत ह तम हारा कल याण हो सखी हो बटा अच छा तो अब चल -

परत मरा अनशन का डिनश चय अडिग ह फफाजी म आपक चरण छकर कह रहा ह

पर छोड दो बट इन परो स पहल ही जडता समा चकी ह और अब तो जीव क साथ ही षटिमटगी अन यथा नही खर कल डिवचार करना अपन अनशन पर

अडितम वाक य पडितजी न इस तरह कहा डिक इदरदतत को करारा झटका लगा पर व मौन रहन पर डिववश थ पडित दवधर चलन लग इदरदतत क मन म भयकर तफान उठ रहा था व हार गए बआजी को क या उततर दग इस अगडित का अत कया होगा क या व फफाजी की बात मान ल कस मान ल यह ठीक ह डिक फफाजी अपन धम पर डिकस परकार एकडिनष ठ ह यह ए कडिनष ठता उन ह बहद परभाडिवत करती ह डिफर भी उनक धम को वह क यो कर स वीकार कर

पडित दवधरजी जीन पर पहचकर रक इदरदतत उनक पीछ-पीछ चल रह थ पडितजी घमकर बोल - तम हारी मान यताओ म मरी आस था नही ह इदर डिफर भी म उसक वास तडिवक पa को कछ-कछ दख अवश य पा रहा ह एक बात और स पष ट करना चाहता ह तम भोला डितरभवन क धम को आज का या डिकसी भी यग का वास तडिवक धम मानत हो

- जी नही उनका कोई धम ही नही ह

- तम हारा कल याण हो बट धन मद स जन म इस खोखल धम स सदा लडना जस म लडा तम अपन मत क अनसार लडो पर लडो अवश य यह आस थाहीन दभ भरा अदाशडिनक अधारमिमक जीवन लोक क लिलए अकल याणकारी ह बोलो वचन दत हो

म आपको अपना डिवश वास दता ह - कहकर इदरजीत न फफाजी क चरण छ लिलए खडाऊ की खट-खट जीन स उतर गई आगन पार डिकया दर चली इदरदतत आकर कट पड स अपन पलग पर डिगर गए

नया यग परान यग स स वच छा स डिवदा हो रहा था पर डिवदा होत समय डिकतना परबल मोह था और डिकतना डिनमम व यवहार भी

धम सकट अमतलाल नागर

शाम का समय था हम लोग परदश दश और डिवश व की राजनीडित पर लबी चचा करन क बाद उस डिवषय स ऊब चक थ चाय बड मौक स आई लडिकन उस ताजगी का सख हम ठीक तरह स उठा भी न पाए थ डिक नौकर न आकर एक सादा बद लिलफाफा मर हाथ म रख ढ़िदया मन खोलकर दखा सामनवाल पडोसी रायबहादर डिगराजडिकशन (डिगरिरराज कष ण) का पतर था कापत हाथो अनषटिमल अaरो और टढी पलिtयो म लिलखा था

माई डियर परताप

मन फल ली को आदश द रक खा ह डिक मरी मत य क बाद यह पतर तम ह फौरन पहचाया जाए तम मर अभिभन न षटिमतर क पतर हो रमश स अषटिधक सदा आजञाकारी रह हो मरी डिनम नलिलगनिखत तीन अडितम इच छाओ को परा करना -

1 रमश को तरत सचना दना मरी आत मा को तभी शाडित षटिमलगी जब उसक हाथो मर अडितम सस कार होग मन उसक साथ अनयाय डिकया ह

2 फल ली को मन पाच हजार रपय ढ़िदए ह और पाच-पाच सौ रपय बाकी चारो नौकरो को नोट मर तडिकए म रई की परत क अदर ह उसी म वसीयत और डितजोरी की चाभी भी ह घर म डिकसी को यह रहस य नही मालम तडिकया अब फौरन अपन कबज म कर लना घर क भार-घर और सदको की चाभिभया डितजोरी म ह रमश क आन पर पाच पचो क सामन उस सौप दना

3 मन अपनी वसीयत म यह शत रक खी ह डिक मरी पत नी अगर मझ माफ कर द और गलत ही सही मगर जो पडितवरत उस पर आन पडा ह उस साधकर रमश को छोडकर बाइज जत यहा रह तो यह मकान और दस हजार रपया उस ढ़िदया जाए लडिकन यह काम उसी हालत म होना चाडिहए जबडिक हम और तम हार दवारा डिनयक त महल ल क चार भल आदमी मरी पत नी की सच चरिरतरता क सबध म आवश स त हो जाए

पतर पर छह रोज पहल की तारीख पडी थी मझ यह समझन म दर न लगी डिक रायबहादर साहब गत हो चक ह पतर मन बड बाब क सामन मज पर रखा ढ़िदया इजीडिनयर साहब और परोफसर साहब भी झककर पढन लग

चाय बमजा हो गई हम सभी उठकर रायबहादर साहब क यहा गए उनका रोबीला चहरा रोग और मानलिसक सिचताओ स जजर होकर मत य क बाद भी उनक अडितम ढ़िदनो क असीम कष टो का परिरचय द रहा था मत रायबहादर क चहर को दखत हए उनक साथ बीत इतन वष की स मडितया मर मन म जाग उठी

रायबहादर बाब डिगराजडिकशन बीए उन निहदस ताडिनयो म स थ जिजन ह तकदीर की चक क कारण इeल म जनम नही षटिमल पाया था उनका रग भी गोरा न था बशकिक गहए स काल की ओर ही अषटिधक झकता हआ था डिफर भरसक उन होन अपन-आपको अगरजनमा ही बनाए रक खा गरीब निहदसताडिनयो पर अकड ढ़िदखान म व सदा अगरजो स चार जत आग रह कई निहदीवाढ़िदयो न उनस शदध नाम डिगरिरराजकष ण रखन को कहा मगर व उन ह मख बतलाकर डिगराज ही बन रह रायबहादर डिगराजडिकशन क नाम क साथ बीए जोडना भी डिनतात आवश यक था सन 23 म रायबहादर डिगराज अपनी डिबरादरी क रायसाहब दीनानाथ की बदौलत इलाहाबाद म छोट लाट क दफतर म भरती हए थ अपनी अगरजपरस ती और हाईक लास खशामद क दम पर रामबहादर ऊची करसिसयो पर चढ बठ स वराज य होन पर आतरिरक कष ट भोगन क बावजद तीन वष तक स वराजी अफसरो नताओ और मडितरयो की भी बाअदब खशामद की डिगराज बाब इन लोगो क सामन जिजस परकार खद दम डिहलात उसी परकार अपन सामन अपन मातहतो की भी डिहलवात थ आजादी क बाद भी दफतर म अपना भला चाहनवाला कोई बाब उनक आग निहदी का एक शब द नही बोल सकता था और घर क लिलए भी यही मशहर था डिक रायबहादर की भस तक अगरजी म ही कारती अगर कोई कसर थी तो सही डिक ली डिगराज क वास त अगरजी का करिरया अaर भी भस बराबर ही था

रायबहादर डिगराज पहली लडाई क जमान क मॉन आदमी थ सबह आख खलत ही घटी बजात सफद कोट पतलन और साफ स लस फल ली आया का लडका घसीट छोटी हाजिजरी लकर हाजिजर होता ठीक आठ बज बडी हाजिजरी पर बठत बटी-बटा साथ होत पर ल ी डिगराज अा-डिबस कट-समाज म कभी न बठी परम कटटर छत-पाकवाली न होत हए भी मास-मछली स उन ह परहज था बशीरत चपरासी क बाप मन न बावचv को हफत म दो ढ़िदन डयटी दनी पडती थी घर क डिनचल डिहस स म डिवलायती रसोई थी एक तरह स कहना चाडिहए डिक नीच का परा घर ही डिवलायती था वहा ल ी डिगराज क बजाय फल ली आया का सामराज य था फल ली पहल अगरजी कोढ़िठयो म काम करती थी अगरजी ढग स निहदस थानी बोलती ह अगरजी घर क कायद जानती ह छोटी-बडी हाजिजरी लच डिनर चाय सबका समय साधती थी इसलिलए डिगराज बाब क बाब डिनयम स दो पग खान स पहल चसडिकयो म मयादा करत थ फली उसका इतजाम भी बखबी कर दती थी इसलिलए आमतौर पर मजाक-मजाक म ही मशहर हो गया था डिक रायबहादर साहब स कोई काम करवान क वास त बजाय ली डिगराज क ल ी फल ली की लिसफारिरश जयादह परअसर होती ह

वस राजबहादर डिगराज म डिकसी न भी कोई ऐब की बात नही दखी-सनी थी अगर ऐब था तो यही डिक व मॉन थ चरट मह म लगाए बगर व बात नही कर पात थ अगर कोई निहदी सभा का चदा मागन आए तो उसस अकडकर कहत डिक मॉन जमान म गवार भाषाओ का उदधार करना डिहमाकत की बात ह धम क सबध म पहल तो व यह कहा करत थ डिक यह ढोग और पागलपन की वस त ह मगर बाद म उस इडियन कल चर का एक सनातन रप मानकर सहन कर जात थ डिगराज साहब थोडा-बहत लन-दन का काम करत थ और उसकी बदौलत उन होन हलिसयत भी बनाई अच छा मॉन ढग का मकान बनवाया उसका नाम ढ़िद नाइटिटगल रकखा मोटर खरीदी सदा दो-चार नौकर पाल घर स लकर दफतर तक घडी साधकर सबस डयटी करवाई पत नी को भी षटिमलन क वास त फल ली क दवारा उनस अप वाइटमट लना पडता था ली इसस जल-फक गई डिक म फल ली स भी गई-बीती हो गई

ली डिगराज न अपन फहडपन म उनक ऊपर एक बहत बडा लाछन लगा ढ़िदया रायबहादर साहब लिसदधाततः और स वभावतः अवध रिरश तो स नफरत करत थ इसलिलए अपनी पत नी क दवारा झठा लाछन लगाए जान क बाद डिफर उन होन कभी उनका मह न दखा बडी लडकी क डिववाह क अवसर पर उन होन कन यादान इसलिलए स वय न डिकया डिक उन ह पजा क पटर पर अपनी पत नी क साथ बठना पडता

इसक बाद दो वष म ली डिगराज घल-घलकर मर गई मगर मरी भी तो डिनयडित क साथ षडयतर करक ठीक इनक रिरटायर होन क ढ़िदन रायबहादर डिगराज को बहत लिशकायत हई अपन बट-बटी स कहा तम हारी मममी को कभी टाइम का सस नही रहा अगर मरना ही था तो कल सबह मरती परसो सबह मर सकती थी आज शाम को दफतर म मरी फयरवल पाट हो जान क बाद कभी मर सकती थी जिजदगी म एडरस पान का यह पहला मौका आया था सो इस तरह तबाहोबबाद कर ढ़िदया ईडियट कही की

इसक बाद मरनवाली तो खर मर ही चकी थी मगर जो भी मातम-परसी क लिलए मह डिबसरत हए आए उन ह भी रायबहादर साहब की ाट खानी पडी जो कहता डिक साहब सनकर बडा दख हआ उसस ही कहत आपको दख करन की जररत क या ह मझ कोई दख नही हआ जो आदमी पदा होता ह उन सबको एक साथ फौरन मर जाना चाडिहए जाइए मर यहा मातम-परसी क लिलए आन की जररत नही

छोटी लडकी की शादी उन होन पत नी की मत य क तीन महीन बाद पव डिनश चय क अनसार ही की स वय ब याहनवाली लडकी और उनक पतर को इसम आपभितत थी मगर उन होन डिकसी की एक न सनी कहा आई हव नो रिरगा फॉर योर मम मी शी वाज एक परफक ट फल लडकी की शादी बडी धमधाम स की एक आईसीएस क बट को अपना दामाद बनाया और बहत कछ दान-दहज दकर रिरटायर होन क बाद भी रोब जतलाया

लडका रमश तब एमए फाइनल म पढ रहा था नामी तज था सदा फस ट क लास रका रहा एमए क बाद आईएएस म बठनवाला था लडकीवाल अनक व यलिt रमश की माग करन क लिलए रायबहादर की सवा म आन लग रायबहादर डिगराज को अब मातहत क लक पर न सही तो ब टीवालो पर ही चरट का रोब झाडकर भरपर सतोष षटिमल जाता था दहज क मामल म व पक क मॉन थ यानी पच चीस हजार मागत थ एकाध डिपछल जानकार न दहाई दी डिक आप तो दहज क डिवरदध थ उसको परानी परथा बतलात थ तो बोल साहब जब मझ स बड अफसर आईसीएस आदमी यानी मर समधी साहब दहज लन को मॉन परथा मानत ह तो मन भी अपन डिवचार बदल ढ़िदए ह डिनहायत साइढ़िटडिफक बात ह डिक आपको दामाद चाडिहए और मझ 25 हजार रपया मरा रमश आईएएस पास करगा आप अपनी लडकी का फयचर दखकर अगर इतनी रक कम दना स वीकार करत ह तो बढ़िठए वरना मरी करसी की गददी मली मत डिकजिजए

व ऐसी लडकी चाहत थ जो सदर हो बीए हो गाती नाचती हो सीना-डिपरोना-बनना जानती हो अगरजी म फटाफट बात कर अफसर डिकसम क मॉन महमानो की खाडितर करन म तमीजदार हो और ऊपर स उसका बाप नगद पच चीस हजार रपय भी द जाए डिबरादरी क कई अच छी हलिसयतवाल बढ़िटयो क बापो क चहर रायबहादर डिगराज क चरट की अकड स धआ-छआ हो गए

एक ढ़िदन इनक दवारा नौकर रखाए गए परान मातहत एक सजातीय बाब दवीशकर पधार डिगराज की मडिहमाओ का बखान करत हए उन होन कहा सर म आपकी च वायस को जानता ह और एक लडकी मरी नजर म ह

इन बाब क साथ उन होन रीता को दखन का अवसर पाया रीता रायसाहब चमनलाल की इकलौती बटी थी रायसाहब चमनलाल न अपन जमान म बड ऐश बड नाम डिकए व शहर की तवायफो क सरताज थ रस क घोडो क सरपस त थ और बड ही औला-पौला आदमी थ अपन जीवन-काल म लाखो कमाए और लाखो फक एक लडकी हई उस बड लाड स पाला-पोसा पढाया हाई स कल तक रीता न परीaाओ तथा वाद-डिववाद और नत य-परडितयोडिगताओ म अनक परस कार पराप त कर अपन डिपता को सतष ट डिकया था रायसाहब डिवधर थ रीता की एक डिवधवा मौसी उनकी लडकी की दखभाल करन क लिलए उनक यहा रहती थी सो तब तरह स उनकी ही हो गई थी रायसाहब न आख मदकर अपना घर अपनी रभिaता साली को सौप रक खा था

बाद म रायसाहब चमनलाल की जन मकली क गरह-नaतर पहट बडा घाटा आया ढ़िदवालिलए होन की नौबत आ गई अपनी लडकी क वास त कछ रकम बचान की नीयत स उन होन एक बगला अपनी साली क नाम स खरीदा और लगभग एक लाख रपया नगद और जवरो क रप म बचाकर उसी क नाम स जमा करवा ढ़िदया डिफर रायसाहब ढ़िदवालिलए हो गए और जिजस ढ़िदन उन ह अपनी महलनमा कोठी सदा क लिलए छोडनी थी उस ढ़िदन उन होन गहर नश म अपनी कनपटी पर रिरवाल वर रखकर अपनी इहलीला समाप त कर दी रायसाहब की मत य क बाद मौसी सयानी हो गई और रीता अनाथ

लडकी दखन गए तो उसकी दो चोढ़िटयो म डित तलिलयो जस रिरबन दखकर रायबहादर साहब क पशन पराप त जीवन म नई रस की गलाबी आई अनक वष का सोया हआ मॉन पत नी का अभाव जाग उठा लडकी रीता बातचीत म तज आख नचान म बाकमल और हसन म डिबजली थी दखकर लौट तो रास त म दवीशकर स बोल लडकी तो अच छी ह और दहज का भी मझ कोई खास नही क योडिक तम तो जानत ही हो डिक म इन सब मामलो म बडा मॉन ह खाली एक परयोजन ह क - अ - क या नाम क आई मीन तम हारा क या खयाल ह दवीशकर अभी तो म भी शादी कर सकता ह

दवीशकर रायबहादर को घरत लग मह पर खशामद स हा क बजाय ना भला क यो कर कहत मौसी क लिलए इसस बढकर काई शभ सवाद न हो सकता था अठारह वष की आय की रीता छsपन वषvय रायबहादर डिगराजडिकशन की पत नी बनी

और इसक बाद की तमाम बात अपन करम म बढ गई रीता न परथम ढ़िदन स ही अपन पडित स कोई सबध न रकखा हठपवक अपन कमर क अदर बद रही रायबहादर रपय-पस गहनो और खशामदो की बडी-बडी नमायश लगाकर हार गए डिफर एक ढ़िदन फल ली न बतलाया डिक रमश और रीता रायबहादर दवारा स थाडिपत सबध को भलकर परस पर नया सबध स थाडिपत कर रह ह रायबहादर आग हो गए रमश तब एमए क अडितम वष म पढ रहा था डिपता न करोध म अध होकर उस पर परहार डिकया और घर स डिनकाल ढ़िदया रीता तब भी उनकी न हई

रमश को दो महीन बाद ही ढ़िदल ली म कोई नौकरी षटिमल गई और उसक महीन-भर बाद ही रीता रायबहादर क घर स गायब होकर ढ़िदल ली पहच गई जान स पव वह एक अलबला काम कर गई थी महल ल क पच चास घरो म हर पत पर उनका लिलखा पोस टका उसक गायब होन क दसर ही ढ़िदन पहली ाक स पहचा उसम मातर इतना ही लिलखा था बाब डिगरिरराजकष ण न मझ जबरदस ती अपनी पत नी बनाया था मगर मन उन ह कभी अपना पडित न माना और न अपना धम ही ढ़िदया डिववाह स पहल मझ बतलाया गया डिक म उनक पतर को ब याही जाऊगी तब स मन उनक पतर को ही अपना पडित माना इस घर म आकर भी उन ह ही भगवान की साaी म अपन को सौपा और अब म अपन पडित क पास ही जा रही ह

रीता क भागन स रायबहादर बाब डिगराजडिकशन को इतना कष ट नही पहचा था जिजतना डिक उसक दवारा भज गए इस सावजडिनक पतर स व दखी हए इसक बाद रायबहादर का जीवन बदल गया उनम पजा-पाठ और आशकिसतकता की भावना जागी साथ ही अकलापन भी हठ पकड गया डिपछल आठ वष म व एक ढ़िदन भी अपन घर स बाहर डिनकलकर कही न गए लन-दन का काम करत थ वह भी धीर-धीर समाप त कर ढ़िदया महल ल म डिकसी स भी सपक न रक खा डिपछल कछ ढ़िदनो स बीमार थ मगर महल लवाल उनकी हालत दखन-पछन भी न गए जात तो षटिमलत भी नही और अचानक मर पास अब यह पतर आया

हम सभी महल लवाल एकाएक यह डिनणय न कर पाए डिक इस खिसथडित म क या करना चाडिहए वदयजी और बड बाब इस पa म थ डिक पलिलस को सचना द दी जाए और इस पतर को लिलखी हई बातो का अमल भी कानन क हाथो ही हो परत म तो मत व यलिt की अडितम इच छा परी करन क पa म था रायबहादर कस भी रह हो इसी महल ल क थ कइयो को उन होन कभी नौकरिरया भी ढ़िदलाई थी उपकार डिकया था इजीडिनयर साहब भी मर ही मत क थ बाद म सभी राजी हो गए महल ल क एक षटिमतर क पास रमश क पतर आया करत थ उसी स पता लकर तार भजा गया जिजसम यह स पष ट लिलख ढ़िदया था डिक यढ़िद कल परातःकाल तक तम स वय अथवा तम हारा पतर उततर न आएगा तो रायबहादर की अत योषटिM डिकरया महल लवालो दवारा ही पचनाम स सपन न कर दी जाएगी

सबह चार बज तार का जवाब आया डिक रमश टक सी दवारा ढ़िदल ली स चल रहा ह और सबह तक पहच जाएगा परातःकाल करीब-करीब सभी महल लवाल रायबहादर क घर पर उ पखिसथत थ तभी टक सी दरवाज पर रकी रमश रीता और तीन बच च उतर रमश क मह पर तो सामाजिजक लज जा और सकोच की मलिलन छाया थी परत रीता का चहरा सतज और डिनरतिवकार था

रीता क आन का सवाद पाकर अनक सतरिसतरया कौतहलवश आ गई रीता न रायबहादर की लाश क पास अपनी चडिडया तोडी और माग का सिसदर पोछा रमश न डिपता का अडितम सस कार डिकया सतरिसतरया रीता स तरह-तरह क परश न करती थी परत वह कोई उततर न दती थी डिकरयाकम इत याढ़िद म रायबहादर क सजा तीय नात-रिरश तदार आढ़िद बहत कम आए बरहमभोज म गरीबी स एकदम टट हए बराहमण ही आए डिकसी परकार डिकरयाकम समाप त हआ रमश क वहा स चलन का समय आया

मन रायबहादर क अडितम पतर क अनसार सभरात महल लवालो क साथ रीता-रमश को बलाकर सबक सामन उनका वह अडितम पतर पढा और वह तडिकया जो महरबद पटी म मन रखवा ढ़िदया था खलवाया फल ली और नौकरो को रायबहादर की इच छानसार रपय द ढ़िदए गए रायबहादर की अडितम माग पर रीता का डिनणय सनन क लिलए हम सभी उत सक बठ थ रीता बोली म धम और ईश वर क सम मख सचचरिरतर ह मन अपन तन-मन स उन ह सदा ससर ही माना धारमिमक कानन की जिजस मजबरी स उन होन मझ अपनी पत नी बनाया था उस मन डिवषटिधवत उनकी लाश को सौप भी ढ़िदया उनकी चडिडया उनका सिसदर उन ह सौपा लडिकन मरी चडिडया मरा सिसदर अaय ह कहकर उसन दर स अपन हाथ क नीच दबी हई रमाल की पोटली को उठाया उसम हरी चडिडया थी और एक चादी की डिडिबया थी चडिडया पहनी और डिबीया खोलकर रमश की और रखत हए बोली जिजन होन मरी गोद भरी ह उन होन मरी माग भी भरी ह - लीजिजए मरी माग भर दीजिजए

रमश न रीता की माग म सिसदर की रखा खीच दी डिफर रीता बोली घर क सबध म मझ कवल यही कहना ह डिक अगर आप पाच पच मझ दश चरिरतर मानत हो तो उस धमशाला बना दीजिजए

हमम स कोई खम ठोककर एकाएक यह नही कह पाया डिक रीता दश चरिरतर ह मन अनभव डिकया डिक सभी क मनो को इस परश न स धक का लगा था अपन परपरागत धारमिमक सामाजिजक सस कारो क कारण हम रीता को सचरिरतरा मानन स भी मन ही मन डिहचकत थ पर यो क या कह

रीता हमारी डिहचक पर एक बार कहकर उठ गई उसन कहा मझ रायबहादर साहब का घर और दस हजार रपय पान की इच छा नही मर पडित न मझ सहाग की छाव द रक खी ह लडिकन म आपक सामन कसौटी रखती ह - बोलिलए घर डिकसका ह

घर को छोडकर बाकी सब सामान क साथ रमश रीता और उनक बच च ढ़िदल ली चल गए हम अभी तक कोई डिनणय नही कर पाए घर की चाभी मर पास ह वह तोल ढ का लोह का टकडा इस समय मर मन-पराणो का बोझ बना हआ ह

(1961 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

परायभित अमतलाल नागर

जीवन वाढ़िटका का वसत डिवचारो का अधड भलो का पवत और ठोकरो का समह ह यौवन इसी अवसथा म मनय तयागी सदाचारी दश-भt एव समाज-भt भी बनत ह तथा अपन खन क जोश म वह काम कर ढ़िदखात ह जिजसस डिक उनका नाम ससार क इडितहास म सवणाaरो म लिलख ढ़िदया जाता ह तथा इसी आय म मनय डिवलासी

लोलपी और वयभिभचारी भी बन जाता ह और इस परकार अपन जीवन को दो कौडी का बनाकर पतन क खडड म डिगर जाता ह अत म पछताता ह परायभित करता ह परत परतयचा स डिनकाला हआ बाण डिफर वापस नही लौटता खोई हई सचची शाडित डिफर कही नही षटिमलती

मभिणधर सदर यवक था उसक पस (जब) म पसा था और पास म था नवीन उमगो स परिरत हदय वह भोला-भाला सशील यवक था बचारा सीध माग पर जा रहा था यारो न भटका ढ़िदया - दीन को पथ-हीन कर ढ़िदया उस डिनतय-परडित कोठो की सर कराई नई-नई परिरयो की बाकी झाकी ढ़िदखाई उसक उचचडिवचारो का उसकी महतवकाaाओ का अतयत डिनदयता क साथ गला घोट ाला गया बनावटी रप क बाजार न बचार मभिणधर को भरमा ढ़िदया डिपता स पसा मागता था वह अनाथालयो म चदा दन क बहान और उस आख बद कर बहाता था गदी नालिलयो म पाप की सरिरता म घभिणत वnयालयो म

ऐसी डिनराली थी उसकी लीला पडित जी वदध थ अनक कनयाओ क लिशaक थ वातसय परम क अवतार थ डिकसी भी बालिलका क घर खाली हाथ न जात थ षटिमठाई फल डिकताब नोटबक आढ़िद कछ न कछ ल कर ही जात थ तथा डिनतयपरडित पाठ सनकर परतयक को पारिरतोडिषक परदान करत थ बालिलकाए भी उनस अतयत डिहल-षटिमल गई थी उनक सरaकगण भी पडित जी की वातसयता दख गदगद हो जात थ घरवालो क बाद पडित जी ही अपनी छातराओ क डिनरीaक थ सरaक थ बालिलकाए इनक घर जाती हारमोडिनयम बजाती गाती हसती खलती कदती थी पडितजी इसस गदगद हो जात थ तथा बाहरवालो स परमाशर ढरकात हआ कहा करत इनही लडडिकयो क कारण मरा बढापा कटता चला जा रहा ह अनयथा अकल तो इस ससार म मरा एक ढ़िदवस भी काटना भारी पड जाता समसत ससार पडितजी की एक मह स परशसा करता था

बाहरवालो को इस परकार ठाट ढ़िदखाकर पडितजी दसर ही परकार का खल खला करत थ वह अपनी नवयौवना सदर छातराओ को अनय डिवषयो क साथ-साथ परम का पाठ भी पढाया करत थ परत वह परम डिवशदध परम नही वरन परम की आड म भोगलिलsसा की लिशaा थी सतीतव डिवकरय का पाठ था काम-वासना का पाठ पढाकर भोली-भाली बालिलकाओ का जीवन नM कराकर दलाली खान की चाल थी टटटी की आड म लिशकार खला जाता था पडितजी क आस-पास यडिनवरसिसटी तथा कालज क छातर इस परकार भिभनभिभनाया करत थ जिजस परकार डिक गड क आस पास मखिकखया डिवलिचतर थ पडितजी और अदभत थी उनकी माया

रायबहादर ॉ शकरलाल अगनिeनहोतरी का सथान समाज म बहत ऊचा था सभा-सोसाइटी क हाडिकम-हककाम म आदर की दषटिM स दख जात थ वह उनक थी एक कनया - मtा वह हजारो म एक थी - सदरता और सशीलता दोनो म दभाeयवश वदध पडितजी उस पढान क लिलए डिनयt डिकए गए भोली-भाली बालिलका अपन आदश को भलन लगी पडित जी न उसक डिनमल हदय म अपन कखितसत महामतर का बीजारोपण कर ढ़िदया था अनय यवती छातराओ की भाडित मtा भी पडित जी क यहा हारमोडिनयम सीखन जान लगी

पडितजी मtा क रप लावणय को डिकराए पर उठान क लिलए कोई मनचला पस वाला ढढन लग अत म मभिणधर को आपन अपना पातर चन लिलया नई-नई कलिलयो की खोज म भटकन वाला षटिमसिलद इस अपव कली का मदपान करन क लिलए आकलिलत हो उठा इस अवसर पर पडितजी की मटठी गम हो गई दसर ही ढ़िदवस मभिणधर को पडित जी क यहा जाना था वह सधया अतयत ही रमणीक थी मभिण न उस बडी परतीaा करन क पात पाया था आज वह अतयत परसनन था आज उस पडितजी क यहा जाना था वह लब-लब पग रखता हआ चला जा रहा था पडितजी क पापालय की ओर आज उस रपयो की वदी पर वासना-दवी को परसनन करन क लिलए बलिल चढानी थी

मtा पडितजी क यहा बठी हारमोडिनयम पर उगलिलया नचा रही थी और पडितजी उस पलडिकत नतरो स डिनहार रह थ वह बाजा बजान म वयसत थी साहसा मभिणधर क आ जान स हारमोडिनयम बद हो गया लजीली मtा कसv छोडकर एक ओर खडी हो गई पडितजी न डिकतना ही समझाया बटी इनस ल|ा न कर यह तो अपन ही ह जा बजा बाजा बजा अभयागत स|न क सवागत म एक गीत गा परत मtा को अभी ल|ा न न छोडा था वह अपन सथान पर अडिवचल खडी थी उसक सकोमल मनोहारी गाल ल|ावश अगरी की भाडित लाल हो रह थ

अलक आ-आकर उसका एक मधर चबन लन की चMा कर रही थी मभिणधर उस पर मर षटिमटा था वह उस समय बाहय ससार म नही रह गया था यह सब दख पडितजी गनिखसक गए अब उस परको^ म कवल दो ही थ

मभिणधर न मtा का हाथ पकडकर कहा आइए खडी कयो ह मर समीप बठ जाइए मभिणधर धM होता चला जा रहा था मtा जिझझक रही थी परत डिफर भी मौन थी मभिणधर न कहा - कया पडितजी न इस परकार आडितथय सतकार करना लिसखलाया ह डिक घर पर कोई पाहन आव और घरवाला चपचाप खडा रह शभ मर समीप बठ जाइए परम की डिवदयत कला दोनो क शरीर म परवश कर चकी थी मtा इस बार कछ न बोली वह मतर-मeध-सी मभिण क पीछ-पीछ चली आई तथा उसस कछ हटकर पलग पर बठ गई आपका शभ नाम मभिण न जरा मtा क डिनकट आत हए कहा मtा लजीली मtा न धीम सवर म कहा

बातो का परवाह बढा धीर-धीर समसत डिहचक जाती रही और और थोडी दर क पात मtा नीरस हो गई उसकी आब उतर गई थी

डिहजाब नौ उरमा रहबर शौहर नबी मानद अगर मानद शब-मानद शब दीगर नबी मानद

डिहचक खल गई थी मभिण और मtा का परम करमशः बढन लगा था मभिण षटिमसिलद था पप पर उसका परम तभी ही ठहर सकता ह जब तक उसम मद ह परत मtा का परम डिनमल और डिनकलक था वह पाप की सरिरता को पडिवतर परम की गगा समझकर बरोक-टोक बहती ही चली जा रही थी अचानक ठोकर लगी उसक नतर खल गए एक ढ़िदन उसन तथा समसत ससार न दखा डिक वह गभ स थी

समाज म हलचल मच गई शकरलाल जी की नाक तो कट ही गई वह डिकसी को मह ढ़िदखान क योeय न रह गए थ - ऐसा ही लोगो का डिवचार था असत जाडित-डिबरादरी जटी पच-सरपच आए पचायत का काय आरभ हआ मtा क बयान लिलए गए उसन आसओ क बीच लिससडिकयो क साथ-साथ समाज क सामन सपण घटना आदयोपात सना ाली - पडितजी का उसक भोल-भाल सवचछ हदय म काम-वासना का बीजारोपण करना ततपात उसका मभिणधर स परिरचय कराना आढ़िद समसत घटना उसन सना ाली पडितजी न डिगडडिगडात अपनी सफाई पश की तथा मtा स अपनी वदधावसथा पर तरस खान की पराथना की परत मभिणधर शात भाव स बठा रहा

पचो न सलाह दी बढो न हा म हा षटिमला ढ़िदया सरपच महोदय न अपना डिनणय सना ाला सारा दोष मtा क माथ मढा गया वह जाडितचयत कर दी गई रायबहादर क डिपता की भी वही राय थी जो पचो की थी मभिणधर और पडितजी को सचचरिरतरता का सरटिटडिफकट द डिनदyenषी करार द ढ़िदया गया कवल अबला मtा ही दख की धधकती हई अगनिeन म झलसन क लिलए छोड दी गई अत म अतयत कातर भाव स डिनससहाय मtा न सरपच की दोहाई दी - उसक चरणो म डिगर पडी सरपच घबराए हाय भरMा न उनह श कर लिलया था करोषटिधत हो उनहोन उस गरभिभणी डिनससहाय आशरय-हीना यवती को धकक मार कर डिनकाल दन की अनमडित द दी उनकी आजञा का पालन करन क लिलए निहद समाज को वासतव म पतन क खडड म डिगरान वाल नरराaस खशामदी टटट पीर बवचv भिभसती खर की कहावत को चरिरताथ करन वाल इस कलक क सचच अपराधी पडितजी ततaण उठ उस धकका मारकर डिनकालन ही वाल थ - अचानक आवाज आई - ठहरो अनयाय की सीमा भी परिरषटिमत होती ह तम लोगो न उसका भी उलघन कर ाला ह लोगो न नतर घमाकर दखा तो मभिणधर उततजिजत हो डिनल भाव स खडा कह रहा था निहद समाज अधा ह अतयाचारी ह एव उसक सवसवा अथात हमार माननीय पचगण अनपढ ह गवार ह और मख ह जिजनह खर एव खोट सतय और असतय की परख नही वह कया तो नयाय कर सकत ह और कया जाडित-उपकार इसका वासतडिवक अपराधी तो म ह इसका द तो मझ भोगना चाडिहए इस सशील बाला का सतीतव तो मन नM डिकया ह और मझस भी अषटिधक नीच ह यह बगला भगत बना हआ नीच पडित इस दराचारी न अपन सवाथ क लिलए न मालम डिकतनी बालाओ का जीवन नM कराया ह - उनह पथभरM कर ढ़िदया ह जिजस आदरणीय दषटिM स इस नीच को समाज म दखा जाता ह वासतव म यह नीच उसक योeय नही वरन यह नर पश ह लोलपी ह लपट ह सिसह की खाल ओढ हए तचछ गीदड ह - रगा लिसयार ह

सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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बआजी उठी इदरदतत न उनका हाथ पकडकर बठा लिलया और डिफर भोला की बह को दखकर बोला - कसी हो सशीला मनोरमा कसी ह

- सब ठीक ह

- बच च

- अच छ ह भाभीजी और आप तो कभी झाकत ही नही इतन पास रहत ह और डिफर भी

- म सबकी राजी-खशी बराबर पछ लता ह रहा आना-जाना सो

- आपको तो खर टाइम नही षटिमला लडिकन भाभीजी भी नही आती बाल नही बच च नही कोई काम

- घर म मदद लगी ह ऐस म घर छोड क कस आई डिबचारी - बआजी न अपनी बह की बात काटी

- बह आख चढाकर याद आन का भाव जनात हए बोली - हा ठीक ह कौन-सा डिहस सा बनवा रह ह भाई साहब

- परा घर नए लिसर स बन रहा हगा ऐसा बढ़िढया डिक महल ल म ऐसा घर नही ह डिकसी का - सास न बह क वभव को लखि|त करन की दबी तडप क साथ कहा बआजी यो कहना नही चाहती थी पर जी की चोट अनायास फट पडी बडी बह न आख चमका अपनी दहरी ठोडी को गदन स लिचपकाकर अपन ऊपर पडनवाल परभाव को जतलाया और पछा - पर रहत तो शायद

- पीछवाल डिहस स म रहत ह

- इसी डिहस स म जीजी का मरा और भया का जनम भया एक भाई और भया था सब यही भए हमार बाप ताऊ दादा और जान कौन-कौन का जनम

- वो डिहस सा घर भर म सबस जयादा खराब ह कस रहत ह

- जहा परखो का जनम हआ वह जगह स वग स भी बढकर ह परख पथ वी क दवता ह बडी बह न आग कछ न कहा लिसर का पल ला डिफर सम हालन लगी

- आज तो बहत ढ़िदनो म आए भया म भी इतनी बार गई बह स तो भट हो जाव ह

बआ-भतीज को बात करत छोडकर बडी बह चली गई उसक जान क बाद दो aण मौन रहा उसक बाद दोनो ही परायः साथ-साथ बोलन को उदयत हए इदरदत त को कछ कहत दखकर बआजी चप हो गई

- सना फफाजी न

- उनकी सिचता न करो बटा वो डिकसी क मान ह

- पर इस तरह डिकतन ढ़िदन चलगा

- चलगा जिजतन ढ़िदन चलना होगा बआजी का स वर आसओ म बन-उतरान लगा - जो मर भाग म लिलखा होगा - आग कछ न कह सकी आस पोछन लगी

- सच-सच बताना बआजी तमन भी कछ खाया

- खाती ह रोज ही खाती ह - पल ल स आख ढक हए बोली इदरदत त को लगा डिक व झठ बोल रही ह

- तम इसी वt मर घर चलो बआजी फफा भी वस तो आएग ही पर आज म उन ह लकर ही जाऊगा नही तो आज स मरा भी अनशन आरभ होगा

- करो जो जिजसकी समझ म आए मरा डिकसी पर जोर नही बस नही - आखो म डिफर बाढ आ गई पल ला आखो पर ही रहा

- नही बआजी या तो आज स फफा का वरत टटगा

- कडिहए भाई साहब - कहत हए भोला न परवश डिकया मा को रोत दख उसक मन म कसाव आया मा न अपन दख का नाम-डिनशान षटिमटा दन का असफल परयत न डिकया परत उनक चहर पर पडी हई आतरिरक पीडा की छाया और आसओ स ताजा नहाई हई आख उनक पतर स लिछपी न रह सकी भोला की मख-मदरा कठोर हो गई मा की ओर स मह फरकर चारपाई पर अपना भारी भरकम शरीर परडितषटि^त करत हए उन होन अपन ममर भाई स पछा - घर बन गया आपका

- तयारी पर ही ह बरसात स पहल ही कपलीट हो जाएगा

- सना ह नकशा बहत अच छा बनवाया ह आपन इदरदत त न कोई उत तर न ढ़िदया

- म भी एक कोठी बनवान का इरादा कर रहा ह इस घर म अब गजर नही होती

इदरदत त खामोश रह भोला भी पल भर चप रह डिफर बोल - दादा का नया तमाशा दखा आपन आज कल तो व आपक यहा ही उठत बठत ह हम लोगो की खब-खब लिशकायत करत होग

तमको मझस जयादा जानना चाडिहए पर-निनदा और लिशकायत करन की आदत फफा जी म कभी नही रही - इदरदतत का स वर सयत रहन पर भी निकलिचत उततजिजत था

- न सही म आपस पछता ह इनसाफ कीजिजए आप यह कौन सा जञान ह डिक एक जीवन स इतनी नफरत की जाए और और खास अपन लडको और बहओ स पोत पोडितयो स नफरत की जाए यह डिकस शास तर म लिलखा ह जनाब बोलिलए - भोला की उततजना ऐस खली जस मोरी स ाट हटात ही हौदी का पानी गलत बहता ह

इदरदतत न शात दढ स वर म बात का उततर ढ़िदया - तम बात को गलत रग द रह हो भोला इस परकार यह डिवकट कहना चाडिहए की घरल समस याए कभी हल नही हो सकती

- म गलत रग क या द रहा ह जनाब सच कहता ह और इनसाफ की बात कहता ह ताली हमशा दोनो हाथो स बजा करती ह

- लडिकन तम एक ही हाथ स ताली बजा रह हो यानी धरती पर हाथ पीट-पीट कर

- क या म समझा नही

- तम अपन आप ही स लड रह हो और अपन को ही चोट पहचा रह हो भोला फफाजी क सब डिवचारो स सहमत होना जररी नही ह म भी उनक बहत स डिवचारो को जरा भी नही मान पाता डिफर भी व आदर क पातर ह

व हमारी डिपछली पीढी ह जिजनकी परडितडिकरयाओ पर डिकरयाशील होकर हमारा डिवकास हो रहा ह उनकी खाषटिमया तो तम खब दख लत हो दखनी भी चाडिहए मगर यह ध यान रह डिक खडिबयो की ओर स आख मदना हमार-तम हार लिलए सारी नई पी ढी क लिलए कवल हाडिनपरद ह और कछ नही

भोला न अपनी जब स सोन का लिसगरट कस डिनकाला और चहर पर आडी-डितरछी रखाए ालकर कहन लगा - म समझता था भाई साहब डिक आपन डिहस टरी-उस टरी पढकर बडी समझ पाई होगी - इतना कहकर भोला क चहर पर सतोष और गव का भाव आ गया परोफसर इदरदतत क पढ-लिलखपन को दो कौडी का साडिबत कर भोला सातव आसमान की बजv पर चढ गया - ढकोसला म ढकलनवाली ऐसी डिपछली पीढ़िढयो स हमारा दश और खासतौर स हमारी निहद ससाइटी बहत सफर कर चकी जनाब अब चालीस बरस पहल का जमाना भी नही रहा जो डिपताडिह दवा डिपताडिह धमा रटा-रटाकर य लोग अपनी धास गाठ ल म कहता ह आप परान ह बड डिनष ठावान हहोग अपनी डिनष ठा-डिवष ठा को अपन पास रगनिखए नया जमाना आप लोगो की तानाशाही को बरदाश त नही करगा

तम अगर डिकसी की तानाशाही को बरदाश त नही करोग तो तमहारी तानाशाही

- म क या करता ह जनाब

- तम अपन झठ सधारो का बोझ हर एक पर लादन क लिलए उतावल कयो रहत हो

- तम फफाजी को लिचढात हो भोला म आज साफ-साफ ही कहगा तम और डितरभवन दोनो - इदरदतत न सध स वर म कहा

- म यह सब बवकफी की सी बात सनन का आदी नही ह भाई साहब जनाब हमको गोश त अच छा लगता ह और हम खात ह और जरर खाएग दख आप हमारा क या कर लत ह

- म आपका कछ भी नही कर लगा भोलाशकरजी आप शौक स खाइए मर खयाल म फफाजी न भी इसका कोई डिवरोध नही डिकया वह नही खात उनक सस कार ऐस नही ह तो तम यह क यो चाहत हो डिक वह तम हारी बात मत मानन लग रहा यह डिक उन होन अपना चौका अलग कर लिलया या वह तम लोगो क कारण aब ध ह यह बात तानाशाही नही कही जा सकती उन ह बरा लगता ह बस

- म पछता ह क यो बरा लगता ह मरी भी बड-बड परोफसर और नामी आलिलम-फाजिजलो स ढ़िदन-रात की सोहबत ह आपक वद क जमान क बराहमण और मडिन तो गऊ तक को खा जात थ

भोला न गदन झटकाई उनक चहर का मास थल उठा उनकी लिसगरट जल गई इदरदतत बोल - ठीक ह व खात थ राम-कष ण अजन इदर बगरह भी खात थ पीत भी थ मगर यह कहन स तम उस सस कार को धो तो नही सकत जो समय क अनसार परिरवरतितत हआ और वष णव धम क साथ करीब-करीब राष टरव यापी भी हो गया

- हा तो डिफर दसरा सस कार भी राष टरव यापी हो रहा ह

- हो रहा ह ठीक ह

- तो डिफर दादा हमारा डिवरोध क यो करत ह

- भोला हम फफाजी का न याय नही कर सकत इसलिलए नही डिक हम अयोग य ह वरन इसलिलए डिक हमार न याय क अनसार चलन क लिलए उनक पास अब ढ़िदन नही रह आदत बदलन क लिलए आखिxखरी वt म अब उत साह भी नही रहता

- म पछता ह क यो नही रहता

- यह सरासर जयादती ह तम हारी वह बीता यग ह उस पर हमारा वश नही हमारा वश कवल वतमान और भडिवष य पर ही हो सकता ह डिवगत यग की मान यताओ को उस यग क लिलए हम जस का तसा ही स वीकार करना होगा पहल बात सन लो डिफर कछ कहना हा तो म कह रहा था डिक हम अपन परखो की खडिबया दखनी चाडिहए ताडिक हम उन ह लकर आग बढ सक उनकी खाषटिमयो को या सीमाओ को समझना चाडिहए जिजनस डिक हम आग बढकर अपनी नई सीमा स थाडिपत कर सक उनक ऊपर अपनी सधारवादी मनोवभितत को लादना घोर तानाशाही नही ह

- और वो जो करत ह वह तानाशाही नही ह

- अगर तानाशाही ह तो तम उसका जरर डिवरोध करो मगर नफरत स नही व तम हार अतयत डिनकट क सबधी ह तम हार डिपता ह इतनी शरदधा तम ह करनी होगी उन ह इतनी सहानभडित तम ह दनी ही होगी

इदरदत त बहत शात भाव स पालथी मारकर बठ हए बात कर रह थ

भोला क चहर पर कभी लिचढ और कभी लापरवाही-भरी अकड क साथ लिसगरट का धआ लहराता था इदरदत त की बात सनकर तमककर बोला - अ-अ-आप चाहत ह डिक हम गोश त खाना छोड द

- दोस त अच छा होता डिक तम अगर यह मास-मछली वगरह क अपन शौक कम स कम उनक और बआजी क जीवन-काल म घर स बाहर ही पर करत यह चोरी क लिलए नही उनक लिलहाज क लिलए करत तो परिरवार म और भी शोभा बढती खर झगडा इस बात पर तो ह नही झगडा तो तम हारी

- जलिलयट की वजह स ह वह उनक कमर म जाती ह या अभी हाल ही म उसन सरस वतीजी क मढ़िदर म बच च पदा डिकए तो तो आप एक बजबान जानवर स भी बदला लग जनाब यह आपकी इनसाडिनयत ह

- म कहता ह तमन उसको पाला ही क यो कम स कम मा-बाप का जरा-सा मान तो रखा होता

- इमस मान रखन की क या बात ह भाई साहब - भोला उठकर छोटी-सी जगह म तजी स अकडत हए टहलन लग चारपाई स कमर क एक कोन तक जाकर लौटत हए रककर कहा - हमारा शौक ह हमन डिकया और कोई बरा शौक तो ह नही साहब औरो क फादर-मदस होत ह तो लडको क शौक पर खश होत ह और एक हमारी डिकस मत ह डिक

- तम लिसफ अपनी ही खशी को दखत हो भोला तमन यह नही दखा डिक फफाजी डिकतन धय और सयम स तम लोगो की इन हरकतो को सहन करत ह

- खाक धल ह सयम ह हजारो तो गालिलया द ाली हम लोगो को

- और बदल म तमन उनक ऊपर कडितया छोड दी

- ऐसी ही बहत शदधता का घम ह तो अपनी तरफ दीवार उठवा ल हम जो हमार जी म आएगा करग और अब तो बढ-चढकर करग

- यह तो लडाई की बात हई समझौता नही हआ

- जी हा हम तो खलआम कहत ह डिक हमारा और दादा का समझौता नही हो सकता इस मामल म मरी और डितरभवन की राय एक ह मगर व हमार परोगरलिसव खयालात को नही दख सकत तो उनक लिलए हमार घर म कोई जगह नही ह

- भोला - बडी दर स गदन झकाए खामोश बठी हई मा न कापत स वर म और भीख का सा हाथ बढात हए कहा - बटा उनक आग ऐसी बात भल स भी न कह दना तम हार परो

- कहगा और हजार बार कहगा अब तो हमारी उनकी ठन गई वो हमार लडको-बच चो का पहनना-ओढना नही दख सकत हसता-खलना नही बदाश त कर सकत हम लोगो को बदाश त नही कर सकत तो म भी उनक धम को ठोकर मारता ह उनक ठाकर पोथी पराण सब मर जत की नोक पर ह

मा की आखो स बद टपक पडी उन होन अपना लिसर झका लिलया भोला की यह बदतमीजी इदरदतत को बरी तरह तडपा रही थी स वर ठा रखन का परयत न करत सनक भरी हसी हसत हए बोल - अगर तम हारी यही सब बात नए और परोगरलिसव डिवचारो का परडितडिनषटिधत व वाकई करती हो इसी स मनष य सलिशभिaत और फशनडिबल माना जाता हो म कहगा डिक भोला तम और तम हारी ही तरह का सारा-नया जमाना जगली ह बशकिक उनस भी गया-गजरा ह तम हारा नया जमाना न नया ह न पराना सभ यता सामतो पसवालो क खोलन जोम स बढकर कछ भी नही ह तम हार डिवचार इनसानो क नही हवानो क ह

इदरदतत स वाभाडिवक रप स उलिचत हो उठ

- खर आपको अपनी इनसाडिनयत मबारक रह हम डिहपोकरट लोगो को खब जानत ह और उन ह दर ही स नमस कार करत ह भोलाशकर तमककर खड हए तजी स बाहर चल दवारज पर पहचरकर मा स कहा - तम दादा को समझा दना अम मा म अनशन की ध मडिकयो स जरा भी नही रगा जान ही तो दग तो मर न मगर म उनको यहा नही मरन दगा जाए गगा डिकनार मर यहा उनक लिलए अब जगह नही ह

- पर यह घर अकला तम लोगो का ही नही ह

- खर यह तो हम कोट म दख लग अगर जररत पडी तो लडिकन मरा अब उनस कोई वास ता नही रहा

भोलाशकर चल गए बआजी चपचाप लिसर झकाए टप-टप आस बहाती रही इदरदतत उततजिजत मदरा म बठ थ जिजनक पास डिकसी वस त डिवशष का अभाव रहा हो उसक पास वह वस त थोडी-सी ही हो जाए तो बहत मालम पडती ह इदरदतत क लिलए इतना करोध और उततजना इसी तरह अषटिधक परतीत हो रही थी पल भर चप रहकर आवश म आ बआजी क हाथ पर हाथ रखत हए कहा - तम और फफाजी मर घर चलकर रहो बआ वह भी तो तम हारा ही घर ह

- तम अपन फफाजी स भोला की बातो का जिजकर न करना बटा

- नही

- तम अपन फफाजी का डिकसी तरह स यह बरत तडवा दो बटा तम ह बडा पन न होगा तम ह मरी आत मा उठत-बठत असीसगी मरा भया

- म इसी इराद स आया ह तम भी चलो बआ तम हारा चहरा कह रहा ह डिक तम भी

- अर मरी सिचता कया ह

- हा तम हारी सिचता नही सिचता तो तम ह और फफाजी को करनी ह मरी ओर स

- तम दोनो क भोजन कर लन तक म भी अपन परण स अटल रहगा

बआजी एक aण सिचता म पड गई डिफर मीठी वाणी म समझाकर कहा - दखो भया इदर मर लिलए जस भोला-डितरभवन वस तम जसा य घर वसा वो आज तम अपन फफाजी को डिकसी तरह जिजमा लो उनक बरत टटत की खबर सनत ही तम हारी कसम म आप ही ठाकरजी का भोग पा लगी लडिकन इसी घर म डिकसी क जी को कलस हो बटा ऐसी बात नही करनी चाडिहए क या कह तर फफाजी का करोध मरी कछ चलन नही दव ह अपन जी को कलस दव ह सो दव ह बाकी बच चो क जी को जो कलस लग ह उसक लिलए तो कहा ही क या जाए कलजग कलजग की तर स चलगा भया

इदरदतत कछ दर तक बआ क मन की घटन का खलना दखत रह

पडित दवधरजी भटट न डिनत य-डिनयम क अनसार झटपट समय अपन भतीज क आगन म परवश कर आवाज लगाई-इदरदतत

- आइए फफाजी

सकर टट सीलन-भरी लखौटी-ईटो पर खडाऊ की खट-खट चढती गई इदरदतत कटहर क पास खड थ जीन क दरवाज स बाहर आत हए पडित दवधर उन ह ढ़िदखलाई ढ़िदए उनक भस म लग कपास और दह पर पड ज लिशव छाप क दपटट म उनकी दह स एक आभा-सी फटती हई उन ह महसस हो रही थी फफाजी क आत ही घर बदल गया उन ह दखकर हर रोज ही महसस होता ह पर आज की बात तो न यारी ही थी

फफाजी क चार ढ़िदनो का वरत आज उनक व यलिtत व को इदरदतत की दषटिM म और भी अषटिधक तजोमय बना रहा था फफाजी को लकर आज उनका मन अतयत भावक हो रहा था पीडा पा रहा था इदरदतत न अनभव डिकया डिक फफाजी क चहर पर डिकसी परकार की उततजना नही भख की थकान नही चहरा सखा कछ उतरा हआ अवश य था परत मख की चष टा नही डिबगडी थी पडित दवधर की यह बात इदरदतत को बहत छ रही थी

पडित जी आकर चौकी पर बठ गए इदरदतत उनक सामन मढ पर बठ घर बनन क कारण उनका बठका उजड गया था अभ यागत क आन पर इदरदतत सकोच क साथ इसी टट कमर म उसका स वागत करत फफाजी स तो खर सकोच नही पख का रख उन होन उनकी ओर कर ढ़िदया और डिफर बठ गए कछ दर तक दोनो ओर स खामोशी रही डिफर फफाजी न बात उठाई - तम अभी घर गए थ सना

- जी हा

- तम हारी बआ मझस कह रही थी मन यह भी सना ह डिक तम मर कारण डिकसी परकार का बाल हठ करन की धमकी भी द आए हो

पडित दवधर न अपना दपटटा उतार कर कसv पर रख ढ़िदया पालथी मारकर व सीध तन हए बठ थ उनका परायः पीला पडा हआ गोरा बदन उनक बठन क सधाय क कारण ही शकिरिरचअल जच रहा था अन यथा उनका यह पीलापन उनकी रोगी अवस था का भी परिरचय द रहा था

इदरदत त न सध-सधकर कहना शर डिकया - मरा हठ स वततर नही बडो क हठ म योगदान ह

- इन बातो स कछ लाभ नही इदर मरी गडित क लिलए मर अपन डिनयम ह

- और मर अपन डिनयम भी तो हो सकत ह

- तम ह स वाधीनता ह

- तब मन भी यढ़िद अनशन का फसला डिकया ह तो गलत नही ह

- तम अपन परडित मर स नह पर बोझ लाद रह हो म आत मशजिदध क लिलए वरत कर रहा ह परखो क साधना-गह की जो यह दगडित हई ह यह मर ही डिकसी पाप क कारण अपन अतःकरण की गगा स मझ सरस वती का मढ़िदर धोना ही पडगा तम अपना आगरह लौटा लो बटा

एक षटिमनट क लिलए कमर म डिफर सन नाटा छा गया कवल पख की गज ही उस खामोशी म लहर उठा रही थी

इदरदत त न शात स वर म कहा - एक बात पछ मढ़िदर म कत त क परवश स यढ़िद भगवती अपडिवतर हो जाती ह तो डिफर घट-घट व यापी ईश वर की भावना डिबलकल झठी ह एक ईश वर पडिवतर और दसरा अपडिवतर क यो माना जाए

पडित दवधर चप बठ रह डिफर गभीर होकर कहा - निहद धम बडा गढ ह तम इस झगड म न पडो

- म इस झगड म न पडगा फफाजी पर एक बात सोचता ह भगवान राम अगर परम क वश म होकर शबरी क जठ बर खा सकत थ निहद लोग यढ़िद इस आख यान म डिवश वास रखत ह तो डिफर छत-अछत का कोई परश न ही नही रह जाता यषटिधषटि^र न अपन साथ-साथ चलनवाल कत त क डिबना स वग म जान तक स इनकार कर ढ़िदया था यह सब कहाडिनया क या निहद-धम की मडिहमा बखाननवाली नही ह क या यह महत भाव नही ह डिफर इनक डिवपरीत छआछत क भय स छईमई होनवाल गढ धम की मडिहमा को आप क यो मानत ह इन रढ़िढयो स बधकर मनष य क या अपन को छोटा नही कर लता

पडितजी शाडितपवक सनत रह इदरदत त को भय हआ डिक बरा न मान गए हो तरत बोल - म डिकसी हद तक उत तजिजत जरर ह लडिकन जो कछ पछ रहा ह जिजजञास क रप म ही

- ठीक ह - पडितजी बोल - हमार यहा आचार की बडी मडिहमा ह मनस मडित म आया ह डिक आचारः परथमो धमः जसा आचार होगा वस ही डिवचार भी होग तम शदधाचरण को बरा मानत हो

- जी नही

- तब मरा आचार क यो भरष ट करा रह हो

- ऐसा धष टता करन का डिवचार स वप न म भी मर मन म नही आ सकता हा आपस aमा मागत हए यह जरर कहगा डिक आपक आचार नए यग को डिवचार शलिt नही द पा रह ह इसलिलए उनका मल य मर लिलए कछ नही क बराबर ह म दरतिवनीत नही ह फफाजी परत सच-सच यह अनभव करता ह डिक दडिनया आग बढ रही ह और आपका दषटिMकोण व यथ क रोड की तरह उसकी गडित को अटकाता ह पर इस समय जान दीजिजए म तो यही डिनवदन करन घर गया था और यही मरा आगरह ह डिक आप भोजन कर ल

पडितजी मस कराए इदरदत त क मन म आशा जागी पडितजी बोल - करगा एक शत पर

- आजञा कीजिजए

- जो मर अथात परानी परिरपाटी क यम डिनयम सयम आढ़िद ह व आज स तम ह भी डिनभान पडग जिजनका मल य तम हारी दषटिM म कछ नही ह व आचार-डिवचार मर लिलए पराणो स भी अषटिधक मल यवान ह

इदरदत त सतभिभत रह गए व कभी सोच भी नही सकत थ डिक फफाजी सहसा अनहोनी शत स उन ह बाधन का परयत न करग पछा - कब तक डिनभाना पडगा

- आजीवन

इदरदत त निककतव यडिवमढ हो गए जिजन डिनयमो म उनकी आस था नही जो चीज उनक डिवचारो क अनसार मनष य को अधडिवश वासो स जकड दती ह और जो भारतीय सस कडित का कलक ह उनस उनका परबदध मन भला क यो कर बध सकता ह हा कह तो कस कह उन होन इस वरत डिनयम बलिलदान चमत कार और षटिमथ या डिवश वासो स भर निहद धम को समाज पर घोर अत याचार करत दखा ह अपन-आपको तरह-तरह स परपीडिडत कर धारमिमक कहलानवाला व यलिt इस दश को रसातल म ल गया इस कठोर जीवन को साधनवाल शदधाचरणी बराहमण धम न इस दश की सतरिसतरयो और हीन कहलानवाली जाडितयो को सढ़िदयो तक दासता की चक की म बरी तरह पीसा ह और अब भी बहत काफी हद तक पीस रहा ह हो सकता डिक मनष य की चतना क उगत यग म इस शदध कहलानवाल आचार न अधकार म उन नत डिवचारो की ज योडित जगाई हो पर अब तो सढ़िदयो स इसी झठ धम न औसत भारतवासी को दास अधडिवश वासी और असीम रप स अत याचारो को सहन करनवाला झठी दवीशलिtयो पर यानी अपनी ही धोखा दनवाली लभावनी असभव कल पनाओ पर डिवश वास करनवाला झठा भाग यवादी बनाकर दश की कमर तोड रखी ह इसन औसत भारतवासी स आत मडिवश वास छीन लिलया ह इस जडता क खिxखलाफ उपडिनषद जाग मानवधम जागा योग का जञान जागा बौदध भागवतधम जागा मध यकाल का सत आदोलन उठा और आज क वजञाडिनक यग न तो इस एकदम डिनस सार लिसदध कर सदा क लिलए इसकी कबर ही खोद दी ह यह जड धम कभी भारत को महान नही बना सका होगा भारत की महानता उसक कमयोग म ह उसक व यापक मानवीय दषटिMकोण म ह व यास-वाल मीडिक आढ़िद क परम उदार भावो म ह पराचीन भारत क दशन न याय वशडिषक साडिहत य लिशल प सगीत आढ़िद इस जड धम की उपज हरडिगज नही हो सकत डिफर भी यह जडता भारत पर अस स भत की तरह छाई हई ह इसी स घणा करन क कारण आज का नया भारतीय डिबना जाच-पडताल डिकए अपनी सारी परपराओ स घणा करत हए लिसदधातहीन आस थाहीन और डिनसतरिकरय हो गया ह नही व फफाजी का धम हरडिगज न डिनभा सक ग हरडिगज नही हरडिगज नही पर व भोजन कस करग बआजी कस और कब तक भोजन करगी कसी डिवबना ह दो मनष यो की मौत की नडितक जिजम मदारी उनक ऊपर आएगी

पडित दवधर न उन ह मौन दखकर पछा-कहो भोजन कराओग मझ

- जीम धम-सकट म पड गया ह

- स पष ट कहो मरा धम गरहण करोग

फफाजी आप बहत माग रह ह मरा डिवश वास माग रह ह म आपक धम को यग का धम नही मानता अपना नही मानता

म तम हारी स पष टवाढ़िदता स परसन न ह तम धारमिमक हो इसी तरह अपन स मझको पहचानो म भी अपना धम नही छोड सकता यदयडिप तम हार सत सग स मन इतन ढ़िदनो म यह समझ लिलया ह डिक मरा यग मरा धम अब सदा क लिलए लोप हो रहा ह डिफर भी अडितम सास तक तो हरडिगज नही मरी आस था तपःपत ह तम हारा कल याण हो सखी हो बटा अच छा तो अब चल -

परत मरा अनशन का डिनश चय अडिग ह फफाजी म आपक चरण छकर कह रहा ह

पर छोड दो बट इन परो स पहल ही जडता समा चकी ह और अब तो जीव क साथ ही षटिमटगी अन यथा नही खर कल डिवचार करना अपन अनशन पर

अडितम वाक य पडितजी न इस तरह कहा डिक इदरदतत को करारा झटका लगा पर व मौन रहन पर डिववश थ पडित दवधर चलन लग इदरदतत क मन म भयकर तफान उठ रहा था व हार गए बआजी को क या उततर दग इस अगडित का अत कया होगा क या व फफाजी की बात मान ल कस मान ल यह ठीक ह डिक फफाजी अपन धम पर डिकस परकार एकडिनष ठ ह यह ए कडिनष ठता उन ह बहद परभाडिवत करती ह डिफर भी उनक धम को वह क यो कर स वीकार कर

पडित दवधरजी जीन पर पहचकर रक इदरदतत उनक पीछ-पीछ चल रह थ पडितजी घमकर बोल - तम हारी मान यताओ म मरी आस था नही ह इदर डिफर भी म उसक वास तडिवक पa को कछ-कछ दख अवश य पा रहा ह एक बात और स पष ट करना चाहता ह तम भोला डितरभवन क धम को आज का या डिकसी भी यग का वास तडिवक धम मानत हो

- जी नही उनका कोई धम ही नही ह

- तम हारा कल याण हो बट धन मद स जन म इस खोखल धम स सदा लडना जस म लडा तम अपन मत क अनसार लडो पर लडो अवश य यह आस थाहीन दभ भरा अदाशडिनक अधारमिमक जीवन लोक क लिलए अकल याणकारी ह बोलो वचन दत हो

म आपको अपना डिवश वास दता ह - कहकर इदरजीत न फफाजी क चरण छ लिलए खडाऊ की खट-खट जीन स उतर गई आगन पार डिकया दर चली इदरदतत आकर कट पड स अपन पलग पर डिगर गए

नया यग परान यग स स वच छा स डिवदा हो रहा था पर डिवदा होत समय डिकतना परबल मोह था और डिकतना डिनमम व यवहार भी

धम सकट अमतलाल नागर

शाम का समय था हम लोग परदश दश और डिवश व की राजनीडित पर लबी चचा करन क बाद उस डिवषय स ऊब चक थ चाय बड मौक स आई लडिकन उस ताजगी का सख हम ठीक तरह स उठा भी न पाए थ डिक नौकर न आकर एक सादा बद लिलफाफा मर हाथ म रख ढ़िदया मन खोलकर दखा सामनवाल पडोसी रायबहादर डिगराजडिकशन (डिगरिरराज कष ण) का पतर था कापत हाथो अनषटिमल अaरो और टढी पलिtयो म लिलखा था

माई डियर परताप

मन फल ली को आदश द रक खा ह डिक मरी मत य क बाद यह पतर तम ह फौरन पहचाया जाए तम मर अभिभन न षटिमतर क पतर हो रमश स अषटिधक सदा आजञाकारी रह हो मरी डिनम नलिलगनिखत तीन अडितम इच छाओ को परा करना -

1 रमश को तरत सचना दना मरी आत मा को तभी शाडित षटिमलगी जब उसक हाथो मर अडितम सस कार होग मन उसक साथ अनयाय डिकया ह

2 फल ली को मन पाच हजार रपय ढ़िदए ह और पाच-पाच सौ रपय बाकी चारो नौकरो को नोट मर तडिकए म रई की परत क अदर ह उसी म वसीयत और डितजोरी की चाभी भी ह घर म डिकसी को यह रहस य नही मालम तडिकया अब फौरन अपन कबज म कर लना घर क भार-घर और सदको की चाभिभया डितजोरी म ह रमश क आन पर पाच पचो क सामन उस सौप दना

3 मन अपनी वसीयत म यह शत रक खी ह डिक मरी पत नी अगर मझ माफ कर द और गलत ही सही मगर जो पडितवरत उस पर आन पडा ह उस साधकर रमश को छोडकर बाइज जत यहा रह तो यह मकान और दस हजार रपया उस ढ़िदया जाए लडिकन यह काम उसी हालत म होना चाडिहए जबडिक हम और तम हार दवारा डिनयक त महल ल क चार भल आदमी मरी पत नी की सच चरिरतरता क सबध म आवश स त हो जाए

पतर पर छह रोज पहल की तारीख पडी थी मझ यह समझन म दर न लगी डिक रायबहादर साहब गत हो चक ह पतर मन बड बाब क सामन मज पर रखा ढ़िदया इजीडिनयर साहब और परोफसर साहब भी झककर पढन लग

चाय बमजा हो गई हम सभी उठकर रायबहादर साहब क यहा गए उनका रोबीला चहरा रोग और मानलिसक सिचताओ स जजर होकर मत य क बाद भी उनक अडितम ढ़िदनो क असीम कष टो का परिरचय द रहा था मत रायबहादर क चहर को दखत हए उनक साथ बीत इतन वष की स मडितया मर मन म जाग उठी

रायबहादर बाब डिगराजडिकशन बीए उन निहदस ताडिनयो म स थ जिजन ह तकदीर की चक क कारण इeल म जनम नही षटिमल पाया था उनका रग भी गोरा न था बशकिक गहए स काल की ओर ही अषटिधक झकता हआ था डिफर भरसक उन होन अपन-आपको अगरजनमा ही बनाए रक खा गरीब निहदसताडिनयो पर अकड ढ़िदखान म व सदा अगरजो स चार जत आग रह कई निहदीवाढ़िदयो न उनस शदध नाम डिगरिरराजकष ण रखन को कहा मगर व उन ह मख बतलाकर डिगराज ही बन रह रायबहादर डिगराजडिकशन क नाम क साथ बीए जोडना भी डिनतात आवश यक था सन 23 म रायबहादर डिगराज अपनी डिबरादरी क रायसाहब दीनानाथ की बदौलत इलाहाबाद म छोट लाट क दफतर म भरती हए थ अपनी अगरजपरस ती और हाईक लास खशामद क दम पर रामबहादर ऊची करसिसयो पर चढ बठ स वराज य होन पर आतरिरक कष ट भोगन क बावजद तीन वष तक स वराजी अफसरो नताओ और मडितरयो की भी बाअदब खशामद की डिगराज बाब इन लोगो क सामन जिजस परकार खद दम डिहलात उसी परकार अपन सामन अपन मातहतो की भी डिहलवात थ आजादी क बाद भी दफतर म अपना भला चाहनवाला कोई बाब उनक आग निहदी का एक शब द नही बोल सकता था और घर क लिलए भी यही मशहर था डिक रायबहादर की भस तक अगरजी म ही कारती अगर कोई कसर थी तो सही डिक ली डिगराज क वास त अगरजी का करिरया अaर भी भस बराबर ही था

रायबहादर डिगराज पहली लडाई क जमान क मॉन आदमी थ सबह आख खलत ही घटी बजात सफद कोट पतलन और साफ स लस फल ली आया का लडका घसीट छोटी हाजिजरी लकर हाजिजर होता ठीक आठ बज बडी हाजिजरी पर बठत बटी-बटा साथ होत पर ल ी डिगराज अा-डिबस कट-समाज म कभी न बठी परम कटटर छत-पाकवाली न होत हए भी मास-मछली स उन ह परहज था बशीरत चपरासी क बाप मन न बावचv को हफत म दो ढ़िदन डयटी दनी पडती थी घर क डिनचल डिहस स म डिवलायती रसोई थी एक तरह स कहना चाडिहए डिक नीच का परा घर ही डिवलायती था वहा ल ी डिगराज क बजाय फल ली आया का सामराज य था फल ली पहल अगरजी कोढ़िठयो म काम करती थी अगरजी ढग स निहदस थानी बोलती ह अगरजी घर क कायद जानती ह छोटी-बडी हाजिजरी लच डिनर चाय सबका समय साधती थी इसलिलए डिगराज बाब क बाब डिनयम स दो पग खान स पहल चसडिकयो म मयादा करत थ फली उसका इतजाम भी बखबी कर दती थी इसलिलए आमतौर पर मजाक-मजाक म ही मशहर हो गया था डिक रायबहादर साहब स कोई काम करवान क वास त बजाय ली डिगराज क ल ी फल ली की लिसफारिरश जयादह परअसर होती ह

वस राजबहादर डिगराज म डिकसी न भी कोई ऐब की बात नही दखी-सनी थी अगर ऐब था तो यही डिक व मॉन थ चरट मह म लगाए बगर व बात नही कर पात थ अगर कोई निहदी सभा का चदा मागन आए तो उसस अकडकर कहत डिक मॉन जमान म गवार भाषाओ का उदधार करना डिहमाकत की बात ह धम क सबध म पहल तो व यह कहा करत थ डिक यह ढोग और पागलपन की वस त ह मगर बाद म उस इडियन कल चर का एक सनातन रप मानकर सहन कर जात थ डिगराज साहब थोडा-बहत लन-दन का काम करत थ और उसकी बदौलत उन होन हलिसयत भी बनाई अच छा मॉन ढग का मकान बनवाया उसका नाम ढ़िद नाइटिटगल रकखा मोटर खरीदी सदा दो-चार नौकर पाल घर स लकर दफतर तक घडी साधकर सबस डयटी करवाई पत नी को भी षटिमलन क वास त फल ली क दवारा उनस अप वाइटमट लना पडता था ली इसस जल-फक गई डिक म फल ली स भी गई-बीती हो गई

ली डिगराज न अपन फहडपन म उनक ऊपर एक बहत बडा लाछन लगा ढ़िदया रायबहादर साहब लिसदधाततः और स वभावतः अवध रिरश तो स नफरत करत थ इसलिलए अपनी पत नी क दवारा झठा लाछन लगाए जान क बाद डिफर उन होन कभी उनका मह न दखा बडी लडकी क डिववाह क अवसर पर उन होन कन यादान इसलिलए स वय न डिकया डिक उन ह पजा क पटर पर अपनी पत नी क साथ बठना पडता

इसक बाद दो वष म ली डिगराज घल-घलकर मर गई मगर मरी भी तो डिनयडित क साथ षडयतर करक ठीक इनक रिरटायर होन क ढ़िदन रायबहादर डिगराज को बहत लिशकायत हई अपन बट-बटी स कहा तम हारी मममी को कभी टाइम का सस नही रहा अगर मरना ही था तो कल सबह मरती परसो सबह मर सकती थी आज शाम को दफतर म मरी फयरवल पाट हो जान क बाद कभी मर सकती थी जिजदगी म एडरस पान का यह पहला मौका आया था सो इस तरह तबाहोबबाद कर ढ़िदया ईडियट कही की

इसक बाद मरनवाली तो खर मर ही चकी थी मगर जो भी मातम-परसी क लिलए मह डिबसरत हए आए उन ह भी रायबहादर साहब की ाट खानी पडी जो कहता डिक साहब सनकर बडा दख हआ उसस ही कहत आपको दख करन की जररत क या ह मझ कोई दख नही हआ जो आदमी पदा होता ह उन सबको एक साथ फौरन मर जाना चाडिहए जाइए मर यहा मातम-परसी क लिलए आन की जररत नही

छोटी लडकी की शादी उन होन पत नी की मत य क तीन महीन बाद पव डिनश चय क अनसार ही की स वय ब याहनवाली लडकी और उनक पतर को इसम आपभितत थी मगर उन होन डिकसी की एक न सनी कहा आई हव नो रिरगा फॉर योर मम मी शी वाज एक परफक ट फल लडकी की शादी बडी धमधाम स की एक आईसीएस क बट को अपना दामाद बनाया और बहत कछ दान-दहज दकर रिरटायर होन क बाद भी रोब जतलाया

लडका रमश तब एमए फाइनल म पढ रहा था नामी तज था सदा फस ट क लास रका रहा एमए क बाद आईएएस म बठनवाला था लडकीवाल अनक व यलिt रमश की माग करन क लिलए रायबहादर की सवा म आन लग रायबहादर डिगराज को अब मातहत क लक पर न सही तो ब टीवालो पर ही चरट का रोब झाडकर भरपर सतोष षटिमल जाता था दहज क मामल म व पक क मॉन थ यानी पच चीस हजार मागत थ एकाध डिपछल जानकार न दहाई दी डिक आप तो दहज क डिवरदध थ उसको परानी परथा बतलात थ तो बोल साहब जब मझ स बड अफसर आईसीएस आदमी यानी मर समधी साहब दहज लन को मॉन परथा मानत ह तो मन भी अपन डिवचार बदल ढ़िदए ह डिनहायत साइढ़िटडिफक बात ह डिक आपको दामाद चाडिहए और मझ 25 हजार रपया मरा रमश आईएएस पास करगा आप अपनी लडकी का फयचर दखकर अगर इतनी रक कम दना स वीकार करत ह तो बढ़िठए वरना मरी करसी की गददी मली मत डिकजिजए

व ऐसी लडकी चाहत थ जो सदर हो बीए हो गाती नाचती हो सीना-डिपरोना-बनना जानती हो अगरजी म फटाफट बात कर अफसर डिकसम क मॉन महमानो की खाडितर करन म तमीजदार हो और ऊपर स उसका बाप नगद पच चीस हजार रपय भी द जाए डिबरादरी क कई अच छी हलिसयतवाल बढ़िटयो क बापो क चहर रायबहादर डिगराज क चरट की अकड स धआ-छआ हो गए

एक ढ़िदन इनक दवारा नौकर रखाए गए परान मातहत एक सजातीय बाब दवीशकर पधार डिगराज की मडिहमाओ का बखान करत हए उन होन कहा सर म आपकी च वायस को जानता ह और एक लडकी मरी नजर म ह

इन बाब क साथ उन होन रीता को दखन का अवसर पाया रीता रायसाहब चमनलाल की इकलौती बटी थी रायसाहब चमनलाल न अपन जमान म बड ऐश बड नाम डिकए व शहर की तवायफो क सरताज थ रस क घोडो क सरपस त थ और बड ही औला-पौला आदमी थ अपन जीवन-काल म लाखो कमाए और लाखो फक एक लडकी हई उस बड लाड स पाला-पोसा पढाया हाई स कल तक रीता न परीaाओ तथा वाद-डिववाद और नत य-परडितयोडिगताओ म अनक परस कार पराप त कर अपन डिपता को सतष ट डिकया था रायसाहब डिवधर थ रीता की एक डिवधवा मौसी उनकी लडकी की दखभाल करन क लिलए उनक यहा रहती थी सो तब तरह स उनकी ही हो गई थी रायसाहब न आख मदकर अपना घर अपनी रभिaता साली को सौप रक खा था

बाद म रायसाहब चमनलाल की जन मकली क गरह-नaतर पहट बडा घाटा आया ढ़िदवालिलए होन की नौबत आ गई अपनी लडकी क वास त कछ रकम बचान की नीयत स उन होन एक बगला अपनी साली क नाम स खरीदा और लगभग एक लाख रपया नगद और जवरो क रप म बचाकर उसी क नाम स जमा करवा ढ़िदया डिफर रायसाहब ढ़िदवालिलए हो गए और जिजस ढ़िदन उन ह अपनी महलनमा कोठी सदा क लिलए छोडनी थी उस ढ़िदन उन होन गहर नश म अपनी कनपटी पर रिरवाल वर रखकर अपनी इहलीला समाप त कर दी रायसाहब की मत य क बाद मौसी सयानी हो गई और रीता अनाथ

लडकी दखन गए तो उसकी दो चोढ़िटयो म डित तलिलयो जस रिरबन दखकर रायबहादर साहब क पशन पराप त जीवन म नई रस की गलाबी आई अनक वष का सोया हआ मॉन पत नी का अभाव जाग उठा लडकी रीता बातचीत म तज आख नचान म बाकमल और हसन म डिबजली थी दखकर लौट तो रास त म दवीशकर स बोल लडकी तो अच छी ह और दहज का भी मझ कोई खास नही क योडिक तम तो जानत ही हो डिक म इन सब मामलो म बडा मॉन ह खाली एक परयोजन ह क - अ - क या नाम क आई मीन तम हारा क या खयाल ह दवीशकर अभी तो म भी शादी कर सकता ह

दवीशकर रायबहादर को घरत लग मह पर खशामद स हा क बजाय ना भला क यो कर कहत मौसी क लिलए इसस बढकर काई शभ सवाद न हो सकता था अठारह वष की आय की रीता छsपन वषvय रायबहादर डिगराजडिकशन की पत नी बनी

और इसक बाद की तमाम बात अपन करम म बढ गई रीता न परथम ढ़िदन स ही अपन पडित स कोई सबध न रकखा हठपवक अपन कमर क अदर बद रही रायबहादर रपय-पस गहनो और खशामदो की बडी-बडी नमायश लगाकर हार गए डिफर एक ढ़िदन फल ली न बतलाया डिक रमश और रीता रायबहादर दवारा स थाडिपत सबध को भलकर परस पर नया सबध स थाडिपत कर रह ह रायबहादर आग हो गए रमश तब एमए क अडितम वष म पढ रहा था डिपता न करोध म अध होकर उस पर परहार डिकया और घर स डिनकाल ढ़िदया रीता तब भी उनकी न हई

