Abstract - JETIRर मचररतम नस म र पलए अक षय प च र , एक...

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© 2018 JETIR July 2018, Volume 5, Issue 7 www.jetir.org (ISSN-2349-5162) JETIR180Z031 Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (JETIR) www.jetir.org 991 सात युग के संदभ रामचरतमानस डॉ. सोनल पटेल अȯापपका, पिȽी पिƗण पिभाग गूजरात पिȨापीठ, अिमदाबाद Abstract आज का युग पिǒान का युग ि भौपतकिादी पिǒान ने धमऔर अȯाȏ के मिȕ को पयामɑ ऱप मे Ɨीण कर पदया ि यधपसामाɊ जन पुराने संˋारो, परɼरागत ऱपियो एिं ाचीन धापममक आȯाȏक सापिȑ के कारण, भले िधापममक आȯाȏक Ɨेो िृपत बनाये रखे , परȶु आधुपनक मानि-जीिन का ेरक, पनयामक और पदिा पनदेिक भौपतकिादी पिǒान िि राम जी कथा भारतीय सापिȑ की और भारतीय संˋृपत’ की आपद कथा ि कपि भारतीय संˋृपत के रƗक ि राम के ऱप आपद कपि िʝकी ने मानि मा के िʷत आदिो को रखा िऔर उसके पʮात गोˢामी तुलसीदास जी ने रामचरतमानस ंथ पलखकर राम को लौपकक ऱप और अलौपकक ऱप पिˁु के अितार िनिीं पूणम पराȋर ˦ के रप उसे उजागर पकया ि जनमानस के सिज िरी तुलसीदास जी की कपिता मे की भािुा लोकनायक की जनिापदता तथा समाजसुधारक की सामापजक चेतना ि तुलसी के मानस का आदिम भाि आज भारत िनिी बʋ पिʷ पचरथायी बन गया ि रामचरतमानस कथा, वाताभ तो है ही उससे ादा इततहास है इसे कोई भी पिदे िी पिेगा तो पूरे भारत िकी संˋृपत का पता चल जायेगा रामचरतमानस उस युग के जन मानस के पलए पजतना यथाथम था उतना ियथाथम आज के पलए भी ि उसका एक सबल माण यि भी िपक सािे तीन सौ िपूिम पलखे गए इस मिाकाʩ के दोिे और चौपाइया पबना पिे पलखे अनपि भारतीयों की िनी भी उनकी पदनचयाम के साथ फूट पडता िभौपतकता के इस युगम समाज के सामने पिम से पिम पररथपतया रिी ि, पजनम तुलसी का रामचरतमानस ििमारे पलए अƗय पिचार ि, एक अƗय ंथ ि, िमारा एक मा संबल ि, पजसके अȯयन एिं अनुिीलन से िमे आदिम जीिन की ेरणा पमलेगी पनʺमतः साɽत युग के संदभम मे पिʷ कपि तुलसीदास जी का कालजयी मिाकाʩ रामचरतमानस पिʷ सापिȑ की अनुपम पनपध ि, पजसम ǒान और संˋृपत पमपत कपडयों को गूंथकर जनपित के मागमदिमन का मिान कायम पकया गया ि गोˢामी जी के आȏबोध उनके जगत बोध का समािे ि ि उनकी कपिता देिकाल की सीमा के बंधनो से मु िकर पकसी भी युग के पलए सािमभौपसȠ िती ि मानस” जनता की सɼपत िजो मा ििताɨी तक िनिीं बʋ युगों -युगों तक मानि जापत के जीिन पथ को आलोपकत करता रिेगा ावना : आज का युग पिǒान का युग िै भौपतकिादी पिǒान ने धमम और अȯाȏ के मिȕ को पया मɑ ऱप म Ɨीण कर पदया िै यधपप सामाɊ जन पुराने संˋारो , परɼरागत ऱपियों एिं ाचीन धापममक आȯाȏक सापिȑ के कारण, भले िी धापममक आȯाȏक Ɨेो मे िृपत बनाये रखे , परȶु आधु पनक मानि-जीिन का ेरक, पनयामक और पदिा पनदेिक भौपतकिादी पिǒान िी िै जनमानस के सिज िरी गोˢामी तुलसीदास जी की कपिता म भ की भािुकता लोकनायक की जनिापदता तथा समाजसुधारक की सामापजक चेतना िै तुलसी के मानस का आदिम भाि आज भारत म िी निीं बʋ पिʷ म पचरथायी बन गया िै सैनांपसˋो के िाȶाकुज िाईˋूल म रामचरतमानस के कुछ अंसो का भʩ नाटक उसका ȑƗ माण िै