रमश को दो महीन बाद ही ढ़िदल ली म कोई नौकरी षटिमल गई और उसक महीन-भर बाद ही रीता रायबहादर क घर स गायब होकर ढ़िदल ली पहच गई जान स पव वह एक अलबला काम कर गई थी महल ल क पच चास घरो म हर पत पर उनका लिलखा पोस टका उसक गायब होन क दसर ही ढ़िदन पहली ाक स पहचा उसम मातर इतना ही लिलखा था बाब डिगरिरराजकष ण न मझ जबरदस ती अपनी पत नी बनाया था मगर मन उन ह कभी अपना पडित न माना और न अपना धम ही ढ़िदया डिववाह स पहल मझ बतलाया गया डिक म उनक पतर को ब याही जाऊगी तब स मन उनक पतर को ही अपना पडित माना इस घर म आकर भी उन ह ही भगवान की साaी म अपन को सौपा और अब म अपन पडित क पास ही जा रही ह

रीता क भागन स रायबहादर बाब डिगराजडिकशन को इतना कष ट नही पहचा था जिजतना डिक उसक दवारा भज गए इस सावजडिनक पतर स व दखी हए इसक बाद रायबहादर का जीवन बदल गया उनम पजा-पाठ और आशकिसतकता की भावना जागी साथ ही अकलापन भी हठ पकड गया डिपछल आठ वष म व एक ढ़िदन भी अपन घर स बाहर डिनकलकर कही न गए लन-दन का काम करत थ वह भी धीर-धीर समाप त कर ढ़िदया महल ल म डिकसी स भी सपक न रक खा डिपछल कछ ढ़िदनो स बीमार थ मगर महल लवाल उनकी हालत दखन-पछन भी न गए जात तो षटिमलत भी नही और अचानक मर पास अब यह पतर आया

हम सभी महल लवाल एकाएक यह डिनणय न कर पाए डिक इस खिसथडित म क या करना चाडिहए वदयजी और बड बाब इस पa म थ डिक पलिलस को सचना द दी जाए और इस पतर को लिलखी हई बातो का अमल भी कानन क हाथो ही हो परत म तो मत व यलिt की अडितम इच छा परी करन क पa म था रायबहादर कस भी रह हो इसी महल ल क थ कइयो को उन होन कभी नौकरिरया भी ढ़िदलाई थी उपकार डिकया था इजीडिनयर साहब भी मर ही मत क थ बाद म सभी राजी हो गए महल ल क एक षटिमतर क पास रमश क पतर आया करत थ उसी स पता लकर तार भजा गया जिजसम यह स पष ट लिलख ढ़िदया था डिक यढ़िद कल परातःकाल तक तम स वय अथवा तम हारा पतर उततर न आएगा तो रायबहादर की अत योषटिM डिकरया महल लवालो दवारा ही पचनाम स सपन न कर दी जाएगी

सबह चार बज तार का जवाब आया डिक रमश टक सी दवारा ढ़िदल ली स चल रहा ह और सबह तक पहच जाएगा परातःकाल करीब-करीब सभी महल लवाल रायबहादर क घर पर उ पखिसथत थ तभी टक सी दरवाज पर रकी रमश रीता और तीन बच च उतर रमश क मह पर तो सामाजिजक लज जा और सकोच की मलिलन छाया थी परत रीता का चहरा सतज और डिनरतिवकार था

रीता क आन का सवाद पाकर अनक सतरिसतरया कौतहलवश आ गई रीता न रायबहादर की लाश क पास अपनी चडिडया तोडी और माग का सिसदर पोछा रमश न डिपता का अडितम सस कार डिकया सतरिसतरया रीता स तरह-तरह क परश न करती थी परत वह कोई उततर न दती थी डिकरयाकम इत याढ़िद म रायबहादर क सजा तीय नात-रिरश तदार आढ़िद बहत कम आए बरहमभोज म गरीबी स एकदम टट हए बराहमण ही आए डिकसी परकार डिकरयाकम समाप त हआ रमश क वहा स चलन का समय आया

मन रायबहादर क अडितम पतर क अनसार सभरात महल लवालो क साथ रीता-रमश को बलाकर सबक सामन उनका वह अडितम पतर पढा और वह तडिकया जो महरबद पटी म मन रखवा ढ़िदया था खलवाया फल ली और नौकरो को रायबहादर की इच छानसार रपय द ढ़िदए गए रायबहादर की अडितम माग पर रीता का डिनणय सनन क लिलए हम सभी उत सक बठ थ रीता बोली म धम और ईश वर क सम मख सचचरिरतर ह मन अपन तन-मन स उन ह सदा ससर ही माना धारमिमक कानन की जिजस मजबरी स उन होन मझ अपनी पत नी बनाया था उस मन डिवषटिधवत उनकी लाश को सौप भी ढ़िदया उनकी चडिडया उनका सिसदर उन ह सौपा लडिकन मरी चडिडया मरा सिसदर अaय ह कहकर उसन दर स अपन हाथ क नीच दबी हई रमाल की पोटली को उठाया उसम हरी चडिडया थी और एक चादी की डिडिबया थी चडिडया पहनी और डिबीया खोलकर रमश की और रखत हए बोली जिजन होन मरी गोद भरी ह उन होन मरी माग भी भरी ह - लीजिजए मरी माग भर दीजिजए

रमश न रीता की माग म सिसदर की रखा खीच दी डिफर रीता बोली घर क सबध म मझ कवल यही कहना ह डिक अगर आप पाच पच मझ दश चरिरतर मानत हो तो उस धमशाला बना दीजिजए

हमम स कोई खम ठोककर एकाएक यह नही कह पाया डिक रीता दश चरिरतर ह मन अनभव डिकया डिक सभी क मनो को इस परश न स धक का लगा था अपन परपरागत धारमिमक सामाजिजक सस कारो क कारण हम रीता को सचरिरतरा मानन स भी मन ही मन डिहचकत थ पर यो क या कह

रीता हमारी डिहचक पर एक बार कहकर उठ गई उसन कहा मझ रायबहादर साहब का घर और दस हजार रपय पान की इच छा नही मर पडित न मझ सहाग की छाव द रक खी ह लडिकन म आपक सामन कसौटी रखती ह - बोलिलए घर डिकसका ह

घर को छोडकर बाकी सब सामान क साथ रमश रीता और उनक बच च ढ़िदल ली चल गए हम अभी तक कोई डिनणय नही कर पाए घर की चाभी मर पास ह वह तोल ढ का लोह का टकडा इस समय मर मन-पराणो का बोझ बना हआ ह

(1961 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

परायभित अमतलाल नागर

जीवन वाढ़िटका का वसत डिवचारो का अधड भलो का पवत और ठोकरो का समह ह यौवन इसी अवसथा म मनय तयागी सदाचारी दश-भt एव समाज-भt भी बनत ह तथा अपन खन क जोश म वह काम कर ढ़िदखात ह जिजसस डिक उनका नाम ससार क इडितहास म सवणाaरो म लिलख ढ़िदया जाता ह तथा इसी आय म मनय डिवलासी

लोलपी और वयभिभचारी भी बन जाता ह और इस परकार अपन जीवन को दो कौडी का बनाकर पतन क खडड म डिगर जाता ह अत म पछताता ह परायभित करता ह परत परतयचा स डिनकाला हआ बाण डिफर वापस नही लौटता खोई हई सचची शाडित डिफर कही नही षटिमलती

मभिणधर सदर यवक था उसक पस (जब) म पसा था और पास म था नवीन उमगो स परिरत हदय वह भोला-भाला सशील यवक था बचारा सीध माग पर जा रहा था यारो न भटका ढ़िदया - दीन को पथ-हीन कर ढ़िदया उस डिनतय-परडित कोठो की सर कराई नई-नई परिरयो की बाकी झाकी ढ़िदखाई उसक उचचडिवचारो का उसकी महतवकाaाओ का अतयत डिनदयता क साथ गला घोट ाला गया बनावटी रप क बाजार न बचार मभिणधर को भरमा ढ़िदया डिपता स पसा मागता था वह अनाथालयो म चदा दन क बहान और उस आख बद कर बहाता था गदी नालिलयो म पाप की सरिरता म घभिणत वnयालयो म

ऐसी डिनराली थी उसकी लीला पडित जी वदध थ अनक कनयाओ क लिशaक थ वातसय परम क अवतार थ डिकसी भी बालिलका क घर खाली हाथ न जात थ षटिमठाई फल डिकताब नोटबक आढ़िद कछ न कछ ल कर ही जात थ तथा डिनतयपरडित पाठ सनकर परतयक को पारिरतोडिषक परदान करत थ बालिलकाए भी उनस अतयत डिहल-षटिमल गई थी उनक सरaकगण भी पडित जी की वातसयता दख गदगद हो जात थ घरवालो क बाद पडित जी ही अपनी छातराओ क डिनरीaक थ सरaक थ बालिलकाए इनक घर जाती हारमोडिनयम बजाती गाती हसती खलती कदती थी पडितजी इसस गदगद हो जात थ तथा बाहरवालो स परमाशर ढरकात हआ कहा करत इनही लडडिकयो क कारण मरा बढापा कटता चला जा रहा ह अनयथा अकल तो इस ससार म मरा एक ढ़िदवस भी काटना भारी पड जाता समसत ससार पडितजी की एक मह स परशसा करता था

बाहरवालो को इस परकार ठाट ढ़िदखाकर पडितजी दसर ही परकार का खल खला करत थ वह अपनी नवयौवना सदर छातराओ को अनय डिवषयो क साथ-साथ परम का पाठ भी पढाया करत थ परत वह परम डिवशदध परम नही वरन परम की आड म भोगलिलsसा की लिशaा थी सतीतव डिवकरय का पाठ था काम-वासना का पाठ पढाकर भोली-भाली बालिलकाओ का जीवन नM कराकर दलाली खान की चाल थी टटटी की आड म लिशकार खला जाता था पडितजी क आस-पास यडिनवरसिसटी तथा कालज क छातर इस परकार भिभनभिभनाया करत थ जिजस परकार डिक गड क आस पास मखिकखया डिवलिचतर थ पडितजी और अदभत थी उनकी माया

रायबहादर ॉ शकरलाल अगनिeनहोतरी का सथान समाज म बहत ऊचा था सभा-सोसाइटी क हाडिकम-हककाम म आदर की दषटिM स दख जात थ वह उनक थी एक कनया - मtा वह हजारो म एक थी - सदरता और सशीलता दोनो म दभाeयवश वदध पडितजी उस पढान क लिलए डिनयt डिकए गए भोली-भाली बालिलका अपन आदश को भलन लगी पडित जी न उसक डिनमल हदय म अपन कखितसत महामतर का बीजारोपण कर ढ़िदया था अनय यवती छातराओ की भाडित मtा भी पडित जी क यहा हारमोडिनयम सीखन जान लगी

पडितजी मtा क रप लावणय को डिकराए पर उठान क लिलए कोई मनचला पस वाला ढढन लग अत म मभिणधर को आपन अपना पातर चन लिलया नई-नई कलिलयो की खोज म भटकन वाला षटिमसिलद इस अपव कली का मदपान करन क लिलए आकलिलत हो उठा इस अवसर पर पडितजी की मटठी गम हो गई दसर ही ढ़िदवस मभिणधर को पडित जी क यहा जाना था वह सधया अतयत ही रमणीक थी मभिण न उस बडी परतीaा करन क पात पाया था आज वह अतयत परसनन था आज उस पडितजी क यहा जाना था वह लब-लब पग रखता हआ चला जा रहा था पडितजी क पापालय की ओर आज उस रपयो की वदी पर वासना-दवी को परसनन करन क लिलए बलिल चढानी थी

मtा पडितजी क यहा बठी हारमोडिनयम पर उगलिलया नचा रही थी और पडितजी उस पलडिकत नतरो स डिनहार रह थ वह बाजा बजान म वयसत थी साहसा मभिणधर क आ जान स हारमोडिनयम बद हो गया लजीली मtा कसv छोडकर एक ओर खडी हो गई पडितजी न डिकतना ही समझाया बटी इनस ल|ा न कर यह तो अपन ही ह जा बजा बाजा बजा अभयागत स|न क सवागत म एक गीत गा परत मtा को अभी ल|ा न न छोडा था वह अपन सथान पर अडिवचल खडी थी उसक सकोमल मनोहारी गाल ल|ावश अगरी की भाडित लाल हो रह थ

अलक आ-आकर उसका एक मधर चबन लन की चMा कर रही थी मभिणधर उस पर मर षटिमटा था वह उस समय बाहय ससार म नही रह गया था यह सब दख पडितजी गनिखसक गए अब उस परको^ म कवल दो ही थ

मभिणधर न मtा का हाथ पकडकर कहा आइए खडी कयो ह मर समीप बठ जाइए मभिणधर धM होता चला जा रहा था मtा जिझझक रही थी परत डिफर भी मौन थी मभिणधर न कहा - कया पडितजी न इस परकार आडितथय सतकार करना लिसखलाया ह डिक घर पर कोई पाहन आव और घरवाला चपचाप खडा रह शभ मर समीप बठ जाइए परम की डिवदयत कला दोनो क शरीर म परवश कर चकी थी मtा इस बार कछ न बोली वह मतर-मeध-सी मभिण क पीछ-पीछ चली आई तथा उसस कछ हटकर पलग पर बठ गई आपका शभ नाम मभिण न जरा मtा क डिनकट आत हए कहा मtा लजीली मtा न धीम सवर म कहा

बातो का परवाह बढा धीर-धीर समसत डिहचक जाती रही और और थोडी दर क पात मtा नीरस हो गई उसकी आब उतर गई थी

डिहजाब नौ उरमा रहबर शौहर नबी मानद अगर मानद शब-मानद शब दीगर नबी मानद

डिहचक खल गई थी मभिण और मtा का परम करमशः बढन लगा था मभिण षटिमसिलद था पप पर उसका परम तभी ही ठहर सकता ह जब तक उसम मद ह परत मtा का परम डिनमल और डिनकलक था वह पाप की सरिरता को पडिवतर परम की गगा समझकर बरोक-टोक बहती ही चली जा रही थी अचानक ठोकर लगी उसक नतर खल गए एक ढ़िदन उसन तथा समसत ससार न दखा डिक वह गभ स थी

समाज म हलचल मच गई शकरलाल जी की नाक तो कट ही गई वह डिकसी को मह ढ़िदखान क योeय न रह गए थ - ऐसा ही लोगो का डिवचार था असत जाडित-डिबरादरी जटी पच-सरपच आए पचायत का काय आरभ हआ मtा क बयान लिलए गए उसन आसओ क बीच लिससडिकयो क साथ-साथ समाज क सामन सपण घटना आदयोपात सना ाली - पडितजी का उसक भोल-भाल सवचछ हदय म काम-वासना का बीजारोपण करना ततपात उसका मभिणधर स परिरचय कराना आढ़िद समसत घटना उसन सना ाली पडितजी न डिगडडिगडात अपनी सफाई पश की तथा मtा स अपनी वदधावसथा पर तरस खान की पराथना की परत मभिणधर शात भाव स बठा रहा

पचो न सलाह दी बढो न हा म हा षटिमला ढ़िदया सरपच महोदय न अपना डिनणय सना ाला सारा दोष मtा क माथ मढा गया वह जाडितचयत कर दी गई रायबहादर क डिपता की भी वही राय थी जो पचो की थी मभिणधर और पडितजी को सचचरिरतरता का सरटिटडिफकट द डिनदyenषी करार द ढ़िदया गया कवल अबला मtा ही दख की धधकती हई अगनिeन म झलसन क लिलए छोड दी गई अत म अतयत कातर भाव स डिनससहाय मtा न सरपच की दोहाई दी - उसक चरणो म डिगर पडी सरपच घबराए हाय भरMा न उनह श कर लिलया था करोषटिधत हो उनहोन उस गरभिभणी डिनससहाय आशरय-हीना यवती को धकक मार कर डिनकाल दन की अनमडित द दी उनकी आजञा का पालन करन क लिलए निहद समाज को वासतव म पतन क खडड म डिगरान वाल नरराaस खशामदी टटट पीर बवचv भिभसती खर की कहावत को चरिरताथ करन वाल इस कलक क सचच अपराधी पडितजी ततaण उठ उस धकका मारकर डिनकालन ही वाल थ - अचानक आवाज आई - ठहरो अनयाय की सीमा भी परिरषटिमत होती ह तम लोगो न उसका भी उलघन कर ाला ह लोगो न नतर घमाकर दखा तो मभिणधर उततजिजत हो डिनल भाव स खडा कह रहा था निहद समाज अधा ह अतयाचारी ह एव उसक सवसवा अथात हमार माननीय पचगण अनपढ ह गवार ह और मख ह जिजनह खर एव खोट सतय और असतय की परख नही वह कया तो नयाय कर सकत ह और कया जाडित-उपकार इसका वासतडिवक अपराधी तो म ह इसका द तो मझ भोगना चाडिहए इस सशील बाला का सतीतव तो मन नM डिकया ह और मझस भी अषटिधक नीच ह यह बगला भगत बना हआ नीच पडित इस दराचारी न अपन सवाथ क लिलए न मालम डिकतनी बालाओ का जीवन नM कराया ह - उनह पथभरM कर ढ़िदया ह जिजस आदरणीय दषटिM स इस नीच को समाज म दखा जाता ह वासतव म यह नीच उसक योeय नही वरन यह नर पश ह लोलपी ह लपट ह सिसह की खाल ओढ हए तचछ गीदड ह - रगा लिसयार ह

सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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- सच-सच बताना बआजी तमन भी कछ खाया

- खाती ह रोज ही खाती ह - पल ल स आख ढक हए बोली इदरदत त को लगा डिक व झठ बोल रही ह

- तम इसी वt मर घर चलो बआजी फफा भी वस तो आएग ही पर आज म उन ह लकर ही जाऊगा नही तो आज स मरा भी अनशन आरभ होगा

- करो जो जिजसकी समझ म आए मरा डिकसी पर जोर नही बस नही - आखो म डिफर बाढ आ गई पल ला आखो पर ही रहा

- नही बआजी या तो आज स फफा का वरत टटगा

- कडिहए भाई साहब - कहत हए भोला न परवश डिकया मा को रोत दख उसक मन म कसाव आया मा न अपन दख का नाम-डिनशान षटिमटा दन का असफल परयत न डिकया परत उनक चहर पर पडी हई आतरिरक पीडा की छाया और आसओ स ताजा नहाई हई आख उनक पतर स लिछपी न रह सकी भोला की मख-मदरा कठोर हो गई मा की ओर स मह फरकर चारपाई पर अपना भारी भरकम शरीर परडितषटि^त करत हए उन होन अपन ममर भाई स पछा - घर बन गया आपका

- तयारी पर ही ह बरसात स पहल ही कपलीट हो जाएगा

- सना ह नकशा बहत अच छा बनवाया ह आपन इदरदत त न कोई उत तर न ढ़िदया

- म भी एक कोठी बनवान का इरादा कर रहा ह इस घर म अब गजर नही होती

इदरदत त खामोश रह भोला भी पल भर चप रह डिफर बोल - दादा का नया तमाशा दखा आपन आज कल तो व आपक यहा ही उठत बठत ह हम लोगो की खब-खब लिशकायत करत होग

तमको मझस जयादा जानना चाडिहए पर-निनदा और लिशकायत करन की आदत फफा जी म कभी नही रही - इदरदतत का स वर सयत रहन पर भी निकलिचत उततजिजत था

- न सही म आपस पछता ह इनसाफ कीजिजए आप यह कौन सा जञान ह डिक एक जीवन स इतनी नफरत की जाए और और खास अपन लडको और बहओ स पोत पोडितयो स नफरत की जाए यह डिकस शास तर म लिलखा ह जनाब बोलिलए - भोला की उततजना ऐस खली जस मोरी स ाट हटात ही हौदी का पानी गलत बहता ह

इदरदतत न शात दढ स वर म बात का उततर ढ़िदया - तम बात को गलत रग द रह हो भोला इस परकार यह डिवकट कहना चाडिहए की घरल समस याए कभी हल नही हो सकती

- म गलत रग क या द रहा ह जनाब सच कहता ह और इनसाफ की बात कहता ह ताली हमशा दोनो हाथो स बजा करती ह

- लडिकन तम एक ही हाथ स ताली बजा रह हो यानी धरती पर हाथ पीट-पीट कर

- क या म समझा नही

- तम अपन आप ही स लड रह हो और अपन को ही चोट पहचा रह हो भोला फफाजी क सब डिवचारो स सहमत होना जररी नही ह म भी उनक बहत स डिवचारो को जरा भी नही मान पाता डिफर भी व आदर क पातर ह

व हमारी डिपछली पीढी ह जिजनकी परडितडिकरयाओ पर डिकरयाशील होकर हमारा डिवकास हो रहा ह उनकी खाषटिमया तो तम खब दख लत हो दखनी भी चाडिहए मगर यह ध यान रह डिक खडिबयो की ओर स आख मदना हमार-तम हार लिलए सारी नई पी ढी क लिलए कवल हाडिनपरद ह और कछ नही

भोला न अपनी जब स सोन का लिसगरट कस डिनकाला और चहर पर आडी-डितरछी रखाए ालकर कहन लगा - म समझता था भाई साहब डिक आपन डिहस टरी-उस टरी पढकर बडी समझ पाई होगी - इतना कहकर भोला क चहर पर सतोष और गव का भाव आ गया परोफसर इदरदतत क पढ-लिलखपन को दो कौडी का साडिबत कर भोला सातव आसमान की बजv पर चढ गया - ढकोसला म ढकलनवाली ऐसी डिपछली पीढ़िढयो स हमारा दश और खासतौर स हमारी निहद ससाइटी बहत सफर कर चकी जनाब अब चालीस बरस पहल का जमाना भी नही रहा जो डिपताडिह दवा डिपताडिह धमा रटा-रटाकर य लोग अपनी धास गाठ ल म कहता ह आप परान ह बड डिनष ठावान हहोग अपनी डिनष ठा-डिवष ठा को अपन पास रगनिखए नया जमाना आप लोगो की तानाशाही को बरदाश त नही करगा

तम अगर डिकसी की तानाशाही को बरदाश त नही करोग तो तमहारी तानाशाही

- म क या करता ह जनाब

- तम अपन झठ सधारो का बोझ हर एक पर लादन क लिलए उतावल कयो रहत हो

- तम फफाजी को लिचढात हो भोला म आज साफ-साफ ही कहगा तम और डितरभवन दोनो - इदरदतत न सध स वर म कहा

- म यह सब बवकफी की सी बात सनन का आदी नही ह भाई साहब जनाब हमको गोश त अच छा लगता ह और हम खात ह और जरर खाएग दख आप हमारा क या कर लत ह

- म आपका कछ भी नही कर लगा भोलाशकरजी आप शौक स खाइए मर खयाल म फफाजी न भी इसका कोई डिवरोध नही डिकया वह नही खात उनक सस कार ऐस नही ह तो तम यह क यो चाहत हो डिक वह तम हारी बात मत मानन लग रहा यह डिक उन होन अपना चौका अलग कर लिलया या वह तम लोगो क कारण aब ध ह यह बात तानाशाही नही कही जा सकती उन ह बरा लगता ह बस

- म पछता ह क यो बरा लगता ह मरी भी बड-बड परोफसर और नामी आलिलम-फाजिजलो स ढ़िदन-रात की सोहबत ह आपक वद क जमान क बराहमण और मडिन तो गऊ तक को खा जात थ

भोला न गदन झटकाई उनक चहर का मास थल उठा उनकी लिसगरट जल गई इदरदतत बोल - ठीक ह व खात थ राम-कष ण अजन इदर बगरह भी खात थ पीत भी थ मगर यह कहन स तम उस सस कार को धो तो नही सकत जो समय क अनसार परिरवरतितत हआ और वष णव धम क साथ करीब-करीब राष टरव यापी भी हो गया

- हा तो डिफर दसरा सस कार भी राष टरव यापी हो रहा ह

- हो रहा ह ठीक ह

- तो डिफर दादा हमारा डिवरोध क यो करत ह

- भोला हम फफाजी का न याय नही कर सकत इसलिलए नही डिक हम अयोग य ह वरन इसलिलए डिक हमार न याय क अनसार चलन क लिलए उनक पास अब ढ़िदन नही रह आदत बदलन क लिलए आखिxखरी वt म अब उत साह भी नही रहता

- म पछता ह क यो नही रहता

- यह सरासर जयादती ह तम हारी वह बीता यग ह उस पर हमारा वश नही हमारा वश कवल वतमान और भडिवष य पर ही हो सकता ह डिवगत यग की मान यताओ को उस यग क लिलए हम जस का तसा ही स वीकार करना होगा पहल बात सन लो डिफर कछ कहना हा तो म कह रहा था डिक हम अपन परखो की खडिबया दखनी चाडिहए ताडिक हम उन ह लकर आग बढ सक उनकी खाषटिमयो को या सीमाओ को समझना चाडिहए जिजनस डिक हम आग बढकर अपनी नई सीमा स थाडिपत कर सक उनक ऊपर अपनी सधारवादी मनोवभितत को लादना घोर तानाशाही नही ह

- और वो जो करत ह वह तानाशाही नही ह

- अगर तानाशाही ह तो तम उसका जरर डिवरोध करो मगर नफरत स नही व तम हार अतयत डिनकट क सबधी ह तम हार डिपता ह इतनी शरदधा तम ह करनी होगी उन ह इतनी सहानभडित तम ह दनी ही होगी

इदरदत त बहत शात भाव स पालथी मारकर बठ हए बात कर रह थ

भोला क चहर पर कभी लिचढ और कभी लापरवाही-भरी अकड क साथ लिसगरट का धआ लहराता था इदरदत त की बात सनकर तमककर बोला - अ-अ-आप चाहत ह डिक हम गोश त खाना छोड द

- दोस त अच छा होता डिक तम अगर यह मास-मछली वगरह क अपन शौक कम स कम उनक और बआजी क जीवन-काल म घर स बाहर ही पर करत यह चोरी क लिलए नही उनक लिलहाज क लिलए करत तो परिरवार म और भी शोभा बढती खर झगडा इस बात पर तो ह नही झगडा तो तम हारी

- जलिलयट की वजह स ह वह उनक कमर म जाती ह या अभी हाल ही म उसन सरस वतीजी क मढ़िदर म बच च पदा डिकए तो तो आप एक बजबान जानवर स भी बदला लग जनाब यह आपकी इनसाडिनयत ह

- म कहता ह तमन उसको पाला ही क यो कम स कम मा-बाप का जरा-सा मान तो रखा होता

- इमस मान रखन की क या बात ह भाई साहब - भोला उठकर छोटी-सी जगह म तजी स अकडत हए टहलन लग चारपाई स कमर क एक कोन तक जाकर लौटत हए रककर कहा - हमारा शौक ह हमन डिकया और कोई बरा शौक तो ह नही साहब औरो क फादर-मदस होत ह तो लडको क शौक पर खश होत ह और एक हमारी डिकस मत ह डिक

- तम लिसफ अपनी ही खशी को दखत हो भोला तमन यह नही दखा डिक फफाजी डिकतन धय और सयम स तम लोगो की इन हरकतो को सहन करत ह

- खाक धल ह सयम ह हजारो तो गालिलया द ाली हम लोगो को

- और बदल म तमन उनक ऊपर कडितया छोड दी

- ऐसी ही बहत शदधता का घम ह तो अपनी तरफ दीवार उठवा ल हम जो हमार जी म आएगा करग और अब तो बढ-चढकर करग

- यह तो लडाई की बात हई समझौता नही हआ

- जी हा हम तो खलआम कहत ह डिक हमारा और दादा का समझौता नही हो सकता इस मामल म मरी और डितरभवन की राय एक ह मगर व हमार परोगरलिसव खयालात को नही दख सकत तो उनक लिलए हमार घर म कोई जगह नही ह

- भोला - बडी दर स गदन झकाए खामोश बठी हई मा न कापत स वर म और भीख का सा हाथ बढात हए कहा - बटा उनक आग ऐसी बात भल स भी न कह दना तम हार परो

- कहगा और हजार बार कहगा अब तो हमारी उनकी ठन गई वो हमार लडको-बच चो का पहनना-ओढना नही दख सकत हसता-खलना नही बदाश त कर सकत हम लोगो को बदाश त नही कर सकत तो म भी उनक धम को ठोकर मारता ह उनक ठाकर पोथी पराण सब मर जत की नोक पर ह

मा की आखो स बद टपक पडी उन होन अपना लिसर झका लिलया भोला की यह बदतमीजी इदरदतत को बरी तरह तडपा रही थी स वर ठा रखन का परयत न करत सनक भरी हसी हसत हए बोल - अगर तम हारी यही सब बात नए और परोगरलिसव डिवचारो का परडितडिनषटिधत व वाकई करती हो इसी स मनष य सलिशभिaत और फशनडिबल माना जाता हो म कहगा डिक भोला तम और तम हारी ही तरह का सारा-नया जमाना जगली ह बशकिक उनस भी गया-गजरा ह तम हारा नया जमाना न नया ह न पराना सभ यता सामतो पसवालो क खोलन जोम स बढकर कछ भी नही ह तम हार डिवचार इनसानो क नही हवानो क ह

इदरदतत स वाभाडिवक रप स उलिचत हो उठ

- खर आपको अपनी इनसाडिनयत मबारक रह हम डिहपोकरट लोगो को खब जानत ह और उन ह दर ही स नमस कार करत ह भोलाशकर तमककर खड हए तजी स बाहर चल दवारज पर पहचरकर मा स कहा - तम दादा को समझा दना अम मा म अनशन की ध मडिकयो स जरा भी नही रगा जान ही तो दग तो मर न मगर म उनको यहा नही मरन दगा जाए गगा डिकनार मर यहा उनक लिलए अब जगह नही ह

- पर यह घर अकला तम लोगो का ही नही ह

- खर यह तो हम कोट म दख लग अगर जररत पडी तो लडिकन मरा अब उनस कोई वास ता नही रहा

भोलाशकर चल गए बआजी चपचाप लिसर झकाए टप-टप आस बहाती रही इदरदतत उततजिजत मदरा म बठ थ जिजनक पास डिकसी वस त डिवशष का अभाव रहा हो उसक पास वह वस त थोडी-सी ही हो जाए तो बहत मालम पडती ह इदरदतत क लिलए इतना करोध और उततजना इसी तरह अषटिधक परतीत हो रही थी पल भर चप रहकर आवश म आ बआजी क हाथ पर हाथ रखत हए कहा - तम और फफाजी मर घर चलकर रहो बआ वह भी तो तम हारा ही घर ह

- तम अपन फफाजी स भोला की बातो का जिजकर न करना बटा

- नही

- तम अपन फफाजी का डिकसी तरह स यह बरत तडवा दो बटा तम ह बडा पन न होगा तम ह मरी आत मा उठत-बठत असीसगी मरा भया

- म इसी इराद स आया ह तम भी चलो बआ तम हारा चहरा कह रहा ह डिक तम भी

- अर मरी सिचता कया ह

- हा तम हारी सिचता नही सिचता तो तम ह और फफाजी को करनी ह मरी ओर स

- तम दोनो क भोजन कर लन तक म भी अपन परण स अटल रहगा

बआजी एक aण सिचता म पड गई डिफर मीठी वाणी म समझाकर कहा - दखो भया इदर मर लिलए जस भोला-डितरभवन वस तम जसा य घर वसा वो आज तम अपन फफाजी को डिकसी तरह जिजमा लो उनक बरत टटत की खबर सनत ही तम हारी कसम म आप ही ठाकरजी का भोग पा लगी लडिकन इसी घर म डिकसी क जी को कलस हो बटा ऐसी बात नही करनी चाडिहए क या कह तर फफाजी का करोध मरी कछ चलन नही दव ह अपन जी को कलस दव ह सो दव ह बाकी बच चो क जी को जो कलस लग ह उसक लिलए तो कहा ही क या जाए कलजग कलजग की तर स चलगा भया

इदरदतत कछ दर तक बआ क मन की घटन का खलना दखत रह

पडित दवधरजी भटट न डिनत य-डिनयम क अनसार झटपट समय अपन भतीज क आगन म परवश कर आवाज लगाई-इदरदतत

- आइए फफाजी

सकर टट सीलन-भरी लखौटी-ईटो पर खडाऊ की खट-खट चढती गई इदरदतत कटहर क पास खड थ जीन क दरवाज स बाहर आत हए पडित दवधर उन ह ढ़िदखलाई ढ़िदए उनक भस म लग कपास और दह पर पड ज लिशव छाप क दपटट म उनकी दह स एक आभा-सी फटती हई उन ह महसस हो रही थी फफाजी क आत ही घर बदल गया उन ह दखकर हर रोज ही महसस होता ह पर आज की बात तो न यारी ही थी

फफाजी क चार ढ़िदनो का वरत आज उनक व यलिtत व को इदरदतत की दषटिM म और भी अषटिधक तजोमय बना रहा था फफाजी को लकर आज उनका मन अतयत भावक हो रहा था पीडा पा रहा था इदरदतत न अनभव डिकया डिक फफाजी क चहर पर डिकसी परकार की उततजना नही भख की थकान नही चहरा सखा कछ उतरा हआ अवश य था परत मख की चष टा नही डिबगडी थी पडित दवधर की यह बात इदरदतत को बहत छ रही थी

पडित जी आकर चौकी पर बठ गए इदरदतत उनक सामन मढ पर बठ घर बनन क कारण उनका बठका उजड गया था अभ यागत क आन पर इदरदतत सकोच क साथ इसी टट कमर म उसका स वागत करत फफाजी स तो खर सकोच नही पख का रख उन होन उनकी ओर कर ढ़िदया और डिफर बठ गए कछ दर तक दोनो ओर स खामोशी रही डिफर फफाजी न बात उठाई - तम अभी घर गए थ सना

- जी हा

- तम हारी बआ मझस कह रही थी मन यह भी सना ह डिक तम मर कारण डिकसी परकार का बाल हठ करन की धमकी भी द आए हो

पडित दवधर न अपना दपटटा उतार कर कसv पर रख ढ़िदया पालथी मारकर व सीध तन हए बठ थ उनका परायः पीला पडा हआ गोरा बदन उनक बठन क सधाय क कारण ही शकिरिरचअल जच रहा था अन यथा उनका यह पीलापन उनकी रोगी अवस था का भी परिरचय द रहा था

इदरदत त न सध-सधकर कहना शर डिकया - मरा हठ स वततर नही बडो क हठ म योगदान ह

- इन बातो स कछ लाभ नही इदर मरी गडित क लिलए मर अपन डिनयम ह

- और मर अपन डिनयम भी तो हो सकत ह

- तम ह स वाधीनता ह

- तब मन भी यढ़िद अनशन का फसला डिकया ह तो गलत नही ह

- तम अपन परडित मर स नह पर बोझ लाद रह हो म आत मशजिदध क लिलए वरत कर रहा ह परखो क साधना-गह की जो यह दगडित हई ह यह मर ही डिकसी पाप क कारण अपन अतःकरण की गगा स मझ सरस वती का मढ़िदर धोना ही पडगा तम अपना आगरह लौटा लो बटा

एक षटिमनट क लिलए कमर म डिफर सन नाटा छा गया कवल पख की गज ही उस खामोशी म लहर उठा रही थी

इदरदत त न शात स वर म कहा - एक बात पछ मढ़िदर म कत त क परवश स यढ़िद भगवती अपडिवतर हो जाती ह तो डिफर घट-घट व यापी ईश वर की भावना डिबलकल झठी ह एक ईश वर पडिवतर और दसरा अपडिवतर क यो माना जाए

पडित दवधर चप बठ रह डिफर गभीर होकर कहा - निहद धम बडा गढ ह तम इस झगड म न पडो

- म इस झगड म न पडगा फफाजी पर एक बात सोचता ह भगवान राम अगर परम क वश म होकर शबरी क जठ बर खा सकत थ निहद लोग यढ़िद इस आख यान म डिवश वास रखत ह तो डिफर छत-अछत का कोई परश न ही नही रह जाता यषटिधषटि^र न अपन साथ-साथ चलनवाल कत त क डिबना स वग म जान तक स इनकार कर ढ़िदया था यह सब कहाडिनया क या निहद-धम की मडिहमा बखाननवाली नही ह क या यह महत भाव नही ह डिफर इनक डिवपरीत छआछत क भय स छईमई होनवाल गढ धम की मडिहमा को आप क यो मानत ह इन रढ़िढयो स बधकर मनष य क या अपन को छोटा नही कर लता

पडितजी शाडितपवक सनत रह इदरदत त को भय हआ डिक बरा न मान गए हो तरत बोल - म डिकसी हद तक उत तजिजत जरर ह लडिकन जो कछ पछ रहा ह जिजजञास क रप म ही

- ठीक ह - पडितजी बोल - हमार यहा आचार की बडी मडिहमा ह मनस मडित म आया ह डिक आचारः परथमो धमः जसा आचार होगा वस ही डिवचार भी होग तम शदधाचरण को बरा मानत हो

- जी नही

- तब मरा आचार क यो भरष ट करा रह हो

- ऐसा धष टता करन का डिवचार स वप न म भी मर मन म नही आ सकता हा आपस aमा मागत हए यह जरर कहगा डिक आपक आचार नए यग को डिवचार शलिt नही द पा रह ह इसलिलए उनका मल य मर लिलए कछ नही क बराबर ह म दरतिवनीत नही ह फफाजी परत सच-सच यह अनभव करता ह डिक दडिनया आग बढ रही ह और आपका दषटिMकोण व यथ क रोड की तरह उसकी गडित को अटकाता ह पर इस समय जान दीजिजए म तो यही डिनवदन करन घर गया था और यही मरा आगरह ह डिक आप भोजन कर ल

पडितजी मस कराए इदरदत त क मन म आशा जागी पडितजी बोल - करगा एक शत पर

- आजञा कीजिजए

- जो मर अथात परानी परिरपाटी क यम डिनयम सयम आढ़िद ह व आज स तम ह भी डिनभान पडग जिजनका मल य तम हारी दषटिM म कछ नही ह व आचार-डिवचार मर लिलए पराणो स भी अषटिधक मल यवान ह

इदरदत त सतभिभत रह गए व कभी सोच भी नही सकत थ डिक फफाजी सहसा अनहोनी शत स उन ह बाधन का परयत न करग पछा - कब तक डिनभाना पडगा

- आजीवन

इदरदत त निककतव यडिवमढ हो गए जिजन डिनयमो म उनकी आस था नही जो चीज उनक डिवचारो क अनसार मनष य को अधडिवश वासो स जकड दती ह और जो भारतीय सस कडित का कलक ह उनस उनका परबदध मन भला क यो कर बध सकता ह हा कह तो कस कह उन होन इस वरत डिनयम बलिलदान चमत कार और षटिमथ या डिवश वासो स भर निहद धम को समाज पर घोर अत याचार करत दखा ह अपन-आपको तरह-तरह स परपीडिडत कर धारमिमक कहलानवाला व यलिt इस दश को रसातल म ल गया इस कठोर जीवन को साधनवाल शदधाचरणी बराहमण धम न इस दश की सतरिसतरयो और हीन कहलानवाली जाडितयो को सढ़िदयो तक दासता की चक की म बरी तरह पीसा ह और अब भी बहत काफी हद तक पीस रहा ह हो सकता डिक मनष य की चतना क उगत यग म इस शदध कहलानवाल आचार न अधकार म उन नत डिवचारो की ज योडित जगाई हो पर अब तो सढ़िदयो स इसी झठ धम न औसत भारतवासी को दास अधडिवश वासी और असीम रप स अत याचारो को सहन करनवाला झठी दवीशलिtयो पर यानी अपनी ही धोखा दनवाली लभावनी असभव कल पनाओ पर डिवश वास करनवाला झठा भाग यवादी बनाकर दश की कमर तोड रखी ह इसन औसत भारतवासी स आत मडिवश वास छीन लिलया ह इस जडता क खिxखलाफ उपडिनषद जाग मानवधम जागा योग का जञान जागा बौदध भागवतधम जागा मध यकाल का सत आदोलन उठा और आज क वजञाडिनक यग न तो इस एकदम डिनस सार लिसदध कर सदा क लिलए इसकी कबर ही खोद दी ह यह जड धम कभी भारत को महान नही बना सका होगा भारत की महानता उसक कमयोग म ह उसक व यापक मानवीय दषटिMकोण म ह व यास-वाल मीडिक आढ़िद क परम उदार भावो म ह पराचीन भारत क दशन न याय वशडिषक साडिहत य लिशल प सगीत आढ़िद इस जड धम की उपज हरडिगज नही हो सकत डिफर भी यह जडता भारत पर अस स भत की तरह छाई हई ह इसी स घणा करन क कारण आज का नया भारतीय डिबना जाच-पडताल डिकए अपनी सारी परपराओ स घणा करत हए लिसदधातहीन आस थाहीन और डिनसतरिकरय हो गया ह नही व फफाजी का धम हरडिगज न डिनभा सक ग हरडिगज नही हरडिगज नही पर व भोजन कस करग बआजी कस और कब तक भोजन करगी कसी डिवबना ह दो मनष यो की मौत की नडितक जिजम मदारी उनक ऊपर आएगी

पडित दवधर न उन ह मौन दखकर पछा-कहो भोजन कराओग मझ

- जीम धम-सकट म पड गया ह

- स पष ट कहो मरा धम गरहण करोग

फफाजी आप बहत माग रह ह मरा डिवश वास माग रह ह म आपक धम को यग का धम नही मानता अपना नही मानता

म तम हारी स पष टवाढ़िदता स परसन न ह तम धारमिमक हो इसी तरह अपन स मझको पहचानो म भी अपना धम नही छोड सकता यदयडिप तम हार सत सग स मन इतन ढ़िदनो म यह समझ लिलया ह डिक मरा यग मरा धम अब सदा क लिलए लोप हो रहा ह डिफर भी अडितम सास तक तो हरडिगज नही मरी आस था तपःपत ह तम हारा कल याण हो सखी हो बटा अच छा तो अब चल -

परत मरा अनशन का डिनश चय अडिग ह फफाजी म आपक चरण छकर कह रहा ह

पर छोड दो बट इन परो स पहल ही जडता समा चकी ह और अब तो जीव क साथ ही षटिमटगी अन यथा नही खर कल डिवचार करना अपन अनशन पर

अडितम वाक य पडितजी न इस तरह कहा डिक इदरदतत को करारा झटका लगा पर व मौन रहन पर डिववश थ पडित दवधर चलन लग इदरदतत क मन म भयकर तफान उठ रहा था व हार गए बआजी को क या उततर दग इस अगडित का अत कया होगा क या व फफाजी की बात मान ल कस मान ल यह ठीक ह डिक फफाजी अपन धम पर डिकस परकार एकडिनष ठ ह यह ए कडिनष ठता उन ह बहद परभाडिवत करती ह डिफर भी उनक धम को वह क यो कर स वीकार कर

पडित दवधरजी जीन पर पहचकर रक इदरदतत उनक पीछ-पीछ चल रह थ पडितजी घमकर बोल - तम हारी मान यताओ म मरी आस था नही ह इदर डिफर भी म उसक वास तडिवक पa को कछ-कछ दख अवश य पा रहा ह एक बात और स पष ट करना चाहता ह तम भोला डितरभवन क धम को आज का या डिकसी भी यग का वास तडिवक धम मानत हो

- जी नही उनका कोई धम ही नही ह

- तम हारा कल याण हो बट धन मद स जन म इस खोखल धम स सदा लडना जस म लडा तम अपन मत क अनसार लडो पर लडो अवश य यह आस थाहीन दभ भरा अदाशडिनक अधारमिमक जीवन लोक क लिलए अकल याणकारी ह बोलो वचन दत हो

म आपको अपना डिवश वास दता ह - कहकर इदरजीत न फफाजी क चरण छ लिलए खडाऊ की खट-खट जीन स उतर गई आगन पार डिकया दर चली इदरदतत आकर कट पड स अपन पलग पर डिगर गए

नया यग परान यग स स वच छा स डिवदा हो रहा था पर डिवदा होत समय डिकतना परबल मोह था और डिकतना डिनमम व यवहार भी

धम सकट अमतलाल नागर

शाम का समय था हम लोग परदश दश और डिवश व की राजनीडित पर लबी चचा करन क बाद उस डिवषय स ऊब चक थ चाय बड मौक स आई लडिकन उस ताजगी का सख हम ठीक तरह स उठा भी न पाए थ डिक नौकर न आकर एक सादा बद लिलफाफा मर हाथ म रख ढ़िदया मन खोलकर दखा सामनवाल पडोसी रायबहादर डिगराजडिकशन (डिगरिरराज कष ण) का पतर था कापत हाथो अनषटिमल अaरो और टढी पलिtयो म लिलखा था

माई डियर परताप

मन फल ली को आदश द रक खा ह डिक मरी मत य क बाद यह पतर तम ह फौरन पहचाया जाए तम मर अभिभन न षटिमतर क पतर हो रमश स अषटिधक सदा आजञाकारी रह हो मरी डिनम नलिलगनिखत तीन अडितम इच छाओ को परा करना -

1 रमश को तरत सचना दना मरी आत मा को तभी शाडित षटिमलगी जब उसक हाथो मर अडितम सस कार होग मन उसक साथ अनयाय डिकया ह

2 फल ली को मन पाच हजार रपय ढ़िदए ह और पाच-पाच सौ रपय बाकी चारो नौकरो को नोट मर तडिकए म रई की परत क अदर ह उसी म वसीयत और डितजोरी की चाभी भी ह घर म डिकसी को यह रहस य नही मालम तडिकया अब फौरन अपन कबज म कर लना घर क भार-घर और सदको की चाभिभया डितजोरी म ह रमश क आन पर पाच पचो क सामन उस सौप दना

3 मन अपनी वसीयत म यह शत रक खी ह डिक मरी पत नी अगर मझ माफ कर द और गलत ही सही मगर जो पडितवरत उस पर आन पडा ह उस साधकर रमश को छोडकर बाइज जत यहा रह तो यह मकान और दस हजार रपया उस ढ़िदया जाए लडिकन यह काम उसी हालत म होना चाडिहए जबडिक हम और तम हार दवारा डिनयक त महल ल क चार भल आदमी मरी पत नी की सच चरिरतरता क सबध म आवश स त हो जाए

पतर पर छह रोज पहल की तारीख पडी थी मझ यह समझन म दर न लगी डिक रायबहादर साहब गत हो चक ह पतर मन बड बाब क सामन मज पर रखा ढ़िदया इजीडिनयर साहब और परोफसर साहब भी झककर पढन लग

चाय बमजा हो गई हम सभी उठकर रायबहादर साहब क यहा गए उनका रोबीला चहरा रोग और मानलिसक सिचताओ स जजर होकर मत य क बाद भी उनक अडितम ढ़िदनो क असीम कष टो का परिरचय द रहा था मत रायबहादर क चहर को दखत हए उनक साथ बीत इतन वष की स मडितया मर मन म जाग उठी

रायबहादर बाब डिगराजडिकशन बीए उन निहदस ताडिनयो म स थ जिजन ह तकदीर की चक क कारण इeल म जनम नही षटिमल पाया था उनका रग भी गोरा न था बशकिक गहए स काल की ओर ही अषटिधक झकता हआ था डिफर भरसक उन होन अपन-आपको अगरजनमा ही बनाए रक खा गरीब निहदसताडिनयो पर अकड ढ़िदखान म व सदा अगरजो स चार जत आग रह कई निहदीवाढ़िदयो न उनस शदध नाम डिगरिरराजकष ण रखन को कहा मगर व उन ह मख बतलाकर डिगराज ही बन रह रायबहादर डिगराजडिकशन क नाम क साथ बीए जोडना भी डिनतात आवश यक था सन 23 म रायबहादर डिगराज अपनी डिबरादरी क रायसाहब दीनानाथ की बदौलत इलाहाबाद म छोट लाट क दफतर म भरती हए थ अपनी अगरजपरस ती और हाईक लास खशामद क दम पर रामबहादर ऊची करसिसयो पर चढ बठ स वराज य होन पर आतरिरक कष ट भोगन क बावजद तीन वष तक स वराजी अफसरो नताओ और मडितरयो की भी बाअदब खशामद की डिगराज बाब इन लोगो क सामन जिजस परकार खद दम डिहलात उसी परकार अपन सामन अपन मातहतो की भी डिहलवात थ आजादी क बाद भी दफतर म अपना भला चाहनवाला कोई बाब उनक आग निहदी का एक शब द नही बोल सकता था और घर क लिलए भी यही मशहर था डिक रायबहादर की भस तक अगरजी म ही कारती अगर कोई कसर थी तो सही डिक ली डिगराज क वास त अगरजी का करिरया अaर भी भस बराबर ही था

रायबहादर डिगराज पहली लडाई क जमान क मॉन आदमी थ सबह आख खलत ही घटी बजात सफद कोट पतलन और साफ स लस फल ली आया का लडका घसीट छोटी हाजिजरी लकर हाजिजर होता ठीक आठ बज बडी हाजिजरी पर बठत बटी-बटा साथ होत पर ल ी डिगराज अा-डिबस कट-समाज म कभी न बठी परम कटटर छत-पाकवाली न होत हए भी मास-मछली स उन ह परहज था बशीरत चपरासी क बाप मन न बावचv को हफत म दो ढ़िदन डयटी दनी पडती थी घर क डिनचल डिहस स म डिवलायती रसोई थी एक तरह स कहना चाडिहए डिक नीच का परा घर ही डिवलायती था वहा ल ी डिगराज क बजाय फल ली आया का सामराज य था फल ली पहल अगरजी कोढ़िठयो म काम करती थी अगरजी ढग स निहदस थानी बोलती ह अगरजी घर क कायद जानती ह छोटी-बडी हाजिजरी लच डिनर चाय सबका समय साधती थी इसलिलए डिगराज बाब क बाब डिनयम स दो पग खान स पहल चसडिकयो म मयादा करत थ फली उसका इतजाम भी बखबी कर दती थी इसलिलए आमतौर पर मजाक-मजाक म ही मशहर हो गया था डिक रायबहादर साहब स कोई काम करवान क वास त बजाय ली डिगराज क ल ी फल ली की लिसफारिरश जयादह परअसर होती ह

वस राजबहादर डिगराज म डिकसी न भी कोई ऐब की बात नही दखी-सनी थी अगर ऐब था तो यही डिक व मॉन थ चरट मह म लगाए बगर व बात नही कर पात थ अगर कोई निहदी सभा का चदा मागन आए तो उसस अकडकर कहत डिक मॉन जमान म गवार भाषाओ का उदधार करना डिहमाकत की बात ह धम क सबध म पहल तो व यह कहा करत थ डिक यह ढोग और पागलपन की वस त ह मगर बाद म उस इडियन कल चर का एक सनातन रप मानकर सहन कर जात थ डिगराज साहब थोडा-बहत लन-दन का काम करत थ और उसकी बदौलत उन होन हलिसयत भी बनाई अच छा मॉन ढग का मकान बनवाया उसका नाम ढ़िद नाइटिटगल रकखा मोटर खरीदी सदा दो-चार नौकर पाल घर स लकर दफतर तक घडी साधकर सबस डयटी करवाई पत नी को भी षटिमलन क वास त फल ली क दवारा उनस अप वाइटमट लना पडता था ली इसस जल-फक गई डिक म फल ली स भी गई-बीती हो गई

ली डिगराज न अपन फहडपन म उनक ऊपर एक बहत बडा लाछन लगा ढ़िदया रायबहादर साहब लिसदधाततः और स वभावतः अवध रिरश तो स नफरत करत थ इसलिलए अपनी पत नी क दवारा झठा लाछन लगाए जान क बाद डिफर उन होन कभी उनका मह न दखा बडी लडकी क डिववाह क अवसर पर उन होन कन यादान इसलिलए स वय न डिकया डिक उन ह पजा क पटर पर अपनी पत नी क साथ बठना पडता

इसक बाद दो वष म ली डिगराज घल-घलकर मर गई मगर मरी भी तो डिनयडित क साथ षडयतर करक ठीक इनक रिरटायर होन क ढ़िदन रायबहादर डिगराज को बहत लिशकायत हई अपन बट-बटी स कहा तम हारी मममी को कभी टाइम का सस नही रहा अगर मरना ही था तो कल सबह मरती परसो सबह मर सकती थी आज शाम को दफतर म मरी फयरवल पाट हो जान क बाद कभी मर सकती थी जिजदगी म एडरस पान का यह पहला मौका आया था सो इस तरह तबाहोबबाद कर ढ़िदया ईडियट कही की

इसक बाद मरनवाली तो खर मर ही चकी थी मगर जो भी मातम-परसी क लिलए मह डिबसरत हए आए उन ह भी रायबहादर साहब की ाट खानी पडी जो कहता डिक साहब सनकर बडा दख हआ उसस ही कहत आपको दख करन की जररत क या ह मझ कोई दख नही हआ जो आदमी पदा होता ह उन सबको एक साथ फौरन मर जाना चाडिहए जाइए मर यहा मातम-परसी क लिलए आन की जररत नही

छोटी लडकी की शादी उन होन पत नी की मत य क तीन महीन बाद पव डिनश चय क अनसार ही की स वय ब याहनवाली लडकी और उनक पतर को इसम आपभितत थी मगर उन होन डिकसी की एक न सनी कहा आई हव नो रिरगा फॉर योर मम मी शी वाज एक परफक ट फल लडकी की शादी बडी धमधाम स की एक आईसीएस क बट को अपना दामाद बनाया और बहत कछ दान-दहज दकर रिरटायर होन क बाद भी रोब जतलाया

लडका रमश तब एमए फाइनल म पढ रहा था नामी तज था सदा फस ट क लास रका रहा एमए क बाद आईएएस म बठनवाला था लडकीवाल अनक व यलिt रमश की माग करन क लिलए रायबहादर की सवा म आन लग रायबहादर डिगराज को अब मातहत क लक पर न सही तो ब टीवालो पर ही चरट का रोब झाडकर भरपर सतोष षटिमल जाता था दहज क मामल म व पक क मॉन थ यानी पच चीस हजार मागत थ एकाध डिपछल जानकार न दहाई दी डिक आप तो दहज क डिवरदध थ उसको परानी परथा बतलात थ तो बोल साहब जब मझ स बड अफसर आईसीएस आदमी यानी मर समधी साहब दहज लन को मॉन परथा मानत ह तो मन भी अपन डिवचार बदल ढ़िदए ह डिनहायत साइढ़िटडिफक बात ह डिक आपको दामाद चाडिहए और मझ 25 हजार रपया मरा रमश आईएएस पास करगा आप अपनी लडकी का फयचर दखकर अगर इतनी रक कम दना स वीकार करत ह तो बढ़िठए वरना मरी करसी की गददी मली मत डिकजिजए

व ऐसी लडकी चाहत थ जो सदर हो बीए हो गाती नाचती हो सीना-डिपरोना-बनना जानती हो अगरजी म फटाफट बात कर अफसर डिकसम क मॉन महमानो की खाडितर करन म तमीजदार हो और ऊपर स उसका बाप नगद पच चीस हजार रपय भी द जाए डिबरादरी क कई अच छी हलिसयतवाल बढ़िटयो क बापो क चहर रायबहादर डिगराज क चरट की अकड स धआ-छआ हो गए

एक ढ़िदन इनक दवारा नौकर रखाए गए परान मातहत एक सजातीय बाब दवीशकर पधार डिगराज की मडिहमाओ का बखान करत हए उन होन कहा सर म आपकी च वायस को जानता ह और एक लडकी मरी नजर म ह

इन बाब क साथ उन होन रीता को दखन का अवसर पाया रीता रायसाहब चमनलाल की इकलौती बटी थी रायसाहब चमनलाल न अपन जमान म बड ऐश बड नाम डिकए व शहर की तवायफो क सरताज थ रस क घोडो क सरपस त थ और बड ही औला-पौला आदमी थ अपन जीवन-काल म लाखो कमाए और लाखो फक एक लडकी हई उस बड लाड स पाला-पोसा पढाया हाई स कल तक रीता न परीaाओ तथा वाद-डिववाद और नत य-परडितयोडिगताओ म अनक परस कार पराप त कर अपन डिपता को सतष ट डिकया था रायसाहब डिवधर थ रीता की एक डिवधवा मौसी उनकी लडकी की दखभाल करन क लिलए उनक यहा रहती थी सो तब तरह स उनकी ही हो गई थी रायसाहब न आख मदकर अपना घर अपनी रभिaता साली को सौप रक खा था

बाद म रायसाहब चमनलाल की जन मकली क गरह-नaतर पहट बडा घाटा आया ढ़िदवालिलए होन की नौबत आ गई अपनी लडकी क वास त कछ रकम बचान की नीयत स उन होन एक बगला अपनी साली क नाम स खरीदा और लगभग एक लाख रपया नगद और जवरो क रप म बचाकर उसी क नाम स जमा करवा ढ़िदया डिफर रायसाहब ढ़िदवालिलए हो गए और जिजस ढ़िदन उन ह अपनी महलनमा कोठी सदा क लिलए छोडनी थी उस ढ़िदन उन होन गहर नश म अपनी कनपटी पर रिरवाल वर रखकर अपनी इहलीला समाप त कर दी रायसाहब की मत य क बाद मौसी सयानी हो गई और रीता अनाथ

लडकी दखन गए तो उसकी दो चोढ़िटयो म डित तलिलयो जस रिरबन दखकर रायबहादर साहब क पशन पराप त जीवन म नई रस की गलाबी आई अनक वष का सोया हआ मॉन पत नी का अभाव जाग उठा लडकी रीता बातचीत म तज आख नचान म बाकमल और हसन म डिबजली थी दखकर लौट तो रास त म दवीशकर स बोल लडकी तो अच छी ह और दहज का भी मझ कोई खास नही क योडिक तम तो जानत ही हो डिक म इन सब मामलो म बडा मॉन ह खाली एक परयोजन ह क - अ - क या नाम क आई मीन तम हारा क या खयाल ह दवीशकर अभी तो म भी शादी कर सकता ह

दवीशकर रायबहादर को घरत लग मह पर खशामद स हा क बजाय ना भला क यो कर कहत मौसी क लिलए इसस बढकर काई शभ सवाद न हो सकता था अठारह वष की आय की रीता छsपन वषvय रायबहादर डिगराजडिकशन की पत नी बनी

और इसक बाद की तमाम बात अपन करम म बढ गई रीता न परथम ढ़िदन स ही अपन पडित स कोई सबध न रकखा हठपवक अपन कमर क अदर बद रही रायबहादर रपय-पस गहनो और खशामदो की बडी-बडी नमायश लगाकर हार गए डिफर एक ढ़िदन फल ली न बतलाया डिक रमश और रीता रायबहादर दवारा स थाडिपत सबध को भलकर परस पर नया सबध स थाडिपत कर रह ह रायबहादर आग हो गए रमश तब एमए क अडितम वष म पढ रहा था डिपता न करोध म अध होकर उस पर परहार डिकया और घर स डिनकाल ढ़िदया रीता तब भी उनकी न हई

रमश को दो महीन बाद ही ढ़िदल ली म कोई नौकरी षटिमल गई और उसक महीन-भर बाद ही रीता रायबहादर क घर स गायब होकर ढ़िदल ली पहच गई जान स पव वह एक अलबला काम कर गई थी महल ल क पच चास घरो म हर पत पर उनका लिलखा पोस टका उसक गायब होन क दसर ही ढ़िदन पहली ाक स पहचा उसम मातर इतना ही लिलखा था बाब डिगरिरराजकष ण न मझ जबरदस ती अपनी पत नी बनाया था मगर मन उन ह कभी अपना पडित न माना और न अपना धम ही ढ़िदया डिववाह स पहल मझ बतलाया गया डिक म उनक पतर को ब याही जाऊगी तब स मन उनक पतर को ही अपना पडित माना इस घर म आकर भी उन ह ही भगवान की साaी म अपन को सौपा और अब म अपन पडित क पास ही जा रही ह

रीता क भागन स रायबहादर बाब डिगराजडिकशन को इतना कष ट नही पहचा था जिजतना डिक उसक दवारा भज गए इस सावजडिनक पतर स व दखी हए इसक बाद रायबहादर का जीवन बदल गया उनम पजा-पाठ और आशकिसतकता की भावना जागी साथ ही अकलापन भी हठ पकड गया डिपछल आठ वष म व एक ढ़िदन भी अपन घर स बाहर डिनकलकर कही न गए लन-दन का काम करत थ वह भी धीर-धीर समाप त कर ढ़िदया महल ल म डिकसी स भी सपक न रक खा डिपछल कछ ढ़िदनो स बीमार थ मगर महल लवाल उनकी हालत दखन-पछन भी न गए जात तो षटिमलत भी नही और अचानक मर पास अब यह पतर आया

हम सभी महल लवाल एकाएक यह डिनणय न कर पाए डिक इस खिसथडित म क या करना चाडिहए वदयजी और बड बाब इस पa म थ डिक पलिलस को सचना द दी जाए और इस पतर को लिलखी हई बातो का अमल भी कानन क हाथो ही हो परत म तो मत व यलिt की अडितम इच छा परी करन क पa म था रायबहादर कस भी रह हो इसी महल ल क थ कइयो को उन होन कभी नौकरिरया भी ढ़िदलाई थी उपकार डिकया था इजीडिनयर साहब भी मर ही मत क थ बाद म सभी राजी हो गए महल ल क एक षटिमतर क पास रमश क पतर आया करत थ उसी स पता लकर तार भजा गया जिजसम यह स पष ट लिलख ढ़िदया था डिक यढ़िद कल परातःकाल तक तम स वय अथवा तम हारा पतर उततर न आएगा तो रायबहादर की अत योषटिM डिकरया महल लवालो दवारा ही पचनाम स सपन न कर दी जाएगी

सबह चार बज तार का जवाब आया डिक रमश टक सी दवारा ढ़िदल ली स चल रहा ह और सबह तक पहच जाएगा परातःकाल करीब-करीब सभी महल लवाल रायबहादर क घर पर उ पखिसथत थ तभी टक सी दरवाज पर रकी रमश रीता और तीन बच च उतर रमश क मह पर तो सामाजिजक लज जा और सकोच की मलिलन छाया थी परत रीता का चहरा सतज और डिनरतिवकार था

रीता क आन का सवाद पाकर अनक सतरिसतरया कौतहलवश आ गई रीता न रायबहादर की लाश क पास अपनी चडिडया तोडी और माग का सिसदर पोछा रमश न डिपता का अडितम सस कार डिकया सतरिसतरया रीता स तरह-तरह क परश न करती थी परत वह कोई उततर न दती थी डिकरयाकम इत याढ़िद म रायबहादर क सजा तीय नात-रिरश तदार आढ़िद बहत कम आए बरहमभोज म गरीबी स एकदम टट हए बराहमण ही आए डिकसी परकार डिकरयाकम समाप त हआ रमश क वहा स चलन का समय आया

मन रायबहादर क अडितम पतर क अनसार सभरात महल लवालो क साथ रीता-रमश को बलाकर सबक सामन उनका वह अडितम पतर पढा और वह तडिकया जो महरबद पटी म मन रखवा ढ़िदया था खलवाया फल ली और नौकरो को रायबहादर की इच छानसार रपय द ढ़िदए गए रायबहादर की अडितम माग पर रीता का डिनणय सनन क लिलए हम सभी उत सक बठ थ रीता बोली म धम और ईश वर क सम मख सचचरिरतर ह मन अपन तन-मन स उन ह सदा ससर ही माना धारमिमक कानन की जिजस मजबरी स उन होन मझ अपनी पत नी बनाया था उस मन डिवषटिधवत उनकी लाश को सौप भी ढ़िदया उनकी चडिडया उनका सिसदर उन ह सौपा लडिकन मरी चडिडया मरा सिसदर अaय ह कहकर उसन दर स अपन हाथ क नीच दबी हई रमाल की पोटली को उठाया उसम हरी चडिडया थी और एक चादी की डिडिबया थी चडिडया पहनी और डिबीया खोलकर रमश की और रखत हए बोली जिजन होन मरी गोद भरी ह उन होन मरी माग भी भरी ह - लीजिजए मरी माग भर दीजिजए

रमश न रीता की माग म सिसदर की रखा खीच दी डिफर रीता बोली घर क सबध म मझ कवल यही कहना ह डिक अगर आप पाच पच मझ दश चरिरतर मानत हो तो उस धमशाला बना दीजिजए

हमम स कोई खम ठोककर एकाएक यह नही कह पाया डिक रीता दश चरिरतर ह मन अनभव डिकया डिक सभी क मनो को इस परश न स धक का लगा था अपन परपरागत धारमिमक सामाजिजक सस कारो क कारण हम रीता को सचरिरतरा मानन स भी मन ही मन डिहचकत थ पर यो क या कह

रीता हमारी डिहचक पर एक बार कहकर उठ गई उसन कहा मझ रायबहादर साहब का घर और दस हजार रपय पान की इच छा नही मर पडित न मझ सहाग की छाव द रक खी ह लडिकन म आपक सामन कसौटी रखती ह - बोलिलए घर डिकसका ह

घर को छोडकर बाकी सब सामान क साथ रमश रीता और उनक बच च ढ़िदल ली चल गए हम अभी तक कोई डिनणय नही कर पाए घर की चाभी मर पास ह वह तोल ढ का लोह का टकडा इस समय मर मन-पराणो का बोझ बना हआ ह

(1961 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

परायभित अमतलाल नागर

जीवन वाढ़िटका का वसत डिवचारो का अधड भलो का पवत और ठोकरो का समह ह यौवन इसी अवसथा म मनय तयागी सदाचारी दश-भt एव समाज-भt भी बनत ह तथा अपन खन क जोश म वह काम कर ढ़िदखात ह जिजसस डिक उनका नाम ससार क इडितहास म सवणाaरो म लिलख ढ़िदया जाता ह तथा इसी आय म मनय डिवलासी

लोलपी और वयभिभचारी भी बन जाता ह और इस परकार अपन जीवन को दो कौडी का बनाकर पतन क खडड म डिगर जाता ह अत म पछताता ह परायभित करता ह परत परतयचा स डिनकाला हआ बाण डिफर वापस नही लौटता खोई हई सचची शाडित डिफर कही नही षटिमलती

मभिणधर सदर यवक था उसक पस (जब) म पसा था और पास म था नवीन उमगो स परिरत हदय वह भोला-भाला सशील यवक था बचारा सीध माग पर जा रहा था यारो न भटका ढ़िदया - दीन को पथ-हीन कर ढ़िदया उस डिनतय-परडित कोठो की सर कराई नई-नई परिरयो की बाकी झाकी ढ़िदखाई उसक उचचडिवचारो का उसकी महतवकाaाओ का अतयत डिनदयता क साथ गला घोट ाला गया बनावटी रप क बाजार न बचार मभिणधर को भरमा ढ़िदया डिपता स पसा मागता था वह अनाथालयो म चदा दन क बहान और उस आख बद कर बहाता था गदी नालिलयो म पाप की सरिरता म घभिणत वnयालयो म

ऐसी डिनराली थी उसकी लीला पडित जी वदध थ अनक कनयाओ क लिशaक थ वातसय परम क अवतार थ डिकसी भी बालिलका क घर खाली हाथ न जात थ षटिमठाई फल डिकताब नोटबक आढ़िद कछ न कछ ल कर ही जात थ तथा डिनतयपरडित पाठ सनकर परतयक को पारिरतोडिषक परदान करत थ बालिलकाए भी उनस अतयत डिहल-षटिमल गई थी उनक सरaकगण भी पडित जी की वातसयता दख गदगद हो जात थ घरवालो क बाद पडित जी ही अपनी छातराओ क डिनरीaक थ सरaक थ बालिलकाए इनक घर जाती हारमोडिनयम बजाती गाती हसती खलती कदती थी पडितजी इसस गदगद हो जात थ तथा बाहरवालो स परमाशर ढरकात हआ कहा करत इनही लडडिकयो क कारण मरा बढापा कटता चला जा रहा ह अनयथा अकल तो इस ससार म मरा एक ढ़िदवस भी काटना भारी पड जाता समसत ससार पडितजी की एक मह स परशसा करता था

बाहरवालो को इस परकार ठाट ढ़िदखाकर पडितजी दसर ही परकार का खल खला करत थ वह अपनी नवयौवना सदर छातराओ को अनय डिवषयो क साथ-साथ परम का पाठ भी पढाया करत थ परत वह परम डिवशदध परम नही वरन परम की आड म भोगलिलsसा की लिशaा थी सतीतव डिवकरय का पाठ था काम-वासना का पाठ पढाकर भोली-भाली बालिलकाओ का जीवन नM कराकर दलाली खान की चाल थी टटटी की आड म लिशकार खला जाता था पडितजी क आस-पास यडिनवरसिसटी तथा कालज क छातर इस परकार भिभनभिभनाया करत थ जिजस परकार डिक गड क आस पास मखिकखया डिवलिचतर थ पडितजी और अदभत थी उनकी माया

रायबहादर ॉ शकरलाल अगनिeनहोतरी का सथान समाज म बहत ऊचा था सभा-सोसाइटी क हाडिकम-हककाम म आदर की दषटिM स दख जात थ वह उनक थी एक कनया - मtा वह हजारो म एक थी - सदरता और सशीलता दोनो म दभाeयवश वदध पडितजी उस पढान क लिलए डिनयt डिकए गए भोली-भाली बालिलका अपन आदश को भलन लगी पडित जी न उसक डिनमल हदय म अपन कखितसत महामतर का बीजारोपण कर ढ़िदया था अनय यवती छातराओ की भाडित मtा भी पडित जी क यहा हारमोडिनयम सीखन जान लगी

पडितजी मtा क रप लावणय को डिकराए पर उठान क लिलए कोई मनचला पस वाला ढढन लग अत म मभिणधर को आपन अपना पातर चन लिलया नई-नई कलिलयो की खोज म भटकन वाला षटिमसिलद इस अपव कली का मदपान करन क लिलए आकलिलत हो उठा इस अवसर पर पडितजी की मटठी गम हो गई दसर ही ढ़िदवस मभिणधर को पडित जी क यहा जाना था वह सधया अतयत ही रमणीक थी मभिण न उस बडी परतीaा करन क पात पाया था आज वह अतयत परसनन था आज उस पडितजी क यहा जाना था वह लब-लब पग रखता हआ चला जा रहा था पडितजी क पापालय की ओर आज उस रपयो की वदी पर वासना-दवी को परसनन करन क लिलए बलिल चढानी थी

मtा पडितजी क यहा बठी हारमोडिनयम पर उगलिलया नचा रही थी और पडितजी उस पलडिकत नतरो स डिनहार रह थ वह बाजा बजान म वयसत थी साहसा मभिणधर क आ जान स हारमोडिनयम बद हो गया लजीली मtा कसv छोडकर एक ओर खडी हो गई पडितजी न डिकतना ही समझाया बटी इनस ल|ा न कर यह तो अपन ही ह जा बजा बाजा बजा अभयागत स|न क सवागत म एक गीत गा परत मtा को अभी ल|ा न न छोडा था वह अपन सथान पर अडिवचल खडी थी उसक सकोमल मनोहारी गाल ल|ावश अगरी की भाडित लाल हो रह थ

अलक आ-आकर उसका एक मधर चबन लन की चMा कर रही थी मभिणधर उस पर मर षटिमटा था वह उस समय बाहय ससार म नही रह गया था यह सब दख पडितजी गनिखसक गए अब उस परको^ म कवल दो ही थ

मभिणधर न मtा का हाथ पकडकर कहा आइए खडी कयो ह मर समीप बठ जाइए मभिणधर धM होता चला जा रहा था मtा जिझझक रही थी परत डिफर भी मौन थी मभिणधर न कहा - कया पडितजी न इस परकार आडितथय सतकार करना लिसखलाया ह डिक घर पर कोई पाहन आव और घरवाला चपचाप खडा रह शभ मर समीप बठ जाइए परम की डिवदयत कला दोनो क शरीर म परवश कर चकी थी मtा इस बार कछ न बोली वह मतर-मeध-सी मभिण क पीछ-पीछ चली आई तथा उसस कछ हटकर पलग पर बठ गई आपका शभ नाम मभिण न जरा मtा क डिनकट आत हए कहा मtा लजीली मtा न धीम सवर म कहा

बातो का परवाह बढा धीर-धीर समसत डिहचक जाती रही और और थोडी दर क पात मtा नीरस हो गई उसकी आब उतर गई थी

डिहजाब नौ उरमा रहबर शौहर नबी मानद अगर मानद शब-मानद शब दीगर नबी मानद

डिहचक खल गई थी मभिण और मtा का परम करमशः बढन लगा था मभिण षटिमसिलद था पप पर उसका परम तभी ही ठहर सकता ह जब तक उसम मद ह परत मtा का परम डिनमल और डिनकलक था वह पाप की सरिरता को पडिवतर परम की गगा समझकर बरोक-टोक बहती ही चली जा रही थी अचानक ठोकर लगी उसक नतर खल गए एक ढ़िदन उसन तथा समसत ससार न दखा डिक वह गभ स थी

समाज म हलचल मच गई शकरलाल जी की नाक तो कट ही गई वह डिकसी को मह ढ़िदखान क योeय न रह गए थ - ऐसा ही लोगो का डिवचार था असत जाडित-डिबरादरी जटी पच-सरपच आए पचायत का काय आरभ हआ मtा क बयान लिलए गए उसन आसओ क बीच लिससडिकयो क साथ-साथ समाज क सामन सपण घटना आदयोपात सना ाली - पडितजी का उसक भोल-भाल सवचछ हदय म काम-वासना का बीजारोपण करना ततपात उसका मभिणधर स परिरचय कराना आढ़िद समसत घटना उसन सना ाली पडितजी न डिगडडिगडात अपनी सफाई पश की तथा मtा स अपनी वदधावसथा पर तरस खान की पराथना की परत मभिणधर शात भाव स बठा रहा

पचो न सलाह दी बढो न हा म हा षटिमला ढ़िदया सरपच महोदय न अपना डिनणय सना ाला सारा दोष मtा क माथ मढा गया वह जाडितचयत कर दी गई रायबहादर क डिपता की भी वही राय थी जो पचो की थी मभिणधर और पडितजी को सचचरिरतरता का सरटिटडिफकट द डिनदyenषी करार द ढ़िदया गया कवल अबला मtा ही दख की धधकती हई अगनिeन म झलसन क लिलए छोड दी गई अत म अतयत कातर भाव स डिनससहाय मtा न सरपच की दोहाई दी - उसक चरणो म डिगर पडी सरपच घबराए हाय भरMा न उनह श कर लिलया था करोषटिधत हो उनहोन उस गरभिभणी डिनससहाय आशरय-हीना यवती को धकक मार कर डिनकाल दन की अनमडित द दी उनकी आजञा का पालन करन क लिलए निहद समाज को वासतव म पतन क खडड म डिगरान वाल नरराaस खशामदी टटट पीर बवचv भिभसती खर की कहावत को चरिरताथ करन वाल इस कलक क सचच अपराधी पडितजी ततaण उठ उस धकका मारकर डिनकालन ही वाल थ - अचानक आवाज आई - ठहरो अनयाय की सीमा भी परिरषटिमत होती ह तम लोगो न उसका भी उलघन कर ाला ह लोगो न नतर घमाकर दखा तो मभिणधर उततजिजत हो डिनल भाव स खडा कह रहा था निहद समाज अधा ह अतयाचारी ह एव उसक सवसवा अथात हमार माननीय पचगण अनपढ ह गवार ह और मख ह जिजनह खर एव खोट सतय और असतय की परख नही वह कया तो नयाय कर सकत ह और कया जाडित-उपकार इसका वासतडिवक अपराधी तो म ह इसका द तो मझ भोगना चाडिहए इस सशील बाला का सतीतव तो मन नM डिकया ह और मझस भी अषटिधक नीच ह यह बगला भगत बना हआ नीच पडित इस दराचारी न अपन सवाथ क लिलए न मालम डिकतनी बालाओ का जीवन नM कराया ह - उनह पथभरM कर ढ़िदया ह जिजस आदरणीय दषटिM स इस नीच को समाज म दखा जाता ह वासतव म यह नीच उसक योeय नही वरन यह नर पश ह लोलपी ह लपट ह सिसह की खाल ओढ हए तचछ गीदड ह - रगा लिसयार ह

सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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व हमारी डिपछली पीढी ह जिजनकी परडितडिकरयाओ पर डिकरयाशील होकर हमारा डिवकास हो रहा ह उनकी खाषटिमया तो तम खब दख लत हो दखनी भी चाडिहए मगर यह ध यान रह डिक खडिबयो की ओर स आख मदना हमार-तम हार लिलए सारी नई पी ढी क लिलए कवल हाडिनपरद ह और कछ नही

भोला न अपनी जब स सोन का लिसगरट कस डिनकाला और चहर पर आडी-डितरछी रखाए ालकर कहन लगा - म समझता था भाई साहब डिक आपन डिहस टरी-उस टरी पढकर बडी समझ पाई होगी - इतना कहकर भोला क चहर पर सतोष और गव का भाव आ गया परोफसर इदरदतत क पढ-लिलखपन को दो कौडी का साडिबत कर भोला सातव आसमान की बजv पर चढ गया - ढकोसला म ढकलनवाली ऐसी डिपछली पीढ़िढयो स हमारा दश और खासतौर स हमारी निहद ससाइटी बहत सफर कर चकी जनाब अब चालीस बरस पहल का जमाना भी नही रहा जो डिपताडिह दवा डिपताडिह धमा रटा-रटाकर य लोग अपनी धास गाठ ल म कहता ह आप परान ह बड डिनष ठावान हहोग अपनी डिनष ठा-डिवष ठा को अपन पास रगनिखए नया जमाना आप लोगो की तानाशाही को बरदाश त नही करगा

तम अगर डिकसी की तानाशाही को बरदाश त नही करोग तो तमहारी तानाशाही

- म क या करता ह जनाब

- तम अपन झठ सधारो का बोझ हर एक पर लादन क लिलए उतावल कयो रहत हो

- तम फफाजी को लिचढात हो भोला म आज साफ-साफ ही कहगा तम और डितरभवन दोनो - इदरदतत न सध स वर म कहा

- म यह सब बवकफी की सी बात सनन का आदी नही ह भाई साहब जनाब हमको गोश त अच छा लगता ह और हम खात ह और जरर खाएग दख आप हमारा क या कर लत ह

- म आपका कछ भी नही कर लगा भोलाशकरजी आप शौक स खाइए मर खयाल म फफाजी न भी इसका कोई डिवरोध नही डिकया वह नही खात उनक सस कार ऐस नही ह तो तम यह क यो चाहत हो डिक वह तम हारी बात मत मानन लग रहा यह डिक उन होन अपना चौका अलग कर लिलया या वह तम लोगो क कारण aब ध ह यह बात तानाशाही नही कही जा सकती उन ह बरा लगता ह बस

- म पछता ह क यो बरा लगता ह मरी भी बड-बड परोफसर और नामी आलिलम-फाजिजलो स ढ़िदन-रात की सोहबत ह आपक वद क जमान क बराहमण और मडिन तो गऊ तक को खा जात थ

भोला न गदन झटकाई उनक चहर का मास थल उठा उनकी लिसगरट जल गई इदरदतत बोल - ठीक ह व खात थ राम-कष ण अजन इदर बगरह भी खात थ पीत भी थ मगर यह कहन स तम उस सस कार को धो तो नही सकत जो समय क अनसार परिरवरतितत हआ और वष णव धम क साथ करीब-करीब राष टरव यापी भी हो गया

- हा तो डिफर दसरा सस कार भी राष टरव यापी हो रहा ह

- हो रहा ह ठीक ह

- तो डिफर दादा हमारा डिवरोध क यो करत ह

- भोला हम फफाजी का न याय नही कर सकत इसलिलए नही डिक हम अयोग य ह वरन इसलिलए डिक हमार न याय क अनसार चलन क लिलए उनक पास अब ढ़िदन नही रह आदत बदलन क लिलए आखिxखरी वt म अब उत साह भी नही रहता

- म पछता ह क यो नही रहता

- यह सरासर जयादती ह तम हारी वह बीता यग ह उस पर हमारा वश नही हमारा वश कवल वतमान और भडिवष य पर ही हो सकता ह डिवगत यग की मान यताओ को उस यग क लिलए हम जस का तसा ही स वीकार करना होगा पहल बात सन लो डिफर कछ कहना हा तो म कह रहा था डिक हम अपन परखो की खडिबया दखनी चाडिहए ताडिक हम उन ह लकर आग बढ सक उनकी खाषटिमयो को या सीमाओ को समझना चाडिहए जिजनस डिक हम आग बढकर अपनी नई सीमा स थाडिपत कर सक उनक ऊपर अपनी सधारवादी मनोवभितत को लादना घोर तानाशाही नही ह

- और वो जो करत ह वह तानाशाही नही ह

- अगर तानाशाही ह तो तम उसका जरर डिवरोध करो मगर नफरत स नही व तम हार अतयत डिनकट क सबधी ह तम हार डिपता ह इतनी शरदधा तम ह करनी होगी उन ह इतनी सहानभडित तम ह दनी ही होगी

इदरदत त बहत शात भाव स पालथी मारकर बठ हए बात कर रह थ

भोला क चहर पर कभी लिचढ और कभी लापरवाही-भरी अकड क साथ लिसगरट का धआ लहराता था इदरदत त की बात सनकर तमककर बोला - अ-अ-आप चाहत ह डिक हम गोश त खाना छोड द

- दोस त अच छा होता डिक तम अगर यह मास-मछली वगरह क अपन शौक कम स कम उनक और बआजी क जीवन-काल म घर स बाहर ही पर करत यह चोरी क लिलए नही उनक लिलहाज क लिलए करत तो परिरवार म और भी शोभा बढती खर झगडा इस बात पर तो ह नही झगडा तो तम हारी

- जलिलयट की वजह स ह वह उनक कमर म जाती ह या अभी हाल ही म उसन सरस वतीजी क मढ़िदर म बच च पदा डिकए तो तो आप एक बजबान जानवर स भी बदला लग जनाब यह आपकी इनसाडिनयत ह

- म कहता ह तमन उसको पाला ही क यो कम स कम मा-बाप का जरा-सा मान तो रखा होता

- इमस मान रखन की क या बात ह भाई साहब - भोला उठकर छोटी-सी जगह म तजी स अकडत हए टहलन लग चारपाई स कमर क एक कोन तक जाकर लौटत हए रककर कहा - हमारा शौक ह हमन डिकया और कोई बरा शौक तो ह नही साहब औरो क फादर-मदस होत ह तो लडको क शौक पर खश होत ह और एक हमारी डिकस मत ह डिक

- तम लिसफ अपनी ही खशी को दखत हो भोला तमन यह नही दखा डिक फफाजी डिकतन धय और सयम स तम लोगो की इन हरकतो को सहन करत ह

- खाक धल ह सयम ह हजारो तो गालिलया द ाली हम लोगो को

- और बदल म तमन उनक ऊपर कडितया छोड दी

- ऐसी ही बहत शदधता का घम ह तो अपनी तरफ दीवार उठवा ल हम जो हमार जी म आएगा करग और अब तो बढ-चढकर करग

- यह तो लडाई की बात हई समझौता नही हआ

- जी हा हम तो खलआम कहत ह डिक हमारा और दादा का समझौता नही हो सकता इस मामल म मरी और डितरभवन की राय एक ह मगर व हमार परोगरलिसव खयालात को नही दख सकत तो उनक लिलए हमार घर म कोई जगह नही ह

- भोला - बडी दर स गदन झकाए खामोश बठी हई मा न कापत स वर म और भीख का सा हाथ बढात हए कहा - बटा उनक आग ऐसी बात भल स भी न कह दना तम हार परो

- कहगा और हजार बार कहगा अब तो हमारी उनकी ठन गई वो हमार लडको-बच चो का पहनना-ओढना नही दख सकत हसता-खलना नही बदाश त कर सकत हम लोगो को बदाश त नही कर सकत तो म भी उनक धम को ठोकर मारता ह उनक ठाकर पोथी पराण सब मर जत की नोक पर ह

मा की आखो स बद टपक पडी उन होन अपना लिसर झका लिलया भोला की यह बदतमीजी इदरदतत को बरी तरह तडपा रही थी स वर ठा रखन का परयत न करत सनक भरी हसी हसत हए बोल - अगर तम हारी यही सब बात नए और परोगरलिसव डिवचारो का परडितडिनषटिधत व वाकई करती हो इसी स मनष य सलिशभिaत और फशनडिबल माना जाता हो म कहगा डिक भोला तम और तम हारी ही तरह का सारा-नया जमाना जगली ह बशकिक उनस भी गया-गजरा ह तम हारा नया जमाना न नया ह न पराना सभ यता सामतो पसवालो क खोलन जोम स बढकर कछ भी नही ह तम हार डिवचार इनसानो क नही हवानो क ह

इदरदतत स वाभाडिवक रप स उलिचत हो उठ

- खर आपको अपनी इनसाडिनयत मबारक रह हम डिहपोकरट लोगो को खब जानत ह और उन ह दर ही स नमस कार करत ह भोलाशकर तमककर खड हए तजी स बाहर चल दवारज पर पहचरकर मा स कहा - तम दादा को समझा दना अम मा म अनशन की ध मडिकयो स जरा भी नही रगा जान ही तो दग तो मर न मगर म उनको यहा नही मरन दगा जाए गगा डिकनार मर यहा उनक लिलए अब जगह नही ह

- पर यह घर अकला तम लोगो का ही नही ह

- खर यह तो हम कोट म दख लग अगर जररत पडी तो लडिकन मरा अब उनस कोई वास ता नही रहा

भोलाशकर चल गए बआजी चपचाप लिसर झकाए टप-टप आस बहाती रही इदरदतत उततजिजत मदरा म बठ थ जिजनक पास डिकसी वस त डिवशष का अभाव रहा हो उसक पास वह वस त थोडी-सी ही हो जाए तो बहत मालम पडती ह इदरदतत क लिलए इतना करोध और उततजना इसी तरह अषटिधक परतीत हो रही थी पल भर चप रहकर आवश म आ बआजी क हाथ पर हाथ रखत हए कहा - तम और फफाजी मर घर चलकर रहो बआ वह भी तो तम हारा ही घर ह

- तम अपन फफाजी स भोला की बातो का जिजकर न करना बटा

- नही

- तम अपन फफाजी का डिकसी तरह स यह बरत तडवा दो बटा तम ह बडा पन न होगा तम ह मरी आत मा उठत-बठत असीसगी मरा भया

- म इसी इराद स आया ह तम भी चलो बआ तम हारा चहरा कह रहा ह डिक तम भी

- अर मरी सिचता कया ह

- हा तम हारी सिचता नही सिचता तो तम ह और फफाजी को करनी ह मरी ओर स

- तम दोनो क भोजन कर लन तक म भी अपन परण स अटल रहगा

बआजी एक aण सिचता म पड गई डिफर मीठी वाणी म समझाकर कहा - दखो भया इदर मर लिलए जस भोला-डितरभवन वस तम जसा य घर वसा वो आज तम अपन फफाजी को डिकसी तरह जिजमा लो उनक बरत टटत की खबर सनत ही तम हारी कसम म आप ही ठाकरजी का भोग पा लगी लडिकन इसी घर म डिकसी क जी को कलस हो बटा ऐसी बात नही करनी चाडिहए क या कह तर फफाजी का करोध मरी कछ चलन नही दव ह अपन जी को कलस दव ह सो दव ह बाकी बच चो क जी को जो कलस लग ह उसक लिलए तो कहा ही क या जाए कलजग कलजग की तर स चलगा भया

इदरदतत कछ दर तक बआ क मन की घटन का खलना दखत रह

पडित दवधरजी भटट न डिनत य-डिनयम क अनसार झटपट समय अपन भतीज क आगन म परवश कर आवाज लगाई-इदरदतत

- आइए फफाजी

सकर टट सीलन-भरी लखौटी-ईटो पर खडाऊ की खट-खट चढती गई इदरदतत कटहर क पास खड थ जीन क दरवाज स बाहर आत हए पडित दवधर उन ह ढ़िदखलाई ढ़िदए उनक भस म लग कपास और दह पर पड ज लिशव छाप क दपटट म उनकी दह स एक आभा-सी फटती हई उन ह महसस हो रही थी फफाजी क आत ही घर बदल गया उन ह दखकर हर रोज ही महसस होता ह पर आज की बात तो न यारी ही थी

फफाजी क चार ढ़िदनो का वरत आज उनक व यलिtत व को इदरदतत की दषटिM म और भी अषटिधक तजोमय बना रहा था फफाजी को लकर आज उनका मन अतयत भावक हो रहा था पीडा पा रहा था इदरदतत न अनभव डिकया डिक फफाजी क चहर पर डिकसी परकार की उततजना नही भख की थकान नही चहरा सखा कछ उतरा हआ अवश य था परत मख की चष टा नही डिबगडी थी पडित दवधर की यह बात इदरदतत को बहत छ रही थी

पडित जी आकर चौकी पर बठ गए इदरदतत उनक सामन मढ पर बठ घर बनन क कारण उनका बठका उजड गया था अभ यागत क आन पर इदरदतत सकोच क साथ इसी टट कमर म उसका स वागत करत फफाजी स तो खर सकोच नही पख का रख उन होन उनकी ओर कर ढ़िदया और डिफर बठ गए कछ दर तक दोनो ओर स खामोशी रही डिफर फफाजी न बात उठाई - तम अभी घर गए थ सना

- जी हा

- तम हारी बआ मझस कह रही थी मन यह भी सना ह डिक तम मर कारण डिकसी परकार का बाल हठ करन की धमकी भी द आए हो

पडित दवधर न अपना दपटटा उतार कर कसv पर रख ढ़िदया पालथी मारकर व सीध तन हए बठ थ उनका परायः पीला पडा हआ गोरा बदन उनक बठन क सधाय क कारण ही शकिरिरचअल जच रहा था अन यथा उनका यह पीलापन उनकी रोगी अवस था का भी परिरचय द रहा था

इदरदत त न सध-सधकर कहना शर डिकया - मरा हठ स वततर नही बडो क हठ म योगदान ह

- इन बातो स कछ लाभ नही इदर मरी गडित क लिलए मर अपन डिनयम ह

- और मर अपन डिनयम भी तो हो सकत ह

- तम ह स वाधीनता ह

- तब मन भी यढ़िद अनशन का फसला डिकया ह तो गलत नही ह

- तम अपन परडित मर स नह पर बोझ लाद रह हो म आत मशजिदध क लिलए वरत कर रहा ह परखो क साधना-गह की जो यह दगडित हई ह यह मर ही डिकसी पाप क कारण अपन अतःकरण की गगा स मझ सरस वती का मढ़िदर धोना ही पडगा तम अपना आगरह लौटा लो बटा

एक षटिमनट क लिलए कमर म डिफर सन नाटा छा गया कवल पख की गज ही उस खामोशी म लहर उठा रही थी

इदरदत त न शात स वर म कहा - एक बात पछ मढ़िदर म कत त क परवश स यढ़िद भगवती अपडिवतर हो जाती ह तो डिफर घट-घट व यापी ईश वर की भावना डिबलकल झठी ह एक ईश वर पडिवतर और दसरा अपडिवतर क यो माना जाए

पडित दवधर चप बठ रह डिफर गभीर होकर कहा - निहद धम बडा गढ ह तम इस झगड म न पडो

- म इस झगड म न पडगा फफाजी पर एक बात सोचता ह भगवान राम अगर परम क वश म होकर शबरी क जठ बर खा सकत थ निहद लोग यढ़िद इस आख यान म डिवश वास रखत ह तो डिफर छत-अछत का कोई परश न ही नही रह जाता यषटिधषटि^र न अपन साथ-साथ चलनवाल कत त क डिबना स वग म जान तक स इनकार कर ढ़िदया था यह सब कहाडिनया क या निहद-धम की मडिहमा बखाननवाली नही ह क या यह महत भाव नही ह डिफर इनक डिवपरीत छआछत क भय स छईमई होनवाल गढ धम की मडिहमा को आप क यो मानत ह इन रढ़िढयो स बधकर मनष य क या अपन को छोटा नही कर लता

पडितजी शाडितपवक सनत रह इदरदत त को भय हआ डिक बरा न मान गए हो तरत बोल - म डिकसी हद तक उत तजिजत जरर ह लडिकन जो कछ पछ रहा ह जिजजञास क रप म ही

- ठीक ह - पडितजी बोल - हमार यहा आचार की बडी मडिहमा ह मनस मडित म आया ह डिक आचारः परथमो धमः जसा आचार होगा वस ही डिवचार भी होग तम शदधाचरण को बरा मानत हो

- जी नही

- तब मरा आचार क यो भरष ट करा रह हो

- ऐसा धष टता करन का डिवचार स वप न म भी मर मन म नही आ सकता हा आपस aमा मागत हए यह जरर कहगा डिक आपक आचार नए यग को डिवचार शलिt नही द पा रह ह इसलिलए उनका मल य मर लिलए कछ नही क बराबर ह म दरतिवनीत नही ह फफाजी परत सच-सच यह अनभव करता ह डिक दडिनया आग बढ रही ह और आपका दषटिMकोण व यथ क रोड की तरह उसकी गडित को अटकाता ह पर इस समय जान दीजिजए म तो यही डिनवदन करन घर गया था और यही मरा आगरह ह डिक आप भोजन कर ल

पडितजी मस कराए इदरदत त क मन म आशा जागी पडितजी बोल - करगा एक शत पर

- आजञा कीजिजए

- जो मर अथात परानी परिरपाटी क यम डिनयम सयम आढ़िद ह व आज स तम ह भी डिनभान पडग जिजनका मल य तम हारी दषटिM म कछ नही ह व आचार-डिवचार मर लिलए पराणो स भी अषटिधक मल यवान ह

इदरदत त सतभिभत रह गए व कभी सोच भी नही सकत थ डिक फफाजी सहसा अनहोनी शत स उन ह बाधन का परयत न करग पछा - कब तक डिनभाना पडगा

- आजीवन

इदरदत त निककतव यडिवमढ हो गए जिजन डिनयमो म उनकी आस था नही जो चीज उनक डिवचारो क अनसार मनष य को अधडिवश वासो स जकड दती ह और जो भारतीय सस कडित का कलक ह उनस उनका परबदध मन भला क यो कर बध सकता ह हा कह तो कस कह उन होन इस वरत डिनयम बलिलदान चमत कार और षटिमथ या डिवश वासो स भर निहद धम को समाज पर घोर अत याचार करत दखा ह अपन-आपको तरह-तरह स परपीडिडत कर धारमिमक कहलानवाला व यलिt इस दश को रसातल म ल गया इस कठोर जीवन को साधनवाल शदधाचरणी बराहमण धम न इस दश की सतरिसतरयो और हीन कहलानवाली जाडितयो को सढ़िदयो तक दासता की चक की म बरी तरह पीसा ह और अब भी बहत काफी हद तक पीस रहा ह हो सकता डिक मनष य की चतना क उगत यग म इस शदध कहलानवाल आचार न अधकार म उन नत डिवचारो की ज योडित जगाई हो पर अब तो सढ़िदयो स इसी झठ धम न औसत भारतवासी को दास अधडिवश वासी और असीम रप स अत याचारो को सहन करनवाला झठी दवीशलिtयो पर यानी अपनी ही धोखा दनवाली लभावनी असभव कल पनाओ पर डिवश वास करनवाला झठा भाग यवादी बनाकर दश की कमर तोड रखी ह इसन औसत भारतवासी स आत मडिवश वास छीन लिलया ह इस जडता क खिxखलाफ उपडिनषद जाग मानवधम जागा योग का जञान जागा बौदध भागवतधम जागा मध यकाल का सत आदोलन उठा और आज क वजञाडिनक यग न तो इस एकदम डिनस सार लिसदध कर सदा क लिलए इसकी कबर ही खोद दी ह यह जड धम कभी भारत को महान नही बना सका होगा भारत की महानता उसक कमयोग म ह उसक व यापक मानवीय दषटिMकोण म ह व यास-वाल मीडिक आढ़िद क परम उदार भावो म ह पराचीन भारत क दशन न याय वशडिषक साडिहत य लिशल प सगीत आढ़िद इस जड धम की उपज हरडिगज नही हो सकत डिफर भी यह जडता भारत पर अस स भत की तरह छाई हई ह इसी स घणा करन क कारण आज का नया भारतीय डिबना जाच-पडताल डिकए अपनी सारी परपराओ स घणा करत हए लिसदधातहीन आस थाहीन और डिनसतरिकरय हो गया ह नही व फफाजी का धम हरडिगज न डिनभा सक ग हरडिगज नही हरडिगज नही पर व भोजन कस करग बआजी कस और कब तक भोजन करगी कसी डिवबना ह दो मनष यो की मौत की नडितक जिजम मदारी उनक ऊपर आएगी

पडित दवधर न उन ह मौन दखकर पछा-कहो भोजन कराओग मझ

- जीम धम-सकट म पड गया ह

- स पष ट कहो मरा धम गरहण करोग

फफाजी आप बहत माग रह ह मरा डिवश वास माग रह ह म आपक धम को यग का धम नही मानता अपना नही मानता

म तम हारी स पष टवाढ़िदता स परसन न ह तम धारमिमक हो इसी तरह अपन स मझको पहचानो म भी अपना धम नही छोड सकता यदयडिप तम हार सत सग स मन इतन ढ़िदनो म यह समझ लिलया ह डिक मरा यग मरा धम अब सदा क लिलए लोप हो रहा ह डिफर भी अडितम सास तक तो हरडिगज नही मरी आस था तपःपत ह तम हारा कल याण हो सखी हो बटा अच छा तो अब चल -

परत मरा अनशन का डिनश चय अडिग ह फफाजी म आपक चरण छकर कह रहा ह

पर छोड दो बट इन परो स पहल ही जडता समा चकी ह और अब तो जीव क साथ ही षटिमटगी अन यथा नही खर कल डिवचार करना अपन अनशन पर

अडितम वाक य पडितजी न इस तरह कहा डिक इदरदतत को करारा झटका लगा पर व मौन रहन पर डिववश थ पडित दवधर चलन लग इदरदतत क मन म भयकर तफान उठ रहा था व हार गए बआजी को क या उततर दग इस अगडित का अत कया होगा क या व फफाजी की बात मान ल कस मान ल यह ठीक ह डिक फफाजी अपन धम पर डिकस परकार एकडिनष ठ ह यह ए कडिनष ठता उन ह बहद परभाडिवत करती ह डिफर भी उनक धम को वह क यो कर स वीकार कर

पडित दवधरजी जीन पर पहचकर रक इदरदतत उनक पीछ-पीछ चल रह थ पडितजी घमकर बोल - तम हारी मान यताओ म मरी आस था नही ह इदर डिफर भी म उसक वास तडिवक पa को कछ-कछ दख अवश य पा रहा ह एक बात और स पष ट करना चाहता ह तम भोला डितरभवन क धम को आज का या डिकसी भी यग का वास तडिवक धम मानत हो

- जी नही उनका कोई धम ही नही ह

- तम हारा कल याण हो बट धन मद स जन म इस खोखल धम स सदा लडना जस म लडा तम अपन मत क अनसार लडो पर लडो अवश य यह आस थाहीन दभ भरा अदाशडिनक अधारमिमक जीवन लोक क लिलए अकल याणकारी ह बोलो वचन दत हो

म आपको अपना डिवश वास दता ह - कहकर इदरजीत न फफाजी क चरण छ लिलए खडाऊ की खट-खट जीन स उतर गई आगन पार डिकया दर चली इदरदतत आकर कट पड स अपन पलग पर डिगर गए

नया यग परान यग स स वच छा स डिवदा हो रहा था पर डिवदा होत समय डिकतना परबल मोह था और डिकतना डिनमम व यवहार भी

धम सकट अमतलाल नागर

शाम का समय था हम लोग परदश दश और डिवश व की राजनीडित पर लबी चचा करन क बाद उस डिवषय स ऊब चक थ चाय बड मौक स आई लडिकन उस ताजगी का सख हम ठीक तरह स उठा भी न पाए थ डिक नौकर न आकर एक सादा बद लिलफाफा मर हाथ म रख ढ़िदया मन खोलकर दखा सामनवाल पडोसी रायबहादर डिगराजडिकशन (डिगरिरराज कष ण) का पतर था कापत हाथो अनषटिमल अaरो और टढी पलिtयो म लिलखा था

माई डियर परताप

मन फल ली को आदश द रक खा ह डिक मरी मत य क बाद यह पतर तम ह फौरन पहचाया जाए तम मर अभिभन न षटिमतर क पतर हो रमश स अषटिधक सदा आजञाकारी रह हो मरी डिनम नलिलगनिखत तीन अडितम इच छाओ को परा करना -

1 रमश को तरत सचना दना मरी आत मा को तभी शाडित षटिमलगी जब उसक हाथो मर अडितम सस कार होग मन उसक साथ अनयाय डिकया ह

2 फल ली को मन पाच हजार रपय ढ़िदए ह और पाच-पाच सौ रपय बाकी चारो नौकरो को नोट मर तडिकए म रई की परत क अदर ह उसी म वसीयत और डितजोरी की चाभी भी ह घर म डिकसी को यह रहस य नही मालम तडिकया अब फौरन अपन कबज म कर लना घर क भार-घर और सदको की चाभिभया डितजोरी म ह रमश क आन पर पाच पचो क सामन उस सौप दना

3 मन अपनी वसीयत म यह शत रक खी ह डिक मरी पत नी अगर मझ माफ कर द और गलत ही सही मगर जो पडितवरत उस पर आन पडा ह उस साधकर रमश को छोडकर बाइज जत यहा रह तो यह मकान और दस हजार रपया उस ढ़िदया जाए लडिकन यह काम उसी हालत म होना चाडिहए जबडिक हम और तम हार दवारा डिनयक त महल ल क चार भल आदमी मरी पत नी की सच चरिरतरता क सबध म आवश स त हो जाए

पतर पर छह रोज पहल की तारीख पडी थी मझ यह समझन म दर न लगी डिक रायबहादर साहब गत हो चक ह पतर मन बड बाब क सामन मज पर रखा ढ़िदया इजीडिनयर साहब और परोफसर साहब भी झककर पढन लग

चाय बमजा हो गई हम सभी उठकर रायबहादर साहब क यहा गए उनका रोबीला चहरा रोग और मानलिसक सिचताओ स जजर होकर मत य क बाद भी उनक अडितम ढ़िदनो क असीम कष टो का परिरचय द रहा था मत रायबहादर क चहर को दखत हए उनक साथ बीत इतन वष की स मडितया मर मन म जाग उठी

रायबहादर बाब डिगराजडिकशन बीए उन निहदस ताडिनयो म स थ जिजन ह तकदीर की चक क कारण इeल म जनम नही षटिमल पाया था उनका रग भी गोरा न था बशकिक गहए स काल की ओर ही अषटिधक झकता हआ था डिफर भरसक उन होन अपन-आपको अगरजनमा ही बनाए रक खा गरीब निहदसताडिनयो पर अकड ढ़िदखान म व सदा अगरजो स चार जत आग रह कई निहदीवाढ़िदयो न उनस शदध नाम डिगरिरराजकष ण रखन को कहा मगर व उन ह मख बतलाकर डिगराज ही बन रह रायबहादर डिगराजडिकशन क नाम क साथ बीए जोडना भी डिनतात आवश यक था सन 23 म रायबहादर डिगराज अपनी डिबरादरी क रायसाहब दीनानाथ की बदौलत इलाहाबाद म छोट लाट क दफतर म भरती हए थ अपनी अगरजपरस ती और हाईक लास खशामद क दम पर रामबहादर ऊची करसिसयो पर चढ बठ स वराज य होन पर आतरिरक कष ट भोगन क बावजद तीन वष तक स वराजी अफसरो नताओ और मडितरयो की भी बाअदब खशामद की डिगराज बाब इन लोगो क सामन जिजस परकार खद दम डिहलात उसी परकार अपन सामन अपन मातहतो की भी डिहलवात थ आजादी क बाद भी दफतर म अपना भला चाहनवाला कोई बाब उनक आग निहदी का एक शब द नही बोल सकता था और घर क लिलए भी यही मशहर था डिक रायबहादर की भस तक अगरजी म ही कारती अगर कोई कसर थी तो सही डिक ली डिगराज क वास त अगरजी का करिरया अaर भी भस बराबर ही था

रायबहादर डिगराज पहली लडाई क जमान क मॉन आदमी थ सबह आख खलत ही घटी बजात सफद कोट पतलन और साफ स लस फल ली आया का लडका घसीट छोटी हाजिजरी लकर हाजिजर होता ठीक आठ बज बडी हाजिजरी पर बठत बटी-बटा साथ होत पर ल ी डिगराज अा-डिबस कट-समाज म कभी न बठी परम कटटर छत-पाकवाली न होत हए भी मास-मछली स उन ह परहज था बशीरत चपरासी क बाप मन न बावचv को हफत म दो ढ़िदन डयटी दनी पडती थी घर क डिनचल डिहस स म डिवलायती रसोई थी एक तरह स कहना चाडिहए डिक नीच का परा घर ही डिवलायती था वहा ल ी डिगराज क बजाय फल ली आया का सामराज य था फल ली पहल अगरजी कोढ़िठयो म काम करती थी अगरजी ढग स निहदस थानी बोलती ह अगरजी घर क कायद जानती ह छोटी-बडी हाजिजरी लच डिनर चाय सबका समय साधती थी इसलिलए डिगराज बाब क बाब डिनयम स दो पग खान स पहल चसडिकयो म मयादा करत थ फली उसका इतजाम भी बखबी कर दती थी इसलिलए आमतौर पर मजाक-मजाक म ही मशहर हो गया था डिक रायबहादर साहब स कोई काम करवान क वास त बजाय ली डिगराज क ल ी फल ली की लिसफारिरश जयादह परअसर होती ह

वस राजबहादर डिगराज म डिकसी न भी कोई ऐब की बात नही दखी-सनी थी अगर ऐब था तो यही डिक व मॉन थ चरट मह म लगाए बगर व बात नही कर पात थ अगर कोई निहदी सभा का चदा मागन आए तो उसस अकडकर कहत डिक मॉन जमान म गवार भाषाओ का उदधार करना डिहमाकत की बात ह धम क सबध म पहल तो व यह कहा करत थ डिक यह ढोग और पागलपन की वस त ह मगर बाद म उस इडियन कल चर का एक सनातन रप मानकर सहन कर जात थ डिगराज साहब थोडा-बहत लन-दन का काम करत थ और उसकी बदौलत उन होन हलिसयत भी बनाई अच छा मॉन ढग का मकान बनवाया उसका नाम ढ़िद नाइटिटगल रकखा मोटर खरीदी सदा दो-चार नौकर पाल घर स लकर दफतर तक घडी साधकर सबस डयटी करवाई पत नी को भी षटिमलन क वास त फल ली क दवारा उनस अप वाइटमट लना पडता था ली इसस जल-फक गई डिक म फल ली स भी गई-बीती हो गई

ली डिगराज न अपन फहडपन म उनक ऊपर एक बहत बडा लाछन लगा ढ़िदया रायबहादर साहब लिसदधाततः और स वभावतः अवध रिरश तो स नफरत करत थ इसलिलए अपनी पत नी क दवारा झठा लाछन लगाए जान क बाद डिफर उन होन कभी उनका मह न दखा बडी लडकी क डिववाह क अवसर पर उन होन कन यादान इसलिलए स वय न डिकया डिक उन ह पजा क पटर पर अपनी पत नी क साथ बठना पडता

इसक बाद दो वष म ली डिगराज घल-घलकर मर गई मगर मरी भी तो डिनयडित क साथ षडयतर करक ठीक इनक रिरटायर होन क ढ़िदन रायबहादर डिगराज को बहत लिशकायत हई अपन बट-बटी स कहा तम हारी मममी को कभी टाइम का सस नही रहा अगर मरना ही था तो कल सबह मरती परसो सबह मर सकती थी आज शाम को दफतर म मरी फयरवल पाट हो जान क बाद कभी मर सकती थी जिजदगी म एडरस पान का यह पहला मौका आया था सो इस तरह तबाहोबबाद कर ढ़िदया ईडियट कही की

इसक बाद मरनवाली तो खर मर ही चकी थी मगर जो भी मातम-परसी क लिलए मह डिबसरत हए आए उन ह भी रायबहादर साहब की ाट खानी पडी जो कहता डिक साहब सनकर बडा दख हआ उसस ही कहत आपको दख करन की जररत क या ह मझ कोई दख नही हआ जो आदमी पदा होता ह उन सबको एक साथ फौरन मर जाना चाडिहए जाइए मर यहा मातम-परसी क लिलए आन की जररत नही

छोटी लडकी की शादी उन होन पत नी की मत य क तीन महीन बाद पव डिनश चय क अनसार ही की स वय ब याहनवाली लडकी और उनक पतर को इसम आपभितत थी मगर उन होन डिकसी की एक न सनी कहा आई हव नो रिरगा फॉर योर मम मी शी वाज एक परफक ट फल लडकी की शादी बडी धमधाम स की एक आईसीएस क बट को अपना दामाद बनाया और बहत कछ दान-दहज दकर रिरटायर होन क बाद भी रोब जतलाया

लडका रमश तब एमए फाइनल म पढ रहा था नामी तज था सदा फस ट क लास रका रहा एमए क बाद आईएएस म बठनवाला था लडकीवाल अनक व यलिt रमश की माग करन क लिलए रायबहादर की सवा म आन लग रायबहादर डिगराज को अब मातहत क लक पर न सही तो ब टीवालो पर ही चरट का रोब झाडकर भरपर सतोष षटिमल जाता था दहज क मामल म व पक क मॉन थ यानी पच चीस हजार मागत थ एकाध डिपछल जानकार न दहाई दी डिक आप तो दहज क डिवरदध थ उसको परानी परथा बतलात थ तो बोल साहब जब मझ स बड अफसर आईसीएस आदमी यानी मर समधी साहब दहज लन को मॉन परथा मानत ह तो मन भी अपन डिवचार बदल ढ़िदए ह डिनहायत साइढ़िटडिफक बात ह डिक आपको दामाद चाडिहए और मझ 25 हजार रपया मरा रमश आईएएस पास करगा आप अपनी लडकी का फयचर दखकर अगर इतनी रक कम दना स वीकार करत ह तो बढ़िठए वरना मरी करसी की गददी मली मत डिकजिजए

व ऐसी लडकी चाहत थ जो सदर हो बीए हो गाती नाचती हो सीना-डिपरोना-बनना जानती हो अगरजी म फटाफट बात कर अफसर डिकसम क मॉन महमानो की खाडितर करन म तमीजदार हो और ऊपर स उसका बाप नगद पच चीस हजार रपय भी द जाए डिबरादरी क कई अच छी हलिसयतवाल बढ़िटयो क बापो क चहर रायबहादर डिगराज क चरट की अकड स धआ-छआ हो गए

एक ढ़िदन इनक दवारा नौकर रखाए गए परान मातहत एक सजातीय बाब दवीशकर पधार डिगराज की मडिहमाओ का बखान करत हए उन होन कहा सर म आपकी च वायस को जानता ह और एक लडकी मरी नजर म ह

इन बाब क साथ उन होन रीता को दखन का अवसर पाया रीता रायसाहब चमनलाल की इकलौती बटी थी रायसाहब चमनलाल न अपन जमान म बड ऐश बड नाम डिकए व शहर की तवायफो क सरताज थ रस क घोडो क सरपस त थ और बड ही औला-पौला आदमी थ अपन जीवन-काल म लाखो कमाए और लाखो फक एक लडकी हई उस बड लाड स पाला-पोसा पढाया हाई स कल तक रीता न परीaाओ तथा वाद-डिववाद और नत य-परडितयोडिगताओ म अनक परस कार पराप त कर अपन डिपता को सतष ट डिकया था रायसाहब डिवधर थ रीता की एक डिवधवा मौसी उनकी लडकी की दखभाल करन क लिलए उनक यहा रहती थी सो तब तरह स उनकी ही हो गई थी रायसाहब न आख मदकर अपना घर अपनी रभिaता साली को सौप रक खा था

बाद म रायसाहब चमनलाल की जन मकली क गरह-नaतर पहट बडा घाटा आया ढ़िदवालिलए होन की नौबत आ गई अपनी लडकी क वास त कछ रकम बचान की नीयत स उन होन एक बगला अपनी साली क नाम स खरीदा और लगभग एक लाख रपया नगद और जवरो क रप म बचाकर उसी क नाम स जमा करवा ढ़िदया डिफर रायसाहब ढ़िदवालिलए हो गए और जिजस ढ़िदन उन ह अपनी महलनमा कोठी सदा क लिलए छोडनी थी उस ढ़िदन उन होन गहर नश म अपनी कनपटी पर रिरवाल वर रखकर अपनी इहलीला समाप त कर दी रायसाहब की मत य क बाद मौसी सयानी हो गई और रीता अनाथ

लडकी दखन गए तो उसकी दो चोढ़िटयो म डित तलिलयो जस रिरबन दखकर रायबहादर साहब क पशन पराप त जीवन म नई रस की गलाबी आई अनक वष का सोया हआ मॉन पत नी का अभाव जाग उठा लडकी रीता बातचीत म तज आख नचान म बाकमल और हसन म डिबजली थी दखकर लौट तो रास त म दवीशकर स बोल लडकी तो अच छी ह और दहज का भी मझ कोई खास नही क योडिक तम तो जानत ही हो डिक म इन सब मामलो म बडा मॉन ह खाली एक परयोजन ह क - अ - क या नाम क आई मीन तम हारा क या खयाल ह दवीशकर अभी तो म भी शादी कर सकता ह

दवीशकर रायबहादर को घरत लग मह पर खशामद स हा क बजाय ना भला क यो कर कहत मौसी क लिलए इसस बढकर काई शभ सवाद न हो सकता था अठारह वष की आय की रीता छsपन वषvय रायबहादर डिगराजडिकशन की पत नी बनी

और इसक बाद की तमाम बात अपन करम म बढ गई रीता न परथम ढ़िदन स ही अपन पडित स कोई सबध न रकखा हठपवक अपन कमर क अदर बद रही रायबहादर रपय-पस गहनो और खशामदो की बडी-बडी नमायश लगाकर हार गए डिफर एक ढ़िदन फल ली न बतलाया डिक रमश और रीता रायबहादर दवारा स थाडिपत सबध को भलकर परस पर नया सबध स थाडिपत कर रह ह रायबहादर आग हो गए रमश तब एमए क अडितम वष म पढ रहा था डिपता न करोध म अध होकर उस पर परहार डिकया और घर स डिनकाल ढ़िदया रीता तब भी उनकी न हई

रमश को दो महीन बाद ही ढ़िदल ली म कोई नौकरी षटिमल गई और उसक महीन-भर बाद ही रीता रायबहादर क घर स गायब होकर ढ़िदल ली पहच गई जान स पव वह एक अलबला काम कर गई थी महल ल क पच चास घरो म हर पत पर उनका लिलखा पोस टका उसक गायब होन क दसर ही ढ़िदन पहली ाक स पहचा उसम मातर इतना ही लिलखा था बाब डिगरिरराजकष ण न मझ जबरदस ती अपनी पत नी बनाया था मगर मन उन ह कभी अपना पडित न माना और न अपना धम ही ढ़िदया डिववाह स पहल मझ बतलाया गया डिक म उनक पतर को ब याही जाऊगी तब स मन उनक पतर को ही अपना पडित माना इस घर म आकर भी उन ह ही भगवान की साaी म अपन को सौपा और अब म अपन पडित क पास ही जा रही ह

रीता क भागन स रायबहादर बाब डिगराजडिकशन को इतना कष ट नही पहचा था जिजतना डिक उसक दवारा भज गए इस सावजडिनक पतर स व दखी हए इसक बाद रायबहादर का जीवन बदल गया उनम पजा-पाठ और आशकिसतकता की भावना जागी साथ ही अकलापन भी हठ पकड गया डिपछल आठ वष म व एक ढ़िदन भी अपन घर स बाहर डिनकलकर कही न गए लन-दन का काम करत थ वह भी धीर-धीर समाप त कर ढ़िदया महल ल म डिकसी स भी सपक न रक खा डिपछल कछ ढ़िदनो स बीमार थ मगर महल लवाल उनकी हालत दखन-पछन भी न गए जात तो षटिमलत भी नही और अचानक मर पास अब यह पतर आया

हम सभी महल लवाल एकाएक यह डिनणय न कर पाए डिक इस खिसथडित म क या करना चाडिहए वदयजी और बड बाब इस पa म थ डिक पलिलस को सचना द दी जाए और इस पतर को लिलखी हई बातो का अमल भी कानन क हाथो ही हो परत म तो मत व यलिt की अडितम इच छा परी करन क पa म था रायबहादर कस भी रह हो इसी महल ल क थ कइयो को उन होन कभी नौकरिरया भी ढ़िदलाई थी उपकार डिकया था इजीडिनयर साहब भी मर ही मत क थ बाद म सभी राजी हो गए महल ल क एक षटिमतर क पास रमश क पतर आया करत थ उसी स पता लकर तार भजा गया जिजसम यह स पष ट लिलख ढ़िदया था डिक यढ़िद कल परातःकाल तक तम स वय अथवा तम हारा पतर उततर न आएगा तो रायबहादर की अत योषटिM डिकरया महल लवालो दवारा ही पचनाम स सपन न कर दी जाएगी

सबह चार बज तार का जवाब आया डिक रमश टक सी दवारा ढ़िदल ली स चल रहा ह और सबह तक पहच जाएगा परातःकाल करीब-करीब सभी महल लवाल रायबहादर क घर पर उ पखिसथत थ तभी टक सी दरवाज पर रकी रमश रीता और तीन बच च उतर रमश क मह पर तो सामाजिजक लज जा और सकोच की मलिलन छाया थी परत रीता का चहरा सतज और डिनरतिवकार था

रीता क आन का सवाद पाकर अनक सतरिसतरया कौतहलवश आ गई रीता न रायबहादर की लाश क पास अपनी चडिडया तोडी और माग का सिसदर पोछा रमश न डिपता का अडितम सस कार डिकया सतरिसतरया रीता स तरह-तरह क परश न करती थी परत वह कोई उततर न दती थी डिकरयाकम इत याढ़िद म रायबहादर क सजा तीय नात-रिरश तदार आढ़िद बहत कम आए बरहमभोज म गरीबी स एकदम टट हए बराहमण ही आए डिकसी परकार डिकरयाकम समाप त हआ रमश क वहा स चलन का समय आया

मन रायबहादर क अडितम पतर क अनसार सभरात महल लवालो क साथ रीता-रमश को बलाकर सबक सामन उनका वह अडितम पतर पढा और वह तडिकया जो महरबद पटी म मन रखवा ढ़िदया था खलवाया फल ली और नौकरो को रायबहादर की इच छानसार रपय द ढ़िदए गए रायबहादर की अडितम माग पर रीता का डिनणय सनन क लिलए हम सभी उत सक बठ थ रीता बोली म धम और ईश वर क सम मख सचचरिरतर ह मन अपन तन-मन स उन ह सदा ससर ही माना धारमिमक कानन की जिजस मजबरी स उन होन मझ अपनी पत नी बनाया था उस मन डिवषटिधवत उनकी लाश को सौप भी ढ़िदया उनकी चडिडया उनका सिसदर उन ह सौपा लडिकन मरी चडिडया मरा सिसदर अaय ह कहकर उसन दर स अपन हाथ क नीच दबी हई रमाल की पोटली को उठाया उसम हरी चडिडया थी और एक चादी की डिडिबया थी चडिडया पहनी और डिबीया खोलकर रमश की और रखत हए बोली जिजन होन मरी गोद भरी ह उन होन मरी माग भी भरी ह - लीजिजए मरी माग भर दीजिजए

रमश न रीता की माग म सिसदर की रखा खीच दी डिफर रीता बोली घर क सबध म मझ कवल यही कहना ह डिक अगर आप पाच पच मझ दश चरिरतर मानत हो तो उस धमशाला बना दीजिजए

हमम स कोई खम ठोककर एकाएक यह नही कह पाया डिक रीता दश चरिरतर ह मन अनभव डिकया डिक सभी क मनो को इस परश न स धक का लगा था अपन परपरागत धारमिमक सामाजिजक सस कारो क कारण हम रीता को सचरिरतरा मानन स भी मन ही मन डिहचकत थ पर यो क या कह

रीता हमारी डिहचक पर एक बार कहकर उठ गई उसन कहा मझ रायबहादर साहब का घर और दस हजार रपय पान की इच छा नही मर पडित न मझ सहाग की छाव द रक खी ह लडिकन म आपक सामन कसौटी रखती ह - बोलिलए घर डिकसका ह

घर को छोडकर बाकी सब सामान क साथ रमश रीता और उनक बच च ढ़िदल ली चल गए हम अभी तक कोई डिनणय नही कर पाए घर की चाभी मर पास ह वह तोल ढ का लोह का टकडा इस समय मर मन-पराणो का बोझ बना हआ ह

(1961 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

परायभित अमतलाल नागर

जीवन वाढ़िटका का वसत डिवचारो का अधड भलो का पवत और ठोकरो का समह ह यौवन इसी अवसथा म मनय तयागी सदाचारी दश-भt एव समाज-भt भी बनत ह तथा अपन खन क जोश म वह काम कर ढ़िदखात ह जिजसस डिक उनका नाम ससार क इडितहास म सवणाaरो म लिलख ढ़िदया जाता ह तथा इसी आय म मनय डिवलासी

लोलपी और वयभिभचारी भी बन जाता ह और इस परकार अपन जीवन को दो कौडी का बनाकर पतन क खडड म डिगर जाता ह अत म पछताता ह परायभित करता ह परत परतयचा स डिनकाला हआ बाण डिफर वापस नही लौटता खोई हई सचची शाडित डिफर कही नही षटिमलती

मभिणधर सदर यवक था उसक पस (जब) म पसा था और पास म था नवीन उमगो स परिरत हदय वह भोला-भाला सशील यवक था बचारा सीध माग पर जा रहा था यारो न भटका ढ़िदया - दीन को पथ-हीन कर ढ़िदया उस डिनतय-परडित कोठो की सर कराई नई-नई परिरयो की बाकी झाकी ढ़िदखाई उसक उचचडिवचारो का उसकी महतवकाaाओ का अतयत डिनदयता क साथ गला घोट ाला गया बनावटी रप क बाजार न बचार मभिणधर को भरमा ढ़िदया डिपता स पसा मागता था वह अनाथालयो म चदा दन क बहान और उस आख बद कर बहाता था गदी नालिलयो म पाप की सरिरता म घभिणत वnयालयो म

ऐसी डिनराली थी उसकी लीला पडित जी वदध थ अनक कनयाओ क लिशaक थ वातसय परम क अवतार थ डिकसी भी बालिलका क घर खाली हाथ न जात थ षटिमठाई फल डिकताब नोटबक आढ़िद कछ न कछ ल कर ही जात थ तथा डिनतयपरडित पाठ सनकर परतयक को पारिरतोडिषक परदान करत थ बालिलकाए भी उनस अतयत डिहल-षटिमल गई थी उनक सरaकगण भी पडित जी की वातसयता दख गदगद हो जात थ घरवालो क बाद पडित जी ही अपनी छातराओ क डिनरीaक थ सरaक थ बालिलकाए इनक घर जाती हारमोडिनयम बजाती गाती हसती खलती कदती थी पडितजी इसस गदगद हो जात थ तथा बाहरवालो स परमाशर ढरकात हआ कहा करत इनही लडडिकयो क कारण मरा बढापा कटता चला जा रहा ह अनयथा अकल तो इस ससार म मरा एक ढ़िदवस भी काटना भारी पड जाता समसत ससार पडितजी की एक मह स परशसा करता था

बाहरवालो को इस परकार ठाट ढ़िदखाकर पडितजी दसर ही परकार का खल खला करत थ वह अपनी नवयौवना सदर छातराओ को अनय डिवषयो क साथ-साथ परम का पाठ भी पढाया करत थ परत वह परम डिवशदध परम नही वरन परम की आड म भोगलिलsसा की लिशaा थी सतीतव डिवकरय का पाठ था काम-वासना का पाठ पढाकर भोली-भाली बालिलकाओ का जीवन नM कराकर दलाली खान की चाल थी टटटी की आड म लिशकार खला जाता था पडितजी क आस-पास यडिनवरसिसटी तथा कालज क छातर इस परकार भिभनभिभनाया करत थ जिजस परकार डिक गड क आस पास मखिकखया डिवलिचतर थ पडितजी और अदभत थी उनकी माया

रायबहादर ॉ शकरलाल अगनिeनहोतरी का सथान समाज म बहत ऊचा था सभा-सोसाइटी क हाडिकम-हककाम म आदर की दषटिM स दख जात थ वह उनक थी एक कनया - मtा वह हजारो म एक थी - सदरता और सशीलता दोनो म दभाeयवश वदध पडितजी उस पढान क लिलए डिनयt डिकए गए भोली-भाली बालिलका अपन आदश को भलन लगी पडित जी न उसक डिनमल हदय म अपन कखितसत महामतर का बीजारोपण कर ढ़िदया था अनय यवती छातराओ की भाडित मtा भी पडित जी क यहा हारमोडिनयम सीखन जान लगी

पडितजी मtा क रप लावणय को डिकराए पर उठान क लिलए कोई मनचला पस वाला ढढन लग अत म मभिणधर को आपन अपना पातर चन लिलया नई-नई कलिलयो की खोज म भटकन वाला षटिमसिलद इस अपव कली का मदपान करन क लिलए आकलिलत हो उठा इस अवसर पर पडितजी की मटठी गम हो गई दसर ही ढ़िदवस मभिणधर को पडित जी क यहा जाना था वह सधया अतयत ही रमणीक थी मभिण न उस बडी परतीaा करन क पात पाया था आज वह अतयत परसनन था आज उस पडितजी क यहा जाना था वह लब-लब पग रखता हआ चला जा रहा था पडितजी क पापालय की ओर आज उस रपयो की वदी पर वासना-दवी को परसनन करन क लिलए बलिल चढानी थी

मtा पडितजी क यहा बठी हारमोडिनयम पर उगलिलया नचा रही थी और पडितजी उस पलडिकत नतरो स डिनहार रह थ वह बाजा बजान म वयसत थी साहसा मभिणधर क आ जान स हारमोडिनयम बद हो गया लजीली मtा कसv छोडकर एक ओर खडी हो गई पडितजी न डिकतना ही समझाया बटी इनस ल|ा न कर यह तो अपन ही ह जा बजा बाजा बजा अभयागत स|न क सवागत म एक गीत गा परत मtा को अभी ल|ा न न छोडा था वह अपन सथान पर अडिवचल खडी थी उसक सकोमल मनोहारी गाल ल|ावश अगरी की भाडित लाल हो रह थ

अलक आ-आकर उसका एक मधर चबन लन की चMा कर रही थी मभिणधर उस पर मर षटिमटा था वह उस समय बाहय ससार म नही रह गया था यह सब दख पडितजी गनिखसक गए अब उस परको^ म कवल दो ही थ

मभिणधर न मtा का हाथ पकडकर कहा आइए खडी कयो ह मर समीप बठ जाइए मभिणधर धM होता चला जा रहा था मtा जिझझक रही थी परत डिफर भी मौन थी मभिणधर न कहा - कया पडितजी न इस परकार आडितथय सतकार करना लिसखलाया ह डिक घर पर कोई पाहन आव और घरवाला चपचाप खडा रह शभ मर समीप बठ जाइए परम की डिवदयत कला दोनो क शरीर म परवश कर चकी थी मtा इस बार कछ न बोली वह मतर-मeध-सी मभिण क पीछ-पीछ चली आई तथा उसस कछ हटकर पलग पर बठ गई आपका शभ नाम मभिण न जरा मtा क डिनकट आत हए कहा मtा लजीली मtा न धीम सवर म कहा

बातो का परवाह बढा धीर-धीर समसत डिहचक जाती रही और और थोडी दर क पात मtा नीरस हो गई उसकी आब उतर गई थी

डिहजाब नौ उरमा रहबर शौहर नबी मानद अगर मानद शब-मानद शब दीगर नबी मानद

डिहचक खल गई थी मभिण और मtा का परम करमशः बढन लगा था मभिण षटिमसिलद था पप पर उसका परम तभी ही ठहर सकता ह जब तक उसम मद ह परत मtा का परम डिनमल और डिनकलक था वह पाप की सरिरता को पडिवतर परम की गगा समझकर बरोक-टोक बहती ही चली जा रही थी अचानक ठोकर लगी उसक नतर खल गए एक ढ़िदन उसन तथा समसत ससार न दखा डिक वह गभ स थी

समाज म हलचल मच गई शकरलाल जी की नाक तो कट ही गई वह डिकसी को मह ढ़िदखान क योeय न रह गए थ - ऐसा ही लोगो का डिवचार था असत जाडित-डिबरादरी जटी पच-सरपच आए पचायत का काय आरभ हआ मtा क बयान लिलए गए उसन आसओ क बीच लिससडिकयो क साथ-साथ समाज क सामन सपण घटना आदयोपात सना ाली - पडितजी का उसक भोल-भाल सवचछ हदय म काम-वासना का बीजारोपण करना ततपात उसका मभिणधर स परिरचय कराना आढ़िद समसत घटना उसन सना ाली पडितजी न डिगडडिगडात अपनी सफाई पश की तथा मtा स अपनी वदधावसथा पर तरस खान की पराथना की परत मभिणधर शात भाव स बठा रहा

पचो न सलाह दी बढो न हा म हा षटिमला ढ़िदया सरपच महोदय न अपना डिनणय सना ाला सारा दोष मtा क माथ मढा गया वह जाडितचयत कर दी गई रायबहादर क डिपता की भी वही राय थी जो पचो की थी मभिणधर और पडितजी को सचचरिरतरता का सरटिटडिफकट द डिनदyenषी करार द ढ़िदया गया कवल अबला मtा ही दख की धधकती हई अगनिeन म झलसन क लिलए छोड दी गई अत म अतयत कातर भाव स डिनससहाय मtा न सरपच की दोहाई दी - उसक चरणो म डिगर पडी सरपच घबराए हाय भरMा न उनह श कर लिलया था करोषटिधत हो उनहोन उस गरभिभणी डिनससहाय आशरय-हीना यवती को धकक मार कर डिनकाल दन की अनमडित द दी उनकी आजञा का पालन करन क लिलए निहद समाज को वासतव म पतन क खडड म डिगरान वाल नरराaस खशामदी टटट पीर बवचv भिभसती खर की कहावत को चरिरताथ करन वाल इस कलक क सचच अपराधी पडितजी ततaण उठ उस धकका मारकर डिनकालन ही वाल थ - अचानक आवाज आई - ठहरो अनयाय की सीमा भी परिरषटिमत होती ह तम लोगो न उसका भी उलघन कर ाला ह लोगो न नतर घमाकर दखा तो मभिणधर उततजिजत हो डिनल भाव स खडा कह रहा था निहद समाज अधा ह अतयाचारी ह एव उसक सवसवा अथात हमार माननीय पचगण अनपढ ह गवार ह और मख ह जिजनह खर एव खोट सतय और असतय की परख नही वह कया तो नयाय कर सकत ह और कया जाडित-उपकार इसका वासतडिवक अपराधी तो म ह इसका द तो मझ भोगना चाडिहए इस सशील बाला का सतीतव तो मन नM डिकया ह और मझस भी अषटिधक नीच ह यह बगला भगत बना हआ नीच पडित इस दराचारी न अपन सवाथ क लिलए न मालम डिकतनी बालाओ का जीवन नM कराया ह - उनह पथभरM कर ढ़िदया ह जिजस आदरणीय दषटिM स इस नीच को समाज म दखा जाता ह वासतव म यह नीच उसक योeय नही वरन यह नर पश ह लोलपी ह लपट ह सिसह की खाल ओढ हए तचछ गीदड ह - रगा लिसयार ह

सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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- म पछता ह क यो नही रहता

- यह सरासर जयादती ह तम हारी वह बीता यग ह उस पर हमारा वश नही हमारा वश कवल वतमान और भडिवष य पर ही हो सकता ह डिवगत यग की मान यताओ को उस यग क लिलए हम जस का तसा ही स वीकार करना होगा पहल बात सन लो डिफर कछ कहना हा तो म कह रहा था डिक हम अपन परखो की खडिबया दखनी चाडिहए ताडिक हम उन ह लकर आग बढ सक उनकी खाषटिमयो को या सीमाओ को समझना चाडिहए जिजनस डिक हम आग बढकर अपनी नई सीमा स थाडिपत कर सक उनक ऊपर अपनी सधारवादी मनोवभितत को लादना घोर तानाशाही नही ह

- और वो जो करत ह वह तानाशाही नही ह

- अगर तानाशाही ह तो तम उसका जरर डिवरोध करो मगर नफरत स नही व तम हार अतयत डिनकट क सबधी ह तम हार डिपता ह इतनी शरदधा तम ह करनी होगी उन ह इतनी सहानभडित तम ह दनी ही होगी

इदरदत त बहत शात भाव स पालथी मारकर बठ हए बात कर रह थ

भोला क चहर पर कभी लिचढ और कभी लापरवाही-भरी अकड क साथ लिसगरट का धआ लहराता था इदरदत त की बात सनकर तमककर बोला - अ-अ-आप चाहत ह डिक हम गोश त खाना छोड द

- दोस त अच छा होता डिक तम अगर यह मास-मछली वगरह क अपन शौक कम स कम उनक और बआजी क जीवन-काल म घर स बाहर ही पर करत यह चोरी क लिलए नही उनक लिलहाज क लिलए करत तो परिरवार म और भी शोभा बढती खर झगडा इस बात पर तो ह नही झगडा तो तम हारी

- जलिलयट की वजह स ह वह उनक कमर म जाती ह या अभी हाल ही म उसन सरस वतीजी क मढ़िदर म बच च पदा डिकए तो तो आप एक बजबान जानवर स भी बदला लग जनाब यह आपकी इनसाडिनयत ह

- म कहता ह तमन उसको पाला ही क यो कम स कम मा-बाप का जरा-सा मान तो रखा होता

- इमस मान रखन की क या बात ह भाई साहब - भोला उठकर छोटी-सी जगह म तजी स अकडत हए टहलन लग चारपाई स कमर क एक कोन तक जाकर लौटत हए रककर कहा - हमारा शौक ह हमन डिकया और कोई बरा शौक तो ह नही साहब औरो क फादर-मदस होत ह तो लडको क शौक पर खश होत ह और एक हमारी डिकस मत ह डिक

- तम लिसफ अपनी ही खशी को दखत हो भोला तमन यह नही दखा डिक फफाजी डिकतन धय और सयम स तम लोगो की इन हरकतो को सहन करत ह

- खाक धल ह सयम ह हजारो तो गालिलया द ाली हम लोगो को

- और बदल म तमन उनक ऊपर कडितया छोड दी

- ऐसी ही बहत शदधता का घम ह तो अपनी तरफ दीवार उठवा ल हम जो हमार जी म आएगा करग और अब तो बढ-चढकर करग

- यह तो लडाई की बात हई समझौता नही हआ

- जी हा हम तो खलआम कहत ह डिक हमारा और दादा का समझौता नही हो सकता इस मामल म मरी और डितरभवन की राय एक ह मगर व हमार परोगरलिसव खयालात को नही दख सकत तो उनक लिलए हमार घर म कोई जगह नही ह

- भोला - बडी दर स गदन झकाए खामोश बठी हई मा न कापत स वर म और भीख का सा हाथ बढात हए कहा - बटा उनक आग ऐसी बात भल स भी न कह दना तम हार परो

- कहगा और हजार बार कहगा अब तो हमारी उनकी ठन गई वो हमार लडको-बच चो का पहनना-ओढना नही दख सकत हसता-खलना नही बदाश त कर सकत हम लोगो को बदाश त नही कर सकत तो म भी उनक धम को ठोकर मारता ह उनक ठाकर पोथी पराण सब मर जत की नोक पर ह

मा की आखो स बद टपक पडी उन होन अपना लिसर झका लिलया भोला की यह बदतमीजी इदरदतत को बरी तरह तडपा रही थी स वर ठा रखन का परयत न करत सनक भरी हसी हसत हए बोल - अगर तम हारी यही सब बात नए और परोगरलिसव डिवचारो का परडितडिनषटिधत व वाकई करती हो इसी स मनष य सलिशभिaत और फशनडिबल माना जाता हो म कहगा डिक भोला तम और तम हारी ही तरह का सारा-नया जमाना जगली ह बशकिक उनस भी गया-गजरा ह तम हारा नया जमाना न नया ह न पराना सभ यता सामतो पसवालो क खोलन जोम स बढकर कछ भी नही ह तम हार डिवचार इनसानो क नही हवानो क ह

इदरदतत स वाभाडिवक रप स उलिचत हो उठ

- खर आपको अपनी इनसाडिनयत मबारक रह हम डिहपोकरट लोगो को खब जानत ह और उन ह दर ही स नमस कार करत ह भोलाशकर तमककर खड हए तजी स बाहर चल दवारज पर पहचरकर मा स कहा - तम दादा को समझा दना अम मा म अनशन की ध मडिकयो स जरा भी नही रगा जान ही तो दग तो मर न मगर म उनको यहा नही मरन दगा जाए गगा डिकनार मर यहा उनक लिलए अब जगह नही ह

- पर यह घर अकला तम लोगो का ही नही ह

- खर यह तो हम कोट म दख लग अगर जररत पडी तो लडिकन मरा अब उनस कोई वास ता नही रहा

भोलाशकर चल गए बआजी चपचाप लिसर झकाए टप-टप आस बहाती रही इदरदतत उततजिजत मदरा म बठ थ जिजनक पास डिकसी वस त डिवशष का अभाव रहा हो उसक पास वह वस त थोडी-सी ही हो जाए तो बहत मालम पडती ह इदरदतत क लिलए इतना करोध और उततजना इसी तरह अषटिधक परतीत हो रही थी पल भर चप रहकर आवश म आ बआजी क हाथ पर हाथ रखत हए कहा - तम और फफाजी मर घर चलकर रहो बआ वह भी तो तम हारा ही घर ह

- तम अपन फफाजी स भोला की बातो का जिजकर न करना बटा

- नही

- तम अपन फफाजी का डिकसी तरह स यह बरत तडवा दो बटा तम ह बडा पन न होगा तम ह मरी आत मा उठत-बठत असीसगी मरा भया

- म इसी इराद स आया ह तम भी चलो बआ तम हारा चहरा कह रहा ह डिक तम भी

- अर मरी सिचता कया ह

- हा तम हारी सिचता नही सिचता तो तम ह और फफाजी को करनी ह मरी ओर स

- तम दोनो क भोजन कर लन तक म भी अपन परण स अटल रहगा

बआजी एक aण सिचता म पड गई डिफर मीठी वाणी म समझाकर कहा - दखो भया इदर मर लिलए जस भोला-डितरभवन वस तम जसा य घर वसा वो आज तम अपन फफाजी को डिकसी तरह जिजमा लो उनक बरत टटत की खबर सनत ही तम हारी कसम म आप ही ठाकरजी का भोग पा लगी लडिकन इसी घर म डिकसी क जी को कलस हो बटा ऐसी बात नही करनी चाडिहए क या कह तर फफाजी का करोध मरी कछ चलन नही दव ह अपन जी को कलस दव ह सो दव ह बाकी बच चो क जी को जो कलस लग ह उसक लिलए तो कहा ही क या जाए कलजग कलजग की तर स चलगा भया

इदरदतत कछ दर तक बआ क मन की घटन का खलना दखत रह

पडित दवधरजी भटट न डिनत य-डिनयम क अनसार झटपट समय अपन भतीज क आगन म परवश कर आवाज लगाई-इदरदतत

- आइए फफाजी

सकर टट सीलन-भरी लखौटी-ईटो पर खडाऊ की खट-खट चढती गई इदरदतत कटहर क पास खड थ जीन क दरवाज स बाहर आत हए पडित दवधर उन ह ढ़िदखलाई ढ़िदए उनक भस म लग कपास और दह पर पड ज लिशव छाप क दपटट म उनकी दह स एक आभा-सी फटती हई उन ह महसस हो रही थी फफाजी क आत ही घर बदल गया उन ह दखकर हर रोज ही महसस होता ह पर आज की बात तो न यारी ही थी

फफाजी क चार ढ़िदनो का वरत आज उनक व यलिtत व को इदरदतत की दषटिM म और भी अषटिधक तजोमय बना रहा था फफाजी को लकर आज उनका मन अतयत भावक हो रहा था पीडा पा रहा था इदरदतत न अनभव डिकया डिक फफाजी क चहर पर डिकसी परकार की उततजना नही भख की थकान नही चहरा सखा कछ उतरा हआ अवश य था परत मख की चष टा नही डिबगडी थी पडित दवधर की यह बात इदरदतत को बहत छ रही थी

पडित जी आकर चौकी पर बठ गए इदरदतत उनक सामन मढ पर बठ घर बनन क कारण उनका बठका उजड गया था अभ यागत क आन पर इदरदतत सकोच क साथ इसी टट कमर म उसका स वागत करत फफाजी स तो खर सकोच नही पख का रख उन होन उनकी ओर कर ढ़िदया और डिफर बठ गए कछ दर तक दोनो ओर स खामोशी रही डिफर फफाजी न बात उठाई - तम अभी घर गए थ सना

- जी हा

- तम हारी बआ मझस कह रही थी मन यह भी सना ह डिक तम मर कारण डिकसी परकार का बाल हठ करन की धमकी भी द आए हो

पडित दवधर न अपना दपटटा उतार कर कसv पर रख ढ़िदया पालथी मारकर व सीध तन हए बठ थ उनका परायः पीला पडा हआ गोरा बदन उनक बठन क सधाय क कारण ही शकिरिरचअल जच रहा था अन यथा उनका यह पीलापन उनकी रोगी अवस था का भी परिरचय द रहा था

इदरदत त न सध-सधकर कहना शर डिकया - मरा हठ स वततर नही बडो क हठ म योगदान ह

- इन बातो स कछ लाभ नही इदर मरी गडित क लिलए मर अपन डिनयम ह

- और मर अपन डिनयम भी तो हो सकत ह

- तम ह स वाधीनता ह

- तब मन भी यढ़िद अनशन का फसला डिकया ह तो गलत नही ह

- तम अपन परडित मर स नह पर बोझ लाद रह हो म आत मशजिदध क लिलए वरत कर रहा ह परखो क साधना-गह की जो यह दगडित हई ह यह मर ही डिकसी पाप क कारण अपन अतःकरण की गगा स मझ सरस वती का मढ़िदर धोना ही पडगा तम अपना आगरह लौटा लो बटा

एक षटिमनट क लिलए कमर म डिफर सन नाटा छा गया कवल पख की गज ही उस खामोशी म लहर उठा रही थी

इदरदत त न शात स वर म कहा - एक बात पछ मढ़िदर म कत त क परवश स यढ़िद भगवती अपडिवतर हो जाती ह तो डिफर घट-घट व यापी ईश वर की भावना डिबलकल झठी ह एक ईश वर पडिवतर और दसरा अपडिवतर क यो माना जाए

पडित दवधर चप बठ रह डिफर गभीर होकर कहा - निहद धम बडा गढ ह तम इस झगड म न पडो

- म इस झगड म न पडगा फफाजी पर एक बात सोचता ह भगवान राम अगर परम क वश म होकर शबरी क जठ बर खा सकत थ निहद लोग यढ़िद इस आख यान म डिवश वास रखत ह तो डिफर छत-अछत का कोई परश न ही नही रह जाता यषटिधषटि^र न अपन साथ-साथ चलनवाल कत त क डिबना स वग म जान तक स इनकार कर ढ़िदया था यह सब कहाडिनया क या निहद-धम की मडिहमा बखाननवाली नही ह क या यह महत भाव नही ह डिफर इनक डिवपरीत छआछत क भय स छईमई होनवाल गढ धम की मडिहमा को आप क यो मानत ह इन रढ़िढयो स बधकर मनष य क या अपन को छोटा नही कर लता

पडितजी शाडितपवक सनत रह इदरदत त को भय हआ डिक बरा न मान गए हो तरत बोल - म डिकसी हद तक उत तजिजत जरर ह लडिकन जो कछ पछ रहा ह जिजजञास क रप म ही

- ठीक ह - पडितजी बोल - हमार यहा आचार की बडी मडिहमा ह मनस मडित म आया ह डिक आचारः परथमो धमः जसा आचार होगा वस ही डिवचार भी होग तम शदधाचरण को बरा मानत हो

- जी नही

- तब मरा आचार क यो भरष ट करा रह हो

- ऐसा धष टता करन का डिवचार स वप न म भी मर मन म नही आ सकता हा आपस aमा मागत हए यह जरर कहगा डिक आपक आचार नए यग को डिवचार शलिt नही द पा रह ह इसलिलए उनका मल य मर लिलए कछ नही क बराबर ह म दरतिवनीत नही ह फफाजी परत सच-सच यह अनभव करता ह डिक दडिनया आग बढ रही ह और आपका दषटिMकोण व यथ क रोड की तरह उसकी गडित को अटकाता ह पर इस समय जान दीजिजए म तो यही डिनवदन करन घर गया था और यही मरा आगरह ह डिक आप भोजन कर ल

पडितजी मस कराए इदरदत त क मन म आशा जागी पडितजी बोल - करगा एक शत पर

- आजञा कीजिजए

- जो मर अथात परानी परिरपाटी क यम डिनयम सयम आढ़िद ह व आज स तम ह भी डिनभान पडग जिजनका मल य तम हारी दषटिM म कछ नही ह व आचार-डिवचार मर लिलए पराणो स भी अषटिधक मल यवान ह

इदरदत त सतभिभत रह गए व कभी सोच भी नही सकत थ डिक फफाजी सहसा अनहोनी शत स उन ह बाधन का परयत न करग पछा - कब तक डिनभाना पडगा

- आजीवन

इदरदत त निककतव यडिवमढ हो गए जिजन डिनयमो म उनकी आस था नही जो चीज उनक डिवचारो क अनसार मनष य को अधडिवश वासो स जकड दती ह और जो भारतीय सस कडित का कलक ह उनस उनका परबदध मन भला क यो कर बध सकता ह हा कह तो कस कह उन होन इस वरत डिनयम बलिलदान चमत कार और षटिमथ या डिवश वासो स भर निहद धम को समाज पर घोर अत याचार करत दखा ह अपन-आपको तरह-तरह स परपीडिडत कर धारमिमक कहलानवाला व यलिt इस दश को रसातल म ल गया इस कठोर जीवन को साधनवाल शदधाचरणी बराहमण धम न इस दश की सतरिसतरयो और हीन कहलानवाली जाडितयो को सढ़िदयो तक दासता की चक की म बरी तरह पीसा ह और अब भी बहत काफी हद तक पीस रहा ह हो सकता डिक मनष य की चतना क उगत यग म इस शदध कहलानवाल आचार न अधकार म उन नत डिवचारो की ज योडित जगाई हो पर अब तो सढ़िदयो स इसी झठ धम न औसत भारतवासी को दास अधडिवश वासी और असीम रप स अत याचारो को सहन करनवाला झठी दवीशलिtयो पर यानी अपनी ही धोखा दनवाली लभावनी असभव कल पनाओ पर डिवश वास करनवाला झठा भाग यवादी बनाकर दश की कमर तोड रखी ह इसन औसत भारतवासी स आत मडिवश वास छीन लिलया ह इस जडता क खिxखलाफ उपडिनषद जाग मानवधम जागा योग का जञान जागा बौदध भागवतधम जागा मध यकाल का सत आदोलन उठा और आज क वजञाडिनक यग न तो इस एकदम डिनस सार लिसदध कर सदा क लिलए इसकी कबर ही खोद दी ह यह जड धम कभी भारत को महान नही बना सका होगा भारत की महानता उसक कमयोग म ह उसक व यापक मानवीय दषटिMकोण म ह व यास-वाल मीडिक आढ़िद क परम उदार भावो म ह पराचीन भारत क दशन न याय वशडिषक साडिहत य लिशल प सगीत आढ़िद इस जड धम की उपज हरडिगज नही हो सकत डिफर भी यह जडता भारत पर अस स भत की तरह छाई हई ह इसी स घणा करन क कारण आज का नया भारतीय डिबना जाच-पडताल डिकए अपनी सारी परपराओ स घणा करत हए लिसदधातहीन आस थाहीन और डिनसतरिकरय हो गया ह नही व फफाजी का धम हरडिगज न डिनभा सक ग हरडिगज नही हरडिगज नही पर व भोजन कस करग बआजी कस और कब तक भोजन करगी कसी डिवबना ह दो मनष यो की मौत की नडितक जिजम मदारी उनक ऊपर आएगी

पडित दवधर न उन ह मौन दखकर पछा-कहो भोजन कराओग मझ

- जीम धम-सकट म पड गया ह

- स पष ट कहो मरा धम गरहण करोग

फफाजी आप बहत माग रह ह मरा डिवश वास माग रह ह म आपक धम को यग का धम नही मानता अपना नही मानता

म तम हारी स पष टवाढ़िदता स परसन न ह तम धारमिमक हो इसी तरह अपन स मझको पहचानो म भी अपना धम नही छोड सकता यदयडिप तम हार सत सग स मन इतन ढ़िदनो म यह समझ लिलया ह डिक मरा यग मरा धम अब सदा क लिलए लोप हो रहा ह डिफर भी अडितम सास तक तो हरडिगज नही मरी आस था तपःपत ह तम हारा कल याण हो सखी हो बटा अच छा तो अब चल -

परत मरा अनशन का डिनश चय अडिग ह फफाजी म आपक चरण छकर कह रहा ह

पर छोड दो बट इन परो स पहल ही जडता समा चकी ह और अब तो जीव क साथ ही षटिमटगी अन यथा नही खर कल डिवचार करना अपन अनशन पर

अडितम वाक य पडितजी न इस तरह कहा डिक इदरदतत को करारा झटका लगा पर व मौन रहन पर डिववश थ पडित दवधर चलन लग इदरदतत क मन म भयकर तफान उठ रहा था व हार गए बआजी को क या उततर दग इस अगडित का अत कया होगा क या व फफाजी की बात मान ल कस मान ल यह ठीक ह डिक फफाजी अपन धम पर डिकस परकार एकडिनष ठ ह यह ए कडिनष ठता उन ह बहद परभाडिवत करती ह डिफर भी उनक धम को वह क यो कर स वीकार कर

पडित दवधरजी जीन पर पहचकर रक इदरदतत उनक पीछ-पीछ चल रह थ पडितजी घमकर बोल - तम हारी मान यताओ म मरी आस था नही ह इदर डिफर भी म उसक वास तडिवक पa को कछ-कछ दख अवश य पा रहा ह एक बात और स पष ट करना चाहता ह तम भोला डितरभवन क धम को आज का या डिकसी भी यग का वास तडिवक धम मानत हो

- जी नही उनका कोई धम ही नही ह

- तम हारा कल याण हो बट धन मद स जन म इस खोखल धम स सदा लडना जस म लडा तम अपन मत क अनसार लडो पर लडो अवश य यह आस थाहीन दभ भरा अदाशडिनक अधारमिमक जीवन लोक क लिलए अकल याणकारी ह बोलो वचन दत हो

म आपको अपना डिवश वास दता ह - कहकर इदरजीत न फफाजी क चरण छ लिलए खडाऊ की खट-खट जीन स उतर गई आगन पार डिकया दर चली इदरदतत आकर कट पड स अपन पलग पर डिगर गए

नया यग परान यग स स वच छा स डिवदा हो रहा था पर डिवदा होत समय डिकतना परबल मोह था और डिकतना डिनमम व यवहार भी

धम सकट अमतलाल नागर

शाम का समय था हम लोग परदश दश और डिवश व की राजनीडित पर लबी चचा करन क बाद उस डिवषय स ऊब चक थ चाय बड मौक स आई लडिकन उस ताजगी का सख हम ठीक तरह स उठा भी न पाए थ डिक नौकर न आकर एक सादा बद लिलफाफा मर हाथ म रख ढ़िदया मन खोलकर दखा सामनवाल पडोसी रायबहादर डिगराजडिकशन (डिगरिरराज कष ण) का पतर था कापत हाथो अनषटिमल अaरो और टढी पलिtयो म लिलखा था

माई डियर परताप

मन फल ली को आदश द रक खा ह डिक मरी मत य क बाद यह पतर तम ह फौरन पहचाया जाए तम मर अभिभन न षटिमतर क पतर हो रमश स अषटिधक सदा आजञाकारी रह हो मरी डिनम नलिलगनिखत तीन अडितम इच छाओ को परा करना -

1 रमश को तरत सचना दना मरी आत मा को तभी शाडित षटिमलगी जब उसक हाथो मर अडितम सस कार होग मन उसक साथ अनयाय डिकया ह

2 फल ली को मन पाच हजार रपय ढ़िदए ह और पाच-पाच सौ रपय बाकी चारो नौकरो को नोट मर तडिकए म रई की परत क अदर ह उसी म वसीयत और डितजोरी की चाभी भी ह घर म डिकसी को यह रहस य नही मालम तडिकया अब फौरन अपन कबज म कर लना घर क भार-घर और सदको की चाभिभया डितजोरी म ह रमश क आन पर पाच पचो क सामन उस सौप दना

3 मन अपनी वसीयत म यह शत रक खी ह डिक मरी पत नी अगर मझ माफ कर द और गलत ही सही मगर जो पडितवरत उस पर आन पडा ह उस साधकर रमश को छोडकर बाइज जत यहा रह तो यह मकान और दस हजार रपया उस ढ़िदया जाए लडिकन यह काम उसी हालत म होना चाडिहए जबडिक हम और तम हार दवारा डिनयक त महल ल क चार भल आदमी मरी पत नी की सच चरिरतरता क सबध म आवश स त हो जाए

पतर पर छह रोज पहल की तारीख पडी थी मझ यह समझन म दर न लगी डिक रायबहादर साहब गत हो चक ह पतर मन बड बाब क सामन मज पर रखा ढ़िदया इजीडिनयर साहब और परोफसर साहब भी झककर पढन लग

चाय बमजा हो गई हम सभी उठकर रायबहादर साहब क यहा गए उनका रोबीला चहरा रोग और मानलिसक सिचताओ स जजर होकर मत य क बाद भी उनक अडितम ढ़िदनो क असीम कष टो का परिरचय द रहा था मत रायबहादर क चहर को दखत हए उनक साथ बीत इतन वष की स मडितया मर मन म जाग उठी

रायबहादर बाब डिगराजडिकशन बीए उन निहदस ताडिनयो म स थ जिजन ह तकदीर की चक क कारण इeल म जनम नही षटिमल पाया था उनका रग भी गोरा न था बशकिक गहए स काल की ओर ही अषटिधक झकता हआ था डिफर भरसक उन होन अपन-आपको अगरजनमा ही बनाए रक खा गरीब निहदसताडिनयो पर अकड ढ़िदखान म व सदा अगरजो स चार जत आग रह कई निहदीवाढ़िदयो न उनस शदध नाम डिगरिरराजकष ण रखन को कहा मगर व उन ह मख बतलाकर डिगराज ही बन रह रायबहादर डिगराजडिकशन क नाम क साथ बीए जोडना भी डिनतात आवश यक था सन 23 म रायबहादर डिगराज अपनी डिबरादरी क रायसाहब दीनानाथ की बदौलत इलाहाबाद म छोट लाट क दफतर म भरती हए थ अपनी अगरजपरस ती और हाईक लास खशामद क दम पर रामबहादर ऊची करसिसयो पर चढ बठ स वराज य होन पर आतरिरक कष ट भोगन क बावजद तीन वष तक स वराजी अफसरो नताओ और मडितरयो की भी बाअदब खशामद की डिगराज बाब इन लोगो क सामन जिजस परकार खद दम डिहलात उसी परकार अपन सामन अपन मातहतो की भी डिहलवात थ आजादी क बाद भी दफतर म अपना भला चाहनवाला कोई बाब उनक आग निहदी का एक शब द नही बोल सकता था और घर क लिलए भी यही मशहर था डिक रायबहादर की भस तक अगरजी म ही कारती अगर कोई कसर थी तो सही डिक ली डिगराज क वास त अगरजी का करिरया अaर भी भस बराबर ही था