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JETIR180Z031 Journal of Emerging Technologies and Innovative Research (JETIR) www.jetir.org 991

साम्प्रत युग के संदर्भ में रामचररतमानस

डॉ. सोनल पटेल

अध्यापपका,

पिन्दी पिक्षण पिभाग

गूजरात पिद्यापीठ, अिमदाबाद

Abstract

आज का युग पिज्ञान का युग िै । भौपतकिादी पिज्ञान ने धमम और अध्यात्म के मित्व को पयामप्त रूप मे क्षीण

कर पदया िै। यधपप सामान्य जन पुराने संस्कारो, परम्परागत रूपियो एिं प्राचीन धापममक आध्यात्मत्मक सापित्य के

कारण, भले िी धापममक आध्यात्मत्मक के्षत्रो में प्रिृपत बनाये रखे, परनु्त आधुपनक मानि-जीिन का पे्ररक, पनयामक और

पदिा पनदेिक भौपतकिादी पिज्ञान िी िै।

श्री राम जी कथा भारतीय सापित्य की और ‘भारतीय संसृ्कपत’ की आपद कथा िै। कपि भारतीय संसृ्कपत के

रक्षक िै । श्री राम के रूप में आपद कपि िात्मिकी ने मानि मात्र के िाश्वत आदिो को रखा िै और उसके पश्चात

गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचररतमानस गं्रथ पलखकर श्री राम को लौपकक रूप में और अलौपकक रूप में पिषु्ण के

अितार िी निी ंपूणम परात्पर ब्रह्म के रुप में उसे उजागर पकया िै ।

जनमानस के सिज प्रिरी तुलसीदास जी की कपिता मे भक्त की भािुक्ता लोकनायक की जनिापदता तथा

समाजसुधारक की सामापजक चेतना िै। तुलसी के मानस का आदिम भाि आज भारत में िी निी बत्मि पिश्व में

पचरस्थायी बन गया िै। रामचररतमानस कथा, वाताभ तो है ही उससे ज्यादा इततहास है। इसे कोई भी पिदेिी पिेगा

तो पूरे भारत िर्म की संसृ्कपत का पता चल जायेगा।

रामचररतमानस उस युग के जन मानस के पलए पजतना यथाथम था उतना िी यथाथम आज के पलए भी िै। उसका

एक सबल प्रमाण यि भी िै पक सािे तीन सौ िर्म पूिम पलखे गए इस मिाकाव्य के दोिे और चौपाइयााँ पबना पिे पलखे

अनपि भारतीयो ंकी िानी में भी उनकी पदनचयाम के साथ फूट पडता िै

भौपतकता के इस युगमें समाज के सामने पिर्म से पिर्म पररत्मस्थपतयााँ आ रिी िै, पजनमें तुलसी का

रामचररतमानस िी िमारे पलए अक्षय पिचार िै, एक अक्षय गं्रथ िै, िमारा एक मात्र संबल िै, पजसके अध्ययन एिं

अनुिीलन से िमे आदिम जीिन की पे्ररणा पमलेगी ।

पनष्कर्मतः साम्प्रत युग के संदभम मे पिश्व कपि तुलसीदास जी का कालजयी मिाकाव्य रामचररतमानस पिश्व

सापित्य की अनुपम पनपध िै, पजसमें ज्ञान और संसृ्कपत पमपश्रत कपडयो ंको गंूथकर जनपित के मागमदिमन का मिान

कायम पकया गया िै । गोस्वामी जी के आत्मबोध में उनके जगत बोध का समािेि िै । उनकी कपिता देिकाल की

सीमा के बंधनो से मुक्त िोकर पकसी भी युग के पलए सािमभौम पसद्ध िोती िै । “मानस” जनता की सम्पपत िै जो मात्र

२१ िी ंिताब्दी तक िी निी ंबत्मि युगो-ंयुगो ंतक मानि जापत के जीिन पथ को आलोपकत करता रिेगा ।

प्रस्तावना :

आज का युग पिज्ञान का युग िै । भौपतकिादी पिज्ञान ने धमम और अध्यात्म के मित्व को पयामप्त रूप में क्षीण

कर पदया िै । यधपप सामान्य जन पुराने संस्कारो, परम्परागत रूपियो ंएिं प्राचीन धापममक आध्यात्मत्मक सापित्य के