रायबहादर डिगराज पहली लडाई क जमान क मॉन आदमी थ सबह आख खलत ही घटी बजात सफद कोट पतलन और साफ स लस फल ली आया का लडका घसीट छोटी हाजिजरी लकर हाजिजर होता ठीक आठ बज बडी हाजिजरी पर बठत बटी-बटा साथ होत पर ल ी डिगराज अा-डिबस कट-समाज म कभी न बठी परम कटटर छत-पाकवाली न होत हए भी मास-मछली स उन ह परहज था बशीरत चपरासी क बाप मन न बावचv को हफत म दो ढ़िदन डयटी दनी पडती थी घर क डिनचल डिहस स म डिवलायती रसोई थी एक तरह स कहना चाडिहए डिक नीच का परा घर ही डिवलायती था वहा ल ी डिगराज क बजाय फल ली आया का सामराज य था फल ली पहल अगरजी कोढ़िठयो म काम करती थी अगरजी ढग स निहदस थानी बोलती ह अगरजी घर क कायद जानती ह छोटी-बडी हाजिजरी लच डिनर चाय सबका समय साधती थी इसलिलए डिगराज बाब क बाब डिनयम स दो पग खान स पहल चसडिकयो म मयादा करत थ फली उसका इतजाम भी बखबी कर दती थी इसलिलए आमतौर पर मजाक-मजाक म ही मशहर हो गया था डिक रायबहादर साहब स कोई काम करवान क वास त बजाय ली डिगराज क ल ी फल ली की लिसफारिरश जयादह परअसर होती ह

वस राजबहादर डिगराज म डिकसी न भी कोई ऐब की बात नही दखी-सनी थी अगर ऐब था तो यही डिक व मॉन थ चरट मह म लगाए बगर व बात नही कर पात थ अगर कोई निहदी सभा का चदा मागन आए तो उसस अकडकर कहत डिक मॉन जमान म गवार भाषाओ का उदधार करना डिहमाकत की बात ह धम क सबध म पहल तो व यह कहा करत थ डिक यह ढोग और पागलपन की वस त ह मगर बाद म उस इडियन कल चर का एक सनातन रप मानकर सहन कर जात थ डिगराज साहब थोडा-बहत लन-दन का काम करत थ और उसकी बदौलत उन होन हलिसयत भी बनाई अच छा मॉन ढग का मकान बनवाया उसका नाम ढ़िद नाइटिटगल रकखा मोटर खरीदी सदा दो-चार नौकर पाल घर स लकर दफतर तक घडी साधकर सबस डयटी करवाई पत नी को भी षटिमलन क वास त फल ली क दवारा उनस अप वाइटमट लना पडता था ली इसस जल-फक गई डिक म फल ली स भी गई-बीती हो गई

ली डिगराज न अपन फहडपन म उनक ऊपर एक बहत बडा लाछन लगा ढ़िदया रायबहादर साहब लिसदधाततः और स वभावतः अवध रिरश तो स नफरत करत थ इसलिलए अपनी पत नी क दवारा झठा लाछन लगाए जान क बाद डिफर उन होन कभी उनका मह न दखा बडी लडकी क डिववाह क अवसर पर उन होन कन यादान इसलिलए स वय न डिकया डिक उन ह पजा क पटर पर अपनी पत नी क साथ बठना पडता

इसक बाद दो वष म ली डिगराज घल-घलकर मर गई मगर मरी भी तो डिनयडित क साथ षडयतर करक ठीक इनक रिरटायर होन क ढ़िदन रायबहादर डिगराज को बहत लिशकायत हई अपन बट-बटी स कहा तम हारी मममी को कभी टाइम का सस नही रहा अगर मरना ही था तो कल सबह मरती परसो सबह मर सकती थी आज शाम को दफतर म मरी फयरवल पाट हो जान क बाद कभी मर सकती थी जिजदगी म एडरस पान का यह पहला मौका आया था सो इस तरह तबाहोबबाद कर ढ़िदया ईडियट कही की

इसक बाद मरनवाली तो खर मर ही चकी थी मगर जो भी मातम-परसी क लिलए मह डिबसरत हए आए उन ह भी रायबहादर साहब की ाट खानी पडी जो कहता डिक साहब सनकर बडा दख हआ उसस ही कहत आपको दख करन की जररत क या ह मझ कोई दख नही हआ जो आदमी पदा होता ह उन सबको एक साथ फौरन मर जाना चाडिहए जाइए मर यहा मातम-परसी क लिलए आन की जररत नही

छोटी लडकी की शादी उन होन पत नी की मत य क तीन महीन बाद पव डिनश चय क अनसार ही की स वय ब याहनवाली लडकी और उनक पतर को इसम आपभितत थी मगर उन होन डिकसी की एक न सनी कहा आई हव नो रिरगा फॉर योर मम मी शी वाज एक परफक ट फल लडकी की शादी बडी धमधाम स की एक आईसीएस क बट को अपना दामाद बनाया और बहत कछ दान-दहज दकर रिरटायर होन क बाद भी रोब जतलाया

लडका रमश तब एमए फाइनल म पढ रहा था नामी तज था सदा फस ट क लास रका रहा एमए क बाद आईएएस म बठनवाला था लडकीवाल अनक व यलिt रमश की माग करन क लिलए रायबहादर की सवा म आन लग रायबहादर डिगराज को अब मातहत क लक पर न सही तो ब टीवालो पर ही चरट का रोब झाडकर भरपर सतोष षटिमल जाता था दहज क मामल म व पक क मॉन थ यानी पच चीस हजार मागत थ एकाध डिपछल जानकार न दहाई दी डिक आप तो दहज क डिवरदध थ उसको परानी परथा बतलात थ तो बोल साहब जब मझ स बड अफसर आईसीएस आदमी यानी मर समधी साहब दहज लन को मॉन परथा मानत ह तो मन भी अपन डिवचार बदल ढ़िदए ह डिनहायत साइढ़िटडिफक बात ह डिक आपको दामाद चाडिहए और मझ 25 हजार रपया मरा रमश आईएएस पास करगा आप अपनी लडकी का फयचर दखकर अगर इतनी रक कम दना स वीकार करत ह तो बढ़िठए वरना मरी करसी की गददी मली मत डिकजिजए

व ऐसी लडकी चाहत थ जो सदर हो बीए हो गाती नाचती हो सीना-डिपरोना-बनना जानती हो अगरजी म फटाफट बात कर अफसर डिकसम क मॉन महमानो की खाडितर करन म तमीजदार हो और ऊपर स उसका बाप नगद पच चीस हजार रपय भी द जाए डिबरादरी क कई अच छी हलिसयतवाल बढ़िटयो क बापो क चहर रायबहादर डिगराज क चरट की अकड स धआ-छआ हो गए

एक ढ़िदन इनक दवारा नौकर रखाए गए परान मातहत एक सजातीय बाब दवीशकर पधार डिगराज की मडिहमाओ का बखान करत हए उन होन कहा सर म आपकी च वायस को जानता ह और एक लडकी मरी नजर म ह

इन बाब क साथ उन होन रीता को दखन का अवसर पाया रीता रायसाहब चमनलाल की इकलौती बटी थी रायसाहब चमनलाल न अपन जमान म बड ऐश बड नाम डिकए व शहर की तवायफो क सरताज थ रस क घोडो क सरपस त थ और बड ही औला-पौला आदमी थ अपन जीवन-काल म लाखो कमाए और लाखो फक एक लडकी हई उस बड लाड स पाला-पोसा पढाया हाई स कल तक रीता न परीaाओ तथा वाद-डिववाद और नत य-परडितयोडिगताओ म अनक परस कार पराप त कर अपन डिपता को सतष ट डिकया था रायसाहब डिवधर थ रीता की एक डिवधवा मौसी उनकी लडकी की दखभाल करन क लिलए उनक यहा रहती थी सो तब तरह स उनकी ही हो गई थी रायसाहब न आख मदकर अपना घर अपनी रभिaता साली को सौप रक खा था

बाद म रायसाहब चमनलाल की जन मकली क गरह-नaतर पहट बडा घाटा आया ढ़िदवालिलए होन की नौबत आ गई अपनी लडकी क वास त कछ रकम बचान की नीयत स उन होन एक बगला अपनी साली क नाम स खरीदा और लगभग एक लाख रपया नगद और जवरो क रप म बचाकर उसी क नाम स जमा करवा ढ़िदया डिफर रायसाहब ढ़िदवालिलए हो गए और जिजस ढ़िदन उन ह अपनी महलनमा कोठी सदा क लिलए छोडनी थी उस ढ़िदन उन होन गहर नश म अपनी कनपटी पर रिरवाल वर रखकर अपनी इहलीला समाप त कर दी रायसाहब की मत य क बाद मौसी सयानी हो गई और रीता अनाथ

लडकी दखन गए तो उसकी दो चोढ़िटयो म डित तलिलयो जस रिरबन दखकर रायबहादर साहब क पशन पराप त जीवन म नई रस की गलाबी आई अनक वष का सोया हआ मॉन पत नी का अभाव जाग उठा लडकी रीता बातचीत म तज आख नचान म बाकमल और हसन म डिबजली थी दखकर लौट तो रास त म दवीशकर स बोल लडकी तो अच छी ह और दहज का भी मझ कोई खास नही क योडिक तम तो जानत ही हो डिक म इन सब मामलो म बडा मॉन ह खाली एक परयोजन ह क - अ - क या नाम क आई मीन तम हारा क या खयाल ह दवीशकर अभी तो म भी शादी कर सकता ह

दवीशकर रायबहादर को घरत लग मह पर खशामद स हा क बजाय ना भला क यो कर कहत मौसी क लिलए इसस बढकर काई शभ सवाद न हो सकता था अठारह वष की आय की रीता छsपन वषvय रायबहादर डिगराजडिकशन की पत नी बनी

और इसक बाद की तमाम बात अपन करम म बढ गई रीता न परथम ढ़िदन स ही अपन पडित स कोई सबध न रकखा हठपवक अपन कमर क अदर बद रही रायबहादर रपय-पस गहनो और खशामदो की बडी-बडी नमायश लगाकर हार गए डिफर एक ढ़िदन फल ली न बतलाया डिक रमश और रीता रायबहादर दवारा स थाडिपत सबध को भलकर परस पर नया सबध स थाडिपत कर रह ह रायबहादर आग हो गए रमश तब एमए क अडितम वष म पढ रहा था डिपता न करोध म अध होकर उस पर परहार डिकया और घर स डिनकाल ढ़िदया रीता तब भी उनकी न हई

रमश को दो महीन बाद ही ढ़िदल ली म कोई नौकरी षटिमल गई और उसक महीन-भर बाद ही रीता रायबहादर क घर स गायब होकर ढ़िदल ली पहच गई जान स पव वह एक अलबला काम कर गई थी महल ल क पच चास घरो म हर पत पर उनका लिलखा पोस टका उसक गायब होन क दसर ही ढ़िदन पहली ाक स पहचा उसम मातर इतना ही लिलखा था बाब डिगरिरराजकष ण न मझ जबरदस ती अपनी पत नी बनाया था मगर मन उन ह कभी अपना पडित न माना और न अपना धम ही ढ़िदया डिववाह स पहल मझ बतलाया गया डिक म उनक पतर को ब याही जाऊगी तब स मन उनक पतर को ही अपना पडित माना इस घर म आकर भी उन ह ही भगवान की साaी म अपन को सौपा और अब म अपन पडित क पास ही जा रही ह

रीता क भागन स रायबहादर बाब डिगराजडिकशन को इतना कष ट नही पहचा था जिजतना डिक उसक दवारा भज गए इस सावजडिनक पतर स व दखी हए इसक बाद रायबहादर का जीवन बदल गया उनम पजा-पाठ और आशकिसतकता की भावना जागी साथ ही अकलापन भी हठ पकड गया डिपछल आठ वष म व एक ढ़िदन भी अपन घर स बाहर डिनकलकर कही न गए लन-दन का काम करत थ वह भी धीर-धीर समाप त कर ढ़िदया महल ल म डिकसी स भी सपक न रक खा डिपछल कछ ढ़िदनो स बीमार थ मगर महल लवाल उनकी हालत दखन-पछन भी न गए जात तो षटिमलत भी नही और अचानक मर पास अब यह पतर आया

हम सभी महल लवाल एकाएक यह डिनणय न कर पाए डिक इस खिसथडित म क या करना चाडिहए वदयजी और बड बाब इस पa म थ डिक पलिलस को सचना द दी जाए और इस पतर को लिलखी हई बातो का अमल भी कानन क हाथो ही हो परत म तो मत व यलिt की अडितम इच छा परी करन क पa म था रायबहादर कस भी रह हो इसी महल ल क थ कइयो को उन होन कभी नौकरिरया भी ढ़िदलाई थी उपकार डिकया था इजीडिनयर साहब भी मर ही मत क थ बाद म सभी राजी हो गए महल ल क एक षटिमतर क पास रमश क पतर आया करत थ उसी स पता लकर तार भजा गया जिजसम यह स पष ट लिलख ढ़िदया था डिक यढ़िद कल परातःकाल तक तम स वय अथवा तम हारा पतर उततर न आएगा तो रायबहादर की अत योषटिM डिकरया महल लवालो दवारा ही पचनाम स सपन न कर दी जाएगी

सबह चार बज तार का जवाब आया डिक रमश टक सी दवारा ढ़िदल ली स चल रहा ह और सबह तक पहच जाएगा परातःकाल करीब-करीब सभी महल लवाल रायबहादर क घर पर उ पखिसथत थ तभी टक सी दरवाज पर रकी रमश रीता और तीन बच च उतर रमश क मह पर तो सामाजिजक लज जा और सकोच की मलिलन छाया थी परत रीता का चहरा सतज और डिनरतिवकार था

रीता क आन का सवाद पाकर अनक सतरिसतरया कौतहलवश आ गई रीता न रायबहादर की लाश क पास अपनी चडिडया तोडी और माग का सिसदर पोछा रमश न डिपता का अडितम सस कार डिकया सतरिसतरया रीता स तरह-तरह क परश न करती थी परत वह कोई उततर न दती थी डिकरयाकम इत याढ़िद म रायबहादर क सजा तीय नात-रिरश तदार आढ़िद बहत कम आए बरहमभोज म गरीबी स एकदम टट हए बराहमण ही आए डिकसी परकार डिकरयाकम समाप त हआ रमश क वहा स चलन का समय आया

मन रायबहादर क अडितम पतर क अनसार सभरात महल लवालो क साथ रीता-रमश को बलाकर सबक सामन उनका वह अडितम पतर पढा और वह तडिकया जो महरबद पटी म मन रखवा ढ़िदया था खलवाया फल ली और नौकरो को रायबहादर की इच छानसार रपय द ढ़िदए गए रायबहादर की अडितम माग पर रीता का डिनणय सनन क लिलए हम सभी उत सक बठ थ रीता बोली म धम और ईश वर क सम मख सचचरिरतर ह मन अपन तन-मन स उन ह सदा ससर ही माना धारमिमक कानन की जिजस मजबरी स उन होन मझ अपनी पत नी बनाया था उस मन डिवषटिधवत उनकी लाश को सौप भी ढ़िदया उनकी चडिडया उनका सिसदर उन ह सौपा लडिकन मरी चडिडया मरा सिसदर अaय ह कहकर उसन दर स अपन हाथ क नीच दबी हई रमाल की पोटली को उठाया उसम हरी चडिडया थी और एक चादी की डिडिबया थी चडिडया पहनी और डिबीया खोलकर रमश की और रखत हए बोली जिजन होन मरी गोद भरी ह उन होन मरी माग भी भरी ह - लीजिजए मरी माग भर दीजिजए

रमश न रीता की माग म सिसदर की रखा खीच दी डिफर रीता बोली घर क सबध म मझ कवल यही कहना ह डिक अगर आप पाच पच मझ दश चरिरतर मानत हो तो उस धमशाला बना दीजिजए

हमम स कोई खम ठोककर एकाएक यह नही कह पाया डिक रीता दश चरिरतर ह मन अनभव डिकया डिक सभी क मनो को इस परश न स धक का लगा था अपन परपरागत धारमिमक सामाजिजक सस कारो क कारण हम रीता को सचरिरतरा मानन स भी मन ही मन डिहचकत थ पर यो क या कह

रीता हमारी डिहचक पर एक बार कहकर उठ गई उसन कहा मझ रायबहादर साहब का घर और दस हजार रपय पान की इच छा नही मर पडित न मझ सहाग की छाव द रक खी ह लडिकन म आपक सामन कसौटी रखती ह - बोलिलए घर डिकसका ह

घर को छोडकर बाकी सब सामान क साथ रमश रीता और उनक बच च ढ़िदल ली चल गए हम अभी तक कोई डिनणय नही कर पाए घर की चाभी मर पास ह वह तोल ढ का लोह का टकडा इस समय मर मन-पराणो का बोझ बना हआ ह

(1961 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

परायभित अमतलाल नागर

जीवन वाढ़िटका का वसत डिवचारो का अधड भलो का पवत और ठोकरो का समह ह यौवन इसी अवसथा म मनय तयागी सदाचारी दश-भt एव समाज-भt भी बनत ह तथा अपन खन क जोश म वह काम कर ढ़िदखात ह जिजसस डिक उनका नाम ससार क इडितहास म सवणाaरो म लिलख ढ़िदया जाता ह तथा इसी आय म मनय डिवलासी

लोलपी और वयभिभचारी भी बन जाता ह और इस परकार अपन जीवन को दो कौडी का बनाकर पतन क खडड म डिगर जाता ह अत म पछताता ह परायभित करता ह परत परतयचा स डिनकाला हआ बाण डिफर वापस नही लौटता खोई हई सचची शाडित डिफर कही नही षटिमलती

मभिणधर सदर यवक था उसक पस (जब) म पसा था और पास म था नवीन उमगो स परिरत हदय वह भोला-भाला सशील यवक था बचारा सीध माग पर जा रहा था यारो न भटका ढ़िदया - दीन को पथ-हीन कर ढ़िदया उस डिनतय-परडित कोठो की सर कराई नई-नई परिरयो की बाकी झाकी ढ़िदखाई उसक उचचडिवचारो का उसकी महतवकाaाओ का अतयत डिनदयता क साथ गला घोट ाला गया बनावटी रप क बाजार न बचार मभिणधर को भरमा ढ़िदया डिपता स पसा मागता था वह अनाथालयो म चदा दन क बहान और उस आख बद कर बहाता था गदी नालिलयो म पाप की सरिरता म घभिणत वnयालयो म

ऐसी डिनराली थी उसकी लीला पडित जी वदध थ अनक कनयाओ क लिशaक थ वातसय परम क अवतार थ डिकसी भी बालिलका क घर खाली हाथ न जात थ षटिमठाई फल डिकताब नोटबक आढ़िद कछ न कछ ल कर ही जात थ तथा डिनतयपरडित पाठ सनकर परतयक को पारिरतोडिषक परदान करत थ बालिलकाए भी उनस अतयत डिहल-षटिमल गई थी उनक सरaकगण भी पडित जी की वातसयता दख गदगद हो जात थ घरवालो क बाद पडित जी ही अपनी छातराओ क डिनरीaक थ सरaक थ बालिलकाए इनक घर जाती हारमोडिनयम बजाती गाती हसती खलती कदती थी पडितजी इसस गदगद हो जात थ तथा बाहरवालो स परमाशर ढरकात हआ कहा करत इनही लडडिकयो क कारण मरा बढापा कटता चला जा रहा ह अनयथा अकल तो इस ससार म मरा एक ढ़िदवस भी काटना भारी पड जाता समसत ससार पडितजी की एक मह स परशसा करता था

बाहरवालो को इस परकार ठाट ढ़िदखाकर पडितजी दसर ही परकार का खल खला करत थ वह अपनी नवयौवना सदर छातराओ को अनय डिवषयो क साथ-साथ परम का पाठ भी पढाया करत थ परत वह परम डिवशदध परम नही वरन परम की आड म भोगलिलsसा की लिशaा थी सतीतव डिवकरय का पाठ था काम-वासना का पाठ पढाकर भोली-भाली बालिलकाओ का जीवन नM कराकर दलाली खान की चाल थी टटटी की आड म लिशकार खला जाता था पडितजी क आस-पास यडिनवरसिसटी तथा कालज क छातर इस परकार भिभनभिभनाया करत थ जिजस परकार डिक गड क आस पास मखिकखया डिवलिचतर थ पडितजी और अदभत थी उनकी माया

रायबहादर ॉ शकरलाल अगनिeनहोतरी का सथान समाज म बहत ऊचा था सभा-सोसाइटी क हाडिकम-हककाम म आदर की दषटिM स दख जात थ वह उनक थी एक कनया - मtा वह हजारो म एक थी - सदरता और सशीलता दोनो म दभाeयवश वदध पडितजी उस पढान क लिलए डिनयt डिकए गए भोली-भाली बालिलका अपन आदश को भलन लगी पडित जी न उसक डिनमल हदय म अपन कखितसत महामतर का बीजारोपण कर ढ़िदया था अनय यवती छातराओ की भाडित मtा भी पडित जी क यहा हारमोडिनयम सीखन जान लगी

पडितजी मtा क रप लावणय को डिकराए पर उठान क लिलए कोई मनचला पस वाला ढढन लग अत म मभिणधर को आपन अपना पातर चन लिलया नई-नई कलिलयो की खोज म भटकन वाला षटिमसिलद इस अपव कली का मदपान करन क लिलए आकलिलत हो उठा इस अवसर पर पडितजी की मटठी गम हो गई दसर ही ढ़िदवस मभिणधर को पडित जी क यहा जाना था वह सधया अतयत ही रमणीक थी मभिण न उस बडी परतीaा करन क पात पाया था आज वह अतयत परसनन था आज उस पडितजी क यहा जाना था वह लब-लब पग रखता हआ चला जा रहा था पडितजी क पापालय की ओर आज उस रपयो की वदी पर वासना-दवी को परसनन करन क लिलए बलिल चढानी थी

मtा पडितजी क यहा बठी हारमोडिनयम पर उगलिलया नचा रही थी और पडितजी उस पलडिकत नतरो स डिनहार रह थ वह बाजा बजान म वयसत थी साहसा मभिणधर क आ जान स हारमोडिनयम बद हो गया लजीली मtा कसv छोडकर एक ओर खडी हो गई पडितजी न डिकतना ही समझाया बटी इनस ल|ा न कर यह तो अपन ही ह जा बजा बाजा बजा अभयागत स|न क सवागत म एक गीत गा परत मtा को अभी ल|ा न न छोडा था वह अपन सथान पर अडिवचल खडी थी उसक सकोमल मनोहारी गाल ल|ावश अगरी की भाडित लाल हो रह थ

अलक आ-आकर उसका एक मधर चबन लन की चMा कर रही थी मभिणधर उस पर मर षटिमटा था वह उस समय बाहय ससार म नही रह गया था यह सब दख पडितजी गनिखसक गए अब उस परको^ म कवल दो ही थ

मभिणधर न मtा का हाथ पकडकर कहा आइए खडी कयो ह मर समीप बठ जाइए मभिणधर धM होता चला जा रहा था मtा जिझझक रही थी परत डिफर भी मौन थी मभिणधर न कहा - कया पडितजी न इस परकार आडितथय सतकार करना लिसखलाया ह डिक घर पर कोई पाहन आव और घरवाला चपचाप खडा रह शभ मर समीप बठ जाइए परम की डिवदयत कला दोनो क शरीर म परवश कर चकी थी मtा इस बार कछ न बोली वह मतर-मeध-सी मभिण क पीछ-पीछ चली आई तथा उसस कछ हटकर पलग पर बठ गई आपका शभ नाम मभिण न जरा मtा क डिनकट आत हए कहा मtा लजीली मtा न धीम सवर म कहा

बातो का परवाह बढा धीर-धीर समसत डिहचक जाती रही और और थोडी दर क पात मtा नीरस हो गई उसकी आब उतर गई थी

डिहजाब नौ उरमा रहबर शौहर नबी मानद अगर मानद शब-मानद शब दीगर नबी मानद

डिहचक खल गई थी मभिण और मtा का परम करमशः बढन लगा था मभिण षटिमसिलद था पप पर उसका परम तभी ही ठहर सकता ह जब तक उसम मद ह परत मtा का परम डिनमल और डिनकलक था वह पाप की सरिरता को पडिवतर परम की गगा समझकर बरोक-टोक बहती ही चली जा रही थी अचानक ठोकर लगी उसक नतर खल गए एक ढ़िदन उसन तथा समसत ससार न दखा डिक वह गभ स थी

समाज म हलचल मच गई शकरलाल जी की नाक तो कट ही गई वह डिकसी को मह ढ़िदखान क योeय न रह गए थ - ऐसा ही लोगो का डिवचार था असत जाडित-डिबरादरी जटी पच-सरपच आए पचायत का काय आरभ हआ मtा क बयान लिलए गए उसन आसओ क बीच लिससडिकयो क साथ-साथ समाज क सामन सपण घटना आदयोपात सना ाली - पडितजी का उसक भोल-भाल सवचछ हदय म काम-वासना का बीजारोपण करना ततपात उसका मभिणधर स परिरचय कराना आढ़िद समसत घटना उसन सना ाली पडितजी न डिगडडिगडात अपनी सफाई पश की तथा मtा स अपनी वदधावसथा पर तरस खान की पराथना की परत मभिणधर शात भाव स बठा रहा

पचो न सलाह दी बढो न हा म हा षटिमला ढ़िदया सरपच महोदय न अपना डिनणय सना ाला सारा दोष मtा क माथ मढा गया वह जाडितचयत कर दी गई रायबहादर क डिपता की भी वही राय थी जो पचो की थी मभिणधर और पडितजी को सचचरिरतरता का सरटिटडिफकट द डिनदyenषी करार द ढ़िदया गया कवल अबला मtा ही दख की धधकती हई अगनिeन म झलसन क लिलए छोड दी गई अत म अतयत कातर भाव स डिनससहाय मtा न सरपच की दोहाई दी - उसक चरणो म डिगर पडी सरपच घबराए हाय भरMा न उनह श कर लिलया था करोषटिधत हो उनहोन उस गरभिभणी डिनससहाय आशरय-हीना यवती को धकक मार कर डिनकाल दन की अनमडित द दी उनकी आजञा का पालन करन क लिलए निहद समाज को वासतव म पतन क खडड म डिगरान वाल नरराaस खशामदी टटट पीर बवचv भिभसती खर की कहावत को चरिरताथ करन वाल इस कलक क सचच अपराधी पडितजी ततaण उठ उस धकका मारकर डिनकालन ही वाल थ - अचानक आवाज आई - ठहरो अनयाय की सीमा भी परिरषटिमत होती ह तम लोगो न उसका भी उलघन कर ाला ह लोगो न नतर घमाकर दखा तो मभिणधर उततजिजत हो डिनल भाव स खडा कह रहा था निहद समाज अधा ह अतयाचारी ह एव उसक सवसवा अथात हमार माननीय पचगण अनपढ ह गवार ह और मख ह जिजनह खर एव खोट सतय और असतय की परख नही वह कया तो नयाय कर सकत ह और कया जाडित-उपकार इसका वासतडिवक अपराधी तो म ह इसका द तो मझ भोगना चाडिहए इस सशील बाला का सतीतव तो मन नM डिकया ह और मझस भी अषटिधक नीच ह यह बगला भगत बना हआ नीच पडित इस दराचारी न अपन सवाथ क लिलए न मालम डिकतनी बालाओ का जीवन नM कराया ह - उनह पथभरM कर ढ़िदया ह जिजस आदरणीय दषटिM स इस नीच को समाज म दखा जाता ह वासतव म यह नीच उसक योeय नही वरन यह नर पश ह लोलपी ह लपट ह सिसह की खाल ओढ हए तचछ गीदड ह - रगा लिसयार ह

सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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- जी हा हम तो खलआम कहत ह डिक हमारा और दादा का समझौता नही हो सकता इस मामल म मरी और डितरभवन की राय एक ह मगर व हमार परोगरलिसव खयालात को नही दख सकत तो उनक लिलए हमार घर म कोई जगह नही ह

- भोला - बडी दर स गदन झकाए खामोश बठी हई मा न कापत स वर म और भीख का सा हाथ बढात हए कहा - बटा उनक आग ऐसी बात भल स भी न कह दना तम हार परो

- कहगा और हजार बार कहगा अब तो हमारी उनकी ठन गई वो हमार लडको-बच चो का पहनना-ओढना नही दख सकत हसता-खलना नही बदाश त कर सकत हम लोगो को बदाश त नही कर सकत तो म भी उनक धम को ठोकर मारता ह उनक ठाकर पोथी पराण सब मर जत की नोक पर ह

मा की आखो स बद टपक पडी उन होन अपना लिसर झका लिलया भोला की यह बदतमीजी इदरदतत को बरी तरह तडपा रही थी स वर ठा रखन का परयत न करत सनक भरी हसी हसत हए बोल - अगर तम हारी यही सब बात नए और परोगरलिसव डिवचारो का परडितडिनषटिधत व वाकई करती हो इसी स मनष य सलिशभिaत और फशनडिबल माना जाता हो म कहगा डिक भोला तम और तम हारी ही तरह का सारा-नया जमाना जगली ह बशकिक उनस भी गया-गजरा ह तम हारा नया जमाना न नया ह न पराना सभ यता सामतो पसवालो क खोलन जोम स बढकर कछ भी नही ह तम हार डिवचार इनसानो क नही हवानो क ह

इदरदतत स वाभाडिवक रप स उलिचत हो उठ

- खर आपको अपनी इनसाडिनयत मबारक रह हम डिहपोकरट लोगो को खब जानत ह और उन ह दर ही स नमस कार करत ह भोलाशकर तमककर खड हए तजी स बाहर चल दवारज पर पहचरकर मा स कहा - तम दादा को समझा दना अम मा म अनशन की ध मडिकयो स जरा भी नही रगा जान ही तो दग तो मर न मगर म उनको यहा नही मरन दगा जाए गगा डिकनार मर यहा उनक लिलए अब जगह नही ह

- पर यह घर अकला तम लोगो का ही नही ह

- खर यह तो हम कोट म दख लग अगर जररत पडी तो लडिकन मरा अब उनस कोई वास ता नही रहा

भोलाशकर चल गए बआजी चपचाप लिसर झकाए टप-टप आस बहाती रही इदरदतत उततजिजत मदरा म बठ थ जिजनक पास डिकसी वस त डिवशष का अभाव रहा हो उसक पास वह वस त थोडी-सी ही हो जाए तो बहत मालम पडती ह इदरदतत क लिलए इतना करोध और उततजना इसी तरह अषटिधक परतीत हो रही थी पल भर चप रहकर आवश म आ बआजी क हाथ पर हाथ रखत हए कहा - तम और फफाजी मर घर चलकर रहो बआ वह भी तो तम हारा ही घर ह

- तम अपन फफाजी स भोला की बातो का जिजकर न करना बटा

- नही

- तम अपन फफाजी का डिकसी तरह स यह बरत तडवा दो बटा तम ह बडा पन न होगा तम ह मरी आत मा उठत-बठत असीसगी मरा भया

- म इसी इराद स आया ह तम भी चलो बआ तम हारा चहरा कह रहा ह डिक तम भी

- अर मरी सिचता कया ह

- हा तम हारी सिचता नही सिचता तो तम ह और फफाजी को करनी ह मरी ओर स

- तम दोनो क भोजन कर लन तक म भी अपन परण स अटल रहगा

बआजी एक aण सिचता म पड गई डिफर मीठी वाणी म समझाकर कहा - दखो भया इदर मर लिलए जस भोला-डितरभवन वस तम जसा य घर वसा वो आज तम अपन फफाजी को डिकसी तरह जिजमा लो उनक बरत टटत की खबर सनत ही तम हारी कसम म आप ही ठाकरजी का भोग पा लगी लडिकन इसी घर म डिकसी क जी को कलस हो बटा ऐसी बात नही करनी चाडिहए क या कह तर फफाजी का करोध मरी कछ चलन नही दव ह अपन जी को कलस दव ह सो दव ह बाकी बच चो क जी को जो कलस लग ह उसक लिलए तो कहा ही क या जाए कलजग कलजग की तर स चलगा भया

इदरदतत कछ दर तक बआ क मन की घटन का खलना दखत रह

पडित दवधरजी भटट न डिनत य-डिनयम क अनसार झटपट समय अपन भतीज क आगन म परवश कर आवाज लगाई-इदरदतत

- आइए फफाजी

सकर टट सीलन-भरी लखौटी-ईटो पर खडाऊ की खट-खट चढती गई इदरदतत कटहर क पास खड थ जीन क दरवाज स बाहर आत हए पडित दवधर उन ह ढ़िदखलाई ढ़िदए उनक भस म लग कपास और दह पर पड ज लिशव छाप क दपटट म उनकी दह स एक आभा-सी फटती हई उन ह महसस हो रही थी फफाजी क आत ही घर बदल गया उन ह दखकर हर रोज ही महसस होता ह पर आज की बात तो न यारी ही थी

फफाजी क चार ढ़िदनो का वरत आज उनक व यलिtत व को इदरदतत की दषटिM म और भी अषटिधक तजोमय बना रहा था फफाजी को लकर आज उनका मन अतयत भावक हो रहा था पीडा पा रहा था इदरदतत न अनभव डिकया डिक फफाजी क चहर पर डिकसी परकार की उततजना नही भख की थकान नही चहरा सखा कछ उतरा हआ अवश य था परत मख की चष टा नही डिबगडी थी पडित दवधर की यह बात इदरदतत को बहत छ रही थी

पडित जी आकर चौकी पर बठ गए इदरदतत उनक सामन मढ पर बठ घर बनन क कारण उनका बठका उजड गया था अभ यागत क आन पर इदरदतत सकोच क साथ इसी टट कमर म उसका स वागत करत फफाजी स तो खर सकोच नही पख का रख उन होन उनकी ओर कर ढ़िदया और डिफर बठ गए कछ दर तक दोनो ओर स खामोशी रही डिफर फफाजी न बात उठाई - तम अभी घर गए थ सना

- जी हा

- तम हारी बआ मझस कह रही थी मन यह भी सना ह डिक तम मर कारण डिकसी परकार का बाल हठ करन की धमकी भी द आए हो

पडित दवधर न अपना दपटटा उतार कर कसv पर रख ढ़िदया पालथी मारकर व सीध तन हए बठ थ उनका परायः पीला पडा हआ गोरा बदन उनक बठन क सधाय क कारण ही शकिरिरचअल जच रहा था अन यथा उनका यह पीलापन उनकी रोगी अवस था का भी परिरचय द रहा था

इदरदत त न सध-सधकर कहना शर डिकया - मरा हठ स वततर नही बडो क हठ म योगदान ह

- इन बातो स कछ लाभ नही इदर मरी गडित क लिलए मर अपन डिनयम ह

- और मर अपन डिनयम भी तो हो सकत ह

- तम ह स वाधीनता ह

- तब मन भी यढ़िद अनशन का फसला डिकया ह तो गलत नही ह

- तम अपन परडित मर स नह पर बोझ लाद रह हो म आत मशजिदध क लिलए वरत कर रहा ह परखो क साधना-गह की जो यह दगडित हई ह यह मर ही डिकसी पाप क कारण अपन अतःकरण की गगा स मझ सरस वती का मढ़िदर धोना ही पडगा तम अपना आगरह लौटा लो बटा

एक षटिमनट क लिलए कमर म डिफर सन नाटा छा गया कवल पख की गज ही उस खामोशी म लहर उठा रही थी

इदरदत त न शात स वर म कहा - एक बात पछ मढ़िदर म कत त क परवश स यढ़िद भगवती अपडिवतर हो जाती ह तो डिफर घट-घट व यापी ईश वर की भावना डिबलकल झठी ह एक ईश वर पडिवतर और दसरा अपडिवतर क यो माना जाए

पडित दवधर चप बठ रह डिफर गभीर होकर कहा - निहद धम बडा गढ ह तम इस झगड म न पडो

- म इस झगड म न पडगा फफाजी पर एक बात सोचता ह भगवान राम अगर परम क वश म होकर शबरी क जठ बर खा सकत थ निहद लोग यढ़िद इस आख यान म डिवश वास रखत ह तो डिफर छत-अछत का कोई परश न ही नही रह जाता यषटिधषटि^र न अपन साथ-साथ चलनवाल कत त क डिबना स वग म जान तक स इनकार कर ढ़िदया था यह सब कहाडिनया क या निहद-धम की मडिहमा बखाननवाली नही ह क या यह महत भाव नही ह डिफर इनक डिवपरीत छआछत क भय स छईमई होनवाल गढ धम की मडिहमा को आप क यो मानत ह इन रढ़िढयो स बधकर मनष य क या अपन को छोटा नही कर लता

पडितजी शाडितपवक सनत रह इदरदत त को भय हआ डिक बरा न मान गए हो तरत बोल - म डिकसी हद तक उत तजिजत जरर ह लडिकन जो कछ पछ रहा ह जिजजञास क रप म ही

- ठीक ह - पडितजी बोल - हमार यहा आचार की बडी मडिहमा ह मनस मडित म आया ह डिक आचारः परथमो धमः जसा आचार होगा वस ही डिवचार भी होग तम शदधाचरण को बरा मानत हो

- जी नही

- तब मरा आचार क यो भरष ट करा रह हो

- ऐसा धष टता करन का डिवचार स वप न म भी मर मन म नही आ सकता हा आपस aमा मागत हए यह जरर कहगा डिक आपक आचार नए यग को डिवचार शलिt नही द पा रह ह इसलिलए उनका मल य मर लिलए कछ नही क बराबर ह म दरतिवनीत नही ह फफाजी परत सच-सच यह अनभव करता ह डिक दडिनया आग बढ रही ह और आपका दषटिMकोण व यथ क रोड की तरह उसकी गडित को अटकाता ह पर इस समय जान दीजिजए म तो यही डिनवदन करन घर गया था और यही मरा आगरह ह डिक आप भोजन कर ल

पडितजी मस कराए इदरदत त क मन म आशा जागी पडितजी बोल - करगा एक शत पर

- आजञा कीजिजए

- जो मर अथात परानी परिरपाटी क यम डिनयम सयम आढ़िद ह व आज स तम ह भी डिनभान पडग जिजनका मल य तम हारी दषटिM म कछ नही ह व आचार-डिवचार मर लिलए पराणो स भी अषटिधक मल यवान ह

इदरदत त सतभिभत रह गए व कभी सोच भी नही सकत थ डिक फफाजी सहसा अनहोनी शत स उन ह बाधन का परयत न करग पछा - कब तक डिनभाना पडगा

- आजीवन

इदरदत त निककतव यडिवमढ हो गए जिजन डिनयमो म उनकी आस था नही जो चीज उनक डिवचारो क अनसार मनष य को अधडिवश वासो स जकड दती ह और जो भारतीय सस कडित का कलक ह उनस उनका परबदध मन भला क यो कर बध सकता ह हा कह तो कस कह उन होन इस वरत डिनयम बलिलदान चमत कार और षटिमथ या डिवश वासो स भर निहद धम को समाज पर घोर अत याचार करत दखा ह अपन-आपको तरह-तरह स परपीडिडत कर धारमिमक कहलानवाला व यलिt इस दश को रसातल म ल गया इस कठोर जीवन को साधनवाल शदधाचरणी बराहमण धम न इस दश की सतरिसतरयो और हीन कहलानवाली जाडितयो को सढ़िदयो तक दासता की चक की म बरी तरह पीसा ह और अब भी बहत काफी हद तक पीस रहा ह हो सकता डिक मनष य की चतना क उगत यग म इस शदध कहलानवाल आचार न अधकार म उन नत डिवचारो की ज योडित जगाई हो पर अब तो सढ़िदयो स इसी झठ धम न औसत भारतवासी को दास अधडिवश वासी और असीम रप स अत याचारो को सहन करनवाला झठी दवीशलिtयो पर यानी अपनी ही धोखा दनवाली लभावनी असभव कल पनाओ पर डिवश वास करनवाला झठा भाग यवादी बनाकर दश की कमर तोड रखी ह इसन औसत भारतवासी स आत मडिवश वास छीन लिलया ह इस जडता क खिxखलाफ उपडिनषद जाग मानवधम जागा योग का जञान जागा बौदध भागवतधम जागा मध यकाल का सत आदोलन उठा और आज क वजञाडिनक यग न तो इस एकदम डिनस सार लिसदध कर सदा क लिलए इसकी कबर ही खोद दी ह यह जड धम कभी भारत को महान नही बना सका होगा भारत की महानता उसक कमयोग म ह उसक व यापक मानवीय दषटिMकोण म ह व यास-वाल मीडिक आढ़िद क परम उदार भावो म ह पराचीन भारत क दशन न याय वशडिषक साडिहत य लिशल प सगीत आढ़िद इस जड धम की उपज हरडिगज नही हो सकत डिफर भी यह जडता भारत पर अस स भत की तरह छाई हई ह इसी स घणा करन क कारण आज का नया भारतीय डिबना जाच-पडताल डिकए अपनी सारी परपराओ स घणा करत हए लिसदधातहीन आस थाहीन और डिनसतरिकरय हो गया ह नही व फफाजी का धम हरडिगज न डिनभा सक ग हरडिगज नही हरडिगज नही पर व भोजन कस करग बआजी कस और कब तक भोजन करगी कसी डिवबना ह दो मनष यो की मौत की नडितक जिजम मदारी उनक ऊपर आएगी

पडित दवधर न उन ह मौन दखकर पछा-कहो भोजन कराओग मझ

- जीम धम-सकट म पड गया ह

- स पष ट कहो मरा धम गरहण करोग

फफाजी आप बहत माग रह ह मरा डिवश वास माग रह ह म आपक धम को यग का धम नही मानता अपना नही मानता

म तम हारी स पष टवाढ़िदता स परसन न ह तम धारमिमक हो इसी तरह अपन स मझको पहचानो म भी अपना धम नही छोड सकता यदयडिप तम हार सत सग स मन इतन ढ़िदनो म यह समझ लिलया ह डिक मरा यग मरा धम अब सदा क लिलए लोप हो रहा ह डिफर भी अडितम सास तक तो हरडिगज नही मरी आस था तपःपत ह तम हारा कल याण हो सखी हो बटा अच छा तो अब चल -

परत मरा अनशन का डिनश चय अडिग ह फफाजी म आपक चरण छकर कह रहा ह

पर छोड दो बट इन परो स पहल ही जडता समा चकी ह और अब तो जीव क साथ ही षटिमटगी अन यथा नही खर कल डिवचार करना अपन अनशन पर

अडितम वाक य पडितजी न इस तरह कहा डिक इदरदतत को करारा झटका लगा पर व मौन रहन पर डिववश थ पडित दवधर चलन लग इदरदतत क मन म भयकर तफान उठ रहा था व हार गए बआजी को क या उततर दग इस अगडित का अत कया होगा क या व फफाजी की बात मान ल कस मान ल यह ठीक ह डिक फफाजी अपन धम पर डिकस परकार एकडिनष ठ ह यह ए कडिनष ठता उन ह बहद परभाडिवत करती ह डिफर भी उनक धम को वह क यो कर स वीकार कर

पडित दवधरजी जीन पर पहचकर रक इदरदतत उनक पीछ-पीछ चल रह थ पडितजी घमकर बोल - तम हारी मान यताओ म मरी आस था नही ह इदर डिफर भी म उसक वास तडिवक पa को कछ-कछ दख अवश य पा रहा ह एक बात और स पष ट करना चाहता ह तम भोला डितरभवन क धम को आज का या डिकसी भी यग का वास तडिवक धम मानत हो

- जी नही उनका कोई धम ही नही ह

- तम हारा कल याण हो बट धन मद स जन म इस खोखल धम स सदा लडना जस म लडा तम अपन मत क अनसार लडो पर लडो अवश य यह आस थाहीन दभ भरा अदाशडिनक अधारमिमक जीवन लोक क लिलए अकल याणकारी ह बोलो वचन दत हो

म आपको अपना डिवश वास दता ह - कहकर इदरजीत न फफाजी क चरण छ लिलए खडाऊ की खट-खट जीन स उतर गई आगन पार डिकया दर चली इदरदतत आकर कट पड स अपन पलग पर डिगर गए

नया यग परान यग स स वच छा स डिवदा हो रहा था पर डिवदा होत समय डिकतना परबल मोह था और डिकतना डिनमम व यवहार भी

धम सकट अमतलाल नागर

शाम का समय था हम लोग परदश दश और डिवश व की राजनीडित पर लबी चचा करन क बाद उस डिवषय स ऊब चक थ चाय बड मौक स आई लडिकन उस ताजगी का सख हम ठीक तरह स उठा भी न पाए थ डिक नौकर न आकर एक सादा बद लिलफाफा मर हाथ म रख ढ़िदया मन खोलकर दखा सामनवाल पडोसी रायबहादर डिगराजडिकशन (डिगरिरराज कष ण) का पतर था कापत हाथो अनषटिमल अaरो और टढी पलिtयो म लिलखा था

माई डियर परताप

मन फल ली को आदश द रक खा ह डिक मरी मत य क बाद यह पतर तम ह फौरन पहचाया जाए तम मर अभिभन न षटिमतर क पतर हो रमश स अषटिधक सदा आजञाकारी रह हो मरी डिनम नलिलगनिखत तीन अडितम इच छाओ को परा करना -

1 रमश को तरत सचना दना मरी आत मा को तभी शाडित षटिमलगी जब उसक हाथो मर अडितम सस कार होग मन उसक साथ अनयाय डिकया ह

2 फल ली को मन पाच हजार रपय ढ़िदए ह और पाच-पाच सौ रपय बाकी चारो नौकरो को नोट मर तडिकए म रई की परत क अदर ह उसी म वसीयत और डितजोरी की चाभी भी ह घर म डिकसी को यह रहस य नही मालम तडिकया अब फौरन अपन कबज म कर लना घर क भार-घर और सदको की चाभिभया डितजोरी म ह रमश क आन पर पाच पचो क सामन उस सौप दना

3 मन अपनी वसीयत म यह शत रक खी ह डिक मरी पत नी अगर मझ माफ कर द और गलत ही सही मगर जो पडितवरत उस पर आन पडा ह उस साधकर रमश को छोडकर बाइज जत यहा रह तो यह मकान और दस हजार रपया उस ढ़िदया जाए लडिकन यह काम उसी हालत म होना चाडिहए जबडिक हम और तम हार दवारा डिनयक त महल ल क चार भल आदमी मरी पत नी की सच चरिरतरता क सबध म आवश स त हो जाए

पतर पर छह रोज पहल की तारीख पडी थी मझ यह समझन म दर न लगी डिक रायबहादर साहब गत हो चक ह पतर मन बड बाब क सामन मज पर रखा ढ़िदया इजीडिनयर साहब और परोफसर साहब भी झककर पढन लग

चाय बमजा हो गई हम सभी उठकर रायबहादर साहब क यहा गए उनका रोबीला चहरा रोग और मानलिसक सिचताओ स जजर होकर मत य क बाद भी उनक अडितम ढ़िदनो क असीम कष टो का परिरचय द रहा था मत रायबहादर क चहर को दखत हए उनक साथ बीत इतन वष की स मडितया मर मन म जाग उठी

रायबहादर बाब डिगराजडिकशन बीए उन निहदस ताडिनयो म स थ जिजन ह तकदीर की चक क कारण इeल म जनम नही षटिमल पाया था उनका रग भी गोरा न था बशकिक गहए स काल की ओर ही अषटिधक झकता हआ था डिफर भरसक उन होन अपन-आपको अगरजनमा ही बनाए रक खा गरीब निहदसताडिनयो पर अकड ढ़िदखान म व सदा अगरजो स चार जत आग रह कई निहदीवाढ़िदयो न उनस शदध नाम डिगरिरराजकष ण रखन को कहा मगर व उन ह मख बतलाकर डिगराज ही बन रह रायबहादर डिगराजडिकशन क नाम क साथ बीए जोडना भी डिनतात आवश यक था सन 23 म रायबहादर डिगराज अपनी डिबरादरी क रायसाहब दीनानाथ की बदौलत इलाहाबाद म छोट लाट क दफतर म भरती हए थ अपनी अगरजपरस ती और हाईक लास खशामद क दम पर रामबहादर ऊची करसिसयो पर चढ बठ स वराज य होन पर आतरिरक कष ट भोगन क बावजद तीन वष तक स वराजी अफसरो नताओ और मडितरयो की भी बाअदब खशामद की डिगराज बाब इन लोगो क सामन जिजस परकार खद दम डिहलात उसी परकार अपन सामन अपन मातहतो की भी डिहलवात थ आजादी क बाद भी दफतर म अपना भला चाहनवाला कोई बाब उनक आग निहदी का एक शब द नही बोल सकता था और घर क लिलए भी यही मशहर था डिक रायबहादर की भस तक अगरजी म ही कारती अगर कोई कसर थी तो सही डिक ली डिगराज क वास त अगरजी का करिरया अaर भी भस बराबर ही था

रायबहादर डिगराज पहली लडाई क जमान क मॉन आदमी थ सबह आख खलत ही घटी बजात सफद कोट पतलन और साफ स लस फल ली आया का लडका घसीट छोटी हाजिजरी लकर हाजिजर होता ठीक आठ बज बडी हाजिजरी पर बठत बटी-बटा साथ होत पर ल ी डिगराज अा-डिबस कट-समाज म कभी न बठी परम कटटर छत-पाकवाली न होत हए भी मास-मछली स उन ह परहज था बशीरत चपरासी क बाप मन न बावचv को हफत म दो ढ़िदन डयटी दनी पडती थी घर क डिनचल डिहस स म डिवलायती रसोई थी एक तरह स कहना चाडिहए डिक नीच का परा घर ही डिवलायती था वहा ल ी डिगराज क बजाय फल ली आया का सामराज य था फल ली पहल अगरजी कोढ़िठयो म काम करती थी अगरजी ढग स निहदस थानी बोलती ह अगरजी घर क कायद जानती ह छोटी-बडी हाजिजरी लच डिनर चाय सबका समय साधती थी इसलिलए डिगराज बाब क बाब डिनयम स दो पग खान स पहल चसडिकयो म मयादा करत थ फली उसका इतजाम भी बखबी कर दती थी इसलिलए आमतौर पर मजाक-मजाक म ही मशहर हो गया था डिक रायबहादर साहब स कोई काम करवान क वास त बजाय ली डिगराज क ल ी फल ली की लिसफारिरश जयादह परअसर होती ह

वस राजबहादर डिगराज म डिकसी न भी कोई ऐब की बात नही दखी-सनी थी अगर ऐब था तो यही डिक व मॉन थ चरट मह म लगाए बगर व बात नही कर पात थ अगर कोई निहदी सभा का चदा मागन आए तो उसस अकडकर कहत डिक मॉन जमान म गवार भाषाओ का उदधार करना डिहमाकत की बात ह धम क सबध म पहल तो व यह कहा करत थ डिक यह ढोग और पागलपन की वस त ह मगर बाद म उस इडियन कल चर का एक सनातन रप मानकर सहन कर जात थ डिगराज साहब थोडा-बहत लन-दन का काम करत थ और उसकी बदौलत उन होन हलिसयत भी बनाई अच छा मॉन ढग का मकान बनवाया उसका नाम ढ़िद नाइटिटगल रकखा मोटर खरीदी सदा दो-चार नौकर पाल घर स लकर दफतर तक घडी साधकर सबस डयटी करवाई पत नी को भी षटिमलन क वास त फल ली क दवारा उनस अप वाइटमट लना पडता था ली इसस जल-फक गई डिक म फल ली स भी गई-बीती हो गई

ली डिगराज न अपन फहडपन म उनक ऊपर एक बहत बडा लाछन लगा ढ़िदया रायबहादर साहब लिसदधाततः और स वभावतः अवध रिरश तो स नफरत करत थ इसलिलए अपनी पत नी क दवारा झठा लाछन लगाए जान क बाद डिफर उन होन कभी उनका मह न दखा बडी लडकी क डिववाह क अवसर पर उन होन कन यादान इसलिलए स वय न डिकया डिक उन ह पजा क पटर पर अपनी पत नी क साथ बठना पडता

इसक बाद दो वष म ली डिगराज घल-घलकर मर गई मगर मरी भी तो डिनयडित क साथ षडयतर करक ठीक इनक रिरटायर होन क ढ़िदन रायबहादर डिगराज को बहत लिशकायत हई अपन बट-बटी स कहा तम हारी मममी को कभी टाइम का सस नही रहा अगर मरना ही था तो कल सबह मरती परसो सबह मर सकती थी आज शाम को दफतर म मरी फयरवल पाट हो जान क बाद कभी मर सकती थी जिजदगी म एडरस पान का यह पहला मौका आया था सो इस तरह तबाहोबबाद कर ढ़िदया ईडियट कही की

इसक बाद मरनवाली तो खर मर ही चकी थी मगर जो भी मातम-परसी क लिलए मह डिबसरत हए आए उन ह भी रायबहादर साहब की ाट खानी पडी जो कहता डिक साहब सनकर बडा दख हआ उसस ही कहत आपको दख करन की जररत क या ह मझ कोई दख नही हआ जो आदमी पदा होता ह उन सबको एक साथ फौरन मर जाना चाडिहए जाइए मर यहा मातम-परसी क लिलए आन की जररत नही

छोटी लडकी की शादी उन होन पत नी की मत य क तीन महीन बाद पव डिनश चय क अनसार ही की स वय ब याहनवाली लडकी और उनक पतर को इसम आपभितत थी मगर उन होन डिकसी की एक न सनी कहा आई हव नो रिरगा फॉर योर मम मी शी वाज एक परफक ट फल लडकी की शादी बडी धमधाम स की एक आईसीएस क बट को अपना दामाद बनाया और बहत कछ दान-दहज दकर रिरटायर होन क बाद भी रोब जतलाया

लडका रमश तब एमए फाइनल म पढ रहा था नामी तज था सदा फस ट क लास रका रहा एमए क बाद आईएएस म बठनवाला था लडकीवाल अनक व यलिt रमश की माग करन क लिलए रायबहादर की सवा म आन लग रायबहादर डिगराज को अब मातहत क लक पर न सही तो ब टीवालो पर ही चरट का रोब झाडकर भरपर सतोष षटिमल जाता था दहज क मामल म व पक क मॉन थ यानी पच चीस हजार मागत थ एकाध डिपछल जानकार न दहाई दी डिक आप तो दहज क डिवरदध थ उसको परानी परथा बतलात थ तो बोल साहब जब मझ स बड अफसर आईसीएस आदमी यानी मर समधी साहब दहज लन को मॉन परथा मानत ह तो मन भी अपन डिवचार बदल ढ़िदए ह डिनहायत साइढ़िटडिफक बात ह डिक आपको दामाद चाडिहए और मझ 25 हजार रपया मरा रमश आईएएस पास करगा आप अपनी लडकी का फयचर दखकर अगर इतनी रक कम दना स वीकार करत ह तो बढ़िठए वरना मरी करसी की गददी मली मत डिकजिजए

व ऐसी लडकी चाहत थ जो सदर हो बीए हो गाती नाचती हो सीना-डिपरोना-बनना जानती हो अगरजी म फटाफट बात कर अफसर डिकसम क मॉन महमानो की खाडितर करन म तमीजदार हो और ऊपर स उसका बाप नगद पच चीस हजार रपय भी द जाए डिबरादरी क कई अच छी हलिसयतवाल बढ़िटयो क बापो क चहर रायबहादर डिगराज क चरट की अकड स धआ-छआ हो गए

एक ढ़िदन इनक दवारा नौकर रखाए गए परान मातहत एक सजातीय बाब दवीशकर पधार डिगराज की मडिहमाओ का बखान करत हए उन होन कहा सर म आपकी च वायस को जानता ह और एक लडकी मरी नजर म ह

इन बाब क साथ उन होन रीता को दखन का अवसर पाया रीता रायसाहब चमनलाल की इकलौती बटी थी रायसाहब चमनलाल न अपन जमान म बड ऐश बड नाम डिकए व शहर की तवायफो क सरताज थ रस क घोडो क सरपस त थ और बड ही औला-पौला आदमी थ अपन जीवन-काल म लाखो कमाए और लाखो फक एक लडकी हई उस बड लाड स पाला-पोसा पढाया हाई स कल तक रीता न परीaाओ तथा वाद-डिववाद और नत य-परडितयोडिगताओ म अनक परस कार पराप त कर अपन डिपता को सतष ट डिकया था रायसाहब डिवधर थ रीता की एक डिवधवा मौसी उनकी लडकी की दखभाल करन क लिलए उनक यहा रहती थी सो तब तरह स उनकी ही हो गई थी रायसाहब न आख मदकर अपना घर अपनी रभिaता साली को सौप रक खा था

बाद म रायसाहब चमनलाल की जन मकली क गरह-नaतर पहट बडा घाटा आया ढ़िदवालिलए होन की नौबत आ गई अपनी लडकी क वास त कछ रकम बचान की नीयत स उन होन एक बगला अपनी साली क नाम स खरीदा और लगभग एक लाख रपया नगद और जवरो क रप म बचाकर उसी क नाम स जमा करवा ढ़िदया डिफर रायसाहब ढ़िदवालिलए हो गए और जिजस ढ़िदन उन ह अपनी महलनमा कोठी सदा क लिलए छोडनी थी उस ढ़िदन उन होन गहर नश म अपनी कनपटी पर रिरवाल वर रखकर अपनी इहलीला समाप त कर दी रायसाहब की मत य क बाद मौसी सयानी हो गई और रीता अनाथ

लडकी दखन गए तो उसकी दो चोढ़िटयो म डित तलिलयो जस रिरबन दखकर रायबहादर साहब क पशन पराप त जीवन म नई रस की गलाबी आई अनक वष का सोया हआ मॉन पत नी का अभाव जाग उठा लडकी रीता बातचीत म तज आख नचान म बाकमल और हसन म डिबजली थी दखकर लौट तो रास त म दवीशकर स बोल लडकी तो अच छी ह और दहज का भी मझ कोई खास नही क योडिक तम तो जानत ही हो डिक म इन सब मामलो म बडा मॉन ह खाली एक परयोजन ह क - अ - क या नाम क आई मीन तम हारा क या खयाल ह दवीशकर अभी तो म भी शादी कर सकता ह

दवीशकर रायबहादर को घरत लग मह पर खशामद स हा क बजाय ना भला क यो कर कहत मौसी क लिलए इसस बढकर काई शभ सवाद न हो सकता था अठारह वष की आय की रीता छsपन वषvय रायबहादर डिगराजडिकशन की पत नी बनी

और इसक बाद की तमाम बात अपन करम म बढ गई रीता न परथम ढ़िदन स ही अपन पडित स कोई सबध न रकखा हठपवक अपन कमर क अदर बद रही रायबहादर रपय-पस गहनो और खशामदो की बडी-बडी नमायश लगाकर हार गए डिफर एक ढ़िदन फल ली न बतलाया डिक रमश और रीता रायबहादर दवारा स थाडिपत सबध को भलकर परस पर नया सबध स थाडिपत कर रह ह रायबहादर आग हो गए रमश तब एमए क अडितम वष म पढ रहा था डिपता न करोध म अध होकर उस पर परहार डिकया और घर स डिनकाल ढ़िदया रीता तब भी उनकी न हई

रमश को दो महीन बाद ही ढ़िदल ली म कोई नौकरी षटिमल गई और उसक महीन-भर बाद ही रीता रायबहादर क घर स गायब होकर ढ़िदल ली पहच गई जान स पव वह एक अलबला काम कर गई थी महल ल क पच चास घरो म हर पत पर उनका लिलखा पोस टका उसक गायब होन क दसर ही ढ़िदन पहली ाक स पहचा उसम मातर इतना ही लिलखा था बाब डिगरिरराजकष ण न मझ जबरदस ती अपनी पत नी बनाया था मगर मन उन ह कभी अपना पडित न माना और न अपना धम ही ढ़िदया डिववाह स पहल मझ बतलाया गया डिक म उनक पतर को ब याही जाऊगी तब स मन उनक पतर को ही अपना पडित माना इस घर म आकर भी उन ह ही भगवान की साaी म अपन को सौपा और अब म अपन पडित क पास ही जा रही ह

रीता क भागन स रायबहादर बाब डिगराजडिकशन को इतना कष ट नही पहचा था जिजतना डिक उसक दवारा भज गए इस सावजडिनक पतर स व दखी हए इसक बाद रायबहादर का जीवन बदल गया उनम पजा-पाठ और आशकिसतकता की भावना जागी साथ ही अकलापन भी हठ पकड गया डिपछल आठ वष म व एक ढ़िदन भी अपन घर स बाहर डिनकलकर कही न गए लन-दन का काम करत थ वह भी धीर-धीर समाप त कर ढ़िदया महल ल म डिकसी स भी सपक न रक खा डिपछल कछ ढ़िदनो स बीमार थ मगर महल लवाल उनकी हालत दखन-पछन भी न गए जात तो षटिमलत भी नही और अचानक मर पास अब यह पतर आया

हम सभी महल लवाल एकाएक यह डिनणय न कर पाए डिक इस खिसथडित म क या करना चाडिहए वदयजी और बड बाब इस पa म थ डिक पलिलस को सचना द दी जाए और इस पतर को लिलखी हई बातो का अमल भी कानन क हाथो ही हो परत म तो मत व यलिt की अडितम इच छा परी करन क पa म था रायबहादर कस भी रह हो इसी महल ल क थ कइयो को उन होन कभी नौकरिरया भी ढ़िदलाई थी उपकार डिकया था इजीडिनयर साहब भी मर ही मत क थ बाद म सभी राजी हो गए महल ल क एक षटिमतर क पास रमश क पतर आया करत थ उसी स पता लकर तार भजा गया जिजसम यह स पष ट लिलख ढ़िदया था डिक यढ़िद कल परातःकाल तक तम स वय अथवा तम हारा पतर उततर न आएगा तो रायबहादर की अत योषटिM डिकरया महल लवालो दवारा ही पचनाम स सपन न कर दी जाएगी

सबह चार बज तार का जवाब आया डिक रमश टक सी दवारा ढ़िदल ली स चल रहा ह और सबह तक पहच जाएगा परातःकाल करीब-करीब सभी महल लवाल रायबहादर क घर पर उ पखिसथत थ तभी टक सी दरवाज पर रकी रमश रीता और तीन बच च उतर रमश क मह पर तो सामाजिजक लज जा और सकोच की मलिलन छाया थी परत रीता का चहरा सतज और डिनरतिवकार था

रीता क आन का सवाद पाकर अनक सतरिसतरया कौतहलवश आ गई रीता न रायबहादर की लाश क पास अपनी चडिडया तोडी और माग का सिसदर पोछा रमश न डिपता का अडितम सस कार डिकया सतरिसतरया रीता स तरह-तरह क परश न करती थी परत वह कोई उततर न दती थी डिकरयाकम इत याढ़िद म रायबहादर क सजा तीय नात-रिरश तदार आढ़िद बहत कम आए बरहमभोज म गरीबी स एकदम टट हए बराहमण ही आए डिकसी परकार डिकरयाकम समाप त हआ रमश क वहा स चलन का समय आया

मन रायबहादर क अडितम पतर क अनसार सभरात महल लवालो क साथ रीता-रमश को बलाकर सबक सामन उनका वह अडितम पतर पढा और वह तडिकया जो महरबद पटी म मन रखवा ढ़िदया था खलवाया फल ली और नौकरो को रायबहादर की इच छानसार रपय द ढ़िदए गए रायबहादर की अडितम माग पर रीता का डिनणय सनन क लिलए हम सभी उत सक बठ थ रीता बोली म धम और ईश वर क सम मख सचचरिरतर ह मन अपन तन-मन स उन ह सदा ससर ही माना धारमिमक कानन की जिजस मजबरी स उन होन मझ अपनी पत नी बनाया था उस मन डिवषटिधवत उनकी लाश को सौप भी ढ़िदया उनकी चडिडया उनका सिसदर उन ह सौपा लडिकन मरी चडिडया मरा सिसदर अaय ह कहकर उसन दर स अपन हाथ क नीच दबी हई रमाल की पोटली को उठाया उसम हरी चडिडया थी और एक चादी की डिडिबया थी चडिडया पहनी और डिबीया खोलकर रमश की और रखत हए बोली जिजन होन मरी गोद भरी ह उन होन मरी माग भी भरी ह - लीजिजए मरी माग भर दीजिजए

रमश न रीता की माग म सिसदर की रखा खीच दी डिफर रीता बोली घर क सबध म मझ कवल यही कहना ह डिक अगर आप पाच पच मझ दश चरिरतर मानत हो तो उस धमशाला बना दीजिजए

हमम स कोई खम ठोककर एकाएक यह नही कह पाया डिक रीता दश चरिरतर ह मन अनभव डिकया डिक सभी क मनो को इस परश न स धक का लगा था अपन परपरागत धारमिमक सामाजिजक सस कारो क कारण हम रीता को सचरिरतरा मानन स भी मन ही मन डिहचकत थ पर यो क या कह

रीता हमारी डिहचक पर एक बार कहकर उठ गई उसन कहा मझ रायबहादर साहब का घर और दस हजार रपय पान की इच छा नही मर पडित न मझ सहाग की छाव द रक खी ह लडिकन म आपक सामन कसौटी रखती ह - बोलिलए घर डिकसका ह

घर को छोडकर बाकी सब सामान क साथ रमश रीता और उनक बच च ढ़िदल ली चल गए हम अभी तक कोई डिनणय नही कर पाए घर की चाभी मर पास ह वह तोल ढ का लोह का टकडा इस समय मर मन-पराणो का बोझ बना हआ ह

(1961 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

परायभित अमतलाल नागर

जीवन वाढ़िटका का वसत डिवचारो का अधड भलो का पवत और ठोकरो का समह ह यौवन इसी अवसथा म मनय तयागी सदाचारी दश-भt एव समाज-भt भी बनत ह तथा अपन खन क जोश म वह काम कर ढ़िदखात ह जिजसस डिक उनका नाम ससार क इडितहास म सवणाaरो म लिलख ढ़िदया जाता ह तथा इसी आय म मनय डिवलासी

लोलपी और वयभिभचारी भी बन जाता ह और इस परकार अपन जीवन को दो कौडी का बनाकर पतन क खडड म डिगर जाता ह अत म पछताता ह परायभित करता ह परत परतयचा स डिनकाला हआ बाण डिफर वापस नही लौटता खोई हई सचची शाडित डिफर कही नही षटिमलती

मभिणधर सदर यवक था उसक पस (जब) म पसा था और पास म था नवीन उमगो स परिरत हदय वह भोला-भाला सशील यवक था बचारा सीध माग पर जा रहा था यारो न भटका ढ़िदया - दीन को पथ-हीन कर ढ़िदया उस डिनतय-परडित कोठो की सर कराई नई-नई परिरयो की बाकी झाकी ढ़िदखाई उसक उचचडिवचारो का उसकी महतवकाaाओ का अतयत डिनदयता क साथ गला घोट ाला गया बनावटी रप क बाजार न बचार मभिणधर को भरमा ढ़िदया डिपता स पसा मागता था वह अनाथालयो म चदा दन क बहान और उस आख बद कर बहाता था गदी नालिलयो म पाप की सरिरता म घभिणत वnयालयो म

ऐसी डिनराली थी उसकी लीला पडित जी वदध थ अनक कनयाओ क लिशaक थ वातसय परम क अवतार थ डिकसी भी बालिलका क घर खाली हाथ न जात थ षटिमठाई फल डिकताब नोटबक आढ़िद कछ न कछ ल कर ही जात थ तथा डिनतयपरडित पाठ सनकर परतयक को पारिरतोडिषक परदान करत थ बालिलकाए भी उनस अतयत डिहल-षटिमल गई थी उनक सरaकगण भी पडित जी की वातसयता दख गदगद हो जात थ घरवालो क बाद पडित जी ही अपनी छातराओ क डिनरीaक थ सरaक थ बालिलकाए इनक घर जाती हारमोडिनयम बजाती गाती हसती खलती कदती थी पडितजी इसस गदगद हो जात थ तथा बाहरवालो स परमाशर ढरकात हआ कहा करत इनही लडडिकयो क कारण मरा बढापा कटता चला जा रहा ह अनयथा अकल तो इस ससार म मरा एक ढ़िदवस भी काटना भारी पड जाता समसत ससार पडितजी की एक मह स परशसा करता था

बाहरवालो को इस परकार ठाट ढ़िदखाकर पडितजी दसर ही परकार का खल खला करत थ वह अपनी नवयौवना सदर छातराओ को अनय डिवषयो क साथ-साथ परम का पाठ भी पढाया करत थ परत वह परम डिवशदध परम नही वरन परम की आड म भोगलिलsसा की लिशaा थी सतीतव डिवकरय का पाठ था काम-वासना का पाठ पढाकर भोली-भाली बालिलकाओ का जीवन नM कराकर दलाली खान की चाल थी टटटी की आड म लिशकार खला जाता था पडितजी क आस-पास यडिनवरसिसटी तथा कालज क छातर इस परकार भिभनभिभनाया करत थ जिजस परकार डिक गड क आस पास मखिकखया डिवलिचतर थ पडितजी और अदभत थी उनकी माया

रायबहादर ॉ शकरलाल अगनिeनहोतरी का सथान समाज म बहत ऊचा था सभा-सोसाइटी क हाडिकम-हककाम म आदर की दषटिM स दख जात थ वह उनक थी एक कनया - मtा वह हजारो म एक थी - सदरता और सशीलता दोनो म दभाeयवश वदध पडितजी उस पढान क लिलए डिनयt डिकए गए भोली-भाली बालिलका अपन आदश को भलन लगी पडित जी न उसक डिनमल हदय म अपन कखितसत महामतर का बीजारोपण कर ढ़िदया था अनय यवती छातराओ की भाडित मtा भी पडित जी क यहा हारमोडिनयम सीखन जान लगी

पडितजी मtा क रप लावणय को डिकराए पर उठान क लिलए कोई मनचला पस वाला ढढन लग अत म मभिणधर को आपन अपना पातर चन लिलया नई-नई कलिलयो की खोज म भटकन वाला षटिमसिलद इस अपव कली का मदपान करन क लिलए आकलिलत हो उठा इस अवसर पर पडितजी की मटठी गम हो गई दसर ही ढ़िदवस मभिणधर को पडित जी क यहा जाना था वह सधया अतयत ही रमणीक थी मभिण न उस बडी परतीaा करन क पात पाया था आज वह अतयत परसनन था आज उस पडितजी क यहा जाना था वह लब-लब पग रखता हआ चला जा रहा था पडितजी क पापालय की ओर आज उस रपयो की वदी पर वासना-दवी को परसनन करन क लिलए बलिल चढानी थी

मtा पडितजी क यहा बठी हारमोडिनयम पर उगलिलया नचा रही थी और पडितजी उस पलडिकत नतरो स डिनहार रह थ वह बाजा बजान म वयसत थी साहसा मभिणधर क आ जान स हारमोडिनयम बद हो गया लजीली मtा कसv छोडकर एक ओर खडी हो गई पडितजी न डिकतना ही समझाया बटी इनस ल|ा न कर यह तो अपन ही ह जा बजा बाजा बजा अभयागत स|न क सवागत म एक गीत गा परत मtा को अभी ल|ा न न छोडा था वह अपन सथान पर अडिवचल खडी थी उसक सकोमल मनोहारी गाल ल|ावश अगरी की भाडित लाल हो रह थ

अलक आ-आकर उसका एक मधर चबन लन की चMा कर रही थी मभिणधर उस पर मर षटिमटा था वह उस समय बाहय ससार म नही रह गया था यह सब दख पडितजी गनिखसक गए अब उस परको^ म कवल दो ही थ

मभिणधर न मtा का हाथ पकडकर कहा आइए खडी कयो ह मर समीप बठ जाइए मभिणधर धM होता चला जा रहा था मtा जिझझक रही थी परत डिफर भी मौन थी मभिणधर न कहा - कया पडितजी न इस परकार आडितथय सतकार करना लिसखलाया ह डिक घर पर कोई पाहन आव और घरवाला चपचाप खडा रह शभ मर समीप बठ जाइए परम की डिवदयत कला दोनो क शरीर म परवश कर चकी थी मtा इस बार कछ न बोली वह मतर-मeध-सी मभिण क पीछ-पीछ चली आई तथा उसस कछ हटकर पलग पर बठ गई आपका शभ नाम मभिण न जरा मtा क डिनकट आत हए कहा मtा लजीली मtा न धीम सवर म कहा

बातो का परवाह बढा धीर-धीर समसत डिहचक जाती रही और और थोडी दर क पात मtा नीरस हो गई उसकी आब उतर गई थी

डिहजाब नौ उरमा रहबर शौहर नबी मानद अगर मानद शब-मानद शब दीगर नबी मानद

डिहचक खल गई थी मभिण और मtा का परम करमशः बढन लगा था मभिण षटिमसिलद था पप पर उसका परम तभी ही ठहर सकता ह जब तक उसम मद ह परत मtा का परम डिनमल और डिनकलक था वह पाप की सरिरता को पडिवतर परम की गगा समझकर बरोक-टोक बहती ही चली जा रही थी अचानक ठोकर लगी उसक नतर खल गए एक ढ़िदन उसन तथा समसत ससार न दखा डिक वह गभ स थी

समाज म हलचल मच गई शकरलाल जी की नाक तो कट ही गई वह डिकसी को मह ढ़िदखान क योeय न रह गए थ - ऐसा ही लोगो का डिवचार था असत जाडित-डिबरादरी जटी पच-सरपच आए पचायत का काय आरभ हआ मtा क बयान लिलए गए उसन आसओ क बीच लिससडिकयो क साथ-साथ समाज क सामन सपण घटना आदयोपात सना ाली - पडितजी का उसक भोल-भाल सवचछ हदय म काम-वासना का बीजारोपण करना ततपात उसका मभिणधर स परिरचय कराना आढ़िद समसत घटना उसन सना ाली पडितजी न डिगडडिगडात अपनी सफाई पश की तथा मtा स अपनी वदधावसथा पर तरस खान की पराथना की परत मभिणधर शात भाव स बठा रहा

पचो न सलाह दी बढो न हा म हा षटिमला ढ़िदया सरपच महोदय न अपना डिनणय सना ाला सारा दोष मtा क माथ मढा गया वह जाडितचयत कर दी गई रायबहादर क डिपता की भी वही राय थी जो पचो की थी मभिणधर और पडितजी को सचचरिरतरता का सरटिटडिफकट द डिनदyenषी करार द ढ़िदया गया कवल अबला मtा ही दख की धधकती हई अगनिeन म झलसन क लिलए छोड दी गई अत म अतयत कातर भाव स डिनससहाय मtा न सरपच की दोहाई दी - उसक चरणो म डिगर पडी सरपच घबराए हाय भरMा न उनह श कर लिलया था करोषटिधत हो उनहोन उस गरभिभणी डिनससहाय आशरय-हीना यवती को धकक मार कर डिनकाल दन की अनमडित द दी उनकी आजञा का पालन करन क लिलए निहद समाज को वासतव म पतन क खडड म डिगरान वाल नरराaस खशामदी टटट पीर बवचv भिभसती खर की कहावत को चरिरताथ करन वाल इस कलक क सचच अपराधी पडितजी ततaण उठ उस धकका मारकर डिनकालन ही वाल थ - अचानक आवाज आई - ठहरो अनयाय की सीमा भी परिरषटिमत होती ह तम लोगो न उसका भी उलघन कर ाला ह लोगो न नतर घमाकर दखा तो मभिणधर उततजिजत हो डिनल भाव स खडा कह रहा था निहद समाज अधा ह अतयाचारी ह एव उसक सवसवा अथात हमार माननीय पचगण अनपढ ह गवार ह और मख ह जिजनह खर एव खोट सतय और असतय की परख नही वह कया तो नयाय कर सकत ह और कया जाडित-उपकार इसका वासतडिवक अपराधी तो म ह इसका द तो मझ भोगना चाडिहए इस सशील बाला का सतीतव तो मन नM डिकया ह और मझस भी अषटिधक नीच ह यह बगला भगत बना हआ नीच पडित इस दराचारी न अपन सवाथ क लिलए न मालम डिकतनी बालाओ का जीवन नM कराया ह - उनह पथभरM कर ढ़िदया ह जिजस आदरणीय दषटिM स इस नीच को समाज म दखा जाता ह वासतव म यह नीच उसक योeय नही वरन यह नर पश ह लोलपी ह लपट ह सिसह की खाल ओढ हए तचछ गीदड ह - रगा लिसयार ह

सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

Page 11: hindisahityasimanchal.files.wordpress.com · Web viewइ दर क बह क अन म न सत य क न कट पह च । घटन प ड त द वधर क ज

- हा तम हारी सिचता नही सिचता तो तम ह और फफाजी को करनी ह मरी ओर स

- तम दोनो क भोजन कर लन तक म भी अपन परण स अटल रहगा

बआजी एक aण सिचता म पड गई डिफर मीठी वाणी म समझाकर कहा - दखो भया इदर मर लिलए जस भोला-डितरभवन वस तम जसा य घर वसा वो आज तम अपन फफाजी को डिकसी तरह जिजमा लो उनक बरत टटत की खबर सनत ही तम हारी कसम म आप ही ठाकरजी का भोग पा लगी लडिकन इसी घर म डिकसी क जी को कलस हो बटा ऐसी बात नही करनी चाडिहए क या कह तर फफाजी का करोध मरी कछ चलन नही दव ह अपन जी को कलस दव ह सो दव ह बाकी बच चो क जी को जो कलस लग ह उसक लिलए तो कहा ही क या जाए कलजग कलजग की तर स चलगा भया

इदरदतत कछ दर तक बआ क मन की घटन का खलना दखत रह

पडित दवधरजी भटट न डिनत य-डिनयम क अनसार झटपट समय अपन भतीज क आगन म परवश कर आवाज लगाई-इदरदतत