कारण, भले िी धापममक आध्यात्मक के्षत्रो मे प्रिृपत बनाये रखे, परनु्त आधुपनक मानि-जीिन का पे्ररक, पनयामक और

पदिा पनदेिक भौपतकिादी पिज्ञान िी िै ।

जनमानस के सिज प्रिरी गोस्वामी तुलसीदास जी की कपिता में भक्त की भािुकता लोकनायक की

जनिापदता तथा समाजसुधारक की सामापजक चेतना िै । तुलसी के मानस का आदिम भाि आज भारत में िी निी ं

बत्मि पिश्व में पचरस्थायी बन गया िै । सैनफ्ांपसस्को के िान्ताकुज िाईसू्कल में रामचररतमानस के कुछ अंसो का

भव्य नाटक उसका प्रत्यक्ष प्रमाण िै ।

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तुलसीदासजी का सातहत्यिक पररचय

तुलसीदास के संपूणम काव्य का मूल पिर्य रामकथा िै। उन्ोनें ऐपतिापसक-पौरापणक रामकथा को अपनी

भपकत भािना से पुष्ट करके अपनी रचनाओ ंमें प्रसु्तत पकया िै। िैसे तो तुलसी के नाम से अनेक पुस्तकें प्राप्त िोती िैं ,

पजनकी संख्या 36 तक पगनाइम जाती िै पकंतु अब तक की खोजो ं के आधार पर तुलसी की रचनाओ ं की सिममान्य

संख्या 13 िै। इनमें भी रचनाओ ंके कालक्रम पर मतभेद िैं पक कौन-सी रचना पिले की िै और कौन-सी बाद की।

कपि की सिमसम्मत रचनाएाँ इस प्रकार िैंरामचररतमानस, पिनयपपत्रका, कपितािली, गीतािली, दोिािली, श्ष्गीतािली,

जानकी-मंगल, पािमती-मंगल, रामललानिछू, बरिै रामायण, िैराग्य-संदीपनी, रामाज्ञा प्रश्न और िनुमान बाहुक। १

रामचररतमानस, महाकाव्य की रचना

तुलसीदास ने िर्म 1631 में चैत्र मास के रामनिमी पर अयोध्या में रामचररतमानस को पलखना िुरु पकया था।

रामचररतमानस को तुलसीदास ने मागमिीर्म मिीने के पििाि पंचमी (राम-सीता का पििाि) पर िर्म 1633 में 2 साल, 7

मिीने, और 26 पदन का समय लेकर पूरा पकया।

इसको पूरा करने के बाद तुलसीदास िाराणसी आये और कािी के पिश्वनाथ मंपदर में भगिान पिि और माता पािमती

को मिाकाव्य रामचररतमानस सुनाया। २

साम्प्रत युग के संदर्भ में रामचररतमानस :-

तुलसीदास प्रदत देि की जनता के पलए सबसे बडी उपलत्मि िै – “रामचररतमानस । आज संपूणम जगत

संिय, अपिश्वास और अनास्था की व्यापध से पीपडत िै । ऐसी त्मस्थपत में तुलसी का मानस िी िमारा पथ प्रदिमक बनता

िै –

रामकथा सुन्दर करतारी, संशय तवहम उडावन हारी ।

तुलसी ऐसे प्रपतभा सम्पन्न कपि थे पजनके काव्य में लोकमत एिं िेदमत का मपणकाचन योग िै । जीन में सांर-

कृपतक मूल्ो ंके अन्तगमत समस्त िास्त्रानुमोपदत परम्पराए एिं मान्यताएाँ िै पजनका ग्रिण जीिन में सदा िोता रिता िै

। इस कपि के काव्य मे िाश्वत जीिन मूल्ो की प्रपत्िा िै जो मिीन युग के नागररको के पलए योग्य और आिश्यक िै

रामचररतमानस साम्प्रत युग के पलए ज्ञान के दीपक के समान िै । यि मिाकाव्य तुलसीदास जी के समय की

पनराि और िताि जनता के पलए डूबते को पतनके का सिारा सापबत हुआ । “उस समय चारो ंऔर आपपियो ंऔर

पनरािा से पधरा हुआ मनुष्य आिा की एक पकरण िंूिना चािता था पजससे िि जीिन के लमे्ब बोझ को िो सके ।

आज के मनुष्य की भी ििी समस्या िै । रामचररतमानस ने उस िक्त की भारतीय जनता के पलए जीिन दापयनी बूडी