- आइए फफाजी

सकर टट सीलन-भरी लखौटी-ईटो पर खडाऊ की खट-खट चढती गई इदरदतत कटहर क पास खड थ जीन क दरवाज स बाहर आत हए पडित दवधर उन ह ढ़िदखलाई ढ़िदए उनक भस म लग कपास और दह पर पड ज लिशव छाप क दपटट म उनकी दह स एक आभा-सी फटती हई उन ह महसस हो रही थी फफाजी क आत ही घर बदल गया उन ह दखकर हर रोज ही महसस होता ह पर आज की बात तो न यारी ही थी

फफाजी क चार ढ़िदनो का वरत आज उनक व यलिtत व को इदरदतत की दषटिM म और भी अषटिधक तजोमय बना रहा था फफाजी को लकर आज उनका मन अतयत भावक हो रहा था पीडा पा रहा था इदरदतत न अनभव डिकया डिक फफाजी क चहर पर डिकसी परकार की उततजना नही भख की थकान नही चहरा सखा कछ उतरा हआ अवश य था परत मख की चष टा नही डिबगडी थी पडित दवधर की यह बात इदरदतत को बहत छ रही थी

पडित जी आकर चौकी पर बठ गए इदरदतत उनक सामन मढ पर बठ घर बनन क कारण उनका बठका उजड गया था अभ यागत क आन पर इदरदतत सकोच क साथ इसी टट कमर म उसका स वागत करत फफाजी स तो खर सकोच नही पख का रख उन होन उनकी ओर कर ढ़िदया और डिफर बठ गए कछ दर तक दोनो ओर स खामोशी रही डिफर फफाजी न बात उठाई - तम अभी घर गए थ सना

- जी हा

- तम हारी बआ मझस कह रही थी मन यह भी सना ह डिक तम मर कारण डिकसी परकार का बाल हठ करन की धमकी भी द आए हो

पडित दवधर न अपना दपटटा उतार कर कसv पर रख ढ़िदया पालथी मारकर व सीध तन हए बठ थ उनका परायः पीला पडा हआ गोरा बदन उनक बठन क सधाय क कारण ही शकिरिरचअल जच रहा था अन यथा उनका यह पीलापन उनकी रोगी अवस था का भी परिरचय द रहा था

इदरदत त न सध-सधकर कहना शर डिकया - मरा हठ स वततर नही बडो क हठ म योगदान ह

- इन बातो स कछ लाभ नही इदर मरी गडित क लिलए मर अपन डिनयम ह

- और मर अपन डिनयम भी तो हो सकत ह

- तम ह स वाधीनता ह

- तब मन भी यढ़िद अनशन का फसला डिकया ह तो गलत नही ह

- तम अपन परडित मर स नह पर बोझ लाद रह हो म आत मशजिदध क लिलए वरत कर रहा ह परखो क साधना-गह की जो यह दगडित हई ह यह मर ही डिकसी पाप क कारण अपन अतःकरण की गगा स मझ सरस वती का मढ़िदर धोना ही पडगा तम अपना आगरह लौटा लो बटा

एक षटिमनट क लिलए कमर म डिफर सन नाटा छा गया कवल पख की गज ही उस खामोशी म लहर उठा रही थी

इदरदत त न शात स वर म कहा - एक बात पछ मढ़िदर म कत त क परवश स यढ़िद भगवती अपडिवतर हो जाती ह तो डिफर घट-घट व यापी ईश वर की भावना डिबलकल झठी ह एक ईश वर पडिवतर और दसरा अपडिवतर क यो माना जाए

पडित दवधर चप बठ रह डिफर गभीर होकर कहा - निहद धम बडा गढ ह तम इस झगड म न पडो

- म इस झगड म न पडगा फफाजी पर एक बात सोचता ह भगवान राम अगर परम क वश म होकर शबरी क जठ बर खा सकत थ निहद लोग यढ़िद इस आख यान म डिवश वास रखत ह तो डिफर छत-अछत का कोई परश न ही नही रह जाता यषटिधषटि^र न अपन साथ-साथ चलनवाल कत त क डिबना स वग म जान तक स इनकार कर ढ़िदया था यह सब कहाडिनया क या निहद-धम की मडिहमा बखाननवाली नही ह क या यह महत भाव नही ह डिफर इनक डिवपरीत छआछत क भय स छईमई होनवाल गढ धम की मडिहमा को आप क यो मानत ह इन रढ़िढयो स बधकर मनष य क या अपन को छोटा नही कर लता

पडितजी शाडितपवक सनत रह इदरदत त को भय हआ डिक बरा न मान गए हो तरत बोल - म डिकसी हद तक उत तजिजत जरर ह लडिकन जो कछ पछ रहा ह जिजजञास क रप म ही

- ठीक ह - पडितजी बोल - हमार यहा आचार की बडी मडिहमा ह मनस मडित म आया ह डिक आचारः परथमो धमः जसा आचार होगा वस ही डिवचार भी होग तम शदधाचरण को बरा मानत हो

- जी नही

- तब मरा आचार क यो भरष ट करा रह हो

- ऐसा धष टता करन का डिवचार स वप न म भी मर मन म नही आ सकता हा आपस aमा मागत हए यह जरर कहगा डिक आपक आचार नए यग को डिवचार शलिt नही द पा रह ह इसलिलए उनका मल य मर लिलए कछ नही क बराबर ह म दरतिवनीत नही ह फफाजी परत सच-सच यह अनभव करता ह डिक दडिनया आग बढ रही ह और आपका दषटिMकोण व यथ क रोड की तरह उसकी गडित को अटकाता ह पर इस समय जान दीजिजए म तो यही डिनवदन करन घर गया था और यही मरा आगरह ह डिक आप भोजन कर ल

पडितजी मस कराए इदरदत त क मन म आशा जागी पडितजी बोल - करगा एक शत पर

- आजञा कीजिजए

- जो मर अथात परानी परिरपाटी क यम डिनयम सयम आढ़िद ह व आज स तम ह भी डिनभान पडग जिजनका मल य तम हारी दषटिM म कछ नही ह व आचार-डिवचार मर लिलए पराणो स भी अषटिधक मल यवान ह

इदरदत त सतभिभत रह गए व कभी सोच भी नही सकत थ डिक फफाजी सहसा अनहोनी शत स उन ह बाधन का परयत न करग पछा - कब तक डिनभाना पडगा

- आजीवन

इदरदत त निककतव यडिवमढ हो गए जिजन डिनयमो म उनकी आस था नही जो चीज उनक डिवचारो क अनसार मनष य को अधडिवश वासो स जकड दती ह और जो भारतीय सस कडित का कलक ह उनस उनका परबदध मन भला क यो कर बध सकता ह हा कह तो कस कह उन होन इस वरत डिनयम बलिलदान चमत कार और षटिमथ या डिवश वासो स भर निहद धम को समाज पर घोर अत याचार करत दखा ह अपन-आपको तरह-तरह स परपीडिडत कर धारमिमक कहलानवाला व यलिt इस दश को रसातल म ल गया इस कठोर जीवन को साधनवाल शदधाचरणी बराहमण धम न इस दश की सतरिसतरयो और हीन कहलानवाली जाडितयो को सढ़िदयो तक दासता की चक की म बरी तरह पीसा ह और अब भी बहत काफी हद तक पीस रहा ह हो सकता डिक मनष य की चतना क उगत यग म इस शदध कहलानवाल आचार न अधकार म उन नत डिवचारो की ज योडित जगाई हो पर अब तो सढ़िदयो स इसी झठ धम न औसत भारतवासी को दास अधडिवश वासी और असीम रप स अत याचारो को सहन करनवाला झठी दवीशलिtयो पर यानी अपनी ही धोखा दनवाली लभावनी असभव कल पनाओ पर डिवश वास करनवाला झठा भाग यवादी बनाकर दश की कमर तोड रखी ह इसन औसत भारतवासी स आत मडिवश वास छीन लिलया ह इस जडता क खिxखलाफ उपडिनषद जाग मानवधम जागा योग का जञान जागा बौदध भागवतधम जागा मध यकाल का सत आदोलन उठा और आज क वजञाडिनक यग न तो इस एकदम डिनस सार लिसदध कर सदा क लिलए इसकी कबर ही खोद दी ह यह जड धम कभी भारत को महान नही बना सका होगा भारत की महानता उसक कमयोग म ह उसक व यापक मानवीय दषटिMकोण म ह व यास-वाल मीडिक आढ़िद क परम उदार भावो म ह पराचीन भारत क दशन न याय वशडिषक साडिहत य लिशल प सगीत आढ़िद इस जड धम की उपज हरडिगज नही हो सकत डिफर भी यह जडता भारत पर अस स भत की तरह छाई हई ह इसी स घणा करन क कारण आज का नया भारतीय डिबना जाच-पडताल डिकए अपनी सारी परपराओ स घणा करत हए लिसदधातहीन आस थाहीन और डिनसतरिकरय हो गया ह नही व फफाजी का धम हरडिगज न डिनभा सक ग हरडिगज नही हरडिगज नही पर व भोजन कस करग बआजी कस और कब तक भोजन करगी कसी डिवबना ह दो मनष यो की मौत की नडितक जिजम मदारी उनक ऊपर आएगी

पडित दवधर न उन ह मौन दखकर पछा-कहो भोजन कराओग मझ

- जीम धम-सकट म पड गया ह

- स पष ट कहो मरा धम गरहण करोग

फफाजी आप बहत माग रह ह मरा डिवश वास माग रह ह म आपक धम को यग का धम नही मानता अपना नही मानता

म तम हारी स पष टवाढ़िदता स परसन न ह तम धारमिमक हो इसी तरह अपन स मझको पहचानो म भी अपना धम नही छोड सकता यदयडिप तम हार सत सग स मन इतन ढ़िदनो म यह समझ लिलया ह डिक मरा यग मरा धम अब सदा क लिलए लोप हो रहा ह डिफर भी अडितम सास तक तो हरडिगज नही मरी आस था तपःपत ह तम हारा कल याण हो सखी हो बटा अच छा तो अब चल -

परत मरा अनशन का डिनश चय अडिग ह फफाजी म आपक चरण छकर कह रहा ह

पर छोड दो बट इन परो स पहल ही जडता समा चकी ह और अब तो जीव क साथ ही षटिमटगी अन यथा नही खर कल डिवचार करना अपन अनशन पर

अडितम वाक य पडितजी न इस तरह कहा डिक इदरदतत को करारा झटका लगा पर व मौन रहन पर डिववश थ पडित दवधर चलन लग इदरदतत क मन म भयकर तफान उठ रहा था व हार गए बआजी को क या उततर दग इस अगडित का अत कया होगा क या व फफाजी की बात मान ल कस मान ल यह ठीक ह डिक फफाजी अपन धम पर डिकस परकार एकडिनष ठ ह यह ए कडिनष ठता उन ह बहद परभाडिवत करती ह डिफर भी उनक धम को वह क यो कर स वीकार कर

पडित दवधरजी जीन पर पहचकर रक इदरदतत उनक पीछ-पीछ चल रह थ पडितजी घमकर बोल - तम हारी मान यताओ म मरी आस था नही ह इदर डिफर भी म उसक वास तडिवक पa को कछ-कछ दख अवश य पा रहा ह एक बात और स पष ट करना चाहता ह तम भोला डितरभवन क धम को आज का या डिकसी भी यग का वास तडिवक धम मानत हो

- जी नही उनका कोई धम ही नही ह

- तम हारा कल याण हो बट धन मद स जन म इस खोखल धम स सदा लडना जस म लडा तम अपन मत क अनसार लडो पर लडो अवश य यह आस थाहीन दभ भरा अदाशडिनक अधारमिमक जीवन लोक क लिलए अकल याणकारी ह बोलो वचन दत हो

म आपको अपना डिवश वास दता ह - कहकर इदरजीत न फफाजी क चरण छ लिलए खडाऊ की खट-खट जीन स उतर गई आगन पार डिकया दर चली इदरदतत आकर कट पड स अपन पलग पर डिगर गए

नया यग परान यग स स वच छा स डिवदा हो रहा था पर डिवदा होत समय डिकतना परबल मोह था और डिकतना डिनमम व यवहार भी

धम सकट अमतलाल नागर

शाम का समय था हम लोग परदश दश और डिवश व की राजनीडित पर लबी चचा करन क बाद उस डिवषय स ऊब चक थ चाय बड मौक स आई लडिकन उस ताजगी का सख हम ठीक तरह स उठा भी न पाए थ डिक नौकर न आकर एक सादा बद लिलफाफा मर हाथ म रख ढ़िदया मन खोलकर दखा सामनवाल पडोसी रायबहादर डिगराजडिकशन (डिगरिरराज कष ण) का पतर था कापत हाथो अनषटिमल अaरो और टढी पलिtयो म लिलखा था

माई डियर परताप

मन फल ली को आदश द रक खा ह डिक मरी मत य क बाद यह पतर तम ह फौरन पहचाया जाए तम मर अभिभन न षटिमतर क पतर हो रमश स अषटिधक सदा आजञाकारी रह हो मरी डिनम नलिलगनिखत तीन अडितम इच छाओ को परा करना -

1 रमश को तरत सचना दना मरी आत मा को तभी शाडित षटिमलगी जब उसक हाथो मर अडितम सस कार होग मन उसक साथ अनयाय डिकया ह

2 फल ली को मन पाच हजार रपय ढ़िदए ह और पाच-पाच सौ रपय बाकी चारो नौकरो को नोट मर तडिकए म रई की परत क अदर ह उसी म वसीयत और डितजोरी की चाभी भी ह घर म डिकसी को यह रहस य नही मालम तडिकया अब फौरन अपन कबज म कर लना घर क भार-घर और सदको की चाभिभया डितजोरी म ह रमश क आन पर पाच पचो क सामन उस सौप दना

3 मन अपनी वसीयत म यह शत रक खी ह डिक मरी पत नी अगर मझ माफ कर द और गलत ही सही मगर जो पडितवरत उस पर आन पडा ह उस साधकर रमश को छोडकर बाइज जत यहा रह तो यह मकान और दस हजार रपया उस ढ़िदया जाए लडिकन यह काम उसी हालत म होना चाडिहए जबडिक हम और तम हार दवारा डिनयक त महल ल क चार भल आदमी मरी पत नी की सच चरिरतरता क सबध म आवश स त हो जाए

पतर पर छह रोज पहल की तारीख पडी थी मझ यह समझन म दर न लगी डिक रायबहादर साहब गत हो चक ह पतर मन बड बाब क सामन मज पर रखा ढ़िदया इजीडिनयर साहब और परोफसर साहब भी झककर पढन लग

चाय बमजा हो गई हम सभी उठकर रायबहादर साहब क यहा गए उनका रोबीला चहरा रोग और मानलिसक सिचताओ स जजर होकर मत य क बाद भी उनक अडितम ढ़िदनो क असीम कष टो का परिरचय द रहा था मत रायबहादर क चहर को दखत हए उनक साथ बीत इतन वष की स मडितया मर मन म जाग उठी

रायबहादर बाब डिगराजडिकशन बीए उन निहदस ताडिनयो म स थ जिजन ह तकदीर की चक क कारण इeल म जनम नही षटिमल पाया था उनका रग भी गोरा न था बशकिक गहए स काल की ओर ही अषटिधक झकता हआ था डिफर भरसक उन होन अपन-आपको अगरजनमा ही बनाए रक खा गरीब निहदसताडिनयो पर अकड ढ़िदखान म व सदा अगरजो स चार जत आग रह कई निहदीवाढ़िदयो न उनस शदध नाम डिगरिरराजकष ण रखन को कहा मगर व उन ह मख बतलाकर डिगराज ही बन रह रायबहादर डिगराजडिकशन क नाम क साथ बीए जोडना भी डिनतात आवश यक था सन 23 म रायबहादर डिगराज अपनी डिबरादरी क रायसाहब दीनानाथ की बदौलत इलाहाबाद म छोट लाट क दफतर म भरती हए थ अपनी अगरजपरस ती और हाईक लास खशामद क दम पर रामबहादर ऊची करसिसयो पर चढ बठ स वराज य होन पर आतरिरक कष ट भोगन क बावजद तीन वष तक स वराजी अफसरो नताओ और मडितरयो की भी बाअदब खशामद की डिगराज बाब इन लोगो क सामन जिजस परकार खद दम डिहलात उसी परकार अपन सामन अपन मातहतो की भी डिहलवात थ आजादी क बाद भी दफतर म अपना भला चाहनवाला कोई बाब उनक आग निहदी का एक शब द नही बोल सकता था और घर क लिलए भी यही मशहर था डिक रायबहादर की भस तक अगरजी म ही कारती अगर कोई कसर थी तो सही डिक ली डिगराज क वास त अगरजी का करिरया अaर भी भस बराबर ही था

रायबहादर डिगराज पहली लडाई क जमान क मॉन आदमी थ सबह आख खलत ही घटी बजात सफद कोट पतलन और साफ स लस फल ली आया का लडका घसीट छोटी हाजिजरी लकर हाजिजर होता ठीक आठ बज बडी हाजिजरी पर बठत बटी-बटा साथ होत पर ल ी डिगराज अा-डिबस कट-समाज म कभी न बठी परम कटटर छत-पाकवाली न होत हए भी मास-मछली स उन ह परहज था बशीरत चपरासी क बाप मन न बावचv को हफत म दो ढ़िदन डयटी दनी पडती थी घर क डिनचल डिहस स म डिवलायती रसोई थी एक तरह स कहना चाडिहए डिक नीच का परा घर ही डिवलायती था वहा ल ी डिगराज क बजाय फल ली आया का सामराज य था फल ली पहल अगरजी कोढ़िठयो म काम करती थी अगरजी ढग स निहदस थानी बोलती ह अगरजी घर क कायद जानती ह छोटी-बडी हाजिजरी लच डिनर चाय सबका समय साधती थी इसलिलए डिगराज बाब क बाब डिनयम स दो पग खान स पहल चसडिकयो म मयादा करत थ फली उसका इतजाम भी बखबी कर दती थी इसलिलए आमतौर पर मजाक-मजाक म ही मशहर हो गया था डिक रायबहादर साहब स कोई काम करवान क वास त बजाय ली डिगराज क ल ी फल ली की लिसफारिरश जयादह परअसर होती ह

वस राजबहादर डिगराज म डिकसी न भी कोई ऐब की बात नही दखी-सनी थी अगर ऐब था तो यही डिक व मॉन थ चरट मह म लगाए बगर व बात नही कर पात थ अगर कोई निहदी सभा का चदा मागन आए तो उसस अकडकर कहत डिक मॉन जमान म गवार भाषाओ का उदधार करना डिहमाकत की बात ह धम क सबध म पहल तो व यह कहा करत थ डिक यह ढोग और पागलपन की वस त ह मगर बाद म उस इडियन कल चर का एक सनातन रप मानकर सहन कर जात थ डिगराज साहब थोडा-बहत लन-दन का काम करत थ और उसकी बदौलत उन होन हलिसयत भी बनाई अच छा मॉन ढग का मकान बनवाया उसका नाम ढ़िद नाइटिटगल रकखा मोटर खरीदी सदा दो-चार नौकर पाल घर स लकर दफतर तक घडी साधकर सबस डयटी करवाई पत नी को भी षटिमलन क वास त फल ली क दवारा उनस अप वाइटमट लना पडता था ली इसस जल-फक गई डिक म फल ली स भी गई-बीती हो गई

ली डिगराज न अपन फहडपन म उनक ऊपर एक बहत बडा लाछन लगा ढ़िदया रायबहादर साहब लिसदधाततः और स वभावतः अवध रिरश तो स नफरत करत थ इसलिलए अपनी पत नी क दवारा झठा लाछन लगाए जान क बाद डिफर उन होन कभी उनका मह न दखा बडी लडकी क डिववाह क अवसर पर उन होन कन यादान इसलिलए स वय न डिकया डिक उन ह पजा क पटर पर अपनी पत नी क साथ बठना पडता

इसक बाद दो वष म ली डिगराज घल-घलकर मर गई मगर मरी भी तो डिनयडित क साथ षडयतर करक ठीक इनक रिरटायर होन क ढ़िदन रायबहादर डिगराज को बहत लिशकायत हई अपन बट-बटी स कहा तम हारी मममी को कभी टाइम का सस नही रहा अगर मरना ही था तो कल सबह मरती परसो सबह मर सकती थी आज शाम को दफतर म मरी फयरवल पाट हो जान क बाद कभी मर सकती थी जिजदगी म एडरस पान का यह पहला मौका आया था सो इस तरह तबाहोबबाद कर ढ़िदया ईडियट कही की

इसक बाद मरनवाली तो खर मर ही चकी थी मगर जो भी मातम-परसी क लिलए मह डिबसरत हए आए उन ह भी रायबहादर साहब की ाट खानी पडी जो कहता डिक साहब सनकर बडा दख हआ उसस ही कहत आपको दख करन की जररत क या ह मझ कोई दख नही हआ जो आदमी पदा होता ह उन सबको एक साथ फौरन मर जाना चाडिहए जाइए मर यहा मातम-परसी क लिलए आन की जररत नही

छोटी लडकी की शादी उन होन पत नी की मत य क तीन महीन बाद पव डिनश चय क अनसार ही की स वय ब याहनवाली लडकी और उनक पतर को इसम आपभितत थी मगर उन होन डिकसी की एक न सनी कहा आई हव नो रिरगा फॉर योर मम मी शी वाज एक परफक ट फल लडकी की शादी बडी धमधाम स की एक आईसीएस क बट को अपना दामाद बनाया और बहत कछ दान-दहज दकर रिरटायर होन क बाद भी रोब जतलाया

लडका रमश तब एमए फाइनल म पढ रहा था नामी तज था सदा फस ट क लास रका रहा एमए क बाद आईएएस म बठनवाला था लडकीवाल अनक व यलिt रमश की माग करन क लिलए रायबहादर की सवा म आन लग रायबहादर डिगराज को अब मातहत क लक पर न सही तो ब टीवालो पर ही चरट का रोब झाडकर भरपर सतोष षटिमल जाता था दहज क मामल म व पक क मॉन थ यानी पच चीस हजार मागत थ एकाध डिपछल जानकार न दहाई दी डिक आप तो दहज क डिवरदध थ उसको परानी परथा बतलात थ तो बोल साहब जब मझ स बड अफसर आईसीएस आदमी यानी मर समधी साहब दहज लन को मॉन परथा मानत ह तो मन भी अपन डिवचार बदल ढ़िदए ह डिनहायत साइढ़िटडिफक बात ह डिक आपको दामाद चाडिहए और मझ 25 हजार रपया मरा रमश आईएएस पास करगा आप अपनी लडकी का फयचर दखकर अगर इतनी रक कम दना स वीकार करत ह तो बढ़िठए वरना मरी करसी की गददी मली मत डिकजिजए

व ऐसी लडकी चाहत थ जो सदर हो बीए हो गाती नाचती हो सीना-डिपरोना-बनना जानती हो अगरजी म फटाफट बात कर अफसर डिकसम क मॉन महमानो की खाडितर करन म तमीजदार हो और ऊपर स उसका बाप नगद पच चीस हजार रपय भी द जाए डिबरादरी क कई अच छी हलिसयतवाल बढ़िटयो क बापो क चहर रायबहादर डिगराज क चरट की अकड स धआ-छआ हो गए

एक ढ़िदन इनक दवारा नौकर रखाए गए परान मातहत एक सजातीय बाब दवीशकर पधार डिगराज की मडिहमाओ का बखान करत हए उन होन कहा सर म आपकी च वायस को जानता ह और एक लडकी मरी नजर म ह

इन बाब क साथ उन होन रीता को दखन का अवसर पाया रीता रायसाहब चमनलाल की इकलौती बटी थी रायसाहब चमनलाल न अपन जमान म बड ऐश बड नाम डिकए व शहर की तवायफो क सरताज थ रस क घोडो क सरपस त थ और बड ही औला-पौला आदमी थ अपन जीवन-काल म लाखो कमाए और लाखो फक एक लडकी हई उस बड लाड स पाला-पोसा पढाया हाई स कल तक रीता न परीaाओ तथा वाद-डिववाद और नत य-परडितयोडिगताओ म अनक परस कार पराप त कर अपन डिपता को सतष ट डिकया था रायसाहब डिवधर थ रीता की एक डिवधवा मौसी उनकी लडकी की दखभाल करन क लिलए उनक यहा रहती थी सो तब तरह स उनकी ही हो गई थी रायसाहब न आख मदकर अपना घर अपनी रभिaता साली को सौप रक खा था

बाद म रायसाहब चमनलाल की जन मकली क गरह-नaतर पहट बडा घाटा आया ढ़िदवालिलए होन की नौबत आ गई अपनी लडकी क वास त कछ रकम बचान की नीयत स उन होन एक बगला अपनी साली क नाम स खरीदा और लगभग एक लाख रपया नगद और जवरो क रप म बचाकर उसी क नाम स जमा करवा ढ़िदया डिफर रायसाहब ढ़िदवालिलए हो गए और जिजस ढ़िदन उन ह अपनी महलनमा कोठी सदा क लिलए छोडनी थी उस ढ़िदन उन होन गहर नश म अपनी कनपटी पर रिरवाल वर रखकर अपनी इहलीला समाप त कर दी रायसाहब की मत य क बाद मौसी सयानी हो गई और रीता अनाथ

लडकी दखन गए तो उसकी दो चोढ़िटयो म डित तलिलयो जस रिरबन दखकर रायबहादर साहब क पशन पराप त जीवन म नई रस की गलाबी आई अनक वष का सोया हआ मॉन पत नी का अभाव जाग उठा लडकी रीता बातचीत म तज आख नचान म बाकमल और हसन म डिबजली थी दखकर लौट तो रास त म दवीशकर स बोल लडकी तो अच छी ह और दहज का भी मझ कोई खास नही क योडिक तम तो जानत ही हो डिक म इन सब मामलो म बडा मॉन ह खाली एक परयोजन ह क - अ - क या नाम क आई मीन तम हारा क या खयाल ह दवीशकर अभी तो म भी शादी कर सकता ह

दवीशकर रायबहादर को घरत लग मह पर खशामद स हा क बजाय ना भला क यो कर कहत मौसी क लिलए इसस बढकर काई शभ सवाद न हो सकता था अठारह वष की आय की रीता छsपन वषvय रायबहादर डिगराजडिकशन की पत नी बनी

और इसक बाद की तमाम बात अपन करम म बढ गई रीता न परथम ढ़िदन स ही अपन पडित स कोई सबध न रकखा हठपवक अपन कमर क अदर बद रही रायबहादर रपय-पस गहनो और खशामदो की बडी-बडी नमायश लगाकर हार गए डिफर एक ढ़िदन फल ली न बतलाया डिक रमश और रीता रायबहादर दवारा स थाडिपत सबध को भलकर परस पर नया सबध स थाडिपत कर रह ह रायबहादर आग हो गए रमश तब एमए क अडितम वष म पढ रहा था डिपता न करोध म अध होकर उस पर परहार डिकया और घर स डिनकाल ढ़िदया रीता तब भी उनकी न हई

रमश को दो महीन बाद ही ढ़िदल ली म कोई नौकरी षटिमल गई और उसक महीन-भर बाद ही रीता रायबहादर क घर स गायब होकर ढ़िदल ली पहच गई जान स पव वह एक अलबला काम कर गई थी महल ल क पच चास घरो म हर पत पर उनका लिलखा पोस टका उसक गायब होन क दसर ही ढ़िदन पहली ाक स पहचा उसम मातर इतना ही लिलखा था बाब डिगरिरराजकष ण न मझ जबरदस ती अपनी पत नी बनाया था मगर मन उन ह कभी अपना पडित न माना और न अपना धम ही ढ़िदया डिववाह स पहल मझ बतलाया गया डिक म उनक पतर को ब याही जाऊगी तब स मन उनक पतर को ही अपना पडित माना इस घर म आकर भी उन ह ही भगवान की साaी म अपन को सौपा और अब म अपन पडित क पास ही जा रही ह

रीता क भागन स रायबहादर बाब डिगराजडिकशन को इतना कष ट नही पहचा था जिजतना डिक उसक दवारा भज गए इस सावजडिनक पतर स व दखी हए इसक बाद रायबहादर का जीवन बदल गया उनम पजा-पाठ और आशकिसतकता की भावना जागी साथ ही अकलापन भी हठ पकड गया डिपछल आठ वष म व एक ढ़िदन भी अपन घर स बाहर डिनकलकर कही न गए लन-दन का काम करत थ वह भी धीर-धीर समाप त कर ढ़िदया महल ल म डिकसी स भी सपक न रक खा डिपछल कछ ढ़िदनो स बीमार थ मगर महल लवाल उनकी हालत दखन-पछन भी न गए जात तो षटिमलत भी नही और अचानक मर पास अब यह पतर आया

हम सभी महल लवाल एकाएक यह डिनणय न कर पाए डिक इस खिसथडित म क या करना चाडिहए वदयजी और बड बाब इस पa म थ डिक पलिलस को सचना द दी जाए और इस पतर को लिलखी हई बातो का अमल भी कानन क हाथो ही हो परत म तो मत व यलिt की अडितम इच छा परी करन क पa म था रायबहादर कस भी रह हो इसी महल ल क थ कइयो को उन होन कभी नौकरिरया भी ढ़िदलाई थी उपकार डिकया था इजीडिनयर साहब भी मर ही मत क थ बाद म सभी राजी हो गए महल ल क एक षटिमतर क पास रमश क पतर आया करत थ उसी स पता लकर तार भजा गया जिजसम यह स पष ट लिलख ढ़िदया था डिक यढ़िद कल परातःकाल तक तम स वय अथवा तम हारा पतर उततर न आएगा तो रायबहादर की अत योषटिM डिकरया महल लवालो दवारा ही पचनाम स सपन न कर दी जाएगी

सबह चार बज तार का जवाब आया डिक रमश टक सी दवारा ढ़िदल ली स चल रहा ह और सबह तक पहच जाएगा परातःकाल करीब-करीब सभी महल लवाल रायबहादर क घर पर उ पखिसथत थ तभी टक सी दरवाज पर रकी रमश रीता और तीन बच च उतर रमश क मह पर तो सामाजिजक लज जा और सकोच की मलिलन छाया थी परत रीता का चहरा सतज और डिनरतिवकार था

रीता क आन का सवाद पाकर अनक सतरिसतरया कौतहलवश आ गई रीता न रायबहादर की लाश क पास अपनी चडिडया तोडी और माग का सिसदर पोछा रमश न डिपता का अडितम सस कार डिकया सतरिसतरया रीता स तरह-तरह क परश न करती थी परत वह कोई उततर न दती थी डिकरयाकम इत याढ़िद म रायबहादर क सजा तीय नात-रिरश तदार आढ़िद बहत कम आए बरहमभोज म गरीबी स एकदम टट हए बराहमण ही आए डिकसी परकार डिकरयाकम समाप त हआ रमश क वहा स चलन का समय आया

मन रायबहादर क अडितम पतर क अनसार सभरात महल लवालो क साथ रीता-रमश को बलाकर सबक सामन उनका वह अडितम पतर पढा और वह तडिकया जो महरबद पटी म मन रखवा ढ़िदया था खलवाया फल ली और नौकरो को रायबहादर की इच छानसार रपय द ढ़िदए गए रायबहादर की अडितम माग पर रीता का डिनणय सनन क लिलए हम सभी उत सक बठ थ रीता बोली म धम और ईश वर क सम मख सचचरिरतर ह मन अपन तन-मन स उन ह सदा ससर ही माना धारमिमक कानन की जिजस मजबरी स उन होन मझ अपनी पत नी बनाया था उस मन डिवषटिधवत उनकी लाश को सौप भी ढ़िदया उनकी चडिडया उनका सिसदर उन ह सौपा लडिकन मरी चडिडया मरा सिसदर अaय ह कहकर उसन दर स अपन हाथ क नीच दबी हई रमाल की पोटली को उठाया उसम हरी चडिडया थी और एक चादी की डिडिबया थी चडिडया पहनी और डिबीया खोलकर रमश की और रखत हए बोली जिजन होन मरी गोद भरी ह उन होन मरी माग भी भरी ह - लीजिजए मरी माग भर दीजिजए

रमश न रीता की माग म सिसदर की रखा खीच दी डिफर रीता बोली घर क सबध म मझ कवल यही कहना ह डिक अगर आप पाच पच मझ दश चरिरतर मानत हो तो उस धमशाला बना दीजिजए

हमम स कोई खम ठोककर एकाएक यह नही कह पाया डिक रीता दश चरिरतर ह मन अनभव डिकया डिक सभी क मनो को इस परश न स धक का लगा था अपन परपरागत धारमिमक सामाजिजक सस कारो क कारण हम रीता को सचरिरतरा मानन स भी मन ही मन डिहचकत थ पर यो क या कह

रीता हमारी डिहचक पर एक बार कहकर उठ गई उसन कहा मझ रायबहादर साहब का घर और दस हजार रपय पान की इच छा नही मर पडित न मझ सहाग की छाव द रक खी ह लडिकन म आपक सामन कसौटी रखती ह - बोलिलए घर डिकसका ह

घर को छोडकर बाकी सब सामान क साथ रमश रीता और उनक बच च ढ़िदल ली चल गए हम अभी तक कोई डिनणय नही कर पाए घर की चाभी मर पास ह वह तोल ढ का लोह का टकडा इस समय मर मन-पराणो का बोझ बना हआ ह

(1961 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

परायभित अमतलाल नागर

जीवन वाढ़िटका का वसत डिवचारो का अधड भलो का पवत और ठोकरो का समह ह यौवन इसी अवसथा म मनय तयागी सदाचारी दश-भt एव समाज-भt भी बनत ह तथा अपन खन क जोश म वह काम कर ढ़िदखात ह जिजसस डिक उनका नाम ससार क इडितहास म सवणाaरो म लिलख ढ़िदया जाता ह तथा इसी आय म मनय डिवलासी

लोलपी और वयभिभचारी भी बन जाता ह और इस परकार अपन जीवन को दो कौडी का बनाकर पतन क खडड म डिगर जाता ह अत म पछताता ह परायभित करता ह परत परतयचा स डिनकाला हआ बाण डिफर वापस नही लौटता खोई हई सचची शाडित डिफर कही नही षटिमलती

मभिणधर सदर यवक था उसक पस (जब) म पसा था और पास म था नवीन उमगो स परिरत हदय वह भोला-भाला सशील यवक था बचारा सीध माग पर जा रहा था यारो न भटका ढ़िदया - दीन को पथ-हीन कर ढ़िदया उस डिनतय-परडित कोठो की सर कराई नई-नई परिरयो की बाकी झाकी ढ़िदखाई उसक उचचडिवचारो का उसकी महतवकाaाओ का अतयत डिनदयता क साथ गला घोट ाला गया बनावटी रप क बाजार न बचार मभिणधर को भरमा ढ़िदया डिपता स पसा मागता था वह अनाथालयो म चदा दन क बहान और उस आख बद कर बहाता था गदी नालिलयो म पाप की सरिरता म घभिणत वnयालयो म

ऐसी डिनराली थी उसकी लीला पडित जी वदध थ अनक कनयाओ क लिशaक थ वातसय परम क अवतार थ डिकसी भी बालिलका क घर खाली हाथ न जात थ षटिमठाई फल डिकताब नोटबक आढ़िद कछ न कछ ल कर ही जात थ तथा डिनतयपरडित पाठ सनकर परतयक को पारिरतोडिषक परदान करत थ बालिलकाए भी उनस अतयत डिहल-षटिमल गई थी उनक सरaकगण भी पडित जी की वातसयता दख गदगद हो जात थ घरवालो क बाद पडित जी ही अपनी छातराओ क डिनरीaक थ सरaक थ बालिलकाए इनक घर जाती हारमोडिनयम बजाती गाती हसती खलती कदती थी पडितजी इसस गदगद हो जात थ तथा बाहरवालो स परमाशर ढरकात हआ कहा करत इनही लडडिकयो क कारण मरा बढापा कटता चला जा रहा ह अनयथा अकल तो इस ससार म मरा एक ढ़िदवस भी काटना भारी पड जाता समसत ससार पडितजी की एक मह स परशसा करता था

बाहरवालो को इस परकार ठाट ढ़िदखाकर पडितजी दसर ही परकार का खल खला करत थ वह अपनी नवयौवना सदर छातराओ को अनय डिवषयो क साथ-साथ परम का पाठ भी पढाया करत थ परत वह परम डिवशदध परम नही वरन परम की आड म भोगलिलsसा की लिशaा थी सतीतव डिवकरय का पाठ था काम-वासना का पाठ पढाकर भोली-भाली बालिलकाओ का जीवन नM कराकर दलाली खान की चाल थी टटटी की आड म लिशकार खला जाता था पडितजी क आस-पास यडिनवरसिसटी तथा कालज क छातर इस परकार भिभनभिभनाया करत थ जिजस परकार डिक गड क आस पास मखिकखया डिवलिचतर थ पडितजी और अदभत थी उनकी माया

रायबहादर ॉ शकरलाल अगनिeनहोतरी का सथान समाज म बहत ऊचा था सभा-सोसाइटी क हाडिकम-हककाम म आदर की दषटिM स दख जात थ वह उनक थी एक कनया - मtा वह हजारो म एक थी - सदरता और सशीलता दोनो म दभाeयवश वदध पडितजी उस पढान क लिलए डिनयt डिकए गए भोली-भाली बालिलका अपन आदश को भलन लगी पडित जी न उसक डिनमल हदय म अपन कखितसत महामतर का बीजारोपण कर ढ़िदया था अनय यवती छातराओ की भाडित मtा भी पडित जी क यहा हारमोडिनयम सीखन जान लगी

पडितजी मtा क रप लावणय को डिकराए पर उठान क लिलए कोई मनचला पस वाला ढढन लग अत म मभिणधर को आपन अपना पातर चन लिलया नई-नई कलिलयो की खोज म भटकन वाला षटिमसिलद इस अपव कली का मदपान करन क लिलए आकलिलत हो उठा इस अवसर पर पडितजी की मटठी गम हो गई दसर ही ढ़िदवस मभिणधर को पडित जी क यहा जाना था वह सधया अतयत ही रमणीक थी मभिण न उस बडी परतीaा करन क पात पाया था आज वह अतयत परसनन था आज उस पडितजी क यहा जाना था वह लब-लब पग रखता हआ चला जा रहा था पडितजी क पापालय की ओर आज उस रपयो की वदी पर वासना-दवी को परसनन करन क लिलए बलिल चढानी थी

मtा पडितजी क यहा बठी हारमोडिनयम पर उगलिलया नचा रही थी और पडितजी उस पलडिकत नतरो स डिनहार रह थ वह बाजा बजान म वयसत थी साहसा मभिणधर क आ जान स हारमोडिनयम बद हो गया लजीली मtा कसv छोडकर एक ओर खडी हो गई पडितजी न डिकतना ही समझाया बटी इनस ल|ा न कर यह तो अपन ही ह जा बजा बाजा बजा अभयागत स|न क सवागत म एक गीत गा परत मtा को अभी ल|ा न न छोडा था वह अपन सथान पर अडिवचल खडी थी उसक सकोमल मनोहारी गाल ल|ावश अगरी की भाडित लाल हो रह थ

अलक आ-आकर उसका एक मधर चबन लन की चMा कर रही थी मभिणधर उस पर मर षटिमटा था वह उस समय बाहय ससार म नही रह गया था यह सब दख पडितजी गनिखसक गए अब उस परको^ म कवल दो ही थ

मभिणधर न मtा का हाथ पकडकर कहा आइए खडी कयो ह मर समीप बठ जाइए मभिणधर धM होता चला जा रहा था मtा जिझझक रही थी परत डिफर भी मौन थी मभिणधर न कहा - कया पडितजी न इस परकार आडितथय सतकार करना लिसखलाया ह डिक घर पर कोई पाहन आव और घरवाला चपचाप खडा रह शभ मर समीप बठ जाइए परम की डिवदयत कला दोनो क शरीर म परवश कर चकी थी मtा इस बार कछ न बोली वह मतर-मeध-सी मभिण क पीछ-पीछ चली आई तथा उसस कछ हटकर पलग पर बठ गई आपका शभ नाम मभिण न जरा मtा क डिनकट आत हए कहा मtा लजीली मtा न धीम सवर म कहा

बातो का परवाह बढा धीर-धीर समसत डिहचक जाती रही और और थोडी दर क पात मtा नीरस हो गई उसकी आब उतर गई थी

डिहजाब नौ उरमा रहबर शौहर नबी मानद अगर मानद शब-मानद शब दीगर नबी मानद

डिहचक खल गई थी मभिण और मtा का परम करमशः बढन लगा था मभिण षटिमसिलद था पप पर उसका परम तभी ही ठहर सकता ह जब तक उसम मद ह परत मtा का परम डिनमल और डिनकलक था वह पाप की सरिरता को पडिवतर परम की गगा समझकर बरोक-टोक बहती ही चली जा रही थी अचानक ठोकर लगी उसक नतर खल गए एक ढ़िदन उसन तथा समसत ससार न दखा डिक वह गभ स थी

समाज म हलचल मच गई शकरलाल जी की नाक तो कट ही गई वह डिकसी को मह ढ़िदखान क योeय न रह गए थ - ऐसा ही लोगो का डिवचार था असत जाडित-डिबरादरी जटी पच-सरपच आए पचायत का काय आरभ हआ मtा क बयान लिलए गए उसन आसओ क बीच लिससडिकयो क साथ-साथ समाज क सामन सपण घटना आदयोपात सना ाली - पडितजी का उसक भोल-भाल सवचछ हदय म काम-वासना का बीजारोपण करना ततपात उसका मभिणधर स परिरचय कराना आढ़िद समसत घटना उसन सना ाली पडितजी न डिगडडिगडात अपनी सफाई पश की तथा मtा स अपनी वदधावसथा पर तरस खान की पराथना की परत मभिणधर शात भाव स बठा रहा

पचो न सलाह दी बढो न हा म हा षटिमला ढ़िदया सरपच महोदय न अपना डिनणय सना ाला सारा दोष मtा क माथ मढा गया वह जाडितचयत कर दी गई रायबहादर क डिपता की भी वही राय थी जो पचो की थी मभिणधर और पडितजी को सचचरिरतरता का सरटिटडिफकट द डिनदyenषी करार द ढ़िदया गया कवल अबला मtा ही दख की धधकती हई अगनिeन म झलसन क लिलए छोड दी गई अत म अतयत कातर भाव स डिनससहाय मtा न सरपच की दोहाई दी - उसक चरणो म डिगर पडी सरपच घबराए हाय भरMा न उनह श कर लिलया था करोषटिधत हो उनहोन उस गरभिभणी डिनससहाय आशरय-हीना यवती को धकक मार कर डिनकाल दन की अनमडित द दी उनकी आजञा का पालन करन क लिलए निहद समाज को वासतव म पतन क खडड म डिगरान वाल नरराaस खशामदी टटट पीर बवचv भिभसती खर की कहावत को चरिरताथ करन वाल इस कलक क सचच अपराधी पडितजी ततaण उठ उस धकका मारकर डिनकालन ही वाल थ - अचानक आवाज आई - ठहरो अनयाय की सीमा भी परिरषटिमत होती ह तम लोगो न उसका भी उलघन कर ाला ह लोगो न नतर घमाकर दखा तो मभिणधर उततजिजत हो डिनल भाव स खडा कह रहा था निहद समाज अधा ह अतयाचारी ह एव उसक सवसवा अथात हमार माननीय पचगण अनपढ ह गवार ह और मख ह जिजनह खर एव खोट सतय और असतय की परख नही वह कया तो नयाय कर सकत ह और कया जाडित-उपकार इसका वासतडिवक अपराधी तो म ह इसका द तो मझ भोगना चाडिहए इस सशील बाला का सतीतव तो मन नM डिकया ह और मझस भी अषटिधक नीच ह यह बगला भगत बना हआ नीच पडित इस दराचारी न अपन सवाथ क लिलए न मालम डिकतनी बालाओ का जीवन नM कराया ह - उनह पथभरM कर ढ़िदया ह जिजस आदरणीय दषटिM स इस नीच को समाज म दखा जाता ह वासतव म यह नीच उसक योeय नही वरन यह नर पश ह लोलपी ह लपट ह सिसह की खाल ओढ हए तचछ गीदड ह - रगा लिसयार ह

सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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- और मर अपन डिनयम भी तो हो सकत ह

- तम ह स वाधीनता ह

- तब मन भी यढ़िद अनशन का फसला डिकया ह तो गलत नही ह

- तम अपन परडित मर स नह पर बोझ लाद रह हो म आत मशजिदध क लिलए वरत कर रहा ह परखो क साधना-गह की जो यह दगडित हई ह यह मर ही डिकसी पाप क कारण अपन अतःकरण की गगा स मझ सरस वती का मढ़िदर धोना ही पडगा तम अपना आगरह लौटा लो बटा

एक षटिमनट क लिलए कमर म डिफर सन नाटा छा गया कवल पख की गज ही उस खामोशी म लहर उठा रही थी

इदरदत त न शात स वर म कहा - एक बात पछ मढ़िदर म कत त क परवश स यढ़िद भगवती अपडिवतर हो जाती ह तो डिफर घट-घट व यापी ईश वर की भावना डिबलकल झठी ह एक ईश वर पडिवतर और दसरा अपडिवतर क यो माना जाए

पडित दवधर चप बठ रह डिफर गभीर होकर कहा - निहद धम बडा गढ ह तम इस झगड म न पडो

- म इस झगड म न पडगा फफाजी पर एक बात सोचता ह भगवान राम अगर परम क वश म होकर शबरी क जठ बर खा सकत थ निहद लोग यढ़िद इस आख यान म डिवश वास रखत ह तो डिफर छत-अछत का कोई परश न ही नही रह जाता यषटिधषटि^र न अपन साथ-साथ चलनवाल कत त क डिबना स वग म जान तक स इनकार कर ढ़िदया था यह सब कहाडिनया क या निहद-धम की मडिहमा बखाननवाली नही ह क या यह महत भाव नही ह डिफर इनक डिवपरीत छआछत क भय स छईमई होनवाल गढ धम की मडिहमा को आप क यो मानत ह इन रढ़िढयो स बधकर मनष य क या अपन को छोटा नही कर लता

पडितजी शाडितपवक सनत रह इदरदत त को भय हआ डिक बरा न मान गए हो तरत बोल - म डिकसी हद तक उत तजिजत जरर ह लडिकन जो कछ पछ रहा ह जिजजञास क रप म ही

- ठीक ह - पडितजी बोल - हमार यहा आचार की बडी मडिहमा ह मनस मडित म आया ह डिक आचारः परथमो धमः जसा आचार होगा वस ही डिवचार भी होग तम शदधाचरण को बरा मानत हो

- जी नही

- तब मरा आचार क यो भरष ट करा रह हो

- ऐसा धष टता करन का डिवचार स वप न म भी मर मन म नही आ सकता हा आपस aमा मागत हए यह जरर कहगा डिक आपक आचार नए यग को डिवचार शलिt नही द पा रह ह इसलिलए उनका मल य मर लिलए कछ नही क बराबर ह म दरतिवनीत नही ह फफाजी परत सच-सच यह अनभव करता ह डिक दडिनया आग बढ रही ह और आपका दषटिMकोण व यथ क रोड की तरह उसकी गडित को अटकाता ह पर इस समय जान दीजिजए म तो यही डिनवदन करन घर गया था और यही मरा आगरह ह डिक आप भोजन कर ल

पडितजी मस कराए इदरदत त क मन म आशा जागी पडितजी बोल - करगा एक शत पर

- आजञा कीजिजए

- जो मर अथात परानी परिरपाटी क यम डिनयम सयम आढ़िद ह व आज स तम ह भी डिनभान पडग जिजनका मल य तम हारी दषटिM म कछ नही ह व आचार-डिवचार मर लिलए पराणो स भी अषटिधक मल यवान ह

इदरदत त सतभिभत रह गए व कभी सोच भी नही सकत थ डिक फफाजी सहसा अनहोनी शत स उन ह बाधन का परयत न करग पछा - कब तक डिनभाना पडगा

- आजीवन

इदरदत त निककतव यडिवमढ हो गए जिजन डिनयमो म उनकी आस था नही जो चीज उनक डिवचारो क अनसार मनष य को अधडिवश वासो स जकड दती ह और जो भारतीय सस कडित का कलक ह उनस उनका परबदध मन भला क यो कर बध सकता ह हा कह तो कस कह उन होन इस वरत डिनयम बलिलदान चमत कार और षटिमथ या डिवश वासो स भर निहद धम को समाज पर घोर अत याचार करत दखा ह अपन-आपको तरह-तरह स परपीडिडत कर धारमिमक कहलानवाला व यलिt इस दश को रसातल म ल गया इस कठोर जीवन को साधनवाल शदधाचरणी बराहमण धम न इस दश की सतरिसतरयो और हीन कहलानवाली जाडितयो को सढ़िदयो तक दासता की चक की म बरी तरह पीसा ह और अब भी बहत काफी हद तक पीस रहा ह हो सकता डिक मनष य की चतना क उगत यग म इस शदध कहलानवाल आचार न अधकार म उन नत डिवचारो की ज योडित जगाई हो पर अब तो सढ़िदयो स इसी झठ धम न औसत भारतवासी को दास अधडिवश वासी और असीम रप स अत याचारो को सहन करनवाला झठी दवीशलिtयो पर यानी अपनी ही धोखा दनवाली लभावनी असभव कल पनाओ पर डिवश वास करनवाला झठा भाग यवादी बनाकर दश की कमर तोड रखी ह इसन औसत भारतवासी स आत मडिवश वास छीन लिलया ह इस जडता क खिxखलाफ उपडिनषद जाग मानवधम जागा योग का जञान जागा बौदध भागवतधम जागा मध यकाल का सत आदोलन उठा और आज क वजञाडिनक यग न तो इस एकदम डिनस सार लिसदध कर सदा क लिलए इसकी कबर ही खोद दी ह यह जड धम कभी भारत को महान नही बना सका होगा भारत की महानता उसक कमयोग म ह उसक व यापक मानवीय दषटिMकोण म ह व यास-वाल मीडिक आढ़िद क परम उदार भावो म ह पराचीन भारत क दशन न याय वशडिषक साडिहत य लिशल प सगीत आढ़िद इस जड धम की उपज हरडिगज नही हो सकत डिफर भी यह जडता भारत पर अस स भत की तरह छाई हई ह इसी स घणा करन क कारण आज का नया भारतीय डिबना जाच-पडताल डिकए अपनी सारी परपराओ स घणा करत हए लिसदधातहीन आस थाहीन और डिनसतरिकरय हो गया ह नही व फफाजी का धम हरडिगज न डिनभा सक ग हरडिगज नही हरडिगज नही पर व भोजन कस करग बआजी कस और कब तक भोजन करगी कसी डिवबना ह दो मनष यो की मौत की नडितक जिजम मदारी उनक ऊपर आएगी

पडित दवधर न उन ह मौन दखकर पछा-कहो भोजन कराओग मझ

- जीम धम-सकट म पड गया ह

- स पष ट कहो मरा धम गरहण करोग

फफाजी आप बहत माग रह ह मरा डिवश वास माग रह ह म आपक धम को यग का धम नही मानता अपना नही मानता

म तम हारी स पष टवाढ़िदता स परसन न ह तम धारमिमक हो इसी तरह अपन स मझको पहचानो म भी अपना धम नही छोड सकता यदयडिप तम हार सत सग स मन इतन ढ़िदनो म यह समझ लिलया ह डिक मरा यग मरा धम अब सदा क लिलए लोप हो रहा ह डिफर भी अडितम सास तक तो हरडिगज नही मरी आस था तपःपत ह तम हारा कल याण हो सखी हो बटा अच छा तो अब चल -

परत मरा अनशन का डिनश चय अडिग ह फफाजी म आपक चरण छकर कह रहा ह

पर छोड दो बट इन परो स पहल ही जडता समा चकी ह और अब तो जीव क साथ ही षटिमटगी अन यथा नही खर कल डिवचार करना अपन अनशन पर

अडितम वाक य पडितजी न इस तरह कहा डिक इदरदतत को करारा झटका लगा पर व मौन रहन पर डिववश थ पडित दवधर चलन लग इदरदतत क मन म भयकर तफान उठ रहा था व हार गए बआजी को क या उततर दग इस अगडित का अत कया होगा क या व फफाजी की बात मान ल कस मान ल यह ठीक ह डिक फफाजी अपन धम पर डिकस परकार एकडिनष ठ ह यह ए कडिनष ठता उन ह बहद परभाडिवत करती ह डिफर भी उनक धम को वह क यो कर स वीकार कर

पडित दवधरजी जीन पर पहचकर रक इदरदतत उनक पीछ-पीछ चल रह थ पडितजी घमकर बोल - तम हारी मान यताओ म मरी आस था नही ह इदर डिफर भी म उसक वास तडिवक पa को कछ-कछ दख अवश य पा रहा ह एक बात और स पष ट करना चाहता ह तम भोला डितरभवन क धम को आज का या डिकसी भी यग का वास तडिवक धम मानत हो

- जी नही उनका कोई धम ही नही ह

- तम हारा कल याण हो बट धन मद स जन म इस खोखल धम स सदा लडना जस म लडा तम अपन मत क अनसार लडो पर लडो अवश य यह आस थाहीन दभ भरा अदाशडिनक अधारमिमक जीवन लोक क लिलए अकल याणकारी ह बोलो वचन दत हो

म आपको अपना डिवश वास दता ह - कहकर इदरजीत न फफाजी क चरण छ लिलए खडाऊ की खट-खट जीन स उतर गई आगन पार डिकया दर चली इदरदतत आकर कट पड स अपन पलग पर डिगर गए

नया यग परान यग स स वच छा स डिवदा हो रहा था पर डिवदा होत समय डिकतना परबल मोह था और डिकतना डिनमम व यवहार भी

धम सकट अमतलाल नागर

शाम का समय था हम लोग परदश दश और डिवश व की राजनीडित पर लबी चचा करन क बाद उस डिवषय स ऊब चक थ चाय बड मौक स आई लडिकन उस ताजगी का सख हम ठीक तरह स उठा भी न पाए थ डिक नौकर न आकर एक सादा बद लिलफाफा मर हाथ म रख ढ़िदया मन खोलकर दखा सामनवाल पडोसी रायबहादर डिगराजडिकशन (डिगरिरराज कष ण) का पतर था कापत हाथो अनषटिमल अaरो और टढी पलिtयो म लिलखा था

माई डियर परताप

मन फल ली को आदश द रक खा ह डिक मरी मत य क बाद यह पतर तम ह फौरन पहचाया जाए तम मर अभिभन न षटिमतर क पतर हो रमश स अषटिधक सदा आजञाकारी रह हो मरी डिनम नलिलगनिखत तीन अडितम इच छाओ को परा करना -

1 रमश को तरत सचना दना मरी आत मा को तभी शाडित षटिमलगी जब उसक हाथो मर अडितम सस कार होग मन उसक साथ अनयाय डिकया ह

2 फल ली को मन पाच हजार रपय ढ़िदए ह और पाच-पाच सौ रपय बाकी चारो नौकरो को नोट मर तडिकए म रई की परत क अदर ह उसी म वसीयत और डितजोरी की चाभी भी ह घर म डिकसी को यह रहस य नही मालम तडिकया अब फौरन अपन कबज म कर लना घर क भार-घर और सदको की चाभिभया डितजोरी म ह रमश क आन पर पाच पचो क सामन उस सौप दना

3 मन अपनी वसीयत म यह शत रक खी ह डिक मरी पत नी अगर मझ माफ कर द और गलत ही सही मगर जो पडितवरत उस पर आन पडा ह उस साधकर रमश को छोडकर बाइज जत यहा रह तो यह मकान और दस हजार रपया उस ढ़िदया जाए लडिकन यह काम उसी हालत म होना चाडिहए जबडिक हम और तम हार दवारा डिनयक त महल ल क चार भल आदमी मरी पत नी की सच चरिरतरता क सबध म आवश स त हो जाए

पतर पर छह रोज पहल की तारीख पडी थी मझ यह समझन म दर न लगी डिक रायबहादर साहब गत हो चक ह पतर मन बड बाब क सामन मज पर रखा ढ़िदया इजीडिनयर साहब और परोफसर साहब भी झककर पढन लग

चाय बमजा हो गई हम सभी उठकर रायबहादर साहब क यहा गए उनका रोबीला चहरा रोग और मानलिसक सिचताओ स जजर होकर मत य क बाद भी उनक अडितम ढ़िदनो क असीम कष टो का परिरचय द रहा था मत रायबहादर क चहर को दखत हए उनक साथ बीत इतन वष की स मडितया मर मन म जाग उठी

रायबहादर बाब डिगराजडिकशन बीए उन निहदस ताडिनयो म स थ जिजन ह तकदीर की चक क कारण इeल म जनम नही षटिमल पाया था उनका रग भी गोरा न था बशकिक गहए स काल की ओर ही अषटिधक झकता हआ था डिफर भरसक उन होन अपन-आपको अगरजनमा ही बनाए रक खा गरीब निहदसताडिनयो पर अकड ढ़िदखान म व सदा अगरजो स चार जत आग रह कई निहदीवाढ़िदयो न उनस शदध नाम डिगरिरराजकष ण रखन को कहा मगर व उन ह मख बतलाकर डिगराज ही बन रह रायबहादर डिगराजडिकशन क नाम क साथ बीए जोडना भी डिनतात आवश यक था सन 23 म रायबहादर डिगराज अपनी डिबरादरी क रायसाहब दीनानाथ की बदौलत इलाहाबाद म छोट लाट क दफतर म भरती हए थ अपनी अगरजपरस ती और हाईक लास खशामद क दम पर रामबहादर ऊची करसिसयो पर चढ बठ स वराज य होन पर आतरिरक कष ट भोगन क बावजद तीन वष तक स वराजी अफसरो नताओ और मडितरयो की भी बाअदब खशामद की डिगराज बाब इन लोगो क सामन जिजस परकार खद दम डिहलात उसी परकार अपन सामन अपन मातहतो की भी डिहलवात थ आजादी क बाद भी दफतर म अपना भला चाहनवाला कोई बाब उनक आग निहदी का एक शब द नही बोल सकता था और घर क लिलए भी यही मशहर था डिक रायबहादर की भस तक अगरजी म ही कारती अगर कोई कसर थी तो सही डिक ली डिगराज क वास त अगरजी का करिरया अaर भी भस बराबर ही था

रायबहादर डिगराज पहली लडाई क जमान क मॉन आदमी थ सबह आख खलत ही घटी बजात सफद कोट पतलन और साफ स लस फल ली आया का लडका घसीट छोटी हाजिजरी लकर हाजिजर होता ठीक आठ बज बडी हाजिजरी पर बठत बटी-बटा साथ होत पर ल ी डिगराज अा-डिबस कट-समाज म कभी न बठी परम कटटर छत-पाकवाली न होत हए भी मास-मछली स उन ह परहज था बशीरत चपरासी क बाप मन न बावचv को हफत म दो ढ़िदन डयटी दनी पडती थी घर क डिनचल डिहस स म डिवलायती रसोई थी एक तरह स कहना चाडिहए डिक नीच का परा घर ही डिवलायती था वहा ल ी डिगराज क बजाय फल ली आया का सामराज य था फल ली पहल अगरजी कोढ़िठयो म काम करती थी अगरजी ढग स निहदस थानी बोलती ह अगरजी घर क कायद जानती ह छोटी-बडी हाजिजरी लच डिनर चाय सबका समय साधती थी इसलिलए डिगराज बाब क बाब डिनयम स दो पग खान स पहल चसडिकयो म मयादा करत थ फली उसका इतजाम भी बखबी कर दती थी इसलिलए आमतौर पर मजाक-मजाक म ही मशहर हो गया था डिक रायबहादर साहब स कोई काम करवान क वास त बजाय ली डिगराज क ल ी फल ली की लिसफारिरश जयादह परअसर होती ह

वस राजबहादर डिगराज म डिकसी न भी कोई ऐब की बात नही दखी-सनी थी अगर ऐब था तो यही डिक व मॉन थ चरट मह म लगाए बगर व बात नही कर पात थ अगर कोई निहदी सभा का चदा मागन आए तो उसस अकडकर कहत डिक मॉन जमान म गवार भाषाओ का उदधार करना डिहमाकत की बात ह धम क सबध म पहल तो व यह कहा करत थ डिक यह ढोग और पागलपन की वस त ह मगर बाद म उस इडियन कल चर का एक सनातन रप मानकर सहन कर जात थ डिगराज साहब थोडा-बहत लन-दन का काम करत थ और उसकी बदौलत उन होन हलिसयत भी बनाई अच छा मॉन ढग का मकान बनवाया उसका नाम ढ़िद नाइटिटगल रकखा मोटर खरीदी सदा दो-चार नौकर पाल घर स लकर दफतर तक घडी साधकर सबस डयटी करवाई पत नी को भी षटिमलन क वास त फल ली क दवारा उनस अप वाइटमट लना पडता था ली इसस जल-फक गई डिक म फल ली स भी गई-बीती हो गई

ली डिगराज न अपन फहडपन म उनक ऊपर एक बहत बडा लाछन लगा ढ़िदया रायबहादर साहब लिसदधाततः और स वभावतः अवध रिरश तो स नफरत करत थ इसलिलए अपनी पत नी क दवारा झठा लाछन लगाए जान क बाद डिफर उन होन कभी उनका मह न दखा बडी लडकी क डिववाह क अवसर पर उन होन कन यादान इसलिलए स वय न डिकया डिक उन ह पजा क पटर पर अपनी पत नी क साथ बठना पडता

इसक बाद दो वष म ली डिगराज घल-घलकर मर गई मगर मरी भी तो डिनयडित क साथ षडयतर करक ठीक इनक रिरटायर होन क ढ़िदन रायबहादर डिगराज को बहत लिशकायत हई अपन बट-बटी स कहा तम हारी मममी को कभी टाइम का सस नही रहा अगर मरना ही था तो कल सबह मरती परसो सबह मर सकती थी आज शाम को दफतर म मरी फयरवल पाट हो जान क बाद कभी मर सकती थी जिजदगी म एडरस पान का यह पहला मौका आया था सो इस तरह तबाहोबबाद कर ढ़िदया ईडियट कही की

इसक बाद मरनवाली तो खर मर ही चकी थी मगर जो भी मातम-परसी क लिलए मह डिबसरत हए आए उन ह भी रायबहादर साहब की ाट खानी पडी जो कहता डिक साहब सनकर बडा दख हआ उसस ही कहत आपको दख करन की जररत क या ह मझ कोई दख नही हआ जो आदमी पदा होता ह उन सबको एक साथ फौरन मर जाना चाडिहए जाइए मर यहा मातम-परसी क लिलए आन की जररत नही

छोटी लडकी की शादी उन होन पत नी की मत य क तीन महीन बाद पव डिनश चय क अनसार ही की स वय ब याहनवाली लडकी और उनक पतर को इसम आपभितत थी मगर उन होन डिकसी की एक न सनी कहा आई हव नो रिरगा फॉर योर मम मी शी वाज एक परफक ट फल लडकी की शादी बडी धमधाम स की एक आईसीएस क बट को अपना दामाद बनाया और बहत कछ दान-दहज दकर रिरटायर होन क बाद भी रोब जतलाया

लडका रमश तब एमए फाइनल म पढ रहा था नामी तज था सदा फस ट क लास रका रहा एमए क बाद आईएएस म बठनवाला था लडकीवाल अनक व यलिt रमश की माग करन क लिलए रायबहादर की सवा म आन लग रायबहादर डिगराज को अब मातहत क लक पर न सही तो ब टीवालो पर ही चरट का रोब झाडकर भरपर सतोष षटिमल जाता था दहज क मामल म व पक क मॉन थ यानी पच चीस हजार मागत थ एकाध डिपछल जानकार न दहाई दी डिक आप तो दहज क डिवरदध थ उसको परानी परथा बतलात थ तो बोल साहब जब मझ स बड अफसर आईसीएस आदमी यानी मर समधी साहब दहज लन को मॉन परथा मानत ह तो मन भी अपन डिवचार बदल ढ़िदए ह डिनहायत साइढ़िटडिफक बात ह डिक आपको दामाद चाडिहए और मझ 25 हजार रपया मरा रमश आईएएस पास करगा आप अपनी लडकी का फयचर दखकर अगर इतनी रक कम दना स वीकार करत ह तो बढ़िठए वरना मरी करसी की गददी मली मत डिकजिजए

व ऐसी लडकी चाहत थ जो सदर हो बीए हो गाती नाचती हो सीना-डिपरोना-बनना जानती हो अगरजी म फटाफट बात कर अफसर डिकसम क मॉन महमानो की खाडितर करन म तमीजदार हो और ऊपर स उसका बाप नगद पच चीस हजार रपय भी द जाए डिबरादरी क कई अच छी हलिसयतवाल बढ़िटयो क बापो क चहर रायबहादर डिगराज क चरट की अकड स धआ-छआ हो गए

एक ढ़िदन इनक दवारा नौकर रखाए गए परान मातहत एक सजातीय बाब दवीशकर पधार डिगराज की मडिहमाओ का बखान करत हए उन होन कहा सर म आपकी च वायस को जानता ह और एक लडकी मरी नजर म ह

इन बाब क साथ उन होन रीता को दखन का अवसर पाया रीता रायसाहब चमनलाल की इकलौती बटी थी रायसाहब चमनलाल न अपन जमान म बड ऐश बड नाम डिकए व शहर की तवायफो क सरताज थ रस क घोडो क सरपस त थ और बड ही औला-पौला आदमी थ अपन जीवन-काल म लाखो कमाए और लाखो फक एक लडकी हई उस बड लाड स पाला-पोसा पढाया हाई स कल तक रीता न परीaाओ तथा वाद-डिववाद और नत य-परडितयोडिगताओ म अनक परस कार पराप त कर अपन डिपता को सतष ट डिकया था रायसाहब डिवधर थ रीता की एक डिवधवा मौसी उनकी लडकी की दखभाल करन क लिलए उनक यहा रहती थी सो तब तरह स उनकी ही हो गई थी रायसाहब न आख मदकर अपना घर अपनी रभिaता साली को सौप रक खा था

बाद म रायसाहब चमनलाल की जन मकली क गरह-नaतर पहट बडा घाटा आया ढ़िदवालिलए होन की नौबत आ गई अपनी लडकी क वास त कछ रकम बचान की नीयत स उन होन एक बगला अपनी साली क नाम स खरीदा और लगभग एक लाख रपया नगद और जवरो क रप म बचाकर उसी क नाम स जमा करवा ढ़िदया डिफर रायसाहब ढ़िदवालिलए हो गए और जिजस ढ़िदन उन ह अपनी महलनमा कोठी सदा क लिलए छोडनी थी उस ढ़िदन उन होन गहर नश म अपनी कनपटी पर रिरवाल वर रखकर अपनी इहलीला समाप त कर दी रायसाहब की मत य क बाद मौसी सयानी हो गई और रीता अनाथ

लडकी दखन गए तो उसकी दो चोढ़िटयो म डित तलिलयो जस रिरबन दखकर रायबहादर साहब क पशन पराप त जीवन म नई रस की गलाबी आई अनक वष का सोया हआ मॉन पत नी का अभाव जाग उठा लडकी रीता बातचीत म तज आख नचान म बाकमल और हसन म डिबजली थी दखकर लौट तो रास त म दवीशकर स बोल लडकी तो अच छी ह और दहज का भी मझ कोई खास नही क योडिक तम तो जानत ही हो डिक म इन सब मामलो म बडा मॉन ह खाली एक परयोजन ह क - अ - क या नाम क आई मीन तम हारा क या खयाल ह दवीशकर अभी तो म भी शादी कर सकता ह

दवीशकर रायबहादर को घरत लग मह पर खशामद स हा क बजाय ना भला क यो कर कहत मौसी क लिलए इसस बढकर काई शभ सवाद न हो सकता था अठारह वष की आय की रीता छsपन वषvय रायबहादर डिगराजडिकशन की पत नी बनी

और इसक बाद की तमाम बात अपन करम म बढ गई रीता न परथम ढ़िदन स ही अपन पडित स कोई सबध न रकखा हठपवक अपन कमर क अदर बद रही रायबहादर रपय-पस गहनो और खशामदो की बडी-बडी नमायश लगाकर हार गए डिफर एक ढ़िदन फल ली न बतलाया डिक रमश और रीता रायबहादर दवारा स थाडिपत सबध को भलकर परस पर नया सबध स थाडिपत कर रह ह रायबहादर आग हो गए रमश तब एमए क अडितम वष म पढ रहा था डिपता न करोध म अध होकर उस पर परहार डिकया और घर स डिनकाल ढ़िदया रीता तब भी उनकी न हई

रमश को दो महीन बाद ही ढ़िदल ली म कोई नौकरी षटिमल गई और उसक महीन-भर बाद ही रीता रायबहादर क घर स गायब होकर ढ़िदल ली पहच गई जान स पव वह एक अलबला काम कर गई थी महल ल क पच चास घरो म हर पत पर उनका लिलखा पोस टका उसक गायब होन क दसर ही ढ़िदन पहली ाक स पहचा उसम मातर इतना ही लिलखा था बाब डिगरिरराजकष ण न मझ जबरदस ती अपनी पत नी बनाया था मगर मन उन ह कभी अपना पडित न माना और न अपना धम ही ढ़िदया डिववाह स पहल मझ बतलाया गया डिक म उनक पतर को ब याही जाऊगी तब स मन उनक पतर को ही अपना पडित माना इस घर म आकर भी उन ह ही भगवान की साaी म अपन को सौपा और अब म अपन पडित क पास ही जा रही ह

रीता क भागन स रायबहादर बाब डिगराजडिकशन को इतना कष ट नही पहचा था जिजतना डिक उसक दवारा भज गए इस सावजडिनक पतर स व दखी हए इसक बाद रायबहादर का जीवन बदल गया उनम पजा-पाठ और आशकिसतकता की भावना जागी साथ ही अकलापन भी हठ पकड गया डिपछल आठ वष म व एक ढ़िदन भी अपन घर स बाहर डिनकलकर कही न गए लन-दन का काम करत थ वह भी धीर-धीर समाप त कर ढ़िदया महल ल म डिकसी स भी सपक न रक खा डिपछल कछ ढ़िदनो स बीमार थ मगर महल लवाल उनकी हालत दखन-पछन भी न गए जात तो षटिमलत भी नही और अचानक मर पास अब यह पतर आया

हम सभी महल लवाल एकाएक यह डिनणय न कर पाए डिक इस खिसथडित म क या करना चाडिहए वदयजी और बड बाब इस पa म थ डिक पलिलस को सचना द दी जाए और इस पतर को लिलखी हई बातो का अमल भी कानन क हाथो ही हो परत म तो मत व यलिt की अडितम इच छा परी करन क पa म था रायबहादर कस भी रह हो इसी महल ल क थ कइयो को उन होन कभी नौकरिरया भी ढ़िदलाई थी उपकार डिकया था इजीडिनयर साहब भी मर ही मत क थ बाद म सभी राजी हो गए महल ल क एक षटिमतर क पास रमश क पतर आया करत थ उसी स पता लकर तार भजा गया जिजसम यह स पष ट लिलख ढ़िदया था डिक यढ़िद कल परातःकाल तक तम स वय अथवा तम हारा पतर उततर न आएगा तो रायबहादर की अत योषटिM डिकरया महल लवालो दवारा ही पचनाम स सपन न कर दी जाएगी

सबह चार बज तार का जवाब आया डिक रमश टक सी दवारा ढ़िदल ली स चल रहा ह और सबह तक पहच जाएगा परातःकाल करीब-करीब सभी महल लवाल रायबहादर क घर पर उ पखिसथत थ तभी टक सी दरवाज पर रकी रमश रीता और तीन बच च उतर रमश क मह पर तो सामाजिजक लज जा और सकोच की मलिलन छाया थी परत रीता का चहरा सतज और डिनरतिवकार था

रीता क आन का सवाद पाकर अनक सतरिसतरया कौतहलवश आ गई रीता न रायबहादर की लाश क पास अपनी चडिडया तोडी और माग का सिसदर पोछा रमश न डिपता का अडितम सस कार डिकया सतरिसतरया रीता स तरह-तरह क परश न करती थी परत वह कोई उततर न दती थी डिकरयाकम इत याढ़िद म रायबहादर क सजा तीय नात-रिरश तदार आढ़िद बहत कम आए बरहमभोज म गरीबी स एकदम टट हए बराहमण ही आए डिकसी परकार डिकरयाकम समाप त हआ रमश क वहा स चलन का समय आया

मन रायबहादर क अडितम पतर क अनसार सभरात महल लवालो क साथ रीता-रमश को बलाकर सबक सामन उनका वह अडितम पतर पढा और वह तडिकया जो महरबद पटी म मन रखवा ढ़िदया था खलवाया फल ली और नौकरो को रायबहादर की इच छानसार रपय द ढ़िदए गए रायबहादर की अडितम माग पर रीता का डिनणय सनन क लिलए हम सभी उत सक बठ थ रीता बोली म धम और ईश वर क सम मख सचचरिरतर ह मन अपन तन-मन स उन ह सदा ससर ही माना धारमिमक कानन की जिजस मजबरी स उन होन मझ अपनी पत नी बनाया था उस मन डिवषटिधवत उनकी लाश को सौप भी ढ़िदया उनकी चडिडया उनका सिसदर उन ह सौपा लडिकन मरी चडिडया मरा सिसदर अaय ह कहकर उसन दर स अपन हाथ क नीच दबी हई रमाल की पोटली को उठाया उसम हरी चडिडया थी और एक चादी की डिडिबया थी चडिडया पहनी और डिबीया खोलकर रमश की और रखत हए बोली जिजन होन मरी गोद भरी ह उन होन मरी माग भी भरी ह - लीजिजए मरी माग भर दीजिजए

रमश न रीता की माग म सिसदर की रखा खीच दी डिफर रीता बोली घर क सबध म मझ कवल यही कहना ह डिक अगर आप पाच पच मझ दश चरिरतर मानत हो तो उस धमशाला बना दीजिजए

हमम स कोई खम ठोककर एकाएक यह नही कह पाया डिक रीता दश चरिरतर ह मन अनभव डिकया डिक सभी क मनो को इस परश न स धक का लगा था अपन परपरागत धारमिमक सामाजिजक सस कारो क कारण हम रीता को सचरिरतरा मानन स भी मन ही मन डिहचकत थ पर यो क या कह

रीता हमारी डिहचक पर एक बार कहकर उठ गई उसन कहा मझ रायबहादर साहब का घर और दस हजार रपय पान की इच छा नही मर पडित न मझ सहाग की छाव द रक खी ह लडिकन म आपक सामन कसौटी रखती ह - बोलिलए घर डिकसका ह

घर को छोडकर बाकी सब सामान क साथ रमश रीता और उनक बच च ढ़िदल ली चल गए हम अभी तक कोई डिनणय नही कर पाए घर की चाभी मर पास ह वह तोल ढ का लोह का टकडा इस समय मर मन-पराणो का बोझ बना हआ ह

(1961 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

परायभित अमतलाल नागर

जीवन वाढ़िटका का वसत डिवचारो का अधड भलो का पवत और ठोकरो का समह ह यौवन इसी अवसथा म मनय तयागी सदाचारी दश-भt एव समाज-भt भी बनत ह तथा अपन खन क जोश म वह काम कर ढ़िदखात ह जिजसस डिक उनका नाम ससार क इडितहास म सवणाaरो म लिलख ढ़िदया जाता ह तथा इसी आय म मनय डिवलासी

लोलपी और वयभिभचारी भी बन जाता ह और इस परकार अपन जीवन को दो कौडी का बनाकर पतन क खडड म डिगर जाता ह अत म पछताता ह परायभित करता ह परत परतयचा स डिनकाला हआ बाण डिफर वापस नही लौटता खोई हई सचची शाडित डिफर कही नही षटिमलती

मभिणधर सदर यवक था उसक पस (जब) म पसा था और पास म था नवीन उमगो स परिरत हदय वह भोला-भाला सशील यवक था बचारा सीध माग पर जा रहा था यारो न भटका ढ़िदया - दीन को पथ-हीन कर ढ़िदया उस डिनतय-परडित कोठो की सर कराई नई-नई परिरयो की बाकी झाकी ढ़िदखाई उसक उचचडिवचारो का उसकी महतवकाaाओ का अतयत डिनदयता क साथ गला घोट ाला गया बनावटी रप क बाजार न बचार मभिणधर को भरमा ढ़िदया डिपता स पसा मागता था वह अनाथालयो म चदा दन क बहान और उस आख बद कर बहाता था गदी नालिलयो म पाप की सरिरता म घभिणत वnयालयो म

ऐसी डिनराली थी उसकी लीला पडित जी वदध थ अनक कनयाओ क लिशaक थ वातसय परम क अवतार थ डिकसी भी बालिलका क घर खाली हाथ न जात थ षटिमठाई फल डिकताब नोटबक आढ़िद कछ न कछ ल कर ही जात थ तथा डिनतयपरडित पाठ सनकर परतयक को पारिरतोडिषक परदान करत थ बालिलकाए भी उनस अतयत डिहल-षटिमल गई थी उनक सरaकगण भी पडित जी की वातसयता दख गदगद हो जात थ घरवालो क बाद पडित जी ही अपनी छातराओ क डिनरीaक थ सरaक थ बालिलकाए इनक घर जाती हारमोडिनयम बजाती गाती हसती खलती कदती थी पडितजी इसस गदगद हो जात थ तथा बाहरवालो स परमाशर ढरकात हआ कहा करत इनही लडडिकयो क कारण मरा बढापा कटता चला जा रहा ह अनयथा अकल तो इस ससार म मरा एक ढ़िदवस भी काटना भारी पड जाता समसत ससार पडितजी की एक मह स परशसा करता था

बाहरवालो को इस परकार ठाट ढ़िदखाकर पडितजी दसर ही परकार का खल खला करत थ वह अपनी नवयौवना सदर छातराओ को अनय डिवषयो क साथ-साथ परम का पाठ भी पढाया करत थ परत वह परम डिवशदध परम नही वरन परम की आड म भोगलिलsसा की लिशaा थी सतीतव डिवकरय का पाठ था काम-वासना का पाठ पढाकर भोली-भाली बालिलकाओ का जीवन नM कराकर दलाली खान की चाल थी टटटी की आड म लिशकार खला जाता था पडितजी क आस-पास यडिनवरसिसटी तथा कालज क छातर इस परकार भिभनभिभनाया करत थ जिजस परकार डिक गड क आस पास मखिकखया डिवलिचतर थ पडितजी और अदभत थी उनकी माया