का कायम पकया । आज िमार देि की जनता के पलए इसी उदे्दश्य की पूपतम करते हुए िि समस्त पिश्व की मानिता का

पथ आलोपकत कर रिा िै ।

रामचररतमानस उस युग के जन मानस के पलए पजनता यथाथम था उतना िी यथाथम आज के पलए भी िै ।

उसका एक सबल प्रमाण यि भी िै पक सािे तीन सौ िर्म पूिम पलखे गए इस मिाकाव्य के दोिे और चौपाईयााँ पबना पिे

पलखे अनपि भारतीयो ंकी िाणी में भी उनकी पदनचयाम के साथ फूड पडता िै । मिात्मा तुलसीदासजी ने इस संसार

को पसयाराम मय देखा था –

तसया राममय सब जग जानी ।

करौ प्रणाम जोरर जुग पानी ।।

यपद आज का मानि आज के नेता प्रिासक और धापममक पदो ं पे आसीन व्यत्मक्त भी उस संसार को

पसयाराममय देखे तो भारत का िी निी समस्त पिश्व का कल्ाण िो जाय । आज दुपनया में पिनािक युद्ध के बादल

माँडरा रिे िै। कोई देि कोई व्यत्मक्त िात्मन्त का अनुभि निी ंकर रिा िै। आत्मखर क्या िै कारण इस अिात्मन्त का ?

उिर स्पष्ट िै िम रामचन्द्रजी के जीिन और आदिो के प्रपतकूल आचरण कर रिे िै । आज का नारी समाज सीता जी

के जीिन को सामापजक पपछडापन समझ रिा िै। उसपलए समाज में मंथराओ, कैकपययो और िूपमणखाओ ंकी संख्या

पदनोपदन बि रिी िै। सीता, अनसूया मंदोदरी सुलोचना और तारा का चररत्र उदे्दश्य िो रिा िै। आज की माताएाँ

कौिल्ा बनने में अपना सामापजक पपछडापन मिसूस कर रिी िै, पफर रािण, कंुभकणम मेघनाद और खर-दूर्ण को

पैदा िोने से कौन रोक सकता िै ?

आज देि भर में सामापजक अराजकता का तांडि नृत्य िो रिा िै । जो लोग उस सामापजक अराजकता को

दूर करने और समाज मे अमन चैन लाने का िेका पलए बैठे िै िे िी सामापजक अराचकता फैलाने की मुख्य भूपमका

पनभा रिे िै । सबको अपनी-अपनी पडी िै, समाज औऱ देि की पचन्ता निी िै पफर भी अपनी िाणी से सभी अपने को

समाज सेिी और देिभक्त बताते िै । भगिान राम जो किते थे उसका अपने जीिन में अनुिरण करते थे । सत्य

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उनका एक मिान व्रत था । उनका जीिन िंमेिा दूसरो ं के कल्ाण के पलए था । भगिान राम कभी राजसिा से

पचपक निी रिे। जन कल्ाण के पलए उन्ोने अपना घर-द्वार माता-पपता, भाईबनु्ध सबको छोड पदया था । आज िमारे

देि मे कुसी का मोि राष्टर व्यापी बन गया िै ।

भरत का त्याग और तपस्या से युक्त जीिन लक्ष्मण का अपमान और अन्याय को बरदास्त न कर सकनेिाला

स्वभाि तथा सिमदा सम्मानपूिमक मस्तक ऊाँ चा करक जीिन जी ने की तमन्ना आज निी रिी । न आज भरत जैसा

बाहुबल रिा न ितु्रघ्न जैसी ितु्र-पिनािक ित्मक्त रिी । िनुमान जैसा भक्त भी आज दुलमभ िै । यिी कारण िै पक

िमारा देि िमारा समाज बडी तेसी से पतन की और अग्रसर िो रिा िै ।

राम राज आज िमारा राष्टर ीय आदिम िै । िमारी पिदेि नीपत भी राम के आदिो के िी अनुरुप िै । पंचिील

का पसद्धान्त उसी नीपत का पोर्क िै । िमारी पिदेि नीपत में भी रामराज समाया हुआ िै । जब तक युद्ध का भय

पदखाए काम चल जाय तब तक युद्ध के प्रमाद में पिधं्वसक अस्त्र-िस्त्रो ंके प्रयोग से भयंकर बबामदी करना राम के

आदिों के प्रपतकूल िै । उसी पसद्धांत को लेकर आज िम पिश्विांपत में अपनी पनणामयक भूपमका पनभा रिे िै ।

बांग्लादेि की स्वतंत्रता में िम लोगोनें िैसी िी भूपमका पनभाई जैसे भगिान राम ने लंखा िापसयो ं के साथ

अपनी भूपमका पनभाई थी । पापकस्तान, नेपाल, चीन, श्रीलंका, अरबगण राज्यो तथा अफ्ीका और दुपनया के ऐसे बहुत

से देिो ंके मामलो ंमे भारत ने राम के आदिो के अनुरुप िी अपनी भूपमका पनभाई िै । दुपनया को सभी जापतयो ंको

सम्मानपूिमक स्वतंत्र रिकर पनभीक रुप से जीिनयापन और अपनी संसृ्कपत का पिकास करने का समान अिसर पमले

एसा िम चािते िै और ऐसे िी राष्टर ीय आचरण का संकल्प कर रखा िै ।

राम के आचरणो ं का अनुकरण करके िम अपनी सभी राष्टर ीय, अन्तराष्टर ीय सामापजक तथा व्यत्मक्तगत

समस्याओ ंका िल पा सकते िै । आज सामापजक तथा व्यत्मक्तगत समस्याओ ंका िल पा सकते िै । आज समापजक

तथा प्रिासपनक के्षत्र में िम अपनी जो अधोगपत देख रिे िै उसका मुख्य कारण यि िै पक िम राम के चररत्र को अपने

आचरण में स्थान निी ंदे पा रिे िै । धन संपपत के लोभ न िमे अंधा बना रखा िै ।

रामचन्द्र जी आदिम मयामदा पुरुर्ोिम िै । उनके जीिन का एक-एक कोना आदिम से भरा पडा िै । आदिम

पपत, आदिम पुत्र, आदिम राजा, आदिम पमत्र और ितु्र के पलए भी नेक पिचार करनेिाले गुणो ं के पारखी अतुपलत

बलिाली मृदुभार्ी, पिनम्र अपभमान रपित और कल्ाणकारी पिचारोिाले राम के अनेकानेक सद्गुणो ं के कारण िी

भालु, बंदर, जंगली जापतयो ंऔर राक्षसो ंमें से िनुमान सुग्रीि, अंगद, पिभार्ण, जटायु, पनर्ादराज केिट और िबरी

जैसे मिान भक्त हुए ।

भरत का जीिन िमें यि पिक्षा देता िै पक बरदास्त करने की भी एस सीमा िोनी चापिए । जब बरदास्त की

सीमा का उलंघन िोता िै तो ित्मक्त प्रदिमन के पबना काम निी चलता । परिुराम, समुद्र, बापल, सुग्रीि और स्वयं रािण

तथा अनेकानेक राक्षसो ं के सामने ित्मक्त प्रदिमन से िी काम चला । आज अमररका, ईंगे्लण्ड, फ्ान्स, चीन तथा

पापकस्तान तक िमें जीने न दे, यपद िमारे पास ित्मक्त न िो । उसे ध्यान में रखकर िी िम लोगोनें अपनी प्रपतरक्षा नीपत

पनधामररत की िै ।

ितु्रघ्न की माताओ ं की सेिा भािनाओ ं का अनुिरण करके िम अपने पाररिाररक िााँचे को खुििाल रख

सकते िै ।

सीताजी के जीिन का अनुकरण बापलकाओमें बाल्ाकाल से िी संस्कार का पसंचन करने का मित्वपूणम

माध्यम िै । कन्याओ ंमे िील, संस्कार औरं से्नि से पररपूणम जीिन का पसंचन सीताजी के चररत्र के अनुकरण के द्वारा

पकया जा सकता िै । संयपमत, पपतव्रत जीिन नारी जीिन में उसकी गररमा को बिाता िै । आज पिश्वभर में नारी

समाज पसनेमा की अपभनेपत्रयो ं का अनुकरण करके अपने साज-शंगार तथा अधमनग्नता में िी अपनी सभ्यता औऱ

बडपत्र को मिसुस कर रिी िै । यि नारी समाज के पलए बहुत िी अपितकर िै ।

कौिल्ा माता का िात्सल् भाि से छलकता चररत्र आज देि की मपिलाओ ंको आदिम माता बनने की पे्ररणा

देता िै । माता कौिल्ा का चररत्र पाररिाररक िााँचे को टूटने से बचाने के पलए आिश्यक िै । यपि कौिल्ा माता के