रायबहादर ॉ शकरलाल अगनिeनहोतरी का सथान समाज म बहत ऊचा था सभा-सोसाइटी क हाडिकम-हककाम म आदर की दषटिM स दख जात थ वह उनक थी एक कनया - मtा वह हजारो म एक थी - सदरता और सशीलता दोनो म दभाeयवश वदध पडितजी उस पढान क लिलए डिनयt डिकए गए भोली-भाली बालिलका अपन आदश को भलन लगी पडित जी न उसक डिनमल हदय म अपन कखितसत महामतर का बीजारोपण कर ढ़िदया था अनय यवती छातराओ की भाडित मtा भी पडित जी क यहा हारमोडिनयम सीखन जान लगी

पडितजी मtा क रप लावणय को डिकराए पर उठान क लिलए कोई मनचला पस वाला ढढन लग अत म मभिणधर को आपन अपना पातर चन लिलया नई-नई कलिलयो की खोज म भटकन वाला षटिमसिलद इस अपव कली का मदपान करन क लिलए आकलिलत हो उठा इस अवसर पर पडितजी की मटठी गम हो गई दसर ही ढ़िदवस मभिणधर को पडित जी क यहा जाना था वह सधया अतयत ही रमणीक थी मभिण न उस बडी परतीaा करन क पात पाया था आज वह अतयत परसनन था आज उस पडितजी क यहा जाना था वह लब-लब पग रखता हआ चला जा रहा था पडितजी क पापालय की ओर आज उस रपयो की वदी पर वासना-दवी को परसनन करन क लिलए बलिल चढानी थी

मtा पडितजी क यहा बठी हारमोडिनयम पर उगलिलया नचा रही थी और पडितजी उस पलडिकत नतरो स डिनहार रह थ वह बाजा बजान म वयसत थी साहसा मभिणधर क आ जान स हारमोडिनयम बद हो गया लजीली मtा कसv छोडकर एक ओर खडी हो गई पडितजी न डिकतना ही समझाया बटी इनस ल|ा न कर यह तो अपन ही ह जा बजा बाजा बजा अभयागत स|न क सवागत म एक गीत गा परत मtा को अभी ल|ा न न छोडा था वह अपन सथान पर अडिवचल खडी थी उसक सकोमल मनोहारी गाल ल|ावश अगरी की भाडित लाल हो रह थ

अलक आ-आकर उसका एक मधर चबन लन की चMा कर रही थी मभिणधर उस पर मर षटिमटा था वह उस समय बाहय ससार म नही रह गया था यह सब दख पडितजी गनिखसक गए अब उस परको^ म कवल दो ही थ

मभिणधर न मtा का हाथ पकडकर कहा आइए खडी कयो ह मर समीप बठ जाइए मभिणधर धM होता चला जा रहा था मtा जिझझक रही थी परत डिफर भी मौन थी मभिणधर न कहा - कया पडितजी न इस परकार आडितथय सतकार करना लिसखलाया ह डिक घर पर कोई पाहन आव और घरवाला चपचाप खडा रह शभ मर समीप बठ जाइए परम की डिवदयत कला दोनो क शरीर म परवश कर चकी थी मtा इस बार कछ न बोली वह मतर-मeध-सी मभिण क पीछ-पीछ चली आई तथा उसस कछ हटकर पलग पर बठ गई आपका शभ नाम मभिण न जरा मtा क डिनकट आत हए कहा मtा लजीली मtा न धीम सवर म कहा

बातो का परवाह बढा धीर-धीर समसत डिहचक जाती रही और और थोडी दर क पात मtा नीरस हो गई उसकी आब उतर गई थी

डिहजाब नौ उरमा रहबर शौहर नबी मानद अगर मानद शब-मानद शब दीगर नबी मानद

डिहचक खल गई थी मभिण और मtा का परम करमशः बढन लगा था मभिण षटिमसिलद था पप पर उसका परम तभी ही ठहर सकता ह जब तक उसम मद ह परत मtा का परम डिनमल और डिनकलक था वह पाप की सरिरता को पडिवतर परम की गगा समझकर बरोक-टोक बहती ही चली जा रही थी अचानक ठोकर लगी उसक नतर खल गए एक ढ़िदन उसन तथा समसत ससार न दखा डिक वह गभ स थी

समाज म हलचल मच गई शकरलाल जी की नाक तो कट ही गई वह डिकसी को मह ढ़िदखान क योeय न रह गए थ - ऐसा ही लोगो का डिवचार था असत जाडित-डिबरादरी जटी पच-सरपच आए पचायत का काय आरभ हआ मtा क बयान लिलए गए उसन आसओ क बीच लिससडिकयो क साथ-साथ समाज क सामन सपण घटना आदयोपात सना ाली - पडितजी का उसक भोल-भाल सवचछ हदय म काम-वासना का बीजारोपण करना ततपात उसका मभिणधर स परिरचय कराना आढ़िद समसत घटना उसन सना ाली पडितजी न डिगडडिगडात अपनी सफाई पश की तथा मtा स अपनी वदधावसथा पर तरस खान की पराथना की परत मभिणधर शात भाव स बठा रहा

पचो न सलाह दी बढो न हा म हा षटिमला ढ़िदया सरपच महोदय न अपना डिनणय सना ाला सारा दोष मtा क माथ मढा गया वह जाडितचयत कर दी गई रायबहादर क डिपता की भी वही राय थी जो पचो की थी मभिणधर और पडितजी को सचचरिरतरता का सरटिटडिफकट द डिनदyenषी करार द ढ़िदया गया कवल अबला मtा ही दख की धधकती हई अगनिeन म झलसन क लिलए छोड दी गई अत म अतयत कातर भाव स डिनससहाय मtा न सरपच की दोहाई दी - उसक चरणो म डिगर पडी सरपच घबराए हाय भरMा न उनह श कर लिलया था करोषटिधत हो उनहोन उस गरभिभणी डिनससहाय आशरय-हीना यवती को धकक मार कर डिनकाल दन की अनमडित द दी उनकी आजञा का पालन करन क लिलए निहद समाज को वासतव म पतन क खडड म डिगरान वाल नरराaस खशामदी टटट पीर बवचv भिभसती खर की कहावत को चरिरताथ करन वाल इस कलक क सचच अपराधी पडितजी ततaण उठ उस धकका मारकर डिनकालन ही वाल थ - अचानक आवाज आई - ठहरो अनयाय की सीमा भी परिरषटिमत होती ह तम लोगो न उसका भी उलघन कर ाला ह लोगो न नतर घमाकर दखा तो मभिणधर उततजिजत हो डिनल भाव स खडा कह रहा था निहद समाज अधा ह अतयाचारी ह एव उसक सवसवा अथात हमार माननीय पचगण अनपढ ह गवार ह और मख ह जिजनह खर एव खोट सतय और असतय की परख नही वह कया तो नयाय कर सकत ह और कया जाडित-उपकार इसका वासतडिवक अपराधी तो म ह इसका द तो मझ भोगना चाडिहए इस सशील बाला का सतीतव तो मन नM डिकया ह और मझस भी अषटिधक नीच ह यह बगला भगत बना हआ नीच पडित इस दराचारी न अपन सवाथ क लिलए न मालम डिकतनी बालाओ का जीवन नM कराया ह - उनह पथभरM कर ढ़िदया ह जिजस आदरणीय दषटिM स इस नीच को समाज म दखा जाता ह वासतव म यह नीच उसक योeय नही वरन यह नर पश ह लोलपी ह लपट ह सिसह की खाल ओढ हए तचछ गीदड ह - रगा लिसयार ह

सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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इदरदत त सतभिभत रह गए व कभी सोच भी नही सकत थ डिक फफाजी सहसा अनहोनी शत स उन ह बाधन का परयत न करग पछा - कब तक डिनभाना पडगा

- आजीवन

इदरदत त निककतव यडिवमढ हो गए जिजन डिनयमो म उनकी आस था नही जो चीज उनक डिवचारो क अनसार मनष य को अधडिवश वासो स जकड दती ह और जो भारतीय सस कडित का कलक ह उनस उनका परबदध मन भला क यो कर बध सकता ह हा कह तो कस कह उन होन इस वरत डिनयम बलिलदान चमत कार और षटिमथ या डिवश वासो स भर निहद धम को समाज पर घोर अत याचार करत दखा ह अपन-आपको तरह-तरह स परपीडिडत कर धारमिमक कहलानवाला व यलिt इस दश को रसातल म ल गया इस कठोर जीवन को साधनवाल शदधाचरणी बराहमण धम न इस दश की सतरिसतरयो और हीन कहलानवाली जाडितयो को सढ़िदयो तक दासता की चक की म बरी तरह पीसा ह और अब भी बहत काफी हद तक पीस रहा ह हो सकता डिक मनष य की चतना क उगत यग म इस शदध कहलानवाल आचार न अधकार म उन नत डिवचारो की ज योडित जगाई हो पर अब तो सढ़िदयो स इसी झठ धम न औसत भारतवासी को दास अधडिवश वासी और असीम रप स अत याचारो को सहन करनवाला झठी दवीशलिtयो पर यानी अपनी ही धोखा दनवाली लभावनी असभव कल पनाओ पर डिवश वास करनवाला झठा भाग यवादी बनाकर दश की कमर तोड रखी ह इसन औसत भारतवासी स आत मडिवश वास छीन लिलया ह इस जडता क खिxखलाफ उपडिनषद जाग मानवधम जागा योग का जञान जागा बौदध भागवतधम जागा मध यकाल का सत आदोलन उठा और आज क वजञाडिनक यग न तो इस एकदम डिनस सार लिसदध कर सदा क लिलए इसकी कबर ही खोद दी ह यह जड धम कभी भारत को महान नही बना सका होगा भारत की महानता उसक कमयोग म ह उसक व यापक मानवीय दषटिMकोण म ह व यास-वाल मीडिक आढ़िद क परम उदार भावो म ह पराचीन भारत क दशन न याय वशडिषक साडिहत य लिशल प सगीत आढ़िद इस जड धम की उपज हरडिगज नही हो सकत डिफर भी यह जडता भारत पर अस स भत की तरह छाई हई ह इसी स घणा करन क कारण आज का नया भारतीय डिबना जाच-पडताल डिकए अपनी सारी परपराओ स घणा करत हए लिसदधातहीन आस थाहीन और डिनसतरिकरय हो गया ह नही व फफाजी का धम हरडिगज न डिनभा सक ग हरडिगज नही हरडिगज नही पर व भोजन कस करग बआजी कस और कब तक भोजन करगी कसी डिवबना ह दो मनष यो की मौत की नडितक जिजम मदारी उनक ऊपर आएगी

पडित दवधर न उन ह मौन दखकर पछा-कहो भोजन कराओग मझ

- जीम धम-सकट म पड गया ह

- स पष ट कहो मरा धम गरहण करोग

फफाजी आप बहत माग रह ह मरा डिवश वास माग रह ह म आपक धम को यग का धम नही मानता अपना नही मानता

म तम हारी स पष टवाढ़िदता स परसन न ह तम धारमिमक हो इसी तरह अपन स मझको पहचानो म भी अपना धम नही छोड सकता यदयडिप तम हार सत सग स मन इतन ढ़िदनो म यह समझ लिलया ह डिक मरा यग मरा धम अब सदा क लिलए लोप हो रहा ह डिफर भी अडितम सास तक तो हरडिगज नही मरी आस था तपःपत ह तम हारा कल याण हो सखी हो बटा अच छा तो अब चल -

परत मरा अनशन का डिनश चय अडिग ह फफाजी म आपक चरण छकर कह रहा ह

पर छोड दो बट इन परो स पहल ही जडता समा चकी ह और अब तो जीव क साथ ही षटिमटगी अन यथा नही खर कल डिवचार करना अपन अनशन पर

अडितम वाक य पडितजी न इस तरह कहा डिक इदरदतत को करारा झटका लगा पर व मौन रहन पर डिववश थ पडित दवधर चलन लग इदरदतत क मन म भयकर तफान उठ रहा था व हार गए बआजी को क या उततर दग इस अगडित का अत कया होगा क या व फफाजी की बात मान ल कस मान ल यह ठीक ह डिक फफाजी अपन धम पर डिकस परकार एकडिनष ठ ह यह ए कडिनष ठता उन ह बहद परभाडिवत करती ह डिफर भी उनक धम को वह क यो कर स वीकार कर

पडित दवधरजी जीन पर पहचकर रक इदरदतत उनक पीछ-पीछ चल रह थ पडितजी घमकर बोल - तम हारी मान यताओ म मरी आस था नही ह इदर डिफर भी म उसक वास तडिवक पa को कछ-कछ दख अवश य पा रहा ह एक बात और स पष ट करना चाहता ह तम भोला डितरभवन क धम को आज का या डिकसी भी यग का वास तडिवक धम मानत हो

- जी नही उनका कोई धम ही नही ह

- तम हारा कल याण हो बट धन मद स जन म इस खोखल धम स सदा लडना जस म लडा तम अपन मत क अनसार लडो पर लडो अवश य यह आस थाहीन दभ भरा अदाशडिनक अधारमिमक जीवन लोक क लिलए अकल याणकारी ह बोलो वचन दत हो

म आपको अपना डिवश वास दता ह - कहकर इदरजीत न फफाजी क चरण छ लिलए खडाऊ की खट-खट जीन स उतर गई आगन पार डिकया दर चली इदरदतत आकर कट पड स अपन पलग पर डिगर गए

नया यग परान यग स स वच छा स डिवदा हो रहा था पर डिवदा होत समय डिकतना परबल मोह था और डिकतना डिनमम व यवहार भी

धम सकट अमतलाल नागर

शाम का समय था हम लोग परदश दश और डिवश व की राजनीडित पर लबी चचा करन क बाद उस डिवषय स ऊब चक थ चाय बड मौक स आई लडिकन उस ताजगी का सख हम ठीक तरह स उठा भी न पाए थ डिक नौकर न आकर एक सादा बद लिलफाफा मर हाथ म रख ढ़िदया मन खोलकर दखा सामनवाल पडोसी रायबहादर डिगराजडिकशन (डिगरिरराज कष ण) का पतर था कापत हाथो अनषटिमल अaरो और टढी पलिtयो म लिलखा था

माई डियर परताप

मन फल ली को आदश द रक खा ह डिक मरी मत य क बाद यह पतर तम ह फौरन पहचाया जाए तम मर अभिभन न षटिमतर क पतर हो रमश स अषटिधक सदा आजञाकारी रह हो मरी डिनम नलिलगनिखत तीन अडितम इच छाओ को परा करना -

1 रमश को तरत सचना दना मरी आत मा को तभी शाडित षटिमलगी जब उसक हाथो मर अडितम सस कार होग मन उसक साथ अनयाय डिकया ह

2 फल ली को मन पाच हजार रपय ढ़िदए ह और पाच-पाच सौ रपय बाकी चारो नौकरो को नोट मर तडिकए म रई की परत क अदर ह उसी म वसीयत और डितजोरी की चाभी भी ह घर म डिकसी को यह रहस य नही मालम तडिकया अब फौरन अपन कबज म कर लना घर क भार-घर और सदको की चाभिभया डितजोरी म ह रमश क आन पर पाच पचो क सामन उस सौप दना

3 मन अपनी वसीयत म यह शत रक खी ह डिक मरी पत नी अगर मझ माफ कर द और गलत ही सही मगर जो पडितवरत उस पर आन पडा ह उस साधकर रमश को छोडकर बाइज जत यहा रह तो यह मकान और दस हजार रपया उस ढ़िदया जाए लडिकन यह काम उसी हालत म होना चाडिहए जबडिक हम और तम हार दवारा डिनयक त महल ल क चार भल आदमी मरी पत नी की सच चरिरतरता क सबध म आवश स त हो जाए

पतर पर छह रोज पहल की तारीख पडी थी मझ यह समझन म दर न लगी डिक रायबहादर साहब गत हो चक ह पतर मन बड बाब क सामन मज पर रखा ढ़िदया इजीडिनयर साहब और परोफसर साहब भी झककर पढन लग

चाय बमजा हो गई हम सभी उठकर रायबहादर साहब क यहा गए उनका रोबीला चहरा रोग और मानलिसक सिचताओ स जजर होकर मत य क बाद भी उनक अडितम ढ़िदनो क असीम कष टो का परिरचय द रहा था मत रायबहादर क चहर को दखत हए उनक साथ बीत इतन वष की स मडितया मर मन म जाग उठी

रायबहादर बाब डिगराजडिकशन बीए उन निहदस ताडिनयो म स थ जिजन ह तकदीर की चक क कारण इeल म जनम नही षटिमल पाया था उनका रग भी गोरा न था बशकिक गहए स काल की ओर ही अषटिधक झकता हआ था डिफर भरसक उन होन अपन-आपको अगरजनमा ही बनाए रक खा गरीब निहदसताडिनयो पर अकड ढ़िदखान म व सदा अगरजो स चार जत आग रह कई निहदीवाढ़िदयो न उनस शदध नाम डिगरिरराजकष ण रखन को कहा मगर व उन ह मख बतलाकर डिगराज ही बन रह रायबहादर डिगराजडिकशन क नाम क साथ बीए जोडना भी डिनतात आवश यक था सन 23 म रायबहादर डिगराज अपनी डिबरादरी क रायसाहब दीनानाथ की बदौलत इलाहाबाद म छोट लाट क दफतर म भरती हए थ अपनी अगरजपरस ती और हाईक लास खशामद क दम पर रामबहादर ऊची करसिसयो पर चढ बठ स वराज य होन पर आतरिरक कष ट भोगन क बावजद तीन वष तक स वराजी अफसरो नताओ और मडितरयो की भी बाअदब खशामद की डिगराज बाब इन लोगो क सामन जिजस परकार खद दम डिहलात उसी परकार अपन सामन अपन मातहतो की भी डिहलवात थ आजादी क बाद भी दफतर म अपना भला चाहनवाला कोई बाब उनक आग निहदी का एक शब द नही बोल सकता था और घर क लिलए भी यही मशहर था डिक रायबहादर की भस तक अगरजी म ही कारती अगर कोई कसर थी तो सही डिक ली डिगराज क वास त अगरजी का करिरया अaर भी भस बराबर ही था

रायबहादर डिगराज पहली लडाई क जमान क मॉन आदमी थ सबह आख खलत ही घटी बजात सफद कोट पतलन और साफ स लस फल ली आया का लडका घसीट छोटी हाजिजरी लकर हाजिजर होता ठीक आठ बज बडी हाजिजरी पर बठत बटी-बटा साथ होत पर ल ी डिगराज अा-डिबस कट-समाज म कभी न बठी परम कटटर छत-पाकवाली न होत हए भी मास-मछली स उन ह परहज था बशीरत चपरासी क बाप मन न बावचv को हफत म दो ढ़िदन डयटी दनी पडती थी घर क डिनचल डिहस स म डिवलायती रसोई थी एक तरह स कहना चाडिहए डिक नीच का परा घर ही डिवलायती था वहा ल ी डिगराज क बजाय फल ली आया का सामराज य था फल ली पहल अगरजी कोढ़िठयो म काम करती थी अगरजी ढग स निहदस थानी बोलती ह अगरजी घर क कायद जानती ह छोटी-बडी हाजिजरी लच डिनर चाय सबका समय साधती थी इसलिलए डिगराज बाब क बाब डिनयम स दो पग खान स पहल चसडिकयो म मयादा करत थ फली उसका इतजाम भी बखबी कर दती थी इसलिलए आमतौर पर मजाक-मजाक म ही मशहर हो गया था डिक रायबहादर साहब स कोई काम करवान क वास त बजाय ली डिगराज क ल ी फल ली की लिसफारिरश जयादह परअसर होती ह

वस राजबहादर डिगराज म डिकसी न भी कोई ऐब की बात नही दखी-सनी थी अगर ऐब था तो यही डिक व मॉन थ चरट मह म लगाए बगर व बात नही कर पात थ अगर कोई निहदी सभा का चदा मागन आए तो उसस अकडकर कहत डिक मॉन जमान म गवार भाषाओ का उदधार करना डिहमाकत की बात ह धम क सबध म पहल तो व यह कहा करत थ डिक यह ढोग और पागलपन की वस त ह मगर बाद म उस इडियन कल चर का एक सनातन रप मानकर सहन कर जात थ डिगराज साहब थोडा-बहत लन-दन का काम करत थ और उसकी बदौलत उन होन हलिसयत भी बनाई अच छा मॉन ढग का मकान बनवाया उसका नाम ढ़िद नाइटिटगल रकखा मोटर खरीदी सदा दो-चार नौकर पाल घर स लकर दफतर तक घडी साधकर सबस डयटी करवाई पत नी को भी षटिमलन क वास त फल ली क दवारा उनस अप वाइटमट लना पडता था ली इसस जल-फक गई डिक म फल ली स भी गई-बीती हो गई

ली डिगराज न अपन फहडपन म उनक ऊपर एक बहत बडा लाछन लगा ढ़िदया रायबहादर साहब लिसदधाततः और स वभावतः अवध रिरश तो स नफरत करत थ इसलिलए अपनी पत नी क दवारा झठा लाछन लगाए जान क बाद डिफर उन होन कभी उनका मह न दखा बडी लडकी क डिववाह क अवसर पर उन होन कन यादान इसलिलए स वय न डिकया डिक उन ह पजा क पटर पर अपनी पत नी क साथ बठना पडता

इसक बाद दो वष म ली डिगराज घल-घलकर मर गई मगर मरी भी तो डिनयडित क साथ षडयतर करक ठीक इनक रिरटायर होन क ढ़िदन रायबहादर डिगराज को बहत लिशकायत हई अपन बट-बटी स कहा तम हारी मममी को कभी टाइम का सस नही रहा अगर मरना ही था तो कल सबह मरती परसो सबह मर सकती थी आज शाम को दफतर म मरी फयरवल पाट हो जान क बाद कभी मर सकती थी जिजदगी म एडरस पान का यह पहला मौका आया था सो इस तरह तबाहोबबाद कर ढ़िदया ईडियट कही की

इसक बाद मरनवाली तो खर मर ही चकी थी मगर जो भी मातम-परसी क लिलए मह डिबसरत हए आए उन ह भी रायबहादर साहब की ाट खानी पडी जो कहता डिक साहब सनकर बडा दख हआ उसस ही कहत आपको दख करन की जररत क या ह मझ कोई दख नही हआ जो आदमी पदा होता ह उन सबको एक साथ फौरन मर जाना चाडिहए जाइए मर यहा मातम-परसी क लिलए आन की जररत नही

छोटी लडकी की शादी उन होन पत नी की मत य क तीन महीन बाद पव डिनश चय क अनसार ही की स वय ब याहनवाली लडकी और उनक पतर को इसम आपभितत थी मगर उन होन डिकसी की एक न सनी कहा आई हव नो रिरगा फॉर योर मम मी शी वाज एक परफक ट फल लडकी की शादी बडी धमधाम स की एक आईसीएस क बट को अपना दामाद बनाया और बहत कछ दान-दहज दकर रिरटायर होन क बाद भी रोब जतलाया

लडका रमश तब एमए फाइनल म पढ रहा था नामी तज था सदा फस ट क लास रका रहा एमए क बाद आईएएस म बठनवाला था लडकीवाल अनक व यलिt रमश की माग करन क लिलए रायबहादर की सवा म आन लग रायबहादर डिगराज को अब मातहत क लक पर न सही तो ब टीवालो पर ही चरट का रोब झाडकर भरपर सतोष षटिमल जाता था दहज क मामल म व पक क मॉन थ यानी पच चीस हजार मागत थ एकाध डिपछल जानकार न दहाई दी डिक आप तो दहज क डिवरदध थ उसको परानी परथा बतलात थ तो बोल साहब जब मझ स बड अफसर आईसीएस आदमी यानी मर समधी साहब दहज लन को मॉन परथा मानत ह तो मन भी अपन डिवचार बदल ढ़िदए ह डिनहायत साइढ़िटडिफक बात ह डिक आपको दामाद चाडिहए और मझ 25 हजार रपया मरा रमश आईएएस पास करगा आप अपनी लडकी का फयचर दखकर अगर इतनी रक कम दना स वीकार करत ह तो बढ़िठए वरना मरी करसी की गददी मली मत डिकजिजए

व ऐसी लडकी चाहत थ जो सदर हो बीए हो गाती नाचती हो सीना-डिपरोना-बनना जानती हो अगरजी म फटाफट बात कर अफसर डिकसम क मॉन महमानो की खाडितर करन म तमीजदार हो और ऊपर स उसका बाप नगद पच चीस हजार रपय भी द जाए डिबरादरी क कई अच छी हलिसयतवाल बढ़िटयो क बापो क चहर रायबहादर डिगराज क चरट की अकड स धआ-छआ हो गए

एक ढ़िदन इनक दवारा नौकर रखाए गए परान मातहत एक सजातीय बाब दवीशकर पधार डिगराज की मडिहमाओ का बखान करत हए उन होन कहा सर म आपकी च वायस को जानता ह और एक लडकी मरी नजर म ह

इन बाब क साथ उन होन रीता को दखन का अवसर पाया रीता रायसाहब चमनलाल की इकलौती बटी थी रायसाहब चमनलाल न अपन जमान म बड ऐश बड नाम डिकए व शहर की तवायफो क सरताज थ रस क घोडो क सरपस त थ और बड ही औला-पौला आदमी थ अपन जीवन-काल म लाखो कमाए और लाखो फक एक लडकी हई उस बड लाड स पाला-पोसा पढाया हाई स कल तक रीता न परीaाओ तथा वाद-डिववाद और नत य-परडितयोडिगताओ म अनक परस कार पराप त कर अपन डिपता को सतष ट डिकया था रायसाहब डिवधर थ रीता की एक डिवधवा मौसी उनकी लडकी की दखभाल करन क लिलए उनक यहा रहती थी सो तब तरह स उनकी ही हो गई थी रायसाहब न आख मदकर अपना घर अपनी रभिaता साली को सौप रक खा था

बाद म रायसाहब चमनलाल की जन मकली क गरह-नaतर पहट बडा घाटा आया ढ़िदवालिलए होन की नौबत आ गई अपनी लडकी क वास त कछ रकम बचान की नीयत स उन होन एक बगला अपनी साली क नाम स खरीदा और लगभग एक लाख रपया नगद और जवरो क रप म बचाकर उसी क नाम स जमा करवा ढ़िदया डिफर रायसाहब ढ़िदवालिलए हो गए और जिजस ढ़िदन उन ह अपनी महलनमा कोठी सदा क लिलए छोडनी थी उस ढ़िदन उन होन गहर नश म अपनी कनपटी पर रिरवाल वर रखकर अपनी इहलीला समाप त कर दी रायसाहब की मत य क बाद मौसी सयानी हो गई और रीता अनाथ

लडकी दखन गए तो उसकी दो चोढ़िटयो म डित तलिलयो जस रिरबन दखकर रायबहादर साहब क पशन पराप त जीवन म नई रस की गलाबी आई अनक वष का सोया हआ मॉन पत नी का अभाव जाग उठा लडकी रीता बातचीत म तज आख नचान म बाकमल और हसन म डिबजली थी दखकर लौट तो रास त म दवीशकर स बोल लडकी तो अच छी ह और दहज का भी मझ कोई खास नही क योडिक तम तो जानत ही हो डिक म इन सब मामलो म बडा मॉन ह खाली एक परयोजन ह क - अ - क या नाम क आई मीन तम हारा क या खयाल ह दवीशकर अभी तो म भी शादी कर सकता ह

दवीशकर रायबहादर को घरत लग मह पर खशामद स हा क बजाय ना भला क यो कर कहत मौसी क लिलए इसस बढकर काई शभ सवाद न हो सकता था अठारह वष की आय की रीता छsपन वषvय रायबहादर डिगराजडिकशन की पत नी बनी

और इसक बाद की तमाम बात अपन करम म बढ गई रीता न परथम ढ़िदन स ही अपन पडित स कोई सबध न रकखा हठपवक अपन कमर क अदर बद रही रायबहादर रपय-पस गहनो और खशामदो की बडी-बडी नमायश लगाकर हार गए डिफर एक ढ़िदन फल ली न बतलाया डिक रमश और रीता रायबहादर दवारा स थाडिपत सबध को भलकर परस पर नया सबध स थाडिपत कर रह ह रायबहादर आग हो गए रमश तब एमए क अडितम वष म पढ रहा था डिपता न करोध म अध होकर उस पर परहार डिकया और घर स डिनकाल ढ़िदया रीता तब भी उनकी न हई

रमश को दो महीन बाद ही ढ़िदल ली म कोई नौकरी षटिमल गई और उसक महीन-भर बाद ही रीता रायबहादर क घर स गायब होकर ढ़िदल ली पहच गई जान स पव वह एक अलबला काम कर गई थी महल ल क पच चास घरो म हर पत पर उनका लिलखा पोस टका उसक गायब होन क दसर ही ढ़िदन पहली ाक स पहचा उसम मातर इतना ही लिलखा था बाब डिगरिरराजकष ण न मझ जबरदस ती अपनी पत नी बनाया था मगर मन उन ह कभी अपना पडित न माना और न अपना धम ही ढ़िदया डिववाह स पहल मझ बतलाया गया डिक म उनक पतर को ब याही जाऊगी तब स मन उनक पतर को ही अपना पडित माना इस घर म आकर भी उन ह ही भगवान की साaी म अपन को सौपा और अब म अपन पडित क पास ही जा रही ह

रीता क भागन स रायबहादर बाब डिगराजडिकशन को इतना कष ट नही पहचा था जिजतना डिक उसक दवारा भज गए इस सावजडिनक पतर स व दखी हए इसक बाद रायबहादर का जीवन बदल गया उनम पजा-पाठ और आशकिसतकता की भावना जागी साथ ही अकलापन भी हठ पकड गया डिपछल आठ वष म व एक ढ़िदन भी अपन घर स बाहर डिनकलकर कही न गए लन-दन का काम करत थ वह भी धीर-धीर समाप त कर ढ़िदया महल ल म डिकसी स भी सपक न रक खा डिपछल कछ ढ़िदनो स बीमार थ मगर महल लवाल उनकी हालत दखन-पछन भी न गए जात तो षटिमलत भी नही और अचानक मर पास अब यह पतर आया

हम सभी महल लवाल एकाएक यह डिनणय न कर पाए डिक इस खिसथडित म क या करना चाडिहए वदयजी और बड बाब इस पa म थ डिक पलिलस को सचना द दी जाए और इस पतर को लिलखी हई बातो का अमल भी कानन क हाथो ही हो परत म तो मत व यलिt की अडितम इच छा परी करन क पa म था रायबहादर कस भी रह हो इसी महल ल क थ कइयो को उन होन कभी नौकरिरया भी ढ़िदलाई थी उपकार डिकया था इजीडिनयर साहब भी मर ही मत क थ बाद म सभी राजी हो गए महल ल क एक षटिमतर क पास रमश क पतर आया करत थ उसी स पता लकर तार भजा गया जिजसम यह स पष ट लिलख ढ़िदया था डिक यढ़िद कल परातःकाल तक तम स वय अथवा तम हारा पतर उततर न आएगा तो रायबहादर की अत योषटिM डिकरया महल लवालो दवारा ही पचनाम स सपन न कर दी जाएगी

सबह चार बज तार का जवाब आया डिक रमश टक सी दवारा ढ़िदल ली स चल रहा ह और सबह तक पहच जाएगा परातःकाल करीब-करीब सभी महल लवाल रायबहादर क घर पर उ पखिसथत थ तभी टक सी दरवाज पर रकी रमश रीता और तीन बच च उतर रमश क मह पर तो सामाजिजक लज जा और सकोच की मलिलन छाया थी परत रीता का चहरा सतज और डिनरतिवकार था

रीता क आन का सवाद पाकर अनक सतरिसतरया कौतहलवश आ गई रीता न रायबहादर की लाश क पास अपनी चडिडया तोडी और माग का सिसदर पोछा रमश न डिपता का अडितम सस कार डिकया सतरिसतरया रीता स तरह-तरह क परश न करती थी परत वह कोई उततर न दती थी डिकरयाकम इत याढ़िद म रायबहादर क सजा तीय नात-रिरश तदार आढ़िद बहत कम आए बरहमभोज म गरीबी स एकदम टट हए बराहमण ही आए डिकसी परकार डिकरयाकम समाप त हआ रमश क वहा स चलन का समय आया

मन रायबहादर क अडितम पतर क अनसार सभरात महल लवालो क साथ रीता-रमश को बलाकर सबक सामन उनका वह अडितम पतर पढा और वह तडिकया जो महरबद पटी म मन रखवा ढ़िदया था खलवाया फल ली और नौकरो को रायबहादर की इच छानसार रपय द ढ़िदए गए रायबहादर की अडितम माग पर रीता का डिनणय सनन क लिलए हम सभी उत सक बठ थ रीता बोली म धम और ईश वर क सम मख सचचरिरतर ह मन अपन तन-मन स उन ह सदा ससर ही माना धारमिमक कानन की जिजस मजबरी स उन होन मझ अपनी पत नी बनाया था उस मन डिवषटिधवत उनकी लाश को सौप भी ढ़िदया उनकी चडिडया उनका सिसदर उन ह सौपा लडिकन मरी चडिडया मरा सिसदर अaय ह कहकर उसन दर स अपन हाथ क नीच दबी हई रमाल की पोटली को उठाया उसम हरी चडिडया थी और एक चादी की डिडिबया थी चडिडया पहनी और डिबीया खोलकर रमश की और रखत हए बोली जिजन होन मरी गोद भरी ह उन होन मरी माग भी भरी ह - लीजिजए मरी माग भर दीजिजए

रमश न रीता की माग म सिसदर की रखा खीच दी डिफर रीता बोली घर क सबध म मझ कवल यही कहना ह डिक अगर आप पाच पच मझ दश चरिरतर मानत हो तो उस धमशाला बना दीजिजए

हमम स कोई खम ठोककर एकाएक यह नही कह पाया डिक रीता दश चरिरतर ह मन अनभव डिकया डिक सभी क मनो को इस परश न स धक का लगा था अपन परपरागत धारमिमक सामाजिजक सस कारो क कारण हम रीता को सचरिरतरा मानन स भी मन ही मन डिहचकत थ पर यो क या कह

रीता हमारी डिहचक पर एक बार कहकर उठ गई उसन कहा मझ रायबहादर साहब का घर और दस हजार रपय पान की इच छा नही मर पडित न मझ सहाग की छाव द रक खी ह लडिकन म आपक सामन कसौटी रखती ह - बोलिलए घर डिकसका ह

घर को छोडकर बाकी सब सामान क साथ रमश रीता और उनक बच च ढ़िदल ली चल गए हम अभी तक कोई डिनणय नही कर पाए घर की चाभी मर पास ह वह तोल ढ का लोह का टकडा इस समय मर मन-पराणो का बोझ बना हआ ह

(1961 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

परायभित अमतलाल नागर

जीवन वाढ़िटका का वसत डिवचारो का अधड भलो का पवत और ठोकरो का समह ह यौवन इसी अवसथा म मनय तयागी सदाचारी दश-भt एव समाज-भt भी बनत ह तथा अपन खन क जोश म वह काम कर ढ़िदखात ह जिजसस डिक उनका नाम ससार क इडितहास म सवणाaरो म लिलख ढ़िदया जाता ह तथा इसी आय म मनय डिवलासी

लोलपी और वयभिभचारी भी बन जाता ह और इस परकार अपन जीवन को दो कौडी का बनाकर पतन क खडड म डिगर जाता ह अत म पछताता ह परायभित करता ह परत परतयचा स डिनकाला हआ बाण डिफर वापस नही लौटता खोई हई सचची शाडित डिफर कही नही षटिमलती

मभिणधर सदर यवक था उसक पस (जब) म पसा था और पास म था नवीन उमगो स परिरत हदय वह भोला-भाला सशील यवक था बचारा सीध माग पर जा रहा था यारो न भटका ढ़िदया - दीन को पथ-हीन कर ढ़िदया उस डिनतय-परडित कोठो की सर कराई नई-नई परिरयो की बाकी झाकी ढ़िदखाई उसक उचचडिवचारो का उसकी महतवकाaाओ का अतयत डिनदयता क साथ गला घोट ाला गया बनावटी रप क बाजार न बचार मभिणधर को भरमा ढ़िदया डिपता स पसा मागता था वह अनाथालयो म चदा दन क बहान और उस आख बद कर बहाता था गदी नालिलयो म पाप की सरिरता म घभिणत वnयालयो म

ऐसी डिनराली थी उसकी लीला पडित जी वदध थ अनक कनयाओ क लिशaक थ वातसय परम क अवतार थ डिकसी भी बालिलका क घर खाली हाथ न जात थ षटिमठाई फल डिकताब नोटबक आढ़िद कछ न कछ ल कर ही जात थ तथा डिनतयपरडित पाठ सनकर परतयक को पारिरतोडिषक परदान करत थ बालिलकाए भी उनस अतयत डिहल-षटिमल गई थी उनक सरaकगण भी पडित जी की वातसयता दख गदगद हो जात थ घरवालो क बाद पडित जी ही अपनी छातराओ क डिनरीaक थ सरaक थ बालिलकाए इनक घर जाती हारमोडिनयम बजाती गाती हसती खलती कदती थी पडितजी इसस गदगद हो जात थ तथा बाहरवालो स परमाशर ढरकात हआ कहा करत इनही लडडिकयो क कारण मरा बढापा कटता चला जा रहा ह अनयथा अकल तो इस ससार म मरा एक ढ़िदवस भी काटना भारी पड जाता समसत ससार पडितजी की एक मह स परशसा करता था

बाहरवालो को इस परकार ठाट ढ़िदखाकर पडितजी दसर ही परकार का खल खला करत थ वह अपनी नवयौवना सदर छातराओ को अनय डिवषयो क साथ-साथ परम का पाठ भी पढाया करत थ परत वह परम डिवशदध परम नही वरन परम की आड म भोगलिलsसा की लिशaा थी सतीतव डिवकरय का पाठ था काम-वासना का पाठ पढाकर भोली-भाली बालिलकाओ का जीवन नM कराकर दलाली खान की चाल थी टटटी की आड म लिशकार खला जाता था पडितजी क आस-पास यडिनवरसिसटी तथा कालज क छातर इस परकार भिभनभिभनाया करत थ जिजस परकार डिक गड क आस पास मखिकखया डिवलिचतर थ पडितजी और अदभत थी उनकी माया

रायबहादर ॉ शकरलाल अगनिeनहोतरी का सथान समाज म बहत ऊचा था सभा-सोसाइटी क हाडिकम-हककाम म आदर की दषटिM स दख जात थ वह उनक थी एक कनया - मtा वह हजारो म एक थी - सदरता और सशीलता दोनो म दभाeयवश वदध पडितजी उस पढान क लिलए डिनयt डिकए गए भोली-भाली बालिलका अपन आदश को भलन लगी पडित जी न उसक डिनमल हदय म अपन कखितसत महामतर का बीजारोपण कर ढ़िदया था अनय यवती छातराओ की भाडित मtा भी पडित जी क यहा हारमोडिनयम सीखन जान लगी

पडितजी मtा क रप लावणय को डिकराए पर उठान क लिलए कोई मनचला पस वाला ढढन लग अत म मभिणधर को आपन अपना पातर चन लिलया नई-नई कलिलयो की खोज म भटकन वाला षटिमसिलद इस अपव कली का मदपान करन क लिलए आकलिलत हो उठा इस अवसर पर पडितजी की मटठी गम हो गई दसर ही ढ़िदवस मभिणधर को पडित जी क यहा जाना था वह सधया अतयत ही रमणीक थी मभिण न उस बडी परतीaा करन क पात पाया था आज वह अतयत परसनन था आज उस पडितजी क यहा जाना था वह लब-लब पग रखता हआ चला जा रहा था पडितजी क पापालय की ओर आज उस रपयो की वदी पर वासना-दवी को परसनन करन क लिलए बलिल चढानी थी

मtा पडितजी क यहा बठी हारमोडिनयम पर उगलिलया नचा रही थी और पडितजी उस पलडिकत नतरो स डिनहार रह थ वह बाजा बजान म वयसत थी साहसा मभिणधर क आ जान स हारमोडिनयम बद हो गया लजीली मtा कसv छोडकर एक ओर खडी हो गई पडितजी न डिकतना ही समझाया बटी इनस ल|ा न कर यह तो अपन ही ह जा बजा बाजा बजा अभयागत स|न क सवागत म एक गीत गा परत मtा को अभी ल|ा न न छोडा था वह अपन सथान पर अडिवचल खडी थी उसक सकोमल मनोहारी गाल ल|ावश अगरी की भाडित लाल हो रह थ

अलक आ-आकर उसका एक मधर चबन लन की चMा कर रही थी मभिणधर उस पर मर षटिमटा था वह उस समय बाहय ससार म नही रह गया था यह सब दख पडितजी गनिखसक गए अब उस परको^ म कवल दो ही थ

मभिणधर न मtा का हाथ पकडकर कहा आइए खडी कयो ह मर समीप बठ जाइए मभिणधर धM होता चला जा रहा था मtा जिझझक रही थी परत डिफर भी मौन थी मभिणधर न कहा - कया पडितजी न इस परकार आडितथय सतकार करना लिसखलाया ह डिक घर पर कोई पाहन आव और घरवाला चपचाप खडा रह शभ मर समीप बठ जाइए परम की डिवदयत कला दोनो क शरीर म परवश कर चकी थी मtा इस बार कछ न बोली वह मतर-मeध-सी मभिण क पीछ-पीछ चली आई तथा उसस कछ हटकर पलग पर बठ गई आपका शभ नाम मभिण न जरा मtा क डिनकट आत हए कहा मtा लजीली मtा न धीम सवर म कहा

बातो का परवाह बढा धीर-धीर समसत डिहचक जाती रही और और थोडी दर क पात मtा नीरस हो गई उसकी आब उतर गई थी

डिहजाब नौ उरमा रहबर शौहर नबी मानद अगर मानद शब-मानद शब दीगर नबी मानद

डिहचक खल गई थी मभिण और मtा का परम करमशः बढन लगा था मभिण षटिमसिलद था पप पर उसका परम तभी ही ठहर सकता ह जब तक उसम मद ह परत मtा का परम डिनमल और डिनकलक था वह पाप की सरिरता को पडिवतर परम की गगा समझकर बरोक-टोक बहती ही चली जा रही थी अचानक ठोकर लगी उसक नतर खल गए एक ढ़िदन उसन तथा समसत ससार न दखा डिक वह गभ स थी

समाज म हलचल मच गई शकरलाल जी की नाक तो कट ही गई वह डिकसी को मह ढ़िदखान क योeय न रह गए थ - ऐसा ही लोगो का डिवचार था असत जाडित-डिबरादरी जटी पच-सरपच आए पचायत का काय आरभ हआ मtा क बयान लिलए गए उसन आसओ क बीच लिससडिकयो क साथ-साथ समाज क सामन सपण घटना आदयोपात सना ाली - पडितजी का उसक भोल-भाल सवचछ हदय म काम-वासना का बीजारोपण करना ततपात उसका मभिणधर स परिरचय कराना आढ़िद समसत घटना उसन सना ाली पडितजी न डिगडडिगडात अपनी सफाई पश की तथा मtा स अपनी वदधावसथा पर तरस खान की पराथना की परत मभिणधर शात भाव स बठा रहा

पचो न सलाह दी बढो न हा म हा षटिमला ढ़िदया सरपच महोदय न अपना डिनणय सना ाला सारा दोष मtा क माथ मढा गया वह जाडितचयत कर दी गई रायबहादर क डिपता की भी वही राय थी जो पचो की थी मभिणधर और पडितजी को सचचरिरतरता का सरटिटडिफकट द डिनदyenषी करार द ढ़िदया गया कवल अबला मtा ही दख की धधकती हई अगनिeन म झलसन क लिलए छोड दी गई अत म अतयत कातर भाव स डिनससहाय मtा न सरपच की दोहाई दी - उसक चरणो म डिगर पडी सरपच घबराए हाय भरMा न उनह श कर लिलया था करोषटिधत हो उनहोन उस गरभिभणी डिनससहाय आशरय-हीना यवती को धकक मार कर डिनकाल दन की अनमडित द दी उनकी आजञा का पालन करन क लिलए निहद समाज को वासतव म पतन क खडड म डिगरान वाल नरराaस खशामदी टटट पीर बवचv भिभसती खर की कहावत को चरिरताथ करन वाल इस कलक क सचच अपराधी पडितजी ततaण उठ उस धकका मारकर डिनकालन ही वाल थ - अचानक आवाज आई - ठहरो अनयाय की सीमा भी परिरषटिमत होती ह तम लोगो न उसका भी उलघन कर ाला ह लोगो न नतर घमाकर दखा तो मभिणधर उततजिजत हो डिनल भाव स खडा कह रहा था निहद समाज अधा ह अतयाचारी ह एव उसक सवसवा अथात हमार माननीय पचगण अनपढ ह गवार ह और मख ह जिजनह खर एव खोट सतय और असतय की परख नही वह कया तो नयाय कर सकत ह और कया जाडित-उपकार इसका वासतडिवक अपराधी तो म ह इसका द तो मझ भोगना चाडिहए इस सशील बाला का सतीतव तो मन नM डिकया ह और मझस भी अषटिधक नीच ह यह बगला भगत बना हआ नीच पडित इस दराचारी न अपन सवाथ क लिलए न मालम डिकतनी बालाओ का जीवन नM कराया ह - उनह पथभरM कर ढ़िदया ह जिजस आदरणीय दषटिM स इस नीच को समाज म दखा जाता ह वासतव म यह नीच उसक योeय नही वरन यह नर पश ह लोलपी ह लपट ह सिसह की खाल ओढ हए तचछ गीदड ह - रगा लिसयार ह

सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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अडितम वाक य पडितजी न इस तरह कहा डिक इदरदतत को करारा झटका लगा पर व मौन रहन पर डिववश थ पडित दवधर चलन लग इदरदतत क मन म भयकर तफान उठ रहा था व हार गए बआजी को क या उततर दग इस अगडित का अत कया होगा क या व फफाजी की बात मान ल कस मान ल यह ठीक ह डिक फफाजी अपन धम पर डिकस परकार एकडिनष ठ ह यह ए कडिनष ठता उन ह बहद परभाडिवत करती ह डिफर भी उनक धम को वह क यो कर स वीकार कर

पडित दवधरजी जीन पर पहचकर रक इदरदतत उनक पीछ-पीछ चल रह थ पडितजी घमकर बोल - तम हारी मान यताओ म मरी आस था नही ह इदर डिफर भी म उसक वास तडिवक पa को कछ-कछ दख अवश य पा रहा ह एक बात और स पष ट करना चाहता ह तम भोला डितरभवन क धम को आज का या डिकसी भी यग का वास तडिवक धम मानत हो

- जी नही उनका कोई धम ही नही ह

- तम हारा कल याण हो बट धन मद स जन म इस खोखल धम स सदा लडना जस म लडा तम अपन मत क अनसार लडो पर लडो अवश य यह आस थाहीन दभ भरा अदाशडिनक अधारमिमक जीवन लोक क लिलए अकल याणकारी ह बोलो वचन दत हो

म आपको अपना डिवश वास दता ह - कहकर इदरजीत न फफाजी क चरण छ लिलए खडाऊ की खट-खट जीन स उतर गई आगन पार डिकया दर चली इदरदतत आकर कट पड स अपन पलग पर डिगर गए

नया यग परान यग स स वच छा स डिवदा हो रहा था पर डिवदा होत समय डिकतना परबल मोह था और डिकतना डिनमम व यवहार भी

धम सकट अमतलाल नागर

शाम का समय था हम लोग परदश दश और डिवश व की राजनीडित पर लबी चचा करन क बाद उस डिवषय स ऊब चक थ चाय बड मौक स आई लडिकन उस ताजगी का सख हम ठीक तरह स उठा भी न पाए थ डिक नौकर न आकर एक सादा बद लिलफाफा मर हाथ म रख ढ़िदया मन खोलकर दखा सामनवाल पडोसी रायबहादर डिगराजडिकशन (डिगरिरराज कष ण) का पतर था कापत हाथो अनषटिमल अaरो और टढी पलिtयो म लिलखा था

माई डियर परताप

मन फल ली को आदश द रक खा ह डिक मरी मत य क बाद यह पतर तम ह फौरन पहचाया जाए तम मर अभिभन न षटिमतर क पतर हो रमश स अषटिधक सदा आजञाकारी रह हो मरी डिनम नलिलगनिखत तीन अडितम इच छाओ को परा करना -

1 रमश को तरत सचना दना मरी आत मा को तभी शाडित षटिमलगी जब उसक हाथो मर अडितम सस कार होग मन उसक साथ अनयाय डिकया ह

2 फल ली को मन पाच हजार रपय ढ़िदए ह और पाच-पाच सौ रपय बाकी चारो नौकरो को नोट मर तडिकए म रई की परत क अदर ह उसी म वसीयत और डितजोरी की चाभी भी ह घर म डिकसी को यह रहस य नही मालम तडिकया अब फौरन अपन कबज म कर लना घर क भार-घर और सदको की चाभिभया डितजोरी म ह रमश क आन पर पाच पचो क सामन उस सौप दना

3 मन अपनी वसीयत म यह शत रक खी ह डिक मरी पत नी अगर मझ माफ कर द और गलत ही सही मगर जो पडितवरत उस पर आन पडा ह उस साधकर रमश को छोडकर बाइज जत यहा रह तो यह मकान और दस हजार रपया उस ढ़िदया जाए लडिकन यह काम उसी हालत म होना चाडिहए जबडिक हम और तम हार दवारा डिनयक त महल ल क चार भल आदमी मरी पत नी की सच चरिरतरता क सबध म आवश स त हो जाए

पतर पर छह रोज पहल की तारीख पडी थी मझ यह समझन म दर न लगी डिक रायबहादर साहब गत हो चक ह पतर मन बड बाब क सामन मज पर रखा ढ़िदया इजीडिनयर साहब और परोफसर साहब भी झककर पढन लग

चाय बमजा हो गई हम सभी उठकर रायबहादर साहब क यहा गए उनका रोबीला चहरा रोग और मानलिसक सिचताओ स जजर होकर मत य क बाद भी उनक अडितम ढ़िदनो क असीम कष टो का परिरचय द रहा था मत रायबहादर क चहर को दखत हए उनक साथ बीत इतन वष की स मडितया मर मन म जाग उठी

रायबहादर बाब डिगराजडिकशन बीए उन निहदस ताडिनयो म स थ जिजन ह तकदीर की चक क कारण इeल म जनम नही षटिमल पाया था उनका रग भी गोरा न था बशकिक गहए स काल की ओर ही अषटिधक झकता हआ था डिफर भरसक उन होन अपन-आपको अगरजनमा ही बनाए रक खा गरीब निहदसताडिनयो पर अकड ढ़िदखान म व सदा अगरजो स चार जत आग रह कई निहदीवाढ़िदयो न उनस शदध नाम डिगरिरराजकष ण रखन को कहा मगर व उन ह मख बतलाकर डिगराज ही बन रह रायबहादर डिगराजडिकशन क नाम क साथ बीए जोडना भी डिनतात आवश यक था सन 23 म रायबहादर डिगराज अपनी डिबरादरी क रायसाहब दीनानाथ की बदौलत इलाहाबाद म छोट लाट क दफतर म भरती हए थ अपनी अगरजपरस ती और हाईक लास खशामद क दम पर रामबहादर ऊची करसिसयो पर चढ बठ स वराज य होन पर आतरिरक कष ट भोगन क बावजद तीन वष तक स वराजी अफसरो नताओ और मडितरयो की भी बाअदब खशामद की डिगराज बाब इन लोगो क सामन जिजस परकार खद दम डिहलात उसी परकार अपन सामन अपन मातहतो की भी डिहलवात थ आजादी क बाद भी दफतर म अपना भला चाहनवाला कोई बाब उनक आग निहदी का एक शब द नही बोल सकता था और घर क लिलए भी यही मशहर था डिक रायबहादर की भस तक अगरजी म ही कारती अगर कोई कसर थी तो सही डिक ली डिगराज क वास त अगरजी का करिरया अaर भी भस बराबर ही था

रायबहादर डिगराज पहली लडाई क जमान क मॉन आदमी थ सबह आख खलत ही घटी बजात सफद कोट पतलन और साफ स लस फल ली आया का लडका घसीट छोटी हाजिजरी लकर हाजिजर होता ठीक आठ बज बडी हाजिजरी पर बठत बटी-बटा साथ होत पर ल ी डिगराज अा-डिबस कट-समाज म कभी न बठी परम कटटर छत-पाकवाली न होत हए भी मास-मछली स उन ह परहज था बशीरत चपरासी क बाप मन न बावचv को हफत म दो ढ़िदन डयटी दनी पडती थी घर क डिनचल डिहस स म डिवलायती रसोई थी एक तरह स कहना चाडिहए डिक नीच का परा घर ही डिवलायती था वहा ल ी डिगराज क बजाय फल ली आया का सामराज य था फल ली पहल अगरजी कोढ़िठयो म काम करती थी अगरजी ढग स निहदस थानी बोलती ह अगरजी घर क कायद जानती ह छोटी-बडी हाजिजरी लच डिनर चाय सबका समय साधती थी इसलिलए डिगराज बाब क बाब डिनयम स दो पग खान स पहल चसडिकयो म मयादा करत थ फली उसका इतजाम भी बखबी कर दती थी इसलिलए आमतौर पर मजाक-मजाक म ही मशहर हो गया था डिक रायबहादर साहब स कोई काम करवान क वास त बजाय ली डिगराज क ल ी फल ली की लिसफारिरश जयादह परअसर होती ह

वस राजबहादर डिगराज म डिकसी न भी कोई ऐब की बात नही दखी-सनी थी अगर ऐब था तो यही डिक व मॉन थ चरट मह म लगाए बगर व बात नही कर पात थ अगर कोई निहदी सभा का चदा मागन आए तो उसस अकडकर कहत डिक मॉन जमान म गवार भाषाओ का उदधार करना डिहमाकत की बात ह धम क सबध म पहल तो व यह कहा करत थ डिक यह ढोग और पागलपन की वस त ह मगर बाद म उस इडियन कल चर का एक सनातन रप मानकर सहन कर जात थ डिगराज साहब थोडा-बहत लन-दन का काम करत थ और उसकी बदौलत उन होन हलिसयत भी बनाई अच छा मॉन ढग का मकान बनवाया उसका नाम ढ़िद नाइटिटगल रकखा मोटर खरीदी सदा दो-चार नौकर पाल घर स लकर दफतर तक घडी साधकर सबस डयटी करवाई पत नी को भी षटिमलन क वास त फल ली क दवारा उनस अप वाइटमट लना पडता था ली इसस जल-फक गई डिक म फल ली स भी गई-बीती हो गई

ली डिगराज न अपन फहडपन म उनक ऊपर एक बहत बडा लाछन लगा ढ़िदया रायबहादर साहब लिसदधाततः और स वभावतः अवध रिरश तो स नफरत करत थ इसलिलए अपनी पत नी क दवारा झठा लाछन लगाए जान क बाद डिफर उन होन कभी उनका मह न दखा बडी लडकी क डिववाह क अवसर पर उन होन कन यादान इसलिलए स वय न डिकया डिक उन ह पजा क पटर पर अपनी पत नी क साथ बठना पडता

इसक बाद दो वष म ली डिगराज घल-घलकर मर गई मगर मरी भी तो डिनयडित क साथ षडयतर करक ठीक इनक रिरटायर होन क ढ़िदन रायबहादर डिगराज को बहत लिशकायत हई अपन बट-बटी स कहा तम हारी मममी को कभी टाइम का सस नही रहा अगर मरना ही था तो कल सबह मरती परसो सबह मर सकती थी आज शाम को दफतर म मरी फयरवल पाट हो जान क बाद कभी मर सकती थी जिजदगी म एडरस पान का यह पहला मौका आया था सो इस तरह तबाहोबबाद कर ढ़िदया ईडियट कही की

इसक बाद मरनवाली तो खर मर ही चकी थी मगर जो भी मातम-परसी क लिलए मह डिबसरत हए आए उन ह भी रायबहादर साहब की ाट खानी पडी जो कहता डिक साहब सनकर बडा दख हआ उसस ही कहत आपको दख करन की जररत क या ह मझ कोई दख नही हआ जो आदमी पदा होता ह उन सबको एक साथ फौरन मर जाना चाडिहए जाइए मर यहा मातम-परसी क लिलए आन की जररत नही

छोटी लडकी की शादी उन होन पत नी की मत य क तीन महीन बाद पव डिनश चय क अनसार ही की स वय ब याहनवाली लडकी और उनक पतर को इसम आपभितत थी मगर उन होन डिकसी की एक न सनी कहा आई हव नो रिरगा फॉर योर मम मी शी वाज एक परफक ट फल लडकी की शादी बडी धमधाम स की एक आईसीएस क बट को अपना दामाद बनाया और बहत कछ दान-दहज दकर रिरटायर होन क बाद भी रोब जतलाया

लडका रमश तब एमए फाइनल म पढ रहा था नामी तज था सदा फस ट क लास रका रहा एमए क बाद आईएएस म बठनवाला था लडकीवाल अनक व यलिt रमश की माग करन क लिलए रायबहादर की सवा म आन लग रायबहादर डिगराज को अब मातहत क लक पर न सही तो ब टीवालो पर ही चरट का रोब झाडकर भरपर सतोष षटिमल जाता था दहज क मामल म व पक क मॉन थ यानी पच चीस हजार मागत थ एकाध डिपछल जानकार न दहाई दी डिक आप तो दहज क डिवरदध थ उसको परानी परथा बतलात थ तो बोल साहब जब मझ स बड अफसर आईसीएस आदमी यानी मर समधी साहब दहज लन को मॉन परथा मानत ह तो मन भी अपन डिवचार बदल ढ़िदए ह डिनहायत साइढ़िटडिफक बात ह डिक आपको दामाद चाडिहए और मझ 25 हजार रपया मरा रमश आईएएस पास करगा आप अपनी लडकी का फयचर दखकर अगर इतनी रक कम दना स वीकार करत ह तो बढ़िठए वरना मरी करसी की गददी मली मत डिकजिजए

व ऐसी लडकी चाहत थ जो सदर हो बीए हो गाती नाचती हो सीना-डिपरोना-बनना जानती हो अगरजी म फटाफट बात कर अफसर डिकसम क मॉन महमानो की खाडितर करन म तमीजदार हो और ऊपर स उसका बाप नगद पच चीस हजार रपय भी द जाए डिबरादरी क कई अच छी हलिसयतवाल बढ़िटयो क बापो क चहर रायबहादर डिगराज क चरट की अकड स धआ-छआ हो गए

एक ढ़िदन इनक दवारा नौकर रखाए गए परान मातहत एक सजातीय बाब दवीशकर पधार डिगराज की मडिहमाओ का बखान करत हए उन होन कहा सर म आपकी च वायस को जानता ह और एक लडकी मरी नजर म ह

इन बाब क साथ उन होन रीता को दखन का अवसर पाया रीता रायसाहब चमनलाल की इकलौती बटी थी रायसाहब चमनलाल न अपन जमान म बड ऐश बड नाम डिकए व शहर की तवायफो क सरताज थ रस क घोडो क सरपस त थ और बड ही औला-पौला आदमी थ अपन जीवन-काल म लाखो कमाए और लाखो फक एक लडकी हई उस बड लाड स पाला-पोसा पढाया हाई स कल तक रीता न परीaाओ तथा वाद-डिववाद और नत य-परडितयोडिगताओ म अनक परस कार पराप त कर अपन डिपता को सतष ट डिकया था रायसाहब डिवधर थ रीता की एक डिवधवा मौसी उनकी लडकी की दखभाल करन क लिलए उनक यहा रहती थी सो तब तरह स उनकी ही हो गई थी रायसाहब न आख मदकर अपना घर अपनी रभिaता साली को सौप रक खा था

बाद म रायसाहब चमनलाल की जन मकली क गरह-नaतर पहट बडा घाटा आया ढ़िदवालिलए होन की नौबत आ गई अपनी लडकी क वास त कछ रकम बचान की नीयत स उन होन एक बगला अपनी साली क नाम स खरीदा और लगभग एक लाख रपया नगद और जवरो क रप म बचाकर उसी क नाम स जमा करवा ढ़िदया डिफर रायसाहब ढ़िदवालिलए हो गए और जिजस ढ़िदन उन ह अपनी महलनमा कोठी सदा क लिलए छोडनी थी उस ढ़िदन उन होन गहर नश म अपनी कनपटी पर रिरवाल वर रखकर अपनी इहलीला समाप त कर दी रायसाहब की मत य क बाद मौसी सयानी हो गई और रीता अनाथ

लडकी दखन गए तो उसकी दो चोढ़िटयो म डित तलिलयो जस रिरबन दखकर रायबहादर साहब क पशन पराप त जीवन म नई रस की गलाबी आई अनक वष का सोया हआ मॉन पत नी का अभाव जाग उठा लडकी रीता बातचीत म तज आख नचान म बाकमल और हसन म डिबजली थी दखकर लौट तो रास त म दवीशकर स बोल लडकी तो अच छी ह और दहज का भी मझ कोई खास नही क योडिक तम तो जानत ही हो डिक म इन सब मामलो म बडा मॉन ह खाली एक परयोजन ह क - अ - क या नाम क आई मीन तम हारा क या खयाल ह दवीशकर अभी तो म भी शादी कर सकता ह

दवीशकर रायबहादर को घरत लग मह पर खशामद स हा क बजाय ना भला क यो कर कहत मौसी क लिलए इसस बढकर काई शभ सवाद न हो सकता था अठारह वष की आय की रीता छsपन वषvय रायबहादर डिगराजडिकशन की पत नी बनी

और इसक बाद की तमाम बात अपन करम म बढ गई रीता न परथम ढ़िदन स ही अपन पडित स कोई सबध न रकखा हठपवक अपन कमर क अदर बद रही रायबहादर रपय-पस गहनो और खशामदो की बडी-बडी नमायश लगाकर हार गए डिफर एक ढ़िदन फल ली न बतलाया डिक रमश और रीता रायबहादर दवारा स थाडिपत सबध को भलकर परस पर नया सबध स थाडिपत कर रह ह रायबहादर आग हो गए रमश तब एमए क अडितम वष म पढ रहा था डिपता न करोध म अध होकर उस पर परहार डिकया और घर स डिनकाल ढ़िदया रीता तब भी उनकी न हई

रमश को दो महीन बाद ही ढ़िदल ली म कोई नौकरी षटिमल गई और उसक महीन-भर बाद ही रीता रायबहादर क घर स गायब होकर ढ़िदल ली पहच गई जान स पव वह एक अलबला काम कर गई थी महल ल क पच चास घरो म हर पत पर उनका लिलखा पोस टका उसक गायब होन क दसर ही ढ़िदन पहली ाक स पहचा उसम मातर इतना ही लिलखा था बाब डिगरिरराजकष ण न मझ जबरदस ती अपनी पत नी बनाया था मगर मन उन ह कभी अपना पडित न माना और न अपना धम ही ढ़िदया डिववाह स पहल मझ बतलाया गया डिक म उनक पतर को ब याही जाऊगी तब स मन उनक पतर को ही अपना पडित माना इस घर म आकर भी उन ह ही भगवान की साaी म अपन को सौपा और अब म अपन पडित क पास ही जा रही ह

रीता क भागन स रायबहादर बाब डिगराजडिकशन को इतना कष ट नही पहचा था जिजतना डिक उसक दवारा भज गए इस सावजडिनक पतर स व दखी हए इसक बाद रायबहादर का जीवन बदल गया उनम पजा-पाठ और आशकिसतकता की भावना जागी साथ ही अकलापन भी हठ पकड गया डिपछल आठ वष म व एक ढ़िदन भी अपन घर स बाहर डिनकलकर कही न गए लन-दन का काम करत थ वह भी धीर-धीर समाप त कर ढ़िदया महल ल म डिकसी स भी सपक न रक खा डिपछल कछ ढ़िदनो स बीमार थ मगर महल लवाल उनकी हालत दखन-पछन भी न गए जात तो षटिमलत भी नही और अचानक मर पास अब यह पतर आया

हम सभी महल लवाल एकाएक यह डिनणय न कर पाए डिक इस खिसथडित म क या करना चाडिहए वदयजी और बड बाब इस पa म थ डिक पलिलस को सचना द दी जाए और इस पतर को लिलखी हई बातो का अमल भी कानन क हाथो ही हो परत म तो मत व यलिt की अडितम इच छा परी करन क पa म था रायबहादर कस भी रह हो इसी महल ल क थ कइयो को उन होन कभी नौकरिरया भी ढ़िदलाई थी उपकार डिकया था इजीडिनयर साहब भी मर ही मत क थ बाद म सभी राजी हो गए महल ल क एक षटिमतर क पास रमश क पतर आया करत थ उसी स पता लकर तार भजा गया जिजसम यह स पष ट लिलख ढ़िदया था डिक यढ़िद कल परातःकाल तक तम स वय अथवा तम हारा पतर उततर न आएगा तो रायबहादर की अत योषटिM डिकरया महल लवालो दवारा ही पचनाम स सपन न कर दी जाएगी

सबह चार बज तार का जवाब आया डिक रमश टक सी दवारा ढ़िदल ली स चल रहा ह और सबह तक पहच जाएगा परातःकाल करीब-करीब सभी महल लवाल रायबहादर क घर पर उ पखिसथत थ तभी टक सी दरवाज पर रकी रमश रीता और तीन बच च उतर रमश क मह पर तो सामाजिजक लज जा और सकोच की मलिलन छाया थी परत रीता का चहरा सतज और डिनरतिवकार था

रीता क आन का सवाद पाकर अनक सतरिसतरया कौतहलवश आ गई रीता न रायबहादर की लाश क पास अपनी चडिडया तोडी और माग का सिसदर पोछा रमश न डिपता का अडितम सस कार डिकया सतरिसतरया रीता स तरह-तरह क परश न करती थी परत वह कोई उततर न दती थी डिकरयाकम इत याढ़िद म रायबहादर क सजा तीय नात-रिरश तदार आढ़िद बहत कम आए बरहमभोज म गरीबी स एकदम टट हए बराहमण ही आए डिकसी परकार डिकरयाकम समाप त हआ रमश क वहा स चलन का समय आया

मन रायबहादर क अडितम पतर क अनसार सभरात महल लवालो क साथ रीता-रमश को बलाकर सबक सामन उनका वह अडितम पतर पढा और वह तडिकया जो महरबद पटी म मन रखवा ढ़िदया था खलवाया फल ली और नौकरो को रायबहादर की इच छानसार रपय द ढ़िदए गए रायबहादर की अडितम माग पर रीता का डिनणय सनन क लिलए हम सभी उत सक बठ थ रीता बोली म धम और ईश वर क सम मख सचचरिरतर ह मन अपन तन-मन स उन ह सदा ससर ही माना धारमिमक कानन की जिजस मजबरी स उन होन मझ अपनी पत नी बनाया था उस मन डिवषटिधवत उनकी लाश को सौप भी ढ़िदया उनकी चडिडया उनका सिसदर उन ह सौपा लडिकन मरी चडिडया मरा सिसदर अaय ह कहकर उसन दर स अपन हाथ क नीच दबी हई रमाल की पोटली को उठाया उसम हरी चडिडया थी और एक चादी की डिडिबया थी चडिडया पहनी और डिबीया खोलकर रमश की और रखत हए बोली जिजन होन मरी गोद भरी ह उन होन मरी माग भी भरी ह - लीजिजए मरी माग भर दीजिजए

रमश न रीता की माग म सिसदर की रखा खीच दी डिफर रीता बोली घर क सबध म मझ कवल यही कहना ह डिक अगर आप पाच पच मझ दश चरिरतर मानत हो तो उस धमशाला बना दीजिजए

हमम स कोई खम ठोककर एकाएक यह नही कह पाया डिक रीता दश चरिरतर ह मन अनभव डिकया डिक सभी क मनो को इस परश न स धक का लगा था अपन परपरागत धारमिमक सामाजिजक सस कारो क कारण हम रीता को सचरिरतरा मानन स भी मन ही मन डिहचकत थ पर यो क या कह

रीता हमारी डिहचक पर एक बार कहकर उठ गई उसन कहा मझ रायबहादर साहब का घर और दस हजार रपय पान की इच छा नही मर पडित न मझ सहाग की छाव द रक खी ह लडिकन म आपक सामन कसौटी रखती ह - बोलिलए घर डिकसका ह

घर को छोडकर बाकी सब सामान क साथ रमश रीता और उनक बच च ढ़िदल ली चल गए हम अभी तक कोई डिनणय नही कर पाए घर की चाभी मर पास ह वह तोल ढ का लोह का टकडा इस समय मर मन-पराणो का बोझ बना हआ ह

(1961 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

परायभित अमतलाल नागर

जीवन वाढ़िटका का वसत डिवचारो का अधड भलो का पवत और ठोकरो का समह ह यौवन इसी अवसथा म मनय तयागी सदाचारी दश-भt एव समाज-भt भी बनत ह तथा अपन खन क जोश म वह काम कर ढ़िदखात ह जिजसस डिक उनका नाम ससार क इडितहास म सवणाaरो म लिलख ढ़िदया जाता ह तथा इसी आय म मनय डिवलासी

लोलपी और वयभिभचारी भी बन जाता ह और इस परकार अपन जीवन को दो कौडी का बनाकर पतन क खडड म डिगर जाता ह अत म पछताता ह परायभित करता ह परत परतयचा स डिनकाला हआ बाण डिफर वापस नही लौटता खोई हई सचची शाडित डिफर कही नही षटिमलती

मभिणधर सदर यवक था उसक पस (जब) म पसा था और पास म था नवीन उमगो स परिरत हदय वह भोला-भाला सशील यवक था बचारा सीध माग पर जा रहा था यारो न भटका ढ़िदया - दीन को पथ-हीन कर ढ़िदया उस डिनतय-परडित कोठो की सर कराई नई-नई परिरयो की बाकी झाकी ढ़िदखाई उसक उचचडिवचारो का उसकी महतवकाaाओ का अतयत डिनदयता क साथ गला घोट ाला गया बनावटी रप क बाजार न बचार मभिणधर को भरमा ढ़िदया डिपता स पसा मागता था वह अनाथालयो म चदा दन क बहान और उस आख बद कर बहाता था गदी नालिलयो म पाप की सरिरता म घभिणत वnयालयो म

ऐसी डिनराली थी उसकी लीला पडित जी वदध थ अनक कनयाओ क लिशaक थ वातसय परम क अवतार थ डिकसी भी बालिलका क घर खाली हाथ न जात थ षटिमठाई फल डिकताब नोटबक आढ़िद कछ न कछ ल कर ही जात थ तथा डिनतयपरडित पाठ सनकर परतयक को पारिरतोडिषक परदान करत थ बालिलकाए भी उनस अतयत डिहल-षटिमल गई थी उनक सरaकगण भी पडित जी की वातसयता दख गदगद हो जात थ घरवालो क बाद पडित जी ही अपनी छातराओ क डिनरीaक थ सरaक थ बालिलकाए इनक घर जाती हारमोडिनयम बजाती गाती हसती खलती कदती थी पडितजी इसस गदगद हो जात थ तथा बाहरवालो स परमाशर ढरकात हआ कहा करत इनही लडडिकयो क कारण मरा बढापा कटता चला जा रहा ह अनयथा अकल तो इस ससार म मरा एक ढ़िदवस भी काटना भारी पड जाता समसत ससार पडितजी की एक मह स परशसा करता था

बाहरवालो को इस परकार ठाट ढ़िदखाकर पडितजी दसर ही परकार का खल खला करत थ वह अपनी नवयौवना सदर छातराओ को अनय डिवषयो क साथ-साथ परम का पाठ भी पढाया करत थ परत वह परम डिवशदध परम नही वरन परम की आड म भोगलिलsसा की लिशaा थी सतीतव डिवकरय का पाठ था काम-वासना का पाठ पढाकर भोली-भाली बालिलकाओ का जीवन नM कराकर दलाली खान की चाल थी टटटी की आड म लिशकार खला जाता था पडितजी क आस-पास यडिनवरसिसटी तथा कालज क छातर इस परकार भिभनभिभनाया करत थ जिजस परकार डिक गड क आस पास मखिकखया डिवलिचतर थ पडितजी और अदभत थी उनकी माया

रायबहादर ॉ शकरलाल अगनिeनहोतरी का सथान समाज म बहत ऊचा था सभा-सोसाइटी क हाडिकम-हककाम म आदर की दषटिM स दख जात थ वह उनक थी एक कनया - मtा वह हजारो म एक थी - सदरता और सशीलता दोनो म दभाeयवश वदध पडितजी उस पढान क लिलए डिनयt डिकए गए भोली-भाली बालिलका अपन आदश को भलन लगी पडित जी न उसक डिनमल हदय म अपन कखितसत महामतर का बीजारोपण कर ढ़िदया था अनय यवती छातराओ की भाडित मtा भी पडित जी क यहा हारमोडिनयम सीखन जान लगी

पडितजी मtा क रप लावणय को डिकराए पर उठान क लिलए कोई मनचला पस वाला ढढन लग अत म मभिणधर को आपन अपना पातर चन लिलया नई-नई कलिलयो की खोज म भटकन वाला षटिमसिलद इस अपव कली का मदपान करन क लिलए आकलिलत हो उठा इस अवसर पर पडितजी की मटठी गम हो गई दसर ही ढ़िदवस मभिणधर को पडित जी क यहा जाना था वह सधया अतयत ही रमणीक थी मभिण न उस बडी परतीaा करन क पात पाया था आज वह अतयत परसनन था आज उस पडितजी क यहा जाना था वह लब-लब पग रखता हआ चला जा रहा था पडितजी क पापालय की ओर आज उस रपयो की वदी पर वासना-दवी को परसनन करन क लिलए बलिल चढानी थी

मtा पडितजी क यहा बठी हारमोडिनयम पर उगलिलया नचा रही थी और पडितजी उस पलडिकत नतरो स डिनहार रह थ वह बाजा बजान म वयसत थी साहसा मभिणधर क आ जान स हारमोडिनयम बद हो गया लजीली मtा कसv छोडकर एक ओर खडी हो गई पडितजी न डिकतना ही समझाया बटी इनस ल|ा न कर यह तो अपन ही ह जा बजा बाजा बजा अभयागत स|न क सवागत म एक गीत गा परत मtा को अभी ल|ा न न छोडा था वह अपन सथान पर अडिवचल खडी थी उसक सकोमल मनोहारी गाल ल|ावश अगरी की भाडित लाल हो रह थ

अलक आ-आकर उसका एक मधर चबन लन की चMा कर रही थी मभिणधर उस पर मर षटिमटा था वह उस समय बाहय ससार म नही रह गया था यह सब दख पडितजी गनिखसक गए अब उस परको^ म कवल दो ही थ

मभिणधर न मtा का हाथ पकडकर कहा आइए खडी कयो ह मर समीप बठ जाइए मभिणधर धM होता चला जा रहा था मtा जिझझक रही थी परत डिफर भी मौन थी मभिणधर न कहा - कया पडितजी न इस परकार आडितथय सतकार करना लिसखलाया ह डिक घर पर कोई पाहन आव और घरवाला चपचाप खडा रह शभ मर समीप बठ जाइए परम की डिवदयत कला दोनो क शरीर म परवश कर चकी थी मtा इस बार कछ न बोली वह मतर-मeध-सी मभिण क पीछ-पीछ चली आई तथा उसस कछ हटकर पलग पर बठ गई आपका शभ नाम मभिण न जरा मtा क डिनकट आत हए कहा मtा लजीली मtा न धीम सवर म कहा

बातो का परवाह बढा धीर-धीर समसत डिहचक जाती रही और और थोडी दर क पात मtा नीरस हो गई उसकी आब उतर गई थी

डिहजाब नौ उरमा रहबर शौहर नबी मानद अगर मानद शब-मानद शब दीगर नबी मानद

डिहचक खल गई थी मभिण और मtा का परम करमशः बढन लगा था मभिण षटिमसिलद था पप पर उसका परम तभी ही ठहर सकता ह जब तक उसम मद ह परत मtा का परम डिनमल और डिनकलक था वह पाप की सरिरता को पडिवतर परम की गगा समझकर बरोक-टोक बहती ही चली जा रही थी अचानक ठोकर लगी उसक नतर खल गए एक ढ़िदन उसन तथा समसत ससार न दखा डिक वह गभ स थी

समाज म हलचल मच गई शकरलाल जी की नाक तो कट ही गई वह डिकसी को मह ढ़िदखान क योeय न रह गए थ - ऐसा ही लोगो का डिवचार था असत जाडित-डिबरादरी जटी पच-सरपच आए पचायत का काय आरभ हआ मtा क बयान लिलए गए उसन आसओ क बीच लिससडिकयो क साथ-साथ समाज क सामन सपण घटना आदयोपात सना ाली - पडितजी का उसक भोल-भाल सवचछ हदय म काम-वासना का बीजारोपण करना ततपात उसका मभिणधर स परिरचय कराना आढ़िद समसत घटना उसन सना ाली पडितजी न डिगडडिगडात अपनी सफाई पश की तथा मtा स अपनी वदधावसथा पर तरस खान की पराथना की परत मभिणधर शात भाव स बठा रहा

पचो न सलाह दी बढो न हा म हा षटिमला ढ़िदया सरपच महोदय न अपना डिनणय सना ाला सारा दोष मtा क माथ मढा गया वह जाडितचयत कर दी गई रायबहादर क डिपता की भी वही राय थी जो पचो की थी मभिणधर और पडितजी को सचचरिरतरता का सरटिटडिफकट द डिनदyenषी करार द ढ़िदया गया कवल अबला मtा ही दख की धधकती हई अगनिeन म झलसन क लिलए छोड दी गई अत म अतयत कातर भाव स डिनससहाय मtा न सरपच की दोहाई दी - उसक चरणो म डिगर पडी सरपच घबराए हाय भरMा न उनह श कर लिलया था करोषटिधत हो उनहोन उस गरभिभणी डिनससहाय आशरय-हीना यवती को धकक मार कर डिनकाल दन की अनमडित द दी उनकी आजञा का पालन करन क लिलए निहद समाज को वासतव म पतन क खडड म डिगरान वाल नरराaस खशामदी टटट पीर बवचv भिभसती खर की कहावत को चरिरताथ करन वाल इस कलक क सचच अपराधी पडितजी ततaण उठ उस धकका मारकर डिनकालन ही वाल थ - अचानक आवाज आई - ठहरो अनयाय की सीमा भी परिरषटिमत होती ह तम लोगो न उसका भी उलघन कर ाला ह लोगो न नतर घमाकर दखा तो मभिणधर उततजिजत हो डिनल भाव स खडा कह रहा था निहद समाज अधा ह अतयाचारी ह एव उसक सवसवा अथात हमार माननीय पचगण अनपढ ह गवार ह और मख ह जिजनह खर एव खोट सतय और असतय की परख नही वह कया तो नयाय कर सकत ह और कया जाडित-उपकार इसका वासतडिवक अपराधी तो म ह इसका द तो मझ भोगना चाडिहए इस सशील बाला का सतीतव तो मन नM डिकया ह और मझस भी अषटिधक नीच ह यह बगला भगत बना हआ नीच पडित इस दराचारी न अपन सवाथ क लिलए न मालम डिकतनी बालाओ का जीवन नM कराया ह - उनह पथभरM कर ढ़िदया ह जिजस आदरणीय दषटिM स इस नीच को समाज म दखा जाता ह वासतव म यह नीच उसक योeय नही वरन यह नर पश ह लोलपी ह लपट ह सिसह की खाल ओढ हए तचछ गीदड ह - रगा लिसयार ह

सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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3 मन अपनी वसीयत म यह शत रक खी ह डिक मरी पत नी अगर मझ माफ कर द और गलत ही सही मगर जो पडितवरत उस पर आन पडा ह उस साधकर रमश को छोडकर बाइज जत यहा रह तो यह मकान और दस हजार रपया उस ढ़िदया जाए लडिकन यह काम उसी हालत म होना चाडिहए जबडिक हम और तम हार दवारा डिनयक त महल ल क चार भल आदमी मरी पत नी की सच चरिरतरता क सबध म आवश स त हो जाए

पतर पर छह रोज पहल की तारीख पडी थी मझ यह समझन म दर न लगी डिक रायबहादर साहब गत हो चक ह पतर मन बड बाब क सामन मज पर रखा ढ़िदया इजीडिनयर साहब और परोफसर साहब भी झककर पढन लग

चाय बमजा हो गई हम सभी उठकर रायबहादर साहब क यहा गए उनका रोबीला चहरा रोग और मानलिसक सिचताओ स जजर होकर मत य क बाद भी उनक अडितम ढ़िदनो क असीम कष टो का परिरचय द रहा था मत रायबहादर क चहर को दखत हए उनक साथ बीत इतन वष की स मडितया मर मन म जाग उठी

रायबहादर बाब डिगराजडिकशन बीए उन निहदस ताडिनयो म स थ जिजन ह तकदीर की चक क कारण इeल म जनम नही षटिमल पाया था उनका रग भी गोरा न था बशकिक गहए स काल की ओर ही अषटिधक झकता हआ था डिफर भरसक उन होन अपन-आपको अगरजनमा ही बनाए रक खा गरीब निहदसताडिनयो पर अकड ढ़िदखान म व सदा अगरजो स चार जत आग रह कई निहदीवाढ़िदयो न उनस शदध नाम डिगरिरराजकष ण रखन को कहा मगर व उन ह मख बतलाकर डिगराज ही बन रह रायबहादर डिगराजडिकशन क नाम क साथ बीए जोडना भी डिनतात आवश यक था सन 23 म रायबहादर डिगराज अपनी डिबरादरी क रायसाहब दीनानाथ की बदौलत इलाहाबाद म छोट लाट क दफतर म भरती हए थ अपनी अगरजपरस ती और हाईक लास खशामद क दम पर रामबहादर ऊची करसिसयो पर चढ बठ स वराज य होन पर आतरिरक कष ट भोगन क बावजद तीन वष तक स वराजी अफसरो नताओ और मडितरयो की भी बाअदब खशामद की डिगराज बाब इन लोगो क सामन जिजस परकार खद दम डिहलात उसी परकार अपन सामन अपन मातहतो की भी डिहलवात थ आजादी क बाद भी दफतर म अपना भला चाहनवाला कोई बाब उनक आग निहदी का एक शब द नही बोल सकता था और घर क लिलए भी यही मशहर था डिक रायबहादर की भस तक अगरजी म ही कारती अगर कोई कसर थी तो सही डिक ली डिगराज क वास त अगरजी का करिरया अaर भी भस बराबर ही था

रायबहादर डिगराज पहली लडाई क जमान क मॉन आदमी थ सबह आख खलत ही घटी बजात सफद कोट पतलन और साफ स लस फल ली आया का लडका घसीट छोटी हाजिजरी लकर हाजिजर होता ठीक आठ बज बडी हाजिजरी पर बठत बटी-बटा साथ होत पर ल ी डिगराज अा-डिबस कट-समाज म कभी न बठी परम कटटर छत-पाकवाली न होत हए भी मास-मछली स उन ह परहज था बशीरत चपरासी क बाप मन न बावचv को हफत म दो ढ़िदन डयटी दनी पडती थी घर क डिनचल डिहस स म डिवलायती रसोई थी एक तरह स कहना चाडिहए डिक नीच का परा घर ही डिवलायती था वहा ल ी डिगराज क बजाय फल ली आया का सामराज य था फल ली पहल अगरजी कोढ़िठयो म काम करती थी अगरजी ढग स निहदस थानी बोलती ह अगरजी घर क कायद जानती ह छोटी-बडी हाजिजरी लच डिनर चाय सबका समय साधती थी इसलिलए डिगराज बाब क बाब डिनयम स दो पग खान स पहल चसडिकयो म मयादा करत थ फली उसका इतजाम भी बखबी कर दती थी इसलिलए आमतौर पर मजाक-मजाक म ही मशहर हो गया था डिक रायबहादर साहब स कोई काम करवान क वास त बजाय ली डिगराज क ल ी फल ली की लिसफारिरश जयादह परअसर होती ह

वस राजबहादर डिगराज म डिकसी न भी कोई ऐब की बात नही दखी-सनी थी अगर ऐब था तो यही डिक व मॉन थ चरट मह म लगाए बगर व बात नही कर पात थ अगर कोई निहदी सभा का चदा मागन आए तो उसस अकडकर कहत डिक मॉन जमान म गवार भाषाओ का उदधार करना डिहमाकत की बात ह धम क सबध म पहल तो व यह कहा करत थ डिक यह ढोग और पागलपन की वस त ह मगर बाद म उस इडियन कल चर का एक सनातन रप मानकर सहन कर जात थ डिगराज साहब थोडा-बहत लन-दन का काम करत थ और उसकी बदौलत उन होन हलिसयत भी बनाई अच छा मॉन ढग का मकान बनवाया उसका नाम ढ़िद नाइटिटगल रकखा मोटर खरीदी सदा दो-चार नौकर पाल घर स लकर दफतर तक घडी साधकर सबस डयटी करवाई पत नी को भी षटिमलन क वास त फल ली क दवारा उनस अप वाइटमट लना पडता था ली इसस जल-फक गई डिक म फल ली स भी गई-बीती हो गई

ली डिगराज न अपन फहडपन म उनक ऊपर एक बहत बडा लाछन लगा ढ़िदया रायबहादर साहब लिसदधाततः और स वभावतः अवध रिरश तो स नफरत करत थ इसलिलए अपनी पत नी क दवारा झठा लाछन लगाए जान क बाद डिफर उन होन कभी उनका मह न दखा बडी लडकी क डिववाह क अवसर पर उन होन कन यादान इसलिलए स वय न डिकया डिक उन ह पजा क पटर पर अपनी पत नी क साथ बठना पडता

इसक बाद दो वष म ली डिगराज घल-घलकर मर गई मगर मरी भी तो डिनयडित क साथ षडयतर करक ठीक इनक रिरटायर होन क ढ़िदन रायबहादर डिगराज को बहत लिशकायत हई अपन बट-बटी स कहा तम हारी मममी को कभी टाइम का सस नही रहा अगर मरना ही था तो कल सबह मरती परसो सबह मर सकती थी आज शाम को दफतर म मरी फयरवल पाट हो जान क बाद कभी मर सकती थी जिजदगी म एडरस पान का यह पहला मौका आया था सो इस तरह तबाहोबबाद कर ढ़िदया ईडियट कही की

इसक बाद मरनवाली तो खर मर ही चकी थी मगर जो भी मातम-परसी क लिलए मह डिबसरत हए आए उन ह भी रायबहादर साहब की ाट खानी पडी जो कहता डिक साहब सनकर बडा दख हआ उसस ही कहत आपको दख करन की जररत क या ह मझ कोई दख नही हआ जो आदमी पदा होता ह उन सबको एक साथ फौरन मर जाना चाडिहए जाइए मर यहा मातम-परसी क लिलए आन की जररत नही

छोटी लडकी की शादी उन होन पत नी की मत य क तीन महीन बाद पव डिनश चय क अनसार ही की स वय ब याहनवाली लडकी और उनक पतर को इसम आपभितत थी मगर उन होन डिकसी की एक न सनी कहा आई हव नो रिरगा फॉर योर मम मी शी वाज एक परफक ट फल लडकी की शादी बडी धमधाम स की एक आईसीएस क बट को अपना दामाद बनाया और बहत कछ दान-दहज दकर रिरटायर होन क बाद भी रोब जतलाया

लडका रमश तब एमए फाइनल म पढ रहा था नामी तज था सदा फस ट क लास रका रहा एमए क बाद आईएएस म बठनवाला था लडकीवाल अनक व यलिt रमश की माग करन क लिलए रायबहादर की सवा म आन लग रायबहादर डिगराज को अब मातहत क लक पर न सही तो ब टीवालो पर ही चरट का रोब झाडकर भरपर सतोष षटिमल जाता था दहज क मामल म व पक क मॉन थ यानी पच चीस हजार मागत थ एकाध डिपछल जानकार न दहाई दी डिक आप तो दहज क डिवरदध थ उसको परानी परथा बतलात थ तो बोल साहब जब मझ स बड अफसर आईसीएस आदमी यानी मर समधी साहब दहज लन को मॉन परथा मानत ह तो मन भी अपन डिवचार बदल ढ़िदए ह डिनहायत साइढ़िटडिफक बात ह डिक आपको दामाद चाडिहए और मझ 25 हजार रपया मरा रमश आईएएस पास करगा आप अपनी लडकी का फयचर दखकर अगर इतनी रक कम दना स वीकार करत ह तो बढ़िठए वरना मरी करसी की गददी मली मत डिकजिजए

व ऐसी लडकी चाहत थ जो सदर हो बीए हो गाती नाचती हो सीना-डिपरोना-बनना जानती हो अगरजी म फटाफट बात कर अफसर डिकसम क मॉन महमानो की खाडितर करन म तमीजदार हो और ऊपर स उसका बाप नगद पच चीस हजार रपय भी द जाए डिबरादरी क कई अच छी हलिसयतवाल बढ़िटयो क बापो क चहर रायबहादर डिगराज क चरट की अकड स धआ-छआ हो गए

एक ढ़िदन इनक दवारा नौकर रखाए गए परान मातहत एक सजातीय बाब दवीशकर पधार डिगराज की मडिहमाओ का बखान करत हए उन होन कहा सर म आपकी च वायस को जानता ह और एक लडकी मरी नजर म ह

इन बाब क साथ उन होन रीता को दखन का अवसर पाया रीता रायसाहब चमनलाल की इकलौती बटी थी रायसाहब चमनलाल न अपन जमान म बड ऐश बड नाम डिकए व शहर की तवायफो क सरताज थ रस क घोडो क सरपस त थ और बड ही औला-पौला आदमी थ अपन जीवन-काल म लाखो कमाए और लाखो फक एक लडकी हई उस बड लाड स पाला-पोसा पढाया हाई स कल तक रीता न परीaाओ तथा वाद-डिववाद और नत य-परडितयोडिगताओ म अनक परस कार पराप त कर अपन डिपता को सतष ट डिकया था रायसाहब डिवधर थ रीता की एक डिवधवा मौसी उनकी लडकी की दखभाल करन क लिलए उनक यहा रहती थी सो तब तरह स उनकी ही हो गई थी रायसाहब न आख मदकर अपना घर अपनी रभिaता साली को सौप रक खा था

बाद म रायसाहब चमनलाल की जन मकली क गरह-नaतर पहट बडा घाटा आया ढ़िदवालिलए होन की नौबत आ गई अपनी लडकी क वास त कछ रकम बचान की नीयत स उन होन एक बगला अपनी साली क नाम स खरीदा और लगभग एक लाख रपया नगद और जवरो क रप म बचाकर उसी क नाम स जमा करवा ढ़िदया डिफर रायसाहब ढ़िदवालिलए हो गए और जिजस ढ़िदन उन ह अपनी महलनमा कोठी सदा क लिलए छोडनी थी उस ढ़िदन उन होन गहर नश म अपनी कनपटी पर रिरवाल वर रखकर अपनी इहलीला समाप त कर दी रायसाहब की मत य क बाद मौसी सयानी हो गई और रीता अनाथ

लडकी दखन गए तो उसकी दो चोढ़िटयो म डित तलिलयो जस रिरबन दखकर रायबहादर साहब क पशन पराप त जीवन म नई रस की गलाबी आई अनक वष का सोया हआ मॉन पत नी का अभाव जाग उठा लडकी रीता बातचीत म तज आख नचान म बाकमल और हसन म डिबजली थी दखकर लौट तो रास त म दवीशकर स बोल लडकी तो अच छी ह और दहज का भी मझ कोई खास नही क योडिक तम तो जानत ही हो डिक म इन सब मामलो म बडा मॉन ह खाली एक परयोजन ह क - अ - क या नाम क आई मीन तम हारा क या खयाल ह दवीशकर अभी तो म भी शादी कर सकता ह

दवीशकर रायबहादर को घरत लग मह पर खशामद स हा क बजाय ना भला क यो कर कहत मौसी क लिलए इसस बढकर काई शभ सवाद न हो सकता था अठारह वष की आय की रीता छsपन वषvय रायबहादर डिगराजडिकशन की पत नी बनी

और इसक बाद की तमाम बात अपन करम म बढ गई रीता न परथम ढ़िदन स ही अपन पडित स कोई सबध न रकखा हठपवक अपन कमर क अदर बद रही रायबहादर रपय-पस गहनो और खशामदो की बडी-बडी नमायश लगाकर हार गए डिफर एक ढ़िदन फल ली न बतलाया डिक रमश और रीता रायबहादर दवारा स थाडिपत सबध को भलकर परस पर नया सबध स थाडिपत कर रह ह रायबहादर आग हो गए रमश तब एमए क अडितम वष म पढ रहा था डिपता न करोध म अध होकर उस पर परहार डिकया और घर स डिनकाल ढ़िदया रीता तब भी उनकी न हई

रमश को दो महीन बाद ही ढ़िदल ली म कोई नौकरी षटिमल गई और उसक महीन-भर बाद ही रीता रायबहादर क घर स गायब होकर ढ़िदल ली पहच गई जान स पव वह एक अलबला काम कर गई थी महल ल क पच चास घरो म हर पत पर उनका लिलखा पोस टका उसक गायब होन क दसर ही ढ़िदन पहली ाक स पहचा उसम मातर इतना ही लिलखा था बाब डिगरिरराजकष ण न मझ जबरदस ती अपनी पत नी बनाया था मगर मन उन ह कभी अपना पडित न माना और न अपना धम ही ढ़िदया डिववाह स पहल मझ बतलाया गया डिक म उनक पतर को ब याही जाऊगी तब स मन उनक पतर को ही अपना पडित माना इस घर म आकर भी उन ह ही भगवान की साaी म अपन को सौपा और अब म अपन पडित क पास ही जा रही ह

रीता क भागन स रायबहादर बाब डिगराजडिकशन को इतना कष ट नही पहचा था जिजतना डिक उसक दवारा भज गए इस सावजडिनक पतर स व दखी हए इसक बाद रायबहादर का जीवन बदल गया उनम पजा-पाठ और आशकिसतकता की भावना जागी साथ ही अकलापन भी हठ पकड गया डिपछल आठ वष म व एक ढ़िदन भी अपन घर स बाहर डिनकलकर कही न गए लन-दन का काम करत थ वह भी धीर-धीर समाप त कर ढ़िदया महल ल म डिकसी स भी सपक न रक खा डिपछल कछ ढ़िदनो स बीमार थ मगर महल लवाल उनकी हालत दखन-पछन भी न गए जात तो षटिमलत भी नही और अचानक मर पास अब यह पतर आया

हम सभी महल लवाल एकाएक यह डिनणय न कर पाए डिक इस खिसथडित म क या करना चाडिहए वदयजी और बड बाब इस पa म थ डिक पलिलस को सचना द दी जाए और इस पतर को लिलखी हई बातो का अमल भी कानन क हाथो ही हो परत म तो मत व यलिt की अडितम इच छा परी करन क पa म था रायबहादर कस भी रह हो इसी महल ल क थ कइयो को उन होन कभी नौकरिरया भी ढ़िदलाई थी उपकार डिकया था इजीडिनयर साहब भी मर ही मत क थ बाद म सभी राजी हो गए महल ल क एक षटिमतर क पास रमश क पतर आया करत थ उसी स पता लकर तार भजा गया जिजसम यह स पष ट लिलख ढ़िदया था डिक यढ़िद कल परातःकाल तक तम स वय अथवा तम हारा पतर उततर न आएगा तो रायबहादर की अत योषटिM डिकरया महल लवालो दवारा ही पचनाम स सपन न कर दी जाएगी

सबह चार बज तार का जवाब आया डिक रमश टक सी दवारा ढ़िदल ली स चल रहा ह और सबह तक पहच जाएगा परातःकाल करीब-करीब सभी महल लवाल रायबहादर क घर पर उ पखिसथत थ तभी टक सी दरवाज पर रकी रमश रीता और तीन बच च उतर रमश क मह पर तो सामाजिजक लज जा और सकोच की मलिलन छाया थी परत रीता का चहरा सतज और डिनरतिवकार था

रीता क आन का सवाद पाकर अनक सतरिसतरया कौतहलवश आ गई रीता न रायबहादर की लाश क पास अपनी चडिडया तोडी और माग का सिसदर पोछा रमश न डिपता का अडितम सस कार डिकया सतरिसतरया रीता स तरह-तरह क परश न करती थी परत वह कोई उततर न दती थी डिकरयाकम इत याढ़िद म रायबहादर क सजा तीय नात-रिरश तदार आढ़िद बहत कम आए बरहमभोज म गरीबी स एकदम टट हए बराहमण ही आए डिकसी परकार डिकरयाकम समाप त हआ रमश क वहा स चलन का समय आया

मन रायबहादर क अडितम पतर क अनसार सभरात महल लवालो क साथ रीता-रमश को बलाकर सबक सामन उनका वह अडितम पतर पढा और वह तडिकया जो महरबद पटी म मन रखवा ढ़िदया था खलवाया फल ली और नौकरो को रायबहादर की इच छानसार रपय द ढ़िदए गए रायबहादर की अडितम माग पर रीता का डिनणय सनन क लिलए हम सभी उत सक बठ थ रीता बोली म धम और ईश वर क सम मख सचचरिरतर ह मन अपन तन-मन स उन ह सदा ससर ही माना धारमिमक कानन की जिजस मजबरी स उन होन मझ अपनी पत नी बनाया था उस मन डिवषटिधवत उनकी लाश को सौप भी ढ़िदया उनकी चडिडया उनका सिसदर उन ह सौपा लडिकन मरी चडिडया मरा सिसदर अaय ह कहकर उसन दर स अपन हाथ क नीच दबी हई रमाल की पोटली को उठाया उसम हरी चडिडया थी और एक चादी की डिडिबया थी चडिडया पहनी और डिबीया खोलकर रमश की और रखत हए बोली जिजन होन मरी गोद भरी ह उन होन मरी माग भी भरी ह - लीजिजए मरी माग भर दीजिजए

रमश न रीता की माग म सिसदर की रखा खीच दी डिफर रीता बोली घर क सबध म मझ कवल यही कहना ह डिक अगर आप पाच पच मझ दश चरिरतर मानत हो तो उस धमशाला बना दीजिजए

हमम स कोई खम ठोककर एकाएक यह नही कह पाया डिक रीता दश चरिरतर ह मन अनभव डिकया डिक सभी क मनो को इस परश न स धक का लगा था अपन परपरागत धारमिमक सामाजिजक सस कारो क कारण हम रीता को सचरिरतरा मानन स भी मन ही मन डिहचकत थ पर यो क या कह

रीता हमारी डिहचक पर एक बार कहकर उठ गई उसन कहा मझ रायबहादर साहब का घर और दस हजार रपय पान की इच छा नही मर पडित न मझ सहाग की छाव द रक खी ह लडिकन म आपक सामन कसौटी रखती ह - बोलिलए घर डिकसका ह

घर को छोडकर बाकी सब सामान क साथ रमश रीता और उनक बच च ढ़िदल ली चल गए हम अभी तक कोई डिनणय नही कर पाए घर की चाभी मर पास ह वह तोल ढ का लोह का टकडा इस समय मर मन-पराणो का बोझ बना हआ ह

(1961 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

परायभित अमतलाल नागर

जीवन वाढ़िटका का वसत डिवचारो का अधड भलो का पवत और ठोकरो का समह ह यौवन इसी अवसथा म मनय तयागी सदाचारी दश-भt एव समाज-भt भी बनत ह तथा अपन खन क जोश म वह काम कर ढ़िदखात ह जिजसस डिक उनका नाम ससार क इडितहास म सवणाaरो म लिलख ढ़िदया जाता ह तथा इसी आय म मनय डिवलासी

लोलपी और वयभिभचारी भी बन जाता ह और इस परकार अपन जीवन को दो कौडी का बनाकर पतन क खडड म डिगर जाता ह अत म पछताता ह परायभित करता ह परत परतयचा स डिनकाला हआ बाण डिफर वापस नही लौटता खोई हई सचची शाडित डिफर कही नही षटिमलती

मभिणधर सदर यवक था उसक पस (जब) म पसा था और पास म था नवीन उमगो स परिरत हदय वह भोला-भाला सशील यवक था बचारा सीध माग पर जा रहा था यारो न भटका ढ़िदया - दीन को पथ-हीन कर ढ़िदया उस डिनतय-परडित कोठो की सर कराई नई-नई परिरयो की बाकी झाकी ढ़िदखाई उसक उचचडिवचारो का उसकी महतवकाaाओ का अतयत डिनदयता क साथ गला घोट ाला गया बनावटी रप क बाजार न बचार मभिणधर को भरमा ढ़िदया डिपता स पसा मागता था वह अनाथालयो म चदा दन क बहान और उस आख बद कर बहाता था गदी नालिलयो म पाप की सरिरता म घभिणत वnयालयो म

ऐसी डिनराली थी उसकी लीला पडित जी वदध थ अनक कनयाओ क लिशaक थ वातसय परम क अवतार थ डिकसी भी बालिलका क घर खाली हाथ न जात थ षटिमठाई फल डिकताब नोटबक आढ़िद कछ न कछ ल कर ही जात थ तथा डिनतयपरडित पाठ सनकर परतयक को पारिरतोडिषक परदान करत थ बालिलकाए भी उनस अतयत डिहल-षटिमल गई थी उनक सरaकगण भी पडित जी की वातसयता दख गदगद हो जात थ घरवालो क बाद पडित जी ही अपनी छातराओ क डिनरीaक थ सरaक थ बालिलकाए इनक घर जाती हारमोडिनयम बजाती गाती हसती खलती कदती थी पडितजी इसस गदगद हो जात थ तथा बाहरवालो स परमाशर ढरकात हआ कहा करत इनही लडडिकयो क कारण मरा बढापा कटता चला जा रहा ह अनयथा अकल तो इस ससार म मरा एक ढ़िदवस भी काटना भारी पड जाता समसत ससार पडितजी की एक मह स परशसा करता था

बाहरवालो को इस परकार ठाट ढ़िदखाकर पडितजी दसर ही परकार का खल खला करत थ वह अपनी नवयौवना सदर छातराओ को अनय डिवषयो क साथ-साथ परम का पाठ भी पढाया करत थ परत वह परम डिवशदध परम नही वरन परम की आड म भोगलिलsसा की लिशaा थी सतीतव डिवकरय का पाठ था काम-वासना का पाठ पढाकर भोली-भाली बालिलकाओ का जीवन नM कराकर दलाली खान की चाल थी टटटी की आड म लिशकार खला जाता था पडितजी क आस-पास यडिनवरसिसटी तथा कालज क छातर इस परकार भिभनभिभनाया करत थ जिजस परकार डिक गड क आस पास मखिकखया डिवलिचतर थ पडितजी और अदभत थी उनकी माया

रायबहादर ॉ शकरलाल अगनिeनहोतरी का सथान समाज म बहत ऊचा था सभा-सोसाइटी क हाडिकम-हककाम म आदर की दषटिM स दख जात थ वह उनक थी एक कनया - मtा वह हजारो म एक थी - सदरता और सशीलता दोनो म दभाeयवश वदध पडितजी उस पढान क लिलए डिनयt डिकए गए भोली-भाली बालिलका अपन आदश को भलन लगी पडित जी न उसक डिनमल हदय म अपन कखितसत महामतर का बीजारोपण कर ढ़िदया था अनय यवती छातराओ की भाडित मtा भी पडित जी क यहा हारमोडिनयम सीखन जान लगी

पडितजी मtा क रप लावणय को डिकराए पर उठान क लिलए कोई मनचला पस वाला ढढन लग अत म मभिणधर को आपन अपना पातर चन लिलया नई-नई कलिलयो की खोज म भटकन वाला षटिमसिलद इस अपव कली का मदपान करन क लिलए आकलिलत हो उठा इस अवसर पर पडितजी की मटठी गम हो गई दसर ही ढ़िदवस मभिणधर को पडित जी क यहा जाना था वह सधया अतयत ही रमणीक थी मभिण न उस बडी परतीaा करन क पात पाया था आज वह अतयत परसनन था आज उस पडितजी क यहा जाना था वह लब-लब पग रखता हआ चला जा रहा था पडितजी क पापालय की ओर आज उस रपयो की वदी पर वासना-दवी को परसनन करन क लिलए बलिल चढानी थी

मtा पडितजी क यहा बठी हारमोडिनयम पर उगलिलया नचा रही थी और पडितजी उस पलडिकत नतरो स डिनहार रह थ वह बाजा बजान म वयसत थी साहसा मभिणधर क आ जान स हारमोडिनयम बद हो गया लजीली मtा कसv छोडकर एक ओर खडी हो गई पडितजी न डिकतना ही समझाया बटी इनस ल|ा न कर यह तो अपन ही ह जा बजा बाजा बजा अभयागत स|न क सवागत म एक गीत गा परत मtा को अभी ल|ा न न छोडा था वह अपन सथान पर अडिवचल खडी थी उसक सकोमल मनोहारी गाल ल|ावश अगरी की भाडित लाल हो रह थ

अलक आ-आकर उसका एक मधर चबन लन की चMा कर रही थी मभिणधर उस पर मर षटिमटा था वह उस समय बाहय ससार म नही रह गया था यह सब दख पडितजी गनिखसक गए अब उस परको^ म कवल दो ही थ

मभिणधर न मtा का हाथ पकडकर कहा आइए खडी कयो ह मर समीप बठ जाइए मभिणधर धM होता चला जा रहा था मtा जिझझक रही थी परत डिफर भी मौन थी मभिणधर न कहा - कया पडितजी न इस परकार आडितथय सतकार करना लिसखलाया ह डिक घर पर कोई पाहन आव और घरवाला चपचाप खडा रह शभ मर समीप बठ जाइए परम की डिवदयत कला दोनो क शरीर म परवश कर चकी थी मtा इस बार कछ न बोली वह मतर-मeध-सी मभिण क पीछ-पीछ चली आई तथा उसस कछ हटकर पलग पर बठ गई आपका शभ नाम मभिण न जरा मtा क डिनकट आत हए कहा मtा लजीली मtा न धीम सवर म कहा

बातो का परवाह बढा धीर-धीर समसत डिहचक जाती रही और और थोडी दर क पात मtा नीरस हो गई उसकी आब उतर गई थी

डिहजाब नौ उरमा रहबर शौहर नबी मानद अगर मानद शब-मानद शब दीगर नबी मानद

डिहचक खल गई थी मभिण और मtा का परम करमशः बढन लगा था मभिण षटिमसिलद था पप पर उसका परम तभी ही ठहर सकता ह जब तक उसम मद ह परत मtा का परम डिनमल और डिनकलक था वह पाप की सरिरता को पडिवतर परम की गगा समझकर बरोक-टोक बहती ही चली जा रही थी अचानक ठोकर लगी उसक नतर खल गए एक ढ़िदन उसन तथा समसत ससार न दखा डिक वह गभ स थी

समाज म हलचल मच गई शकरलाल जी की नाक तो कट ही गई वह डिकसी को मह ढ़िदखान क योeय न रह गए थ - ऐसा ही लोगो का डिवचार था असत जाडित-डिबरादरी जटी पच-सरपच आए पचायत का काय आरभ हआ मtा क बयान लिलए गए उसन आसओ क बीच लिससडिकयो क साथ-साथ समाज क सामन सपण घटना आदयोपात सना ाली - पडितजी का उसक भोल-भाल सवचछ हदय म काम-वासना का बीजारोपण करना ततपात उसका मभिणधर स परिरचय कराना आढ़िद समसत घटना उसन सना ाली पडितजी न डिगडडिगडात अपनी सफाई पश की तथा मtा स अपनी वदधावसथा पर तरस खान की पराथना की परत मभिणधर शात भाव स बठा रहा

पचो न सलाह दी बढो न हा म हा षटिमला ढ़िदया सरपच महोदय न अपना डिनणय सना ाला सारा दोष मtा क माथ मढा गया वह जाडितचयत कर दी गई रायबहादर क डिपता की भी वही राय थी जो पचो की थी मभिणधर और पडितजी को सचचरिरतरता का सरटिटडिफकट द डिनदyenषी करार द ढ़िदया गया कवल अबला मtा ही दख की धधकती हई अगनिeन म झलसन क लिलए छोड दी गई अत म अतयत कातर भाव स डिनससहाय मtा न सरपच की दोहाई दी - उसक चरणो म डिगर पडी सरपच घबराए हाय भरMा न उनह श कर लिलया था करोषटिधत हो उनहोन उस गरभिभणी डिनससहाय आशरय-हीना यवती को धकक मार कर डिनकाल दन की अनमडित द दी उनकी आजञा का पालन करन क लिलए निहद समाज को वासतव म पतन क खडड म डिगरान वाल नरराaस खशामदी टटट पीर बवचv भिभसती खर की कहावत को चरिरताथ करन वाल इस कलक क सचच अपराधी पडितजी ततaण उठ उस धकका मारकर डिनकालन ही वाल थ - अचानक आवाज आई - ठहरो अनयाय की सीमा भी परिरषटिमत होती ह तम लोगो न उसका भी उलघन कर ाला ह लोगो न नतर घमाकर दखा तो मभिणधर उततजिजत हो डिनल भाव स खडा कह रहा था निहद समाज अधा ह अतयाचारी ह एव उसक सवसवा अथात हमार माननीय पचगण अनपढ ह गवार ह और मख ह जिजनह खर एव खोट सतय और असतय की परख नही वह कया तो नयाय कर सकत ह और कया जाडित-उपकार इसका वासतडिवक अपराधी तो म ह इसका द तो मझ भोगना चाडिहए इस सशील बाला का सतीतव तो मन नM डिकया ह और मझस भी अषटिधक नीच ह यह बगला भगत बना हआ नीच पडित इस दराचारी न अपन सवाथ क लिलए न मालम डिकतनी बालाओ का जीवन नM कराया ह - उनह पथभरM कर ढ़िदया ह जिजस आदरणीय दषटिM स इस नीच को समाज म दखा जाता ह वासतव म यह नीच उसक योeय नही वरन यह नर पश ह लोलपी ह लपट ह सिसह की खाल ओढ हए तचछ गीदड ह - रगा लिसयार ह

सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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ली डिगराज न अपन फहडपन म उनक ऊपर एक बहत बडा लाछन लगा ढ़िदया रायबहादर साहब लिसदधाततः और स वभावतः अवध रिरश तो स नफरत करत थ इसलिलए अपनी पत नी क दवारा झठा लाछन लगाए जान क बाद डिफर उन होन कभी उनका मह न दखा बडी लडकी क डिववाह क अवसर पर उन होन कन यादान इसलिलए स वय न डिकया डिक उन ह पजा क पटर पर अपनी पत नी क साथ बठना पडता

इसक बाद दो वष म ली डिगराज घल-घलकर मर गई मगर मरी भी तो डिनयडित क साथ षडयतर करक ठीक इनक रिरटायर होन क ढ़िदन रायबहादर डिगराज को बहत लिशकायत हई अपन बट-बटी स कहा तम हारी मममी को कभी टाइम का सस नही रहा अगर मरना ही था तो कल सबह मरती परसो सबह मर सकती थी आज शाम को दफतर म मरी फयरवल पाट हो जान क बाद कभी मर सकती थी जिजदगी म एडरस पान का यह पहला मौका आया था सो इस तरह तबाहोबबाद कर ढ़िदया ईडियट कही की

इसक बाद मरनवाली तो खर मर ही चकी थी मगर जो भी मातम-परसी क लिलए मह डिबसरत हए आए उन ह भी रायबहादर साहब की ाट खानी पडी जो कहता डिक साहब सनकर बडा दख हआ उसस ही कहत आपको दख करन की जररत क या ह मझ कोई दख नही हआ जो आदमी पदा होता ह उन सबको एक साथ फौरन मर जाना चाडिहए जाइए मर यहा मातम-परसी क लिलए आन की जररत नही

छोटी लडकी की शादी उन होन पत नी की मत य क तीन महीन बाद पव डिनश चय क अनसार ही की स वय ब याहनवाली लडकी और उनक पतर को इसम आपभितत थी मगर उन होन डिकसी की एक न सनी कहा आई हव नो रिरगा फॉर योर मम मी शी वाज एक परफक ट फल लडकी की शादी बडी धमधाम स की एक आईसीएस क बट को अपना दामाद बनाया और बहत कछ दान-दहज दकर रिरटायर होन क बाद भी रोब जतलाया

लडका रमश तब एमए फाइनल म पढ रहा था नामी तज था सदा फस ट क लास रका रहा एमए क बाद आईएएस म बठनवाला था लडकीवाल अनक व यलिt रमश की माग करन क लिलए रायबहादर की सवा म आन लग रायबहादर डिगराज को अब मातहत क लक पर न सही तो ब टीवालो पर ही चरट का रोब झाडकर भरपर सतोष षटिमल जाता था दहज क मामल म व पक क मॉन थ यानी पच चीस हजार मागत थ एकाध डिपछल जानकार न दहाई दी डिक आप तो दहज क डिवरदध थ उसको परानी परथा बतलात थ तो बोल साहब जब मझ स बड अफसर आईसीएस आदमी यानी मर समधी साहब दहज लन को मॉन परथा मानत ह तो मन भी अपन डिवचार बदल ढ़िदए ह डिनहायत साइढ़िटडिफक बात ह डिक आपको दामाद चाडिहए और मझ 25 हजार रपया मरा रमश आईएएस पास करगा आप अपनी लडकी का फयचर दखकर अगर इतनी रक कम दना स वीकार करत ह तो बढ़िठए वरना मरी करसी की गददी मली मत डिकजिजए

व ऐसी लडकी चाहत थ जो सदर हो बीए हो गाती नाचती हो सीना-डिपरोना-बनना जानती हो अगरजी म फटाफट बात कर अफसर डिकसम क मॉन महमानो की खाडितर करन म तमीजदार हो और ऊपर स उसका बाप नगद पच चीस हजार रपय भी द जाए डिबरादरी क कई अच छी हलिसयतवाल बढ़िटयो क बापो क चहर रायबहादर डिगराज क चरट की अकड स धआ-छआ हो गए

एक ढ़िदन इनक दवारा नौकर रखाए गए परान मातहत एक सजातीय बाब दवीशकर पधार डिगराज की मडिहमाओ का बखान करत हए उन होन कहा सर म आपकी च वायस को जानता ह और एक लडकी मरी नजर म ह

इन बाब क साथ उन होन रीता को दखन का अवसर पाया रीता रायसाहब चमनलाल की इकलौती बटी थी रायसाहब चमनलाल न अपन जमान म बड ऐश बड नाम डिकए व शहर की तवायफो क सरताज थ रस क घोडो क सरपस त थ और बड ही औला-पौला आदमी थ अपन जीवन-काल म लाखो कमाए और लाखो फक एक लडकी हई उस बड लाड स पाला-पोसा पढाया हाई स कल तक रीता न परीaाओ तथा वाद-डिववाद और नत य-परडितयोडिगताओ म अनक परस कार पराप त कर अपन डिपता को सतष ट डिकया था रायसाहब डिवधर थ रीता की एक डिवधवा मौसी उनकी लडकी की दखभाल करन क लिलए उनक यहा रहती थी सो तब तरह स उनकी ही हो गई थी रायसाहब न आख मदकर अपना घर अपनी रभिaता साली को सौप रक खा था

बाद म रायसाहब चमनलाल की जन मकली क गरह-नaतर पहट बडा घाटा आया ढ़िदवालिलए होन की नौबत आ गई अपनी लडकी क वास त कछ रकम बचान की नीयत स उन होन एक बगला अपनी साली क नाम स खरीदा और लगभग एक लाख रपया नगद और जवरो क रप म बचाकर उसी क नाम स जमा करवा ढ़िदया डिफर रायसाहब ढ़िदवालिलए हो गए और जिजस ढ़िदन उन ह अपनी महलनमा कोठी सदा क लिलए छोडनी थी उस ढ़िदन उन होन गहर नश म अपनी कनपटी पर रिरवाल वर रखकर अपनी इहलीला समाप त कर दी रायसाहब की मत य क बाद मौसी सयानी हो गई और रीता अनाथ

लडकी दखन गए तो उसकी दो चोढ़िटयो म डित तलिलयो जस रिरबन दखकर रायबहादर साहब क पशन पराप त जीवन म नई रस की गलाबी आई अनक वष का सोया हआ मॉन पत नी का अभाव जाग उठा लडकी रीता बातचीत म तज आख नचान म बाकमल और हसन म डिबजली थी दखकर लौट तो रास त म दवीशकर स बोल लडकी तो अच छी ह और दहज का भी मझ कोई खास नही क योडिक तम तो जानत ही हो डिक म इन सब मामलो म बडा मॉन ह खाली एक परयोजन ह क - अ - क या नाम क आई मीन तम हारा क या खयाल ह दवीशकर अभी तो म भी शादी कर सकता ह

दवीशकर रायबहादर को घरत लग मह पर खशामद स हा क बजाय ना भला क यो कर कहत मौसी क लिलए इसस बढकर काई शभ सवाद न हो सकता था अठारह वष की आय की रीता छsपन वषvय रायबहादर डिगराजडिकशन की पत नी बनी

और इसक बाद की तमाम बात अपन करम म बढ गई रीता न परथम ढ़िदन स ही अपन पडित स कोई सबध न रकखा हठपवक अपन कमर क अदर बद रही रायबहादर रपय-पस गहनो और खशामदो की बडी-बडी नमायश लगाकर हार गए डिफर एक ढ़िदन फल ली न बतलाया डिक रमश और रीता रायबहादर दवारा स थाडिपत सबध को भलकर परस पर नया सबध स थाडिपत कर रह ह रायबहादर आग हो गए रमश तब एमए क अडितम वष म पढ रहा था डिपता न करोध म अध होकर उस पर परहार डिकया और घर स डिनकाल ढ़िदया रीता तब भी उनकी न हई

रमश को दो महीन बाद ही ढ़िदल ली म कोई नौकरी षटिमल गई और उसक महीन-भर बाद ही रीता रायबहादर क घर स गायब होकर ढ़िदल ली पहच गई जान स पव वह एक अलबला काम कर गई थी महल ल क पच चास घरो म हर पत पर उनका लिलखा पोस टका उसक गायब होन क दसर ही ढ़िदन पहली ाक स पहचा उसम मातर इतना ही लिलखा था बाब डिगरिरराजकष ण न मझ जबरदस ती अपनी पत नी बनाया था मगर मन उन ह कभी अपना पडित न माना और न अपना धम ही ढ़िदया डिववाह स पहल मझ बतलाया गया डिक म उनक पतर को ब याही जाऊगी तब स मन उनक पतर को ही अपना पडित माना इस घर म आकर भी उन ह ही भगवान की साaी म अपन को सौपा और अब म अपन पडित क पास ही जा रही ह

रीता क भागन स रायबहादर बाब डिगराजडिकशन को इतना कष ट नही पहचा था जिजतना डिक उसक दवारा भज गए इस सावजडिनक पतर स व दखी हए इसक बाद रायबहादर का जीवन बदल गया उनम पजा-पाठ और आशकिसतकता की भावना जागी साथ ही अकलापन भी हठ पकड गया डिपछल आठ वष म व एक ढ़िदन भी अपन घर स बाहर डिनकलकर कही न गए लन-दन का काम करत थ वह भी धीर-धीर समाप त कर ढ़िदया महल ल म डिकसी स भी सपक न रक खा डिपछल कछ ढ़िदनो स बीमार थ मगर महल लवाल उनकी हालत दखन-पछन भी न गए जात तो षटिमलत भी नही और अचानक मर पास अब यह पतर आया

हम सभी महल लवाल एकाएक यह डिनणय न कर पाए डिक इस खिसथडित म क या करना चाडिहए वदयजी और बड बाब इस पa म थ डिक पलिलस को सचना द दी जाए और इस पतर को लिलखी हई बातो का अमल भी कानन क हाथो ही हो परत म तो मत व यलिt की अडितम इच छा परी करन क पa म था रायबहादर कस भी रह हो इसी महल ल क थ कइयो को उन होन कभी नौकरिरया भी ढ़िदलाई थी उपकार डिकया था इजीडिनयर साहब भी मर ही मत क थ बाद म सभी राजी हो गए महल ल क एक षटिमतर क पास रमश क पतर आया करत थ उसी स पता लकर तार भजा गया जिजसम यह स पष ट लिलख ढ़िदया था डिक यढ़िद कल परातःकाल तक तम स वय अथवा तम हारा पतर उततर न आएगा तो रायबहादर की अत योषटिM डिकरया महल लवालो दवारा ही पचनाम स सपन न कर दी जाएगी

सबह चार बज तार का जवाब आया डिक रमश टक सी दवारा ढ़िदल ली स चल रहा ह और सबह तक पहच जाएगा परातःकाल करीब-करीब सभी महल लवाल रायबहादर क घर पर उ पखिसथत थ तभी टक सी दरवाज पर रकी रमश रीता और तीन बच च उतर रमश क मह पर तो सामाजिजक लज जा और सकोच की मलिलन छाया थी परत रीता का चहरा सतज और डिनरतिवकार था

रीता क आन का सवाद पाकर अनक सतरिसतरया कौतहलवश आ गई रीता न रायबहादर की लाश क पास अपनी चडिडया तोडी और माग का सिसदर पोछा रमश न डिपता का अडितम सस कार डिकया सतरिसतरया रीता स तरह-तरह क परश न करती थी परत वह कोई उततर न दती थी डिकरयाकम इत याढ़िद म रायबहादर क सजा तीय नात-रिरश तदार आढ़िद बहत कम आए बरहमभोज म गरीबी स एकदम टट हए बराहमण ही आए डिकसी परकार डिकरयाकम समाप त हआ रमश क वहा स चलन का समय आया

मन रायबहादर क अडितम पतर क अनसार सभरात महल लवालो क साथ रीता-रमश को बलाकर सबक सामन उनका वह अडितम पतर पढा और वह तडिकया जो महरबद पटी म मन रखवा ढ़िदया था खलवाया फल ली और नौकरो को रायबहादर की इच छानसार रपय द ढ़िदए गए रायबहादर की अडितम माग पर रीता का डिनणय सनन क लिलए हम सभी उत सक बठ थ रीता बोली म धम और ईश वर क सम मख सचचरिरतर ह मन अपन तन-मन स उन ह सदा ससर ही माना धारमिमक कानन की जिजस मजबरी स उन होन मझ अपनी पत नी बनाया था उस मन डिवषटिधवत उनकी लाश को सौप भी ढ़िदया उनकी चडिडया उनका सिसदर उन ह सौपा लडिकन मरी चडिडया मरा सिसदर अaय ह कहकर उसन दर स अपन हाथ क नीच दबी हई रमाल की पोटली को उठाया उसम हरी चडिडया थी और एक चादी की डिडिबया थी चडिडया पहनी और डिबीया खोलकर रमश की और रखत हए बोली जिजन होन मरी गोद भरी ह उन होन मरी माग भी भरी ह - लीजिजए मरी माग भर दीजिजए

रमश न रीता की माग म सिसदर की रखा खीच दी डिफर रीता बोली घर क सबध म मझ कवल यही कहना ह डिक अगर आप पाच पच मझ दश चरिरतर मानत हो तो उस धमशाला बना दीजिजए

हमम स कोई खम ठोककर एकाएक यह नही कह पाया डिक रीता दश चरिरतर ह मन अनभव डिकया डिक सभी क मनो को इस परश न स धक का लगा था अपन परपरागत धारमिमक सामाजिजक सस कारो क कारण हम रीता को सचरिरतरा मानन स भी मन ही मन डिहचकत थ पर यो क या कह

रीता हमारी डिहचक पर एक बार कहकर उठ गई उसन कहा मझ रायबहादर साहब का घर और दस हजार रपय पान की इच छा नही मर पडित न मझ सहाग की छाव द रक खी ह लडिकन म आपक सामन कसौटी रखती ह - बोलिलए घर डिकसका ह

घर को छोडकर बाकी सब सामान क साथ रमश रीता और उनक बच च ढ़िदल ली चल गए हम अभी तक कोई डिनणय नही कर पाए घर की चाभी मर पास ह वह तोल ढ का लोह का टकडा इस समय मर मन-पराणो का बोझ बना हआ ह

(1961 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

परायभित अमतलाल नागर

जीवन वाढ़िटका का वसत डिवचारो का अधड भलो का पवत और ठोकरो का समह ह यौवन इसी अवसथा म मनय तयागी सदाचारी दश-भt एव समाज-भt भी बनत ह तथा अपन खन क जोश म वह काम कर ढ़िदखात ह जिजसस डिक उनका नाम ससार क इडितहास म सवणाaरो म लिलख ढ़िदया जाता ह तथा इसी आय म मनय डिवलासी

लोलपी और वयभिभचारी भी बन जाता ह और इस परकार अपन जीवन को दो कौडी का बनाकर पतन क खडड म डिगर जाता ह अत म पछताता ह परायभित करता ह परत परतयचा स डिनकाला हआ बाण डिफर वापस नही लौटता खोई हई सचची शाडित डिफर कही नही षटिमलती

मभिणधर सदर यवक था उसक पस (जब) म पसा था और पास म था नवीन उमगो स परिरत हदय वह भोला-भाला सशील यवक था बचारा सीध माग पर जा रहा था यारो न भटका ढ़िदया - दीन को पथ-हीन कर ढ़िदया उस डिनतय-परडित कोठो की सर कराई नई-नई परिरयो की बाकी झाकी ढ़िदखाई उसक उचचडिवचारो का उसकी महतवकाaाओ का अतयत डिनदयता क साथ गला घोट ाला गया बनावटी रप क बाजार न बचार मभिणधर को भरमा ढ़िदया डिपता स पसा मागता था वह अनाथालयो म चदा दन क बहान और उस आख बद कर बहाता था गदी नालिलयो म पाप की सरिरता म घभिणत वnयालयो म

ऐसी डिनराली थी उसकी लीला पडित जी वदध थ अनक कनयाओ क लिशaक थ वातसय परम क अवतार थ डिकसी भी बालिलका क घर खाली हाथ न जात थ षटिमठाई फल डिकताब नोटबक आढ़िद कछ न कछ ल कर ही जात थ तथा डिनतयपरडित पाठ सनकर परतयक को पारिरतोडिषक परदान करत थ बालिलकाए भी उनस अतयत डिहल-षटिमल गई थी उनक सरaकगण भी पडित जी की वातसयता दख गदगद हो जात थ घरवालो क बाद पडित जी ही अपनी छातराओ क डिनरीaक थ सरaक थ बालिलकाए इनक घर जाती हारमोडिनयम बजाती गाती हसती खलती कदती थी पडितजी इसस गदगद हो जात थ तथा बाहरवालो स परमाशर ढरकात हआ कहा करत इनही लडडिकयो क कारण मरा बढापा कटता चला जा रहा ह अनयथा अकल तो इस ससार म मरा एक ढ़िदवस भी काटना भारी पड जाता समसत ससार पडितजी की एक मह स परशसा करता था

बाहरवालो को इस परकार ठाट ढ़िदखाकर पडितजी दसर ही परकार का खल खला करत थ वह अपनी नवयौवना सदर छातराओ को अनय डिवषयो क साथ-साथ परम का पाठ भी पढाया करत थ परत वह परम डिवशदध परम नही वरन परम की आड म भोगलिलsसा की लिशaा थी सतीतव डिवकरय का पाठ था काम-वासना का पाठ पढाकर भोली-भाली बालिलकाओ का जीवन नM कराकर दलाली खान की चाल थी टटटी की आड म लिशकार खला जाता था पडितजी क आस-पास यडिनवरसिसटी तथा कालज क छातर इस परकार भिभनभिभनाया करत थ जिजस परकार डिक गड क आस पास मखिकखया डिवलिचतर थ पडितजी और अदभत थी उनकी माया

रायबहादर ॉ शकरलाल अगनिeनहोतरी का सथान समाज म बहत ऊचा था सभा-सोसाइटी क हाडिकम-हककाम म आदर की दषटिM स दख जात थ वह उनक थी एक कनया - मtा वह हजारो म एक थी - सदरता और सशीलता दोनो म दभाeयवश वदध पडितजी उस पढान क लिलए डिनयt डिकए गए भोली-भाली बालिलका अपन आदश को भलन लगी पडित जी न उसक डिनमल हदय म अपन कखितसत महामतर का बीजारोपण कर ढ़िदया था अनय यवती छातराओ की भाडित मtा भी पडित जी क यहा हारमोडिनयम सीखन जान लगी

पडितजी मtा क रप लावणय को डिकराए पर उठान क लिलए कोई मनचला पस वाला ढढन लग अत म मभिणधर को आपन अपना पातर चन लिलया नई-नई कलिलयो की खोज म भटकन वाला षटिमसिलद इस अपव कली का मदपान करन क लिलए आकलिलत हो उठा इस अवसर पर पडितजी की मटठी गम हो गई दसर ही ढ़िदवस मभिणधर को पडित जी क यहा जाना था वह सधया अतयत ही रमणीक थी मभिण न उस बडी परतीaा करन क पात पाया था आज वह अतयत परसनन था आज उस पडितजी क यहा जाना था वह लब-लब पग रखता हआ चला जा रहा था पडितजी क पापालय की ओर आज उस रपयो की वदी पर वासना-दवी को परसनन करन क लिलए बलिल चढानी थी

मtा पडितजी क यहा बठी हारमोडिनयम पर उगलिलया नचा रही थी और पडितजी उस पलडिकत नतरो स डिनहार रह थ वह बाजा बजान म वयसत थी साहसा मभिणधर क आ जान स हारमोडिनयम बद हो गया लजीली मtा कसv छोडकर एक ओर खडी हो गई पडितजी न डिकतना ही समझाया बटी इनस ल|ा न कर यह तो अपन ही ह जा बजा बाजा बजा अभयागत स|न क सवागत म एक गीत गा परत मtा को अभी ल|ा न न छोडा था वह अपन सथान पर अडिवचल खडी थी उसक सकोमल मनोहारी गाल ल|ावश अगरी की भाडित लाल हो रह थ

अलक आ-आकर उसका एक मधर चबन लन की चMा कर रही थी मभिणधर उस पर मर षटिमटा था वह उस समय बाहय ससार म नही रह गया था यह सब दख पडितजी गनिखसक गए अब उस परको^ म कवल दो ही थ

मभिणधर न मtा का हाथ पकडकर कहा आइए खडी कयो ह मर समीप बठ जाइए मभिणधर धM होता चला जा रहा था मtा जिझझक रही थी परत डिफर भी मौन थी मभिणधर न कहा - कया पडितजी न इस परकार आडितथय सतकार करना लिसखलाया ह डिक घर पर कोई पाहन आव और घरवाला चपचाप खडा रह शभ मर समीप बठ जाइए परम की डिवदयत कला दोनो क शरीर म परवश कर चकी थी मtा इस बार कछ न बोली वह मतर-मeध-सी मभिण क पीछ-पीछ चली आई तथा उसस कछ हटकर पलग पर बठ गई आपका शभ नाम मभिण न जरा मtा क डिनकट आत हए कहा मtा लजीली मtा न धीम सवर म कहा

बातो का परवाह बढा धीर-धीर समसत डिहचक जाती रही और और थोडी दर क पात मtा नीरस हो गई उसकी आब उतर गई थी

डिहजाब नौ उरमा रहबर शौहर नबी मानद अगर मानद शब-मानद शब दीगर नबी मानद

डिहचक खल गई थी मभिण और मtा का परम करमशः बढन लगा था मभिण षटिमसिलद था पप पर उसका परम तभी ही ठहर सकता ह जब तक उसम मद ह परत मtा का परम डिनमल और डिनकलक था वह पाप की सरिरता को पडिवतर परम की गगा समझकर बरोक-टोक बहती ही चली जा रही थी अचानक ठोकर लगी उसक नतर खल गए एक ढ़िदन उसन तथा समसत ससार न दखा डिक वह गभ स थी

समाज म हलचल मच गई शकरलाल जी की नाक तो कट ही गई वह डिकसी को मह ढ़िदखान क योeय न रह गए थ - ऐसा ही लोगो का डिवचार था असत जाडित-डिबरादरी जटी पच-सरपच आए पचायत का काय आरभ हआ मtा क बयान लिलए गए उसन आसओ क बीच लिससडिकयो क साथ-साथ समाज क सामन सपण घटना आदयोपात सना ाली - पडितजी का उसक भोल-भाल सवचछ हदय म काम-वासना का बीजारोपण करना ततपात उसका मभिणधर स परिरचय कराना आढ़िद समसत घटना उसन सना ाली पडितजी न डिगडडिगडात अपनी सफाई पश की तथा मtा स अपनी वदधावसथा पर तरस खान की पराथना की परत मभिणधर शात भाव स बठा रहा

पचो न सलाह दी बढो न हा म हा षटिमला ढ़िदया सरपच महोदय न अपना डिनणय सना ाला सारा दोष मtा क माथ मढा गया वह जाडितचयत कर दी गई रायबहादर क डिपता की भी वही राय थी जो पचो की थी मभिणधर और पडितजी को सचचरिरतरता का सरटिटडिफकट द डिनदyenषी करार द ढ़िदया गया कवल अबला मtा ही दख की धधकती हई अगनिeन म झलसन क लिलए छोड दी गई अत म अतयत कातर भाव स डिनससहाय मtा न सरपच की दोहाई दी - उसक चरणो म डिगर पडी सरपच घबराए हाय भरMा न उनह श कर लिलया था करोषटिधत हो उनहोन उस गरभिभणी डिनससहाय आशरय-हीना यवती को धकक मार कर डिनकाल दन की अनमडित द दी उनकी आजञा का पालन करन क लिलए निहद समाज को वासतव म पतन क खडड म डिगरान वाल नरराaस खशामदी टटट पीर बवचv भिभसती खर की कहावत को चरिरताथ करन वाल इस कलक क सचच अपराधी पडितजी ततaण उठ उस धकका मारकर डिनकालन ही वाल थ - अचानक आवाज आई - ठहरो अनयाय की सीमा भी परिरषटिमत होती ह तम लोगो न उसका भी उलघन कर ाला ह लोगो न नतर घमाकर दखा तो मभिणधर उततजिजत हो डिनल भाव स खडा कह रहा था निहद समाज अधा ह अतयाचारी ह एव उसक सवसवा अथात हमार माननीय पचगण अनपढ ह गवार ह और मख ह जिजनह खर एव खोट सतय और असतय की परख नही वह कया तो नयाय कर सकत ह और कया जाडित-उपकार इसका वासतडिवक अपराधी तो म ह इसका द तो मझ भोगना चाडिहए इस सशील बाला का सतीतव तो मन नM डिकया ह और मझस भी अषटिधक नीच ह यह बगला भगत बना हआ नीच पडित इस दराचारी न अपन सवाथ क लिलए न मालम डिकतनी बालाओ का जीवन नM कराया ह - उनह पथभरM कर ढ़िदया ह जिजस आदरणीय दषटिM स इस नीच को समाज म दखा जाता ह वासतव म यह नीच उसक योeय नही वरन यह नर पश ह लोलपी ह लपट ह सिसह की खाल ओढ हए तचछ गीदड ह - रगा लिसयार ह

सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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बाद म रायसाहब चमनलाल की जन मकली क गरह-नaतर पहट बडा घाटा आया ढ़िदवालिलए होन की नौबत आ गई अपनी लडकी क वास त कछ रकम बचान की नीयत स उन होन एक बगला अपनी साली क नाम स खरीदा और लगभग एक लाख रपया नगद और जवरो क रप म बचाकर उसी क नाम स जमा करवा ढ़िदया डिफर रायसाहब ढ़िदवालिलए हो गए और जिजस ढ़िदन उन ह अपनी महलनमा कोठी सदा क लिलए छोडनी थी उस ढ़िदन उन होन गहर नश म अपनी कनपटी पर रिरवाल वर रखकर अपनी इहलीला समाप त कर दी रायसाहब की मत य क बाद मौसी सयानी हो गई और रीता अनाथ

लडकी दखन गए तो उसकी दो चोढ़िटयो म डित तलिलयो जस रिरबन दखकर रायबहादर साहब क पशन पराप त जीवन म नई रस की गलाबी आई अनक वष का सोया हआ मॉन पत नी का अभाव जाग उठा लडकी रीता बातचीत म तज आख नचान म बाकमल और हसन म डिबजली थी दखकर लौट तो रास त म दवीशकर स बोल लडकी तो अच छी ह और दहज का भी मझ कोई खास नही क योडिक तम तो जानत ही हो डिक म इन सब मामलो म बडा मॉन ह खाली एक परयोजन ह क - अ - क या नाम क आई मीन तम हारा क या खयाल ह दवीशकर अभी तो म भी शादी कर सकता ह

दवीशकर रायबहादर को घरत लग मह पर खशामद स हा क बजाय ना भला क यो कर कहत मौसी क लिलए इसस बढकर काई शभ सवाद न हो सकता था अठारह वष की आय की रीता छsपन वषvय रायबहादर डिगराजडिकशन की पत नी बनी

और इसक बाद की तमाम बात अपन करम म बढ गई रीता न परथम ढ़िदन स ही अपन पडित स कोई सबध न रकखा हठपवक अपन कमर क अदर बद रही रायबहादर रपय-पस गहनो और खशामदो की बडी-बडी नमायश लगाकर हार गए डिफर एक ढ़िदन फल ली न बतलाया डिक रमश और रीता रायबहादर दवारा स थाडिपत सबध को भलकर परस पर नया सबध स थाडिपत कर रह ह रायबहादर आग हो गए रमश तब एमए क अडितम वष म पढ रहा था डिपता न करोध म अध होकर उस पर परहार डिकया और घर स डिनकाल ढ़िदया रीता तब भी उनकी न हई

रमश को दो महीन बाद ही ढ़िदल ली म कोई नौकरी षटिमल गई और उसक महीन-भर बाद ही रीता रायबहादर क घर स गायब होकर ढ़िदल ली पहच गई जान स पव वह एक अलबला काम कर गई थी महल ल क पच चास घरो म हर पत पर उनका लिलखा पोस टका उसक गायब होन क दसर ही ढ़िदन पहली ाक स पहचा उसम मातर इतना ही लिलखा था बाब डिगरिरराजकष ण न मझ जबरदस ती अपनी पत नी बनाया था मगर मन उन ह कभी अपना पडित न माना और न अपना धम ही ढ़िदया डिववाह स पहल मझ बतलाया गया डिक म उनक पतर को ब याही जाऊगी तब स मन उनक पतर को ही अपना पडित माना इस घर म आकर भी उन ह ही भगवान की साaी म अपन को सौपा और अब म अपन पडित क पास ही जा रही ह

रीता क भागन स रायबहादर बाब डिगराजडिकशन को इतना कष ट नही पहचा था जिजतना डिक उसक दवारा भज गए इस सावजडिनक पतर स व दखी हए इसक बाद रायबहादर का जीवन बदल गया उनम पजा-पाठ और आशकिसतकता की भावना जागी साथ ही अकलापन भी हठ पकड गया डिपछल आठ वष म व एक ढ़िदन भी अपन घर स बाहर डिनकलकर कही न गए लन-दन का काम करत थ वह भी धीर-धीर समाप त कर ढ़िदया महल ल म डिकसी स भी सपक न रक खा डिपछल कछ ढ़िदनो स बीमार थ मगर महल लवाल उनकी हालत दखन-पछन भी न गए जात तो षटिमलत भी नही और अचानक मर पास अब यह पतर आया

हम सभी महल लवाल एकाएक यह डिनणय न कर पाए डिक इस खिसथडित म क या करना चाडिहए वदयजी और बड बाब इस पa म थ डिक पलिलस को सचना द दी जाए और इस पतर को लिलखी हई बातो का अमल भी कानन क हाथो ही हो परत म तो मत व यलिt की अडितम इच छा परी करन क पa म था रायबहादर कस भी रह हो इसी महल ल क थ कइयो को उन होन कभी नौकरिरया भी ढ़िदलाई थी उपकार डिकया था इजीडिनयर साहब भी मर ही मत क थ बाद म सभी राजी हो गए महल ल क एक षटिमतर क पास रमश क पतर आया करत थ उसी स पता लकर तार भजा गया जिजसम यह स पष ट लिलख ढ़िदया था डिक यढ़िद कल परातःकाल तक तम स वय अथवा तम हारा पतर उततर न आएगा तो रायबहादर की अत योषटिM डिकरया महल लवालो दवारा ही पचनाम स सपन न कर दी जाएगी

सबह चार बज तार का जवाब आया डिक रमश टक सी दवारा ढ़िदल ली स चल रहा ह और सबह तक पहच जाएगा परातःकाल करीब-करीब सभी महल लवाल रायबहादर क घर पर उ पखिसथत थ तभी टक सी दरवाज पर रकी रमश रीता और तीन बच च उतर रमश क मह पर तो सामाजिजक लज जा और सकोच की मलिलन छाया थी परत रीता का चहरा सतज और डिनरतिवकार था

रीता क आन का सवाद पाकर अनक सतरिसतरया कौतहलवश आ गई रीता न रायबहादर की लाश क पास अपनी चडिडया तोडी और माग का सिसदर पोछा रमश न डिपता का अडितम सस कार डिकया सतरिसतरया रीता स तरह-तरह क परश न करती थी परत वह कोई उततर न दती थी डिकरयाकम इत याढ़िद म रायबहादर क सजा तीय नात-रिरश तदार आढ़िद बहत कम आए बरहमभोज म गरीबी स एकदम टट हए बराहमण ही आए डिकसी परकार डिकरयाकम समाप त हआ रमश क वहा स चलन का समय आया

मन रायबहादर क अडितम पतर क अनसार सभरात महल लवालो क साथ रीता-रमश को बलाकर सबक सामन उनका वह अडितम पतर पढा और वह तडिकया जो महरबद पटी म मन रखवा ढ़िदया था खलवाया फल ली और नौकरो को रायबहादर की इच छानसार रपय द ढ़िदए गए रायबहादर की अडितम माग पर रीता का डिनणय सनन क लिलए हम सभी उत सक बठ थ रीता बोली म धम और ईश वर क सम मख सचचरिरतर ह मन अपन तन-मन स उन ह सदा ससर ही माना धारमिमक कानन की जिजस मजबरी स उन होन मझ अपनी पत नी बनाया था उस मन डिवषटिधवत उनकी लाश को सौप भी ढ़िदया उनकी चडिडया उनका सिसदर उन ह सौपा लडिकन मरी चडिडया मरा सिसदर अaय ह कहकर उसन दर स अपन हाथ क नीच दबी हई रमाल की पोटली को उठाया उसम हरी चडिडया थी और एक चादी की डिडिबया थी चडिडया पहनी और डिबीया खोलकर रमश की और रखत हए बोली जिजन होन मरी गोद भरी ह उन होन मरी माग भी भरी ह - लीजिजए मरी माग भर दीजिजए

रमश न रीता की माग म सिसदर की रखा खीच दी डिफर रीता बोली घर क सबध म मझ कवल यही कहना ह डिक अगर आप पाच पच मझ दश चरिरतर मानत हो तो उस धमशाला बना दीजिजए

हमम स कोई खम ठोककर एकाएक यह नही कह पाया डिक रीता दश चरिरतर ह मन अनभव डिकया डिक सभी क मनो को इस परश न स धक का लगा था अपन परपरागत धारमिमक सामाजिजक सस कारो क कारण हम रीता को सचरिरतरा मानन स भी मन ही मन डिहचकत थ पर यो क या कह

रीता हमारी डिहचक पर एक बार कहकर उठ गई उसन कहा मझ रायबहादर साहब का घर और दस हजार रपय पान की इच छा नही मर पडित न मझ सहाग की छाव द रक खी ह लडिकन म आपक सामन कसौटी रखती ह - बोलिलए घर डिकसका ह

घर को छोडकर बाकी सब सामान क साथ रमश रीता और उनक बच च ढ़िदल ली चल गए हम अभी तक कोई डिनणय नही कर पाए घर की चाभी मर पास ह वह तोल ढ का लोह का टकडा इस समय मर मन-पराणो का बोझ बना हआ ह

(1961 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

परायभित अमतलाल नागर

जीवन वाढ़िटका का वसत डिवचारो का अधड भलो का पवत और ठोकरो का समह ह यौवन इसी अवसथा म मनय तयागी सदाचारी दश-भt एव समाज-भt भी बनत ह तथा अपन खन क जोश म वह काम कर ढ़िदखात ह जिजसस डिक उनका नाम ससार क इडितहास म सवणाaरो म लिलख ढ़िदया जाता ह तथा इसी आय म मनय डिवलासी

लोलपी और वयभिभचारी भी बन जाता ह और इस परकार अपन जीवन को दो कौडी का बनाकर पतन क खडड म डिगर जाता ह अत म पछताता ह परायभित करता ह परत परतयचा स डिनकाला हआ बाण डिफर वापस नही लौटता खोई हई सचची शाडित डिफर कही नही षटिमलती

मभिणधर सदर यवक था उसक पस (जब) म पसा था और पास म था नवीन उमगो स परिरत हदय वह भोला-भाला सशील यवक था बचारा सीध माग पर जा रहा था यारो न भटका ढ़िदया - दीन को पथ-हीन कर ढ़िदया उस डिनतय-परडित कोठो की सर कराई नई-नई परिरयो की बाकी झाकी ढ़िदखाई उसक उचचडिवचारो का उसकी महतवकाaाओ का अतयत डिनदयता क साथ गला घोट ाला गया बनावटी रप क बाजार न बचार मभिणधर को भरमा ढ़िदया डिपता स पसा मागता था वह अनाथालयो म चदा दन क बहान और उस आख बद कर बहाता था गदी नालिलयो म पाप की सरिरता म घभिणत वnयालयो म

ऐसी डिनराली थी उसकी लीला पडित जी वदध थ अनक कनयाओ क लिशaक थ वातसय परम क अवतार थ डिकसी भी बालिलका क घर खाली हाथ न जात थ षटिमठाई फल डिकताब नोटबक आढ़िद कछ न कछ ल कर ही जात थ तथा डिनतयपरडित पाठ सनकर परतयक को पारिरतोडिषक परदान करत थ बालिलकाए भी उनस अतयत डिहल-षटिमल गई थी उनक सरaकगण भी पडित जी की वातसयता दख गदगद हो जात थ घरवालो क बाद पडित जी ही अपनी छातराओ क डिनरीaक थ सरaक थ बालिलकाए इनक घर जाती हारमोडिनयम बजाती गाती हसती खलती कदती थी पडितजी इसस गदगद हो जात थ तथा बाहरवालो स परमाशर ढरकात हआ कहा करत इनही लडडिकयो क कारण मरा बढापा कटता चला जा रहा ह अनयथा अकल तो इस ससार म मरा एक ढ़िदवस भी काटना भारी पड जाता समसत ससार पडितजी की एक मह स परशसा करता था

बाहरवालो को इस परकार ठाट ढ़िदखाकर पडितजी दसर ही परकार का खल खला करत थ वह अपनी नवयौवना सदर छातराओ को अनय डिवषयो क साथ-साथ परम का पाठ भी पढाया करत थ परत वह परम डिवशदध परम नही वरन परम की आड म भोगलिलsसा की लिशaा थी सतीतव डिवकरय का पाठ था काम-वासना का पाठ पढाकर भोली-भाली बालिलकाओ का जीवन नM कराकर दलाली खान की चाल थी टटटी की आड म लिशकार खला जाता था पडितजी क आस-पास यडिनवरसिसटी तथा कालज क छातर इस परकार भिभनभिभनाया करत थ जिजस परकार डिक गड क आस पास मखिकखया डिवलिचतर थ पडितजी और अदभत थी उनकी माया

रायबहादर ॉ शकरलाल अगनिeनहोतरी का सथान समाज म बहत ऊचा था सभा-सोसाइटी क हाडिकम-हककाम म आदर की दषटिM स दख जात थ वह उनक थी एक कनया - मtा वह हजारो म एक थी - सदरता और सशीलता दोनो म दभाeयवश वदध पडितजी उस पढान क लिलए डिनयt डिकए गए भोली-भाली बालिलका अपन आदश को भलन लगी पडित जी न उसक डिनमल हदय म अपन कखितसत महामतर का बीजारोपण कर ढ़िदया था अनय यवती छातराओ की भाडित मtा भी पडित जी क यहा हारमोडिनयम सीखन जान लगी

पडितजी मtा क रप लावणय को डिकराए पर उठान क लिलए कोई मनचला पस वाला ढढन लग अत म मभिणधर को आपन अपना पातर चन लिलया नई-नई कलिलयो की खोज म भटकन वाला षटिमसिलद इस अपव कली का मदपान करन क लिलए आकलिलत हो उठा इस अवसर पर पडितजी की मटठी गम हो गई दसर ही ढ़िदवस मभिणधर को पडित जी क यहा जाना था वह सधया अतयत ही रमणीक थी मभिण न उस बडी परतीaा करन क पात पाया था आज वह अतयत परसनन था आज उस पडितजी क यहा जाना था वह लब-लब पग रखता हआ चला जा रहा था पडितजी क पापालय की ओर आज उस रपयो की वदी पर वासना-दवी को परसनन करन क लिलए बलिल चढानी थी

मtा पडितजी क यहा बठी हारमोडिनयम पर उगलिलया नचा रही थी और पडितजी उस पलडिकत नतरो स डिनहार रह थ वह बाजा बजान म वयसत थी साहसा मभिणधर क आ जान स हारमोडिनयम बद हो गया लजीली मtा कसv छोडकर एक ओर खडी हो गई पडितजी न डिकतना ही समझाया बटी इनस ल|ा न कर यह तो अपन ही ह जा बजा बाजा बजा अभयागत स|न क सवागत म एक गीत गा परत मtा को अभी ल|ा न न छोडा था वह अपन सथान पर अडिवचल खडी थी उसक सकोमल मनोहारी गाल ल|ावश अगरी की भाडित लाल हो रह थ

अलक आ-आकर उसका एक मधर चबन लन की चMा कर रही थी मभिणधर उस पर मर षटिमटा था वह उस समय बाहय ससार म नही रह गया था यह सब दख पडितजी गनिखसक गए अब उस परको^ म कवल दो ही थ

मभिणधर न मtा का हाथ पकडकर कहा आइए खडी कयो ह मर समीप बठ जाइए मभिणधर धM होता चला जा रहा था मtा जिझझक रही थी परत डिफर भी मौन थी मभिणधर न कहा - कया पडितजी न इस परकार आडितथय सतकार करना लिसखलाया ह डिक घर पर कोई पाहन आव और घरवाला चपचाप खडा रह शभ मर समीप बठ जाइए परम की डिवदयत कला दोनो क शरीर म परवश कर चकी थी मtा इस बार कछ न बोली वह मतर-मeध-सी मभिण क पीछ-पीछ चली आई तथा उसस कछ हटकर पलग पर बठ गई आपका शभ नाम मभिण न जरा मtा क डिनकट आत हए कहा मtा लजीली मtा न धीम सवर म कहा

बातो का परवाह बढा धीर-धीर समसत डिहचक जाती रही और और थोडी दर क पात मtा नीरस हो गई उसकी आब उतर गई थी

डिहजाब नौ उरमा रहबर शौहर नबी मानद अगर मानद शब-मानद शब दीगर नबी मानद

डिहचक खल गई थी मभिण और मtा का परम करमशः बढन लगा था मभिण षटिमसिलद था पप पर उसका परम तभी ही ठहर सकता ह जब तक उसम मद ह परत मtा का परम डिनमल और डिनकलक था वह पाप की सरिरता को पडिवतर परम की गगा समझकर बरोक-टोक बहती ही चली जा रही थी अचानक ठोकर लगी उसक नतर खल गए एक ढ़िदन उसन तथा समसत ससार न दखा डिक वह गभ स थी

समाज म हलचल मच गई शकरलाल जी की नाक तो कट ही गई वह डिकसी को मह ढ़िदखान क योeय न रह गए थ - ऐसा ही लोगो का डिवचार था असत जाडित-डिबरादरी जटी पच-सरपच आए पचायत का काय आरभ हआ मtा क बयान लिलए गए उसन आसओ क बीच लिससडिकयो क साथ-साथ समाज क सामन सपण घटना आदयोपात सना ाली - पडितजी का उसक भोल-भाल सवचछ हदय म काम-वासना का बीजारोपण करना ततपात उसका मभिणधर स परिरचय कराना आढ़िद समसत घटना उसन सना ाली पडितजी न डिगडडिगडात अपनी सफाई पश की तथा मtा स अपनी वदधावसथा पर तरस खान की पराथना की परत मभिणधर शात भाव स बठा रहा

पचो न सलाह दी बढो न हा म हा षटिमला ढ़िदया सरपच महोदय न अपना डिनणय सना ाला सारा दोष मtा क माथ मढा गया वह जाडितचयत कर दी गई रायबहादर क डिपता की भी वही राय थी जो पचो की थी मभिणधर और पडितजी को सचचरिरतरता का सरटिटडिफकट द डिनदyenषी करार द ढ़िदया गया कवल अबला मtा ही दख की धधकती हई अगनिeन म झलसन क लिलए छोड दी गई अत म अतयत कातर भाव स डिनससहाय मtा न सरपच की दोहाई दी - उसक चरणो म डिगर पडी सरपच घबराए हाय भरMा न उनह श कर लिलया था करोषटिधत हो उनहोन उस गरभिभणी डिनससहाय आशरय-हीना यवती को धकक मार कर डिनकाल दन की अनमडित द दी उनकी आजञा का पालन करन क लिलए निहद समाज को वासतव म पतन क खडड म डिगरान वाल नरराaस खशामदी टटट पीर बवचv भिभसती खर की कहावत को चरिरताथ करन वाल इस कलक क सचच अपराधी पडितजी ततaण उठ उस धकका मारकर डिनकालन ही वाल थ - अचानक आवाज आई - ठहरो अनयाय की सीमा भी परिरषटिमत होती ह तम लोगो न उसका भी उलघन कर ाला ह लोगो न नतर घमाकर दखा तो मभिणधर उततजिजत हो डिनल भाव स खडा कह रहा था निहद समाज अधा ह अतयाचारी ह एव उसक सवसवा अथात हमार माननीय पचगण अनपढ ह गवार ह और मख ह जिजनह खर एव खोट सतय और असतय की परख नही वह कया तो नयाय कर सकत ह और कया जाडित-उपकार इसका वासतडिवक अपराधी तो म ह इसका द तो मझ भोगना चाडिहए इस सशील बाला का सतीतव तो मन नM डिकया ह और मझस भी अषटिधक नीच ह यह बगला भगत बना हआ नीच पडित इस दराचारी न अपन सवाथ क लिलए न मालम डिकतनी बालाओ का जीवन नM कराया ह - उनह पथभरM कर ढ़िदया ह जिजस आदरणीय दषटिM स इस नीच को समाज म दखा जाता ह वासतव म यह नीच उसक योeय नही वरन यह नर पश ह लोलपी ह लपट ह सिसह की खाल ओढ हए तचछ गीदड ह - रगा लिसयार ह

सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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सबह चार बज तार का जवाब आया डिक रमश टक सी दवारा ढ़िदल ली स चल रहा ह और सबह तक पहच जाएगा परातःकाल करीब-करीब सभी महल लवाल रायबहादर क घर पर उ पखिसथत थ तभी टक सी दरवाज पर रकी रमश रीता और तीन बच च उतर रमश क मह पर तो सामाजिजक लज जा और सकोच की मलिलन छाया थी परत रीता का चहरा सतज और डिनरतिवकार था

रीता क आन का सवाद पाकर अनक सतरिसतरया कौतहलवश आ गई रीता न रायबहादर की लाश क पास अपनी चडिडया तोडी और माग का सिसदर पोछा रमश न डिपता का अडितम सस कार डिकया सतरिसतरया रीता स तरह-तरह क परश न करती थी परत वह कोई उततर न दती थी डिकरयाकम इत याढ़िद म रायबहादर क सजा तीय नात-रिरश तदार आढ़िद बहत कम आए बरहमभोज म गरीबी स एकदम टट हए बराहमण ही आए डिकसी परकार डिकरयाकम समाप त हआ रमश क वहा स चलन का समय आया