समान आच माताएाँ िो ंतो िमारी पाररिाररक व्यिस्था टूटने से बच सकती िै और िम सुख िांपत का जीिनयापन कर

सकते िै ।

रािण का दंभी स्वभाि िमें यि बताता िै पक अिंकार और अनीपत का जीिन मानि के समूल पिनाि की जड

िै । सिम पिद्या से संपन्न रािण सभी प्रकार की ित्मक्तयो ंको रखते हुए भी न अपनी रक्षा कर सका और न अपने पररिार

का अनीपतयुक्त और पाप कमो का यिी फल सबको भोगना पडता िै । इसपलए स्वस्थ आचरण का अनुिरण प्रते्यक

व्यत्मक्त और समाज को करना चापिए। एक बुराई आने से अन्य बहुत सी बुराइयो ंको मानि के अन्दर प्रिेि करने का

प्रोत्सािन पमलता िै । इसपलए बुराइयो ंसे िंमेिा दूर रिना चापिए ।

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२१ िी ंिताब्दी के आगमन की प्रतीक्षा करनेिाला अमेररका पिश्व का सिोतृ्कष्ट समन्वयात्मक देि िै, जिााँ के

अनेक मंपदरो, सामापजक और सांसृ्कपतक केन्द्रो ंमें अन्य त्योिारो के साथ रामनिमी का त्योिार भी बडी धूमधाम से

मनाया जाता िै ।

गोस्वामी तुलसीदास भक्त से पिले मनुष्य थे । जीिन के संघर्ो को झेलते हुए मानिीय दररद्रता तथा अपमान

की ज्वाला में जलते हुए उन्ोनें अपना जीिन व्यतीत पकया था । िायद इसीपलए एक दूर द्रष्टा की िैपसयत से ५००

पिेले की आनेिाले युग की पररत्मस्थपतत के बारे में अन्ोनें कि पदया था ।

नतह दररद्र सम दुुःख जग मातहं ।

भौपतकता के इस युगमें समाज के पिर्म से पिर्म पररत्मस्थपतयााँ आ रिी िै, पजनमे तुलसी का रामचररतमानस

िी िमारे पलए अक्षय पिचार िै, एक अक्षय गं्रथ िै, िमारा एक मात्र संबल िै, पजसके अध्ययन एिं अनुिीलन से िमे

आदिम जीिन की पे्ररणा पमलेगी ।

पनष्कर्मतः साम्प्रत युग के संदरभ मे पिश्व कपि तुलसीदास जी का कालचयी मिाकाव्य रामचररतमानस पिश्व

सापित्य की अनुपम पनपध िै, पजसमें ज्ञान और संसृ्कपत पमपश्रत कपडयो ंको गंूथकर जनपित के मागमदिमन का मिान

कायम पकया गया िै । गोस्वामी जी के आत्मबोध में उनके जगत बोध का समािेि िै । उनकी कपिता देिकाल की

सीमा के बंधनो से मुक्त िोकर पकसी भी युग के पलए सिमभौम पसद्ध िोती िै । “मानस” जनता की सम्पपत िै जो मात्र

२१ िी िताब्दी तक िी निी ंबत्मि युगो-ंयुगो ंतक मानि जापत के जीिन पथ को आलोपकत करता रिेगा।

संदर्भ गं्रथ सूची

गोस्वामी तुलसीदास, रामचररतमानस, गीतापे्रस गोरखपुर, अिोक प्रकािन, नई सडक पदल्ली ।

पह्मपसंि िमाम कमलेि, तुलसीदास : पचन्तन और कला ।

भाग्यिती पसंि, तुलसी मानस रत्नाकर ।

मालती दुबे और राम गोपाल पसंि, तुलसी के काव्यादिम, पाश्वम पत्मिकेिन, पनिापोल, झिेरीिाड, ररलीफ रोड,

अिमदाबाद, प्रथम आिृपत – १९९८

युगेश्वर, तुलसीदास आज के संदभम मे, अपभव्यत्मक्त प्रकािन, ८४७, युपनिपसमटी रोड, अिमदाबाद ।

रामदास गौड, श्री रामचररतमानस की भूपमका, पिन्दी पुस्तक ऐजन्सी, १२६, िरीसन रोड, कलकिा।

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https://sol.du.ac.in/mod/book/view.php?id=1463&chapterid=1351 date – 03/10/2017

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