मन रायबहादर क अडितम पतर क अनसार सभरात महल लवालो क साथ रीता-रमश को बलाकर सबक सामन उनका वह अडितम पतर पढा और वह तडिकया जो महरबद पटी म मन रखवा ढ़िदया था खलवाया फल ली और नौकरो को रायबहादर की इच छानसार रपय द ढ़िदए गए रायबहादर की अडितम माग पर रीता का डिनणय सनन क लिलए हम सभी उत सक बठ थ रीता बोली म धम और ईश वर क सम मख सचचरिरतर ह मन अपन तन-मन स उन ह सदा ससर ही माना धारमिमक कानन की जिजस मजबरी स उन होन मझ अपनी पत नी बनाया था उस मन डिवषटिधवत उनकी लाश को सौप भी ढ़िदया उनकी चडिडया उनका सिसदर उन ह सौपा लडिकन मरी चडिडया मरा सिसदर अaय ह कहकर उसन दर स अपन हाथ क नीच दबी हई रमाल की पोटली को उठाया उसम हरी चडिडया थी और एक चादी की डिडिबया थी चडिडया पहनी और डिबीया खोलकर रमश की और रखत हए बोली जिजन होन मरी गोद भरी ह उन होन मरी माग भी भरी ह - लीजिजए मरी माग भर दीजिजए

रमश न रीता की माग म सिसदर की रखा खीच दी डिफर रीता बोली घर क सबध म मझ कवल यही कहना ह डिक अगर आप पाच पच मझ दश चरिरतर मानत हो तो उस धमशाला बना दीजिजए

हमम स कोई खम ठोककर एकाएक यह नही कह पाया डिक रीता दश चरिरतर ह मन अनभव डिकया डिक सभी क मनो को इस परश न स धक का लगा था अपन परपरागत धारमिमक सामाजिजक सस कारो क कारण हम रीता को सचरिरतरा मानन स भी मन ही मन डिहचकत थ पर यो क या कह

रीता हमारी डिहचक पर एक बार कहकर उठ गई उसन कहा मझ रायबहादर साहब का घर और दस हजार रपय पान की इच छा नही मर पडित न मझ सहाग की छाव द रक खी ह लडिकन म आपक सामन कसौटी रखती ह - बोलिलए घर डिकसका ह

घर को छोडकर बाकी सब सामान क साथ रमश रीता और उनक बच च ढ़िदल ली चल गए हम अभी तक कोई डिनणय नही कर पाए घर की चाभी मर पास ह वह तोल ढ का लोह का टकडा इस समय मर मन-पराणो का बोझ बना हआ ह

(1961 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

परायभित अमतलाल नागर

जीवन वाढ़िटका का वसत डिवचारो का अधड भलो का पवत और ठोकरो का समह ह यौवन इसी अवसथा म मनय तयागी सदाचारी दश-भt एव समाज-भt भी बनत ह तथा अपन खन क जोश म वह काम कर ढ़िदखात ह जिजसस डिक उनका नाम ससार क इडितहास म सवणाaरो म लिलख ढ़िदया जाता ह तथा इसी आय म मनय डिवलासी

लोलपी और वयभिभचारी भी बन जाता ह और इस परकार अपन जीवन को दो कौडी का बनाकर पतन क खडड म डिगर जाता ह अत म पछताता ह परायभित करता ह परत परतयचा स डिनकाला हआ बाण डिफर वापस नही लौटता खोई हई सचची शाडित डिफर कही नही षटिमलती

मभिणधर सदर यवक था उसक पस (जब) म पसा था और पास म था नवीन उमगो स परिरत हदय वह भोला-भाला सशील यवक था बचारा सीध माग पर जा रहा था यारो न भटका ढ़िदया - दीन को पथ-हीन कर ढ़िदया उस डिनतय-परडित कोठो की सर कराई नई-नई परिरयो की बाकी झाकी ढ़िदखाई उसक उचचडिवचारो का उसकी महतवकाaाओ का अतयत डिनदयता क साथ गला घोट ाला गया बनावटी रप क बाजार न बचार मभिणधर को भरमा ढ़िदया डिपता स पसा मागता था वह अनाथालयो म चदा दन क बहान और उस आख बद कर बहाता था गदी नालिलयो म पाप की सरिरता म घभिणत वnयालयो म

ऐसी डिनराली थी उसकी लीला पडित जी वदध थ अनक कनयाओ क लिशaक थ वातसय परम क अवतार थ डिकसी भी बालिलका क घर खाली हाथ न जात थ षटिमठाई फल डिकताब नोटबक आढ़िद कछ न कछ ल कर ही जात थ तथा डिनतयपरडित पाठ सनकर परतयक को पारिरतोडिषक परदान करत थ बालिलकाए भी उनस अतयत डिहल-षटिमल गई थी उनक सरaकगण भी पडित जी की वातसयता दख गदगद हो जात थ घरवालो क बाद पडित जी ही अपनी छातराओ क डिनरीaक थ सरaक थ बालिलकाए इनक घर जाती हारमोडिनयम बजाती गाती हसती खलती कदती थी पडितजी इसस गदगद हो जात थ तथा बाहरवालो स परमाशर ढरकात हआ कहा करत इनही लडडिकयो क कारण मरा बढापा कटता चला जा रहा ह अनयथा अकल तो इस ससार म मरा एक ढ़िदवस भी काटना भारी पड जाता समसत ससार पडितजी की एक मह स परशसा करता था

बाहरवालो को इस परकार ठाट ढ़िदखाकर पडितजी दसर ही परकार का खल खला करत थ वह अपनी नवयौवना सदर छातराओ को अनय डिवषयो क साथ-साथ परम का पाठ भी पढाया करत थ परत वह परम डिवशदध परम नही वरन परम की आड म भोगलिलsसा की लिशaा थी सतीतव डिवकरय का पाठ था काम-वासना का पाठ पढाकर भोली-भाली बालिलकाओ का जीवन नM कराकर दलाली खान की चाल थी टटटी की आड म लिशकार खला जाता था पडितजी क आस-पास यडिनवरसिसटी तथा कालज क छातर इस परकार भिभनभिभनाया करत थ जिजस परकार डिक गड क आस पास मखिकखया डिवलिचतर थ पडितजी और अदभत थी उनकी माया

रायबहादर ॉ शकरलाल अगनिeनहोतरी का सथान समाज म बहत ऊचा था सभा-सोसाइटी क हाडिकम-हककाम म आदर की दषटिM स दख जात थ वह उनक थी एक कनया - मtा वह हजारो म एक थी - सदरता और सशीलता दोनो म दभाeयवश वदध पडितजी उस पढान क लिलए डिनयt डिकए गए भोली-भाली बालिलका अपन आदश को भलन लगी पडित जी न उसक डिनमल हदय म अपन कखितसत महामतर का बीजारोपण कर ढ़िदया था अनय यवती छातराओ की भाडित मtा भी पडित जी क यहा हारमोडिनयम सीखन जान लगी

पडितजी मtा क रप लावणय को डिकराए पर उठान क लिलए कोई मनचला पस वाला ढढन लग अत म मभिणधर को आपन अपना पातर चन लिलया नई-नई कलिलयो की खोज म भटकन वाला षटिमसिलद इस अपव कली का मदपान करन क लिलए आकलिलत हो उठा इस अवसर पर पडितजी की मटठी गम हो गई दसर ही ढ़िदवस मभिणधर को पडित जी क यहा जाना था वह सधया अतयत ही रमणीक थी मभिण न उस बडी परतीaा करन क पात पाया था आज वह अतयत परसनन था आज उस पडितजी क यहा जाना था वह लब-लब पग रखता हआ चला जा रहा था पडितजी क पापालय की ओर आज उस रपयो की वदी पर वासना-दवी को परसनन करन क लिलए बलिल चढानी थी

मtा पडितजी क यहा बठी हारमोडिनयम पर उगलिलया नचा रही थी और पडितजी उस पलडिकत नतरो स डिनहार रह थ वह बाजा बजान म वयसत थी साहसा मभिणधर क आ जान स हारमोडिनयम बद हो गया लजीली मtा कसv छोडकर एक ओर खडी हो गई पडितजी न डिकतना ही समझाया बटी इनस ल|ा न कर यह तो अपन ही ह जा बजा बाजा बजा अभयागत स|न क सवागत म एक गीत गा परत मtा को अभी ल|ा न न छोडा था वह अपन सथान पर अडिवचल खडी थी उसक सकोमल मनोहारी गाल ल|ावश अगरी की भाडित लाल हो रह थ

अलक आ-आकर उसका एक मधर चबन लन की चMा कर रही थी मभिणधर उस पर मर षटिमटा था वह उस समय बाहय ससार म नही रह गया था यह सब दख पडितजी गनिखसक गए अब उस परको^ म कवल दो ही थ

मभिणधर न मtा का हाथ पकडकर कहा आइए खडी कयो ह मर समीप बठ जाइए मभिणधर धM होता चला जा रहा था मtा जिझझक रही थी परत डिफर भी मौन थी मभिणधर न कहा - कया पडितजी न इस परकार आडितथय सतकार करना लिसखलाया ह डिक घर पर कोई पाहन आव और घरवाला चपचाप खडा रह शभ मर समीप बठ जाइए परम की डिवदयत कला दोनो क शरीर म परवश कर चकी थी मtा इस बार कछ न बोली वह मतर-मeध-सी मभिण क पीछ-पीछ चली आई तथा उसस कछ हटकर पलग पर बठ गई आपका शभ नाम मभिण न जरा मtा क डिनकट आत हए कहा मtा लजीली मtा न धीम सवर म कहा

बातो का परवाह बढा धीर-धीर समसत डिहचक जाती रही और और थोडी दर क पात मtा नीरस हो गई उसकी आब उतर गई थी

डिहजाब नौ उरमा रहबर शौहर नबी मानद अगर मानद शब-मानद शब दीगर नबी मानद

डिहचक खल गई थी मभिण और मtा का परम करमशः बढन लगा था मभिण षटिमसिलद था पप पर उसका परम तभी ही ठहर सकता ह जब तक उसम मद ह परत मtा का परम डिनमल और डिनकलक था वह पाप की सरिरता को पडिवतर परम की गगा समझकर बरोक-टोक बहती ही चली जा रही थी अचानक ठोकर लगी उसक नतर खल गए एक ढ़िदन उसन तथा समसत ससार न दखा डिक वह गभ स थी

समाज म हलचल मच गई शकरलाल जी की नाक तो कट ही गई वह डिकसी को मह ढ़िदखान क योeय न रह गए थ - ऐसा ही लोगो का डिवचार था असत जाडित-डिबरादरी जटी पच-सरपच आए पचायत का काय आरभ हआ मtा क बयान लिलए गए उसन आसओ क बीच लिससडिकयो क साथ-साथ समाज क सामन सपण घटना आदयोपात सना ाली - पडितजी का उसक भोल-भाल सवचछ हदय म काम-वासना का बीजारोपण करना ततपात उसका मभिणधर स परिरचय कराना आढ़िद समसत घटना उसन सना ाली पडितजी न डिगडडिगडात अपनी सफाई पश की तथा मtा स अपनी वदधावसथा पर तरस खान की पराथना की परत मभिणधर शात भाव स बठा रहा

पचो न सलाह दी बढो न हा म हा षटिमला ढ़िदया सरपच महोदय न अपना डिनणय सना ाला सारा दोष मtा क माथ मढा गया वह जाडितचयत कर दी गई रायबहादर क डिपता की भी वही राय थी जो पचो की थी मभिणधर और पडितजी को सचचरिरतरता का सरटिटडिफकट द डिनदyenषी करार द ढ़िदया गया कवल अबला मtा ही दख की धधकती हई अगनिeन म झलसन क लिलए छोड दी गई अत म अतयत कातर भाव स डिनससहाय मtा न सरपच की दोहाई दी - उसक चरणो म डिगर पडी सरपच घबराए हाय भरMा न उनह श कर लिलया था करोषटिधत हो उनहोन उस गरभिभणी डिनससहाय आशरय-हीना यवती को धकक मार कर डिनकाल दन की अनमडित द दी उनकी आजञा का पालन करन क लिलए निहद समाज को वासतव म पतन क खडड म डिगरान वाल नरराaस खशामदी टटट पीर बवचv भिभसती खर की कहावत को चरिरताथ करन वाल इस कलक क सचच अपराधी पडितजी ततaण उठ उस धकका मारकर डिनकालन ही वाल थ - अचानक आवाज आई - ठहरो अनयाय की सीमा भी परिरषटिमत होती ह तम लोगो न उसका भी उलघन कर ाला ह लोगो न नतर घमाकर दखा तो मभिणधर उततजिजत हो डिनल भाव स खडा कह रहा था निहद समाज अधा ह अतयाचारी ह एव उसक सवसवा अथात हमार माननीय पचगण अनपढ ह गवार ह और मख ह जिजनह खर एव खोट सतय और असतय की परख नही वह कया तो नयाय कर सकत ह और कया जाडित-उपकार इसका वासतडिवक अपराधी तो म ह इसका द तो मझ भोगना चाडिहए इस सशील बाला का सतीतव तो मन नM डिकया ह और मझस भी अषटिधक नीच ह यह बगला भगत बना हआ नीच पडित इस दराचारी न अपन सवाथ क लिलए न मालम डिकतनी बालाओ का जीवन नM कराया ह - उनह पथभरM कर ढ़िदया ह जिजस आदरणीय दषटिM स इस नीच को समाज म दखा जाता ह वासतव म यह नीच उसक योeय नही वरन यह नर पश ह लोलपी ह लपट ह सिसह की खाल ओढ हए तचछ गीदड ह - रगा लिसयार ह

सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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लोलपी और वयभिभचारी भी बन जाता ह और इस परकार अपन जीवन को दो कौडी का बनाकर पतन क खडड म डिगर जाता ह अत म पछताता ह परायभित करता ह परत परतयचा स डिनकाला हआ बाण डिफर वापस नही लौटता खोई हई सचची शाडित डिफर कही नही षटिमलती

मभिणधर सदर यवक था उसक पस (जब) म पसा था और पास म था नवीन उमगो स परिरत हदय वह भोला-भाला सशील यवक था बचारा सीध माग पर जा रहा था यारो न भटका ढ़िदया - दीन को पथ-हीन कर ढ़िदया उस डिनतय-परडित कोठो की सर कराई नई-नई परिरयो की बाकी झाकी ढ़िदखाई उसक उचचडिवचारो का उसकी महतवकाaाओ का अतयत डिनदयता क साथ गला घोट ाला गया बनावटी रप क बाजार न बचार मभिणधर को भरमा ढ़िदया डिपता स पसा मागता था वह अनाथालयो म चदा दन क बहान और उस आख बद कर बहाता था गदी नालिलयो म पाप की सरिरता म घभिणत वnयालयो म

ऐसी डिनराली थी उसकी लीला पडित जी वदध थ अनक कनयाओ क लिशaक थ वातसय परम क अवतार थ डिकसी भी बालिलका क घर खाली हाथ न जात थ षटिमठाई फल डिकताब नोटबक आढ़िद कछ न कछ ल कर ही जात थ तथा डिनतयपरडित पाठ सनकर परतयक को पारिरतोडिषक परदान करत थ बालिलकाए भी उनस अतयत डिहल-षटिमल गई थी उनक सरaकगण भी पडित जी की वातसयता दख गदगद हो जात थ घरवालो क बाद पडित जी ही अपनी छातराओ क डिनरीaक थ सरaक थ बालिलकाए इनक घर जाती हारमोडिनयम बजाती गाती हसती खलती कदती थी पडितजी इसस गदगद हो जात थ तथा बाहरवालो स परमाशर ढरकात हआ कहा करत इनही लडडिकयो क कारण मरा बढापा कटता चला जा रहा ह अनयथा अकल तो इस ससार म मरा एक ढ़िदवस भी काटना भारी पड जाता समसत ससार पडितजी की एक मह स परशसा करता था

बाहरवालो को इस परकार ठाट ढ़िदखाकर पडितजी दसर ही परकार का खल खला करत थ वह अपनी नवयौवना सदर छातराओ को अनय डिवषयो क साथ-साथ परम का पाठ भी पढाया करत थ परत वह परम डिवशदध परम नही वरन परम की आड म भोगलिलsसा की लिशaा थी सतीतव डिवकरय का पाठ था काम-वासना का पाठ पढाकर भोली-भाली बालिलकाओ का जीवन नM कराकर दलाली खान की चाल थी टटटी की आड म लिशकार खला जाता था पडितजी क आस-पास यडिनवरसिसटी तथा कालज क छातर इस परकार भिभनभिभनाया करत थ जिजस परकार डिक गड क आस पास मखिकखया डिवलिचतर थ पडितजी और अदभत थी उनकी माया

रायबहादर ॉ शकरलाल अगनिeनहोतरी का सथान समाज म बहत ऊचा था सभा-सोसाइटी क हाडिकम-हककाम म आदर की दषटिM स दख जात थ वह उनक थी एक कनया - मtा वह हजारो म एक थी - सदरता और सशीलता दोनो म दभाeयवश वदध पडितजी उस पढान क लिलए डिनयt डिकए गए भोली-भाली बालिलका अपन आदश को भलन लगी पडित जी न उसक डिनमल हदय म अपन कखितसत महामतर का बीजारोपण कर ढ़िदया था अनय यवती छातराओ की भाडित मtा भी पडित जी क यहा हारमोडिनयम सीखन जान लगी

पडितजी मtा क रप लावणय को डिकराए पर उठान क लिलए कोई मनचला पस वाला ढढन लग अत म मभिणधर को आपन अपना पातर चन लिलया नई-नई कलिलयो की खोज म भटकन वाला षटिमसिलद इस अपव कली का मदपान करन क लिलए आकलिलत हो उठा इस अवसर पर पडितजी की मटठी गम हो गई दसर ही ढ़िदवस मभिणधर को पडित जी क यहा जाना था वह सधया अतयत ही रमणीक थी मभिण न उस बडी परतीaा करन क पात पाया था आज वह अतयत परसनन था आज उस पडितजी क यहा जाना था वह लब-लब पग रखता हआ चला जा रहा था पडितजी क पापालय की ओर आज उस रपयो की वदी पर वासना-दवी को परसनन करन क लिलए बलिल चढानी थी

मtा पडितजी क यहा बठी हारमोडिनयम पर उगलिलया नचा रही थी और पडितजी उस पलडिकत नतरो स डिनहार रह थ वह बाजा बजान म वयसत थी साहसा मभिणधर क आ जान स हारमोडिनयम बद हो गया लजीली मtा कसv छोडकर एक ओर खडी हो गई पडितजी न डिकतना ही समझाया बटी इनस ल|ा न कर यह तो अपन ही ह जा बजा बाजा बजा अभयागत स|न क सवागत म एक गीत गा परत मtा को अभी ल|ा न न छोडा था वह अपन सथान पर अडिवचल खडी थी उसक सकोमल मनोहारी गाल ल|ावश अगरी की भाडित लाल हो रह थ

अलक आ-आकर उसका एक मधर चबन लन की चMा कर रही थी मभिणधर उस पर मर षटिमटा था वह उस समय बाहय ससार म नही रह गया था यह सब दख पडितजी गनिखसक गए अब उस परको^ म कवल दो ही थ

मभिणधर न मtा का हाथ पकडकर कहा आइए खडी कयो ह मर समीप बठ जाइए मभिणधर धM होता चला जा रहा था मtा जिझझक रही थी परत डिफर भी मौन थी मभिणधर न कहा - कया पडितजी न इस परकार आडितथय सतकार करना लिसखलाया ह डिक घर पर कोई पाहन आव और घरवाला चपचाप खडा रह शभ मर समीप बठ जाइए परम की डिवदयत कला दोनो क शरीर म परवश कर चकी थी मtा इस बार कछ न बोली वह मतर-मeध-सी मभिण क पीछ-पीछ चली आई तथा उसस कछ हटकर पलग पर बठ गई आपका शभ नाम मभिण न जरा मtा क डिनकट आत हए कहा मtा लजीली मtा न धीम सवर म कहा

बातो का परवाह बढा धीर-धीर समसत डिहचक जाती रही और और थोडी दर क पात मtा नीरस हो गई उसकी आब उतर गई थी

डिहजाब नौ उरमा रहबर शौहर नबी मानद अगर मानद शब-मानद शब दीगर नबी मानद

डिहचक खल गई थी मभिण और मtा का परम करमशः बढन लगा था मभिण षटिमसिलद था पप पर उसका परम तभी ही ठहर सकता ह जब तक उसम मद ह परत मtा का परम डिनमल और डिनकलक था वह पाप की सरिरता को पडिवतर परम की गगा समझकर बरोक-टोक बहती ही चली जा रही थी अचानक ठोकर लगी उसक नतर खल गए एक ढ़िदन उसन तथा समसत ससार न दखा डिक वह गभ स थी

समाज म हलचल मच गई शकरलाल जी की नाक तो कट ही गई वह डिकसी को मह ढ़िदखान क योeय न रह गए थ - ऐसा ही लोगो का डिवचार था असत जाडित-डिबरादरी जटी पच-सरपच आए पचायत का काय आरभ हआ मtा क बयान लिलए गए उसन आसओ क बीच लिससडिकयो क साथ-साथ समाज क सामन सपण घटना आदयोपात सना ाली - पडितजी का उसक भोल-भाल सवचछ हदय म काम-वासना का बीजारोपण करना ततपात उसका मभिणधर स परिरचय कराना आढ़िद समसत घटना उसन सना ाली पडितजी न डिगडडिगडात अपनी सफाई पश की तथा मtा स अपनी वदधावसथा पर तरस खान की पराथना की परत मभिणधर शात भाव स बठा रहा

पचो न सलाह दी बढो न हा म हा षटिमला ढ़िदया सरपच महोदय न अपना डिनणय सना ाला सारा दोष मtा क माथ मढा गया वह जाडितचयत कर दी गई रायबहादर क डिपता की भी वही राय थी जो पचो की थी मभिणधर और पडितजी को सचचरिरतरता का सरटिटडिफकट द डिनदyenषी करार द ढ़िदया गया कवल अबला मtा ही दख की धधकती हई अगनिeन म झलसन क लिलए छोड दी गई अत म अतयत कातर भाव स डिनससहाय मtा न सरपच की दोहाई दी - उसक चरणो म डिगर पडी सरपच घबराए हाय भरMा न उनह श कर लिलया था करोषटिधत हो उनहोन उस गरभिभणी डिनससहाय आशरय-हीना यवती को धकक मार कर डिनकाल दन की अनमडित द दी उनकी आजञा का पालन करन क लिलए निहद समाज को वासतव म पतन क खडड म डिगरान वाल नरराaस खशामदी टटट पीर बवचv भिभसती खर की कहावत को चरिरताथ करन वाल इस कलक क सचच अपराधी पडितजी ततaण उठ उस धकका मारकर डिनकालन ही वाल थ - अचानक आवाज आई - ठहरो अनयाय की सीमा भी परिरषटिमत होती ह तम लोगो न उसका भी उलघन कर ाला ह लोगो न नतर घमाकर दखा तो मभिणधर उततजिजत हो डिनल भाव स खडा कह रहा था निहद समाज अधा ह अतयाचारी ह एव उसक सवसवा अथात हमार माननीय पचगण अनपढ ह गवार ह और मख ह जिजनह खर एव खोट सतय और असतय की परख नही वह कया तो नयाय कर सकत ह और कया जाडित-उपकार इसका वासतडिवक अपराधी तो म ह इसका द तो मझ भोगना चाडिहए इस सशील बाला का सतीतव तो मन नM डिकया ह और मझस भी अषटिधक नीच ह यह बगला भगत बना हआ नीच पडित इस दराचारी न अपन सवाथ क लिलए न मालम डिकतनी बालाओ का जीवन नM कराया ह - उनह पथभरM कर ढ़िदया ह जिजस आदरणीय दषटिM स इस नीच को समाज म दखा जाता ह वासतव म यह नीच उसक योeय नही वरन यह नर पश ह लोलपी ह लपट ह सिसह की खाल ओढ हए तचछ गीदड ह - रगा लिसयार ह

सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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अलक आ-आकर उसका एक मधर चबन लन की चMा कर रही थी मभिणधर उस पर मर षटिमटा था वह उस समय बाहय ससार म नही रह गया था यह सब दख पडितजी गनिखसक गए अब उस परको^ म कवल दो ही थ

मभिणधर न मtा का हाथ पकडकर कहा आइए खडी कयो ह मर समीप बठ जाइए मभिणधर धM होता चला जा रहा था मtा जिझझक रही थी परत डिफर भी मौन थी मभिणधर न कहा - कया पडितजी न इस परकार आडितथय सतकार करना लिसखलाया ह डिक घर पर कोई पाहन आव और घरवाला चपचाप खडा रह शभ मर समीप बठ जाइए परम की डिवदयत कला दोनो क शरीर म परवश कर चकी थी मtा इस बार कछ न बोली वह मतर-मeध-सी मभिण क पीछ-पीछ चली आई तथा उसस कछ हटकर पलग पर बठ गई आपका शभ नाम मभिण न जरा मtा क डिनकट आत हए कहा मtा लजीली मtा न धीम सवर म कहा

बातो का परवाह बढा धीर-धीर समसत डिहचक जाती रही और और थोडी दर क पात मtा नीरस हो गई उसकी आब उतर गई थी

डिहजाब नौ उरमा रहबर शौहर नबी मानद अगर मानद शब-मानद शब दीगर नबी मानद

डिहचक खल गई थी मभिण और मtा का परम करमशः बढन लगा था मभिण षटिमसिलद था पप पर उसका परम तभी ही ठहर सकता ह जब तक उसम मद ह परत मtा का परम डिनमल और डिनकलक था वह पाप की सरिरता को पडिवतर परम की गगा समझकर बरोक-टोक बहती ही चली जा रही थी अचानक ठोकर लगी उसक नतर खल गए एक ढ़िदन उसन तथा समसत ससार न दखा डिक वह गभ स थी

समाज म हलचल मच गई शकरलाल जी की नाक तो कट ही गई वह डिकसी को मह ढ़िदखान क योeय न रह गए थ - ऐसा ही लोगो का डिवचार था असत जाडित-डिबरादरी जटी पच-सरपच आए पचायत का काय आरभ हआ मtा क बयान लिलए गए उसन आसओ क बीच लिससडिकयो क साथ-साथ समाज क सामन सपण घटना आदयोपात सना ाली - पडितजी का उसक भोल-भाल सवचछ हदय म काम-वासना का बीजारोपण करना ततपात उसका मभिणधर स परिरचय कराना आढ़िद समसत घटना उसन सना ाली पडितजी न डिगडडिगडात अपनी सफाई पश की तथा मtा स अपनी वदधावसथा पर तरस खान की पराथना की परत मभिणधर शात भाव स बठा रहा

पचो न सलाह दी बढो न हा म हा षटिमला ढ़िदया सरपच महोदय न अपना डिनणय सना ाला सारा दोष मtा क माथ मढा गया वह जाडितचयत कर दी गई रायबहादर क डिपता की भी वही राय थी जो पचो की थी मभिणधर और पडितजी को सचचरिरतरता का सरटिटडिफकट द डिनदyenषी करार द ढ़िदया गया कवल अबला मtा ही दख की धधकती हई अगनिeन म झलसन क लिलए छोड दी गई अत म अतयत कातर भाव स डिनससहाय मtा न सरपच की दोहाई दी - उसक चरणो म डिगर पडी सरपच घबराए हाय भरMा न उनह श कर लिलया था करोषटिधत हो उनहोन उस गरभिभणी डिनससहाय आशरय-हीना यवती को धकक मार कर डिनकाल दन की अनमडित द दी उनकी आजञा का पालन करन क लिलए निहद समाज को वासतव म पतन क खडड म डिगरान वाल नरराaस खशामदी टटट पीर बवचv भिभसती खर की कहावत को चरिरताथ करन वाल इस कलक क सचच अपराधी पडितजी ततaण उठ उस धकका मारकर डिनकालन ही वाल थ - अचानक आवाज आई - ठहरो अनयाय की सीमा भी परिरषटिमत होती ह तम लोगो न उसका भी उलघन कर ाला ह लोगो न नतर घमाकर दखा तो मभिणधर उततजिजत हो डिनल भाव स खडा कह रहा था निहद समाज अधा ह अतयाचारी ह एव उसक सवसवा अथात हमार माननीय पचगण अनपढ ह गवार ह और मख ह जिजनह खर एव खोट सतय और असतय की परख नही वह कया तो नयाय कर सकत ह और कया जाडित-उपकार इसका वासतडिवक अपराधी तो म ह इसका द तो मझ भोगना चाडिहए इस सशील बाला का सतीतव तो मन नM डिकया ह और मझस भी अषटिधक नीच ह यह बगला भगत बना हआ नीच पडित इस दराचारी न अपन सवाथ क लिलए न मालम डिकतनी बालाओ का जीवन नM कराया ह - उनह पथभरM कर ढ़िदया ह जिजस आदरणीय दषटिM स इस नीच को समाज म दखा जाता ह वासतव म यह नीच उसक योeय नही वरन यह नर पश ह लोलपी ह लपट ह सिसह की खाल ओढ हए तचछ गीदड ह - रगा लिसयार ह

सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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सब लोग मभिणधर क ओजसवी मखमल को डिनहार रह थ मभिणधर अब मtा को सबोषटिधत कर कहन लगा मन भी पाप डिकया ह समाज दवारा दडित होन का वासतडिवक अषटिधकारी म ह म भी समाज एव लकषमी का परिरतयाग कर तमहार साथ चलगा तमह सवदा अपनी धमपतनी मानता हआ अपन इस घोर पाप का परायभित करगा भदर चलो अब इस अनयायी एव नीच समाज म एक aण भी रहना मझ पसद नही चलो मभिणधर मtा का कर पकडकर एक ओर चल ढ़िदया और जनता जादगर क अचरज भर तमाश की नाई इस दnय को दखती रह गई

लिसकदर हार गया अमतलाल नागर

अपन जमान स जीवनलाल का अनोखा सबध था जमाना उनका दोस त और दश मन एक साथ था उनका बड स बडा निनदक एक जगह पर उनकी परशसा करन क लिलए बाध य था और दसरी ओर उन पर अपनी जान डिनसार करनवाला उनका बड स बडा परशसक डिकसी न डिकसी बात क लिलए उनकी निनदा करन स बाज नही आता था भल ही ऐसा करन म उस दख ही क यो न हो परिरलिचत हो या अपरिरलिचत चाह जीवनलाल का शतर ही क यो न हो अगर मसीबत म ह तो वह बकह-बलाए आधी रात को भी तन-मन-धन स उसकी सहायता करन क लिलए तयार हो जात थ उस समय व अपन नफ-नकसान की तडिन क भी परवाह न करत थ लडिकन व यवहार म बडी ओछी तबीयत क थ अपन टक क लाभ क लिलए डिकसी की हजारो की हाडिन करा दन म उन ह तडिनक भी हाडिन न होती थी वह स तरी क सबध म भी बड मनमान थ इ|त-आबरदार लोग उनस अपन घर की सतरिसतरयो का परिरचय करान म डिहचकत थ और ऐसा करन पर भी व परायः जीवनलाल स जीत नही पात थ शहर क कई परडितषटि^त धनीमाडिनयो की घरल अथवा व यावसाषटियक अथवा दोनो तरह की आबरओ को उन होन अपन खबसरत लिशकज म जकड रखा था वह भी इस तरह डिक हम मासम ह तम हार गनाह म फसाए गए ह खद गनहगार नही

जीवन बाब तकदीर क लिसकदर थ बहत-स परष सदर होत ह मगर अक सर व ही सतरिसतरयो को अपनी ओर आकरतिषत कर पात ह जिजनका सौदय नारी जसा कोमल न होकर परष जसा कठोर होता ह ऐस लोग परषो क बीच म अपनी छाप छोडत ह और सतरिसतरयो म धाक जमात ह जीवनलाल ऐसा ही रप और ील-ौल लकर एक मामली-स क लक क यहा जन म थ अपन स कल-कॉलज क जीवन म व न कभी फल हए और न परोमोट जसी डिनचली शरणी म ही पास हए मगर अध ययन डिपरय लडको म उनकी डिगनती कभी नही हई हा खल-कद नाटक-जलस जस कामो म व हमशा चोटी क लीर मान गए और यही स बड-बड घरो क सहपाढ़िठयो क सहार उनक घरो म उनका आना-जाना भी आरभ हआ शर स ही उन ह ऊची हलिसयतवालो का साथ पसद था दस वष पहल जीवनलाल न एक नए स थाडिपत होनवाल ईटो की भटठ पर क लकcopy स अपना जीवन आरभ डिकया था और आज व स वय अपन भटठ क मालिलक रलव क बड ठकदार और अब शहरी इमारतो क भी ठकदार हो गए थ शहर म उनक आठ मकान डिकराए पर उठ हए थ खद अपन लिलए भी एक छोटी-सी अमरिरकन स टाइल की खबसरत बगलिलया उन होन बनवा ली थी एक गाडी भी थी रहन-सहन ठाटदार था जीवनलाल दखत ही दखत नगर क परलिसदध व यलिtयो म स एक हो गए थ

परकाश डिबरक वक स क मालिलक लाला शभनाथ उनक एक सहपाठी क चचर भाई थ तभी स दोस ती हो गई थी लाला शभनाथ यो तो स वय भी एक लखपडित घरान क ही थ लडिकन उनका डिववाह एक ऐस घर की इकलौती लडकी स हआ जो उत तराषटिधकार म इतनी सपदा साथ लाई थी जिजतनी उनक ससतरिममलिलत कटब की थी शभनाथ बड गभीर दडिनयादार और कशल व यवसाय-बजिदध क थ उन होन अपनी पत नी की जायदाद को अपन शरम स कछ अषटिधक बढाया उनकी पत नी परकाशो बीबी यो बडी पडित-परायण थी पर उनक घम स पडित परमश वर को भी दबना पडता था शभनाथ न अपनी पत नी स बाकायदा लिलखा-पढी करक पचीस हजार रपया लिलया और ईटो का भटठा खोला था जीवनलाल उन ढ़िदनो काम की तलाश म भटक रह थ सयोग स शभनाथ षटिमल गए बातो-बातो म जीवनलाल न कहा यार कोई काम बताओ तो शभनाथ न कहा डिक मर भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालो अभी सौ रपय दगा बाद म काम जम जान पर बढा दगा जीवनलाल जब परकाश डिबरक वक स क क लक बन उस समय शभनाथ की आय पतीस-छत तीस क लगभग थी उनकी पत नी उनस पाच-छह वष छोटी थी व चार बच चो क

माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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माता-डिपता थ जीवनलाल आय म दोनो स छोटा 25 वष का था इसलिलए घर म बच चो का चाचा बनकर परवश डिकया

लाला शभनाथ तौलनवाली नजर रखन क बावजद शक की स वभाव क थ व शर स ही अपन-आपको जीवनलाल क व यलिtत व की चबक शलिt स बचत रह डिफर भी उन होन अपन को करमशः उनक वश म होत हए पाया व उन ह छोट भाई की तरह प यार करन लग पाच वष क अदर ही जीवनलाल परकाश डिबरक वक स क लिलए अत यत आवश यक व यलिt बन गए इनक काम व यवहार ईमानदारी और कढ़िठन परिरशरमी वभितत पर रीझकर लाला शभनाथ जब इन ह अपना परा डिवश वास द बठ थ तब एक ढ़िदन अचानक उन ह महसस हआ डिक व अपन जीवन का सबस करारा धोखा खा गए ह उनका अत यषटिधक डिवश वासपातर कमचारी उनकी अत यषटिधक डिवश वासपातरी गहलa मी क परम का साझदार बन गया था

परकाशो बीबी यो परष-सख की भखी या अषटिधक बदनीयत न थी उन ह अपन बाल-बच चदार और कलीन होन का भी चौकस होश था पर हआ यह डिक चतर दबग और दसरो पर हकमत करनवाली नारी अपन जीवन म पहली बार डिकसी परष को सच चा आदर-भाव दन क लिलए अपन-आप स मजबर हो गई थी भटठ का डिहसाब-डिकताब सभालत-सभालत जीवनलाल शभनाथ की दौड-धप बचान क लिलए अक सर परकाशो बीबी की जायदाद का काम भी सभालन लग उनकी सलाहो पर चलकर जहा शभनाथ को अपन धध म षटिमला वहा ही परकाशो बीबी क बक क खात म भी ऐसी बढोत तरी ढ़िदखाई दी डिक परकाशो बीबी न अपन पडित पर दबाव ालकर जीवनलाल को उनक भटठ की नौकरी स हटाकर अपनी जायदाद और अपन पतक काम-धध का मनजर बना ढ़िदया उन होन कछ एक जायदादो की खरीदी-बची म परकाशो बीबी को कछ ही महीनो म साढ पाच लाख रपयो का धनी बना ढ़िदया परकाशो बीबी बहोशी म जीवनलाल पर रीझी और जीवनलाल न बडी होलिशयारी स उस रीझ को भनाकर ऐस कमजोर aणो म परकाशो बीबी को अपन वश म कर लिलया डिक उन ह अपन पाप पर पछतान तक का अवसर न षटिमला इसक बाद जस शभनाथ अपनी पत नी क पस पर अपना स वततर डिवकास कर रह थ वस ही जीवनलाल भी करन लग शभनाथ उनस ईष या करक भी उनस अपना सबध तोड नही पात थ परकाश डिबरक वक स फम क अधीन ही उन होन रलव की इमारत बनान का ठका परकाशो बीबी क पस क बत लिलया मनाफ म आठ आन अपन छह परकाशो बीबी क और दो आन शभनाथ क भी रख इन ठको का खाता अलग था फम का नाम एक ही था शभनाथ अपनी इ|त ओर मनाफ क लालच म जीवनलाल स अपना नाता न तोड पात थ जीवनलाल उनक सामन बराबर यही झलकाता डिक दोष मरा नही तम हारी पत नी का ह स वय परकाशो बीबी क ऊपर भी वह ऐसी धौस जमा दता था तम रीझी थी तम हारी रीझ म अगर मरा परष-मन लभा गया तो यह दोष मरा नही मन ही मन म एक जगह उनस परकाशो बीबी भी कहती थी और शभनाथ भी पर दोनो उन ह छोड नही सकत थ खासतौर स स तरी का अपराध-जढ़िटल हठीला मन अब अपन अपराध क कारण को छोडन क लिलए तडिनक भी तयार न था

जीवनलाल क जीवन म यही एक घटना घटी हो सो बात नही रईस सतरिसतरयो पर अपना रगीन परभाव जमान म व कछ तो चतर थ और कछ लिसकदर भी हर शरीफ आदमी अपन घर म उनका आना हरतिगज पसद नही करता था डिफर भी कोई उन ह अपन घर म आन स रोक नही सकता था उनकी आखो की मोडिहनी शलिt उनक व यवहार की षटिमठास सबको मजबर करती थी

जीवनलाल की उमर क छत तीसव साल म उनक जीवन म एक डिवशष घटना घटी शहर म लोह क मशहर व यापारी लाला मसददीलाल की डिवधवा बटी स उनका डिववाह हआ यह सदाचारी व यभिभचारी अपन होनवाल बच च की माता और उसक परडितषटि^त नानाकल की मान-रaा क लिलए ही डिववाह करन को मजबर हआ था मगर इस समय तक उनका मन कछ इस तरह पक चका था डिक व डिकसी भी स तरी क चरिरतर पर डिवश वास ही न कर पात थ लीला इनक घर म क या आई कद म पड गई और य घर स बधन लग अपन मन का सदह इन ह चन नही लन दता था ढ़िदन म आठ-आठ दस-दस बार डिबना डिकसी काम-काज क ही य अचानक घर का चक कर काट जात रलव की इमारतो का ठका होन की वजह स महीन म पदरह ढ़िदन इन ह दौर पर भी रहना पडता था य रात म अचानक लौटकर अपनी पत नी क सतीत व की परीaा करन क लिलए बहान-बहान स सार घर की जाच डिकया करत थ बहान स पलग क नीच झाकना बहान स कब खोलकर दखना सद की रातो म भी बहान स छत झाक आना इनकी आदत म शाषटिमल हो गया

लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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लीला छह महीन म ही इनस तग आ गई वह अक सर झझला पडती थी खीझ-खीझ उठती थी लीला चतर गडिहणी थी वह अपन पडित क कारोबार का डिहसाब-डिकताब जाचन-सहजन क कारण एक परकार स उनकी पराइवट सकरटरी भी हो गई थी अपन पडित क शक षटिमटान क लिलए उसन परयत न डिकए पर जिजतना ही वह एकडिनष ठ लिसदध करन का परयत न करती उतना ही व चौकत जात थ

ए क ढ़िदन म यडिनलिसपलिलटी क एeजीक यढ़िटव अफसर शरी डितरभवननाथ कौल क घर उनक बट की सालडिगरह क उपलa य म पडित-पत नी की दावत थी अपन बच च डिववक को आया की डिनगरानी म घर पर छोडकर व लोग गए थ कौल साहब न दसर महमानो क लौट जान क बाद भी इन ह रोक रखा षटिमसज कौल स लीला का घना बहनापा था कछ डिबजनस का मामला भी था म यडिनलिसपल बो शहर म कछ इमारत बनवान जा रहा था घरल रिरश त न स वाथ का रिरश ता भी बाधा कौल साहब क कारण ही जीवनलाल का तीस लाख का टर मजर हो चका था इसलिलए जीवनलाल का कौल साहब स स वाथ अटका था और कौल का जीवनलाल स जीवनलाल कौल साहब का आगरह टाल नही सकत थ

रात क एक बज घर लौटन पर कपड बदलत समय अचानक लीला न उनस कहा तम हार कौल साहब की नजर अच छी नही

जीवनलाल क कलज म तीर निबध गए लीला न आग कहा मनोरमा भी उनकी बदनजर को बढावा दती ह

जीवनलाल का खन बफ हो गया लीला षटिमसज कौल क साथ घर क अदर ही बठी रही थी षटिमस टर कौल उनस बात करत हए बीच म पाच-छह बार घर क अदर गए थ एक बार तो पदरह षटिमनट तक उन ह अकल ही बठा रहना पडा था - यह सब उन ह याद आन लगा जीवनलाल गग रह गए

एक ढ़िदन लीला अपन डिपता क घर गई थी शाम को जीवनलाल जब अपन घर लौटकर आए तो उन होन बडी उतावली क साथ अपनी ससराल म फोन डिकया पता लगा डिक लीला वहा स कौल साहब क यहा गई ह जीवनलाल को करारा आघात लगा व डिबना खाए-डिपए ही आरामकसv पर पड रह एक बार जी म आया डिक कौल क यहा टलीफोन कर मगर डिफर उस इच छा को दबा गए

रात क साढ दस बज लीला आई जीवनलाल न दखा उसक गल म नौरतन का बड टीकोवाला हार था पता लगा डिक षटिमस टर कौल न आठ हजार क दो हार खरीद - एक अपनी पत नी क लिलए और दसरा जीवनलाल की पत नी क लिलए तीस लाख क टर का लालच रहत हए भी यह चार हजार का नौरतीनी हार जीवनलाल क सपण जीवन को डिनगलता हआ नजर आया जीवन डिफर भी खामोश रह

इसक बाद अक सर ही जब व घर लौटकर आत तो उन ह नौकरो स बच च की आया स खबर षटिमलती डिक सठानी साहब कौल साहब क यहा गई ह कौल साहब स षटिमलन पर जीवनलाल कटकर रह जात इनकी नजर उनक सामन उठती न थी उनक सामन इन ह बार-बार ऐसा महसस होता डिक डिवश व-डिवजता लिसकदर डिकसी साधारण शतर स हार गया ह जीवनलाल कौल साहब स अक सर षटिमलन क लिलए मजबर थ क योडिक ठका स वीकार कर लन क बाद व उसम कई लाख रपया फसा चक थ यह रपया उनका अपना न था चार महाजनो स लिलया गया था और उसका ब याज उन पर दौडन लगा था लa मी और महालa मी क मोह न उन ह जिझझोडना शर कर ढ़िदया जीवनलाल अपन को कठघर म बद शर की तरह अनभव करत थ

उनका बच चा छह महीन का हो गया था जीवनलाल अपन बच च को बहद चाहत थ इसक पहल भी व डिपता बन थ मगर उन ह डिपता कहलान का अषटिधकार इस बच च क दवारा पहली बार पराप त हआ था जीवनलाल बच च की दहाई दकर अपनी पत नी को इशार स समझात और पत नी सनकर भी अनसना कर जाती जब कभी जवाब दती तो बहत पना

आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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आरभ क चार महीनो म बात धीर-धीर ही बढती रही उनकी पत नी का शरीमती कौल क घर आना-जाना ढ़िदनोढ़िदन बढता ही जाता था अक सर ही पडित-पत नी इनक यहा खान पर बलाए जात अक सर ही लिसनमा दखन का परोगराम भी बनता था डिकसी क घर म कोई खास चीज बनती तो दसर क यहा जरर भजी जाती शर म अक सर और डिफर तो सबह-शाम जब भी जीवनलाल घर म रहत उनक कानो म दो-एक बार यह भनक अवश य ही पडती मम साब कौल साब का फोन ह सनकर मम साब ऐस भागती जस लोहा चबक की ओर आता ह एक बार शाम को घर लौटकर आन पर मालम हआ डिक मम साहब कौल साहब की कोठी पर गई ह रात म लौटकर भी न आई न कोई सदश ही षटिमला दसर ढ़िदन सवर हारकर स वय ही फोन डिकया शरीमती कौल स बात हई पता लगा डिक लीला तो डितरभवन क साथ कल शाम ही बाहर गई ह वह शायद आज तीसर पहर तक आएगी

जीवनलाल झटका खा गए अपन ऊपर बहत सयम रखकर उन होन बडी डिवनय क साथ शरीमती कौल स कहा मरी तकदीर म जो कछ बदा होगा सो होगा ही मगर आप अपन जीवन को क यो नष ट कर रही ह

शरीमती कौल न एक आह भरकर कहा अब उसका क या डिकया जाए जीवनलाल जी डिफर भी अपनी तरफ स म यह कोलिशश कर रही ह डिक लीला मरी दश मन न बन इसीलिलए बच च को मन अपन पास ही रख लिलया ह उन दोनो को आजादी द दी ह

म अपन बट को लन क लिलए अभी आता ह जीवनलाल की अहता उनक स वर म अपन बट पर अषटिधकार करन क लिलए क ढ़िदरत हो उठी निकत उधर स शरीमती कौल का उत तर आया इस समय आन का कष ट न कर लाल साहब आपका फोन आन क वt म कार म बठ चकी थी म अभी-अभी अपनी चचरी बहन क यहा जा रही ह रक नही सकती और बच चा भी मर ही साथ जा रहा ह

जीवनलाल तडपकर रह गए उस ढ़िदन वह काम-धाम म अपना मन न लगा सक तीसर पहर लीला जब अपन बट क साथ घर आई तो पडित को घर म ही पाया लीला को दखत ही एक बार तो उनकी आखो म खन झलक आया परत उन होन अपन-आप पर काब पा लिलया ठ स वर म बोल मर साथ जो चाहो सो करो पर अपन बच च क हक म क यो काट बोती हो लीला

सनकर लीला की त योरिरया चढ गई कहा बच च स तम ह क या मतलब

सनकर जीवनलाल क रोम-रोम म आग सलग उठी तडपकर बोल बच चा मरा ह

वसी ही तडप-भरी आवाज म लीला का उत तर षटिमला वह तम हार पाप स पदा हआ ह तम हार पण य स नही उसका बाप एक व यभिभचारी परष ह व यभिभचारी डिकसी का डिपता या पडित नही होता वह कवल बरा होता ह डिफर बरा चाह डिकसी भी नाम का हो क या फक पडता ह

अहता की कचोट यह सनकर एकाएक थम गई करारा आघात खाकर वह मानो जड हो गई मनोवभिततया डिनकम मी पडन लगी आग की लपट अपन-आप ही को खाकर करमशः मद पडन लगी कमजोरी क अथाह सागर म आदश क डितनक का सहारा लकर जीवनलाल न कछ उखडी और कछ बझी-सी आवाज म कहा स तरी जाडित ही तो दडिनया की इ|त ह औरत को लकर ही इ|त का सवाल उठता ह मरी और तम हारी बराई म बहत अतर ह

मगर मरी बराई की जड भी तम ही हो पराई औरतो की इ|त डिबगाडन म मजा आता ह म भी कभी पराई थी तब उपदश न ढ़िदया

जीवनलाल लिसर झकाए बठ रह गोया कमर म अकल बठ रह डिफर तजी स उठकर बाहर चल गए उन होन इस तरह झटक क साथ कसv छोडी मानो डिपस तौल का ढ़िटरगर छोडा हो इस तरह खटखट गए मानो गोली छटी हो

जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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जीवनलाल उस समय सचमच घातक म म थ यढ़िद उनक पास डिपस तौल होती तो शट कर दत - शायद लीला को - शायद अपन को - या शायद दोनो को ही निहसा का जब म बना तो अपना सब-कछ घर-मकान बाग-बाडी जमीन-जायदाद इ|त-आबर दीन-दडिनया सब-कछ धल-खाक कर दन की तमन ना बवर-सी उठी और रोम-रोम पर छा गई पर व डिकसी को न मार सकत थ व अपन गनाह क एहसास स बध हए थ उस बधन को तोड नही सकत थ जब लाला शभनाथ न उनकी और परकाशो बीबी की चोरी पकडी तब परकाशो बीबी न डिकस दढता क साथ पडित को अपन परम म बाधक होन स रोका था जीवनलाल तब मन ही मन म डिकतन परसन न हए थ लाला शभ क चरिरतर म इस परकार की कोई खोट न थी व पत नी क धन स दब थ और इशारतन जीवनलाल उस दबाव को बढवाया ही करत थ लडिकन अपन कस म व खद ही दब थ लीला को भी उन होन खीच-खीचकर अपनी वासना का भोग बनाया था व डिकस जबान स लीला को शरी या शरीमती कौल को बरा कहत अपन परोपकार स दबाकर उन होन डिकतना ही मध यवगvय गरीब सतरिसतरयो और कमारिरयो को अपनी इच छा क आग समरतिपत कराया था व अपनी दराचारी वभितत क दास थ यह सच ह डिक व इस लालच स ही परोपकार न करत थ पर यह भी सच ह डिक अपनी इस कदरती खबी का फायदा व अपन तन की प यास बझान क लिलए खब उठात थ

ढ़िदन बीतन लग लीला और जीवनलाल की बोलचाल एकात म एकदम बद हो गई चार क समाज म व अपना रिरश ता कायम रखत थ लीला उस समय इनस इतना मीठा व यवहार रखती डिक इन ह भी ढ़िदखाव स मजबर होकर षटिमठास घोलनी ही पडती थी जीवनलाल अषटिधक-स अषटिधक घर स बाहर रहन लग उन होन काम म अपन-आपको जी-जान स झोक ढ़िदया उनकी यह हारटिदक इच छा थी डिक म यडिनलिसपलिलटी का काम जिजतनी जल द हो सक परा कर ढ़िदया जाए जिजसस डिक भडिवष य म व कौल साहब क परभाव स बच सक शायद तब व लीला क ऊपर भी अकश रख सक उनका ऐश-आराम छट गया था हा फरसत षटिमलन पर व शराब अषटिधक पीन लग व शहर की जानी-पहचानी नजरो स कन नी काटन लग थ हर एक की नजरो म उन ह अपन लिलए मखौल और ताना भरा नजर आता था अकलपन की साथी पतिordfहसकी क डिगलास क साथ सन नाट क aण म अक सर उनक कानो म नगर-भर की काव-काव गजा करती जीवन तन बहत स पडितयो डिपताओ और माताओ क कलज चीर ह त शहद-भरी छरी ह तर कलज म घाव करन क लिलए भी एक शहद-भरी छरी आई तरा रकीब तर कलज म घाव कर तरा उपकार करता ह याद कर जब त शभनाथ पर अपना उपकार लादता था तब उनकी नजर तरी ही तरह झकी रहती थी उस समय उनका चहरा भी ढ़िदल की टीस को उसी तरह कस रखता था जस आजकल त रखता ह

उदार परकडित क लोग अपन दभाग य का बोझ पराए दोषो पर बहत अषटिधक नही पटका करत व अपन दोषो क बोझ स स वय दबत और पीडा पात रहत ह जीवनलाल ऊची उमर म आकर डिववाह क चक कर म फस और डिववाह क पहल ही बरस म ऐसी गाज डिगरी डिक उनक जीवन की धारा ही रकती नजर आई व डिबजनस म अपना मन फ कत-न फ कत तो क या करत-ढ़िदल क तपत रडिगस तान को उठाए-उठाए उनक पराण बावल हो जात जीवनलाल अपनी डिनगरानी म बनती हई इमारतो क नकशो म डिनमाण म उसक डिहसाब-डिकताब म सबह स लकर रात तक हठपवक लग रहत थ उन ह एक aण की छटटी नही थी उन ह चन नही था चन लिसफ दो ही चीजो म पात थ लीला क घर म न होन पर अपन बच च क साथ खलन म या डराइग-रम को बद कर पतिordfहसकी और लिसगरट को साथ लकर दद स घटन और डिफलॉसफी सोचन म

दस-ग यारह महीनो म ही जीवनलाल का स वास थ य डिगर गया उनक दोस त-अहबाब सिचता करन लग लीला न डिफर भी पडित क परडित अपन व यवहार का रखापन और कसाव न छोडा लीला इन ह छदन क लिलए हरदम पनी बनी रहती थी लीला डिकसी भी बहान सना-सनाकर कौल दवारा दी भटो का बखान करती कई गहन कई साडिडया लीला और षटिमसज कौल क एक-स हो गए थ बच च क लिलए भी अक सर आत-आत बहत-स गनिखलौन डितरभवननाथ कौल की भट क रप म जमा हो चक थ लीला क कमर म एक बशकीमती वारोब भी कौल की भट क रप म जीवनलाल की दषटिM म हरदम चभा करता था

एक ढ़िदन बच च क कमर म परवश करन पर जीवनलाल न दखा डिक जहा उनकी लीला की लीला क डिपता की तस वीर रक खी हई थी वहा अब एक और फोटोगराफ भी शाषटिमल हो गया था इस फोटो म डितरभवननाथ कौल क एक ओर उनकी पत नी खडी थी और दसरी ओर लीला उनका बच चा डिववक डितरभवननाथ की गोद म था दखत ही

जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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जीवनलाल पर ऐसी बीती डिक मन का बाध टट गया व खिसथर न रह सक आपा खो बठ तस वीर हाथ म लिलए हए व तजी स बाहर डिनकल आए

लीला अपन कमर म लटी हई कोई उपन यास पढ रही थी

जीवनलाल न कडककर आवाज दी लीला

लीला चौक गई यह स वर नया था उसन घमकर जीवनलाल को दखा और बठी हो गई

जीवनलाल उसक सामन आकर उसकी नजरो म एक बार दखकर करमशः अपनी उत तजना खोन लग एक सक ो क लिलए उनकी गडित ढ़िठठक गई इतन म ही गालिलया पराथना बन गई कलज क गबार डिनकलत समय अचानक अपील की तरह सामन आए उन होन कहा तम भल ही गर की हो जाओ मगर मर बच च को मझस मत छीन

मन कब छीना ह

यह-यह क या ह जीवनलाल न तस वीर ढ़िदखलात हए कहा बड होन पर यह फोटो ढ़िदखला-ढ़िदखलाकर मर बच च को यह बहकाओगी डिक जिजसकी गोद म खडा ह वही उसका डिपता ह

म तमस बदला लगी क योडिक म तमस घणा करती ह मगर अपन बच च स भला क यो बदला लगी

मर सवाल स इस जवाब का क या सबध ह

डिववक स झठ बोलकर मझ लाभ क या होगा

तब तमन क यो एक ऐस शखस की गोद म दकर उसका फोटो खिखचवाया ह जो डिक उसका डिपता नही ह लडिकन उसकी मा का और वह तस वीर होश सभालन क पहल ही उसक कमर म रख दी गई ह

इस रखत समय मरी इच छा तो यह थी डिक तम हारी तस वीर वहा स हटा द डिववक क होश सभालन पर तस वीरो क सबध म पछन पर म कम स कम अच छ लोगो का परिरचय उस द सकगी तम हार जस लपट दगाबाज मीठी छरी का परिरचय दकर म अपन बट क कान अपडिवतर नही करना चाहती

लडिकन तम कौल या उसकी बदकार बीवी ही

हम तीनो जीवनलाल की पत नी न शरनी की तरह तडपकर कहा हम तीनो म वह परष जिजसकी गोद म डिववक खडा ह उसम और तमम वही फक ह जो गगा और नाल म ह

एक ही पाप क लिलए म बरा और वह

वह डिकसी ऐस पाप क अपराधी नही ह उनकी पत नी को इसका परा डिवश वास ह

तमन मझस कहा था डिक डितरभवन और उसकी बीवी जीवनलाल न कराडितकारी क समान उत तजिजत होकर पछा

जीवनलाल की बात तजी स काटत हए लीला बोली झठ कहा था

क यो

सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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सनोग लीला बहद पन स वर म बोली म तमस घणा करती ह मरा रोआ-रोआ परडितनिहसा स हर समय सलगा करता ह तमन मझ मीठ ठग की तरह लटा और जब म एक नई जान स मजबर होकर तम हार यहा आई तो तम मर ऊपर शक और शबह स भरी डिनगरानी करन लग मर यहा आन क बाद भी खद सब तरह क दराचार करत हए मझ सतीत व की जल म कद करना चाहा म अपनी इच छा स सती ह एक परष की पत नी होना मर षटिमजाज को सहाता ह - यह अलग बात ह मगर तम हार दबाए हरडिगज न दबगी यह सोचकर मन यह नाटक रचा जो भट कौल साहब क नाम स आई ह वह मन अपन डिपता क पस स खरीदी ह

जीवनलाल डिवश वास-अडिवश वास की रस साकशी म जड-स बन गए कछ aण बाद अचानक उन होन डिफर पछा तम हार और षटिमसज कौल क कपड-जवर जो एक-स

षटिमसज कौल क पडित स हम करीब पाच लाख की बचत का काम षटिमला ह - उनस रिरश ता बनाए रखन क लिलए आठ-दस हजार रपय खच कर दना बडी बात नही तम हारी जानकारी म भी द सकती थी लडिकन म तमस घणा करती ह - इतनी

जीवनलाल ठहाका मार-मारकर हस पड और काफी दर तक हसत रह लीला कछ न समझकर उन ह दखती रही हसी का दौर कम होन पर हाफत हए और हसत हए कहा तम मझ बहत प यार करती हो वरना तम हार मह स आज सच हरडिगज न सन पाता मर मन का मदा बोझ उतर गया ओह अब तम मझस घणा करो लीला जी चाह जिजतनी करो मरा जीवन मरझाएगा नही और गनिखलगा डिनत नया होकर महकगा

सहसा पासा पलट गया सती पत नी को दराचारी पडित की उदारता क सामन अपनी बदला लन की सकीण वभितत मन-ही-मन बरी तरह स गडन लगी हर व यलिt अपनी परिरखिसथडितयो क अनसार बरा भी ह और भला भी लोग दसरो की बराइयो को मारना चाहत ह और अपनी बराइयो क परडित करणा परकट करत ह यह कसा अन याय ह अगर जीवनलाल न एक तरह स अन याय डिकया ह तो लीला न दसरी तरह स लीला सोचन लगी डिक वह नारी होकर भी बहद कठोर ह वह जीवनलाल स बहत महगा बदला ल रही ह क या उस अपन पडित को घला-घलाकर मार ालना ह

लीला न कनगनिखयो स अपन पडित की ओर दखा य डिकतन दबल हो गए ह

पहली बार लीला को अपन पडित क स वास थ य की सिचता हई वह पडित जिजसस उस नफरत थी

हाजी कफीवाला अमतलाल नागर

जागता ह खदा और सोता ह आलम डिक रिरश त म डिकस सा ह निनढ़िदया का बालम य डिकससा ह सादा नही ह कमाल न लफजो म जाद बया म जमाल सनी कह रहा ह न दखा ह हाल डिफर भी न शक क उठाए सवाल डिक डिकस स प लाजिजम ह सच का असर यही झठ भी आक बनता हनर

छाप का डिकस सागो अज करता ह डिक -

एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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एक ह चौक नखास का इलाका और एक ह हाजी षटिमया बलाकी कफीवाल डिपचासी-लिछयासी बरस की उमर ह दोहरा थका बदन ह पटटदार बाल गलमच छ और आदाब अज करत हए उनक हाथ उठान क अदाज म वह लखनऊ षटिमल जाता ह जो आमतौर पर अब खद लखनऊ को ही दखना नसीब नही होता डिकसी जमान म हाजी षटिमया बलाकी की बरफ और डिनषटिमष खान क लिलए गोा बहराइच बलरामपर कानपर और दर-दर स रईस शौकीन गमv-सद क मौसमो म दो बार लखनऊ तशरीफ लात थ बलाकी की बदौलत चार नाचन-गानवालिलयो उनक लगए-भगओ और चार डिकसम क सौदागरो का भी भला हो जाता था बलाकी षटिमया न हजारो रपय पदा डिकए पक का दो-मजिजला मकान बनवाया दो बार हज कर आए पहल लडक और डिफर लडकी की शादी धमधाम स की न लडकी रही न लडका पदरह-बीस बरसो क आट-पाट म हाजी साहब डिपस गए

लडकी का गम लडक क दम पर सह लिलया लडका भी ऐसा होलिशयार था डिक बाप का नाम दोबाला डिकया सतरह-अठारह साल हए एक ढ़िदन राह चलत हाट फल हआ और चटपट हो गया अपन परो घर स गया था पराए हाथो उठकर उसकी लाश आई

साल ढ साल तो गम म टट लिसमट बदहवास बठ रह मगर डिफर पोतो क मह दखकर हाजी बलाकी षटिमया न अपना जी कडा डिकया सोचा डिक घर स डिनकालकर खात-खात तो एक ढ़िदन कार का खजाना भी चक जाता ह डिफर मर बाद इन बच चो का क या होगा इसलिलए हाथ-पर गो थक ही सही मगर जब तक चलत ह तब तक परान हनर स इतन जनो का पट क यो न भर - कशकिफया धोन और दध बगरा औटान-भरनक चककर म बढी का ध यान बटगा दलडिहन का वt कटगा बच चो क पट म बहान स कछ न कछ-मवा भी पहचता रहगा और मरा भी बाहर डिनकलना हो जाएगा - अब और डिकया क या जाए

इस तरह एक ढ़िदन बादाम डिपस ता लिचरौजी इलायची जाफरान शकर सतर और अनारो का सौदा कर लाए दध रबडी बालाई लाए कशकिफया धोई कढाव चढाया उन नीसवी सदी म उस तादो की लिचलम भर-भर क सीख हए हनर क हाथ रच-रचकर ढ़िदखलाए डिफर हाजी बलाकी षटिमया की तजबकार बीवी उमर-भर क सध हाथो स ल म कशकिफया सजान बठी बरफ भरकर हाी डिहलाई तब तक हाजी बलाकी षटिमया न परान वक तो म रईसो-नवाबो और अगरज निहदसतानी हाडिकमो स षटिमल सारटिटडिफकटो का रजिजस टर डिनकाला यह चमड का रजिजस टर वजीर न मरन क कछ ही ढ़िदनो पहल कानपर स डिपचहततर रपय म बनवाया था हर पश त पर दो सरटिटडिफकट चमड क फरम म मढ ढ़िदए उसम न टटनवाल कागजी काच भी जड ह अब बा को अपन य सरटिटडिफकट बहत प यार ह इसलिलए वजीर यह कीमती रजिजस टर बनवाकर लाया था हाजी उस ढ़िदन फल न समाए थ आज उस ढ़िदन को रोए डिफर अपन को सभाला कही बढी न दख ल उजला करता चडीदार पाजामा और टोपी पहनी मजदर को बलवाया ला उसक लिसर पर लादा और करीब सतरह-अठारह बरसो क बाद अल लाह का नाम लकर कशकिफया बचन डिनकल इस बार बढ-बढी दोनो एक-दसर की आखो को आसओ क हमल स न बचा सक परद की ओट म दलडिहन भी रो पडी उसकी लिससकी सनकर हाजी बलाकी तजी स बाहर चल आए गली स बाहर आकर नखास बाजार म पहली आवाज लगी क ल फी मलाई की बरफ गला भर-भर आया

दसरी आवाज म ही बलाकी षटिमया न अपन-अपन सभाल लिलया वह इनसान ही क या जो मसीबत न झल सक घट क डिहसाब स एक इक का तय डिकया और उमर-भर क बरत हए बाजार को छोडकर हजरतगज जापसिलग रो और पचबगलिलयो की तरफ चल निहदस तान को आजादी बस षटिमलनवाली ही थी नया दौर शर हो चका था एक आला हाडिकम-जमाना क वालिलद बजगवार का ढ़िदया हआ सरटिटडिफकट भी उनक रजिजस टर म मौजद था उन ही की कोठी का नबर पछत-पछत जा पहच इक का कोठी स बाहर ही खडा करवाया और रजिजस टर लिलए अदर गए अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीछवाल बगीच म फरसत स बठ ह अदली स पछा तो मालम हआ डिक साहब पीठवाल बागीच म फरसत स बठ ह अदली को दआए दी और कहा डिक जरी य खत हजर की गनिखदमत म पश कर दो मर बढाप प तरस खाओ अदली को रजिजस टर खोलकर ढ़िदया और खत पर हाथ रखकर बतला भी ढ़िदया हाडिकम-जमाना बाप की लिलखावट बरसो बाद अचानक दखकर बहत खश हए रजिजस टर क दसर सरटिटडिफकट पढन लग डिफर बलाकी षटिमया को बलवा लिलया

हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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हाजी बलाकी षटिमया महज खालिलस माल स ही नही बशकिक अपनी बातो और अदब-कायद स भी गराहको को खश करत ह हाडिकम-जमाना उनकी बगम साहबा और दोनो जवान बढ़िटयो क हाथ म तश तरिरया पहची नही डिक हाजी बलाकी ल उड कफी म हजर दध औटान और शकर षटिमलान म ही लिसफत होती ह कफी की तारीफ तो तब ह जब डिक यहा खोली जाए और बनारसी बाग म जाकर खाई जाए इतनी दर म अगर कफी गल जाए तो डिफर हजर वह शौ कीनो क खान क काडिबल नही और बात सरकार यही तक नही कफी जमान क फर म अगर इतनी बरफ ाल दी डिक खानवाल क दात गल और जबान ढ़िठठरी तो डिफर हजर लिसफत क या रही आजकल क कफी वाल लखनऊ क परान हनर को नही जानत हमार उस ताद न लिसखाया था डिक अव वल तो य समझो डिक कफी म तरावट डिकस चीज की ह बरफ की या दध मलाई रबडी फलो मवो की यही तो पकड की बात ह बगम साहबा अल ला आप सबको जीता रक ख माल को हजर तरावट इतनी ही दनी चाडिहए डिक उस पर स मौसम-गमv का असर हट जाए अगर दात गल तो परखया परखगा क या

पढी-लिलखी लडडिकयो और हाडिकम-आला पर बातो का असर होन लगा

बलाकी षटिमया न लडडिकयो की ओर मखाडितब होकर सनाया आपक जन नतनशी दादाजान को खश करना हर एक क बस की बात न थी हजर मरी बात क गवाह होग आपक दादाजान एक बार छोट लाट साहब क यहा खाना खान गए थ वहा मग-मसल ल म की बडी तारीफ हो रही थी कई और अगरज हाडिकम थ शहर क कछ रईस नवाब भी थ सभी लाट साहब क बावचv क लाम बाध चल आपक दादाजान खामोश बठ रह लाट साहब बोल डिक नवाब साहब आपन तारीफ नही की आपक दादाजान न फरमाया डिक हजर तारीफ क काडिबल कोई चीज तो हो डिफर उन होन अपन यहा सबको दावत दी साहबजाढ़िदयो मरी बात क चश मदीद गवाह हमार सरकार यहा तशरीफ-फमा ह जहा तक मझ ध यान ह हजर उस वt कोई दस या ग यारह साल क रह होग

इसक बाद हाडिकम-जमाना और उनका खानदान हाजी बलाकी षटिमया का अजसर नौ सरपरस त हो गया डिफर कोई शानदार कोठी-बगलवाला हाजी बलाकी की कशकिफयो स महरम न रहा हाजी बलाकी की कफी और डिनषटिमष का शमार भी लखनऊ क कल चर म हो गया डिवदशी महमानो को लखनऊ आन पर लिचकन क करत दपलिलया टोपी रमाल और साडिडया षटिमटटी क गनिखलौन और मशहर इतरो क तोहफ तो ढ़िदए ही जात थ हाजी बलाकी की कफी या सरटिदयो म डिनषटिमष भी गनिखलाई जान लगी अगरजी क अखबारवालो न उनकी तस वीर तक छापी साल-भर म हाजी साहब का कारबार चल डिनकला जो पहल की आमदनी क मकाडिबल म अब चौथाई भी न होती थी क योडिक इनाम-इकराम दनवाल रईस अब नही रह पर जमान को दखत हए हाजी साहब की रोजी सध गई मनाफ क लालच म माल डिनखालिलस न डिकया इ|त और नाम पर ट रह धीर-धीर दो पोतो को हाडिकम-जमाना की बदौलत मस तडिकल चपरालिसयो म भरती करवाया महल ल-पडोस और रिरश तदारी क कई लडको को छोट-मोट काम ढ़िदलाए बडी इ|त बढ गई खदा का शकर ह बढी खिxजदा ह बह ह बड पोत की बह ह अल लाह क फजलो-करम स उसक आग भी दो बच च ह छोट पोत की शादी भी पारसाल कर दी मगर वह लडकी बडी कल लदराज ह सख-चन क चाद म बस यही एक गहन लग गया ह वरना हाजी बलाकी अब अपना गम भल चक ह

ए क ढ़िदन डिकसी वt की नामी नाचनवाली मश तरीबाई का आदमी उन ह बलान आया हाजी दोपहर क वt उसक यहा गए उन होन मश तरी को बच ची स जवान और बढी होत दखा था उसका जमाना दखा था डिक रईसो-नवाबो क पलक-पावडो पर चलती थी अब भी परानी लाखो की माया ह मगर जमाना अब तवायफो का नही रहा लडडिकयो को बीए एमए पास कराया ह मगर अब गाडी आग नही चलती दरअस ल मश तरी चाहती ह डिक दोनो की कही शाढ़िदया कर द यही नाममडिकन लगता ह हारकर दोनो को अदब-तहजीब लिसखाई और थोडी-बहत नाच और गान की तालीम भी ढ़िदलवा दी ह कचोट लडडिकयो क जी म भी ह मश तरी क मन म भी आजकल सहारनपर का एक रईसजादा दोनो लडडिकयो का नया-नया दोस त हआ ह उस शादी करन स एतराज नही क योडिक उसकी मा एक योरोडिपयन नस थी जिजस उसक वालिलद न मसलमान बनाकर अपनी काननी बीवी बनाया था यह लडका जब लखनऊ आता ह तो फला-फला अफसर क घर महमान होता ह उनक यहा हाजी की डिनषटिमष खा चका ह हाजी को जानता ह मश तरी हाजी बलाकी की बातो क कमाल को जानती ह बाप की तरह उनक पर पकडकर कहा उस लडक को अपन शीश म उतार ल हाजी साहब तो बडा सबाब होगा म जानती ह आयदा जमान म य जिजदगी इन

लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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लडडिकयो स न सधगी अब इस पश म इ|त नही रही एक स पार पाऊ तो दसरी क हाथ पील करन का रास ता खल

हाजी बलाकी मान गए दसर ढ़िदन शाम की मश तरी क यहा जा पहच बडी आवभगत हई सहारनपरी रईसजादा वहा मौजद था दोनो लडडिकया तो थी ही

हाजी न गल म हाथ ालत हए कहा छोट सरकार खाना-पहनना और इnक करना यो तो परिरद-दरिरद तक जानत ह मगर इनम तमीज रखन और हजार पतdeg छानकर इनकी खबी और अखिसलयत पहचानन की कवत अल लाह ताला न लिसरिरफ इनसान को ही अता फरमाई ह वो भी हर एक को नसीब नही आपको अपन लडकपन का हाल सनाता ह कोई सोलह-सतरह बरस की उमर होगी मरी उस ताद क साथ जाया करता था एक बहत बड ताल लकदार थ लबा-चौडा ील-ौल गोरा सखाबी बदन और उनकी बडी-बडी आख हसीन नाजडिनयो क लिलए चबक थी आला ईरानी खानदान क पश त-दर-पश त स पोतडो क रईस थ मगर आम रईसो की तरह भोल-भाल न थ उनक दो आख ऊपर थी तो चार भीतर थी सबका राज लकर डिकसी को अपना राज न दत थ अपन जमान क पक क गनिखलाडी थ सरकार हजारो न घरा उन ह सकडो न रिरझाया जाल-कप ाल मगर जिजस तवायफ का म जिजकर कर रहा ह वह अपन जमान की नामी और हसीन थी ढ़िदल म तमन ना रखकर भी उसन कभी मह स कछ न कहा नवाब साहब उसकी खिxखदमतो को समझत रह जब खब परख लिलया तो उस डिनहाल भी कर ढ़िदया बाकी सब मह दखत ही रह गई डिफर ऐसा भी वt आया डिक नवाब साहब अपन चचा स मकदमा लडकर अपनी कल इस टट हाई कोरट म हार गए तब उस तवायफ न कहा डिक जानमन तम हो मर य जवर दौलत और जायदाद मरी नही ह इसस लदनवाली अदालत तक मकदमा लडो और सखरई हालिसल करो यही हआ भी नवाब साहब डिफर मालामाल हो गए बाद म नवाब साहब न उस तवायफ स पछा डिक तमन मझम ऐसा क या दख लिलया जो औरो की नजर म न पडा तवायफ बोली मन दखा डिक तम उतावल नही बशकिक पारखी हो और इनसाफ-पसद हो बस इसक लिसवा डिफर कछ दखन को नही रहा इस पर नवाब साहब न उसस कहा सलाब-इnक अब अपनी हद पर ह अब म तम ह अपनी नौकर तवायफ की हलिसयत स नही दख पाता तम मरी मलिलका हो बाकायदा हजर डिनकाह पढवाकर उस अपन महलो म ल गए तो इnक इस कहत ह हर चीज हजर समझदारी मागती ह अब कशकिफयो को ही ल लीजिजए - एक-एक ठा रशा मह की गमv पात ही पहल तो गनिखल और डिफर धीर-धीर घलता जाए ज यो-ज यो घल त यो-त यो षटिमठास बढती जाए जो खशब या जो मसाल ाल हो व अपनी जगह पर बोल यही मजा इnक का भी ह सरकार का रतबा आला ह मगर उमर म हजर मर बच चो क बच च क बराबर ह मरी बात आजमा दगनिखएगा

हजर पर हाजी की बातो का सरर गठन लगा हाजी बलाकी कशकिफया गनिखलात चल लडडिकयो और मश तरी की तारीफ करत चल लडडिकया रतन ह मगर खदा क इनसाफ स जिजस पश म जन म लिलया ह उसम बचारिरयो को बकसर घटना होगा कहा तो य पढी-लिलखी तहजीब-याफता लडडिकया और कहा आज क जमान का दोजख

हजर यह मश तरी बडी नक लडकी ह इसन अपना जमाना दखा ह मगर म इसक मह पर कहता ह डिक अभी तो लडडिकयो का मह दखकर इस डिफराक म ह डिक इनकी शाढ़िदया हो जाए मगर खदा मरी इन बखिचचयो को हर खतर स बचाए महज बात क तौर पर ही कह रहा ह डिक बाद म हारकर यही मश तरी लडडिकयो स कहगी डिक पशा करो यारो को ठगो और मर कह मताडिबक तम लोग नही करोगी तो घर स डिनकलो अर हजर झठ नही कहता अपनी लडडिकयो क हक म इन नायकाओ स बढ कर कोई बरा नही होता रपयो की लट क पीछ दीवानी य और कछ भी नही सोचती आपको एक डिकस सा सनाता ह गरीब-परवर एक नौजवान रईस थ एक तवायफ स ढ़िदल षटिमल गया उस डिनहाल कर ढ़िदया मगर नायका का पट इतन स ही न भरा एक और बढ भोद रईस को भी फसा लिलया लडकी लाख कह डिक अम मा मझस बवफाई न कराओ मगर अम मा जिझडक-जिझडक द कह डिक ऐसा सदा स होता आया ह खर हजर होत करत एक ढ़िदन नौजवान रईस को भी पता चल गया वह चार गो को लकर उसक कोठ पर चढ आया तवायफ की नाक काटी बढ की तोद म करौली घपी बडा बावला तोबा-डितल ला मचा खर डिकस सा खत म हआ मगर बचारी लडकी नाक कटन क बाद दीनो-दडिनया डिकसी अरथ की न रही बतलाइए मला उसका क या कसर था जो य सजा पाई यही न डिक तवायफ क घर पदा हई थी इसलिलए अपन आलिशक स शादी न कर सकी और अपनी नायका - अम मा क बस म उस रहना पडा म ऐसी-ऐसी सकडो षटिमसाल द सकता ह इस बच ची की सरत दखकर तरस आता ह अब तो सरकार भी यह पशा खत म कर रही ह खदा इन पर रहम कर

बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)

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बातो का लिसललिसला बढात रह और दो-तीन रोज म ही लडका राजी हो गया मश तरी अब हाजी बलाकी क पाव पकडती ह कहती ह दसरी की शादी भी करवा दो तब घर बठकर खदा का नाम लना

लडिकन अब एक मश तरी की लडडिकया ही नही कई और भी हाजी साहब स नई जिजदगी मागती ह हाजी ढ़िदल ही ढ़िदल म परशान रहत ह डिक सबको कहा पार लगाए

(1960 एक ढ़िदल हजार अफसान म सकलिलत)